देवर भाभी

Story Info
देवर भाभी की चुदाई
14.9k words
5
69
4
0
Story does not have any tags
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here
odinchacha
odinchacha
252 Followers

बात उस समय की है जब मैं ग्रेजुयेशन कर रहा था। मेरे घर के पास एक फैमिली रहती थी।

पति और पत्नी, जो रिश्ते में मेरी बुआ के लड़के और उनकी पत्नी यानि मेरे भाई और भाभी लगते हैं।

चूंकि.. भाभी भी कॉमर्स ग्रेजुयेट थीं, तो वो मुझे मेरी पढ़ाई में मदद करती रहती थीं। इसीलिए मेरा भी ज़्यादातर वक्त उनके घर पर ही व्यतीत होता था। मैं उन्हीं के यहाँ खाना ख़ाता और सो भी जाता था। कोई इसको बुरा या ग़लत भी नहीं कहता, क्योंकि वो मेरे भाई और भाई थे। यहाँ तक की उनके घर में भी मेरा एक कमरा हो गया था जिसे सिर्फ़ मैं पढ़ने और सोने के लिए इस्तेमाल करता था।

भाभी का नाम सुमन है। वो बहुत ही खूबसूरत और कमनीय काया की महिला हैं। उस वक़्त उनकी उम्र 22 साल और मेरी 19 साल थी। उनकी देहयष्टि का नाप उस समय 34-26-40 थी। पहले उनके लिए मेरे दिल में कुछ भी नहीं था, लेकिन एक घटना ने मेरा नज़रिया बदल दिया। मैं जब भी उनकी उभरी हुई ठोस चूचियाँ और गोल-गोल उभरे हुए चूतड़ों को देखता तो मेरे अन्दर बेचैनी सी होने लगती थी।

क्या मादक जिस्म था उनका। बिल्कुल किसी परी की तरह।

एक दिन की बात है, भाभी मुझे पढ़ा रही थीं और भैया अपने कमरे में लेटे हुए थे। रात के दस बजे थे, इतने में भैया की आवाज़ आई- सुम्मी और कितनी देर है जल्दी आओ ना..।

भाभी आधे में से उठते हुए बोलीं- राजू बाकी कल करेंगे, तुम्हारे भैया आज कुछ ज्यादा ही उतावले हो रहे हैं।

यह कह कर वो जल्दी से अपने कमरे में चली गईं।

मुझे भाभी की बात कुछ ठीक से समझ नहीं आई, काफ़ी देर तक सोचता रहा, फिर अचानक ही दिमाग़ की 'ट्यूब-लाइट' जली और मेरी समझ में आ गया कि भैया किस बात के लिए उतावले हो रहे थे।

मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई। आज तक मेरे दिल में भाभी को ले कर बुरे विचार नहीं आए थे, लेकिन भाभी के मुँह से उतावले होने वाली बात सुन कर कुछ अजीब सा लग रहा था।

मुझे लगा कि भाभी के मुँह से अनायास ही यह निकल गया होगा। जैसे ही भाभी के कमरे की लाइट बन्द हुई, मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो गई।

मैंने जल्दी से अपने कमरे की लाइट भी बन्द कर दी और चुपके से भाभी के कमरे के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया।

अन्दर से फुसफुसाने की आवाज़ आ रही थी पर कुछ-कुछ ही साफ़ सुनाई दे रहा था।

'क्यों जी.. आज इतने उतावले क्यों हो रहे हो?'

'मेरी जान, कितने दिन से तुमने दी नहीं... इतना ज़ुल्म तो ना किया करो मेरी रानी...!'

'चलिए भी, मैंने कब रोका है, आप ही को फ़ुर्सत नहीं मिलती। राजू का कल इम्तिहान है, उसे पढ़ाना ज़रूरी था।'

'अब श्रीमती जी की इज़ाज़त हो तो आपकी बुर का उद्घाटन करूँ?'

'हाय राम.. कैसी बातें बोलते हो, शरम नहीं आती?'

'शर्म की क्या बात है, अब तो शादी को दो साल हो चुके हैं, फिर अपनी ही बीवी की बुर को चोदने में शर्म कैसी?'

