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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 52
मायके (पारस) जाने की अनुमति
बलदेव को सीमा पार भेज कर राजपाल अपने कक्ष में जा कर आज की हुई घटना के बारे में सोचता है और देवरानी की बढ़ती हुई हिम्मत राजपाल को गहरी सोच में डूबो देती है।
इधर बलदेव अपने घोड़े पर बैठ के जाता है और सोच रहा था। के क्या युक्ति निकली जाए जिस से माँ को मैं पारस ले जा सकूँ। बलदेव कुछ समय सोचने के बाद अपना घोड़ा फिर महल की ओर घुमा देता है।
बलदेव मन में: मेरे पिता राजपाल अपने ऊपर या राष्ट्र पर हमले के डर से पारस जाना नहीं चाहते अगर मुझे बड़ी माँ सृष्टि के कानो में ये बात डाल दू की माँ पारस जाना चाहती है और अकेली जाने को भी त्यार है तो-तो वह पक्की चाहेगी के अपने जान जोखिम में डाल कर देवरानी पारस जाए क्यू के हमें पारस जाने के लिए दिल्ली के रास्ते से जाना होगा जहाँ हमारा दुश्मन बादशाह शाहजेब है।
यहीं सब बातें सोचते हुए बलदेव महल में आता है और सीधे अपनी बड़ी माँ को ढूँढने लगता है।
"बड़ी माँ...बड़ी माँ कहा हो आप?"
"सुनो लगता है। बलदेव आ गया है।"
"तुम जाओ यहाँ से ।"
बलदेव जैसा कक्ष में प्रवेश करता है तो देखता है। की महारानी रहृष्टि किसी पुरुष से बात कर रही थी और उसके आते ही वह चुप हो गई।
"बड़ी माँ आप यहाँ हो।"
"आओ बलदेव क्या हुआ बेटा?"
बलदेव जाते हुए पुरुष को ऊपर से नीचे तक देखता है।
"बड़ी माँ ये कौन था। इसे घटराष्ट्र में आज से पहले कभी नहीं देखा।"
"बलदेव ये हमारे घटराष्ट्र के पुराने गुप्तचर है।"
"अच्छा बड़ी माँ आपसे कुछ बात करनी थी।"
"तो कहो क्या बात है।"
"बड़ी माँ वह मामा देवराज ने हमें पत्र लिख कर न्योता दिया है, पारस आने का और मुझे भी बुलाया है । मेरा भी ननिहाल देखने का जी चाह रहा था।"
"तो समस्या क्या है, बलदेव?"
"वो बड़ी माँ आप ही हैं। जो मेरी मदद कर सकती हो।"
"वो कैसे बलदेव?"
"बड़ी माँ पिता जी पारस नहीं जाना चाहते क्यू के उनको डर है कोई हम पर या उनकी अनुपस्थिति में राष्ट्र पर हमला ना कर दे, क्यू के दिल्ली से बादशाह शाहजेब सैनिकों को उत्तर की ओर आने की सूचना मिली है।"
"पर बड़ी माँ मैं चाहता हूँ कि आप पिता जी को मनाएँ और वह कम से कम मुझे और माँ को जाने की आज्ञा दे-दे ।"
"अच्छा तो बलदेव ये बात है।"
शुरष्टि (मन में-में तो मनाऊंगी राजपाल को इस के लिए की वह तुम दोनों को जाने की आज्ञा दे ताकि जब तुम दोनों घटराष्ट्र से बाहर जाओ और तुम दोनों पारस पहुँचने से पहले स्वर्ग लोक पहुँच जाओ । ")
"बड़ी माँ कृपा कर के मेरे लिए इतना कर दीजिये ।"
बलदेव (मन में-महारानी सृष्टि तुम यही सोच रही हो ना की हम बहार जाए और शत्रु हम पर हमला कर दे और हम रास्ते में ही मर जाए।")
"ठीक है बलदेव। सिर्फ तुम्हारे लिए मैं महराज से बात करती हूँ क्यू के तुम मेरे सब से दुलारे पुत्र हो।"
