महारानी देवरानी 055

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हाय बुढ़ापा !
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Part 55 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 55

हाय बुढ़ापा!

बलदेव की गोदी में बैठी देवरानी इशारे से बलदेव को खतरे का इशारा कर देती है क्यू की देवरानी ने एक आहट अपनी कक्षा के बाहर सुन ली थी।

दोनों सोच में पड़े थे के आखिर कर कौन है जो उनकी जासुसी कर रहा है। आधी रात को सृष्टि वही खड़ी थी और अंदर का हाल जानने की कोशिश कर रही थी।

शुरुष्टि। (मन में-ये दोनों को कहीं इस बात की भनक तो नहीं लग गई की मैं यहाँ हूँ। अभी कुछ देर पहले तो खूब उह आआह कर रहे थे दोनों माँ बेटा।

बलदेव देवरानी को इशारा करता है कि उठो । देवरानी बलदेव के गोद से उठ जाती है और फिर बलदेव भी खड़ा होता है।

इधर शुरष्टि भी समझ गई थी कि अब यहाँ रुकना ठीक नहीं है। वह दबे पाव अपनी पायल की आवाज़ के बिना चलने की कोशिश करती है और अपने कक्ष की ओर जाने लगती है।

देवरानी बलदेव के कान में फुसफुसाती है।

"बेटा तुम रुको मैं देखती हूँ।"

अपनी माँ की बात समझ कर बलदेव रुक जाता है। देवरानी धीरे से उठ कर सबसे पहले एक ओढ़नी उठा कर अपने सीने पर डालती है। उसके स्तन जो छोटे से ब्लाउज में बाहर आने को तैयार थे और अपने अंग ओढ़नी में छुपा कर दरवाजा खोलती है। दोनों तरफ देखने पर उसे कुछ नहीं दिखता।

तभी देवरानी के कान में "खट्ट" से दरवाजा बंद करने की आवाज आती है। देवरानी आवाज का पीछा करती है। तो पाती है कि ये आवाज शुरष्टि के कक्ष से आई थी।

देवरानी के होठों पर एक कातिल मुस्कान आती है ।

"रानी शुरष्टि तो तुम थी। तो तुमने मेरी और मेरे प्रेमी की आवाजे सुन ली। जल भुन गई होगी शुरष्टि तुम तो!"

देवरानी को मुस्कुराता देख बलदेव कमरे के दरवाजे पर आकर धीमी आवाज में पुकारता है ।

"माँ ओ माँ!"

देवरानी बलदेव की ओर देखती है।

"क्या हुआ माँ इधर आओ."

देवरानी फुसफुसाते हुए कहती है ।

"उधर ही रहो बलदेव मैं अभी आयी ।"

देवरानी दरवाजा लगा लेती है।

"मां मुस्कुरा क्यू रही हो?"

"बेटा बात वह कुछ ऐसी है।"

"कैसी बात है माँ?"

"यहाँ पर खड़ी हो कर सब सुन रही थी सृष्टि ।"

बलदेव थोड़ा घबरा जाता है।

"क्या माँ?"

"हाँ बेटा वह कमिनी जीवन भर मेरे पीछे पड़ी रही है ।"

"पर माँ इसमें मुस्कुराने की क्या बात है?"

"बेटा मैं मुस्कुरा रही हूँ के आज मेरी खुशी देख के सृष्टि के बदन और सीने में सांप लौट रहे होंगे।"

"अच्छा माँ।"

और बलदेव भी मुस्कुरा देता है ।

"बेटा अब तुम जाओ! सुबह हमें बद्री और श्याम का भी स्वागत करना है।"

"पर माँ मेरा मन नहीं करता तुम्हें छोड़ कर जाने का ।"

"पगले! मुझे छोड़ के तू जा भी नहीं सकता कभी। तू तो मेरे दिल में रहता है।"

"माँ।! ।"

बलदेव देवरानी के गले लग जाता है।

"ठीक है। माँ मुझे पता है । आप अपना ख्याल रखना"

बलदेव अपनी माँ से विदा ले कर ऊपर अपने कक्ष में चला जाता है और इधर सृष्टि आकर अपने बिस्तार पर लेटी हुई सोच रही थी और उसके कानो में अभी भी देवरानी की सिस्की आ रही थी।

कुछ देर में सृष्टि फिर से सोने की कोशिश कर रही थी पर जलन के कारण उसे नींद नहीं रुक आ रही थी।

सृष्टि (मन में-देवरानी कैसे मजे मार रही थी अपने बेटे के साथ एक मैं ही हू जो इस आग में जल रही हूँ ।

सृष्टि अपना एक हाथ अपनी चूत पर ले जाती है। "आआह!"

