Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereऔर अगर वो भी राज़ी नहीं हुई तो अपनी सास की चूत का भोसड़ा बना दूँगा।
घर पहुँचने पर रिंकी ने दरवाजा खोला... मेरी नज़र सबसे पहले उसके भोले-भाले मासूम चेहरे पर गई.. फिर टी-शर्ट के नीचे ढकी हुई उसकी नन्हीं सी चूचियों पर गया।
फिर मैंने उसकी टाँगों के बीच चड्डी में छुपी हुए छोटी सी मक्खन जैसी मुलायम बुर पर चला गया।
मुझे अपनी ओर अजीब नज़रों से देखते हुए रिंकी ने पूछा- क्या बात है जीजू.. ऐसे क्यों देख रहे हैं?
मैंने कहा- कुछ नहीं.. मैं थोड़ा लड़खड़ाते कदमों से अन्दर आया।
अन्दर मैंने देखा रिंकी शायद बियर पी रही थी।
घर पर और कोई दिख नहीं रहा था.. टिन बियर के टिन खाली दिखाई दे रहे थे।
मैंने रिंकी को देखा तो वो मस्त लग रही थी... नशे के खुमार में थी।
मैंने पूछा- नीलम और मम्मी कहाँ हैं?
वो बोली- वे दोनों मामा जी के घर पर गए हुए हैं.. जरा देर से लौटेंगे... क्या बात है?
मैंने कहा- बस ऐसे ही... तबियत कुछ खराब हो गई है... हाथ-पैर में थोड़ा दर्द है... सोचा था कि नीलम से कुछ..
रिंकी बोली- आपने कोई दवा ली या नहीं?
'अभी नहीं..' मैंने जबाब दिया और फिर अपने कमरे में जाकर लुंगी पहन कर बिस्तर पर लेट गया।
थोड़ी देर बाद रिंकी आई और बोली- कुछ चाहिए जीजू?
मेरे मन में तो आया कि कह दूँ.. 'साली मुझे चोदने के लिए तुम्हारी चूत चाहिए..' पर मैं ऐसा कह नहीं सकता था।
मैंने कहा- रिंकी मेरे पैरों में बहुत दर्द हो रहा है... थोड़ा तेल लाकर मालिश कर दोगी प्लीज़...
'ठीक है जीजू..' कह कर रिंकी चली गई और फिर थोड़ी देर में एक कटोरी में तेल लेकर वापस आ गई।
वो बिस्तर पर बैठ गई और मेरे दाहिने टाँग से लुंगी को घुटने तक उठा कर मालिश करने लगी।
अपनी साली के नाज़ुक हाथों का स्पर्श पाकर मेरा लण्ड तुरन्त ही कठोर होकर खड़ा हो गया।
थोड़ी देर बाद हाथ फिरवाने के बाद मैंने कहा- रिंकी ज़्यादा दर्द तो जाँघों में है... थोड़ा घुटने के ऊपर भी तेल मालिश कर दे।
'जी जीजू..' कह कर रिंकी ने लुंगी को जाँघों पर से हटाना चाहा।
तभी जानबूझ कर मैंने अपना बांया पैर ऊपर उठाया जिससे मेरा फनफनाया हुआ खड़ा लण्ड लुंगी के बाहर हो गया।
मेरे लण्ड पर नज़र पड़ते ही रिंकी सकपका गई।
कुछ देर तक वो मेरे लण्ड को कनखियों से मस्ती से देखती रही.. मेरा तन्नाया हुआ लौड़ा देख कर उसकी चूत में भी चींटियाँ तो निश्चित रेंगने लगी होंगी।
फिर वो उसे लुंगी से ढकने की कोशिश करने लगी।
लेकिन लुंगी मेरी टाँगों से दबी हुई थी इसलिए वो उसे ढक नहीं पाई।
तभी जानबूझ कर मैंने अपना बांया पैर ऊपर उठाया जिससे मेरा फनफनाया हुआ खड़ा लण्ड लुंगी के बाहर हो गया।
मेरे लण्ड पर नज़र पड़ते ही रिंकी सकपका गई।
कुछ देर तक वो मेरे लण्ड को कनखियों से मस्ती से देखती रही.. मेरा तन्नाया हुआ लौड़ा देख कर उसकी चूत में भी चींटियाँ तो निश्चित रेंगने लगी होंगी।
फिर वो उसे लुंगी से ढकने की कोशिश करने लगी लेकिन लुंगी मेरी टाँगों से दबी हुई थी इसलिए वो उसे ढक नहीं पाई।
मैंने मौका देख कर पूछा- क्या हुआ रिंकी?