'बड़े खराब हो... आह..अई..आह हाय राम... धीरे करो राजा.. अभी तो सारी रात बाकी है।'

मैं दरवाज़े पर और ना खड़ा रह सका। पसीने से मेरे कपड़े भीग चुके थे, मेरा लंड अंडरवियर फाड़ कर बाहर आने को तैयार था। मैं जल्दी से अपने बिस्तर पर लेट गया, पर सारी रात भाभी के बारे में ही सोचता रहा। मैं एक पल भी ना सो सका, ज़िंदगी में पहली बार भाभी के बारे में सोच कर मेरा लंड खड़ा हुआ था।

सुबह भैया ऑफिस चले गए। मैं भाभी से नज़रें नहीं मिला पा रहा था, जबकि भाभी मेरी कल रात की करतूत से बेख़बर थीं।

भाभी रसोई में काम कर रही थीं, मैं भी रसोई में खड़ा हो गया, ज़िंदगी में पहली बार मैंने भाभी के जिस्म को गौर से देखा।

उनका गोरा भरा हुआ गदराया सा बदन, लम्बे घने काले बाल जो भाभी के कमर तक लटकते थे, बड़ी-बड़ी आँखें, गोल-गोल बड़े संतरे के आकार की चूचियाँ जिनका साइज़ 34 से कम ना होगा। पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए चौड़े, भारी चूतड़, एक बार फिर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।

इस बार मैंने हिम्मत करके भाभी से पूछ ही लिया- भाभी, मेरा आज इम्तिहान है और आपको तो कोई चिंता ही नहीं थी, बिना पढ़ाए ही आप कल रात सोने चल दीं..!

'कैसी बातें करता है राजू, तेरी चिंता नहीं करूँगी तो किसकी करूँगी?'

'झूठ, मेरी चिंता थी तो गई क्यों?'

'तेरे भैया ने जो शोर मचा रखा था।'

'भाभी, भैया ने क्यों शोर मचा रखा था?' मैंने बड़े ही भोले स्वर में पूछा।

भाभी शायद मेरी चालाकी समझ गईं और तिरछी नज़र से देखते हुए बोलीं- धत्त बदमाश, सब समझता है और फिर भी पूछ रहा है। मेरे ख्याल से तेरी अब शादी कर देनी चाहिए। बोल है कोई लड़की पसंद?

'भाभी सच कहूँ मुझे तो आप ही बहुत अच्छी लगती हो।'

'चल नालायक भाग यहाँ से और जा कर अपना इम्तिहान दे।'

मैं इम्तिहान तो क्या देता, सारा दिन भाभी के ही बारे में सोचता रहा। पहली बार भाभी से ऐसी बातें की थीं और भाभी बिल्कुल नाराज़ नहीं हुईं, इससे मेरी हिम्मत और बढ़ने लगी।

मैं भाभी का दीवाना होता जा रहा था। भाभी रोज़ रात को देर तक पढ़ाती थीं। मुझे महसूस हुआ शायद भैया भाभी को महीने में दो तीन बार ही चोदते थे। मैं अक्सर सोचता, अगर भाभी जैसी खूबसूरत औरत मुझे मिल जाए तो दिन में चार दफे चोदूँ।

दीवाली के लिए भाभी को मायके जाना था। भैया ने उन्हें मायके ले जाने का काम मुझे सौंपा, क्योंकि भैया को छुट्टी नहीं मिल सकी।

टिकट खिड़की पर बहुत भीड़ थी, मैं भाभी के पीछे रेलवे स्टेशन पर रिज़र्वेशन की लाइन में खड़ा था। धक्का-मुक्की के कारण आदमी-आदमी से सटा जा रहा था। मेरा लंड बार-बार भाभी के मोटे-मोटे चूतड़ों से रगड़ रहा था।

मेरे दिल की धड़कन तेज़ होने लगी, हालांकि मुझे कोई धक्का भी नहीं दे रहा था, फिर भी मैं भाभी के पीछे चिपक कर खड़ा था। मेरा लंड फनफना कर अंडरवियर से बाहर निकल कर भाभी के चूतड़ों के बीच में घुसने की कोशिश कर रहा था।

भाभी ने हल्के से अपने चूतड़ों को पीछे की तरफ धक्का दिया, जिससे मेरा लंड और ज़ोर से उनके चूतड़ों से रगड़ने लगा। लगता है भाभी को मेरे लंड की गर्माहट महसूस हो गई थी और उसका हाल पता था लेकिन उन्होंने दूर होने की कोशिश नहीं की।

