ससुराल गेंदा फ़ूल

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ससुराल गेंदा फ़ूल
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मेरा नाम आरती है। मेरी शादी बड़ौदा में एक साधारण परिवार में हुई थी। मैं स्वयं एक दुबली पतली, दूध जैसी गोरी, और शर्मीले स्वभाव की पुराने संस्कारों वाली लड़की हूँ। घर का काम काज ही मेरे लिये लिये सब कुछ है। पर काम से निपटने के बाद मुझे सजना संवरना अच्छा लगता है। रीति रिवाज के मुताबिक दूसरों के सामने मुझे घूंघट में रहना पड़ता है।

काम से हम लोग स्वर्णकार हैं। मेरे ससुर और पति कुवैत में काम करते हैं। उनकी कमाई वहाँ पर अच्छी है। कुवैत से दोनों मिलकर काफ़ी पैसा हमें भेज देते हैं...उससे यहाँ पर हमने अपना मकान का विस्तार कर लिया है।

मेरे पति के एक मित्र साहिल पास के गांव के हैं वो हमारे घर अक्सर आ जाते हैं और चार पांच दिन यहाँ रह कर अपना काम करके वापस चले जाते हैं। वो भी स्वर्णकार हैं। घर में बस तीन सदस्य ही हैं, मैं, मेरी सास और और मेरी छोटी सी ननद जो मात्र 13 साल की थी। साहिल हमारा हीरो है... वो हमारे यहाँ पर क्या क्या करता था... और हम उसके साथ कैसे मजे करते थे... आईये, मैं आपको आरम्भ से बताती हूँ...

मुझे इस घर में आये हुए लगभग चार माह बीत चुके थे...यानि मेरी शादी हुए चार माह ही बीते थे। आज साहिल भी गांव से आया हुआ था। मैंने उसे पहली बार देखा था। मेरी ही उम्र का था। उसे मेरी सास कमला ने उसे एक कमरा दे रखा था वो वहीं रहता था। कमला ने मेरा परिचय उससे कराया। मैंने घूंघट में से ही उन्हें अभिवादन किया।

उसके आते ही मुझे कमला ने पास ही सब्जी मण्डी से सब्जी लाने भेज दिया। मैं जल्दी से बाहर निकली और थोड़ी दूर जाने के बाद मुझे अचानक याद आया कि कपड़े भी प्रेस कराने थे...मैं वापस लौट आई।

कमला और साहिल दोनों ही मुझे नजर नहीं आये... साहिल भी कमरे में नहीं था। मैं सीधे कमला के कमरे की तरफ़ चली आई... मुझे वहाँ पर हंसने की आवाज आई... फिर एक सिसकारी की आवाज आई... मैं ठिठक गई।

अचानक हाय... की आवाज कानों से टकराई... मैं तुरंत ही बाहर आ गई मुझे लगा कि मां अन्दर साहिल के कुछ ऐसा वैसा तो नहीं कर रही है।

मैंने बाहर बरामदे में आकर आवाज लगाई...'मां जी...! कपड़े कहाँ रखे हैं?'

कमला तुरन्त अपने कमरे में से निकल आई... साहिल कमरे में ही था। अपने अस्त व्यस्त कपड़े सम्हालती हुई बाहर आ कर कहने लगी- ये बाहर ही तो रखे हैं...'

उनके स्तनों पर से ब्लाऊज की सलवटें बता रही थी कि अभी बोबे दबवा कर आ रही हैं...उनकी आंखें सारा भेद खोल रही थी। आंखो में वासना के गुलाबी डोरे अभी भी खिंचे हुए थे। मुझे सनसनी सी होने लगी... तो क्या कमला... यानी मेरी सास और साहिल मजे करते हैं...?

मैं भी घर में नई थी...मेरा पति भी बाहर था, मैं भी बहुत दिनों से नहीं चुदी थी, मेरा मन भी भारी हो उठा...मन में कसक सी उठने लगी... मां ही भली निकली... पति की दूरी साहिल पूरी कर देता है... और मैं... हाय...