'जी जीजू... आपका अंग दिख रहा है..' रिंकी ने सकुचाते हुए कहा।
'अंग.. कौन सा अंग?' मैंने अंजान बन कर पूछा।
जब रिंकी ने कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने अंदाज से अपने लण्ड पर हाथ रखते हुए कहा- अरे.. ये कैसे बाहर निकल गया...!
फिर मैंने कहा- साली जी.. जब तुमने देख ही लिया तो क्या शरमाना.. अब थोड़ा तेल लगा कर इसकी भी मालिश कर दो..
मेरी बात सुन कर रिंकी घबरा गई और शरमाते हुए बोली- जीजू.. कैसी बात करते हैं... जल्दी से ढकिए इसे..
'देखो.. रिंकी ये भी तो शरीर का एक अंग ही है.. तो फिर इसकी भी कुछ सेवा होनी चाहिए ना... इसमें ही तो काफ़ी दम होता है.. इसकी भी मालिश कर दो...' मैंने इतनी बात बड़े ही मासूमियत से कह डाली।
'लेकिन जीजू.. मैं तो आपकी साली हूँ, मुझसे ऐसा काम करवाना तो पाप होगा।'
'ठीक है रिंकी.. अगर तुम अपने जीजू का दर्द नहीं समझ सकती और पाप--पुण्य की बात करती हो.. तो जाने दो।' मैंने उदासी भरे स्वर में कहा।
'मैं आपको दुखी नहीं देख सकती जीजू... आप जो कहेंगे.. मैं करूँगी...' मुझे उदास होते देख कर रिंकी भावुक हो गई थी... उसने अपने हाथों में तेल चिपुड़ कर मेरे खड़े लण्ड को पकड़ लिया।
अपने लण्ड पर रिंकी के नाज़ुक हाथों का स्पर्श पाकर.. वासना की आग में जलते हुए मेरे पूरे शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई। मैंने रिंकी की कमर में हाथ डाल कर उसे अपने से सटा लिया।
'बस मेरी साली.. ऐसे ही सहलाती रहो... बहुत आराम मिल रहा है...' मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा।
थोड़ी ही देर में मेरा पूरा जिस्म वासना की आग में जलने लगा।
मेरा मन बेकाबू हो गया.. मैंने रिंकी की बाँह पकड़ कर उसे अपने ऊपर खींच लिया।
उसकी दोनों चूचियाँ मेरी छाती से चिपक गईं।
मैं उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में लेकर उसके होंठों को चूमने लगा।
रिंकी को मेरा यह प्यार शायद समझ में नहीं आया.. वो कसमसा कर मुझसे अलग होते हुए बोली- जीजू ये आप क्या कर रहे हैं?
'रिंकी आज मुझे मत रोको... आज मुझे जी भर कर प्यार करने दो... देखो तुम भी प्यासी हो.. मैं यह जानता हूँ... तुम भी अपने पति से काफ़ी समय से दूर रह रही हो।'
'लेकिन जीजू... क्या कोई जीजा अपनी साली को ऐसे प्यार करता है?'
रिंकी ने आश्चर्य से पूछा।
'साली तो आधी घरवाली होती है और जब तुमने घर संभाल लिया है तो मुझे भी अपना बना लो... मैं औरों की बात नहीं जानता.. पर आज मैं तुमको हर तरह से प्यार करना चाहता हूँ.. तुम्हारे हर एक अंग को चूमना चाहता हूँ... प्लीज़ आज मुझे मत रोको रिंकी...' मैंने अनुरोध भरे स्वर मे कहा।
'मगर जीजू.. जीजा-साली के बीच ये सब तो पाप है..' रिंकी ने कहा।
'पाप-पुण्य सब बेकार की बातें हैं.. साली जी.. जिस काम से दोनों को सुख मिले और किसी का नुकसान ना हो.. वो पाप कैसे हो सकता है?'
वो बोली- पर जीजू, अगर किसी को पता चल गया तो गजब हो जाएगा...
