महारानी देवरानी 053

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इश्क़ का रोग बढ़ता गया
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Part 53 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट न 53

इश्क़ का रोग बढ़ता गया

देवरानी अपना गांड मटकाते हुए बलदेव के चुंगल से छूट कर दूर जा रही थी।

"आह माँ कब तक तड़पाओगी अपने प्रेमी को? एक ना एक दिन तो ये जवानी का मजा चखूंगा ही ओह मेरी रानी" और अपने लंड को मसल देता है।

जल्दबाजी में देवरानी बाहर जाती है जहाँ कमला रसोई के काम में व्यस्त थी।

कमला: क्या बात है बड़ी हंसी ठिठोली हो रही है दोनों माँ बेटे में? आज माँ को बेटे पर ज्यादा प्यार आया है क्या।

देवरानी: अरे वह तो बस बलदेव को हर समय मस्ती सूझती है।

कमला: अब ऐसे इठला कर चलोगी तो मस्ती ही सूझेगी किसी को भी।

फिर देवरानी के कान में कहती है।

"महारानी वैसे इतने रंगीन मिजाज के मर्द मजा भी बहुत देते हैं बिस्तर में।"

देवरानी: चुप कर कलमुही!

कमला: अब कुछ भी कहो महारानी पर आपको अभी से इतना फूल-सा खिला दिया है जब दिन रात लेगा तो सोचो कैसी खिल जाओगी।

देवरानी: हाँ चुप कर अब आ रसोई में।

दोनों रसोई की तरफ जाने लगती हैं।

देवरानी (मन में-एक हिसाब से ठीक ही तो कह रही है कमला! मेरे चेहरे में पहले जैसी चमक लौट रही है वैसी चमक और दिल में उमंग जैसी मेरी शादी होने के समय थी।)

कमला: हा बोलो महारानी जी! महाराजा जी को क्यू तड़पा रही हो।

देवरानी: महाराजा को बता दो महारानी हूँ। मैं इतनी जल्दी हाथ नहीं आऊंगी मेरे लिए तो पारस में लाखो स्वप्न देखा करते थे।

कमला: बलदेव भी कोई ऐसा वैसा नहीं है। वह तो बस एक बार उसका ले लो फिर बार-बार लोगी, मैंने देखा है महारानी बहुत बड़ा है उसका।

देवरानी थोडा चिंतित होते हुए

"कमला क्या बक रही हो तुम कब देखा कैसे देखा?"

देवरानी को हल्का गुस्सा देख- "बड़ा जल्दी गुस्सा हो गई महारानी! मैंने कोई युवराज का नंगा लिंग नहीं देखा है वह तो बस आपको देख उसका लिंग तन का सांप बन कर उठा था, जिस दिन मैंने युवराज को रंगे हाथो पकड़ा था।"

देवरानी समझ जाती है कि उसने उस दिन देखा था जब वह स्नान कर के निकली थी और कमला देवरानी की कामसूत्र पुस्तक पढ़ रही थी।

"बस सफ़ाई देने की ज़रूरत नहीं। हाँ एक बात याद रखना कमला मेरे अलावा कोई मेरे बेटे को देखे, ये मैं नहीं सह सकती।"

"मेरे बेटे के हर अंग पर सिर्फ मेरा हक है कभी भी बलदेव के उसपे ध्यान मत देना।"

"अब लो कर लो बात मेंने कब कहा मैं उसे लिंग निहारती रहती रहु। वह तो बस उस दिन अचानक से नज़र पड़ गई थी। वैसे भी बलदेव मेरे बेटा जैसा है बचपन से उसकी मालिश की है, नहलाया, खिलाया और पिलाया है। मैं उसपर गंदी नज़र नहीं रख सकती।"

"या वैसे भी महारानी बलदेव को सिर्फ तुम देख सकती हो और किसी के बस की बात नहीं है।" और हसने लगती है।

देवरानी ये बात सुन कर शर्मा जाती है।

"चल हट कमला की बच्ची!"

"वैसे देवरानी आपके पारस जाने का क्या हुआ?"

"देवरानी पहले तो महाराज नहीं मान रहे थे फिर बलदेव ने उन्हें मनाया!"

