देवर भाभी

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odinchacha
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मैं साँस थामे इंतज़ार कर रहा था कि कब भाभी पैन्टी उतारें और मैं उनकी चूत के दर्शन करूँ।

भाभी शीशे के सामने खड़ी हो कर अपने को निहार रही थीं, उनकी पीठ मेरी तरफ थी।

अचानक भाभी ने अपनी ब्रा और फिर पैन्टी उतार कर वहीं ज़मीन पर फेंक दी।

अब तो उनके नंगे चौड़े और गोल-गोल चूतड़ देख कर मेरा लंड बिल्कुल झड़ने वाला हो गया।

मैंने मन में सोचा कि भैया ज़रूर भाभी की चूत पीछे से भी लेते होंगे और क्या कभी भैया ने भाभी की गाण्ड मारी होगी?

मुझे ऐसी लाजवाब औरत की गाण्ड मिल जाए तो मैं स्वर्ग जाने से भी इन्कार कर दूँ।

लेकिन मेरी आज की योजना पर तब पानी फिर गया, जब भाभी बिना मेरी तरफ़ घूमे गुसलखाने में नहाने चली गईं।

उनकी ब्रा और पैन्टी वहीं ज़मीन पर पड़ी थी।

मैं जल्दी से भाभी के कमरे में गया और उनकी पैन्टी उठा लाया।

मैंने उनकी पैन्टी को सूँघा।

भाभी की चूत की महक इतनी मादक थी कि मेरा लंड और ना सहन कर सका और झड़ गया।

मैंने उस पैन्टी को अपने पास ही रख लिया और भाभी के बाथरूम से बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगा।

सोचा जब भाभी नहा कर नंगी बाहर निकलेगीं तो उनकी चूत के दर्शन हो ही जाएँगे।

लेकिन किस्मत ने फिर साथ नहीं दिया, भाभी जब नहा कर बाहर निकलीं तो उन्होंने काले रंग की पैन्टी और ब्रा पहन रखी थी।

भाभी कमरे में अपनी पैन्टी गायब पाकर सोच में पड़ गईं।

अचानक उन्होंने जल्दी से नाइटी पहन ली और मेरे कमरे की तरफ आईं, शायद उन्हें शक हो गया कि यह काम मेरे अलावा और कोई नहीं कर सकता।

मैं झट से अपने बिस्तर पर ऐसे लेट गया जैसे नींद में हूँ।

भाभी मुझे कमरे में देखकर सकपका गईं।

मुझे हिलाते हुए बोलीं- राजू उठ... तू अन्दर कैसे आया?

मैंने आँखें मलते हुए उठने का नाटक करते हुए कहा- क्या करूँ भाभी आज कॉलेज जल्दी बन्द हो गया, घर का दरवाज़ा बन्द था बहुत खटखटाने पर जब आपने नहीं खोला तो मैं अपनी खिड़की के रास्ते अन्दर आ गया।

'तू कितनी देर से अन्दर है?'

'यही कोई एक घंटे से।'

अब तो भाभी को शक हो गया कि शायद मैंने उन्हें नंगी देख लिया था और फिर उनकी पैन्टी भी तो गायब थी।

भाभी ने शरमाते हुए पूछा- कहीं तूने मेरे कमरे से कोई चीज़ तो नहीं उठाई?

'अरे हाँ भाभी.. जब मैं आया तो मैंने देखा कि कुछ कपड़े ज़मीन पर पड़े हैं। मैंने उन्हें उठा लिया।'

भाभी का चेहरा सुर्ख हो गया, हिचकिचाते हुए बोलीं- वापस कर मेरे कपड़े।

मैं तकिये के नीचे से भाभी की पैन्टी निकालते हुए बोला- भाभी, यह तो अब मैं वापस नहीं दूँगा।

'क्यों अब तू औरतों की पैन्टी पहनना चाहता है?'

