महारानी देवरानी 054

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प्यासे प्रेमी
2.7k words
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00

Part 54 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट न 54

प्यासे प्रेमी

"माँ आपको भी यही समय जाना है।"

"संयम रखो मेरे राजा अभी आई!"

देवरानी उठ कर चली जाती है। स्नानगगर में या सबसे पहले अपना पेटीकोट उठा कर एक सीटी की आवाज़ से एक तेज़ धार उसकी बुर से छूटती है।

"ये माँ इतने ज़ोर से सीटी बजा रही है।" और ज़ोर से अपना कड़ा लंड मसलने लगता है।

शौच करने के बाद देवरानी अपना पेटीकोट निकालती है। ब्लाउज़ निकालती है फिर अपना हाथ अपनी चूत पर ले जाती है।

"हे भगवान ये कितना रस छोड़ रही है।"

अपने पेटीकोट से पोछ कर एक धोती पहन लेती है।

एक छोटे से वस्त्र से अपने बड़े स्तनों को कस लेती है।

"अब देखना मेरे राजा मेरा जलवा!"

देवरानी वस्त्र बदल कर अपने आपको सवारती हैं। अपने बाल को बाँधती है। अपने होठों पर लाली लगाती है। अपने बेटे को रिझाने के लिए देवरानी अपने पास रखे शृंगार का हर सामान आज इस्तेमाल कर लेना चाहती थी ।

"माँ कहा रह गई"

"आइ बेटा"

तभी बलदेव को सामने शोचलाय में से सजी संवरी देवरानी आती हुई दिखाई देती है। जिसे देख बलदेव बस देखते ही रह जाता है।

बलदेव देखता है। उसके माँ के सुंदर वक्ष एक तंग वस्त्र में बंधे हुए है। उनका पूरा आकार दिखाई पड़ रहा था ।

बलदेव (मन में-माँ के ये वक्ष तो पूरे में गोल आकार के पपीतो से दिख रहे हैं। माँ ही जाने की वह इन्हे कैसे माँ अपनी चोली में छुपाती है।)

देवरानी अपने आप को यू देखे जाने से थोड़ा शरणाती हुई धीरे चल रही थी ।

बलदेव अब देवरानी के निचले हिस्से को देखता है। जहाँ पर देवरानी ने अपनी जांघों तक की ही धोती पहनी थी

बलदेव (मन में-उफ़ माँ! तुम्हारी गांड के बड़े आकार के तरबूज़ गजब लग रहे हैं और तुम्हारी जंघे कितनी चिकनी और कसी हुई है।

बलदेव अपना संयम खोने लगता है। जिसको देवरानी भी समझ रही थी।

"हाय देवरानी! मेरी रानी! मेरी जान! इस अवस्था में अगर तुम राज महल के बाहर चली गई तो तुम्हें कोई पहचान नहीं पाएगा।"

"क्यू नहीं पहचान पाएगा?"

"क्यू के माँ तुम इस समय तुम स्वर्ग की अप्सरा से कम नहीं लग रही हो!"

"वैसे माँ अगर ऐसे तुम्हें राजपाल देख ले तो उसे समझ आएगा कि कौन बूढ़ा है। कौन नहीं?" और फिर बलदेव एक गहरी मुस्कान देता है।

"माँ तुम सच में माल हो"

देवरानी अपनी पीठ बलदेव की ओर कर अपने वक्ष को छुपाने की कोशिश करती है।

"बेटा बलदेव हमें राजपाल ने कभी मौका नहीं दिया । मुझे सजने का । मेरे सब अरमान मेरे हृदय में ही रह गए उस पापी के वजह से।"

"मां चिंता करने की बात नहीं। उस पापी को मैं दंडित करूंगा और तुम जिस खुशी से जीवन भर वंचित रही, वह हर एक खुशी में तुम्हे दूंगा।"

देवरानी अभी भी बलदेव की ओर अपनी पीठ किये हुए खड़ी थी

"मां तुम इतना साज शृंगार कर मुझे दिखाने आई हो या किसी और को?"

"बेटा मैं सिर्फ तेरी हूँ। मेरा सजना संवरना सब तेरे लिए ही होता है।"

"मां, तुम अपने संगेमरमर शरीर को छुपाने की कोशिश करती हो, लेकिन फिर भी छुपा नहीं पाती हो, तुम पीछे घूम कर भी मुझे, मेरा पसंदीदा नितम्ब दिखा रही हो।"

देवरानी अपनी बेवकूफी पर लजा जाती है।

"मेरा नितांब तब से देख रहा है। इतना पसंद है?"

