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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 63
अपनी जन्म भूमि
सेनापति से चुद के महारानी शुरष्टि चारो ओर अपने नजर दौड़ा कर अपने बाल को बाँधते हुए अपने महल में घुस जाती है।
शुरष्टि घर में महौल ठीक देख राहत की सांस लेते हुए अपने कक्ष में जा ही रही थी की राधा उसे देख पूछती है।
राधा: क्या हुआ महारानी आप इतना पसीना-पसीना क्यू हो?
शुरुष्टि: वह बस तेज़ चलने के कारण से हूँ।
राधा: महाराज आये हैं वह बहुत समय से राज माता रानी जीविका की कक्षा में आप का इंतजार कर रहे हैं।
ये कह कर राधा चली जाती है।
शुरष्टि: (मन में:-अब क्या जवाब दूंगी। हे भगवान बच्चा ले! शुरष्टि चुदाई के बाद से हुए अपने अस्त व्यस्त घाघरा चोली को ठीक करते हुए, न चाहते हुए भी अपनी सास राजमाता जीविका के कक्ष में चली जाती है।
शुरुष्टि: सांसु माँ!
जीविका: आओ बहु अंदर आ जाओ!
अंदर जीविका लेटी गई थी और राजपाल पलंग के किनारे बैठा हुआ था।
जीविका: कहा थी बहू?
शुरुष्टि: वह माँ जी वैध जी ने कहा है शाम को चलने के लिए।
राजपाल: महारानी हम सब आपके लिए चिंतित थे और ये आपके माथे पर पसीना क्यू है?
शुरुष्टि झट से बिना देरी के अपना माथा अपने हाथ से पूछ लेती है।
राजपाल: वैसे कहा थी आप 1 घंटे से?
शुरष्टि: वह चलते हुए नदी किनारे चली गई थी।
जीविका: ठीक है बहू पर भरी अकेली शाम मत निकला करो। किसकी नज़र कैसी रहती है हम बता नहीं सकते।
शुरष्टि: जी सासु मां, अब मैं चलती हूँ।
शुरष्टि आकर अपने कक्ष में बिस्तर पर आकर पट लेट जाती है और हाफने लगती है और जैसे ही वह आँखे बंद करती है तो शुरुष्टि को अपनी जोरदार चुदाई याद आती है। शुरुष्टि का अंग-अंग दुख रहा था। नस्स-नस्स फट रही थी फिर आँखे बंद कये शुरष्टि सो जाती है।
थोड़े समय बाद राधा आती है।
राधा: महारानी! "हे महारानी" "महारानी इतनी जल्दी सो गई"
कुछ देर आवाज देने पर सृष्टि एक आँख खोलती है।
राधा: महारानी खाना खा लो!
शुरुआत का शरीर टूट रहा था वह बस अपने हाथ से इशारा करती है कि उसे सोने दो। उसे खाना नहीं खाना।
राधा: (मन में:-ऐसा क्या हो गया जो महारानी आज इतनी जल्दी सो गयी। खाना भी नहीं खाना।)
सृष्टि फिर से आखे बंद कर सो जाती है।
पारस मैं
सुल्तान मीर वाहिद के कहे अनुसर देवराज अपनी बहन तथा भांजे को खाना खिलाने के लिए-लिए एक बड़े कमरे में ले जाते हैं जहाँ पर बहुत बड़ी मेज और बहुत-सी कुर्सीया लगी हुई थी।
देवराज: बैठो भांजे!
सुल्तान: आप लोग बैठिये।
तभी वहा पर बद्री या श्याम आजाते हैं जिन्हे शमशेरा अपने साथ ले कर आया था।
देवरानी शमशेरा को देख मुस्कुराती है।
सुल्तान: बेटा शमशेरा महारानी देवरानी से मिलो और ये इनके बेटा बलदेव1
शमशेरा एक टक दोनों की ओर देख मुस्कुराता है।
"अब्बा हुजूर इनसे मेरी मुलाकात पहले भी हुई है।"
सुलतान: कब हुई?
शमशेरा: बस जब हम घटराष्ट्र गए थे।
सुलतान: तो क्या हुआ इन्हे सलाम करो। ये आपकी माँ जैसी है। इन्हें सलाम करो शहजादे!
शमशेरा: सलाम खाला जान!
देवरानी: प्रणाम बेटा!
और दोनों मस्कुराते है।
देवरानी: सुल्तान जी बात ऐसी है सिर्फ शमशेरा की वजह से आज मैं मेरे अपने भाई से इतने दोनों बाद मिली हूँ। वह मुझे घाटराष्ट्र में मिले थे और देवराज भैया के बारे में बताया था।
सुल्तान: तब तो मुझे आप दोनों का तारूफ भी नहीं करवाना चाहिए था और सुलतान हसने लगते है।
सुल्तान को देख सब हसने लगते हैं।
देवरानी: शमशेरा बेटा तुम बद्री या श्याम से मिले के नहीं।
शमशेरा: हाँ मिल लिया खाला!
