Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 50
खुलम-खुला प्यार
सुबह सुबह दुनिया से बेखबर दोनों माँ बेटे एक दूसरे के बाहो में खोये थे।
बलदेव देवरानी को गर्म करने लगा, देवरानी ने भी कोई विरोध नहीं किया, बलदेव ने देवरानी को अपनी बाँहों में कस लिया और उसके शरीर पर धीरे-धीरे हाथ चला कर पीछे से उसके शरीर के उभारों का अंदाज़ा लेने लगा, बलदेव बहुत हलके हाथो से उसको शरीर को कपड़ो के ऊपर से सहला रहा था, कभी-कभी हाथ उसके शरीर पर फेरते वक़्त मेरा हाथ ऊपर की चोली और नीची की साडी के बीच उसके नंगे शरीर को छू जाता तो उसका शरीर हलके से कांप उड़ता ।
बलदेव कुछ देर तक ऐसे ही करता रहा और फिर जब देवरानी हल्का-सा कसमसाई तो अपने होंठ उसके माथे पर रख दिये, होंठ उसके माथे पर रखते ही देवरानी का शरीर शांत-सा होगया मानो वह भी ऐसा ही चाह रही हो, अपना होंठ उसके माथे पर रखे बलदेव अपने हाथ से उसके शरीर के हर एक अंग को महसूस करने की कोशिश कर रहा था और इधर देवरानी की साँसे भरी होने लगे थी ।
अब उसका भी आलिंगन बलदेव के शरीर पर हो चला था और उसकी छातियों के उभार बलदेब की छाती से चिपक चुकी थी, अब बलदेव का हाथ जो अब तक देवरानी की पीठ और कमर पर घूम रहा था उसको बलदेव देवरानी के कोमल उठी हुई चूतड़ों के ले जाकर नितम्बो पर ऊपर फिरना शुरू कर दिया था, जैसे-जैसे बलदेव का हाथ देवरानी के चूतड़ों पर घूम रहा था वैसे-वैसे देवरानी अपनी चूचियों को बलदेव की छाती में दबा रही थी।
"मां तुम्हें डरने या घबराने की चिंता नहीं है मैं तुम्हारे साथ कभी धोखा नहीं करूंगा।"
"मुझे तुम्हारे प्रेम पर पूर्ण विश्वास है मेरे भरोसे को कभी मत टूटने देना बलदेव।" देवरानी अपने तपते हुए ओंठ बलदेव के ओंठो पर लगाती है या बलदेव अपनी माँ रानी के होठों को अपने दोनों होठों के बीच ले लेता है "आह माँ!"
दोनों एक लम्बी चुम्बन करते रहते हैं जब तक उन दोनों के साँसें पूरी तरह से फूल नहीं जाती ।
"मां क्या हुआ सांसे फुल गई?"
देवरानी (मन में: तुझे मौका दे दीया तो तू तो मेरा पेट भी फुला देगा सांस क्या चीज है ।)
"हाँ मेरे राजा तू ऐसा चाहता है अपनी माँ के होठ लगाता है तो लगता है तू मेरे होठों को जड़ से काट लेगा ।"
देवरानी थोड़ा नखरा करते हुए दूर जाती है।
"माँ कहा जा रही हो?"
देवरानी अपने पल्लू संभालते हुए।
"यही हूँ मेरे लाल।"
"मां तुमने अपने खरबूजे जैसी नितमब का हक तो मुझे दे दिया पर मेरी पसंदीदा पपीतो का नजारा अभी तक नहीं करवाया है ।"
"चल हट बड़ा आया मैं तेरी पत्नी नहीं जो मुझसे रोज़-रोज़ नई मांग करता है।"
"नहीं हो तो बन जाओ ना माँ किसने रोका है।"
देवरानी शर्म से पानी-पानी हो जाती है।
"तुझे भगवान का कोई डर नहीं है । ये मंदिर है सामने भगवान तुझे देख रहे हैं।"
"अरे भगवान कहाँ नहीं है! और भगवान इस बात के साक्षी है कि मैं तुमसे कितना प्रेम करता हूँ और तुम्हें तुम्हारी अंधियारे जीवन से निकाल कर तुम्हे कितना खुश कर रहा हूँ।"
"पर मेरे राजा बेटा भगवान ने तो कहा ये पाप है कोई बेटा अपने माँ से विवाह..." और शर्म से लाल हो जाती है ।
"मां अगर माँ को खुश रखना जो सालो साल अय्याश राजा की नाम की पत्नी रह कर अपनी आत्मा को दुख देती रही, अगर ऐसी स्त्री को खुश करना पाप है तो मुझे ये पाप अभी करना है।"
"तुम्हारे पास हर प्रश्न का उत्तर है।"
"तुम एक प्रश्न हो माँ जिसका उत्तर मेरे पास है। तुम जैसी प्रश्न का उत्तर वह डेढ़ फुटिया राजपाल नहीं दे पाया।"
देवरानी ये सुन कर खुश हो जाती है।
"देखूंगी, वह तो वक्त ही बताएगा की मुझे क्या उत्तर मिलेगा । मेरे राजा!"