"मां इन्हें तो मैंने खूब मसला हूँ सुबह। मुझे समझ नहीं आया की ये दोनों तरबूज मेरे लिए ही है और मुझे ये कितने प्यारे हैं।"

"अच्छा बलदेव जी"

या अपना सर निचे कर लेती है।

"मां अब आपके बड़े पपीतो जैसे स्तनों की बारी है।, मुझे उनसे प्यार करना है।"

"करते तो हो ही उनको और मैंने कब मना किया है।"

"बस छुआ ही है ना अच्छे से पकड़ा ना मसला ही है"

"तो आ जाओ मेरे राजा! अपनी ये भी इच्छा भी आज ही पूरी कर लो!"

बलदेव के पीछे से आकर देवरानी से चिपक कर अपना खड़ा लंड उसके तरबूज़ पर लगा देता है।

"आह माँ तुम्हारे ये नितमब कितने मुलायम हैं।"

देवरानी अपनी प्रशंसा सुन कर मुस्कुरा रही थी।

"उम्म्ह आह! बलदेव आराम से! मैं कहीं भागी नहीं जा रही।"

बलदेव अपना लंड दोनों बड़े ठोस गांड पर रगड़ता हुआ गाड़ की दरार ढूँढने की कोशिश कर रहा था । फिर बलदेव थोड़ा पीछे होता है। फिर झुक कर अपना लंड देवरानी की गांड के सबसे निचले हिस्से पर रख धीरे-धीरे ऊपर होने लगता है।

ज्यो ज्यो देवरानी की गांड में बलदेव का बड़ा लम्बा लौड़ा ऊपर की तरफ जा रहा है देवरानी की वह चूतडो में फसता जाता है।

"आआह बलदेव उह्म्म्म्म! हे भगवान!"

देवरानी अपने होठ चबाती हुई अपना आख बंद कर लेती है।

"आह माँ क्या राजपाल ने कभी ऐसा प्यार किया?"

"जैसा मेरा बेटा कर रहा है वैसे वह नामर्द क्या प्यार करेगा मुझे? आआह बेटा!"

बलदेव अब देवरानी के पीठ पर चूमने लगता है... देवरानी की नंगी पीठ पर अपनी गरम-गरम ओंठ रख कर गर्म चुमिया की बरसात कर देता है।

"आआह मेरे राजा!"

"हाँ मेरी रानी!"

"मेरी रानी आओ ना मेरी गोद में बैठो ना! मुझे आपके ये बड़े वक्ष मसलने हैं।" देवरानी की गांड के दरार में लंड पेलते हुए बलदेव कहता है।

"नहीं बैठना तुम्हारे गोद में तुम्हारी वह चुभता है।"

तभी बलदेव की नज़र अपनी माँ के बजती हुई पायल पर जाती है। उसे दिखता है कि देवरानी ने मेहंदी लगाई हुई है।

"माँ ये मेहंदी कब लगाई?"

"ये मेहंदी तब लगाई जब मेरा प्रेमी मेरे लिए मंगल सूत्र लेने बाज़ार गया था ।"

"मां तुम्हारे मेहंदी लगे हुए पैर अति सुंदर दिख रहे हैं।"

"ये सब शृंगार मेरे प्रेमी राजा बलदेव के लिए हैं।"

माँ को अपने आलिंगन में भींच कर

"मां मुझसे अब या सहा नहीं जाता मुझे विवाह करना है।"

देवरानी झट से बलदेव से दूर हो जाती है। "कुत्ते कमीने तूने ऐसा सोचा भी कि तू विवाह करेगा!"

"माँ सुनो तो!"

"मुझे नहीं सुनना जिस दिन अगर तूने विवाह कर लिया तो मैं तेरी ही तलवार तेरे पेट में घोप दूंगी देवरानी नाम है मेरा।"

बलदेव मुस्कुराते हुए देवरानी को फिर से पकड़ता है।

"मां मुझे आपका सम्पूर्ण रूप से पाना है।" और माँ आपमेरी पूरी बात तो सुनलो फिर चाहे मेरा सर काट लेना अपने हाथो से। "

"मां मुझे आपको अपनी दुल्हन बनाना है।"

ये सुन कर देवरानी अपना आख बंद कर लेती है।

"आपने सही सुना माँ! मुझे आप से विवाह करना है। आप क्या समझा कि मैं किसी और से विवाह करने की बात कर रहा हूँ?"

