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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 49
प्रेम प्रतिज्ञा
बलदेव: अरे कमला सुनो तो ये तो बताती जाओ मेरी रानी कहा है अभी?
कमला: तैयार हो कर बैठी है तुम्हारे लिए अपनी कक्षा में और जल्दबाजी में बाहर चली जाती है।
बलदेव (मन में अब मुझे अपना असली प्रसाद खाना चाहिए जो भगवान ने सिर्फ मेरे लिए बनाया है।)
बलदेव अपनी माँ से मिलने के लिए चल पड़ता है और उसकी कक्षा में जा कर देखता है, परंतु उसे देवरानी कही दिखाई नहीं देती। तो पुकारता है ।
"माँ कहा हो?"
अब तक देवरानी तय्यर होकर रसोई घर में आ जाती है और नाश्ता तैयार करने लगी थी।
जैसे ही उसके कानो में बलदे की आवाज़ पड़ती है । (मन में एक पल भी चैन नहीं मेरे पिया को)
"बेटा मैं रसोई में हूँ।"
और अपने काम में लग जाती है।
बलदेव भागता हुआ रसोई की तरफ आता है।
देवरानी खड़ी हुई काम कर रही थी और उसके हर बार हिलने से सुर में उसकी बड़ी गांड भी हिल रही थी। सुर में अपनी माँ की गांड को हिलते हुए देख।
"हाय माँ कब दोगी मुझे । इन्हें मारने के लिए कब से तरस रहा हूँ और तुमने अब तक मुझे मसलने भी नहीं दीया ।"
देवरानी आहट सुन कर
"आजाओ बलदेव! वहा क्यू खड़े हो?"
मन में: मेरी गांड को ही घुरता रहेगा हाँ...
"मां आज बहुत महक रही हो आप, क्या बात है।"
"सच में बलदेव"
"हाँ माँ कौन से साबुन से नहाई हो और कौन-सा इत्र लगाया है?"
और बलदेव देवरानी के करीब जाता है।
"ये तुम्हारे प्यार की ख़ुशबू है। बलदेव! तुमने ही तो मेरा अंग-अंग महकाया है।"
बलदेव देवरानी से चिपक जाता है।
"झूठी कहीं कि तुम्हारा बदन तो पहले से चंदन-सा महक रहा था।"
बलदेव देवरानी के कमर को पकड़ कर घुमाता हुआ अपने से पकड़ लेता है। तो उसके पल्लू नीचे गिर जाते है। जिस से बड़े वक्ष सामने दिखाई देने लगते है। बलदेव अचानक उसपर अपने होठ रख कर चूम लेता है और देवरानी के कमर को मसलते हुए उसकी बड़ी गांड को अपने से चिपका लेता है।
"हम्म देवरानी! क्यू तड़पती हो?"
"आह राजा! जरा आराम से मेरे राजा1 सुबह-सुबह वह शुरू हो गए."
देवरानी अपने दूध पर बलदेव के होठ लगते ही सिहर जाती है।
"मेरी मर्जी! मैं कभी भी अपनी रानी को प्यार करू!"
"पर अभी सुबह का समय है। घर पर सब है।"
"रात में तो खूब रंग जमाया था तुमने और अभी डर रही हो!"
देवरानी अपना पल्लू उठा। कर फिर से अपने बड़े वक्ष को ढक लेती है।
"हा हा देखो कैसे छुपा रही हो" ये तुम्हारे छुपने से छुपने वाले नहीं महारानी जी! "
देवरानी लज्जा जाती है।
"अहा देखो कैसी शर्मा रही है। मेरी रानी"
"बलदेव..."
"हाँ माँ"
"कभी कभी मजाक से हट कर कुछ कर लिया करो"
"कहो ना माँ क्यू परेशान हो रही हो? आज लगता है, कुछ सोच रही हो क्या चिंता है?"
देवरानी अपना मुँह गिरा के
"बलदेव रात में तुम फसते-फसते बचे और आज सुबह मैं फंस गई"
"वो कैसे"
"बेटा वह कल तुमने अपना पानी छोड़ कर धोती ख़राब कर दी थी जिसे कमला धोने ले गई और तुम्हारी सृष्टि माँ ने देख लिया।"
"मां तो वह क्या समझ जाएगी वह इस बात से?"
"बेटा तुम नहीं समझते वह कितनी शातिर है। वह समझ गई होगी कि वीर्य पुरुष का है और वह मेरे पर नज़र रखने लगेगी।"
"मां तो तुमने वह वस्त्र कमला को क्यू बाहर ले जाने दिया?"
