महारानी देवरानी 051

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मायके चलने का अनुरोध
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Part 51 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 51

मायके चलने का अनुरोध

देवरानी अपने भाई का पत्र कमला से ले कर पढ़ती है और खुशी से उसकी आंखो में आसू आ जाते है

"कमला मेरे भाई का पत्र है, मेरे भैया देवराज का! "

"क्या बात कर रही हो! महारानी! क्या लिखा है आपके भाई ने? "

तभी स्नानागार से बलदेव चुपके से निकल कर दबे पाव बाहर जाने लगता है। अभी हुई घटना से शर्मा जो गया था बलदेव।

"बलदेव बेटा जा रहे हो?"

" मां मैं आता हूं। "

"बेटा तुम्हारे मामा का पत्र है उसने मुझे मेरे मायके पारस बुलाया है। "

देवरानी खुशी के मारे एक सांस में पूरी बात बोल देती है।

बलदेव देवरानी की आँखों में आसु देख और उसके चेहरे पर ख़ुशी देख रुक जाता है। फिर थोड़ा हिचकिचाते हुए कमला और देवरानी के पास आता है।

कमला: आर्य युवराज तुम तो ऐसे मुंह छुपा रहे हो जैसे कमला जानती हो ना हो के तुम दोनो माँ बेटे में क्या धक्कम पेली चालू है।

बलदेव:चुप करो कमला शब्दो को संभाल कर उसका इश्तमाल करना सीखो।

देवरानी कमला के मुँह से धक्कमपेली सुन के शर्मा जाती है।

"बलदेव! जाने दो ना क्यू गुस्सा होते हो कमला पर । इसके मुँह में जो आता है बक देती है।"

"हम्म माँ! "

"बेटा मैं बहुत खुश हूं जिसका 18 वर्ष से प्रतीक्षा की वो घड़ी आ गई है मुझे मेरा राज्य जो मेरा जन्म स्थान है वहां जाने का सौभाग्य प्राप्त होने वाला है। "

"मां आप को इतना खुश देख कर मुझे भी बहुत खुशी हो रही है। लगता है भगवान ने आपकी प्रार्थना सुन ली है।"

कमला: भगवान तो अब महारानी के ही सुनते हैं। जो मांग रही हैं वो सब मिल रहा है आज कल।

"महारानी आपके लिए मैं भी खुश हूं आप अपने देश जाओ और खूब घूम आओ। "

"मां और क्या लिखा है मामा देवराज ने पत्र में। "

"उन्हें कहा है कि जीजा जी को प्रणाम कह दू और उनको भी साथ लें आओ!"

देवरानी ये कह कर थोड़ा मायुस हो जाती है।

कमला:अरे! अब काहे मायुस हो रही हो महरानी?

देवरानी: कमला वो।

कमला: अरे समधी है देवराज मामा का प्रणाम बलदेव को कह दो! क्यू के असल जीजा जी तो देवराज जी के यही है । राजपाल तो नाम के ही है।

ये कह कर हस्ते हुए बलदेव को देख कमला कहती है।

"क्यू सही कहा ना देवराज के जीजा जी? "

बलदेव झट से कमला को पकड़ने के लिए झपटता है।गुस्से में कहता है।

"कमला तुम्हारा प्राण ले लेंगे हम! "

कमला अपना जान बचाए जल्दबाजी में भाग जाती है।

दोनों को ऐसे चूहा बिली की तरह लड़ते देख देवरानी मुस्कुरा रही थी और सोचती है।

"कमला ने सही तो कहा है देवराज का जीजा तो बलदेव ने कहा है राजपाल तो नाम का ही है।"

और खुद अपनी सोच पर झेप जाती है।

"बलदेव तुम कहा जा रहे हो। कमला के पीछे! छोड़ो उसको! वो मुंहफट है और उसकी ज़बान ख़राब है। "

बलदेव अपनी माँ की बात सुन कर रुक जाता है।

"मां मैं उसे छोड़ूंगा नहीं। "