मैंने कहा- यह सब तुम मुझ पर छोड़ दो... मैं तुम्हें कोई तकलीफ़ नहीं होने दूँगा।
मैंने उसे भरोसा दिलाया।
रिंकी कुछ देर गुमसुम सी बैठी रही तो मैंने पूछा- बोलो साली.. क्या कहती हो?
'ठीक है जीजू.. आप जो चाहे कीजिए... मैं सिर्फ़ आपकी खुशी चाहती हूँ।'
मेरी साली का चेहरा शर्म से और मस्ती से लाल हो रहा था। रिंकी की स्वीकृति मिलते ही मैंने उसके नाज़ुक बदन को अपनी बाँहों में भींच लिया और उसके पतले-पतले गुलाबी होंठों को चूसने लगा।
मैं अपने एक हाथ को उसके टी-शर्ट के अन्दर डाल कर उसकी छोटी-छोटी अमरूद जैसी चूचियों को हल्के-हल्के सहलाने लगा।
फिर उसके निप्पल को चुटकी में लेकर मसलने लगा।
थोड़ी ही देर में रिंकी को भी मज़ा आने लगा और वो 'स्सशी... शी.. ई..' करने लगी।
'मज़ा आ रहा है जीजू... आहह... और कीजिए.. बहुत अच्छा लग रहा है..'
अपनी साली की मस्ती को देख कर मेरा हौसला और बढ़ गया।
हल्के विरोध के बावजूद मैंने रिंकी की टी-शर्ट उतार दी और उसकी एक चूची को मुँह में लेकर चूसने लगा।
दूसरी चूची को मैं हाथों में लेकर धीरे-धीरे दबा रहा था।
रिंकी को अब पूरा मज़ा आने लगा था।
वह धीरे-धीरे बुदबुदाने लगी- ओह... आ... मज़ा आ रहा है जीजू.. और ज़ोर-ज़ोर से मेरी चूची को चूसिए.. उई... आपने ये क्या कर दिया.. ओह...जीजू...
अपनी साली को पूरी तरह से मस्त होते देख कर मेरा हौसला बढ़ गया।
मैंने कहा- रिंकी मज़ा आ रहा है ना?
'हाँ जीजू.. बहुत मज़ा आ रहा है... आप बहुत अच्छी तरह से चूची चूस रहे हैं.. अईईईई हाय नीलम तो पागल है.. हाय बड़ा मज़ा आ रहा हाय...' रिंकी ने मस्ती में कहा।
'अब तुम मेरा लण्ड मुँह में लेकर चूसो और ज़्यादा मज़ा आएगा..' मैंने रिंकी से कहा।
'ठीक है जीजू...'
वो मेरे लण्ड को मुँह में लेने के लिए अपनी गर्दन को झुकाने लगी..
तो मैंने उसकी बाँह पकड़ कर उसे इस तरह लिटा दिया कि उसका चेहरा.. मेरे लण्ड के पास और उसके चूतड़ मेरे चेहरे की तरफ हो गए।
वो मेरे लण्ड को मुँह में लेकर आइसक्रीम की तरह मज़े से चूसने लगी।
उसने पहले ही अपनी सौतेली माँ को इस मूसल से चुदते हुए देखा था इस लिए उसे डर नहीं लग रहा था।
मेरे पूरे शरीर में हाय वॉल्टेज का करंट दौड़ने लगा, मैं मस्ती में बड़बड़ाने लगा।
'हाँ रिंकी मेरी जान.. हाँ.. शाबाश.. बहुत अच्छा चूस रही हो.. और अन्दर लेकर चूसो...'