"मां तुम्हारे बड़े-बड़े ये गेंद को पल्लू से हटाओ ना इनके हर एक बार हिलने से मेरा दिल का धड़कना रुक जाता है।"
देवरानी शरमती हुई "अच्छा मेरे राजा!"
देवरानी अपनी साड़ी का पल्लू उतारती है एक अंदाज से या अपने बड़े वक्ष बलदेव को घूरते हुए देखती है।
"माँ कितने सुंदर और बड़े वक्ष है आपके!"
देवरानी का रंग शर्मीला लाल हो जाता है।
"ऐसे सब के होते हैं मेरे राजा!"
"नहीं होते हैंमाँ। मैंने पूरे राष्ट्र में इतने बड़े वक्ष और आपके जितने बड़े नितमब नहीं देखे हैं ।"
बलदेव अब घूम कर देवरानी के पास पहुँच जाता है या उसको पकड कर अपने आगे से चिपका लेता है।
"आज मेरी रूप की रानी।"
"आह बेटा!"
बलदेव देवरानी को अपने खड़े लंड से गांड के दरार में फसाता है और उसके कंधों पर चूमता है ।
"आह माँ! क्या आप भी भरी पूरी माल हो!"
"तुम्हारे हाथ कितने मर्दाना है ऐसी मज़बूती तुम्हारे पिता में भी नहीं थी।"
"हम्म मेरी रानी!"
"बलदेव क्या तुम सब स्त्रीयो के शरीर पर नज़र रखते हो जो तुम कह रहे हो तुम्हे इतने बड़े वक्ष और नितम्ब नहीं देखे?"
"नहीं माँ तुम्हारे सिवा किसी को देखने का दिल नहीं करता।"
"तो फ़िर कैसे कहा तुमने के मेरे सबसे बड़े है ।"
"आआह हे भगवान धीरे!"
"अरे मेरी माँ मैं किसी को घूरता नहीं हूँ, वैसी नजर से जैसी नजर से तुमको देखता हूँ। पर सामने अगर स्त्री रहेगी तो दिख जाता है ।"
"अगर तुमने किसी को घूरा भी तो जान ले लुंगी।"
"घूरना क्या मेरी रानी कह दे मुझे, तो मैं आखो पर पट्टी बाँध लू और किसी भी स्त्री से बात नहीं करूं ।"
इस बात पर देवरानी खिलखिलाती है और बलदेव देवरानी को बाहो में भरे पास में बिस्तर पर ले कर बैठ जाता है उसकी गर्दन पर चूमते हुए अपने गोद में उसे लिए बैठा बलदेव, देवरानी की गहरी घाटी का नजारा कर रहा था।
"मां मुझे गहरी घाटी में भी अपना घोड़ा दौड़ाना है।"
"आआह उह बेटा दौड़ा लेना" और बलदेव को सहलाने लगती है ।
बलदेव अब देवरानी को सीधा कर गले लग जाता है।
"माँ तुम लाखो में एक हो!"
"बलदेव तुम्हारे जैसा बलिष्ठ शरीर का पुरुष मैंने भी कहीं नहीं देखा।"
बलदेव देवरानी की पीठ को एक हाथ से दूसरे हाथ से उसके कमर के मांस को दबाते हुए मजे से मसल रहा था।
"महारानी" हे महारानी! "
ये कमला की आवाज थी वह देवरानी के कक्ष में प्रवेश कर चुकी थी और देखती है कि बलदेव ने देवरानी के कमर को खूब जोर से पकड़ा हुआ है।
कमला: (मन में-देखो कैसे अपना कमर या पीठ को मसलव रही है जैसा उसकी धर्म पत्नी हो और वह भी दरवाजा खोल कर ।) कमला महारानी के कक्ष के दरवाजे के पास वह खड़ी हो जाती है और अंदर का नजारा देख कर दंग थी ।
कमला: महारानी!
देवरानी के कान में अब कमला की आवाज सुनाई पड़ती है।
"बलदेव ये कमला मुझे बुला रही है क्या?"