मैं सब्जी लेकर और दूसरे काम निपटा कर वापस आ गई थी। सहिल और कमला दोनों ही खुश नजर आ रहे थे... क्या इन दोनों ने कुछ किया होगा। मेरे मन में एक हूक सी उठने लगी।

मुझे साहिल अब अचानक ही सुन्दर लगने लगा था... सेक्सी लगने लगा था। मैं बार बार उसे नीची और तिरछी नजरों से उसे निहारने लगी। कमला भी उसके आने के बाद सजने संवरने लगी थी। 40 वर्ष की उम्र में भी आज वो 25 साल जैसी लग रही थी। मेरा मन बैचेन हो उठा...भावनायें उमड़ने लगी... मन भी मैला हो उठा।

दिन को सभी आराम कर रहे थे... तभी मुझे कमला की खनकती हंसी सुनाई दी। मैं बिस्तर से उठ बैठी। धीरे से कमरे के बाहर झांका फिर दबे कदमों से कमला के कमरे की तरफ़ बढ़ गई। दरवाजे खिड़कियाँ सभी बन्द थे... पर मुझे साईड वाली खिड़की के पट थोड़े से खुले दिखे।

मैंने साईड वाली खिड़की से झांका तो मेरा दिल धक से रह गया। कमला ने सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाऊज पहना था... सहिल बनियान और सफ़ेद पजामा पहना था... कमला अपने पांव फ़ैला कर लेटी थी और साहिल पेटीकोट के ऊपर से ही अपना लण्ड पजामे में से कमला की चूत पर घिस रहा था... कमला सिसकारी भर कर हंस रही थी...

मेरे दिल की धड़कन कानों तक सुनाई देने लगी थी। अब साहिल टांगों के बीच में आकर कमला पर लेटने वाला था... कमला का पेटिकोट ऊपर उठ गया... पजामें में से साहिल का लण्ड बाहर आ गया और अब एक दूसरे को अपने में समाने की कोशिश करने लगे...

अचानक दोनों के मुख से सिसकारी निकल पड़ी... शायद लण्ड चूत में घुस चुका था... बाहर से अब साहिल के चूतड़ो के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। मेरे पांव थरथराने लगे थे।

मैं दबे पांव अपने कमरे में आ गई... मेरा चेहरा पसीने से नहा गया था। दिल की धड़कने अभी भी तेज थी। मैं बिस्तर पर लोट लगाने लगी। मैंने अपने उरोज दोनों हाथो से दबा लिये... चूत पर हाथ रख कर दबाने लगी।

फिर भाग कर मैं बाहर आई और एक लम्बा सा बैंगन उठा लाई। मैंने अपना पेटिकोट उठाया और बैंगन से अपने आपको शांत करने का प्रयत्न करने लगी। कुछ ही देर में मैं झड़ गई।

रात हो चुकी थी। लगता था कि कमला और सहिल में रात का प्रोग्राम तय हो चुका है। दोनों ही हंस बोल रहे थे...बहू होने के कारण मुझे घूंघट में ही रहना था... मैं खाना परोस रही थी... सहिल की चोरी छुपे निगाहें मुझे घूरती हुई नजर आ जाती थी। मैं भी सब्जी, रोटी के बहाने उसके शरीर को छू रही थी... घूंघट में से मेरी बड़ी बड़ी आंखें उसकी आंखों से मिल जाती थी।

मेरी हल्की मुस्कुराहट उसे आकर्षित कर रही थी... मेज़ के नीचे से कमला और साहिल के पांव आपस में टकरा रहे थे... और खेल कर रहे थे... ये देख कर मेरा मन भी भटकने लगा था कि काश...मेरी भी ऐसी किस्मत होती... कोई मुझे भी प्यार से चोद देता और प्यास बुझा देता...

रात को सोने से पहले मैं पेशाब करने बाहर निकली तो साहिल बाहर ही बरामदे में खड़ा था। मैं अलसाई हुई सी सिर्फ़ पेटिकोट और बिना ब्रा की ब्लाऊज पहले निकल आई थी।

साहिल की आंखे मुझे देखते ही चुंधिया गई... दूध सा गोरा रंग... छरहरी काया... ब्लाऊज का एक बटन खुला हुआ... गोरा स्तन अन्दर से झांकता हुआ... बिखरे बाल... वह देखता ही रह गया।

उसे इस तरह से निहारते हुए देख कर मैं शरमा गई... और मेरी नजरें झुक गई...'सहिल जी... क्या देख रहे हैं... आप मुझे ऐसे मत देखिये...' मैं अपने आप में ही सिमटने लगी।