रिंकी और तेज़ी से लण्ड को मुँह के अन्दर-बाहर करने लगी।
मैं समझ गया कि वो कितनी प्यासी होगी.. मैं भी मस्ती में पागल होने लगा।
मैंने उसकी स्कर्ट और चड्डी दोनों को एक साथ खींच कर टाँगों से बाहर निकाल कर अपनी साली को पूरी तरह नंगी कर दिया और फिर उसकी टाँगों को फैला कर उसकी चूत को देखने लगा।
वाह.. क्या चूत थी.. बिल्कुल मक्खन की तरह चिकनी और मुलायम... उसकी चूत पर झांटों का नामो-निशान नहीं था।
लगता था कल की चुदाई देख कर वो मतवाली हो चुकी थी और अपनी चूत को आज नहाते वक्त ही साफ़ की होगी।
मैंने अपना चेहरा उसकी जाँघों के बीच घुसा दिया और उसकी नन्हीं सी बुर पर अपनी जीभ फेरने लगा। चूत पर मेरी जीभ की रगड़ से रिंकी का शरीर गनगना गया।
उसका जिस्म मस्ती में कांपने लगा.. वह बोल उठी- हाय जीजू... यह आप क्या कर रहे हैं.. मेरी चूत क्यों चाट रहे हैं... आहह... मैं पागल हो जाऊँगी... ओह... मेरे अच्छे जीजू... हाय... मुझे ये क्या होता जा रहा है..!
रिंकी मस्ती में अपनी कमर को ज़ोर-ज़ोर से आगे-पीछे करते हुए मेरे लण्ड को चूस रही थी।
उसके मुँह से थूक निकल कर मेरी जाँघों को गीला कर रहा था।
मैंने भी चाट-चाट कर उसकी चूत को थूक से तर कर दिया था।
करीब दस मिनट तक हम जीजा-साली ऐसे ही एक-दूसरे को चूसते-चाटते रहे।
हम लोगों का पूरा बदन पसीने से भीग चुका था...
अब मुझसे सहा नहीं जा रहा था, मैंने कहा- रिंकी मेरी साली.. मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं होता.. तू सीधी होकर अपनी टाँगें फैला कर लेट जा... अब मैं तुम्हारी चूत में लण्ड घुसा कर तुम्हें चोदना चाहता हूँ..
मेरी इस बात को सुन कर रिंकी डर गई..
उसने अपनी टाँगें सिकोड़ कर अपनी बुर को छुपा लिया और घबरा कर बोली- नहीं जीजू.. प्लीज़ ऐसा मत कीजिए.. मेरी चूत बहुत छोटी है और आपका लण्ड बहुत लंबा और मोटा है.. मेरी बुर फट जाएगी और मैं मर जाऊँगी...
मैंने कहा- डर क्यों रही हो.. तुम तो शादी-शुदा हो... अपने पति का लंड खा चुकी हो।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
वो डरते हुए बोली- जीजू उनका इतना बड़ा नहीं है जितना आप का है..
मैंने कहा- बड़ा-छोटा कुछ नहीं होता लंड अपनी जगह खुद बना लेता है। प्लीज़ तुम इस ख्याल को अपने दिमाग़ से निकाल दो.. डरने की कोई बात नहीं है रिंकी... मैं तुम्हारा जीजा हूँ और तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ, मेरा विश्वास करो.. मैं बड़े ही प्यार से धीरे-धीरे चोदूँगा और तुम्हें कोई तकलीफ़ नहीं होने दूँगा।
मैंने उसके चेहरे को हाथों में लेकर उसके होंठों पर एक प्यार भरा चुंबन जड़ते हुए कहा।
'लेकिन जीजू.. आपका इतना मोटा मूसल जैसा लण्ड मेरी छोटी सी बुर में कैसे घुसेगा?' रिंकी ने घबराए हुए स्वर में पूछा।
'इसकी चिंता तुम छोड़ दो रिंकी और अपने जीजू पर भरोसा रखो... मैं तुम्हें कोई तकलीफ़ नहीं होने दूँगा...'
मैंने उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए भरोसा दिलाया।
'मुझे आप पर पूरा भरोसा है जीजू.. फिर भी बहुत डर लग रहा है... पता नहीं.. क्या होने वाला है..'
रिंकी का डर कम नहीं हो पा रहा था। मैंने उसे फिर से ढांढस बंधाया।
'मेरी प्यारी साली.. अपने मन से सारा डर निकाल दो और आराम से पीठ के बल लेट जाओ... मैं तुम्हें बहुत प्यार से चोदूँगा.. बहुत मज़ा आएगा...'
'ठीक है जीजू.. अब मेरी जान आपके हाथों में है।'
रिंकी इतना कह कर पलंग पर सीधी होकर लेट गई.. लेकिन उसके चेहरे से भय साफ़ झलक रहा था।
'मुझे आप पर पूरा भरोसा है जीजू.. फिर भी बहुत डर लग रहा है... पता नहीं.. क्या होने वाला है..।'
रिंकी का डर कम नहीं हो पा रहा था।
मैंने उसे फिर से ढांढस बंधाया- मेरी प्यारी साली.. अपने मन से सारा डर निकाल दो और आराम से पीठ के बल लेट जाओ... मैं तुम्हें बहुत प्यार से चोदूँगा.. बहुत मज़ा आएगा...'