फिर देवरानी पूरी बात कमला को बता देती है।

"महारानी मेरी बहन तुमने सही मर्द चुना है जिसके पास मजबूत शरीर के साथ दिमाग भी है।"

"मेरी पसंद ही ऐसी है कमला।"

और मुस्कुराते हुए अपने ऊपर गर्व करती है

"हाँ इसलिए तो अभी से बेचारे बलदेव पति की दायित्व समझना शुरू कर दिया है और अपने प्रेमीका के लिए सब कुछ कर रहा है।"

"हाँ करेगा ही! आखिर मेरा बलदेव ही तो मेरा सब कुछ है।"

दोनों बात करते हुए खाने की तयारी कर देती हैं।

धीरे-धीरे सब खाने के लिए आसन पर आ कर बैठने लगते हैं देवरानी राधा तथा कमला के साथ खाना लगाने लगती हैं।

राजपाल, सृष्टि, जीविका आ कर बैठ जाते हैं।

राजपाल: ये बलदेव कहाँ रह गया?

जीविका: देवरानी से पूछो और किसको पता होगा वह कहा है?

और अपना मुँह टेढ़ा करती है।

राजपाल: देवरानी! तुम्हें बता कर गया था क्या बलदेव?

देवरानी: नहीं मैंने नहीं देखा उसे बाहर जाते हुए।

राधा: महाराज मैंने देखा था युवराज को कुछ समय पहले बाहर जाते हुए।

राजपाल: इस गधे को कब अक्ल आएगी सृष्टि!

कमला (मन में-उस गधे का लंड जब तेरी पत्नी लेगी तो चीखेगी तब ")

देवरानी (मन में-जिसे तुम गधा कह रहे हो राजपाल वह घोड़ा है जिसने मेरा दिल चुरा लिया हैऔर मैं कुछ दिनों में इस घोड़े की सवारी भी करूंगी पर तुम्हें ये बात समझ नहीं आएगी राजपाल क्यू के असली गधे तुम ही हो। ")

सृष्टि: महाराज हम खाना शुरू करते हैं वह जब आएगा तो खा लेगा

और फिर सृष्टि खाना शुरू करती है और अपने मन में सोचती है "(महाराज राजपाल बलदेव गधा नहीं है दरअसल वह चतुर सियार है जिसने तुम्हारे आँखों के नीचे से तुम्हारी पत्नी को उठा लिया है।")

तभी बलदेव भागता हुआ आ पहुचता है।

"क्षमा कीजिए मुझे आने में देर हो गई."

राजपाल: ये क्या बलदेव तुम इतनी रात में कहा आवारागर्दी कर रहे हो? तुम्हें नियामो से दोबारा अवगत करवाना पड़ेगा।

बलदेव: क्षमा करे पिता जी वह मुझे कोई आवश्यक काम था।

राजपाल: हमें मत सिखाओ!

थोड़ा गुस्सा होते हुए

बलदेव ये सुन कर चुप चाप खड़ा हो जाता है।

जीविका (मन मैं-बेटा राजपाल मैं तुम्हें कैसे बताऊँ कि ये बलदेव बाहर नहीं घर में ही आवारागर्दी कर रहा है और वह भी तुम्हारी पत्नी के साथ।)

बलदेव के ऊपर गुस्सा होते देख देवरानी का दिल ज़ोर से धड़क रहा था और उससे रहा नहीं गया।

देवरानी: महाराज बेटे को ऐसे डांटना ठीक नहीं है।

राजपाल: अरे! अब तुम हमें सिखायोगी की क्या करना चाहिए क्या नहीं?

शुरष्टि: बस कीजिए महाराज, आप को वैध जी ने कहा है गुस्सा नहीं करना। आपके हृदय रोग के संकेत मिले हैं आप सब खाना खाओ।

सृष्टि (मन में-अपने यार के ऊपर गुस्सा होते हुए महराज को देख ये देवरानी को बड़ा जल्दी बुरा लगा।, कुछ दिन की बात है फिर तुम दोनों स्वर्ग लोक में प्रेम करना।)

बड़ी माँ सृष्टि की बात सुन कर सब शांत हो जाते है और बलदेव भी बैठ कर खाने लगता है।

शुरष्टि: और बेटा बलदेव तयारी हुई कि नहीं जाने की।

जीविका: बहु कहा जाने की तैयारी।

शुरष्टि: वो बलदेव अपनी-अपनी माँ को ले कर ननिहाल जा रहा है।

जीविका: मतलब पारस जा रे ये दोनो, बस ये दोनो? राजपाल?