भीड़ के कारण सिर्फ़ भाभी को ही रिज़र्वेशन मिला, ट्रेन में हम दोनों एक ही सीट पर थे।

रात को भाभी के कहने पर मैंने अपनी टाँगें भाभी की तरफ और उन्होंने अपनी टाँगें मेरी तरफ कर लीं और इस प्रकार हम दोनों आसानी से लेट गए। रात को मेरी आँख खुली तो ट्रेन के नाइट-लैंप की हल्की-हल्की रोशनी में मैंने देखा, भाभी गहरी नींद में सो रही थीं और उनकी साड़ी जांघों तक सरक गई थी।

भाभी की गोरी-गोरी नंगी टाँगें और मोटी मांसल जांघें देख कर मैं अपना संयम खोने लगा। उनकी साड़ी का पल्लू भी एक तरफ गिरा हुआ था और बड़ी-बड़ी चूचियाँ ब्लाउज में से बाहर गिरने को हो रही थीं।

मैं मन ही मन मानने लगा कि साड़ी थोड़ी और ऊपर उठ जाए ताकि भाभी की चूत के दर्शन कर सकूँ। मैंने हिम्मत करके बहुत ही धीरे से साड़ी को ऊपर सरकाना शुरू किया। साड़ी अब भाभी की चूत से सिर्फ़ 2 इंच ही नीचे थी, पर कम रोशनी होने के कारण मुझे यह नहीं समझ आ रहा था की 2 इंच ऊपर जो कालिमा नज़र आ रही थी वो काले रंग की पैन्टी थी या भाभी की बुर के बाल।

मैंने साड़ी को थोड़ा और ऊपर उठाने की जैसे ही कोशिश की, भाभी ने करवट बदली और साड़ी को नीचे खींच लिया।

भीड़ के कारण सिर्फ़ भाभी को ही रिज़र्वेशन मिला, ट्रेन में हम दोनों एक ही सीट पर थे।

रात को भाभी के कहने पर मैंने अपनी टाँगें भाभी की तरफ और उन्होंने अपनी टाँगें मेरी तरफ कर लीं और इस प्रकार हम दोनों आसानी से लेट गए।

रात को मेरी आँख खुली तो ट्रेन के नाइट-लैंप की हल्की-हल्की रोशनी में मैंने देखा, भाभी गहरी नींद में सो रही थीं और उनकी साड़ी जांघों तक सरक गई थी। भाभी की गोरी-गोरी नंगी टाँगें और मोटी मांसल जांघें देख कर मैं अपना संयम खोने लगा। उनकी साड़ी का पल्लू भी एक तरफ गिरा हुआ था और बड़ी-बड़ी चूचियाँ ब्लाउज में से बाहर गिरने को हो रही थीं।

मैं मन ही मन मानने लगा कि साड़ी थोड़ी और ऊपर उठ जाए ताकि भाभी की चूत के दर्शन कर सकूँ। मैंने हिम्मत करके बहुत ही धीरे से साड़ी को ऊपर सरकाना शुरू किया।

साड़ी अब भाभी की चूत से सिर्फ़ 2 इंच ही नीचे थी, पर कम रोशनी होने के कारण मुझे यह नहीं समझ आ रहा था की 2 इंच ऊपर जो कालिमा नज़र आ रही थी वो काले रंग की पैन्टी थी या भाभी की बुर के बाल।

मैंने साड़ी को थोड़ा और ऊपर उठाने की जैसे ही कोशिश की, भाभी ने करवट बदली और साड़ी को नीचे खींच लिया। मैंने गहरी सांस ली और फिर से सोने की कोशिश करने लगा।

मायके में भाभी ने मेरी बहुत खातिरदारी की, दस दिन के बाद हम वापस लौट आए।

वापसी में मुझे भाभी के साथ लेटने का मौका नहीं लगा। भैया भाभी को देख कर बहुत खुश हुए और मैं समझ गया कि आज रात भाभी की चुदाई निश्चित है।

उस रात को मैं पहले की तरह भाभी के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया। भैया कुछ ज़्यादा ही जोश में थे। अन्दर से आवाजें साफ़ सुनाई दे रही थीं।

'सुम्मी मेरी जान, तुमने तो हमें बहुत सताया... देखो ना हमारा लंड तुम्हारी चूत के लिए कैसे तड़प रहा है.. अब तो इनका मिलन करवा दो..!'

