महारानी देवरानी 062

Story Info
मिलन - भाई बहन, और सेनापति महारानी सृष्टि का
3.7k words
3.5
22
00

Part 62 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 62

मिलन - भाई बहन, सेनापति महारानी सृष्टि का

बलदेव अपनी माँ को छोड़ कर बाहर आता है तो देखता है बद्री, श्याम बैठे एक दूसरे से बात कर रहे हैं।

बलदेव: तुम दोनों बाहर वह क्यू रुक गए, मल्लिका जहाँ से मिलने क्यू नहीं आए?

श्याम: वो बस प्यास लग गई थी तो पानी पीने के लिए रुक गए थे ।

बलदेव: ठीक है चलो मेरे साथ उन से मिलवाता हूँ ।

बद्री: रहने दो बलदेव अभी हम थके हुए हैं बाद में मिल लेंगे वैसे भी हम कुछ दिन तक यहीं हैं ।

बद्री का स्पाट जवाब सुनने के बाद जो बद्री ने बिना बलदेव को देखा हुआ कहा था बलदेव सोचने लगा ।

बलदेव (मन में: मेरी हर बात मानने वाला बद्री आज कल मुझ से यु चिढ़ा क्यू रहता है और बीच रास्ते में कह रहा था इसे वापिस जाना है, पता नहीं क्या चल रहा है इसके दिमाग में!)

बलदेव: ठीक है श्याम, बद्री! तुम दोनों हाथ मुह धो लो।

सैनिक: आप सब कक्ष के पास के गुसलखाने को इश्तमाल में ले सकते हैं।

बलदेव: धन्यवाद!

तीनो हाथ मुँह धोने चले जाते हैं। इधर देवरानी के साथ बैठी हुरिया गप्पे लगा रही थी।

हुरिया: अच्छा जी तो तुम पारसी हो वैसे मैं मिश्र की हूँ।

देवरानी: वाह मिश्र तो बहुत बड़ा राष्ट्र है।

हुरिया: देखो तुम इतने सालो बाद आई हो और शमशेरा को भी आज ही देवराज जी को ले कर जाना था।

देवरानी: आरी दीदी इसमें बेचारे युवराज शमशेरा की क्या गलती ।

हुरिया: बेचारा...शैतान है एक नंबर का!

तभी सैनिक आता है।

"मल्लिकाजहाँ शहजादे शमशेरा राजा देवराज जी के साथ वापस आ गए हैं।"

हुरिया एक मुस्कान से

"देखा देवरानी नाम लेते ही शैतान हाज़िर।"

देवरानी: हेहेहे दीदी । उम्र लम्बी है युवराज और मेरे भाई की ।

हुरिया: जाओ अपने भाई से मिल लो।

देवरानी का मुंह अपने भाई के आने के आभास से ही दिल की धड़कन बढ़ जाती है और फिर खुशी के मारे उसके लिए एक पल भी गुजारना मुश्किल था।

देवरानी उठ के जाने लगती है तभी उसके कानों में आवाज आती है।

सैनिक: होशियार सुल्तान मीर वाहिद तशरीफ़ ला रहे हैं।

हुरिया: रुक जाओ देवरानी लगती है वह सब यहीं आ रहे हैं।

हुरिया की कक्षा के आगे खड़ा सैनिक -"मल्लिका जहाँ बाहर सुल्तान के साथ राजा देवराज आये है।"

हुरिया झट से अपने नकाबसे फिर से अपने चेहरे पर ढक लेती है।

हुरिया: आजाए सुलतान।

देवरानी उठ खड़ी होती है।

सामने से लम्बे चौड़ी कद काठी का देवराज जिसके चेहरे पर आधी सफ़ेद आधी काली दाढ़ी थी सुलतान के साथ आ रहा था

देवराज देखता है लम्बे चौड़े बदन की मालकिन। सफेद गोरा रंग की अपनी बहन को आज 18 साल बाद देख उसकी आँखों से आसु छलक जाते हैं।

"देवरानी मेरी बहना।!"