सृष्टि मन में अगर मेरा शक ठीक है और उस दिन जो घुसपैठिया चादर छौड कर भागा था, वह चादर देवरानी की ही थी। तो बेटा बलदेव देवरानी का इतनी बरस बाद खुशी और हंसी का राज तुम हो।)
सृष्टि मुस्कुराति है। और बलदेव को देखती है। और ये सोच कर मन में कहती है।
"देवरानी तुम्हें भी अपनी आग बुझाने के लिए अपना बेटा ही मिला । तुम दोनों जाओ तो सही, पारस से वापस लौट के नहीं आओगे।"
"बलदेव अब तुम जाओ खड़े क्यू हो मैं तुम्हारा काम करवा दूंगी।"
बलदेव: "जी बड़ी माँ आप बहुत अच्छी हैं ।"
बलदेव (मन में-बड़ी माँ तुम्हारी मनो कामना कभी पूरी नहीं होगी कभी। मैं मेरी माँ के ऊपर, आंच भी नहीं आने दूंगा।)
बलदेव प्रणाम कर उसके कक्ष से निकल जाता है।
शुरष्टि जाते हुए बलदेव को देख मन में।
"देवरानी आखिर कैसे ना अपने पुत्र पर मोहित होती, इतने लंबे चौड़े कद काठी का जो है। ऊपर से महाराज ने पिछले 17 साल से देवरानी को छुए भी नहीं है।"
और हसती है। हाहाहा देवरानी तुम्हें तो मैं तड़पा-तड़पा के मारूंगी, अगर तुम्हें घातराष्ट्र के शत्रु नहीं मार पाएंगे तो मैं मारूंगी। "
इधर बलदेव कक्ष से निकल कर जा रहा था। की उसे कुछ याद आता है और वह वापस अपनी बड़ी माँ सृष्टि के कक्ष की ओर आता है और उसकी हंसी सुन कर वही छिप कर सब देखने लगता है।
जल्दबाजी में सृष्टि पास रखी एक पेटारी को खोलती है और हमसे सांप निकाल कर बोलती है ।
"ये सांप तुम्हारे जीवन का अंत करेगा देवरानी, महल में तो इसके उपयोग करने से लोग तुम्हें बचा लेते पर अब ये तुम्हारे समान के साथ पारस जाएगा और रास्ते में तुम्हें ये डसेगा और वहाँ पर तुम्हें बचाने वाला कोई नहीं होगा ना कोई वैध ना कोई जड़ी।"
बलदेव तो ये देख और सृष्टि की बात सुन कर हैरान और परेशान हो जाता है और उसके माथे पर पसीना आने लगता है।
शुरष्टि: "पिछली काई बार तू बच गई है। इस बार मैं तेरे प्राण ले कर रहूंगी देवरानी।"
बलदेव दबे पाँव वहाँ से खिसक जाता है।
सृष्टि वापस से सांप को पेटारे में रख कर मुस्कुराती है।
"बेचारी देवरानी जीवन में खुशियाँ ढूँढने लगी हुई थी और बलदेव के साथ रंगरेलियाँ भी मनाने लगी थी, तुम्हे जीवन भर तड़पने का मेरा सपना पूरा हुआ और अब तुम्हें मरना होगा देवरानी, तुम्हारी हर एक हंसी हर खुशी मेरे जिस्म पर कांटे की तरह चुभती है। मैं नहीं चाहती कि तुम एक पल भी खुशी से जियो और जब तुम ने अपनी खुशी खोज निकली है बलदेव में तो अब तुम्हें मरना होगा और साथ में मैं बलदेव को भी नहीं छोड़ूंगी।"
ये सब सोचते हुए शुरू हुई महाराज राजपाल की कक्षा में आती है।
"आओ महारानी आप को ही याद कर रहा था।"
"महाराज आप की याद में हम यहाँ आये पर आप हमारी याद में हम कभी हमारी कक्ष में नहीं आते।"
"कहो महारानी श्रुष्टि आप की हम क्या सेवा कर सकते हैं?"