'आप तो बला की खूबसूरत हैं...' उसके मुख से निकल पड़ा।

'हाय... मैं मर गई...!' मैं तेजी से मुड़ी और वापस कमरे में घुस गई... मेरी सांसे तेज हो उठी... मैंने अपनी चुन्नी उठाई और सीने पर डाल ली... और सर झुकाये साहिल के पास से निकलती हुई बाथ रूम में घुस गई।

मैं पेशाब करना तो भूल ही गई...अपनी सांसों को...धड़कनो को सम्हालने में लग गई... मेरी छाती उठ बैठ रही थी... मैं बिना पेशाब किये ही निकल आई। साहिल शायद मेरा ही बरामदे में खड़ा लौटने का इन्तज़ार कर रहा था। मैंने उसे सर झुका कर तिरछी नजरों से देखा तो मुझे ही देख रहा था।

'सुनो आरती...!'

मेरे कदम रुक गये...जैसे मेरी सांस भी रुक गई... धड़कन थम सी गई...

'जी...'

'मुझे पानी पिलायेंगी क्या...?

'जी...' मेरे चेहरे पर पसीना छलक उठा... मैं पीछे मुड़ी और रसोई के पास से लोटा भर लाई...मैंने अपने कांपते हाथ साहिल की तरफ़ बढा दिये... उसने जानबूझ कर के मेरा हाथ छू लिया।

और मेरे कांपते हाथों से लोटा छूट गया... मैंने अपनी बड़ी बड़ी आंखे ऊपर उठाई और साहिल की तरफ़ देखा...तो वो एक बार फिर मेरी आंखो में गुम सा हो गया... मैं भी एकटक उसे देखती रह गई... मन में चोर था... इसलिये साधारण व्यवहार भी कठिन लग रहा था।

साहिल का हाथ अपने आप ही मेरी ओर बढ़ गया... और उसने मेरे हाथ थाम लिये... मैं साहिल में खोने लगी... मेरे कांपते हाथों को उसने एकबारगी चूम लिया...

अचानक मेरी तन्द्रा टूटी... मैंने अपना हाथ खींच लिया...हाय...कहते हुये कमरे में भाग गई और दरवाज़ा बन्द कर लिया। दरवाजे पर खड़ी आंखें बन्द करके अपने आपको संयत करने लगी... जिन्दगी में ऐसा अहसास कभी नहीं हुआ था... मेरे पांव भी थरथराने लगे थे... मैं बिस्तर पर आकर लेट गई। नींद आंखों से कोसों दूर थी। देर तक जागती रही। समय देखा... रात के बारह बज रहे थे...

उस समय तो मैं पेशाब नहीं कर पाई थी सो मैंने इस बार सावधानी से दरवाजा खोला और इधर उधर देखा... सब शान्त था... मैं बाहर आ कर बाथरूम चली गई। बाहर निकली तो मुझे कमला के कमरे की लाईट जली नजर आई... और मुझे लगा कि साहिल भी वहीं है...

मैं दबे कदमों से उसी खिड़की के पास आई... अन्दर झांका तो साहिल पहली नजर में ही दिख गया। कमला साहिल की गोदी में दोनों पांव उठा कर लण्ड पर बैठी थी...शायद लण्ड चूत में घुसा हुआ था। दोनों मेरी ही बातें कर रहे थे...

'मां जी... कोई मौका निकाल दो ना... बस आरती को चोदने को मिल जाये...!'

'उह... ये थोड़ा सा बाहर निकालो... जड़ तक बैठा हुआ है... आरती तो बेचारी अब तक ठीक से चुदी भी नहीं है...!'

'कुछ तो करो ना...'

'अरे तू खुद ही कोशिश कर ले ना... जवान चूत है... पिघल ही जायेगी... फिर चुदने की उसे भी तो लगी होगी... ऐसा करना कि मुझे सवेरे काम से जाना है दोपहर तक आऊँगी...'

'तो क्या...!'

'अरे उसे दबोच लेना और चोद देना...फिर मैं तो हूँ ही...समझा दूंगी... हाय रे अन्दर बाहर तो कर ना...! चल बिस्तर पर आ जा...!'

कमला धीरे से उठी...साहिल का लम्बा सा लण्ड चूत से बाहर निकल आया...