"बेटा मैं क्या करती तुम्हारी रात भर मस्ती की सुबह अंग-अंग टूट रहा था।"
"बस बस हमारा वह कुछ नहीं कर सकती । आप निश्चिंत रहे और ये सृष्टि को आपके ऊपर किये गए सब अत्याचारो का उत्तर देना होगा"
देवरानी अब जा कर थोड़ी चिंता से बाहर आती है।
बलदेव माहौल बदलने के लिए
"वैसे माँ कल तुमने बड़ा जल्दी वस्त्र बदल कर आगयी थी।"
देवरानी मुस्कुराती है।
"वैसे सती सावित्री अवतार में भी तुम कम कामुक नहीं लगती हो मेरी परी!"
"चुप कर बदमाश, सब हम पर शक कर रहे हैं और तू मुझे रसोई के बाहर खड़ा निहार रहा था। कोई देख लेता तो।"
बलदेव देवरानी केपैरो के नीचे बैठते हुए बलदेव बोला...
"देवरानी ये तुम्हारे पहाड़ जैसे चूतड़ों ने मेरे नींद छै।न उड़ा दी है।"
"छी! गन्दे कहीं के."
"मां मैं इन्हे दबोच कर खूब मसलना चाहता हूँ पर मेरी रानी पर तुम नहीं आगे बढ़ने देती मुझे।"
और बलदेव बच्चे-सा मुँह बना लेता है।
बलदेव झुका कर देवरानी की गांड के पास अपना मुंह ले जा कर उसे सुंघ कर आँख बंद कर लिया था।
"ओह मेरा राजा रात में तो तुमने उसपे अपना वह रगड़ कर उसपे पानी भी गिरा तो दिया था।"
"माँ आज मुझे पहाड़ों को खोद देना है।"
"राजा तुम इस पहाड़ के मालिक हो तो अनुमति कैसी!"
बलदेव नीचे से अपने बड़े हाथो को माँ के दोनों चूतड़ों के करीब लाता है। मस्ती में और देवरानी अपना चूतड हल्का घुमाती है।
"माँ, इस पहाड़ की गुफा में घूमना चाहता हूँ।"
"ये गुफा बहुत छोटी है। बेटा कैसे घुमोगे"
"मां अपने घोड़े को घुमाऊंगा"
"पर अंदर अँधेरा है। घोड़ा डर नहीं जाएगा गहरी गुफा देख के"
"मेरा घोड़ा इसकी गहरी गुफा की जद तक नाप देगा माँ"
बलदेव अपना हाथ उसको चूत पर रख सहला देता है।
"आआआह बेटा उहह आआआआह बलदेव!"
"उफ़ माँ कितने मुलायम चुतर हैं। कितने मखमली हैं। ये दूध से भी चिकने और गद्देदार है ।"
और बलदेव उसके कमर पर चुम्बन दे देता है।
"आआआह बलदेव जान लोगे मेरी"
बलदेव अब हल्का-सा हाथ फेरते हुए दोनों हाथो से उसके चूतर को सहला रहा था।
"आह माँ इन चूतर ने मेरे दिल के कई टुकड़े किये हैं। इनसे तो मैं बदला लूँगा"
"आह बलदेव जान वह ले लोगे क्या इनकी।"
"मां इस चुतडी ने कई बार मेरी सांसे रोक दी है।"
देवरानी अपनी चूत को सहलाने भर से उत्साहित हो जाती है और बलदेव को पास वह बिस्तर पर गिरा देती है।
"आआह बलदेव इतना पसंद है। मेरे ये तुमको"
"हाँ माँ बहुत पसंद है उम्म क्या मुलायम है।"
"आह बलदेव"
"माँ तुम पहाड़ों को ले कर चल कैसे पाती हो? भारी नहीं लगता?"
"उफ़ हट बदमाश!"