शुरष्टि फिर उठती है।

अपनी कक्ष से बाहर निकल कर बाहर जाती है और कुछ देर चल के वह अब महाराज राजपाल के कक्ष के सामने थी।

"अब मैं क्या करूँ? क्या अभी राजपाल को जगाना ठीक होगा?"

सृष्टि एक धक्का दरवाजे पर देती है। तो वह खुला ही था। शुरष्टि अब सीधे ंद्र जाती है। कक्ष में राजपाल की खर्राटे की आवाज आ रही थी और राजपाल बेसुध सोया हुआ था।

शुरुआत: (मन मैं) ये महराज किसी काम के नहीं है । अब तुम इस बुढ़ापे में खर्राटे मार रहे हो और तुम्हारी जवान पत्नी की कोई और मार रहा है। वैसे तो ये उन दोनों की मस्ती मारने की आखिरी रात होगी और शुरष्टि कुटिलता से मुस्कुराती है।

अब अपने बदन की कामग्नि से जल रही सृष्टि सोये हुए राजपाल के बगल में बैठ जाती है और राजपाल के सर को सहलाने लगती है और एक हाथ से उसका हाथ पकड़ कर अपने गोद में रख लेती है।

राजपाल नींद से जगते हुए पूछता है?

"कौन है?"

और उसके हाथ अपने पास राखी तलवार की तरफ हाथ बढ़ जाते हैं ।

"महाराज मैं हूँ आपकी पत्नी शुरष्टि"

"अरे महारानी! आप?"

"जी महाराज"

"आपने तो हमें तो डरा दिया था। महारानी!"

सृष्टि (मन में: महाराज जितना तुम अपने और अपने महल के लिए चौकसी करते हो, इतनी चौकसी अगर तुम देवरानी की करते तो देवरानी आज बलदेव के साथ मजे नहीं मार रही होती।)

"महारानी कहिए आधी रात में ऐसा क्या हो गया जो आपको हमने जगाना पड़ा?"

"महाराज आपने दिन में कुछ कहा था।"

राजपाल को याद आता है कि दिन मैं उसने सृष्टि के पास आने का वादा किया था।

"हाँ क्षमा कर दो महारानी मेरी आँख लग गई थी।"

"परन्तु मैं आपकी प्रतीक्षा कर रही थी, आपको कोई दूसरी तो नहीं मिल गई महाराज।"

"अरे नहीं मेरी रानी। आपके सिवा हम किसी को देखते भी नहीं।"

शुरष्टि (मन में: झूठे! राजा रतन के साथ उसके राज्य में तुम क्या-क्या कर के आते हो ये किसी से छुपा हुआ नहीं है, तुम दोनों का मन वैश्यो से भरता नहीं है ।)

सृष्टि जो बलदेव और देवरानी की कामुक आवाजे सुन कर गरम हो गई थी

राजपाल को सहलाने लगती है।

"महाराज! मुझे प्यार कीजिये"

"आओ मेरी रानी!"

शुरष्टि राजपाल के उपर छा जाती है और राजपाल को सहलाने लगती है।

राजपाल की छाती को चुम कर ऊपर को आने लगती है।

फिर राजपाल के होठों से जोर से अपने होठों से चूमने लगती है।

राजपाल अपना हाथ पीछे से सृष्टि की कमर पर रख कर सहलाता है। शुरष्टि अपना मध्यम आकार के वक्ष राजपाल की छाती पर खूब मसलने लगती है।

अब शुरष्टि राजपाल को चुमते हुए राजपाल की दोनों जांघो को सहलाने लगती है और राजपाल की धोती को अपने दोनों हाथों से खोल देती है।

राजपाल का मुरझाया लौड़ा देख शुरुआत के चेहरे की लाली खो जाती है। दो इंच का लंड मुरझाया हुआ था। मरती क्या न करती सृष्टि उसके लंड को सहलाते हुए मुठियाने लगती है।

राजपाल ने अपने आँखे दिन बंद कर ली थी और अह्ह्ह ओह्ह्ह करता हुआ सिस्की ले रहा था।

"महाराज आपने कहा था। आप अपने लिए कोई औषधि लेंगे?"