"माँ! उह्म्म ऐसे ही रहो ।"
"मेरे राजा तुमने दरवाज़ा लगाया था ।"
"नहीं माँ" और अचानक से उसको ध्यान आता है ।
बलदेव झट आँखे खोल कर द्वार की तरफ देखता है और आख खुलते हे सामने दरवाज़े पर कमला खड़ी नज़र आती है। वह तुरंत समझ जाता है कि कमला ने उसे देवरानी की पीठ और कमर को मसलते देख लीया है ।
कमला अपने होठों पर एक कामुक मुस्कान के साथ खड़ी थी।
बलदेव हड़बड़ा कर उठ का खड़ा होता है।
"माँ मैं पेशाब कर के आता हूँ" और स्नान घर में घुस जाता है ।
कमला मुस्कुराती हुई आती है और देवरानी के पास आकर "क्या नई नवेली दुल्हन की तरह सुबह शाम नहीं देखती हो दरवाजा खोल चालू हो जाती हो।"
देवरानी बलदेव को जाते हुए अपनी वेश भूषा और साडी को-को अस्थ व्यस्त पाकर शर्मा जाति है और अपनी साड़ी को ठीक करते हुए सीधा बैठने लगती है और बोलती है "आओ ना कमला"!
कमला (मन में-कैसे मसल-मसल के क्या हालत कर दी है बलदेव ने महारानी की..।.)
अपने अस्त व्यस्त कपड़ो को सम्भाल देवरानी बैठ जाती है और मुस्कुराती है ।
"नयी नवेली की बात नहीं, बस वह मैंने सोचा था कि बलदेव ने दरवाजा लगा दिया होगा और ख्याल ही नहीं रहा।"
"अक्सर ऐसा होता है इश्क़ में बेकार जाते हैं लोग।"
"मैं तो कहती हूँ महारानी खूब टूट कर प्यार करो और सच में तुम बहुत खिली-खिली लग रही हो।"
"धन्यवाद कमला मेरी बहन!"
"हाँ एक समय था जब तुम दुख और गम की सोच में मुरझाई रहती थी ।"
"हाँ कमला सब मेरे राजा बेटा बलदेव का अहसान है।"
"वो तो है मेरी महारानी जी।"
"वैसे तुम्हें ऐसी क्या आवश्यकता पड़ गई जो हमारे बीच में आ टपकी।"
" ओहो तो अब मैं दूल्हा दुल्हन के बीच में आ गई! वैसे में तो नहीं आती कोई और आता तो पता नहीं क्या होता। सोच लो! इसलिए मैंने सोचा और चली आयी । सोचा जांच लू के तुम लोग थोड़ा सचेत रह रहे हो या... ।
"या क्या कमला?"
कमला एक हाथ में अपना पत्र लिये खड़ी थी ।
"ये पत्र मुझे पारस के दूत दिया है कहा है ये शमशेरा ने भेजा है।"
देवरानी शमशेरा समझ जाती है ये तो वही है जो जासूसी करने आया था और उसके भाई का संदेश भी दिया था।
देवरानी झट से वह पत्र खोल के पढ़ने लगती है।
प्रिय बहन देवरानी ।
मैं तुम्हारा अभागा भाई देवराज हूँ आशा करता हूँ के तुम कुशल मंगल हो मैं ये पत्र शमशेरा के दूत के माध्यम से भेज रहा हूँ, मुझे शमशेरा ने बताया के मेरी बहन देवरानी कितना अपना परिवार, अपने भाई से मिलने के लिए तड़प रही है और एक मैं हूँ जिसने भी वर्षो से अपनी बहन को देखा नहीं।
मुझे क्षमा कर दो देवरानी मेरी बहन तुम्हे तुम्हारे विवाह के बाद तुम्हारे मायके आने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ । हम युद्ध में व्यस्त थे और पिता जी भी अब नहीं रहे पर उनके बदले में हूँ तुम्हारा पिता और तुम्हारा भाई, दोनो।
कृपा कर के तुम हमारे यहाँ पारस आओ! हम तुम्हारी सेवा करना चाहते हैं और अपने पति यानी मेरे जीजा जी राजपाल को प्रणाम कहना । यदि संभव हो तो उन्हें भी साथ ले कर आना, मैं अपनी बहन और जीजा से मिल्ने के लिए व्याकुल हूँ।
प्रतीक्षा करुंगा मैं अपनी बहन की ।
तुम्हारा भाई
देवराज
जारी रहेगी...