देवरानी अपनी गलती पर शर्मा जाती है।

"तू किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकता बलदेव। जिस दिन तूने ऐसा किया उस दिन मेरा मरा हुआ मुँह देखेगा।"

"मां मेरे जिंदगी में बस तुम थी, हो और तुम ही रहोगी, मेरी रानी! मुझे अपनी सब हद पार कर देना है। मुझे आपकी शरीर से आत्मा तक को अपना बनाना है।"

देवरानी थोडा चिंतित होते हुए

"पर बलदेव बिना विवाह के हम दोनों में उस स्थिति तक नहीं पहुँच सकते, बिना विवाह मैं तुम्हे कैसे अपना सब कुछ सौप दू?"

"मां, मैं इस बात से परिचित हूँ कि आप कितनी धार्मिक हैं और आपके माँ बाप ने आपको किस प्रकार के संस्कार दिए हैं। इसलिए मैंने कहा हमें विवाह कर लेना चाहिए"

"पर बेटा ये कैसे मुमकिन है।"

"मां मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं होता। आप तैयार हो जाओ मैं दुनिया से लड़ लूंगा।"

"बेटा इतना प्यार करता है अपनी माँ को?"

"जान से भी ज़्यादा!"

देवरानी अपनी उंगली अपने बेटे के होठों पर रख बोलती है ।

"इतना मत करना के देवरानी इस आग में जल जाये।"

"मैं जल मिटने के लिए तैयार हूँ।"

देवरानी अपना होठ बलदेव के होठो पर रख अपना जीभ बलदेव के मुँह में रख चुसने लगती है।

"उम्हाह्ह्ह्ह आह्ह बेटा!"

"आआआह माँ उम्म्म्म ह्म्म्म स्लरप्प! गैलप्प्प-गैलप्प्प गैलप्पप्प!" दोनों एकदूसरे को बेतहाशा चूम रहे थे और एक दुसरे के ओंठ और जीभ को चूस रहे थे ।

देवरानी अब अपना पूरी जीभ बाहर निकाल कर बलदेव की जीभ से लड़ाने लगती है।

"उह्म्म आआह गलप्पप-गलप्पप गलप्पप!"

बलदेव से रहा नहीं जाता और देवरानी के ऐसे कामुक होने से वह उसके नीचे

के ओंठ को अपने दोनों होती में फसा कर चूसने लगता है।

"गल्लप्पप गैलप्पप स्लुरप्पप हम्म्म!"

देवरानी के बाल पर हाथ फेरते हुए बलदेव देवरानी के हर ओंठ को चूस कर पी रहा था । देवरानी भी उसका भरपूर साथ दे रही थी।

बलदेव अब देवरानी को अपना आगे लेता है।

"मेरी रानी! उह मम्म!"

"आह मेरे राजा!"

बलदेव: माँ मुझे तुम्हारे ये दो बड़े आम चूसने हैं।

बलदेव अपने हाथों को बड़े वक्षो को सहलाता है।

"आआआह उफ्फ्फ बेटा!"

"माँ कितने बड़े और गोलाकर है। ये मैं खा लू!"

"हम्म्म्म बेटा आह!"

"मां जब ये तुम्हारे चलने से हिलते थे तो मेरा दिल हिल जाता था लेकिन यकीन नहीं होता अब ये मेरे हाथो में है।"

देवरानी बलदेव से छूट कर उसके सामने जाती है।

"अभी तुम्हारा दिल फिर से हिला देती हूँ"

हसती हुई कहती है।

देवरानी खड़ी हो कर अपने बड़े वक्षो को हिलाती है।

"आजा राजा पी लो रस की गगरी"

बलदेव झट से फिर से देवरानी को दबाता है।

"माँ अपने दूध को क्या हिलाती हो तुम? इस गागरी का सारा रस तो मैं पीऊँगा।"

बलदेव देवरानी की गर्दन पर चूमने लगता है।

बलदेव अब देवरानी को बाहो में ले पलंग पर बैठ जाता है और देवरानी की बड़ी गांड को अपने लौड़े पर रख चुम कर बोलता है ।

"बैठ जा मेरे गोद में मेरी रानी!"

बलदेव का लौड़ा "खच्च" से देवरानी के दरार में फिर से उतर जाता है।

"हाय दैया धोती में तलवार रखी है। क्या रे बलदेव!"