'हाय राम, आज तो यह कुछ ज़्यादा ही बड़ा दिख रहा है... ओह हो.. ठहरिए भी.. साड़ी तो उतारने दीजिए।'

'ब्रा क्यों नहीं उतारी मेरी जान, पूरी तरह नंगी करके ही तो चोदने में मज़ा आता है। तुम्हारे जैसी खूबसूरत औरत को चोदना हर आदमी की किस्मत में नहीं होता।'

'झूठ.. ऐसी बात है तो आप तो महीने में सिर्फ़ दो-तीन बार ही!'

'दो-तीन बार ही क्या?'

'ओह हो.. मेरे मुँह से गंदी बात बुलवाना चाहते हैं..!'

'बोलो ना मेरी जान, दो-तीन बार क्या?'

'अच्छा बाबा, बोलती हूँ; महीने में दो-तीन बार ही तो चोदते हो... बस..!'

'सुम्मी, तुम्हारे मुँह से चुदाई की बात सुन कर मेरा लंड अब और इंतज़ार नहीं कर सकता... थोड़ा अपनी टाँगें और चौड़ी करो। मुझे तुम्हारी चूत बहुत अच्छी लगती है... मेरी जान।'

'मुझे भी आपका बहुत... उई.. मर गई... उई... आ...ऊफ़.. बहुत अच्छा लग रहा है....थोड़ा धीरे... हाँ ठीक है....थोड़ा ज़ोर से...आ..आह..आह...!'

अन्दर से भाभी के कराहने की आवाज़ के साथ साथ 'फच..फच' जैसी आवाज़ भी आ रही थीं जो मैं समझ नहीं सका।

बाहर खड़े हुए मैं अपने आप पर संयम नहीं कर सका और मेरा लंड झड़ गया। मैं जल्दी से वापस आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया। अब तो मैं रात-दिन भाभी को चोदने के सपने देखने लगा। मैं पहले भी अपने आस-पास की 3-4 लड़कियों को चोद चुका था इसलिए चुदाई की कला से भली-भाँति परिचित था।

मैंने इंग्लिश की बहुत सी कामुक ब्लू-फिल्म्स देख रखी थीं और हिन्दी और इंग्लिश के कई कामुक उपन्यास भी पढ़े थे।

मैं अक्सर कल्पना करने लगा कि भाभी बिल्कुल नंगी होकर कैसी लगती होंगी।

जितने लम्बे और घने बाल उनके सिर पर थे ज़रूर उतने ही घने बाल उनकी चूत पर भी होंगे। भैया भाभी को कौन-कौन सी मुद्राओं में चोदते होंगे। एकदम नंगी भाभी टाँगें फैलाई हुए चुदवाने की मुद्रा में बहुत ही सेक्सी लगती होंगी। यह सब सोच कर मेरी भाभी के लिए काम-वासना दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी।

मैं भी 5'7′ लंबा हूँ, अपने कॉलेज का बॉडी-बिल्डिंग का चैम्पियन था। रोज़ दो घंटे कसरत और मालिश करता हूँ। लेकिन सबसे खास चीज़ है मेरा लंड। ढीली अवस्था में भी 4 इंच लम्बा और 2 इंच मोटा किसी हथौड़े के माफिक लटकता रहता है। यदि मैं अंडरवियर ना पहनू तो पैन्ट के ऊपर से भी उसका आकार साफ़ दिखाई देता है। खड़ा हो कर तो उसकी लम्बाई करीब 7-8 इंच और मोटाई 3.5 इंच हो जाती है।

एक डॉक्टर ने मुझे बताया था कि इतना लम्बा और मोटा लंड बहुत कम लोगों का होता है। मैं अक्सर बरामदे में तौलिया लपेट कर बैठ जाता था और अखबार पढ़ने का नाटक करता था। जब भी कोई लड़की घर के सामने से निकलती, मैं अपनी टाँगों को थोड़ा सा इस प्रकार से चौड़ा करता कि उस लड़की को तौलिए के अन्दर से झाँकता हुआ लंड नज़र आ जाए।

मैंने अखबार में छोटा सा छेद कर रखा था। अखबार से अपना चेहरा छुपा कर उस छेद में से लड़की की प्रतिक्रिया देखने में बहुत मज़ा आता था। लड़कियों को लगता था कि मैं अपने लंड की नुमाइश से बेख़बर हूँ। एक भी लड़की ऐसी ना थी जिसने मेरे लंड को देख कर मुँह फेर लिया हो।