राजपाल: जी माँ मेरे अनुमति से ये ही दोनों जा रहे हैं।

जीविका (मन में-बेटा राजपाल ये दोनों अकेले क्यों जा रहे हैं अब तुम्हें कैसे बताउ! हे भगवान क्या अनर्थ हो जाएगा। ")

बलदेव: दादी वह यहाँ पर सैनिकों की ज्यादा आवश्यकता है इसलिए मैं अपने मित्रो श्याम या बद्री को साथ ले का रहा हूँ।

जीविका हाँ! और बलदेव को एक तीखी नज़र से देखती है।

जीविका की नज़र देवरानी पर पड़ती है वह मुस्कुरा रही थी।

देवरानी (मन में-"सांसु माँ ये तो मेरे प्रतिशोध की सिर्फ एक झलक है।")

जीविका (मन में-कामिनी रंडी मुस्कुरा रही है बेशरम बेहया।)

देवरानी: अरे रे सांसू माँ आपका तो पसीना छूट रहा है, लगता है मिर्ची लग गयी

को आप कहो तो पंखा झाल दू कमला! सासु माँ को मीठा दो ।।

जीविका चुप रहती है और कमला मीठा परोसती है ।

देवरानी: राधा कमला महारानी जीविका मेरी प्यारी सांसु माँ की ओर तेजी से पंखा झलो।

जीविका अपने बेबसी पर रोने जैसी हो जाती है या अपना सर नीचे कर खाने लगती है।

जिसे देख देवरानी एक कातिल मुस्कान देती है।

बलदेव: मेरा खाना तो हो गया।

बलदेव देखता है उसके थाली में केला रखा हुआ है। उसको शरारत सूझती है।

बलदेव: माँ ये मेरा केला आप ले लो मेरा खाना हो गया।

देवरानी: अरे खा लो बेटा खाना पूरा खाना चाहिए।

देवरानी बलदेव को देखती है जो मुस्कुरा रहा था और वह समझ जाती है।

देवरानी बलदेव को देखती है जो मुस्कुरा रहा था और वह समझ जाती है।

बलदेव: ले लो ना मेरा केला मेरी माता।

राजपाल: ले लो देवरानी! अगर वह इतना ज्यादा कह रहा है तो। देवरानी ये सुन कर शर्मा जाती है और फिर उसके मुँह से हंसी छूट जाती है।

देवरानी: जब इतना कह रहे हो तो लाओ इधर दो केला! मैं ले लेती हूँ।

राजपाल: देवरानी को हसते देख सृष्टि के कान में "देखो ना देवरानी को बिना बात के हस्ती है आज कल, उसका दिमाग ठिकाने पर नहीं है।"

शुरष्टि: ह्म्म (मन मैं-'घोचू राजपाल तुम नहीं समझोगे। ये किस तरह की बात हो रही है।')

बलदेव: माँ लीजिये और आपको बहुत पसंद है इसलिए तो ज़िद कर रहा हूँ।

देवरानी: ठीक है लाओ! मैं खा लूगी तुम्हारा केला।

देवरानी झुक कर अपना पल्लू गिराती है और बलदेव की थाली से केला उठा लेती है।

बलदेव: पर बदले में अपना पपीता दो मुझे खाने के लिए और सबसे छुपा कर उसे एक आख मारता है।

देवरानी: पपीते अभी पके नहीं हैं दो दिन और लगेंगे।

बलदेव: देख के तो नहीं लगता, पपीता कच्चा होगा बहुत बड़ा है।

देवरानी: बेटा बड़े है इसीलिए जल्दी तोड़ लिया गया था इन्हे और पपीते के आकार के अनुसार गर्मी नहीं मिलने पर कच्चा रह गया, इसे भूसा में डाल पका दूंगी।

बलदेव: माँ ठीक है मुझे इसे ऐसे ही खाना है दे दो।

देवरानी: तो ले लो मना किसने किया है।

देवरानी अपने पल्लू से अपने वक्षो को अच्छे से ढक लेती है और बलदेव को देख रही थी प्यार से।