"महाराज हमने सुना है के देवराज का पत्र आया है।"
"हाँ महारानी हमारे साले साहब का पत्र आया है और उन्होंने हमें और देवरानी को पारस आने के लिए अमंत्रित किया है। पर हम ऐसी स्थिति में नहीं जा पाएंगे ।"
शुरष्टि (मन में आपका साला नहीं देवराज अब बलदेव का साला हो गया है। ") और एक मुस्कान के साथ-" महाराज हम समझ सकते हैं कि युद्ध कभी भी हो सकता है और आप अगर जाएंगे तो आप पर हमारे शत्रु से आक्रमण का भी खतरा है। "
"आप बिलकुल ठीक समझी महारानी।"
"पर महाराज आप ना जा कर बलदेव और देवरानी को भेज सकते हैं ना।"
ये सब बात अपना कान लगाए बलदेव सुन रहा था। क्यू के वह अपनी माँ के ऊपर हमले के योजना जानना चाहता था और वह सृष्टि का पीछा करते हुए आ गया था।
"पर महारानी हमारे पास पहले ही कम सैनिक है। ये दोनों गए तो हम इनकी सुरक्षा के लिए इन्हें सैनिक कहाँ से देंगे?"
"बिना सैनिक के भी जा सकते हैं वह दोनों तो ।"
"पर महारानी उनकी जान को खतरा हो सकता है।"
"महाराज अब उन्हें अपनी जान जोखिम में डालनी है तो हमें क्या और वैसे भी आपको उनकी चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।"
सृष्टि ये बोल कर राजपाल के पास आती है और उससे चिपक कर गले लग जाती है।
"महाराज अगर वह दोनों मर भी जाये तो ठीक होगा झंझट ख़तम हो जाएगा ।"
राजपाल सृष्टि के गले लग कर "आह! महारानी आप का शरीर कितना गरम है।"
"हाँ मरने दो माँ बेटे को! अगर आप यही चाहती हो महारानी तो मैं उनको जाने की आज्ञा दे देता हूं।"
शुरष्टि राजपाल को जकड़ते हुए।
"धन्यवाद महाराज शरीर गरम है तो आप इसे ठण्डा कर दो ना।"
"कर दूंगा महारानी आज रात।"
शुरष्टि थोडा उदास चेहरा बना की सोचती है। " महाराज आप लग्भाग 60 के हो गए आप से कैसे ये उम्मीद करू के आप मेरी जवानी की आग आप शांत कर दोगे, कमीनी देवरानी तो अपने बेटे से फिर शांत करवा लेती होगी।)
बलदेव अपने पिता और अपनी बड़ी माँ की बात सुन कर समझ जाता है के यहाँ सब उसकी माँ और उसके शत्रु है। कोई मित्र नहीं और वह अपनी बड़ी माँ और पिता की बात सुन कर बाहर आकर घोड़े पर बैठ सीमा की ओर चल देता है।
बलदेव (मन में-आज पिता जी मेरी नजर से और ज्यादा गिर गए. उनके मुंह से ये बात कैसे निकली कि हम मर जाएंगे तो मरे । मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं खुश होऊँ या दुखी, क्यू के आने वाले दिनों में और कठिनायियो का सामना करना होगा और वह भी दूसरे से नहीं बल्कि हमारे अपनों से। "
सीमा पर पहुच कर बलदेव घोड़े से उतरता है।
सेनापति: आइये युवराज आज बहुत दिनों बाद सीमा पर आये हैं।
बलदेव: हन सेनापति थोडे व्यस्त थे हम ।
सेनापति: आप तो महल हे थे तो घर में ऐसा क्या काम कर रहे थे जो व्यस्त रहते थे।
बलदेव: अब तुम्हें हर कारण बताना जरूरी नहीं है सेनापति सोमनाथ।
सेनापति सोमनाथ: क्या युवराज आप तो नाराज हो गए हैं। हम तो बस यहीं जानना चाहते थे कि कहीं कोई दुविधा तो नहीं हमारे युवराज को । अगर हम आपके काम आ सके तू ये हमारे सौभाग्य होगा ।
बलदेव: ठीक है। वह सब छोड़ो! ये बताओ क्या कुछ संकेत मिला है शाहजेब की आगामी चाल का?