'नहीं भाभी...' मैं पैन्टी को सूंघता हुआ बोला- इसकी मादक खुश्बू ने तो मुझे दीवाना बना दिया है।

'अरे पगला है? यह तो मैंने कल से पहनी हुई थी... धोने तो दे।'

'नहीं भाभी धोने से तो इसमें से आपकी महक निकल जाएगी... मैं इसे ऐसे ही रखना चाहता हूँ।'

'धत्त पागल... अच्छा तू कब से घर में है?' भाभी शायद जानना चाहती थीं कि कहीं मैंने उनको नंगी तो नहीं देख लिया।

मैंने कहा- भाभी मैं जानता हूँ कि आप क्या जानना चाहती हैं... मेरी ग़लती क्या है, जब मैं घर आया तो आप बिल्कुल नंगी शीशे के सामने खड़ी थीं लेकिन आपको सामने से नहीं देख सका। सच कहूँ भाभी, आप बिल्कुल नंगी होकर बहुत ही सुन्दर लग रही थीं। पतली कमर, भारी और गोल-गोल मस्त चूतड़ और गदराई हुई जांघें देख कर तो बड़े से बड़े ब्रह्मचारी की नियत भी खराब हो जाए।

भाभी शर्म से लाल हो उठीं।

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'हाय राम तुझे शर्म नहीं आती... कहीं तेरी भी नियत तो नहीं खराब हो गई है?'

'आपको नंगी देख कर किसकी नियत खराब नहीं होगी?'

'हे भगवान, आज तेरे भैया से तेरी शादी की बात करनी ही पड़ेगी।'

इससे पहले मैं कुछ और कहता वो अपने कमरे में भाग गईं।

भैया को 6 महीने के लिए किसी ट्रेनिंग के लिए मुंबई जाना था, आज उनका आखिरी दिन था, आज रात को तो भाभी की चुदाई निश्चित ही होनी थी।

रात को भाभी नींद आने का बहाना बना कर जल्दी ही अपने कमरे में चली गईं।

उनके कमरे में जाते ही लाइट बंद हो गई, मैं समझ गया कि चुदाई शुरू होने में अब देर नहीं।

मैं एक बार फिर चुपके से भाभी के दरवाज़े पर कान लगा कर खड़ा हो गया, अन्दर से मुझे भैया-भाभी की बातें साफ सुनाई दे रही थीं।

भैया कह रहे थे- सुम्मी... 6 महीने का समय तो बहुत होता है। इतने दिन मैं तुम्हारे बिना कैसे जी सकूँगा। जरा सोचो 6 महीने तक तुम्हें नहीं चोद सकूँगा।

'आप तो ऐसे बोल रहे हैं जैसे यहाँ रोज...!'

'क्या मेरी जान बोलो ना.. शरमाती क्यों हो..? कल तो मैं जा ही रहा हूँ, आज रात तो खुल कर बात करो। तुम्हारे मुँह से ऐसी बातें सुन कर दिल खुश हो जाता है।'

'मैं तो आपको खुश देखने के लिए कुछ भी कर सकती हूँ। मैं तो यह कह रही थी, यहाँ आप कौन सा मुझे रोज चोदते हैं।' भाभी के मुँह से चुदाई की बात सुन मेरा लंड फनफनाने लगा।

'सुम्मी यहाँ तो बहुत काम रहता है इसलिए थक जाता था। वापस आने के बाद मेरा प्रमोशन हो जाएगा और उतना काम नहीं होगा। फिर तो मैं तुम्हें रोज चोदूँगा... बोलो मेरी जान रोज चुदवाओगी ना..।'

'मेरे राजा.. सच बताऊँ मेरा दिल तो रोज ही चुदवाने को करता है, पर आपको तो चोदने की फ़ुर्सत ही नहीं... क्या कोई अपनी जवान बीवी को महीने में सिर्फ़ दो-तीन बार ही चोद कर रह जाता है?'

'तो तुम मुझसे कह नहीं सकती थी?'

'कैसी बातें करते हैं? औरत जात हूँ.. चोदने में पहल करना तो मर्द का काम होता है। मैं आपसे क्या कहती? चोदो मुझे? रोज रात को आपके लंड के लिए तरसती रहती हूँ।'

'सुम्मी तुम जानती हो मैं ऐसा नहीं हूँ। याद है अपना हनीमून... जब दस दिन तक लगातार दिन में तीन-चार बार तुम्हें चोदता था? बल्कि उस वक़्त तो तुम मेरे लंड से घबरा कर भागती फिरती थीं।'

'याद है मेरे राजा... लेकिन उस वक़्त तक सुहागरात की चुदाई के कारण मेरी चूत का दर्द दूर नहीं हुआ था। आपने भी तो सुहागरात को मुझे बड़ी बेरहमी से चोदा था।'

'उस वक़्त मैं अनाड़ी था मेरी जान...'