जीविका तथा शुरष्टि को सब समझ आ रहा था कि ये दोनों क्या गुल खिला रहे हैं।

सब खाना खा कर उठ जाते हैं फिर देवरानी खाना खाती है । बलदेव अपने हाथों में दो पपीतो को ले कर अपने कक्ष से रख कर आता है।

अब माँ रसोई में सामान लगा रही थी और बलदेव इधर उधर टहल रहा था।

बलदेव (मन में "ये माँ भी ना बहुत समय लगती है।")

देवरानी रसोई से बाहर देखती है कि बलदेव उतावला हुआ घूम रहा था उससे मिलने के लिए।

देवरानी: (मन मैं-बहुत बेचैन हो रहा है मुझसे मिलने के लिए मेरा प्रेमी! जल्दी काम निपट लेती हूँ।)

देवरानी: "हाँ आज बलदेव को दही खिलाती हूँ उसके स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।"

देवरानी रसोई के कोने पर लटके हुए शिखर से जो रस्सी बंधी हुई थी उसपे रखी मटकी में दही उतारने के लिए जाती है पहले अपने बाल बाँधती है या फिर हल्का-सा कूद कर रस्सी को पकड़ती है।

देवरानी के भारी तरबूज़ जैसा स्तन एक अंदाज़ से कूदते है।

बलदेव जैसे ही रसोई की ओर देखता है उसका हलक सुख जाता है उसके माँ दो तीन बार कूदती है पर शिखर की रस्सी ऊपर होने के कारण से उसके हाथ में नहीं आ रही थी।

बलदेव: (मन में-कितने बड़े स्तन है माँ के इन्हे तो मैं आज दबा के रहूंगा ठीक वैसे जैसे आज सुबह उन चूतड़ों को मसला था मेरी रानी।

जैसे हे देवरानी की नज़र बलदेव पर पड़ती है वह खड़ी हो जाती है क्यू के बलदेव उसके बड़े वक्षो को खा जाने वाली नज़र से देख रहा था।

देवरानी देखती है बलदेव उसके स्तनों को देखे ही जा रहा है तो वह लज्जा के बलदेव से नज़र हटा कर नीचे देखने लगती है।

बलदेव एक नशे में डूब गया था।

बलदेव रसोई में घुसता है जिसे जीविका देख लेती है, जो अभी-अभी अपनी कक्ष से बाहर घूमने निकलने के लिए निकली थी।

बलदेव अपनी माँ के वक्षो को देखते हुए उसके पास जाता है

"मां मेरी रानी तुम्हें काम करने की ज़रूरत नहीं है।"

देवरानी की भारी गांड को दबोच के बलदेव अपनी माँ को अपनी गोद में उठा लेता है।

"मां मुझे तुमसे प्यार करना है।"

देवरानी की गांड पर जैसे बड़े मजबूत हाथ पड़ते हैं वह सिहर जाति है और उत्तज़ना से अपने आँखे बंद कर लेती है।

बलदेव की रसोई में जाते देख जीविका बड़ी सावधानियों से छुप जाती है और अब उसके बाहर आने का इंतजार कर रही थी।

तभी बलदेव अपनी माँ को गोद में उठाये बहार लाया और बलदेव का हाथ देवरानी की गांड पर था उसका मुंह देवरानी के वक्ष स्थल के बीच था।

जीविका: "हे भगवान मैं ये सब देखने से पहले मैं मर गई क्यू नहीं गई." और फिर जीविका अपनी आंखे बंद कर लेती है।

बलदेव गोद में उठे देवरानी की कक्षा में घुसता है।

बलदेव: देवरानी पहले दरवाजा बंद करो...!

बलदेव दरवाजा के बंद रखता है और देवरानी कुंडी लगा लेती है।

"बेटा उतारो ना अब नीचे।"

"मुझे नहीं उतारना मेरी जान को।"

"तुम्हारे हाथ दुख जायेगा मेरे प्रेमी।"

"तुम्हें तो मैं जिंदगी भर उठा सकता हूँ मेरी रानी।"

"इतना प्रेम करते हो हमसे बलदेव?"