सेनापति सोमनाथ: नहीं युवराज अब तक बस ये पता चला है। दिल्ली से सैनिको की एक टुकड़ी उत्तर की ओर चली है। जिसके कम से कम 2 हजार सैनिक बल है और टुकड़ी के पास 5 सैनिको के बराबर हथियार और अनाज भी है। इनके पास।
बलदेव: सेनापति ये अपनी जरुरत से ज्यादा हथियारो का क्या करेंगे और अनाज की क्या आवश्कयता है ।
सेनापति: महाराज हम ये विश्वास से तो कह नहीं सकते कि उनके मन में क्या चल रहा है, पर मेरे अनुमान से इस बार बादशाह शाहजेब सिर्फ कुबेरी पर नहीं पूरे उत्तर भारत को अपना बनाने की मंशा बना रहा होगा।
बलदेव: इससे तो हमारे घटराष्ट्र पर उसका हमला होना तो लगभग तय है।
सेनापति: युवराज बलदेव आज तकहमारे घृतराष्ट्र पर किसी ने हमला नहीं किया है, क्यू के हम सदियों से शांति प्रिय थे और दूसरा कारण ये था कि हमारा राज्य पहाड़ों से घिरा है और घाटराष्ट्र तक कितने राजाओ ने पहुँचने का प्रयास किया पर कोई पहुँच नहीं पाया ।
बलदेव: तो सेनापति सोमनाथ ऐसे परिस्तिथि क्यू आ गयी जो हम पर अब सब आक्रमण करना चाहते हैं। हमारे शत्रु क्यों बढ़ रहे हैं।
सेनापति: अब युवराज अगर आपको बुरा ना लगे तो मैं इसका उत्तर दे सकता हूँ।
बलदेव: निस्संकोच कहो मुझे जानना है।
सेनापति: बात ये है। के आपके दादा चाहते थे कि के घटरास्ट्र संसार का ऐसा राष्ट्र हो जहाँ पर युद्ध नहीं सिर्फ प्रेम हो और कोई किसी का शत्रु नहीं हो इसलिए उन्होंने अपने जीवन भर किसी के साथ युद्ध नहीं किया और वह मानते थे उन्हें युद्ध में किसी का साथ नहीं देना चाहिए जिस वजह से हमारे शत्रु भी हम से मित्रता का हाथ बढ़ाते थे परन्तु...।
राजपाल: परंतु क्या सोमनाथ?
सोमनाथ: परन्तु आपके पिता ने घटराष्ट्र की मर्यादा का उल्लंघन कर अपने पिता की छवि खराब कर दी और अनेक युद्धों में राजा रतन का साथ दिया जिस वजह से हमारे शत्रु बढ़ते गए।
बलदेव: तो ये बात है, ठीक है। जो हुआ तो हुआ पर तुम्हें अपना काम पर ध्यान देना चाहिए क्यू के घटराष्ट्र को बचाना ही हमारा धर्म है।
सेनापति: जी आवश्य महाराज!
सेनापति सोमनाथ (मन में-महाराज के कारण से मैं सालो साल युद्ध करता रहा और आज तक राज्य में कोई सम्मान नहीं है। इसका बदला तो मैं लूंगा। वह भी घटराष्ट्र का महाराज बन के।)
ऐसे वह संध्या हो जाती है और बलदेव सीमा से महल वापस आता है।
बलदेव मन में ठान लेता है। के वह अपनी माँ के विरुद्ध चल रहे हैं षड्यंत्र के बारे में माँ को नहीं बताएँगा नहीं तो वह दुखी हो सकती है। वह अपनी माँ देवरानी को पुकारता है ।
"मां कहा हो तुम?"
बलदेव देवरानी के कक्ष की ओर जाते हुए दिखता है।
देवरानी स्नान कर की अभी निकली थी और अपने बालों को सुखा रही थी।
"मां जल्दी तैयार हो कर बाहर आओ।"
बलदेव अपनी माँ के हल्का भीगा बदन, बाल और उठी चुची देख अपने छोटे बलदेव को मसलता है।
जिसे देवरानी तिरछी नजर से देख लेती है।
"बदमाश!"
बलदेव बाहर चला जाता है। थोड़े देर बाद तैयार हो कर देवरानी बाहर आती है।
बलदेव खड़ा अपनी माँ का इंतज़ार कर रहा था। वह उसको देख।
"क्या हुआ बलदेव बाहर क्यू बुलाया तुमने?"
"मां तुम्हारे लिए खुश खबरी है।"
बलदेव माँ को पकड़कर पास खींच लेता है।
"क्या ख़ुशख़बरी है बेटा?"