देवरानी अपने भाई की आँखों में आसू देख के उसकी आँखों से भी धडा-धड आसू बहने लगते है।

"भैयाआ।"

देवरानी अपने भाई के पास जा कर सबसे पहले उसके चरण स्पर्श करती है।

"उठ जाओ मेरी बहन।"

देवराज उसकी बाहे पकड़ कर उसे उठाता है ।

देवराज देवरानी के सर पर हाथ फेर कर उसके सर को अपने सीने पर रख देता है।

"मुझे क्षमा कर दो! मेरी बहन मुझे! इतने वर्षों से मैं तुमसे मिल नहीं सका।"

"भैया एक आप तो हैं मेरे इस दुनिया में।"

"बहन क्षमा कर दे मुझे! मैं राखी का लाज रख ना सका।"

देवरानी फूट-फूट के रो पड़ती है।

देवराज अपनी बहन के आसु पूछते हुए कहता है ।

"अब हम मिल गए हैं ना, अब मैं अपनी बहन के ऊपर कोई दुख नहीं आने दूंगा।"

उतने में बलदेव आजाता है।

देवरानी अपना आसू पूछती है।

"खड़े क्यू हो बलदेव! आकर चरण छूओ मामा के."

बलदेव आकर माँ के चरण स्पर्श करता है। प्रणाम मामा!

"जीते रहो भांजे!"

"ये तो मेरे से भी ज्यादा लंबा हो गया देवरानी।"

"हा भैया आप पर ही गया है।"

सुल्तान: देवराज जी! शाम होने आई चलो पहले इन सब को खाना खिलवाए!

देवराज: जी सुल्तान!

वहा से सब खाने के लिए निकल जाते हैं।

"घाटराष्ट्र"

महारानी श्रुष्टि तेजी से चल कर बाहर आती है और महल में घुस कर अपने कक्ष में जा कर लेट जाती है। आज कई वर्षों बाद श्रुष्टि इतना परेशान थी । पलंग पर आकर लेटी हुई शुश्ष्टि अपने बेबसी से परेशान थी। उसके आखो में आसु थे जिसे वह ना छुपा पा रही थी ना किसी को दिखा पा रही थी क्यू के एक स्त्री कितनी भी बुरी हो ख़ुशी से अपने शरीर का सौदा नहीं कर सकती।

शुरुष्टि: राधा! पानी लाना।

राधा: लाई महारानी।

शुरष्टि: (मन में-क्या करूं मैं इस कमीने सेनापति ने तो मुझे बड़े असमंजस की स्थिति में डाल दिया है । मैं किसी की मदद भी नहीं ले सकती, महाराज को बोलू!...नहीं नहीं वह पूछेंगे के तुम ऐसा क्यू किया? महाराज और घाटराष्ट्र वासियों को पता चला की मैं बलदेव को मरवाना चाह रही हूँ तो वह सब मेरे लिए फाँसो की सजा की मांग जरूर करेंगे ।)

राधा: महारानी पानी!

शुरुष्टि: हाँ लाओ!

राधा: क्या हुआ? आप चिंतित प्रतीत होती हैं।

शुरष्टि: नहीं राधा ऐसी बात नहीं है ।

राधा: तो फिर आपके माथे पर पसीना क्यों है ।

शुरष्टि: वो...वो तो बस बाहर से आई थी इसलिए ।

राधा: आपने दोपहर का भोजन भी नहीं किया।

शुरुआत: मेरे खाने का मन नहीं है। अभी तुम जाओ ।

राधा सोचते हुए चली जाती है की महारानी जरूर कुछ छुपा रही है।

शुरष्टि मन में: क्या करु अपनी इज्जत बचाने के लिए भाग जाउ।, यहाँ से। पर कहाँ जाउ, कुछ समझ नहीं आ रहा ।

सोचते सोचते शुरुआत की आँख लग जाती है, जब उठती है तो शाम हो गई थी।

शुरष्टि जा कर स्नान करती है। फिर अपने वस्त्र बदल कर बाहर आती है।

शुरष्टि महल से बाहर निकल कर -"सैनिको महाराज कहाँ है?"