"हाँ मैं तुम्हारा घोड़ा हूँ देवरानी तुम जीवन भर मेरी सवारी करो मैं उफ़ तक नहीं करुंगा।"

"बलदेव उतारो ना!"

बलदेव देवरानी की गांड को खूब मसलते हुए उतार देता है।

देवरानी: आओ अब मेरे साथ मेरे राजा!

देवरानी चल रही थी धीरे से या उसके पीछे बलदेव उसके हिलते हुए बड़े चुतड को निहारतेऔर वक्षो की थिरकन देखते हुए लंड मसलते हुए चले जा रहा था।

इधर जीविका अपने बहू या पोते की हरकत देख कर गुस्से से आग बबूला हो जाती है और वह सीधा राजपाल की कक्षा में जाती है।

जीविका: आज इस रंडी की पोल खोल दूंगी।

जीविका देखती है राजपाल चैन की नींद सोया हुआ था और जीविका वही खड़ी राजपाल को थोड़ी देर देखती रहती है।

जीविका (मन में-राजपाल बेटा तू सोता रह गया और तेरा सब कुछ कोई लूट रहा है)

जीविका रोने जैसी हो जाती है और देवरानी के बंद दरवाजे को देख अपने कक्ष में जाने लगती है।

इधर बलदेव अपनी माँ को खूब ज़ोर से भीचता हुआ गले लग जाता है।

और देवरानी के कमर में हाथ डाल कर उसके रसीले होठ को चूमता है।

उफ़ माँ! "गल्लप्प्प्प्प्प् गलप्प् गलप्प्! उम्म स्लुरप्पप्पो गैलप्प!"

आह! देवरानी!

बेटा इश्श!

अब देवरानी भी ज़ोर से चूसने लगती है।

मेरे राजा अह्ह्ह! "गलप्पप्प गैलप्प-गैलप्प उम स्लर्प गैलप्प-गैलप्प गैलप्प!"

पूरे कक्ष में चुमबन की आवाज गूंज रही थी। रात के सन्नाटे में दोनों माँ बेटे के पुच-पुच की आवाज से कोई भी माँ बेटे की खुशियाँ का अंदाज़ा लगा सकता था और आसानी से समझ सकता था के अंदर क्या हो रहा है।

"गलप्प उम्म्म्हा गलप्पप स्लरप्प उम आह!"

देवरानी बलदेव को धक्का दे पलंग पर लिटा देती है "आह! मेरे राजा को बहुत जल्दी है आज।"

देवरानी बलदेव की छाती से ले कर चेहरे तक सहलते हुए अपने अधनंगे दूधो को हल्का बलदेव से रगड़ती है।

"मां तुम्हें देखने के बाद मुझे होश नहीं रहता।"

तभी बलदेव की नज़र देवरानी के पहने मंगलसूत्र पर पड़ती है।

बलदेव अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसके मंगलसूत्र खींचता है और उसे तोड़ देता है। एक झटके में देवरानी का मंगलसूत्र बिखर जाता है।

देवरानी जब तक समझती तब तक देर हो चुकी थी।

"बलदेव ये क्या किया तुमने?"

"मां तुम अब राजपाल का या दी हुआ मंगलसूत्र नहीं पहनोगी। जो तुम्हारी रत्ती भर सम्मान नहीं करता और जिसने तुम्हें आज इतना रुलाया है तुम उसके नाम का मंगल सूत्र नहीं पहनोगी।"

"पर बेटा...किसी ने बिना मंगलसूत्र के देख लिया तो"

"उसका समाधान है मेरे पास तुरंट बलदेव अपने कुर्ते से एक सोने का मंगलसूत्र निकलता है।"

"जिसे देख देवरानी की आखे नम हो जाती है"

"ये मेरी प्यारी प्रेमिका देवरानी के लिए है अब उस नाकारा बूढ़े का मंगलसूत्र कभी नहीं पहचानेगी तुम!"

मंगलसूत्र की सुंदरता देख देवरानी की आंखें फटी रह जाती हैं।

"अब जब ले आया है तो पहना भी दे" देवरानी पलंग से उठ कर खड़ी होती है और अपने कक्ष में बने मंदिर की ओर देख अपने मन में कहती है। धन्यवाद भगवान!