'ठीक है जीजू.. अब मेरी जान आपके हाथों में है।' रिंकी इतना कह कर पलंग पर सीधी होकर लेट गई.. लेकिन उसके चेहरे से भय साफ़ झलक रहा था।
मैंने पास की ड्रेसिंग टेबल से वैसलीन की शीशी उठाई, फिर उसकी दोनों टाँगों को खींच कर पलंग से बाहर लटका दिया।
रिंकी डर के मारे अपनी चूत को जाँघों के बीच दबा कर छुपाने की कोशिश कर रही थी।
मैंने उन्हें फैला कर चौड़ा कर दिया और उसकी टाँगों के बीच खड़ा हो गया।
अब मेरा तना हुआ लण्ड रिंकी की छोटी सी नाज़ुक चूत के करीब हिचकोले मार रहा था।
मैंने धीरे से वैसलीन लेकर उसकी चूत में और अपने लण्ड पर लगा ली ताकि लण्ड घुसाने में आसानी हो।
अब सारा मामला सैट हो चुका था.. अपनी कमसिन साली की मक्खन जैसी नाज़ुक बुर को चोदने का मेरा दिली ख्वाब पूरा होने वाला था।
मैं अपने लण्ड को हाथ से पकड़ कर उसकी चूत पर रगड़ने लगा।
कठोर लण्ड की रगड़ खाकर थोड़ी ही देर में रिंकी की फुद्दी का दाना कड़ा हो कर तन गया। वो मस्ती में कांपने लगी और अपने चूतड़ों को ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगी।
'बहुत अच्छा लग रहा है जीजू... ओहह... ऊ... ओह... ऊओह.. आह.. बहुत मज़ा आआअरहा है... और रगड़िए जीजू... तेज-तेज रगड़िए...'
वो मस्ती से पागल होने लगी थी और अपने ही हाथों से अपनी चूचियों को मसलने लगी थी। मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा था।
मैं बोला- मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा है मेरी साली जान... बस ऐसे ही साथ देती रहो... आज मैं तुम्हें चोद कर पूरी औरत बना दूँगा।
मैं अपना लण्ड वैसे ही लगातार उसकी चूत पर रगड़ता जा रहा था।
वो फिर बोलने लगी, 'हाय जीजू.. ये आपने क्या कर दिया... ऊऊओ... मेरे पूरे बदन में करंट दौड़ रहा है.. मेरी चूत के अन्दर आग लगी हुई है जीजू... अब सहा नहीं आता... ऊह जीजू... मेरे अच्छे जीजू... कुछ कीजिए ना.. मेरी चूत की आग बुझा दीजिए... अपना लण्ड मेरी बुर में घुसा कर चोदिए जीजू... प्लीज़... जीजू... चोदो मेरी चूत को...'
'लेकिन रिंकी.. तुम तो कह रही थीं कि मेरा लण्ड बहुत मोटा है.. तुम्हारी बुर फट जाएगी... अब क्या हो गया?'
मैंने यूँ ही प्रश्न किया।
'ओह जीजू.. मुझे क्या मालूम था कि चुदाई में इतना मज़ा आता है.. आहह.. अब और बर्दाश्त नहीं होता...' रिंकी अपनी कमर को उठा-उठा कर पटक रही थी।
मैं अपना सुपारा उसके भगनासे पर लगातार घिस कर उसकी उत्तेजना को बढ़ा रहा था।
'हाय जीजू.... ऊऊहह.. मेरी चूत के अन्दर आग लगी है.. अब देर मत कीजिए... अब लण्ड घुसा कर चोदिए अपनी साली को... घुसेड़ दीजिए अपने लण्ड को मेरी बुर के अन्दर... फट जाने दीजिए इसको... कुछ भी हो जाए मगर जल्दी चोदिए मुझे..'