सैनिक: महारानी वह सीमा पर गए हैं ।

शुरष्टि धड़कते दिल के साथ ये सुन और रास्ता साफ देख कर सेना गृह की ओर चल देती है। उसका हर कदम लड़खड़ाहट से साथ आगे बढ़ रहा था।

शुरष्टि: (मन में-भगवान क्षमा करना मेरे पास अपनी जान बचाने का कोई चारा नहीं है । क्षमा करना महाराज राजपाल मुझे।)

चलते हुए शूरुष्टि सेनापति सोमनाथ की कक्ष के द्वार पर पहुचती है।

शूरुष्टि रुक जाती है उसका शरीर कांपने लगता है । हिम्मत कर के शूरुष्टि अपने हाथ से दरवाजे पर ठक-ठक करती है। थोड़ी देर बाद अंदर से सेनापति सोमनाथ दरवाजा खोलता है।

जैसे ही शूरुष्टि की नज़र सेनापति पर पड़ती है, शुरष्टि अपने सर नीचे झुका लेती है।

सेनापति: स्वागत है राजपूतानी महारानी श्रुष्टि का! पधारिये महारानी।

शुरुआत दबे पांव अंदर आती है और सेनापति फुर्ती से दरवाजे को बंद करता है।

सेनापति: शर्मा क्यू रही हो महारानी? अपना खुबसूरत चेहरा तो ऊपर उठाएँ!

शुरष्टि शर्माती हुई अपना सर ऊपर उठाती है।

सेनापति: अच्छा हुआ आप आगयी क्यू के अगर आप कुछ पल और देरी कर देती तो मैं अभी बाहर जा कर घाटराष्ट्र की प्रजा के सामने आपका कच्चा चिट्ठा रख देता

शुरुष्टि दुःख और गुस्से के साथ बोलती है ।

"तुम्हे! एक स्त्री की इज्जत से खेलने का पाप लगेगा तुम देखना ये तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा ।"

सेनापति: वैसे तुम पर किसी को जान से मारने का तो कोई पाप नहीं लगेगा क्यों रानी साहिबा?

शुरुष्टि आँखे तरेरती है पर चुप रहती है ।

सेनापति: रानी! तुम पर ऐसे ही तेवर शोभा देते है । रस्सी जल गई पर तेवर वही है। हाहा! आखिर रानी हो!

सेनापति शुरुष्टि के हाथ पकड़ कर बिस्तर की ओर ले जाता है। शुरुष्टि सोमनाथ का हाथ झटक देती है।

"अरे मेरी रानी! आ तो गयी हो फिर क्यों लज्जा रही हो?"

सेनापति फिर शुरुष्टि के खुबसूरत हाथ को पकड़ के सहला रहा था।

"क्या सुंदर है आपके हाथ महारानी। ये सुंदर हाथ किसी की जान भी ले सकते है मैंने ऐसा सोचा नहीं था।"

जो करना है जल्दी करो! नहीं तो इसी से ही तुम्हारा गला दबा दूंगी। "

"हम तो पहले ही मर मिटें तैयार हैं आपकी सुन्दरता पर महारानी।"

सेनापति झुक कर शुरुआत के हाथ पर चुमता है।

"उम्म्म्ह्ह्हआआ!"

श्रुष्टि: आह!

सेनापति: क्षमा कीजिए महारानी पर इस कक्ष के बिस्तर पर धूल है। ये कक्ष और बिस्तर आपके महल के जितने साफ नहीं है ।

शुरष्टि अपना मुंह दूसरी ओर फेर लेती है।

सेनापति सोमनाथ श्रुष्टि को बाहो में भर लेता है शुरष्टि अपना मुंह दूसरी तरफ लेती है।

सेनापति श्रुष्टि को अपनी बाहों में भर कर बोलता है "वाह! क्या ख़ुशबू है महारानी आपके बदन में, कितनी मुलायम हो आप!"