हाय रे इतना मोटा और लम्बा लण्ड... मेरी चूत पनियाने लगी... उनके मुँह से मेरे बारे में बाते सुन कर एक बार फिर मेरी दिल की धड़कन बढ़ गई। दिल को तसल्ली मिली कि शायद कल मैं चुद जाऊँ... सोचने लगी कि जब साहिल मेरे साथ जबरदस्ती करेगा तो मैं चुदवा लूंगी और अपनी प्यास बुझा लूंगी।

पलंग की चरमराहट ने मेरा ध्यान भंग कर दिया, साहिल कमला पर चढ़ चुका था, उसका मोटा लण्ड उसकी चूत पर टिका था...

'चल अन्दर ठोक ना... लगा दे अब...' और फिर सिसक उठी, लण्ड चूत के भीतर प्रवेश कर चुका था।

मेरी चूत में से पानी की दो बूंदे टपक पड़ी... मैंने अपने पेटीकोट से अपनी चूत रगड़ कर साफ़ कर ली... मेरा मन पिघल उठा था... हाय रे कोई मुझे भी चोद दे... कोई भारी सा लण्ड से मेरी चूत चोद दे... मेरी प्यास बुझा दे...

अन्दर चुदाई जोरदार चालू हो चुकी थी। दोनों नंगी नंगी गालियो के साथ चुदाई कर रहे थे- हाय कमला... आज तो तेरी भोसड़ी फाड़ डालूंगा... क्या चिकनी चूत है...!'

'पेल हरामी... ठोक दे अपना लण्ड...चोद दे साले...' दोनों की मस्त चुदाई चलती रही... एक हल्की चीख के साथ कमला झड़ने लगी... मेरी नजरें उनकी चुदाई पर ही टिकी थी... साहिल भी अब अपना वीर्य कमला की चूत पर छोड़ रहा था।

मैं दबे पांव अपने कमरे में लौट आई... मेरी स्थिति अजीब हो रही थी। क्या सच में कल मैं चुद जाऊँगी...कैसा लगेगा... जम कर चुदवा लूंगी...

सोचते सोचते मेरी आंख जाने कब लग गई और मैं सपनों में खो गई......सपने में भी साहिल मुझे चोद रहा था... मुझ पर वीर्य बरसा रहा था... सब कुछ गीला गीला सा लगने लगा था...मेरी आंख खुल गई... मैं झड़ गई थी... मैंने अपनी चूत पेटीकोट से ही पोंछ डाली। सवेरा हो चुका था...

मैं जल्दी से उठी...और अपना गीला पेटीकोट बदला...और सुस्ताती हुई दरवाजा खोल कर बाहर आ गई...

सवेरे मैं सुस्ती में उठी... अलसाई सी बाहर बरामदे में आ गई और कसमसाते हुए दोनों हाथों को ऊपर उठाते हुए अपने बोबे को पूरा बाहर उभारते हुए अंगड़ाई ली... कि पीछे से एक सिसकारी सुनाई दी- आरती जी... ऐसी अंगड़ाई से तो मेरे दिल के टांके टूट जायेंगे...! गुड मॉर्निंग...!' साहिल मुसकराता हुआ बोला.

'हाय रे... आप यहाँ...?' मैं शरमा गई... दोनों हाथों से अपनी चूचियों को छिपाने लगी... पर रात की बातें मुझे याद आ रही थी। अब मैं भी कुछ करना चाहती थी... साहिल का सामना करना चाहती थी... शायद आज वो मेरे साथ जोर जबरदस्ती करे... पर इसके विपरीत मैं उसे रिझाना चाहती थी... पर मुझमें इतना साहस नहीं था... पर साहिल बेशरम था... एक के बाद एक मुझ पर तीर मारता गया... मुझे काम भी बनता नजर आने लगा... मैं मन मजबूत करके वहीं खड़ी रही.

'ज़रा हाथ नीचे करो ना... आपके वक्ष बहुत सुन्दर हैं... और सुन्दरता दिखाई जाती है... छुपाई नहीं जाती...!' मेरी चूचियों को निहारते हुए उसने कहा।

'हाय साहिल जी... ऐसे ना कहो... मुझे शरम लगती है...' मैंने अपने सीने से हाथ हटा कर चेहरा छुपा लिया।

वो मेरे पास आ गया और मेरे चेहरे को ऊपर उठा दिया...