"बलदेव बेटा ये बात याद रखना आज हमारे मिलन या प्रेम का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो कामला ही है। "

"हां मां इस बात को भली चंगी तरह से जानता हूं इसलिए तो कमला को हमेशा माफ़ कर देता हूं।"

"हां कमला बहुत अच्छे दिल की है। बेटा! "

"वो सब छोड़ो! आप बताओ आगे क्या करना है? पारस कब जाना है? "

"बेटा अभी भी शत्रु के आक्रमण का डर है और तुम्हारे मामा देवराज ने तुम्हारे पिता राजपाल को भी निमंत्रण भेजा है।"

"तो क्या करना है माँ? हम चलते हैं पिता जी से बात कर के!"

"बेटा ये इतना आसान नहीं है, ऐसे समय में अपने राष्ट्र को छोड़ना सही नहीं होता है, पर फिर भी हम राजपाल से पूछेंगे कि क्या किया जा सकता है? "

दोनों पत्र को ले कर राजपाल के कक्ष की ओर जाते हैं जहां राजपाल बैठा है अपने सेनापति से बात कर रहा है।

बलदेव:पिता जी!

राजपाल: आओ पुत्र कहो क्या बात है?

बलदेव: क्या आप व्यस्त हैं? वो माता देवरानी बाहर खड़ी हैं आपसे कुछ बात करना चाहती हैं।

राजपाल: सेनापति तुम जाओ! और मैंने जैसा कहा है सैनिकों द्वारा वैसे दो नियमो का पालन हो!

सेनापति: जो आज्ञा महाराज!

सेनापति अपना हाथ जोड़ कर झुक कर आज्ञा ले कर कक्ष के बाहर दरवाजे के पीछे खड़ी देवरानी को देखते हुए बाहर चला जाता है।

सेनापति: (बूढ़ी हो गई है पर आज भी मुंह छुपाती है देवरानी "अपने मन में फुसफुसाता है। )

ये बात बलदेव अपने तेज कान से सुन लेता है।

बलदेव अपने पिता के सामने खड़े हो कर पुकारता है ।

"मां आजाओ अंदर सेनापति चला गया! "

देवरानी दरवाजे की आड़ से बाहर आती है और जो परदा उसने सेनापति को देख कर लीया था उसे उठा लेती है।

देवरानी एक अंदाज़ से मुस्कुराती हुई अंदर प्रवेश करती है ।

बलदेव;( मन में- गधे सेनापति अच्छा हुआ तूने परदा के उठने के बाद का दृश्य नहीं देखा । नहीं तो देवरानी की जवानी की गर्मी से जल कर राख हो जाता! मेरी मां तो अब जा कर जवान हुई है इसे मैं अभी और जवान करूंगा।

"महाराज देवराज भैया का पारस से पत्र आया है। "

राजपाल अपने आसन से उठ खड़ा होता है।

"अच्छा साले साहब ने क्या लिखा है पत्र में? "

देवरानी पत्र खोल कर -"आपको प्रणाम कहा है और मेरे साथ आपको पारस आने का निमंत्रण दिया है।"

"देवरानी तुम्हें तो पता है ना मैं पिछले 18 साल में पारस नहीं गया क्यू के हमारे शत्रु बहुत हैं।"

"महाराज पता है पर. आप ये पत्र पढ़ें"

राजपाल पत्र पढ़ कर-"हां इसमें तो उसने अनुरोध तो किया है मिलने के लिए पर ये पत्र शमशेरा के दूत से आया है। इसका तुम्हे कुछ मतलब समझ में आता हो देवरानी? "

"नहीं महाराज!"