सेनापति का हाथ शुरष्टि के पीठ पर था और फिर शुरष्टि को लिए हुए सेनापति बिस्तर पर लेट जाता है।

शुरष्टि अपनी आंखे बंद कर लेती है

शुरष्टि: (मन में-छी! इस नीच के बिस्तर से कैसी दुर्गंध आ रही है।)

सेनापति अब शुरष्टि की टांगो के नीचे बैठ शुरष्टि की पैर के अंगूठो को चूमता है।

"उम्माहा"

"क्या रसगुल्ले जैसी पैर है महारानी!"

सेनापति पैरो को पहले चूमता है फिर चाटने लगता है और शुरष्टि के अंगुठे को अपने मुंह में ले लेता है।

"आह!" शुरूष्टि सिसकती है

सेनापति अब खूब अच्छे से शुरष्टि का अंगूठा चूसने लगता है।

शुरुष्टि: आआह उह!

सेनापति अब पिंडिलियों को चूमते हुए ऊपर बढ़ने लगता है और अपने होठों और जिभ से शुरष्टि की टांगो को गीला कर के चूमने लगता है।

शुरुष्टि: आआह आह उम्म! शुरष्टि आँखे ज़ोर से बंद कर लेती है।

सेनापति अब धीरे से महारानी का घाघरा ऊपर उठाने लगता है और उसके घुटने को चटने लगता है।

सेनापति: ह्म्म्म उम्म्म क्या चिकनी टाँगे है।

अब शुरष्टि का घाघरा घुटनो तक था। सेनापति घुटने पर चुम घाघरा ऊपर करता है जिसे शुरष्टि की चिकनी दूधिया जाँघे सामने आ जाती है।

सेनापति अपना हाथ जांघो पर रख हाथ जांघो पर फिराता है।

शूरश्री: आआआआआह!

सेनापति अब ज़ोर से जांघ को दबा कर जाँघे दबाता है

श्रुष्टि: आआआआह ओह्ह्ह!

सेनापति बारी-बारी से दोनों जांघो को चूमता है, चाटता है।

सेनापति अब शुरष्टि के दोनों टांगो को मोड़ कर शुरष्टि की टांगो की बीच में बैठ जाता है और शुरष्टि के घाघरे को कमर तक उठा देता है।

शुरष्टि की झाटो से भरी चूत देख सेनापति की आखे फटी रह जाती है।

सेनापति: हाय महारानी! असली खजाना तो महाराज ने यहाँ छुपा रखा है और वह पूरा संसार खजाना खोजने के लिए घुमते रहते हैं।

शुरुआत: चुप कर और जल्दी करो जो भी करना है।

सेनापति घाघरा पकड़ कर निकाल देता है और अपनी धोती खोल शुरष्टि के ऊपर लेट जाता है।

सेनापति एक कट्टाकट्टा मर्द था और 5.5 की 48 वर्ष आयु की महारानी के ऊपर लेट गया, जिस से महारानी श्रुष्टि को लगा उसका शरीर अब टूट जाएगा।

सेनापति 5.10 लंबाई का तगड़ा मर्द, आज महारानी के लिए बहुत भारी था क्यूकी राजपाल भी महारानी शुरष्टि से कुछ एक इंच ही ऊंचा था।

शुरष्टि: आआआह मार डाला रे!

सेनापति: अभी कहा मारा। अभी तो मारूंगा। सेनापति अपना लौड़ा देवरानी की झाटो से भरी चूत पर रख कर रगड़ता है।

श्रुष्टि: आआआह!

सेनापति देखता है कि धीरे-धीरे महारानी अब गरम हो रही है।

सेनापति चोली के ऊपर से वह शुरष्टि मध्यम आकर के वक्ष को अपने हाथ से सहलाते हुए दोनों को ज़ोर से दबा लेता है।

श्रुष्टि: आआआआह! सेनापति तुम्हारी इतनी जुर्रत!