'इस खूबसूरत चेहरे पर पर्दा न करो... ये बड़ी बड़ी आंखें... गोरा रंग... गुलाबी गाल... ये इकहरा बलखाता बदन... गजब की सुन्दरता... खुदा ने सारी खूबियाँ आप में डाल दी हैं...'

'हाय मैं मर जाऊँगी...' मैं सिमटती हुई बोली। उसकी बातें मुझे शहद से ज्यादा मीठी और सुहानी लग रही थी। मैं इस बात से बेखबर थी कि कमला अपने कमरे के बाहर खड़ी सुन कर मुस्करा रही थी.

'हाय... कश्मीर की वादियाँ भी इतनी सुन्दर नहीं होंगी जितनी सुडौल ये पहाड़ियाँ है... ये तराशा हुआ बदन... ये कमर... कही कोई अप्सरा उतर आई हो जैसे...' मैंने अपनी आखें बन्द किये ही अपने हाथ नीचे कर लिये... मेरे उभार अब उसके सामने थे। साहिल मेरे बहुत नज़दीक आ गया था... अब मुझसे सहन नहीं हो रहा था... मैं घबरा उठी।

'हाय राम जी...!' मैं कहती हुई मुड़ी और भागने के ज्यों ही कदम बढ़ाया मैं कमला से टकरा गई।

'हाय राम... मां जी... आप...?'

'जरा सम्हल कर आरती... गिर जायेगी...! सुन मैं ज़रा काम से बाज़ार जा रही हूँ... साहिल को चाय नाश्ता और खाना खिला देना... देखना कुछ कमी न हो... एक बजे तक आ जाऊँगी...' मुस्कुराती हुई आगे बढ़ गई।

साहिल ने फिर एक तीर छोड़ा- भरी जवानी... जवान जिस्म... तड़पती अदायें... किसके लिये हैं...'

मैंने देखा कमला जा चुकी थी। अब हम दोनों घर में अकेले थे... और कमला ने जब साहिल को छूट दे दी थी तो मुझे भी उसका फ़ायदा उठा लेना था।

'कहाँ से सीखा... ये सब...'

'जब से आप जैसी सुन्दरी देखी... दिल की बात जबान पर आ गई...' मैं अब चलती हुई अपने कमरे में आ गई... साहिल भी अन्दर आ गया... मैंने चुन्नी उठाई और सीने पर डालने ही वाली थी कि उसने चुन्नी खींच ली... इसे अभी दूर ही रहने दो... और दो कदम आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया...

'ये क्या कर रहे है आप... छोड़ दीजिये ना...' मैं सिमटने लगी... हाथ छुड़ाने की असफ़ल कोशिश करने लगी।

'आरती... प्लीज... आप बहुत अच्छी हैं... बस एक बार मुझे किस करने दो... फिर चला जाऊँगा...' उसने अब मेरी कमर में हाथ डाल दिया। नीचे से उसका पजामा तम्बू बन चुका था... मेरी चूत भी गीली होने लगी थी। मैं बल खा गई और कसमसाने लगी... शर्म से मैं लाल हो उठी थी। मेरा बदन भी आग हो रहा था।

'साहिल... देख... ना कर... मैं मर जाऊँगी...' मैंने नखरे दिखाते हुए, बल खा कर उसके बदन से अपना बदन सहलाने लगी... और उसे धकेलने लगी

'आरती... देख तेरे सूखे हुए होंठ... तड़पता हुआ बदन... आजा मेरे पास आजा... तेरे जिस्म में तरावट आ जायेगी...'

'साहिल... मैं पराई हूँ... मैं शादीशुदा हूँ... ये पाप है...' उसे नखरे दिखाते हुए मैं शरम से दोहरी होने लगी...

'आरती तेरे सारे पाप मेरे ऊपर... तुझे पराई से अपना ही तो बना रहा हूँ...' उसने अपना लण्ड मेरे चूतड़ो पर गड़ा दिया...