"हाँ औषधि ली तो थी। पर वह खत्म हो गई है। उसका असर तब तक ही है जब तक हम उसका प्रयोग कर रहे हैं।"

शुरष्टि अब एक हाथ से राजपाल का लंड खड़ा कर रही थी दूसरे से उसके छोटे-छोटे सूखे हुए अंडकोषों को सहला रही थी।

राजपाल: क्या हुआ रानी आज बहुत गरम हो। ऐसा क्या हुआ रानी को। जो आज बुढ़ापे में आधी रात मेरे पास आना पड़ा?

सृष्टि: चुप करो महाराज! मेअभी री आयु 50 की भी नहीं हुई है परन्तु तुम बूढ़े हो गए बेशक अन्तिम चरण में है पर मेरी जवानी अब भी बाकी है। ।

राजपाल: वह तो तुम ठीक कह रही हो, अब मैं लगभाग 60 का हो गया हूँ ।

शुरष्टि (मन में: किसने कहा था। अपने से आधी आयी से भी कम आयु की कन्या से विवाह कर लो। तुम्हाररी इसी हालत के कारण तुम्हारी जवान पत्नी देवरानी आज अपने बेटे के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है।)

कहीं ना कहीं सृष्टि को देवरानी और बलदेव से बहुत जलन हो रही थी, इसलिए उसके दिमाग में ये बात बार-बार आ रही थी

सृष्टि ने अब देखा की राजपाल का । लौड़ा हल्का-सा उठा। रहा है। सृष्टि झट से अपना मुँह खोल उसे चुसने लगती है।

"आह श्रुष्टि!"

बड़े तेजी से शुरू होते हुए सृष्टि अपने ब्लाउज खोल देती है और उसके दूध जो ना बड़े थे ना छोटे खुलते ही लटकने लगते हैं।

"इनहे मसलो महाराज"

सृष्टि राजपाल का हाथ ले कर अपने दूध पर रख देती है।

राजपाल उसके दूध को मसलने लगता है।

"आह मेरी महारानी श्रुष्टि"

शुरष्टि देखती है कि उसके दो इंची लौड़े ने अब अपना सर उठा लिया था और अब बड़ा होकर लगभग 4 इंच का हो गया था।

"महाराज जल्दी डाल दो महाराज!"

राजपाल शुरष्टि की गांड को सहलाते हुए लिटा देता है और उसके घाघरा को खोल कर उसके दोनों टाँगे उठा देता है।

और अपना लौड़ा सृष्टि की बुर में एक बार में पेल डालता है।

"आह महाराज ज़ोर से पेल दीजिये!"

राजपाल आगे बढ़ कर शुरुआत करता हैं। उसके दोनों वक्षो को मसलने लगता है। फिर राजपाल ज़ोर-ज़ोर से सृष्टि को चोदने लगता है।

शुरष्टि चुड़ते हुए आखे बंद किये हुए सिसक रही होती है।

राजपाल झटके मार-मार के पसीने से तरबतर हो गया था और वह अब धीरे-धीरे हिलने लगता है।

"महाराज ज़ोर से पेलो ना अपनी रानी को।"

अभी 3 या 4 मिनट की चुदाई ही हुई थी की राजपाल हांफने लगता है। शुरष्टि समझ जाती है कि महाराज से अब और ना हो पायेगा क्यूकी उन्होंने औषधि या जड़ी बूटी भी नहीं ली है।

"ओह्ह! सृष्टि मेरा अब निकलने वाला है।"

"महाराज नहीं अभी नहीं! महाराज! थोड़ी देर और!"

"आह! श्रुष्टि!"

राजपाल दो धक्के मारता है और अपनी आखे बंद कर लेता है। "

"महाराज अपने आप पर काबू पाएँ! रुके! अभी पानी मत छोड़िये!"