सेनापति: आह! कितने मुलायम मखमली वक्ष हैं। महारानी जी आपके!

सेनापति झट से उसकी चोली खोलने लगता है। जिससे महारानी के दोनों वक्ष कूद कर बाहर आते हैं, जिसे देख सेनापति सोमनाथ अपने होठ पर अपनी जिभ फेरता है।

अब श्रुष्टि अपने आप को पूरा नंगा देख अपना हाथ अपने चेहरे पर रख लेती है।

सेनापति: शर्मा रही है महारानी! रानी तुम तो पूरी छमिया लग रही हो।

सेनापति आगे बढ़ कर दोनों वक्षो को हाथ में ले कर मरोड़ने लगता है। उसको दबाने लगता है और फिर निचोड़ते हुए अपना लौड़ा श्रुष्टि की बुर पर रगड़ रहा था।

शुरुष्टि: आआह नहीं!

सेनापति बारी-बारी से वक्षो को मुँह में ले कर चूसता है।

"गलप्प्प्प उम्म्ह आआआह!"

श्रुष्टि शर्म से अपने चेहरे को ढक लेती है।

सेनापति श्रुष्टि के हाथ हटा कर उसके चेहरे की तरफ अपना मुँह ले जाता है और अपने ओंठ श्रुष्टि के ओंठो की तरफ बढ़ाता है।

श्रुष्टि हाथ खोलती है और अपना हाथ से सीधे सोमनाथ की गर्दन को दबाती है।

सेनापति: क्या हुआ महारानी, आपको! अपने गुलाबी होठ चूसने दो!

श्रुष्टि: नहीं!

सेनापति: क्यू? क्या इस लोहार के ओंठ चूसने से राजपूतनी महारानी अपवित्र हो जाएगी?

शुरष्टि: तुम्हारी तो...!

राजपूतनी महारानी श्रुष्टि ज़ोर से सेनापति के गर्दन को दबाती है।

सेनापति अपना हाथ ज़ोर से शुरष्टि के वक्षो पर रगड़ता और वक्षो को दबाता है और अपना लौड़ा शुरष्टि की झाटों से भारी चूत पर रगड़ता है।

शुरष्टि हाथ से सेनापति सोमनाथ की गर्दन को छोड़ देती है और शुरष्टि की आँखे कामोतेजना से बंद हो जाती है।

सेनापति सोमनाथ: क्यों वैश्याओं जैसी हरकत कर रही हो, खुद भी भूल जाओ और मजे लो और मुझे भी मजे लेने दो।

सेनापति अपने होठ आगे बढ़ा शुरुआत के ओंठो को अपने मुँह में भर लेता है और उन्हें चूम कर चूसने लगता है।

"गैलल्लप्प गैलप्पप्प गैलप्पप्प! गैलप्पप गैलप्प-गैलप्प उम्म्म्ह स्लरप्प!"

साथ में सेनापति नीचे से शुरष्टि की चूत पर अपना 7 इंच का लौड़ा भी रगड़ रहा था और शुरष्टि के दोनों वक्ष को सेनापति निरंतर अपने हाथ से रगड़ रहा था।

सेनापति ओंठ छोड़ कर शुरष्टि के गाल को अपने दांत से पकड़ लेता है और गाल चुसने लगता है।

"उम्हहा गलप्प!"

शुरष्टि: आअहह आह ओह्ह!

सेनापति अपना दांत शुरष्टि के गाल पर लगा देता है।

शुरष्टि: आह दांत मत लगाओ, निशान पड़ जाएगा!

सेनापति अब सृष्टि को चुमता हुआ उसकी नाभि पर आकर अपनी जीभ से चाटने लगता है।

शुरष्टि: जल्दी करो महाराज आ जायगे।

सेनापति: महारानी वह रात से पहले नहीं आने वाले थे मैंने उन्हें आज दूर की सीमा पर भेजा है और शुरष्टि: को देख आख मार देता है।

शुरुष्टि: कामिने हो तुम!