बलदेव जो पहले से अपना लैंड खड़ा किये हुए था। देवरानी को देख के वह अपना लंड देवरानी के बड़े निताम्बो से रगड़ कर एक हल्का धक्का मारता है।
अचानक इस धक्के को देवरानी सह नहीं पाती और चीख पड़ती है ।
"आआआआआह!"
"बलदेव क्या कर रहे हो हम महल के बीचो बीच है।"
देवरानी फ़ुसफुसाति है।
बलदेव अब देवरानी का हाथ पकड़े अपने पिता की कक्षा की ओर ले जाता है।
"पिता जी आप कहाँ हैं।"
"आजाओ बलदेव!"
देवरानी और बलदेव अंदर आते हैं। देवरानी का गुस्सा अब बी उसके दिल में था। वह दरवाज़े पर रुक जाती है।
सृष्टि उसे खड़े देख (मन में: बडी सती सावित्री बने खड़ी है। सबसे छुपा कर छोटे-छोटे वस्त्र पहनती है और अपने बेटे से रासलीला खेलती हैं।
और बलदेव देखता है और उसके पिता लेटे हुए हैं और उसके पास ही में महारानी सृष्टि बैठी हुई है।
बलदेव सृष्टि की तरफ देखता है और सृष्टि अपनी दोनों को आखो को बंद कर के बलदेव को अपने पिता से बात करने का इशारा देती है।
बलदेव समझ जाता है के अब उसे महाराज से बात करनी चाहिए।
"पिता जी अगर आपकी आज्ञा हो मैं बिना सैनिको के माँ को उनका मायका घुमा के ले आउँ ।"
राजपाल सृष्टि की ओर देख कर कहता है।
"बेटा हमें तुम्हारे जाने से कोई आपत्ति नहीं पर अकेले कैसे जाओगे?..."
"पिता जी मुझे किसी सैनिक की आवश्यकता नहीं है, मुझे भी राज्य को ज्यादा चिंता है। मैं अपने मित्रो बद्री और श्याम को बुला लूँगा और इसी बहाने वह भी पारस देश घूम लेंगे और हम..."
"बस बस बलदेव हम समझ गए तुम्हारी बात को! तुम अपने मित्रो को ले कर जा सकते हो । जाओ अपनी माँ को उसके मायके घुमा लाओ।"
"देवरानी तुम जाओ हम आज्ञा दे रहे हैं। देवराज को कह देना उसे जीजा की तबीयत खराब है, इसी लिए साथ नहीं आए।"
देवरानी मन में: कमीने राजपाल तू मेरे भाई का जीजा नहीं है। जो असली जीजा है। वह साथ जा ही रहा है। चिंता मत कर।
देवरानी: जरूर महाराज, धन्यवाद महाराज!
देवरानी मन में अभी भी अपने अपमन की आग जल रही थी।
बलदेव अपनी माँ के मन को टटोल लेता है और कहता है।
"मां आप जाएँ! हम आपसे मिल कर बताते हैं कि हमें कैसी तयारी करनी है।"
शुरष्टि: वैसे अभी देवरानी कक्ष में आने से पहले चीखी क्यू थी?
राजपाल: हाँ भाई. हमने भी उसकी चीख सुनी थी! क्या हुआ था?
बलदेव: वह माँ को ठेस लग गई थी किसी चीज़ से।
सृष्टि (मन में ठेस लगी थी बलदेव से । बेटा अपनी माँ को परेशान कर रहा था।)
राजपाल: हाँ इसे बेटा अपनी माँ से कहो देख कर चला करे, अपनी माँ का कुछ ध्यान रखा करो अब तो मैं बूढ़ा हो गया हूँ । अब तो तुमही ले कर आया जाया करो अपनी माँ को। क्यू महारानी सृष्टि?
शुरुआत: हाँ अब तो बलदेव अपनी माँ को संभालने लायक हो गया है ।
बलदेव: मां को संभाल भी लूंगा और उनको सब कुछ सीखa भी दूंगा पिता जी और मैं इतनी मेहनत करूंगा के एक दिन आप देखना माँ को मैं बदल दूंगा।
ये सुन कर देवरानी लज्जा के साथ अपनी पैरो के अंगूठो से अपनी उंगली फसा नीचे देखने लगती है।
देवरानी: मैं जा रही हूँ, इस ख़ुशी के मौके पर मुझे पूजा भी करनी है और रसोई को भी संभालना है।
राजपाल: ठीक है। जाओ!