रिंकी पागलों की तरह बड़बड़ाने लगी थी।
मैं समझ गया.. लोहा गरम है इसी समय चोट करना ठीक रहेगा।
मैंने अपने फनफनाए हुए कठोर लण्ड को उसकी चूत के छोटे से छेद पर अच्छी तरह सैट किया।
उसकी टाँगों को अपने पेट से सटा कर अच्छी तरह जकड़ लिया और एक ज़ोरदार धक्का मारा.. अचानक रिंकी के गले से एक तेज चीख निकली।
'आआआह्ह्ह... बाप रेईईई... मर गई मैं... निकालो जीजू... बहुत दर्द हो रहा है... बस करो जीजू... मुझे नहीं चुदवाना है.. मेरी चूत फट गई जीजू... छोड़ दीजिए मुझे अब... मेरी जान निकल रही है..'
रिंकी दर्द से बहाल होकर रोने लगी थी। मैंने देखा.. मेरे लण्ड का सुपाड़ा उसकी चूत को फाड़ कर अन्दर घुस गया था और अन्दर से खून भी निकल रहा था।
अपनी दुलारी साली को दर्द से बिलबिलाते देख कर मुझे दया तो बहुत आई लेकिन मैंने सोचा अगर इस हालत में मैं उसे छोड़ दूँगा तो वो दुबारा फिर कभी इसके लिए राज़ी नहीं होगी।
मैंने उसे हौसला देते हुए कहा- बस मेरी साली जान.. थोड़ा और दर्द सह लो... पहली बार चुदवाने में दर्द तो सहना ही पड़ता है... एक बार रास्ता खुल गया.. तो फिर मज़ा ही मज़ा है...'
मैं रिंकी को धीरज देने की कोशिश कर रहा था, मगर वो दर्द से छटपटा रही थी।
'नहीं मैं मर जाऊँगी जीजू... प्लीज़ मुझे छोड़ दीजिए... बहुत ज़्यादा दर्द हो रहा है.. प्लीज़ जीजू.... निकाल लीजिए अपना लण्ड...'
रिंकी ने गिड़गिड़ाते हुए अनुरोध किया.. लेकिन मेरे लिए ऐसा करना मुमकिन नहीं था।
मेरी साली रिंकी दर्द से रोती बिलखती रही और मैं उसकी टाँगों को कस कर पकड़े हुए अपने लण्ड को धीरे-धीरे आगे-पीछे करता रहा।
थोड़ी-थोड़ी देर पर मैं लण्ड का दबाव थोड़ा बढ़ा देता था ताकि वो थोड़ा और अन्दर चला जाए।
इस तरह से रिंकी तकरीबन 15 मिनट तक तड़पती रही और मैं लगातार धक्के लगाता रहा।
कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि मेरी साली का दर्द कुछ कम हो रहा था।
दर्द के साथ-साथ अब उसे मज़ा भी आने लगा था.. क्योंकि अब वो अपने चूतड़ों को बड़े ही लय-ताल में ऊपर नीचे करने लगी थी।
उसके मुँह से अब 'कराह' के साथ-साथ मीठी सिसकारियाँ भी निकलने लगी थीं।
मैंने पूछा- क्यों मेरी साली जान.. अब कैसा लग रहा है.. क्या दर्द कुछ कम हुआ?
'हाँ जीजू.. अब थोड़ा-थोड़ा अच्छा लग रहा है... बस धीरे-धीरे धक्के लगाते रहिए.. ज़्यादा अन्दर मत घुसाइएगा... बहुत दुखता है।' रिंकी ने हाँफते हुए स्वर में कहा।
'ठीक है साली जान.. तुम अब चिंता छोड़ दो... अब चुदाई का असली मज़ा आएगा..'
