सब्र का फ़ल

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सब्र का फ़ल
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मेरी शादी गांव की रीति-रिवाज के हिसाब से कम उमर में ही हो गई थी. जिस घर में मैं ब्याही थी उसमें बस दो भाई ही थे, करोड़पति घर था, शहर में कई मकान थे. वे स्वयं भी चार्टेड अकाऊँटेन्ट थे. छोटा भाई यानि देवर जी जिसे हम बॉबी कहते थे उसका काम अपनी जमीन जायदाद की देखरेख करना था. प्रवीण, मेरे पति एक सीधे साधे इन्सान थे, मृदु, और सरल स्वभाव के, सदा मुस्कराते रहने वाले व्यक्ति थे. इसके विपरीत बॉबी एक चुलबुला, शरारती युवक था, लड़कियों में दिलचस्पी रखने वाला लड़का था.

मेरी सहेली मेरी ही तरह गांव में पड़ोस में रहने वाली विधवा युवती गोमती थी जो मुझसे पांच साल बड़ी थी. मेरी राजदार थी वो, मैं उसे हमेशा साथ ही रखना चाहती थी, सो मैंने उसे अपने पास अपनी सहायता के लिये रख लिया था. उसकी उमर कोई बत्तीस वर्ष की थी. उसके पति एक दुर्घटना में चल बसे थे. वो मेरी मालिश किया करती थी, मुझे नहलाया करती थी. मुझसे नंगी व अश्लील बातें किया करती थी. मुझे इन सब बातों में बहुत मजा आता था. मेरे पति अधिकतर व्यवसायिक यात्रा पर रहा करते थे, उनकी अनुपस्थिति में एक गोमती ही थी जो उनकी कमी पूरी किया करती थी.

'ये घने काले काले गेसू, ये काली कजरारी आँखें, गोरा रंग, पत्तियों जैसे अधर, सखी री तू तो नाम की नहीं, वास्तव में मोहिनी है!'

'चल मुई! बातें तो तुझसे करवा लो. खुद को देख, हरामजादी, जवानी से लदी पड़ी है... किसी ने तेरी बजा दी तो वो तो निहाल ही हो जायेगा!'

'मोहिनी बाई! चल अब उतार दे ये ब्लाऊज और ब्रा, खोल दे पट घूंघट के, और बाहर निकाल दे अपने बम के गोले, तेल मल दूँ तेरी नंगी जवानी को.'

मैंने अपना तंग ब्लाऊज धीरे से उतार दिया और ब्रा को भी हटा दिया. मेरी सुडौल तनी हुई दोनों चूचियाँ सामने उछल कर आ गई. गोमती ने बड़े प्यार से दोनों फ़ड़फ़ड़ाते कबूतरों को सहलाया और अपनी हथेलियों में ले लिया. मेरे मुख से आनन्द भरी आह निकल गई. मैंने बिस्तर पर अपने दोनों हाथ फ़ैला दिये और अपनी टांगें भी फ़ैला दी.

'गोमती, जरा हौले से, मस्ती से मालिश कर ना!'

गोमती हमेशा की तरह मेरी जांघों पर बैठ गई और तेल से भरे हाथ मेरी छातियों को गोलाई में मलने लगे. मेरे शरीर में एक अनजानी सी गुदगुदी भरने लगी. मेरे चूचक कठोर हो कर तन गये, थोड़े से फ़ूल गये. उसने मेरा पेटीकोट भी नीचे सरका कर उतार दिया. मेरी योनि को देख देख कर वो मुस्करा रही थी. शायद मेरी योनि में कुलबुलाहट सी हो रही थी इसलिये!

वो अपने हल्के हाथों से मेरे चूचक को मलने लगी, मेरे शरीर में तरंगें उठने लगी थी. मन बावला होने लगा था. मेरी कमर धीरे धीरे चुदाई के अन्दाज में हिलने लगी थी.

'दीदी लो बाहर आ गई प्यार की कुछ बूंदें... '

फिर गोमती झुकी और मेरी योनि से उसने अपने अधर चिपका दिये. दोनों अंगुलियों से उसने मेरी योनि के कपाट खोल कर चौड़े कर दिये. फिर उसकी जीभ के कठोर स्पर्श से मैं हिल गई. उसकी जीभ ने एक भरपूर मेरी रसभरी चूत में घुमा कर सारा रस लपेट लिया. मैं आनन्द से झूम उठी. फिर उसने मेरे चूतड़ों को ऊपर उठा कर मेरी चिकनी जांघों को मेरे पेट पर सिमटा दिया. अब उसकी जीभ मेरे गाण्ड के कोमल भूरे रंग के फ़ूल को चाट लिया. एक मीठी सी गुदगुदी उठ आई. वो जाने कब तक मेरे नर्म नाजुक अंगों के साथ खिलवाड़ करती रही.