देवरानी बलदेव की ओर देख।
"आ जाना!"
"भूलूंगा नहीं आज मुझे सब खाना है।"
बलदेव की बात सुन कर मुस्कुराते हुए देवरानी अपना घूंघट ठीक कर के बाहर जाने लगती है।
शुरष्टि मन में "बड़ी छिनाल है। अरे तू देवरानी अपने पति के सामने अपने ही अपने नए यार अपने बेटे को आने का निमन्त्रण दे रही है और बेटा भी बेशर्मी से माँ को खाने की बात कर रहा है।"
देवरानी के जाने के बाद कुछ देर तक राजपाल और बलदेव बात करते रहे। राजपाल हर रास्ता समझा देता है और बलदेव अपने मित्रो को पत्र लिख कर भेजवा देता है।
बलदेव: पिता जी आप लोग चिंता मत कीजिए हम ठीक ठाक वापस आ जाएंगे।
शुरुआत: (मन में अगर मैं आने दूंगी वापस तब आओगे बलदेव।)
बलदेव कक्ष से निकल कर अपनी माँ के कक्ष में जाता है। जहाँ पर देवरानी भगवान की आराधना में लीन थी।
"हे भगवान आज से और अभी मैं अपने सच्चे मन से बलदेव को अपना पति मानता हूँ। मुझे शक्ति देना!"
देवरानी को पूजा करते देख बलदेव मन में सोचता है।
" कितनी भोली है। मेरी मां, इनलोगो को पता नहीं कि मैंने माँ को कब पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया है और कोई मेरी प्रेमिका मेरी पत्नी देवरानी पर हमला तो दूर अगर ऊंचे स्वर में भी बात करेगा तो मैं उसका सर उसकी धड से अलग कर दूंगा, राजपाल की इस गलती की सजा उसे जरूर मिलेगी। '
तभी देवरानी अपनी पूजा ख़तम कर के आती है और बैठे बलदेव को बोलती है ।
"ये लो प्रसाद बेटा आख़िर कर तुमने अपने मामा से मिलने के लिए अपने पिता को मना ही लिया ।"
देवरानी नीचे झुक कर बलदेव के पैरो में झुक जाती है और अपने हाथ बलदेव के पैरो की तरफ बढ़ाती है। बलदेव अपने पैर पीछे खीचता है। पर देवरानी अपने हाथ से बलदेव के पैरो को सहलाती हुई उन्हें छूती है और (मन मैं "मेरे पति परमेश्वर!")
बलदेव: हाँ कैसे ना हम पारस जाते आखिर देवराज मामा को उनके नये जीजा से भी तो मिलवाना था।
ये सुन कर देवरानी खड़ी होती है और थाली में रखा रंग बलदेव के मुँह पर मारती है।
"बड़ा आयामेरे भाई का जीजा बनने वाला।"
"अरी माँ मामा ने लिखा था ना जीजा को साथ लाने के लिए तो उनका जीजा भी तैयार है जाने के लिए!"
देवरानी: पहले उसकी बहन को पत्नी तो बना लो बाद में उसे साला बनाना।
बलदेव लेट जाता है और अपनी माँ को अपने पास खीचता हैं... और उसके बालो में हाथ लगा कर बोलता है ।
बलदेव: तुम साथ देती रहो मैं राज्य का महाराजा बनूँगा और तुम मेरी महारानी बनोगी।
बलदेव अपनी माँ के चेहरे को अपनी तरफ झुकाए जा रहा था।
तभी देवरानी झट से उठती है और भाग कर बाहर जाने लगती है।
"माँ रुको तो!"
बलदेव ( मन में "अगर हाथ आ गई ना मेरी प्यारी देवरानी तो ये तरबूज़ो को फोड़ दूँगा।")
देवरानी के भागने से उसके बड़े नितम्ब खूब हिल रहे थे।
देवरानी: शहहह धीरे! घर में सब हैं...।
ये कह कर देवरानी बाहर चली जाती है।
कहानी जारी रहेगी