धीरे-धीरे मैं शादीशुदा औरतों को भी लंड दिखाने लगा, क्योंकि उन्हें ही लम्बे, मोटे लंड का महत्व पता था।

एक दिन मैं अपने कमरे में पढ़ रहा था कि भाभी ने आवाज़ लगाई- राजू, ज़रा बाहर जो कपड़े सूख रहे हैं, उन्हें अन्दर ले आओ... बारिश आने वाली है।'

'अच्छा भाभी..।' मैं कपड़े लेने बाहर चला गया। घने बदल छाए हुए थे, भाभी भी जल्दी से मेरी मदद करने आ गईं।

डोरी पर से कपड़े उतारते समय मैंने देखा की भाभी की ब्रा और पैन्टी भी टंगी हुई थी। मैंने भाभी की ब्रा को उतार कर साइज़ पढ़ लिया; साइज़ था 34बी, उसके बाद मैंने भाभी की पैन्टी को हाथ में लिया। गुलाबी रंग की वो पैन्टी करीब-करीब पारदर्शी थी और इतनी छोटी सी थी जैसे किसी दस साल की बच्ची की हो।

भाभी की पैन्टी का स्पर्श मुझे बहुत आनन्द दे रहा था और मैं मन ही मन सोचने लगा कि इतनी छोटी सी पैन्टी भाभी के इतने बड़े चूतड़ों और चूत को कैसे ढकती होगी। शायद यह कच्छी भाभी भैया को रिझाने के लिए पहनती होंगी। मैंने उस छोटी सी पैन्टी को सूंघना शुरू कर दिया ताकि भाभी की चूत की कुछ खुश्बू पा सकूँ।

भाभी ने मुझे ऐसा करते हुए देख लिया और बोलीं- क्या सूंघ रहे हो राजू? तुम्हारे हाथ में क्या है?

मेरी चोरी पकड़ी गई थी। बहाना बनाते हुए बोला- देखो ना भाभी ये छोटी सी कच्छी पता नहीं किसकी है? यहाँ कैसे आ गई।

भाभी मेरे हाथ में अपनी पैन्टी देख कर झेंप गईं और चीखती हुई बोलीं- लाओ इधर दो।

'किसकी है भाभी?' मैंने अंजान बनते हुए पूछा।

'तुमसे क्या मतलब, तुम अपना काम करो।' भाभी बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोलीं।

'बता दो ना... अगर पड़ोस वाली बच्ची की है तो लौटा दूँ।'

'जी नहीं, लेकिन तुम सूंघ क्या रहे थे?'

'अरे भाभी, मैं तो इसको पहनने वाली की खुशबू सूंघ रहा था, बड़ी मादक खुश्बू थी। बता दो ना किसकी है?'

भाभी का चेहरा यह सुन कर शर्म से लाल हो गया और वो जल्दी से अन्दर भाग गईं।

उस रात जब वो मुझे पढ़ाने आईं तो मैंने देखा कि उन्होंने एक सेक्सी सी नाइटी पहन रखी थी। नाइटी थोड़ी सी पारदर्शी थी। भाभी जब कुछ उठाने के लिए नीचे झुकीं तो मुझे साफ़ नज़र आ रहा था कि भाभी ने नाइटी के नीचे वो ही गुलाबी रंग की पैन्टी पहन रखी थी। झुकने की वजह से पैन्टी की रूप-रेखा साफ़ नज़र आ रही थी। मेरा अंदाज़ा सही था। पैन्टी इतनी छोटी थी कि भाभी के भारी चूतड़ों के बीच की दरार में घुसी जा रही थी।

मेरे लंड ने हरकत करनी शुरू कर दी, मुझसे ना रहा गया और मैं बोल ही पड़ा- भाभी अपने तो बताया नहीं, लेकिन मुझे पता चल गया कि वो छोटी सी पैन्टी किसकी थी।

'तुझे कैसे पता चल गया?' भाभी ने शरमाते हुए पूछा।

'क्योंकि वो पैन्टी आपने इस वक़्त नाइटी के नीचे पहन रखी है।'

'हट बदमाश..! तू ये सब देखता रहता है?'