देवरानी शर्मा जाती है और खड़ी हो जाती है।
"अरी मेरी रानी बुरा मान गई"
"मां दुनिया में तुम्हारे जैसे चूतड़ किसी के पास नहीं है ।"
"चल झूठा।"
"मां तुम्हें प्रेमी बना के मैं धनी हो गया।"
देवरानी समझ जाती है। बलदेव ने आज मस्ती का मन बाना लिया है।
"वो तो हू मैं पारस की सब से सुंदर लड़की थी मैं किसी जमाने में।"
"मां, आप अब भी सबसे सुंदर हो जब तुम चलती हो तो ये दोनों नितम्ब इस तरह से सुर में ऊपर नीचे होते हैं, जैसे झगड़ा कर रहे हो आपस में।"
"हाँ इसलिए तू इन्हें घूरता रहता है।"
बलदेव उठ कर खड़ा होता है।
"मां एक बार चल के दिखाओ ना।"
"क्यू बाबा अब तुम्हें मैं चल के क्यू दिखाउ? तुम्हारी पत्नी नहीं हूँ मैं।"
"मां एक बार चलो ना दो कदम मुझे इस बड़े मनमोह लेने वाले चूतडो की थिरकन देखनी है।"
देवरानी ये बात सुन कर शर्म और उत्तेज़ना से भर कर एक बार बलदेव की आँखों में देख के सोचती है। "ये तो अपने बाप से 10 कदम आगे है। अभी से इसकी अपेक्षा इतनी है । आगे ये क्या करेगा जब अभी ये मुझे आज दिन दिहाड़े पेलने पर तुला है।"
"माँ एक बार हिलाओ ना इन्हे"
"ठीक है। तो देखो अब तुम इनका कमाल है"
देवरानी अपना पल्लू सीधा कर अपनी गांड को बड़े अंदाज़ से गोल-गोल घुमाने लगती है और उसकी थिरकन बलदेव देखते रह जाता है।
"माँ मैं तो भूल गया था के तुम नृत्य कला में माहिर हो और तुम्हारे ये चूतड आह"
बलदेव झट से देवरानी को अपने बाहो में भर लेता है और उसके होठों को चूमने लगता है। फिर उसके कमर में हाथ लगा कर नाभि को भी चूमने लगता है।
"आआह बलदेव उहह आआआह!"
"उमाआ गैलप्पप्प गैलप्प! माँ मेरी जान!"
बलदेव देवरानी को अब अपनी बाहों में समेट लेता है। "माँ तुम्हारे ये चूतड को खूब मसलूगा ।"
"मसल दो बेटा ये चुतड कई सालो से बहुत तड़पी है, एक मजबूत हाथ के लिए. इसपे तुम्हारा ही हक है।"
"उफ़ माँ तुम्हारी गांड" एक ज़ोर का चपत देवरानी की एक गांड पर मारता है।
देवरानी का दोनों नितम्ब पट हिल जाते है।
"हे भगवान!... उह बेटा आराम से!"
बलदेव अब अपना लंड जो खड़ा हो चुका था उसे देवरानी की चूत पर रगड़ता है।
"बलदेव तुम कितने गंदे हो गए हो तुमने अभी मेरे चूतड को क्या कहा"
"मां मैंने इन्हें गांड कहा तुम्हारे नितमब को"
"ये भाषा कोई भला कोई अपनी माँ के साथ प्रयोग करता है।" उह आआआह!
"हाँ ये तो नितम्ब नहीं ये गांड ही है और ज़ोरो से दोनों हाथो को ले जा कर देवरानी के उन्नत नितम्बो को मसलने लगता है।"
"आआआह मा कितने बड़े हैं। ये उफ्फ!"
"आआह बलदेव नहीं ना बलदेव! नहीं! निशान पड़ जाएगा । उफ़ नहीं! बलदेव आआआहह मेरे राजा!"
"ओह माँ निशान क्या! मैं तरबूज़ को तोड़ दूँगा।"
"बड़ा आया तोड़ने वाला उहह आआहह बलदेव! बलललदेवववव!..."
देवरानी अब अपनी चूत बलदेव के लंड पर सहलाने लगती है और उसके सर को पकड़ कर बलदेव के बाल खिंचती है।
"उहह आआआह बलदेव! बस आआहह"
"इतनी जल्दी थी क गई मेरी रानी । क्या हुआ बड़ी महारानी बनती थी कहाँ गई?"
उम्म और खूब मसलने लगता है बलदेव।
"बेटा ऐसे तो कभी तेरे बाप ने नहीं मसला । उह्ह्ह आआह माँ उह्ह्ह आआह जैसा तूने मसला वैसा कभी नहीं मसला । हाआ मजा आआआआह रहा है।"
"पिता जी को इसका मुल्य का अंदाज़ा नहीं है। । उन्हें नहीं पता ये बहुमूल्ल्य है । बेशकीमती हैं पर ऐसे नितंब। तुम जैसी माल उन्हें दिया ले कर ढूँढने से नहीं मिलेगी।"
"उह माँ क्या गदर गांड है। आपकी!"
"आआह खा जाओ फिर इन्हें अगर ये तुम्हे इतना पसंद है। तो उहभ! हे भगवान! मैं मर गई. आआह! मेरे राजा ओह!"
"बलदेव: ओह्ह्ह! मेरी राणी तेरे गांड के दरार में अपना झंडा गाड़ दूंगा।"
देवरानी शर्मा कर अपना मुंह छुपा लेती है।
(मन में: मेरे राजा तुमने मेरे दिल में अपना झंडा गाड़ दिया है। अब तुम कहीं भी झंडा गाड़ दो मैं मना नहीं करूंगी।)
"माँ मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।"
"बेटा मैं भी तुमसे अपने आप से ज़्यादा प्यार करती हूँ कभी धोखा मत देना।"
बलदेव देवरानी को जरूर चाहिए.