सेनापति: अब क्या करे! हमारी तो हमेशा से चाहत थी कि कभी किसी महारानी को जरूर चोदूंगा। आज तुम मिल गई तो महाराज को दूर भेजना तो बनता ही था।

शुरुष्टि: हवसि कामिने!

सेनापति: महारानी! अब हम सेनापति बचपन से आपके राज्य को आगे बढ़ाने के लिए, अपना दिन रात एक करते हैं, युद्ध करते हैं। बदले में हमे क्या मिलता है? सूखी रोटी, सूखी चूत!

शुरष्टि: छी! क्या गंदी बात कर रहे हो?

सेनापति: आज! आपको चोद के मेरा सालो से महाराज के पीछे कुत्ते की तरह घूमना, सफल हो जाएगा।

सेनापति नाभि को चूमते हुए शुरष्टि: की टांगो के बीच जाकर उसकी टांगो को उठा देता है और उसकी झांटोदार चूत को सहलाते हुए चूत का छेद देखने लगता है और दो उंगली से चूत का दाना सहलाते हुए एक उंगली चूत में घुसा देता है।

श्रुष्टि: आआआआह!

उंगली चुत के अंदर बाहर करते हुए सेनापति शुरष्टि की चुत पर झुक कर अपने होंठ चुत पर रख चूमता है।

"उम्हहाआ! क्या प्यारी चूत है। महारानी!"

अब तेजी से उंगली अंदर बाहर करते हुए सेनापति शुरष्टि की चूत के ऊपर से बाहर चाटता है और फिर ऐसे ही चूत को चारो ओर से चाटने लगता है। अब सेनापति की उंगली पर गीला मेहसूस होता है वह अपनी उंगली से बाहर निकालता है और अपनी जीभ अंदर डाल कर अपने होठों से उसकी चूत को चूसना शुरू करता है ।

"उम्म्म आहा सेनापति नहीं!"

शुरष्टि की चुत से बहता पानी रुकने का नाम नहीं ले रहा था और सेनापति हर बहता हुआ पानी पीने लग जाता है। अब फिर से उंगली रख चुत में घुसा देता है और चुत के दाने पर अपनई जीभ रख कर चाटने लगता है।

शुरष्टि: आआआआआआह! हाये मैं मर गई!

"उह्ह्ह आआआआआह सेनापतिइइइइइइओना आआआआह सेनापतिईईईईईईई।" महारानी अब कराह रही थी ।

सेनापती देखता है कि शुरष्टि का शरीर अब गरम है या चूत आग की भट्टी-सी गयी है। फिर वह घुटनों के बल बैठ शुरुआत का हाथ ले कर अपने लौड़े पर रख देता है।

शुरुआत एकझटके के साथ अपना हाथ पीछे खींच लेती है।

शुरष्टि अपना आख खोलती तो देखती है कि सेनापति का लौड़ा आसमान को सर उठाये खड़ा था ।

शुरष्टि: (मन में-उफ़! कितना काला और बड़ा लिंग है। ये तो महाराज से भी बड़ा है और दमदार है। हाय! मैं ये क्या सोच रही हूँ।)

सेनापति फिर से शुरष्टि का हाथ ले जा कर अपने लौड़े पर रखता है । फिर सृष्टि इस बार लौड़े को अपनी मुट्ठी में भर लेती है।

सेनापति: लगता है इतना बड़ा लौड़ा कभी नहीं देखा । डर रही हो क्या महारानी?

शुरष्टि लौड़े को हाथ में पकडे मेहसुस कर रही थी।

सेनापति: इसे मुँह में लो महारानी!

शुरुआत एक चपत लौड़े पर मारती है और लौड़ा छोड़ देती है।

सेनापति मुस्कुराते हुए "अच्छा मुझे मत लो पर थोड़ा सहलाओ तो ।"

इस बार शुरष्टि खुद अपना हाथ आगे ले जा कर सेनापति के लौड़े को पकड़ कर आगे पीछे करने लगती है।

सेनापति: ये हुई ना बात!