राजपाल एक और धक्का मारता है।

" आआआ सृष्टि! और आखे बंद किये हुए कांपते हुए झड़ने लगता है।

सृष्टि उदास हो कर राजपाल को ही देख रही थी। राजपाल जब पूरा झड़ जाता है। तो सृष्टि के ऊपर से हट कर उसकी बगल में लेट जाता है और ज़ोर-ज़ोर से सांस लेने लगता है। अपना आख बंद किये हुए सृष्टि की आखो में आसु आ जाते है। पर वह अपना आसु छुपा महराज से चिपक कर लेटी रहती है।

थोड़ी देर बाद राजपाल अपने सांसो पर काबू पाता है। तो सृष्टि का बुझी-बुझी देखता है तो बेबसी से उसकी नज़र नीचे झुक जाती है।

"महाराज आपका तो हो गया पर मेरा?"

"मुझे क्षमा कर महारानी ने आपका साथ नहीं दे पाया और समय से पहले स्खलित हो गया । मुझसे आज फिर गलती हो गई."

राजपाल अपना धोती उठा। कर शौचालय में घुस जाता है और अपने वस्त्र बदल कर वापस बिस्तर पर आता है।

सृष्टि अब भी वही पर लेटी थी

"महरानी सृष्टि! क्या हुआ कपडे पहन लो अपने"

"महाराज मैं अपने कक्ष में जाती हूं"

राजपाल समझ जाता है के शुरष्टि संतुष्ट नहीं हुई है और दुखी है।

"ठीक है। जैसी आपकी इच्छा महारानी!"

शुरष्टि अपने ब्लाउज और घाघरा पहन कर अपनी पोशाक पहन लेती है और बाहर चली जाती है। "

अपने कक्ष में आकर फिर से अपने वस्त्र उतार कर फेंक देती है और अपने गरम शरीर को अपने हाथों से सहलाने लगती है और अपनी योनि में उंगली कर उत्तेज़ना से सिसकने लगती है।

कुछ देर यू वह अपने अंग से खेल कर अपनी योनि का पानी निकालती है। अपने आपको शांत कर वह भी नींद की आगोश में चली जाती है।

शुरष्टि उठती है। उसका बदन बहुत ज़ोर से दर्द कर रहा था। वह नहा धो कर बाहर आती है।

"कमला ओ कमला आई नहीं अब तक?"

कमला और राधा सुबह-सुबह अपने काम में रसोई में लगी हुई थी।

कमलाः जी महारानी शुरष्टि आज्ञा दीजिये!

शुरष्टि: बहुत भूख लगी है, सारा बदन टूट रहा है, कुछ जल्दी बनाओ।

राधा: क्या हुआ महारानी क्या राज है इस भूख और थकान का?

कमला: मैं कुछ बनाती हूँ

राजपा ल सवेरे उठ कर अपने महल के चारो ओर रोज की तरह घूमने लगता है।

राजपाल को तभी सामने से दो घोड़ों पर सवार दो लोग आते हुए दिखते हैं।

राजपाल गौर से देखने के बाद समझ आया की ये तो बलदेव के मित्र श्याम और बद्री है।

श्याम और बद्री राजपाल के पास आकर घोड़े को रोक घोड़े से उतर जाते हैं।

श्याम और बद्री एक स्वर में: प्रणाम महाराज!

दोनों महराज के सामने अपने हाथ जोड़े खड़े हुए थे।

राजपाल: प्रणाम स्वागत है। तुम्हारा राजकुमारो!

श्याम और बद्री अपने स्वागत किये जाने से खुश हो कर महाराज के चरण छू लेते हैं।

राजपाल: राजकुमारों आप ये क्या कर रहे हो?

श्याम और बद्री: आप हमारे पिता समान हैं। महाराज

राजपाल एक मुस्कुराहट के साथ

राजपाल: आयुष्मान भवः!

राजपाल ताली बजाता है।

भागता हुआ एक सैनिक उसके पास आता है।

"आज्ञा महाराज! "

"सुनो इन्हें ले कर जाओ ये हमारे मेहमान हैं। इन के आदर सत्कार में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होनी चाहिए"

सैनिक: जो आज्ञा महाराज।

राजपाल: और सुनो सेनापति सोमनाथ को भेजो ।

जारी रहेगी

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