"हम कह नहीं सकते पर सूत्रों से पता चला है के पारस पर अब शमशेरा के पिता सुल्तान मीर वाहिद का राज है और उनकी नज़र में कुबेरी का खजाना है। "

"महाराज इस से तो वो राजा रतन सिंह का दुश्मन हो जाएगा ।"

"देवरानी पूरी दुनिया राजा रतन और मेरी मित्रता से परिचित है। संभावना है कि कुबेरी को प्राप्त करने के लिए हमरे घटराष्ट्र पर भी आक्रमण किया जा सकता है।"

परन्तु महाराज मुझे वर्ष हो गए मेरे परिवार से मिले । "

"देवरानी वो बात है अपनी जगह पर सही है कि शमशेरा हम पर हमला करेगा या नहीं हमे नहीं पता, पर दिल्ली के बादशाह शाहजेब ने तो तयारी भी शुरू कर दी है घाटराष्ट्र और कुबेरी पर हमला करने के लिए और कुछ सैनिक इस ओर आ रहे हैं। "

"ऐसे समय में देवरानी हमारा जाना खतरे से खाली नहीं होगा हमारे राष्ट्र पर कभी भी कोई आक्रमण कर सकता है और अगर हम पश्चिम की ओर जाते हैं तो इस हमले की सम्भावना बढ़ जायेगी । "

ये सब बात सुन कर देवरानी का खुश चेहरा मुर्झा जाता है और अपने पास बलदेव और उसका साथ अपने पास महसुस कर उससे भी आज रहा नहीं जाता।

"महाराज आपने पिछले मुझे 18 वर्ष से हमले के डर के कारण ही मेरे परिवार से दूर रखा है और आज भी..."

गुस्से में ये शब्द देवरानी के मुँह से फूट पड़ते है।

राजपाल अपना दया हाथ देवरानी को मारने के लिए उठाता है।

राजपाल: देवरानी अपनी मर्यादा में रहो, हम से ऊंची स्वर में बात करने का परिणाम जानती हो!

"बलदेव पुत्र अपनी माँ से कहो हम से तर्क वितरक ना करे नहीं तो हम से बुरा कोई नहीं होगा!"

देवरानी के ऊपर जैसे वह राजपाल हाथ ऊँचा कर उसे डांटता है वो उसका दुख से गला भर जाता है और उसकी आंखों में आंसू गिर जाते हैं।

"महाराज आपने हाथ उठाया है तो मार लो मैं मना नहीं करूंगी!"

"मां होश में आओ हम इस पर कुछ सोचेंगे!"

"चुप कर तू मेरे पिता ने कभी मेरे ऊपर हाथ नहीं उठाया, ना कभी पहले गुस्सा हुए । कभी मैं रानी थी पारस की। पर यहाँ आ कर बस नौकरानी बना दी गयी । मेरी चाहत के बारे में कोई नहीं सोचता! "

"चुप हो जाओ देवरानी तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है ना। "

देवरानी रोती हुई बोली -"नहीं होना चुप मुझे! मैं बहुत चुप रह ली । जब तुम रजाओ में इतना दम नहीं होता, जब सबकी इच्छा का सम्मान नहीं कर सकते, तो 10 विवाह क्यू करते हो? "

"देवराआआआआआआआआआआआअनी! अगर मेरे हाथ में तलवार होती तो अभी मैं तुम्हारा सर धड से अलग कर देता! "

"बलदेव इस पागल को ले जाओ यहां से इसको बुढ़ापे के साथ इसका दिमाग भी काम करना बंद हो गया है ।" ले जाओ इसे बलदेव! नहीं तो मैं धक्के मार कर भगाऊंगा इसे। "

बलदेव:बस पिता जी!

देवरानी रोते हुए अब ज़मीन पर नीचे बैठने लगती है।

बलदेव झट से अपनी माँ को अपनी बाहो में पकड़ लेता है।

"चलो माँ! "

देवरानी सिसकते हुए बलदेव के कंधों पर अपना सर रखती है और बलदेव देवरानी को उसके कक्ष में ले जाता है।

राजपाल वापस आसन पर बैठ कर-"आआआहहहह देवराअअअअअअणि " और एक जोरदार चीख से साथ अपने हाथ गद्दे पर मारता है और अपने गुस्से पर काबू करने का प्रयास करता है ।

बलदेव इधर अपनी मां को ला कर बिस्तर पर बैठाता है फिर अपने हाथो पर थोड़ा गुलाब जल ले कर मां का चेहरा जो आंसू से भरा था उसे धोता है और फिर कपड़े से पूंछता है।

बलदेव: माँ रोना बंद करो!