देवरानी मारे उत्तेजना के बलदेव को पलट देती है बिस्तर पर और खुद उसके ऊपर आ जाती है।

अपने बड़े स्तन को उसके सीने में खूब दबाती है।

बलदेव अपने हाथ अपनी रानी की बड़ी गांड पर ले जा कर सहलाता है।

"माँ तुम्हारे ये मंसल जाँघ और बड़ी गांड का दीवाना हूँ मैं।"

बलदेव अपने दोनों हाथों को पूरी गांड को पकड़ कर ज़ोर से दबाने लगता है।

"आहह मेरे राजा उहह"

"वाह! क्या गांड है। माँ"

"आह बेटा! मेरा सब कुछ तेरा है। मेरे राजा"

बलदेव अब देवरानी के दोनों टाँगो को उठा लेता है। फिर देवरानी के भारी मांसल जांघो को चूमता है।

"उम्हाहा उम्हा!"

"ह्म्म्म बेटा आह!"

"मां तुम्हारे ये मांसल जांघ कितनी चिकनी हैं।"

देवरानी अपना हाथ नीचे टिकाये हुई थी और अपने बेटे को पूरा सहयोग दे रही थी।

बलदेव अब देवरानी को पूरा लिटा देता है और उसके ओंठो पर चूम रहा था।

"उम्हा!" "मेरी जान मेरी रानी!"

बलदेव एक तरफ देवरानी को चूम रहा था और दूसरे ओर उसका लंड देवरानी की गांड पर चिपक रहा था।

बलदेव अब देवरानी को पूरा लिटा देता है और उसके वक्षो की ओर देख

"मां आपके पूरे आकार तो दिखा रहे हैं फिर ये वस्त्र क्यू बाँध रखा है अपने वक्षो पर"

"बेटा तू ये क्या कह रहा है? मुझे शर्म आ रही है।"

और अपनी अपना आखे बंद कर लेती है।

"प्रेमी को छोटे वस्त्र में अपने बड़े दूध को कस का बाँध कर देखा कर रिझाती है और फिर शर्मा भी रही है।"

"बेटा लाज स्त्री का गहना होता है।"

"हाय मेरी रानी! तेरी इसी अदा पर तो मैं फ़िदा हूँ। मेरी महारानी देवरानी!"

बलदेव दोनों हाथो को देवरानी के दोनों बड़े वक्षो को पकड़ लेता है।

"आह बेटा" अपनी आंखें बंद कर लेती हैं

"माँ मसलू इन्हे!"

"आह बेटा हा!"

"हम्म बहुत तरसे है ये मज़बूत हाथो के लिए!"

बलदेव दोनों हाथों से देवरानी के बड़े वक्षो को सहलाते हुए दोनों हथेलियों में भर हल्का-हल्का दबाने लगता है।

"आहह उम्म्म बेटा"

बलदेव एक बार अपनी माँ की आँखों में देखता है।

और फिर अपने दोनों हाथों का दबाब बढ़ा कर ज़ोर से दोनों बड़े वक्षो को दबा देता है।

"आआआआह बेटा! हे भगवान! उफ्फ्फ आआआह! मेरे राजा!"

"आआआह माँ क्या बड़े रस भरे आम हैं। आपका ये दूध इतने बड़े है । ऊपर से मुलायम और अंदर से कड़े है।"

" उफ्फ्फ आआह बेटा! जब इन्हे किसी ने कस के दबाया ही नहीं है तो तो कैसे ये नरम हो? "

"मां मैं इसे दबा दबा के नरम और साथ में और बड़े कर दूंगा. "

आह्ह्ह! मेरे राजा ऐसे दबाते रहो । "

"ह्म्म्म मेरी माँ तू मेरी रानी है अब।"

बलदेव अब अपनी माँ के वक्षो को छोड़ता है और देवरानी को देखता है।

देवरानी अब भी अपनी आँख बंद किये हुए थी।

"माँ अब आओ ना मेरी गोद में आ जाओ"

"आती हूँ बेटे पर" ।

"पर वर कुछ नहीं। वह तो चुभेगा ही"

"हे भगवान! आह्ह! आती हूँ"

बलदेव देवरानी को अपनी ओर से खीचता है।

बलदेव अब देवरानी को खींचते हुए उसके नाभि को चूमता है और अपनी जीभ से चाटता है।

"आह मेरा राजा बेटा!"

"आओ ना इधर, मेरी रानी! तुझे स्वर्ग दिखाता हूँ ।"

"आहह मेरे राजा!"

देवरानी अब भी आखे बंद किये हुई थी

बलदेव अपना एक हाथ से उसकी एक चूची को पकड़ कर मसल कर भींचता है।

"आहह मेरे राजा!"