सेनापति का लौड़ा अब शुरष्टि के पेट पर था । वह अपने दोनों टांगो को दोनों तरफ रखे हुआ था और शुरष्टि उसके लौड़े को हाथ से मुठिया रही थी ।

सेनापति शुरष्टि दोनों वक्षो को दबाने लगता है और शुरष्टि के हाथ को अपने लौड़े से छूटा कर दोनों वक्षो को अपने हाथों से पकड़ कर अपना काला लौड़ा महारानी के वक्षो के बीच में घुसाता है और आगे पीछे ढकेलने लगता है।

शुरष्टि आख फाडे देख रही थी।

"ये क्या है सेनापति?"

"महारानी मुझे लगता है महाराज ने कभी आपको ढंग से नहीं चौदा और भोगा!"

शुरष्टि उन पलो को ही याद कर रही थी की कैसे उसे तड़पता छोड़ राजपाल दो पांच झटको में वह पानी छोड़ देता है।

ये बात सुन कर शुरष्टि शर्मा कर अपने आखे नीचे कर लेती है।

अब सेनापति अपना लौड़ा वक्षो से निकल कर शुरष्टिके ऊपर लेट जाता है और उसको अपनी बाहों में भर कर उसकी गर्दन पर और उसके होठों को चूमने लगता है । फिर बिस्तर पर पलटने लगता है, कभी शुरुआत को अपने ऊपर लेता है और कभी खुद ऊपर आता है और फिर उसे ऊपर ले उसकी गांड को मसलने लगता है।

"आह महारानी श्रुष्टि, आपकी गांड को मैंने कई बार मटकते देखा है। मैं जब से अपने पिता के साथ सेना में भरती हुआ था तब से आपको पसंद करता हूँ।"

सेनापति अपने ऊपर लिए हुए शुरुआत की गांड को खूब दबाता है और अपना लौड़ा चूत पर रख रगड़ता है।

अब शुरुष्टि को सीधा लेटा कर उसकी टांगो को घुटनों से मोड़ कर फिर अपना काला लौड़ा शुरुष्टि की चूत पर रख सहलाता है। वह फिर शुरुष्टि की ओर देखता है तो सृष्टि आँखे भीचे लेटी हुई थी, सेनापति अपने लौड़ा चूत के मुहाने पर रख एक तगड़ा झटका मारता है।

शुरष्टि: आआआआआआह्ह्हह्ह्ह्ह!

लौड़ा चूत को फाड़ते हुए आधा अंदर चला गया था ।

सेनापति: आह! आज भी महारानी आपकी चूत कितनी कसी हुई है ।!

सेनापति ने एक और झटका मारा । इस बार सेनापति का पूरा लौड़ा महारानी शुरष्टि की चूत में गायब हो गया।

सृष्टि अब अपनी आँखों को फाड़कर ऊपर की ओर देख कर कराह रही है।

"आआह हे भगवान!"

सेनापति अब अपनी कमर हिलाते हुए ज़ोर-ज़ोर से चोदने लगता है।

"आआआअहह सेनापति नहीं अह्ह्ह्ह ओह्ह!"

"ये ले सेनापति का लौड़ा मेरी महारानी।"

फत्त पछ-पछ की आवाज के साथ लौड़ा तेजी से अंदर बाहर होने लगा।

"आह नहीं सेनापति तुम्हारा लिंग निकालो! बहुत बड़ा है।"

"ये ले लोहार का लौड़ा। महारानी!"

"गहप घपल्प घपल्प! "

"आह सेनापति!"

घप्प घप्प घपघप्प घपल सेनापति अब सृष्टि को घुमा कर घोड़ी बना कर पीछे से लंड पेलने लगता है।

"आहहह नहीं ओहह आआह सेनापति!"