'दीदी, आपको तो कोई मुस्टण्डा ही चाहिये चोदने के लिये, घोड़े जैसा लण्ड वाला!'

'घोड़े से चुदवा कर मेरा बाजा बजवायेगी क्या... '

'अरे दीदी, बहुत दिन हो गये, साहब तो चढ़ते ही टांय टांय फ़िस हो जाते है, लण्ड झूल कर छोटा सा हो जाता है.'

'तो क्या हुआ, मेरे भगवान है वो, चाहे जो करें... जैसे करें!'

तभी बॉबी के कमरे से कुछ खटपट की आवाजें लगी. लगता था कि वो जिम से वापस आ गया है.

मैंने जल्दी से गोमती को अलग किया और संभल कर बैठ गई. मैंने तुरन्त ही अपना पेटीकोट और ब्लाऊज पहन लिया. गोमती ने भी झटपट यही किया. तभी बाहर से आवाज आई.

'भाभी, दूध बादाम लगा दो, हम कुल चार हैं.'

'जा गोमती, चार गिलास बना कर दे देना.'

गोमती जैसे ही बाहर निकली, बॉबी उसे देखता ही रह गया. अस्त व्यस्त कपड़े, जगह जगह तेल के दाग, वो समझ गया कि भाभी की मालिश हो रही होगी. उसने मेरे कमरे का दरवाजा खोला और अपनी कमीज उतारता हुआ बोला- भाभी, इसे धुलवा देना.'

फिर उसने वो कपड़े गन्दे कपड़ों के ढेर में डाल दिये. उसका कसा हुआ बलिष्ठ शरीर देख कर मैं भौंचक्की सी रह गई. तभी मेरी नजर उसके छोटे से कच्छे पर चली गई.

'सभी जिम से आ रहे हैं क्या?'

'हाँ भाभी!' वो मेरी तरफ़ बढ़ता हुआ बोला.

मैं उसे अपनी ओर बढ़ता हुआ पा कर सहम सी गई. वो बिल्कुल मेरे पीछे आ गया. मेरी पीठ से चिपक सा गया. उसके दोनों हाथ सरकते हुये मेरी कमर से लिपट गये.

'ओह, भैया, अब क्या चाहिये, यूँ, ऐसे मत करो!' उसके ताकतवर शरीर का स्पर्श पाकर मुझे सिरहन सी हो आई. तभी उसका कठोर लण्ड मेरे नितम्बो के आस पास गड़ने लगा. मैं अब समझ चुकी थी कि बॉबी क्या चाहता है.

'भाभी, एक बात कहूँ, बुरा मत मानना और ना भी मत कहना!'

'क्...क्... कहो, पर दूर तो हटो!'

'भाभी आज चुदवा लो, प्लीज, मना मत करो, देखो मेरा लौड़ा कितना उतावला हो रहा है!'

'आ... आ... ये क्या बदतमीजी है भैया... हट जाओ!' तभी मुझे गोमती नजर आ गई. वो इशारा कर रही थी कि चुदवा लो... आह, पर कैसे... बॉबी क्या सोचेगा... तभी बॉबी ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर रख दिया.

हाय राम! इतना मोटा! इतना लम्बा... मैंने उसे पकड़ कर उसका जायजा लिया और झटके से छोड़ दिया. पर दूसरे ही पल उसका हाथ ऊपर सरक कर मेरी चूचियों पर आ गया. वो उसे हौले हौले सहलाने लगा. फिर तौबा रे, उसका सख्त लण्ड मेरे चिकने गोलों को चीरता हुआ पेटीकोट समेट चूतड़ों के मध्य घुस गया. तभी गोमती वहाँ आ गई- बस करो भैया जी, भाभी मना कर रही है ना, ये लो चादर ओढ़ लो!'

गोमती को देखते ही उसका नशा उतरने लगा.

'ओह माफ़ करना भाभी, आपके तेल भरे चिकने शरीर को देख कर मैं बहक गया था.'