'अनाड़ी की क्या बात थी... किसी लड़की की कुंवारी चूत को इतने मोटे, लम्बे लंड से इतनी ज़ोर से चोदा जाता है क्या? कितना खून निकाल दिया था आपने मेरी चूत में से, पूरी चादर खराब हो गई थी। अब जब मेरी चूत आपके लंड को झेलने के लायक हो गई है तो आपने चोदना ही कम कर दिया है।'

'अब चोदने भी दोगी या सारी रात बातों में ही गुजार दोगी?' यह कह कर भैया भाभी के कपड़े उतार कर नंगी करने लगे।

'सुम्मी, मैं तुम्हारी यह कच्छी साथ ले जाऊँगा।'

'क्यों? आप इसका क्या करेंगे?'

'जब भी चोदने का दिल करेगा तो इसे अपने लंड से लगा लूँगा।'

कच्छी उतार कर शायद भैया ने लंड भाभी की चूत में पेल दिया, क्योंकि भाभी के मुँह से आवाजें आने लगीं- अया... ऊवू... अघ.. आह.. आह.. आह.. आह!

'सुम्मी आज तो सारी रात फ़ुद्दी लूँगा तुम्हारी...'

'लीजिए ना.. आआहह... कौन... आ रोक रहा है? आपकी चीज है.. जी भर के चोदिए... उई माआ...'

'थोड़ी टाँगें और चौड़ी करो.. हाँ अब ठीक है.. आह.. पूरा लंड जड़ तक घुस गया है..'

'आआआ...ह.. ऊ...'

'सुम्मी, चुदाई में मज़ा आ रहा है मेरी जान?'

'हूँ...आआआह..'

'सुम्मी..'

'जी..'

'अब 6 महीने तक इस खूबसूरत चूत की प्यास कैसे बुझाओगी?'

'आपके इस मोटे लंड के सपने ले कर ही रातें गुजारूँगी।'

'मेरी जान, तुम्हें चुदवाने में सचमुच बहुत मज़ा आता है?'

'हाँ.. मेरे राजा बहुत मज़ा आता है क्योंकि आपका ये मोटा लम्बा लंड मेरी चूत को तृप्त कर देता है।'

'सुम्मी मैं वादा करता हूँ, वापस आकर तुम्हारी इस टाइट चूत को चोद-चोद कर फाड़ डालूँगा।'

'फाड़ डालिए ना, उई...ह मैं भी तो यही चाहती हूँ।'

'सच.. अगर फट गई तो फिर क्या चुदवाओगी?'

'हटिए भी आप तो, आपको सचमुच ये इतनी अच्छी लगती है?'

'तुम्हारी कसम मेरी जान... इतनी फूली हुई चूत को छोड़ कर तो मैं धन्य हो गया हूँ और फिर इसकी मालकिन चुदवाती भी तो कितने प्यार से है।'

'जब चोदने वाले का लंड इतना मोटा तगड़ा हो तो चुदवाने वाली तो प्यार से चुदवाएगी ही.. मैं तो आपके लंड के लिए उई...ह.. ऊ.. बहुत तड़फूंगी.. आख़िर मेरी प्यास तो...आआ... यही बुझाता है।'

भैया ने सारी रात जम कर भाभी की चुदाई की... सवेरे भाभी की आँखें सारी रात ना सोने के कारण लाल थीं।

भैया सुबह 6 महीने के लिए मुंबई चले गए। मैं बहुत खुश था, मुझे पूरा विश्वास था कि इन 6 महीनों में तो मैं भाभी को अवश्य ही चोद पाऊँगा।

'तुम्हारी कसम मेरी जान... इतनी फूली हुई चूत को छोड़ कर तो मैं धन्य हो गया हूँ और फिर इसकी मालकिन चुदवाती भी तो कितने प्यार से है।'

'जब चोदने वाले का लंड इतना मोटा तगड़ा हो तो चुदवाने वाली तो प्यार से चुदवाएगी ही.. मैं तो आपके लंड के लिए उई...ह.. ऊ.. बहुत तड़फूंगी.. आख़िर मेरी प्यास तो...आआ... यही बुझाता है।'

भैया ने सारी रात जम कर भाभी की चुदाई की... सवेरे भाभी की आँखें सारी रात ना सोने के कारण लाल थीं।