देवरानी: तुमने सुना ना कैसे मुझे अपमानित कर के भगाया उसने!

बलदेव अपनी माँ की आँखों पर हाथ फेरते हुए कहता है -"रोते नहीं मेरी रानी चुप हो जाओ! "

"अगर तुम सच में मेरे साथ प्रेम करती हो तो चुप हो जाओ, अब मैं नहीं कहूँगा चुप हो जाऊँगा ।"

ये सुन कर देवरानी बलदेव से गले लग जाती है और थोड़ी देर आखे बंद कर दोनों एक दूसरे के दिल की धड़कन सुनते रहते हैं।

कुछ देर बाद बलदेव चुप्पी तोड़ता है।

बलदेव: माँ तुम चिंता मत करो तुम्हारे हर अपमान का बदला लिया जाएगा।

देवरानी:मुझसे अब और सहन नहीं होता! बलदेव बहुत सह लीया! देखा ना तुमने कैसे बात कर रहा था । वो मुझसे कह रहा है "इसे भगा दूंगा! " सृष्टि को आप कहता हैं "उनको" कहता है। जैसे वो बहुत बुद्धिमान हो।

बलदेव: आपको सम्मान राजपाल जैसे व्यक्ति से लेने की जरूरत नहीं, मैं आपका सम्मान करता हूं । एक दिन आपका हर कोई सम्मान करेगा। किसी की भी हिम्मत नहीं होगी वो आपको "तुम" कह दे। इसको, उसको उनको नहीं कहेगा । और अपमान करना तो बहुत दूर की बात है बस आप थोड़ा धैर्य रखो ।

देवरानी: बलदेव अब क्या करे हम?

बलदेव: माँ आप आराम करो! मैं कुछ सोचता हूं और प्रयास करता हूं। दोपहर के भोजन के बाद मैं राजपाल और सृष्टि दोनों से मिलूंगा ।

दोपहर के भोजन पर देवरानी और बलदेव गुमसुम हो भोजन कर के उठ जाते है और बलदेव कुछ सोच कर अपने पिता के कक्ष में जाता है।

बलदेव:पिता जी!

राजपाल: आओ बलदेव!

थोड़ा धीरे से उठ कर कहता है।

"पिता जी बात ये है कि मेरे पास एक सुझाव है इस समस्या का। "

"क्या सुझाव है बलदेव! "

"देखिये आप के हिसाब से शत्रु आप पर आक्रमण कर सकता है पर शत्रु मुझे या माँ को तो नहीं जानता। "

"तुम्हारे कहने का अर्थ क्या है? "

"यही पिता जी आप अगर नहीं जाते हैं पारस और माँ के साथ मैं जाऊं तो। "

"अभी तुम बालक हो मैंने ये पहले सोचा था कि पर शत्रु हम से कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। वो तुम दोनों को अगवा भी कर सकते हो या तुम दोनों की प्राण भी ले सकते हैं । "

बलदेव (मन मैं - ये बालक अब इतना बड़ा हो गया है कि तुम्हारी पत्नी को संभाल सकता है और तुम्हारे हाथ में जब पत्नी मेरा बालक देगी तब देखूंगा क्या कहते हो। )

राजपाल:तुम्हारी बात पूरी हो गई हो तो जाओ अब सीमा पर और मैंने जो सेनापति को बताया था और देखो की उस पर कितना काम हो रहा है । हमारे देश की सुरक्षा का प्रबंध करो । जाओ दिन रात अपनी बूढ़ी मां की बातों पर दिमाग मत लगाओ।

बलदेव: जो आज्ञा पिता जी!

बलदेव अपना सर झुकाता है।

मन में : महाराज राजपाल तुमने अपनी कुल्हाडी खुद अपने पैरो और दिमाग पर मारी है और देवरानी और बूढ़ी! हाहा! सठिया तुम गए हो वो नहीं।

कहानी जारी रहेगी

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