मैं हौले-हौले धक्के लगाता रहा... कुछ ही देर बाद रिंकी की चूत गीली होकर पानी छोड़ने लगी।
मेरा लण्ड भी उसके चूतरस से सन कर अब कुछ आराम से अन्दर-बाहर होने लगा था।
हर धक्के के साथ 'फॅक-फॅक' की आवाज़ आनी शुरू हो गई।
मुझे भी अब ज़्यादा मज़ा मिलने लगा था... रिंकी भी मस्त हो कर चुदाई में मेरा सहयोग देने लगी थी।
वो बोल रही थी, 'अब अच्छा लग रहा है जीजू.. अब मज़ा आ रहा है... ओह जीजू... ऐसे ही चोदते रहिए.... और अन्दर घुसा कर चोदिए जीजू.... आहह.. आपका लण्ड बहुत मस्त है जीजू जी... बहुत सुख दे रहा है...।'
रिंकी मस्ती में बड़बड़ाए जा रही थी।
मुझे भी बहुत आराम मिल रहा था।
मैंने भी चुदाई की रफ़्तार बढ़ा दी, तेज़ी से धक्के लगाने लगा।
अब मेरा लगभग पूरा लण्ड रिंकी की चूत में जा रहा था.. मैं भी मस्ती के सातवें आसमान पर पहुँच गया और मेरे मुँह से मस्ती के शब्द फूटने लगे।
'हाय रिंकी.. मेरी प्यारी साली.. मेरी जान... आज तुमने मुझसे चुदवा कर बहुत बड़ा उपकार किया है... हाँ साली जान... तुम्हारी चूत बहुत कसी हुई है.... बहुत मस्त है... तुम्हारी चूची भी बहुत कसी-कसी है.. ओह... तुम्हें चोदने में बहुत मज़ा आ रहा है...'
रिंकी अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर चुदाई में मेरी मदद कर रही थी।
हम दोनों जीजा-साली मस्ती की बुलंदियों को छू रहे थे।
तभी रिंकी चिल्लाई- जीजू.... मुझे कुछ हो रहा है... आहह... जीजू... मेरे अन्दर से कुछ निकल रहा है... ऊहह... जीजू... मज़ा आ गया... अह.. उई... माअं...'
रिंकी अपनी कमर उठा कर मेरे पूरे लण्ड को अपनी बुर के अन्दर समा लेने की कोशिश करने लगी।
मैं समझ गया कि मेरी साली का झड़ने का वक्त आ गया है।
वह फिर से झड़ रही थी.. मुझसे भी अब और सहना मुश्किल हो रहा था।
मैं खूब तेज-तेज धक्के मार कर उसे चोदने लगा और थोड़ी ही देर में हम जीजा-साली एक साथ स्खलित हो गए।
मेरा ढेर सारा वीर्य रिंकी की चूत में पिचकारी की तरह निकल कर भर गया.. और मैं उसके ऊपर लेट कर चिपक गया।
रिंकी ने मुझे अपनी बाँहों में कस कर जकड़ लिया।
कुछ देर तक हम दोनों जीजा-साली ऐसे ही एक-दूसरे के नंगे बदन से चिपके हाँफते रहे।
जब साँसें कुछ काबू में हुई तो रिंकी ने मेरे होंठों पर एक प्यार भरा चुंबन लेकर कहा- जीजू.. आज आपने अपनी साली को वो सुख दिया है जिसके बारे में मैं बिल्कुल अंजान थी... अब मुझे इसी तरह रोज चोदिएगा.. ठीक है ना जीजू?
मैंने उसकी चूचियों को चूमते हुए जबाब दिया- आज तुम्हें चोद कर जो सुख मिला है.. वो तुम्हारी अम्मा को चोद कर भी नहीं मिला... तुमने आज अपने जीजू को तृप्त कर दिया।
वो भी बड़ी खुश हुई और कहने लगी- आपने मुझे आज बता दिया कि औरत और मर्द का क्या सम्बन्ध होता है.. मेरे पति मनोज ने मुझे कभी ये सुख नहीं दिया... वो तो अपने छोटे लंड से कुछ ही देर में झड़ जाता था।
वो मेरे सीने से चिपकी हुई थी और मैं उसकी रेशमी ज़ुल्फों से खेल रहा था।
रिंकी ने एक बार फिर मेरे लण्ड को हाथ से पकड़ लिया।
उसके हाथों के स्पर्श से फिर मेरा लण्ड खड़ा होने लगा.. फिर से मेरे में काम-वासना जागृत होने लगी।
जब फिर उफान पर आ गया तो मैंने अपनी साली से कहा- पेट के बल लेट जाओ...
उसने पूछा- क्यूँ जीजू?
मैंने कहा- इस बार तेरी गाण्ड मारनी है...
वो सकपका गई और कहने लगी- कल मार लेना...
मैंने कहा- आज सब छेदों को मार लेने दो.. कल पता नहीं मैं रहूँ कि न रहूँ।
यह सुनते ही उसने मेरा मुँह बंद कर दिया और कहा- ऐसा मत बोलिए.. आप नहीं रहेंगे तो मैं जीकर क्या करूँगी?