भैया सुबह 6 महीने के लिए मुंबई चले गए। मैं बहुत खुश था, मुझे पूरा विश्वास था कि इन 6 महीनों में तो मैं भाभी को अवश्य ही चोद पाऊँगा।

हालाँकि अब भाभी मुझसे खुल कर बातें करती थीं लेकिन फिर भी मेरी भाभी के साथ कुछ कर पाने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी।

मैं मौके की तलाश में था।

भैया को गए हुए एक महीना बीत चुका था। जो औरत रोज चुदवाने को तरसती हो उसके लिए एक महीना बिना चुदाई गुजारना मुश्किल था।

भाभी को वीडियो पर पिक्चर देखने का बहुत शौक था। एक दिन मैं इंग्लिश की बहुत सेक्सी सी ब्लू-फिल्म ले आया और ऐसी जगह रख दी, जहाँ भाभी को नजर आ जाए।

उस पिक्चर में 7 इन्च लम्बे लौड़े वाला तगड़ा काला आदमी एक किशोरी गोरी लड़की को कई मुद्राओं में चोदता है और उसकी गाण्ड भी मारता है।

जब तक मैं कॉलेज से वापस आया तब तक भाभी वो पिक्चर देख चुकी थीं।

मेरे आते ही बोलीं- यह तू कैसी गंदी-गंदी फ़िल्में देखता है?

'अरे भाभी आपने वो पिक्चर देख ली? वो आपके देखने की नहीं थी।'

'तू उल्टा बोल रहा है.. वो मेरे ही देखने की थी.. शादीशुदा लोगों को तो ऐसी पिक्चर देखनी चाहिए.. हे राम... क्या-क्या कर रहा था वो लम्बा-तगड़ा कालू.. उस छोटी सी लड़की के साथ.. बाप रे...!'

'क्यों भाभी, भैया आपके साथ ये सब नहीं करते हैं?'

'तुझे क्या मतलब...? और तुझे शादी से पहले ऐसी फ़िल्में नहीं देखनी चाहिए।'

'लेकिन भाभी अगर शादी से पहले नहीं देखूँगा तो अनाड़ी न रह जाऊँगा। पता कैसे लगेगा कि शादी के बाद क्या किया जाता है।'

'तेरी बात तो सही है.. बिल्कुल अनाड़ी होना भी ठीक नहीं.. वरना सुहागरात को लड़की को बहुत तकलीफ़ होती है। तेरे भैया तो बिल्कुल अनाड़ी थे।'

'भाभी, भैया अनाड़ी थे क्योंकि उन्हें बताने वाला कोई नहीं था। मुझे तो आप समझा सकती हैं लेकिन आपके रहते हुए भी मैं अब तक अनाड़ी हूँ। तभी तो ऐसी फिल्म देखनी पड़ती हैं और उसके बाद भी बहुत सी बातें समझ नहीं आती। खैर.. आपको मेरी फिकर कहाँ होती है?'

'राजू, मैं जितनी तेरी फिकर करती हूँ उतनी शायद ही कोई करता हो। आगे से तुझे शिकायत का मौका नहीं दूँगी। तुझे कुछ भी पूछना हो, बे-झिझक पूछ लिया कर। मैं बुरा नहीं मानूँगी। चल अब खाना खा ले।'

'तुम कितनी अच्छी हो भाभी।' मैंने खुश हो कर कहा।

अब तो भाभी ने खुली छूट दे दी थी, मैं किसी तरह की भी बात भाभी से कर सकता था लेकिन कुछ कर पाने की अब भी हिम्मत नहीं थी।

मैं भाभी के दिल में अपने लिए चुदाई की भावना जागृत करना चाहता था।

भैया को गए अब करीब दो महीने हो चले थे, भाभी के चेहरे पर लंड की प्यास साफ ज़ाहिर होती थी।

एक बार रविवार को मैं घर पर था, भाभी कपड़े धो रही थीं, मुझे पता था कि भाभी छत पर कपड़े सूखने डालने जाएगीं।

मैंने सोचा क्यों ना आज फिर भाभी को अपने लंड के दर्शन कराए जाएँ, पिछले दर्शन तीन महीने पहले हुए थे।