बलदेव उठ कर देवरानी के गले में मंगल सूत्र पहना रहा था और देवरानी

अपना हाथ जोड़े बलदेव को देख रही थी।

"बलदेव अब आप मेरे लिए पूजनीय हो मेरे जीवनसाथी हो।"

"कैसा लगा मंगलसूत्र मेरी रानी?"

"बहुत सुन्दर है मेरे राजा! तुम तो बहुत जल्दी सीख गये खरीददारी करना।"

"मां वैसे आज सीधा तू या तुम से मुझे आप कह रही हो।"

"क्यू के बलदेव अब हमारा रिश्ता बदल रहा है जिसमें तुम मेरे साथ रहोगे और मैं तुम्हारी दासी रहूंगी।"

"कभी ऐसा न सोचना मां। तुम मेरी रानी हो कभी दासी नहीं समझना खुद को। आपको क्या पता मैं आपको बचपन से किसी भगवान से ऊपर रख कर मानता हूँ, लेकिन अब आपकी पूजा भी करूंगा और आपको भोग लगाऊंगा।"

"कही वह राजपाल ना देख ले बदला हुआ मंगल सूत्र।"

"जो करना होगा कर लेगा वो। मैं नहीं डरता उस बूढ़े से।"

"तुम उसे बार-बार बूढ़ा कह रहे थे, वह मुझे कैसे बूढ़ी कह रहा था और कह रहा था कि मेरा दिमाग सठिया गया है।"

" माँ मुझे याद मत दिलाओ मुझे उस क्षण मेरी जी चाह रहा था कि मैं उस पापी

राजपाल का वध कर दू। पर मैं सही समय की प्रतीक्षा करूंगा"

"और रही उसकी बात के वह तुम्हें बूढ़ी कहा, तो सुनो तुम्हारे शरीर को कोई पागल भी देख ले तो वह भी अपने होश खो बैठे। वह तो तुम अपना पल्लू ओढ़े रहती हो सबके सामने इसलिए किसी को असलियत का पता नहीं चलता।"

"सच्ची मैं इतनी जवान हूँ अब भीऔर तुम क्या चाहते हो के जैसे मैं तुम्हारे सामने कोई भी वस्त्र में अजाती हूँ वैसे ही बाहर भी रहु?"

"कदापि नहीं मैं कभी नहीं चाहूँगा कि मेरी जान की जवानी को कोई अपनी आँख से देखे और तुम सच में जवान हो, 35 साल में कोई बूढ़ा नहीं होता और तुम तो 25 से भी कम की लगती हो।"

बलदेव (मन में-मां जब तक प्रेमीका हो तब तक ठीक है जिस दिन मैंने तुम्हें अपने बंधन में बंद कर लिया, उस दिन के बाद तो मैं किसी को आपके चेहरे की झलक भी नहीं लेने दूंगा)

"मां तुम किसी परी से कम नहीं हो।"

उम्माहा! देवरानी की साडी को उसके मखमली पेट से बलदेव अपने दांतों से खीचता है।

आह बेटा! "

बलदेव खड़ा हो कर एक बार फिर अपनी भारी गदरायी माँ को अपनी बाहो में समेट लेता है।

"उम्म्हा गलप्प।"

माँ तुम्हारी जवानी मुझे पागल कर देगी। "

देवरानी को खीच कर अपनी बाहों में ले लेता है या उसके बड़े-बड़े वक्षो की निचली हिससे को अपने मजबुत हाथ से दब्बते हुए उठाता है।

"आआआह बलदेव!"

"माँ इतने बड़े वक्ष आपको भारी नहीं लगते चलते।"

"उफ्फ्फ बलदेव आआह हे भगवान ये लड़का भी ना।"

बलदेव अपनी हाथो से अपनी माँ के बड़े दूध पर खूब सहला रहा था।

"आह बेटा!"

बलदेव अब अपनी माँ की मखमली पेट को सहलाते हुए देवरानी के कान के नीचे चाटने लगता है।

"आआह बेटा मेरे प्रेमी उफ़ हम्म!"

देवरानी अब बलदेव को अपनी जगह देती है थोड़ी देर ठहर जाओ मैं कर के आती हूँ।

"क्या माँ?"

"पेशाब!"

जारी रहेगी

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