'साहिल सम्हालो अपने आप को... दूर रखो अपने को...' अब तो वस्तव में मुझे पसीना लगा था। मेरा बदन सिहर उठा था। कमला की रात वाली चुदाई मेरी आंखो के सामने घूमने लगती थी। मुझे लगा कि ये अपना लण्ड मेरी चूत में अब तो घुसेड़ ही देगा। मेरी चूतड़ो की दरार में उसका लण्ड फ़ंसता सा लगा। लण्ड का साईज़ तक मुझे महसूस होने लगी थी। मैंने घूम कर साहिल के चेहरे की तरफ़ देखा। उसके चेहरे पर मधुरता थी... मिठास थी... मुस्कुराहट थी... लगता था कि वो मुझ पर किस कदर मर चुका था।

मैं शरम के मारे मरी जा रही थी। मुझे उसने प्यार से चूम लिया। मैंने उसकी बाहों में अपने आप को ढीला छोड़ दिया... चूतड़ो को भी ढीला कर दिया। उसने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींच लिया... मेरे साथ उसका पजामा भी नीचे आ गिरा... उसने मेरा ब्लाऊज धीरे से खोल कर उतार दिया... मेरी छोटी छोटी पर कड़ी चूंचिया कठोर हो गई... उसने मेरे दोनों कबूतर पकड़ लिये... हम दोनों अब पूरे नंगे थे।

मैं उसकी बाहों में कसमसा उठी। मैं सामने बिस्तर पर हाथ रख कर दोहरी होती गई और सिमटती गई... पर झुकने से मेरी गांड खुल गई और उसका लण्ड मेरी दरारो में समाता चला गया... यहाँ तक कि अन्दर के फूल को भी गुदगुदा दिया।

मुझे एकाएक फूल पर ठंडा सा लगा... साहिल ने अपने थूक को मेरे गाण्ड के फ़ूल पर भर दिया था। लगा कि चिकना सुपाड़ा फ़ूल के अन्दर घुस चुका था। मेरे मुख से आह निकल गई... मेरी दुबली पतली काया... गोरी गोरी सुन्दर सी गोल गोल गाण्ड... मेरी प्यासी जवानी अब चुदने वाली थी।

'हाय रे आरती... कितनी चिकनी है रे... ये गया...' लण्ड मेरी गाण्ड के अन्दर सरकता चला गया... मेरे दिल में चैन आ गया... चुदाई के साथ सथ ही मेरे शरीर में चुदाई की झुरझुरी भी आने लगी थी कि आखिर चुदाई शुरू हो ही गई।

उसके हाथ मेरी पीठ को सहलाते हुये बोबे तक पहुंच गये थे... और अब... हाय रे... उसने मेरी छाती मसल डाली... मैं शरम से सिकुड़ सी गई... मैं धीरे धीरे बिस्तर पर पसर गई... मैंने अब हिम्मत करके शरम छोड़ दी।

अब मैंने मेरी दोनों टांगे खोल दी... पूरी चौड़ा दी... उसे मेरी गाण्ड मारने में पूरी सहूलियत दे दी... अब मेरे चूतड़ो को मसलता... थपथपाता... नोचता... खींचता हुआ गाण्ड चोद रहा था... मुझे मस्ती चढती जा रही थी। अपनी मुठ्ठियो में तकिये को भींच रही थी। दांतो से अपने होंठो को काट रही थी... और पलंग़ धक्को के साथ हिल रहा था।

अब वो मेरे पर लेट गया था... उसका पूरा भार मेरी पीठ पर था... और कमर हिला हिला कर धक्के मार रहा था। मेरी गाण्ड चुदी जा रही थी। मेरे मुख से बार बार आहें निकल पड़ती थी।

'मेरी जानू... अब बस... अब तेरी चूत की बारी है...' और अपना लण्ड गाण्ड से धीरे से निकाला और चूत का निशाना साध लिया। मुझे एकाएक अपनी चूत पर चिकने सुपाड़े की गुदगुदी हुई और मेरी चूत ने लण्ड के स्वागत में अपने दोनों पट खोल दिये... और लण्ड अकड़ता हुआ तीर की तरह अन्दर बढ चला।

'मां रीऽऽऽऽ आऽऽऽह... चल... घुस जा... राम जी रे...' मेरा मन और आत्मा तक को शांति मिलने लगी... लण्ड चूत की गहराई तक घुसता चला गया... और जड़ तक को छू लिया। दर्द उठने लगा... पर मजा बहुत आ रहा था। चूत को फ़ाड़ता हुआ दूसरे धक्के ने मेरे मुख से जबरदस्त चीख निकाल दी... मेरी चूत से खून बह निकला...

'हाय... साहिल देख बहुत दर्द हो रहा है... धीरे कर ना...'

'हाय रे मेरी बच्ची को मार देगा क्या...' कमला की पीछे से आवाज आई... मैं घबरा उठी... ये कहाँ से आ गई...