मैं छत पर कुर्सी डाल कर उसी प्रकार लुंगी घुटनों तक उठा कर बैठ गया।

जैसे ही भाभी के छत पर आने की आहट सुनाई दी, मैंने अपनी टाँगें फैला दीं और अख़बार चेहरे के सामने कर लिया।

अख़बार के छेद में से मैंने देखा की छत पर आते ही भाभी की नजर मेरे मोटे, लम्बे साँप के माफिक लटकते हुए लंड पर गई।

भाभी की सांस तो गले में ही अटक गई, उनको तो जैसे साँप सूंघ गया, एक मिनट तक तो वो अपनी जगह से हिल नहीं सकीं, फिर जल्दी कपड़े सूखने डाल कर नीचे चल दीं।

'भाभी कहाँ जा रही हो, आओ थोड़ी देर बैठो।' मैंने कुर्सी से उठते हुए कहा।

भाभी बोली- अच्छा आती हूँ... तुम बैठो मैं तो नीचे चटाई डाल कर बैठ जाऊँगी।

अब तो मैं समझ गया कि भाभी मेरे लंड के दर्शन जी भर के करना चाहती हैं, मैं फिर कुर्सी पर उसी मुद्रा में बैठ गया।

थोड़ी देर में भाभी छत पर आईं और ऐसी जगह चटाई बिछाई जहाँ से लुंगी के अन्दर से पूरा लंड साफ दिखाई दे।

उनके हाथ में एक उपन्यास था जिसे पढ़ने का बहाना करने लगीं लेकिन नज़रें मेरे लंड पर ही टिकी हुई थीं।

मेरा 8′ लम्बा और 4′ मोटा लंड और उसके पीछे अमरूद के आकार के अंडकोष लटकते देख उनका तो पसीना ही छूट गया।

अनायास ही उनका हाथ अपनी चूत पर गया और वो उसे अपनी सलवार के ऊपर से रगड़ने लगीं। जी भर के मैंने भाभी को अपने लंड के दर्शन कराए।

जब मैं कुर्सी से उठा तो भाभी ने जल्दी से उपन्यास अपने चेहरे के आगे कर लिया, जैसे वो उपन्यास पढ़ने में बड़ी मग्न हों।

मैंने कई दिन से भाभी की गुलाबी कच्छी नहीं देखी थी। आज भी वो नहीं सूख रही थी।

मैंने भाभी से पूछा- भाभी बहुत दिनों से आपने गुलाबी कच्छी नहीं पहनी?

'तुझे क्या?'

'मुझे वो बहुत अच्छी लगती है। उसे पहना करिए ना।'

'मैं कौन सा तेरे सामने पहनती हूँ?'

'बताईए ना भाभी कहाँ गई, कभी सूखती हुई भी नहीं नजर आती।'

'तेरे भैया ले गए हैं.. कहते थे कि वो उन्हें मेरी याद दिलाएगी।' भाभी ने शरमाते हुए कहा।

'आपकी याद दिलाएगी या आपके टांगों के बीच में जो चीज़ है उसकी?'

'हट मक्कार.. तूने भी तो मेरी एक कच्छी मार रखी है, उसे पहनता है क्या? पहनना नहीं, कहीं फट ना जाए।' भाभी मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं।

'फटेगी क्यों? मेरे कूल्हे आपके जितने भारी और चौड़े तो नहीं हैं।'

'अरे बुद्धू, कूल्हे तो बड़े नहीं हैं लेकिन सामने से तो फट सकती है। तुझे तो वो सामने से फिट भी नहीं होगी।'

'फिट क्यों नहीं होगी भाभी?' मैंने अंजान बनते हुए कहा।

'अरे बाबा, मर्दों की टांगों के बीच में जो 'वो' होता है ना, वो उस छोटी सी कच्छी में कैसे समा सकता है और वो तगड़ा भी तो होता है, कच्छी के महीन कपड़े को फाड़ सकता है।'

'वो'.. क्या भाभी?' मैंने शरारत भरे अंदाज में पूछा।

भाभी जान गईं कि मैं उनके मुँह से क्या कहलवाना चाहता हूँ।

'मेरे मुँह से कहलवाने में मज़ा आता है?'

'एक तरफ तो आप कहती हैं कि आप मुझे सब कुछ बताएँगी और फिर साफ-साफ बात भी नहीं करती। आप मुझसे और मैं आपसे शरमाता रहूँगा तो मुझे कभी कुछ नहीं पता लगेगा और मैं भी भैया की तरह अनाड़ी रह जाऊँगा। बताइए ना..!'