'भाभी एक बात पूछूँ? इतनी छोटी सी पैन्टी में आप फिट कैसे होती हैं?' मैंने हिम्मत जुटा कर पूछ ही लिया।

'क्यों मैं क्या तुझे मोटी लगती हूँ?'

'नहीं भाभी, आप तो बहुत ही सुन्दर हैं, लेकिन आपका बदन इतना सुडौल और गठा हुआ है, आपके चूतड़ इतने भारी और फैले हुए हैं कि इस छोटी सी पैन्टी में समा ही नहीं सकते। आप इसे क्यों पहनती हैं? यह तो आपकी जायदाद को छुपा ही नहीं सकती और फिर यह तो पारदर्शी है, इसमें से तो आपका सब कुछ दिखता होगा।'

'चुप नालायक, तू कुछ ज़्यादा ही समझदार हो गया है, जब तेरी शादी होगी ना तो सब अपने आप पता लग जाएगा। लगता है तेरी शादी जल्दी ही करनी होगी, शैतान होता जा रहा है।'

'जिसकी इतनी सुन्दर भाभी हो वो किसी दूसरी लड़की के बारे में क्यों सोचने लगा?'

'ओह हो..! अब तुझे कैसे समझाऊँ? देख राजू, जिन बातों के बारे में तुझे अपनी बीवी से पता लग सकता है और जो चीज़ तेरी बीवी तुझे दे सकती है, वो भाभी तो नहीं दे सकती ना? इसी लिए कह रही हूँ शादी कर ले।'

'भाभी ऐसी क्या चीज़ है जो सिर्फ़ बीवी दे सकती है और आप नहीं दे सकती?' मैंने बहुत अंजान बनते हुए पूछा। अब तो मेरा लंड फनफनाने लगा था।

'भाभी ऐसी क्या चीज़ है जो सिर्फ़ बीवी दे सकती है और आप नहीं दे सकती?' मैंने बहुत अंजान बनते हुए पूछा।

अब तो मेरा लंड फनफनाने लगा था।

'मैं सब समझती हूँ... चालाक कहीं का..! तुझे सब मालूम है फिर भी अंजान बनता है।' भाभी लजाते हुए बोलीं।

'लगता है तुझे पढ़ना-लिखना नहीं है, मैं सोने जा रही हूँ।'

'लेकिन भैया ने तो आपको नहीं बुलाया।' मैंने शरारत भरे स्वर में पूछा।

भाभी जबाब में सिर्फ़ मुस्कुराते हुए अपने कमरे की ओर चल दीं।

उनकी मस्तानी चाल, मटकते हुए भारी चूतड़ और दोनों चूतड़ों के बीच में पिस रही बेचारी पैन्टी को देख कर मेरे लंड का बुरा हाल था।

अगले दिन भैया के ऑफिस जाने के बाद भाभी और मैं बाल्कनी में बैठे चाय पी रहे थे। इतने में सामने सड़क पर एक गाय गुज़री, उसके पीछे-पीछे एक भारी-भरकम साण्ड हुंकार भरता हुआ आ रहा था। साण्ड का लम्बा मोटा लंड नीचे झूल रहा था।

साण्ड के लंड को देख कर भाभी के माथे पर पसीना छलक आया। वो उसके लम्बे-तगड़े लंड से नज़रें ना हटा सकीं।

इतने में साण्ड ने ज़ोर से हुंकार भरी और गाय पर चढ़ कर उसकी बुर में पूरा का पूरा लंड घुसेड़ दिया।

यह देख कर भाभी के मुँह से सिसकारी निकल गई।

वो साण्ड की रास-लीला और ना देख सकीं और शर्म के मारे अन्दर भाग गईं।

मैं भी पीछे-पीछे अन्दर गया। भाभी रसोई में थीं।

मैंने बहुत ही भोले स्वर में पूछा- भाभी वो साण्ड क्या कर रहा था?

'तुझे नहीं मालूम?' भाभी ने झूटा गुस्सा दिखाते हुए कहा।

'तुम्हारी कसम भाभी मुझे कैसे मालूम होगा? बताइए ना..!'

हालाँकि भाभी को अच्छी तरह पता था कि मैं जानबूझ कर अंजान बन रहा हूँ लेकिन अब उनको भी मेरे साथ ऐसी बातें करने में मज़ा आने लगा था।

वो मुझे समझाते हुए बोलीं- देख राजू, सांड़ वही काम कर रहा था जो एक मर्द अपनी बीवी के साथ शादी के बाद करता है।

'आपका मतलब है कि मर्द भी अपनी बीवी पर ऐसे ही चढ़ता है?'