वो पेट के बल लेट गई।
मैंने उसकी गाण्ड के होल पर वैसलीन लगाई और अपने लण्ड पर भी मल ली। अपने लौड़े को हिलाते हुए धीरे से उसकी नाज़ुक गाण्ड के होल में डाल दिया।
वो दर्द के मारे चिल्लाने लगी- निकालिए बहुत दर्द हो रहा है..
मैंने कहा- सब्र करो दर्द थोड़ी देर में गायब हो जाएगा।
उसकी गाण्ड फट चुकी थी और खून भी बह रहा था।
लेकिन मुझ पर तो वासना की आग लगी थी, मैंने एक और झटका मारा और मेरा पूरा लण्ड उसके गाण्ड मे घुस गया..
मैं अपने लण्ड को आगे-पीछे करने लगा... उसका दर्द भी कम होने लगा।
फिर हम मस्ती में खो गए, कुछ देर बाद हम झड़ गए।
मैंने लण्ड को उसकी गाण्ड से निकालने के बाद उसको बाँहों में लिया और लेट गया।
हम दोनों काफ़ी थक गए थे। बहुत देर तक हम जीजा-साली एक-दूसरे को चूमते-चाटते और बातें करते रहे और कब नींद के आगोश में चले गए.. पता ही नहीं चला।
सुबह जब मेरी आँखें खुलीं, मैंने देखा कि साली मेरे नंगे जिस्म से चिपकी हुई है।
मैंने उसको धीरे से हटा कर सीधा किया.. उसकी फूली हुई चूत और सूजी हुई गाण्ड पर मेरी नज़र पड़ी।
रात भर की चुदाई से उसके दोनों छेद काफ़ी फूल गए थे।
बिस्तर पर खून भी पड़ा था जो साली की चूत और गाण्ड से निकला था। मैं समझ गया कि वो शादी के बाद भी कुँवारी ही थी।
मेरी साली अब कुँवारी नहीं रही... वो मेरे लवड़े से चुद चुकी थी।
उसके मदमस्त नंगे जिस्म को देखते ही फिर मेरी कामाग्नि बढ़ गई।
मैं धीरे से उसकी गुलाबी चूत को अपने होंठों से चूमने लगा।
चूत पर मेरे मुँह का स्पर्श होते ही वो धीरे-धीरे नींद से जगने लगी।
उसने मुझे चूत को बेतहाशा चूमता देख कर शरम से आँखें बंद कर लीं और कहा- समझ गई.. फिर रात का खेल होगा.. फिर जीजा-साली का प्यार होगा।
मैं उसे फिर चोदने लगा।
इस बात से अनजान की खिड़की पर खड़ी मेरी सास और बीवी दोनों इस चुदाई को देख रही थीं।
इस बार मैंने करीबन एक घंटे उसकी जबरदस्त चुदाई की तब कहीं मेरा वीर्य निकल पाया।
उसकी चूत और गाण्ड दोनों सूज कर लाल हो चुकी थीं।
नीलम मस्ती से इस चुदाई को देख रही थी...
मैं जब झड़ कर उसके ऊपर से उठा तो वो बिल्कुल लस्त पड़ी हुई हाँफ रही थी।
उसकी उठने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
मैं उठ कर बाथरूम चला गया... रूपा अपनी बेटी को समझा रही थी.. पर वो अब भी डर रही थी।
नीलम बेशक रिंकी से नाज़ुक थी और उम्र भी क्या थी.. अभी वो कमसिन ही तो थी।
जब मैं बाथरूम से लौटा तो वो नीलम की चूचियों को दबाते हुए उसे चूम रही थी।
मैंने कहा- ये क्या कर रही हो?
वो बोली- राजा तुम्हारे लिए तुम्हारी बीवी को तैयार कर रही हूँ। इसे पहले ओरल सेक्स का मज़ा दूँगी.. फिर जब उसका डर निकल जाएगा.. तब तुम दोनों की सुहागरात करवाऊँगी, अभी तुम रिंकी को ही देखो।
मैं वापस अन्दर आ गया।
वो दोनों भी अन्दर आकर बैठ गईं और हम दोनों की चुदाई देखने लगीं।