'तू और तेरे भैया दोनों एक से हैं। मेरे मुँह से सब कुछ सुन कर तुझे ख़ुशी मिलेगी?'

'हाँ.. भाभी बहुत ख़ुशी मिलेगी और फिर मैं कोई पराया हूँ।'

'ऐसा मत बोल राजू... तेरी ख़ुशी के लिए मैं वही करूँगी जो तू कहेगा।'

'तो फिर साफ-साफ बताईए आपका क्या मतलब था।'

'मेरे बुद्धू देवर जी, मेरा मतलब यह था कि मर्द का वो बहुत तगड़ा होता है औरत की नाज़ुक कच्छी उसे कैसे झेल पाएगी? और अगर वो खड़ा हो गया तब तो फट ही जाएगी ना।'

'भाभी आपने 'वो... वो' क्या लगा रखी है, मुझे तो कुछ नहीं समझ आ रहा।'

'अच्छा अगर तू बता दे उसे क्या कहते है तो मैं भी बोल दूँगी।' भाभी ने लजाते हुए कहा।

'भाभी मर्द के उसको लंड कहते हैं।'

'हाँ... मेरा भी मतलब यही था।'

'क्या मतलब था आपका?'

'कि तेरा लंड मेरी कच्छी को फाड़ देगा। अब तो तू खुश है ना?'

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'हाँ भाभी बहुत खुश हूँ। अब ये भी बता दीजिए कि आपकी टांगों के बीच में जो है, उसे क्या कहते हैं।'

'उसे..! मुझे तो नहीं पता.. ऐसी चीज़ें तो तुझे ही पता होती हैं, तू ही बता दे।'

'भाभी उसे चूत कहते हैं।'

'हाय.. तुझे तो शर्म भी नहीं आती... वही कहते होंगे।'

'वही क्या भाभी?'

'ओह हो.. बाबा, चूत और क्या।' भाभी के मुँह से लंड और चूत जैसे शब्द सुन कर मेरा लंड फनफनाने लगा। अब तो मेरी हिम्मत और बढ़ गई।

मैंने भाभी से कहा- भाभी, इसी चूत की तो दुनिया इतनी दीवानी है।

'अच्छा जी तो देवर जी भी इसके दीवाने हैं।'

'हाँ मेरी प्यारी भाभी किसी की भी चूत का नहीं सिर्फ़ आपकी चूत का दीवाना हूँ।'

'तुझे तो बिल्कुल भी शर्म नहीं है। मैं तेरी भाभी हूँ।' भाभी झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोलीं।

'ओह हो.. बाबा, चूत और क्या।' भाभी के मुँह से लंड और चूत जैसे शब्द सुन कर मेरा लंड फनफनाने लगा। अब तो मेरी हिम्मत और बढ़ गई।

मैंने भाभी से कहा- भाभी इसी चूत की तो दुनिया इतनी दीवानी है।

'अच्छा जी तो देवर जी भी इसके दीवाने हैं?'

'हाँ मेरी प्यारी भाभी किसी की भी चूत का नहीं सिर्फ़ आपकी चूत का दीवाना हूँ।'

'तुझे तो बिल्कुल भी शर्म नहीं है। मैं तेरी भाभी हूँ।' भाभी झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोलीं।

'अगर मैं आपको एक बात बताऊँ तो आप बुरा तो नहीं मानेंगी?'

'नहीं राजू... देवर-भाभी के बीच तो कोई झिझक नहीं होनी चाहिए और अब तो तूने मेरे मुँह से सब कुछ कहलवा दिया है, लेकिन मेरी कच्छी तो वापस कर दे।'

'सच कहूँ भाभी, रोज रात को उसे सूंघता हूँ तो आपकी चूत की महक मुझे मदहोश कर डालती है। जब मैं अपना लंड आपकी कच्छी से रगड़ता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे लंड आपकी चूत से रगड़ रहा हो।'

'ओह.. अब समझी देवर जी मेरी कच्छी के पीछे क्यों पागल हैं.. इसीलिए तो कहती हूँ तुझे एक सुन्दर सी बीवी की जरूरत है।'

'लेकिन मैं तो अनाड़ी हूँ। आपने तो वादा करके भी कुछ नहीं बताया। उस दिन आप कह रही थीं कि मर्द अनाड़ी हो तो लड़की को सुहागरात में बहुत तकलीफ़ होती है। आपका क्या मतलब था? आपको भी तकलीफ़ हुई थी?'