देवरानी: हाँ ये बलदेव के बचपन के साथी हैं और गुरुकुल में भी बलदेव के साथ थे।
शमशेरा: सब से तो मिल गए पर बलदेव जी आप चुप क्यू है कहीं आपको ज्यादा भूख तो नहीं लगी?
बलदेव: नहीं शमशेरा भाई मैं बस अपनी बारी का इंतजार कर रहा था और वैसे भी जब बड़े बात कर रहे हो तो छोटो का बोलना उचित्त नहीं होता है।
शमशेरा: वाह भाई आप तो बहुत नेक हो। सब खाला की हिदायत का कमाल है। है ना देवरानी खाला?
देवरानी मुस्कुरा देती है।
बलदेव: वैसे आपका धन्यवाद हमें अपनी मामा और माँ को उनके भाई से मिलवाने के लिए. माँ हमेशा माँ की बात करती थी।
शमशेरा: भाई हम धन्यवाद भर से काम नहीं चलते बदले में कुछ तो हमारी भी मानियेगा।
देवराज: कर दी ना राजाओ वाली बात!
शमशेरा: मेरे अब्बा पूरी दुनिया पर हुकूमत ऐसे ही नहीं कर रहे हैं थोड़ी बहुत लेन देन तो हम भी जानते हैं। आखिर हममे भी खून है शहंशाह का।
सुल्तान: आप सब खाना खाइये!
मेज़ पर हजारो किस्म के फल या खाना सजा हुआ था।
श्याम बद्री देवराज एक कुर्सी पकड़ कर बैठ जाते हैं।
देवराज: बहन देवरानी आप अंदर जा कर मल्लिका जहाँ के साथ भोजन कर लीजिये।
सुल्तान बीच वाली बड़ी कुर्सी पर बैठते हुए.
"हाँ बहना आप अंदर चले जाएँ!"
बलदेव: मामा!
देवराज: बोलो भांजे!
बलदेव: मामा मैं कुर्सी पर बैठ कर नहीं खा सकता मुझे नीचे आसन पर बैठ कर खाना है।
सुल्तान: तो ऐसा कीजिए बलदेव, आप भी मल्लिका-जहाँ हुरिया के कमरे में जा कर खा लीजिए.
सब खाने लगते हैं बलदेव और देवरानी उठ कर मल्लिका-जहाँ हुरिया के कक्ष की ओर आ जाते हैं और दरवाजे पर खड़े हो कर मलिका को पुकारते हैं।
"मल्लिका जहाँ!"
"कौन?"
"मैं देवरानी!"
"अरे आओ बहना!"
देवरानी अन्दर आती है।
"वो बलदेव भी है।"
"बुला लो उसको भी देवरानी!"
देवरानी: बलदेव अन्दर आजाओ!
हुरिया: आरी देवरानी आप मुझे दीदी या आपा कहो मल्लिकाजहाँ तो सब कहते हैं।
देवरानी: ठीक है दीदी हेहे!
बलदेव: हुरिया खाला! मुझे बहुत भूख लगी है!
हुरिया: तो वाहा सब खाने गए थे तो उनके साथ क्यू नहीं खाया?
देवरानी: दीदी! वह बलदेव कह रहा था कि उसे नीचे बैठ कर खाना है!
हुरिया: हा हन समझ गई! आओ मेरे साथ!
हुरिया उन दोनों को पास में एक कक्ष में ले जाती है।
"देवरानी तुम दोनों इस दस्तरखान पर खा सकते हो। हमने इसे खास कर नीचे बैठ कर खाने के लिए बनाया है।"
देवरानी: ठीक है दीदी!
हुरिया दो बार ताली बजाती है।
या एक दासी उसके पास आकर बोलती है।
"जी मलिका जहाँ!"
"इन दोनों के लिए खाना यहाँ लगा दो!"
हुरिया वहा से चली जाती है।
दोनों का खाना आता है या दोनों बैठ कर खाने लगते हैं
बलदेव: खुश तो हो मेरी जान!
देवरानी: बहुत खुश, मेरे राजा! तुमने मुझे वह खुशी दी है जिसका कर्ज मैं जीवन भर, नहीं चुका सकती।
बलदेव: माँ तुम्हारे लिए मैं अपनी जान दे दूं तो भी तुम्हें नहीं कहूंगा कर्ज चुकाने के लिए। ये तो मामुली-सी बात है।
देवरानी: हाँ अब खाना खाओ मजनू मत बनो।
बलदेव: अपने हाथो से खिलाओ!
देवरानी मुस्कुराते हुए अपने हाथों से निवाला तोड़ कर खिलाने लगती है। हर बार बलदेव निवाले के साथ देवरानी की उंगली भी चाट लेता है।
"बदमाश!"
"तुमने ही बनाया है।"
बलदेव भी देवरानी को निवाला खिलाता है
हुरिया आकर अपने कक्ष में बैठती है।
हुरिया: देखती हूँ दोनों को किसी चीज की कमी तो नहीं हुई-फिर कुछ सोचते हुए वापस उस कक्ष में लौट जाती है जो हुरिया के कक्ष की ठीक बगल में था।
हुरिया आकार दरवाजे पर खड़ी होती है देखती है देवरानी अपने हाथों से अपने बेटे को खिला रही है।
हुरिया: इतना बड़ा हो गया फिर भी अपने हाथों से नहीं खाता क्या...?