'हाय राम..! कैसे-कैसे सवाल पूछता है। हाँ... और क्या ऐसे ही चढ़ता है।'

'ओह.. अब समझा, भैया आपको रात में क्यों बुलाते हैं।'

'चुप नालायक, ऐसा तो सभी शादीशुदा लोग करते हैं।'

'जिनकी शादी नहीं हुई वो नहीं कर सकते?'

'क्यों नहीं कर सकते? वो भी कर सकते हैं, लेकिन...!'

मैं तपाक से बीच में ही बोल पड़ा- वाह भाभी, तब तो मैं भी आप पर चढ़...'

भाभी ने एकदम मेरे मुँह पर हाथ रख दिया और बोलीं- चुप.. जा यहाँ से.. और मुझे काम करने दे।

और यह कह कर उन्होंने मुझे रसोई से बाहर धकेल दिया।

इस घटना के दो दिन के बाद की बात आई।

मैं छत पर पढ़ने जा रहा था, भाभी के कमरे के सामने से गुज़रते समय मैंने उनके कमरे में झाँका।

भाभी अपने बिस्तर पर लेटी हुई कोई उपन्यास पढ़ रही थीं, उनकी नाइटी घुटनों तक ऊपर चढ़ी हुई थी। नाइटी इस प्रकार से उठी हुई थी कि भाभी की गोरी-गोरी टाँगें, मोटी मांसल जांघें और जांघों के बीच में सफेद रंग की पैन्टी साफ़ नज़र आ रही थी।

मेरे कदम एकदम रुक गए और इस खूबसूरत नज़ारे को देखने के लिए मैं छुप कर खिड़की से झाँकने लगा।

यह पैन्टी भी उतनी ही छोटी थी और बड़ी मुश्किल से भाभी की चूत को ढक रही थी।

भाभी की घनी काली झांटें दोनों तरफ से कच्छी के बाहर निकल रही थीं। वो बेचारी छोटी सी पैन्टी भाभी की फूली हुई बुर के उभार से बस किसी तरह चिपकी हुई थी।

बुर की दोनों फांकों के बीच में दबी हुई पैन्टी ऐसे लग रही थी जैसे हँसते वक़्त भाभी के गालों में डिंपल पड़ जाते हैं।

अचानक भाभी की नज़र मुझ पर पड़ गई, उन्होंने झट से टाँगें नीचे करते हुए पूछा- क्या देख रहा है राजू?

चोरी पकड़े जाने के कारण मैं सकपका गया और 'कुछ नहीं भाभी' कहता हुआ छत पर भाग गया।

अब तो रात-दिन भाभी की सफेद पैन्टी में छिपी हुई बुर की याद सताने लगी।

मेरे दिल में विचार आया, क्यों ना भाभी को अपने विशाल लंड के दर्शन कराऊँ।

भाभी रोज़ सवेरे मुझे दूध का गिलास देने मेरे कमरे में आती थीं।

एक दिन सवेरे मैं तौलिया लपेट कर अखबार पढ़ने का नाटक करते हुए इस प्रकार बैठ गया कि सामने से आती हुई भाभी को मेरा लटकता हुआ लंड नज़र आ जाए।

जैसे ही मुझे भाभी के आने की आहट सुनाई दी, मैंने अखबार अपने चेहरे के सामने कर लिया। टाँगों को थोड़ा और चौड़ा कर लिया ताकि भाभी को पूरे लंड के आसानी से दर्शन हो सकें और अखबार के बीच के छेद से भाभी की प्रतिक्रिया देखने के लिए तैयार हो गया।

जैसे ही भाभी दूध का गिलास लेकर मेरे कमरे में दाखिल हुईं, उनकी नज़र तौलिए के नीचे से झाँकते मेरे 7-8 इंच लम्बे मोटे हथौड़े की तरह लटकते हुए लंड पर पड़ गई।

वो सकपका कर रुक गईं, आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं और उन्होंने अपना निचला होंठ दाँतों से दबा लिया। एक मिनट बाद उन्होंने होश संभाला और जल्दी से गिलास रख कर भाग गईं।