गोमती ने उसका हाथ थामा और दरवाजे की तरफ़ ले चली और धीरे से बोली- भैया जी, रात को शरीर पर तेल की मालिश करके आना, भाभी को मैं पटा लूंगी, और तुम्हारे इन तीनों दोस्तों को भी ले आना!'

वो विस्मित सा गोमती को देखता रह गया. पहले तो गोमती की बात सुन कर सकपका सी गई, पर उसकी चतुराई देख कर मैं मुस्कुरा उठी. मैं समझ गई कि लोहा गरम देख कर गोमती ने चोट की थी. मेरे जवान जिस्म को देख कर उसका लण्ड तनतना उठा था. यूँ तो मेरी चूत भी एक बार तो चुदने के लिये कुलबुला उठी थी.

'अब इसे नीचे झुका लो!' गोमती ने उसके कड़कते हुये लौड़े को अपनी अंगुली से नीचे दबा दिया.

'ओह, गोमती बाई जी, ऐसे ना करो, ऐसे तो यह और भड़क जायेगा!'

'तो भड़कने दो भैया, हम जो हैं ना!'

गोमती खिलखिला कर हंस पड़ी, मुझे भी हंसी आ गई. हमारी ओर से स्वीकारोक्ति से बॉबी उतावला हो गया था. बॉबी अपने कमरे में अपने दोस्तो को यह खुशखबरी सुनाने के लिये चल पड़ा.

गोमती हंसती हुई बोली- मिल गया ना घोड़े जैसा लण्ड! अब चार चार से मजा लेना रात को दीदी!'

'ओहो... मन तो अभी कर रहा है, बात रात की कर रही है?'

'दीदी, बस देखते जाओ, रात की तो बात है सिर्फ़, देखो तो घोड़े का लण्ड खड़ा हो चुका है. अब पानी तो बाहर आकर ही रहेगा.

बात सच थी. कुछ ही देर में बॉबी वापस कमरे में आ गया.

'भाभी, रहा नहीं जा रहा है, अभी चुदवा लो ना!'

'अरे जा ना, कहा ना! रात को आना.' गोमती ने हंस कर कहा.

'रात को भी आ जाऊँगा, पर अभी ये देखो ना!' बॉबी ने चादर उतार फ़ेंकी.

वो पूरा नंगा था. उसका लण्ड सख्ती के साथ 120 डिग्री पर तना हुआ था. तभी उसके तीनो दोस्त भी कमरे में आ गये. उन्होंने भी कपड़े उतार दिये. जिम के पठ्ठे थे, सभी के कड़क मोटे लौड़े थे. कठोर और तने हुए, चोदने को बेताब.

गोमती ने मेरी ओर देखा और मुस्करा दी, जैसे कह रही हो मिल गये ना मस्त लण्ड, देखो लण्डों की बहार ही आ गई है.

तभी बॉबी ने मेरी कमर पकड़ ली. और मेरा ब्लाऊज खींच लिया. उसके दोस्त ने मेरा पेटीकोट उतार डाला.

'बस करो, यह सब क्या है!'

'भोसड़ी की, पटक दो नीचे और मसल डालो मेरी प्यारी भाभी को.'

बाकी के दो लड़कों ने भी गोमती को पकड़ कर नंगी कर दिया था.

तभी बॉबी ने मुझे गोदी में उठा कर बिस्तर पर पटक दिया. दूसरे ने मेरे दोनों हाथ दबा लिये. मेरे अंग अंग में तरंगें फ़ूटने लगी थी. खुशी से मेरे मन ही मन में लडडू फ़ूट रहे थे. कहने को तो मैं फ़ड़फ़ड़ा रही थी, पर मैं उन्हें सब कुछ करने का पूरा मौका दे रही थी. उसके साथी का लण्ड मेरे मुख के सामने तन्नाया हुआ डोल रहा था. उसने मौका देख कर फ़ायदा उठाया और मेरे खुले हुये मुख में अपना लौड़ा घुसेड़ दिया.

'पी ले मोहिनी बाई मेरा लण्ड! ऐसी मस्त जवानी फिर कहाँ मिलेगी!'

तभी मेरी नजर गोमती पर गई. जैसे ही हमारी नजरें मिली हम दोनों ने आँख मार दी. मेरी एक चूची उसके दोस्त के मुख में थी तो दूसरी उसी के एक हाथ में थी. बॉबी मेरी चूत का रस चूस रहा था.

'हाय हाय! मार डाला रे भैया ने... भैया चोद दो ना, अरे नहीं छोड़ दो ना!'