शुरष्टि अपने हाथ से बिस्तर पर चादर को पकड़ लेती है जोर के झटके से कभी शुरष्टि की आख बंद होइ जाती थी और कभी झटके से आख खुल जाती थी ।

अब सेनापति अपने बिस्तर से उतरता है और सृष्टि को पलंग के किनारे ला कर उसकी टांगो को फेला कर चूत में फिर से गलप से लैंड पेल देता है।

"आआआआह नहीं सेनापति!"

सेनापति अब तेज धक्को की बरसात कर देता है।

फिर एक सुर से धक्के लगाने लगता है सृष्टि को चीखे अब उत्तेजना भरी कराहो और सिस्कीयो में बदल गयी थी और वह आनंदित हुई सेनापति से चुदती रहती है।

कोई आधा घंटा चोदने पर भी श्रुष्टि सेनापति को लौड़ा निकालने के लिए नहीं कहती ।

इसी बीच वह तीन चार बार झड़ गई थी, आखिरकार सेनापति सोमनाथ भी अपने पानी की एक-एक बूंद चुत में उड़ेल देता है। सृष्टि अपनी आँखे बंद किए हुए अपने बरसों बाद अपनी चुत में आये इस सैलाब से बहुत खुश थी।

उसके चेहरे पर सेनापति असीम आनंद देखता है।

"मजा आया के नहीं महारानी?"

शुरष्टि सेनापति देख के बोलती है ।

"अब अपना ये निकलो!"

सेनापति "गल्प" की आवाज से अपना लौड़ा बाहर खींचता है।

सृष्टि खड़ी होती है। उसकी चूत से गाढ़ा सफेद पानी उसके जांघो तक बह रहा था।

वो गुस्से में सोमनाथ को देखते हुए उसकी धोती उठा कर अपनी चूत को पूंछती और अपनी जाँघ साफ कर अपना घाघरा चोली पहन कर बाहर जाने लगती है।

सेनापति सोमनाथ वही मुस्कुराते हुए पलंग पर अपने लौड़े को देखते हुए लेट जाता हैं।

शुरष्टि अपने अस्त व्यस्त कपडे को देखते हुए ठीक करने लगती है और फिर अपने बाल बाँधते हुए सेना गृह से बाहर निकलती है तो शाम के समय अपना काम ख़तम कर के कामला अपने गाँव गाजा रही थी। तभी उसकी नज़र शुरष्टि पर पड़ती है।

कमला: अँधेरा हो गया और सृष्टि अब सेना गृह से क्यू आ रही है।

सृष्टि अपना पल्लू ठीक से करते हुए हल्का घूंघट कर लेती है।

शुरष्टि: (मन में-हे भगवान अच्छा हुआ अँधेरा हो गया है दिन ढल गया। दिन में तो सब यहाँ पर मुझे देख लेते पता नहीं महाराज अगर आ गए होंगे तो मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे और घरवाले भी सोच रहे होंगे के मैं शाम को कहाँ चली गयी?)

कमला देखती है सेनागृह से सृष्टि निकलती है और छुपती हुई-सी महल में घुस जाती है। कमला से रहा नहीं जाता है वह सेनागृह में जाती है और उसे सेनापति के कक्ष का दरवाज़ा खुला दिखता है, जिसे शुरुआत जल्दबाजी में खोल कर चली गई थी।

कमला दबे पांव आकर सेनापति की खिड़की की दरार से अंदर देखती है तो पाती है की सेनापति नंगा है अपने हाथ में लौड़ा लिए सहला रहा है या उसके लौड़े पर पानी चमक रहा है। खेली खाई कमला समझ जाती है कि ऐसा हाल तो चुदाई के बाद होता है-है । कमला लौड़े का कमाल समझ जाती है। बिस्तर की भी दशा ठीक नहीं थी और कपडे भी इधर उधर फेंके हुए थे ।

कमला: (मन में-तो महारानी सृष्टि अपनी प्यास तुम यहाँ बुझा रही हो!)

और कमला एक मुस्कान के साथ दबे पाँव वहाँ से निकल अपने घर चली जाती है।

जारी रहेगी

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