करीब 5 मिनट के बाद फिर भाभी के कदमों की आहट सुनाई दी।

मैंने झट से पहले वाला आसन धारण कर लिया और सोचने लगा, भाभी अब क्या करने आ रही हैं।

अखबार के छेद में से मैंने देखा भाभी हाथ में पोंछे का कपड़ा लेकर अन्दर आईं और मुझसे करीब 5 फुट दूर ज़मीन पर बैठ कर कुछ साफ़ करने का नाटक करने लगीं।

वो नीचे बैठ कर तौलिए के नीचे लटकता हुआ लंड ठीक से देखना चाहती थीं।

मैंने भी अपनी टाँगों को थोड़ा और चौड़ा कर दिया, जिससे भाभी को मेरे विशाल लंड के साथ मेरे अन्डकोषों के भी दर्शन अच्छी तरह से हो जाएँ।

भाभी की आँखें एकटक मेरे लंड पर लगी हुई थीं, उन्होंने अपने होंठ दाँतों से इतनी ज़ोर से काट लिए कि उनमें थोड़ा सा खून निकल आया, उनके माथे पर पसीने की बूँदें उभर आईं।

भाभी की यह हालत देख कर मेरे लंड ने फिर से हरकत शुरू कर दी।

मैंने बिना अखबार चेहरे से हटाए भाभी से पूछा- क्या बात है भाभी.. क्या कर रही हो?

भाभी हड़बड़ा कर बोलीं- कुछ नहीं, थोड़ा दूध गिर गया था.. उसे साफ़ कर रही हूँ।'

यह कह कर वो जल्दी से उठ कर चली गईं।

मैं मन ही मन मुस्काया। अब तो जैसे मुझे भाभी की चूत के सपने आते हैं, वैसे ही भाभी को भी मेरे मस्ताने लंड के सपने आएँगे।

लेकिन अब भाभी एक कदम आगे थीं। उसने तो मेरे लंड के दर्शन कर लिए थे, पर मैंने अभी तक उनकी चूत को नहीं देखा था।

मुझे मालूम था कि भाभी रोज़ हमारे जाने के बाद घर का सारा काम निपटा कर नहाने जाती थीं। मैंने भाभी की चूत देखने की योजना बनाई।

एक दिन मैं कॉलेज जाते समय अपने कमरे की खिड़की खुली छोड़ गया।

उस दिन कॉलेज से मैं जल्दी वापस आ गया, घर का दरवाज़ा अन्दर से बन्द था। मैं चुपके से अपनी खिड़की के रास्ते अपने कमरे में दाखिल हो गया।

भाभी रसोई में काम कर रही थीं। काफ़ी देर इंतज़ार करने के बाद आख़िर मेरी तपस्या रंग लाई, भाभी अपने कमरे में आईं। वो मस्ती में कुछ गुनगुना रही थीं। देखते ही देखते उन्होंने अपनी नाइटी उतार दी। अब वो सिर्फ़ आसमानी रंग की ब्रा और पैन्टी में थीं।

मेरा लंड हुंकार भरने लगा।

क्या बला की सुन्दर थीं। गोरा बदन, पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए भारी चूतड़ और मोटी जांघें किसी नामर्द का भी लंड खड़ा कर दें।

भाभी की बड़ी-बड़ी चूचियाँ तो ब्रा में समा नहीं पा रही थीं।

यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!

फिर वही छोटी सी पैन्टी, जिसने मेरी रातों की नींद उड़ा रखी थी, भाभी के भारी चूतड़ उनकी पैन्टी से बाहर निकल रहे थे, दोनों चूतड़ों का एक चौथाई से भी कम भाग पैन्टी में था। बेचारी पैन्टी भाभी के चूतड़ों के बीच की दरार में घुसने की कोशिश कर रही थी।

उनकी जांघों के बीच में पैन्टी से ढकी फूली हुई चूत का उभार तो मेरे दिल-ओ-दिमाग़ को पागल बना रहा था।

मैं साँस थामे इंतज़ार कर रहा था कि कब भाभी पैन्टी उतारें और मैं उनकी चूत के दर्शन करूँ। भाभी शीशे के सामने खड़ी होकर अपने को निहार रही थीं, उनकी पीठ मेरी तरफ थी।

अचानक भाभी ने अपनी ब्रा और फिर पैन्टी उतार कर वहीं ज़मीन पर फेंक दी।

odinchacha
odinchacha
252 Followers