तभी मुझे गोमती की मस्ती भरी चीख सुनाई दी. उसकी गाण्ड में लौड़ा घुस चुका था और दूसरा उसकी चूत में धक्का दे रहा था. तभी मुझे लगा कि बॉबी का मस्त मोटा लौड़ा मेरी गाण्ड के छेद में दस्तक दे रहा है. मैंने जान करके छेद को ढीला छोड़ दिया. चिकने तेल भरे शरीर में लौड़ा आराम से अन्दर चलता चला गया.

'भाभी को ऊपर ले ले, मुझे भी तो गाण्ड मारना है!'

उसका दोस्त नीचे लेट गया और मुझे उसके ऊपर लेट कर चूत में लण्ड घुसाने को कहा. मैंने वैसा ही किया. मैं उसके दोस्त के ऊपर आ गई और उसके खड़े लण्ड पर चूत को फ़िट कर दिया. फिर लण्ड को अन्दर बाहर करते हुये पूरा चूत में समेट लिया. अब बॉबी ने फिर से मेरी गाण्ड के छेद पर सुपाड़ा रखा और अन्दर घुसेड़ दिया. मुझे तो जैसे स्वर्ग का आनन्द आ गया. दो मोटे लम्बे मस्त लण्ड मेरे दोनों गुहा में घुस चुके चुके थे. दोनों ही धीरे धीरे मस्त लण्ड को अन्दर बाहर कर रहे थे. दोनों लण्डों का भारीपन मुझे मस्त किये दे रहा था. उसका दोस्त मेरे अधरों के रस को बराबर पी रहा था और बॉबी मेरी गाण्ड को चोदता हुआ मेरी चूचियों का भरता बनाये जा रहा था.

मेरे पूरे शरीर में मीठी मीठी सी कसक भरने लगी थी. मेरा कोई भी अंग इन दोनों मर्दों की पहुँच से अछूता नहीं था. वे दोनों मेरा अंग-अंग को तोड़े डाल रहे थे. शरीर में वासना की अग्नि तेजी से भड़क रही थी.

एक साथ दो लड़कों से चुदाई, आह्... कभी सपने में भी नहीं सोचा था, कि ऐसा स्वर्गिक आनन्द भरा सुख मुझे नसीब होगा. पर अभी देखो ना, कैसे तगड़े शॉट पर शॉट लग रहे थे. लग रहा था कि वो दोनों ही मुझे मसल कर रख देना चाहते थे. पर मुझे भी तो यही सुख चाहिये था. आखिर कितने भचीड़े मारेंगे, मेरी तो आत्म-सन्तुष्टि ही होगी.

हाय राम जी, और जोर से मारो, चोद दो, फ़ाड़ कर रख दो.

बॉबी की तेजी तो देखते ही बनती थी. जैसे पहली बार किसी की गाण्ड चोद रहा हो. तभी बॉबी जो गाण्ड की तंग गली में शॉट पर शॉट मार रहा था. उसने अपना वीर्य मेरी गाण्ड में उगल दिया. उसकी गर्माहट से मैं भी चरमसीमा को पार करने लगी. फिर मैं जोर से झड़ गई. मेरी उमंग के मारे मेरी चूत चोदता हुआ बहुत खुश हो रहा था. नीचे मेरी चूत चोदता हुआ उसका दोस्त भी अपना वीर्य उगलने लगा.

आह्ह्ह, मेरी तो क्या चूत, क्या गाण्ड सभी कीचड़ से भर गई. सारा शरीर चिपचिपा सा लगने लगा. पर मैं निढाल हो कर एक तरफ़ लुढ़क गई और गहरी गहरी सांसें लेने लगी. कुछ देर बाद मुझे गोमती ने हिलाया.

'दीदी, वो चले गये!'

'अरे चले गये, साले कमीने हैं, एक दो बार और चोद जाते तो भला क्या जाता उनका?'

'अरे आप तो उनकी दीवानी हो गई हो. मुझे देखो ना, कितनी बढ़िया चोदा है दोनों ने!'

मैं उठ कर बैठ गई, गोमती मुझे लेकर बाथरूम में आ गई. स्नान करके और फिर से सज-संवर कर हम दोनों तैयार हो गई. दिन को भोजन पर हम सभी सामान्य रहे. किसी को लगा ही नहीं कि इसी भैया ने अभी अभी अपनी भाभी को चोदा है.