देवरानी आखे खोल देती है और एक उत्तेजना भरी नजर से बलदेव को देखती है।

बलदेव देवरानी को अपनी ओर खीचता है।

देवरानी खिसक के बलदेव के गोद में आ जाती है "मां थोड़ा-सा उठो ना!"

देवरानी अपनी गांड ऊपर उठाती है।

बलदेव अपना लौड़ा पकड़ कर सीधा करता है।

देवरानी सब समझ रही थी और बलदेव की आंखो में देख रही थी

"मां अब धीरे से बैठो!"

"बैठ रही हूँ बेटा"

धीरे-धीरे देवरानी अपनी बड़ी गांड नीचे लेने लगी और बलदेव दोनों हाथो से देवरानी को थामे बैठा रहा

"खच्च" से देवरानी की दोनों गांड के दरार में बलदेब का बड़ा-सा लोहे की रोड जैसा लौड़ा फंस गया।

"आह माँ मेरे राजा लोहा रखा है क्या?"

"मां तुम्हारे लिए ही लोहा बना रहा हु इसे!"

"मेरे राजा! मत खा अब वैध जी का दिया चूरन! में कैसे सहूंगी?"

"मां तुम्हारे तरबूज़ को इसी लोहे के हथोड़े से फोडूंगा"

और अपना लौड़ा देवरानी की गांड पर घिसने लगता है।

फिर बलदेव देवरानी की कमर पर हाथ रख कर देवरानी को पीछे खीचता है। अब उसका लौड़ा सीधा देवरानी की चूत से लग रहा था।

"आहह मेरे राजा!"

देवरानी बलदेव का हाथ ले कर अपने वक्ष पर रख देती है।

बलदेव इशारा समझ कर अपने दोनों हाथों से देवरानी के बड़े तरबूज़ जैसे वक्षो को दोनों हाथों में कस कर दबाने लगता है और ख़ूब मसलता है।

"आआआह! मेरे राजा! उफ़! हे भगवान!"

देवरानी (मन में: कमला सही कहती थी बलदेव की हथेली ही मेरे वक्षो अनुकूल है।)

"आआह! माँ आपके ये वक्ष!"

इधर एक बुरे सपने की वजह से सृष्टि की नींद टूट जाती है। वह उठ कर ज़ोर-ज़ोर से साँस लेने लगती है और पास में रखे गिलास को उठाती है। पानी पीने के लिये वह गिलास खाली था। फिर वह जग में देखती है। कहीं पानी नहीं मिलता वह उठ कर अपनी कक्ष से बाहर आती है।

सृष्टि आधी नींद में ही रसोई में जा कर पानी पीती है और फ़िर वापस अपने कक्ष की ओर चलने लगती है। तभी उसके कानों में हल्की कराहो "उम्म्ह आआह" उम्म्म्म हा आआआह नहीं" की आवाज सुनाई देती है।

कराहे सुन सृष्टि की जैसी पूरी नींद टूट जाती है और वह आवाज का पीछा करती है। तो वह आवाज देवरानी के कक्ष से गूंज रही थी ।

सृष्टि दबे पाव चलते हुए देवरानी की खिड़की के पास आकर खड़ी होती है।

इधर बलदेव बुरी तरह से अपनी माँ के दूध का मंथन करने में लगा हुआ था।

"आह मेरी रानी देवरानी।"

"आह मेरा राजा ऐसे ही।"

सृष्टि कान लगा कर सुन रही थी

"देवरानी! मेरी जान! मेरी गोद में बैठ कर अपना वक्ष मसलवाने में कैसा लग रहा है।"

"आह! मेरे राजा ऐसे ही! आह ऐसे ही मत पूछो कितना अच्छा लग रहा है।"

सृष्टि का तो मानो काटो तो खून नहीं वाला हाल हो जाता है। माँ और बेटे के AISE संवाद और कराहे सुन के

तभी देवरानी को कुछ आहत महसूस होती है। वह बलदेव को इशारे से चुप रहने को कहती है।

"सुश!"

देवरानी अपनी आँखों से खिड़की की ओर इशारा करती है। जिसे बलदेव समझ जाता है।

दोनों अब चुप चाप वैसे ही बैठे रहते है ।

देवरानी सोचने लगती है।

"आख़िर कौन हो सकता है?"

बलदेव (मन में: "कौन है। जिसे हमारा सुराग मिल गया।"

और बलदेव तथा देवरानी एक दूसरे को देख रहे थे और बाहर सृष्टि भी रुक-सी गई थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि आवाजे रुक क्यों गई थी?

कहानी जारी रहेगी

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