'नहीं वो धक्का जोर से लग गया गया था... बस...'

'आरती... मेरी बच्ची... मैं हूँ यहाँ... आराम से चुदवा ले...' कमला ने हम दोनों को ठीक से लेटाया और तौलिए से खून साफ़ किया और मेरी चूत पर क्रीम लगाई...

'अरे... गाण्ड भी मार दी क्या...' मेरे पांव उपर करके गान्ड में भी चिकनाई लगा दी।

'अब ठीक है... चलो शुरु हो जाओ...' अब साहिल मेरे दोनों पांवो के बीच में आ गया और लण्ड को चूत में उतार दिया... चिकनी चूत में लण्ड मानो फ़िसलता हुआ... आराम से पूरा बैठ गया। मुझे बड़ा सुकून मिला। अब चुदाई बहुत प्यारी लग रही थी।

कमला भी अब मेरे बोबे सहला रही थी। रह रह कर वो साहिल की गाण्ड भी सहला देती थी थी और अपना थूक लगा कर अंगुलि को उसकी गाण्ड में डाल देती थी। इस प्रक्रिया से साहिल बहुत उत्तेजित हो जाता था।

अब कमला ने साहिल की गाण्ड को अंगुली से चोदना चालू कर दिया था। उसके धक्के भी बढ़ गये थे... मेरी चुदाई मन माफ़िक हो रही थी मेरा जिस्म बिजली से भर उठा था... बदन कसावट में आ चुका था, सारी दुनिया मुझे चूत में सिमटती नजर आ रही थी। लगा कि सारी तेजी... सारी बिजलियाँ... सारा खून मेरी चूत के रास्ते बाहर आ जायेगा... और... और...

'मां री ऽऽऽऽऽ... हाऽऽऽऽय रे... मर गई...'

'बस... बस... बेटी... हो गया... निकाल दे... झड़ जा...' कमला प्यार से मेरे उरोजो को सहलाते हुए झड़ने में मदद करने लगी...

'मम्मी... मैं गई... ईईऽऽऽऽऽऽऽ... आईईईइऽऽऽऽ... मेरे राम जी...' और मैं जोर से झड़ गई...

'अरे धीरे चोद ना... देख वो झड़ रही है...' उसकी चुदाई धीमी हो गई... ऐसे में झड़ना बहुत सुहाना लग रहा था... पर साहिल जोर लगाने की कोशिश कर रहा था।

कमला ने उसकी कमर थाम रखी थी कही वो झटका ना मार दे। मैंने साहिल का लण्ड बाहर निकाल दिया और करवट ले कर लेट गई। कमला ने उसका लण्ड हाथ में भरा और जोर से रगड़ कर मुठ मारा और 'ओ मां की चुदी... मैं मर गया... हाय निकाल दिया रे भोसड़ी की...' और पिचकारी छोड़ दी...

'देख इस मां के लौड़े को... पिचकारी देख...' मैंने अपना मुख दोनों हाथो से छुपा लिया। वो झड़ता रहा... और एक तरफ़ बैठ गया।

मैंने जल्दी से पेटीकोट उठाया... पर कमला ने छीन लिया...

'अभी और चुद ले... अपने पिया तो परदेस में है... सैंया से ठुकवा ले... अभी उनके आने में बहुत महीने हैं...'

'मांऽऽऽ... तुम बहुत... बहुत... बहुत अच्छी हो'... प्यार से मैं मां के गले लग गई।

मन में आया कि पिया भले ही परदेस में हो... हम माँ बेटी तो साहिल के जिस्म से अपनी चूत की आग तो शांत ही कर सकती है ना...

साहिल एक बार और मेरे पर चढ़ गया... मैंने भी अपने पांव चौड़ा दिये... उसका कठोर लण्ड एक बार फिर से मेरी नरम नरम चूत को चोदने लग गया, लगा मेरी महीनों की प्यास बुझा देगा।

'बेटी मैं तो जवानी से ही ऐसे काम चला रही हूँ... खाड़ी के देश गये हैं... इस खड्डे को तो फिर पड़ोसी ही चोदेंगे ना...'

'मां अब चुप हो जा... चुदने दे ना...' मुझे उनका बोलना अच्छा नहीं लग रहा था... रफ़्तार तेज हो उठी थी... सिसकियों से कमरा गूंज उठा...

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