मैं और गोमती रात को लेटे हुये दिन की घटना के ख्यालों में खोये हुये बातें कर रहे थे. बहुत ही रंग भरी बातें हो रही थी. लण्ड की पिलाई कैसे की गई थी एक दूसरे को बता कर हम दोनों वासना में भरी जा रही थी. लण्ड को सभी ने कैसे पेला सोच सोच कर चूत में पानी उतरा जा रहा था. अन्त में हम दोनों ने अपने पूरे वस्त्र उतार दिये और लिपट गई. पर तभी वही दिन के चारों मुस्टण्डे हमारे इर्द गिर्द खड़े दिखाई दिये. चारों के तनतनाते हुये कठोर लण्ड हमारे बिस्तर के दोनों ओर खड़े हुये हमे चुदाई का निमंत्रण दे रहे थे. उनके हिलते हुये लाल सुपाड़े मेरे दिल पर तीर चला रहे थे. एक ने गोमती को बाहों में उठाया और उसके बिस्तर की ओर ले चला. बाकी दो मेरे ऊपर टूट पड़े.

'अरे बस करो ना...'

'बस क्यों भाभी जी, आपने रात को तो बुलाया ही था ना... फिर अब चुदो!'

'हाय मैं मर गई, मैं तो चुद गई, गुड्डू चल चढ़ जा मेरे ऊपर और तू बण्टी मेरी पीछे की मार दे...'

रंगीले सोच के कारण हमारी चूतें तो वैसे ही लण्ड लेने के लिये फ़ड़फ़ड़ा रही थी. तिस पर सभी मनमोहना का अचानक आ जाना. मेरी तो लगा कि तकदीर ही खुल गई. आज की आज दूसरी बार मस्त लण्डों की पिलाई होने जा रही थी.

उधर गोमती चुदती जा रही थी, मस्त हो रही थी. तभी बॉबी ने मुझे खींच कर खड़ा कर दिया और मेरी एक टांग पलंग के किनारे रख दी. अपना मस्त लण्ड मेरी धार पर लगा दिया. मुझे उसका कठोर लौड़ा अपनी संकरी चूत को चीरता हुआ अन्दर बैठा जा रहा था. तभी उसके मित्र ने मेरी कमर कस कर थाम ली और मुझे एक और लण्ड मेरी गाण्ड के छेद को फ़ोड़ता हुआ अन्दर घुस गया. मैंने थोड़ा सा हिल कर दोनों लण्डो को धीरे से सेट कर लिया. अब मुझे दोनों लण्डों से कोई तकलीफ़ नहीं थी. बल्कि अब तो दोनों छेद आनन्द की मीठी अग्नि में जलने लगे थे. हम दोनों को अब दोनों छेदों को एक साथ चुदवाने में असीम आनन्द आ रहा था. बहुत सालों तक मरियल लण्ड से घिस घिस कर परेशान हो रही थी और वो गोमती बेचारी, उसे तो सालो से लण्ड नसीब ही नहीं हुआ था. सबर का फ़ल मीठा होता है, पर इतना मीठा है यह नहीं पता था.

चारों हम दोनों को सुख के सागर में गोते लगवा रहे थे. कुछ ही देर में हम दोनों का रस निकल गया. हमारी सुख से आँखें बन्द हो गई थी. मुझे लगा कि हमें चोद कर वे सब जा चुके थे. गोमती उठी और धीरे से मेरे बिस्तर पर आ कर मेरे समीप लेट गई. उसने अपनी एक टांग मेरी कमर पर डाल दी और आंखे बन्द किये हुये बोली- सखि रे, सारा कस बल निकाल दिया. कितने दिनों के बाद चुदाई हुई और हुई तो ऐसी कि दो दो मर्दों ने एक साथ चोद दिया.'

'और गोमती, दिन में दो बार भी चुद गई!'

'देर से ही मानो, पर हमने इतना सब्र तो किया ना, मिला ना फ़ल!'

'हाँ री, मिला क्या, लगता है अब तो रोज ही मिलेगा यह फ़ल!'

'दीदी, एक बार चारों से एक साथ चुदवा कर मजा ले!'

'साली मर जायेगी...'

'अरे दीदी, अभी तो मौका है... जाने फिर ऐसा समय आये, ना आये?'

दोनों ने अपनी निंदासी आँखें खोली और अपनी आँखें एक दूसरे की आँखों से लड़ा दी.

'अब आँखें चोदेगी क्या...?'

दोनों मुस्करा दी और फिर धीरे से आँखें बन्द करके सपनों की दुनिया खो चली.

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