"कभी नहीं दूंगा । माँ तुम ही मेरी महारानी बनोगी।"
और एक हाथ से उसके पूरे चूतड़ों को पकड़ कर मसलते रहता है। उफ़ माँ क्या माल हो तुम!
देवरानी मन में: कमला सही कहती थी कि मेरे इतने बड़े नितम्ब किसी के हाथ में आएंगे तो वह बलदेव का ही हाथ है। "
"आआह मेरे राजा!"
देवरानी की गांड को दबा-दबा के भुर्जी कर देता है। बलदेव और उसे एक दर्द के साथ अलग ही, सुख की प्राप्ति होती है।
"बलदेव बसकरो! मेरे राजा अब और नहीं।"
बलदेव अपना मुँह गिरा लेता है।
"माँ तुम!"
"लो अब मुझसे गिरा लिया अभी ज्यादा थक गई तो दिन भर काम नहीं कर पाऊंगी"
बलदेव उसके चुतड छोड़ देता है।
"मां तुम्हें मेरा कल तुम्हारा वस्त्र खराब नहीं करना चाहिए था।"
"अरे बेटा ऐसा क्यू सोचते हो तुम।"
"वो मेरे वजह से...और तुम्हें अच्छा भी नहीं लगा ।"
"पागल मेरे राजा मुझे बहुत सुख मिला कल और तुम्हारे हर एक अंग से मुझे प्यार है। अगर मुझे बुरा लगता तो क्या मैं तुम्हारा वीर्य चाटती"
और शर्मा अपना सर नीचे कर लेती है। अपनी पैरो से ज़मीन खोदने लगती है।
"मां मेरे लिए तुम इतना करती हो बोलो तुम्हें मुझसे क्या चाहिए?"
"बेटा बस एक स्त्री को प्यार के अलावा कुछ नहीं चाहिए । तुम एक सच्चे प्रेमी की तरह रहना और ये भगवान के सामने प्रतिज्ञा लो के तुम मेरा हमेशा साथ दोगे। मेरे साथ कभी छल नहीं करोगे।"
बलदेव माँ की बात सुन कर "माँ मैं बलदेव यानी के घटराष्ट्र का महाराज अपनी रानी देवरानी के सामने भगवान को साक्षी मान कर ये प्रतिज्ञा लेता हूँ के तुम्हारा साथ जीवन भर दूंगा। कभी धोखा नहीं दूंगा!"
बलदेव और देवरानी दोनों हाथ जोड़ कर देवरानी की कक्षा में बने मंदिर के सामने अपना माथाटेकते हैं । थोड़ा उदास हुई देवरानी के पीछे लग कर बलदेव बोलता है।
"मां आख़िर तुमने मुझे बंधन से बाँध दिया।"
"नहीं तो क्या करती । मैं कोई खेलने की चीज़ नहीं हूँ जो आज मेरे शरीर से खेल लो और कल किसी और के साथ रंगरसिया मनाओ. सब राजाओ का यही काम है।"
"पर माँ मैंने तुम्हारे सिवा ना देखा, किसी को ना देखूंगा और अच्छा हुआ मैंने ये प्रतिज्ञाकर ली । कल अगर मेरा दिल बेईमान होने लगा तो भी चाह कर ये पाप नहीं कर पायेगा।"
"जिस दिन तुम्हारा दिल बेईमान हुआ ना बलदेव उस दिन उसको चीर कर के निकल दूंगी।"
"अरी मेरी शेरनी तो क्रोधित हो गई!"
"बलदेव! मैंने अपना सब कुछ छोड़ कर सब कुछ तुम पर लगा दिया है। तुम्हारे लिए कर्म, धर्म, नियम को भूल अपने पति सहित पूरी दुनिया से लड़ने के लिए तैयार हूँ। अब अगर तुम कुछ गलत करोगे तो मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती अब मुझसे सिर्फ तुम्हारा साथ चाहिए"
"इतना प्यार करती हो देवरानी।"
"हद्द से ज्यादा!"
"मां मैं अपनी प्रतिज्ञा तोड़ने से पहले अपनी जान देना पसंद करूंगा"
देवरानी ये सुन कर बलदेव के होठों पर अपने हाथ रख देती है।
"दोबारा ऐसा नहीं कहना। मेरे राजा तुम्हें कुछ हो जाएगा तो मैं एक पल भी नहीं जी पाऊंगी।"
और दोनों गले लग जाते हैं।
जारी रहेगी