'हा राजू, तेरे भैया अनाड़ी थे। सुहागरात को मेरी साड़ी उठा कर बिना मुझे गर्म किए चोदना शुरू कर दिया। अपने 8′ लम्बे और 3′ मोटे लंड से मेरी कुँवारी चूत को बहुत ही बेरहमी से चोदा। बहुत खून निकला मेरी चूत से। अगले एक महीने तक दर्द होता रहा।'

मेरा लंड देखने के बाद से भाभी काफ़ी उत्तेजित हो गई थी और बिल्कुल ही शरमाना छोड़ दिया था।

'लड़की को गर्म कैसे करते हैं भाभी?'

'पहले प्यार से उससे बातें करते हैं। फिर धीरे-धीरे उस के कपड़े उतारते हैं। उसके बदन को सहलाते हैं। उसकी होंठों को और चूचियों को चूमते हैं, फिर प्यार से उसकी चूचियों और चूत को मसलते हैं। फिर हल्के से एक ऊँगली उसकी चूत में सरका कर देखते हैं कि लड़की की चूत पूरी तरह गीली है। अगर चूत गीली है, इसका मतलब लड़की चुदने के लिए तैयार है। इसके बाद प्यार से उसकी टाँगें उठा कर धीरे-धीरे लंड अन्दर डाल देते हैं। पहली रात ज़ोर-ज़ोर से धक्के नहीं मारते।'

'भाभी उस फिल्म में तो वो कालू उस लड़की की चूत चाटता है, लड़की भी लंड चूसती है। कालू उस लड़की को कई तरह से चोदता है। यहाँ तक की उसकी गाण्ड भी मारता है।'

'अरे बुद्धू, ये सब पहली रात को नहीं किया जाता, धीरे-धीरे किया जाता है।'

'भाभी, भैया भी वो सब आपके साथ करते हैं?'

'नहीं रे.. तेरे भैया अनाड़ी थे और अब भी अनाड़ी हैं। उनको तो सिर्फ़ टाँगें उठा कर पेलना आता है। अक्सर तो पूरी तरह नंगी किए बिना ही चोदते हैं। औरत को मज़ा तो पूरी तरह नंगी हो कर ही चुदवाने में आता है।'

'भाभी आपको नंगी हो कर चुदवाने मे बहुत मज़ा आता है?'

'क्यों मैं औरत नहीं हूँ? अगर मोटा तगड़ा लंड हो और चोदने वाला नंगी करके प्यार से चोदे तो बहुत ही मज़ा आता है।'

'लेकिन भैया का लंड तो मोटा-तगड़ा होगा। पर.. हाँ मेरे लंड की बराबरी नहीं कर सकता है।'

'तुझे कैसे पता?'

'मुझे तो नहीं पता, लेकिन आप तो बता सकती हैं।'

'मैं कैसे बता सकती हूँ? मैंने तेरा लंड तो नहीं देखा है।' भाभी ने बनते हुए कहा।

मैं मन ही मन मुस्कराया और बोला- तो क्या हुआ भाभी.. कहो तो अभी आपको अपने लंड के दर्शन करा देता हूँ, आप नाप लो किसका बड़ा है।'

'हट बदमाश..!'

'अगर आप दर्शन नहीं करना चाहती तो कम से कम मुझे तो अपनी चूत के दर्शन एक बार करवा दीजिए। सच भाभी मैंने आज तक किसी की चूत नहीं देखी।'

'चल नालायक.. तेरी शादी जल्दी करवा दूँगी... इतना उतावला क्यों हो रहा है।'

'उतावला क्यों ना होऊँ? मेरी प्यारी भाभी को भैया सारी-सारी रात खूब जम कर चोदें और मेरी किस्मत में उनकी चूत के दर्शन तक ना हो। इतनी खूबसूरत भाभी की चूत तो और भी लाजवाब होगी। एक बार दिखा दोगी तो घिस तो नहीं जाओगी। अच्छा, इतना तो बता दो कि आपकी चूत भी उतनी ही चिकनी है जितनी फिल्म में उस लड़की की थी?'

'नहीं रे, जैसे मर्दों के लंड के चारों तरफ बाल होते हैं वैसे ही औरतों की चूत पर भी बाल होते हैं। उस लड़की ने तो अपने बाल शेव कर रखे थे।'

'भाभी तब तो जितने घने और सुन्दर बाल आपके सिर पर है उतने ही घने बाल आपकी चूत पर भी होंगे? आप अपनी चूत के बाल शेव नहीं करती?'

'तेरे भैया को मेरी झांटें बहुत पसंद हैं इसलिए शेव नहीं करती।'

'हाय भाभी.. आपकी चूत की एक झलक पाने के लिए कब से पागल हो रहा हूँ और कितना तड़पाओगी?'

'सबर कर, सबर कर... सबर का फल हमेशा मीठा होता है।' यह कह कर बारे ही कातिलाना अंदाज में मुस्कराती हुई नीचे चली गईं।

मेरे लंड के दुबारा दर्शन करने के बाद से तो भाभी का काफ़ी बुरा हाल था।

एक दिन मैंने उनके कमरे में मोटा सा खीरा देखा। मैंने उसे सूंघ कर देखा तो खीरे में से भी वैसी ही महक आ रही थी जैसी भाभी की कच्छी में से आती थी। लगता था भाभी खीरे से ही चूत की भूख मिटाने की कोशिश कर रही थीं।

मुझे मालूम था की गंदी पिक्चर भी वो कई बार देख चुकी थीं। भैया को गए हुए तीन महीने बीत गए थे।

घर में मोटा-ताज़ा लंड मौज़ूद होने के बावज़ूद भी भाभी लंड की प्यास में तड़प रही थीं।

मैंने एक और प्लान बनाया। बाज़ार से एक हिन्दी का बहुत ही कामुक उपन्यास लाया जिसमें देवर-भाभी की चुदाई के किस्से थे। उस उपन्यास में भाभी अपने देवर को रिझाती है। वो जानबूझ कर कपड़े धोने इस प्रकार बैठती है कि उसके पेटीकोट के नीचे से देवर को उसकी चूत के दर्शन हो जाते हैं। ये उपन्यास मैंने ऐसी जगह रखा, जहाँ भाभी के हाथ लग जाए।

एक दिन जब मैं कॉलेज से वापस आया तो मैंने पाया कि वो उपन्यास अपनी जगह पर नहीं था। मैं जान गया कि भाभी वो उपन्यास पढ़ चुकी हैं।

अगले इतवार को मैंने देखा कि भाभी कपड़े गुसलखाने में धोने के बजाय बरामदे के नलके पर धो रही थीं। उन्होंने सिर्फ़ ब्लाउस और पेटीकोट पहन रखा था।

मुझे देख कर बोलीं- आ राजू बैठ... तेरे कोई कपड़े धोने है तो देदे।

मैंने कहा- मेरे कोई कपड़े नहीं धोने हैं।

मैं भाभी के सामने बैठ गया। भाभी इधर-उधर की गप्पें मारती रहीं। अचानक भाभी के पेटीकोट का पिछला हिस्सा नीचे सरक गया।

सामने का नज़ारा देख कर तो मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।

भाभी की गोरी-गोरी माँसल जाँघों के बीच में से सफेद रंग की कच्छी झाँक रही थी। भाभी जिस अंदाज में बैठी हुई थीं उसके कारण कच्छी भाभी की चूत पर बुरी तरह कसी हुई थी।

फूली हुई चूत का उभार मानो कच्छी को फाड़ कर आज़ाद होने की कोशिश कर रहा हो। कच्छी चूत के कटाव में धँसी हुई थी। कच्छी के दोनों तरफ से काली-काली झांटें बाहर निकली हुई थीं।

मेरे लंड ने हरकत करनी शुरू कर दी। भाभी मानो बेख़बर हो कर कपड़े धोती जा रही थीं और मुझसे गप्पें मार रही थीं।

अभी मैं भाभी की टांगों के बीच के नज़ारे का मज़ा ले ही रहा था कि वो अचानक उठ कर अन्दर जाने लगीं।

मैंने उदास होकर पूछा- भाभी कहाँ जा रही हो?'

'बस एक मिनट में आई...'

थोड़ी देर में वो बाहर आईं। उनके हाथ में वही सफेद कच्छी थी जो उन्होंने अभी-अभी पहनी हुई थी।

odinchacha
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