बलदेव के मुंह में तभी मिर्ची चली जाती है और चिल्लाता है।
बलदेव: आह! मिर्ची खा लि माँ पानी दो।
देवरानी पास राखे पानी के जग से पानी डाल कर पानी बलदेव को देती है।
जैसे वह झुकती है उसके आधे से ज्यादा वक्ष ब्लाउज से बाहर आने को थे ।
ये दृश्य देख हुरिया हेरान थी।
क्यूके पानी पीते हुए बलदेव भी तिरछी नजरों से अपनी माँ के बड़े दूध घूर रहा था।
हुरिया 9 मन में-ये लड़की कैसे कपडे पहनती है। जवान बेटे के सामने ऐसा पहनेगी तो वह देखेगा ही। मैं इसको समझाती हूँ।
हुरिया: खाने के बाद देवरानी मेरे कक्ष में आओ!
भोजन करने के बाद और फिर कुछ देर बातें करने के बाद देवरानी बलदेव की छोड हुरिया के पास जाती है।
"आओ बैठो देवरानी!"
हुरिया: कैसा लगा खाना! किसी चीज़ की कमी तो नहीं हुई ना।
देवरानी: धन्यवाद दीदी! ये सब के लिए! मैं शमशेरा से मिली और भाई देवराज से भी ।
हुरिया: मेरे बच्चे ने शैतानी तो नहीं की।
देवरानी: नहीं दीदी आज उसके कारण से ही मैं यहाँ हूँ।
हुरिया: हाँ शमशेरा 25 का हो गया पर अभी मुंह फट हो गया है । पर जैसी बलदेव के पास है वैसी होशमंदी नहीं है उसके पास।
देवरानी: ऐसा नहीं है दीदी वह नटखट जरूर है पर दिमाग या बुद्धि में किसी से कम नहीं है । रही बात बलदेव की तो वह बचपन से ही कड़े अनुशासन में रह रहा है।
हुरिया: वैसे कितने साल का है वो।
देवरानी: बलदेव तो सिर्फ 18 साल का है पर परिपक्व हो गया है।
हुरिया: ये तो है उसके उमर के हिसाब से करोड़ो से बहुत आगे है। देखने में तो लगता है ही नहीं 18 का। ऐसा लगता है 28...30 का होगा। वो तुमसे भी बड़ा लगता है देवरानी!
देवरानी: वो उसने व्यायाम कर के अपना शरीर बढ़ा लिया है दीदी इसलिए ऐसा लगता है वैसे आपकी उमर कम ही है।
हुरिया: मैं भी 44...45 की हूँ या तुम देवरानी?
देवरानी: मैं 35 वर्षीय हू।
हुरिया: लगती तो हो कम उमर की पर इतनी कम उमर में 18 साल का बेटा।
देवरानी: ये बलदेव तो मेरा 18 लगते ही पैदा हो गया था । दीदी मेरा विवाह जल्दी करवा दिया गया था ।
हुरिया: शमशेरा तो तब पैदा हुआ जब मैं 20 की थी वैसे एक बात पूछनी थी अगर बुरा मत मानो!
देवरानी: आप बड़ी बहन हो। बहन भी कहती हो या पूछती भी हो।
हुरिया: तुम अपने ब्लाउज में कुछ पहनती हो की नहीं?
देवरानी: नहीं दीदी अंतर्वस्त्र ब्लाउज के साथ पहनना मुश्किल होता है। हमारे यहाँ उसको नहीं पहनते।
हुरिया: ब्रेज़ियर पेहना करो ।
देवरानी: लेकिन आप ऐसा क्यू पूछ रही हो?
हुरिया: बुरा मत मानना पर जब तुम अपने बेटे को खाना खिला रही थी तो तुम्हारा ऊपरी हिस्सा दिख रहा था। जवान बेटे के सामने ऐसे हाल में रहना ठीक नहीं है।
देवरानी: हम्म्म!
हुरिया: और इससे घर की बरकत ख़तम होती है। इसलिए जितना हो सके अपने आप को ढक कर रखो!
देवरानी: दीदी मैं भी पारसी हूँ, घर पर किसी अंजन के सामने अपना घूंघट तक नहीं उठाती ।
हुरिया: दूसरो के सामने जैसे घूंघट करती हो वैसा घूंघट मत करो। पर कम से कम अपने बदन को छुपा के रखो । वैसे ये हो सकता है कि कभी-कभी गलती हो जाती है।
देवरानी: खैर मैं अब से ध्यान दूंगी दीदी! वैसे ये ब्रेज़ियर क्या होता है?
हुरिया: तुम्हें तो पता ही नहीं है । चलो मेरे साथ आज मैं तुम्हे देती हूँ।
हुरिया अपना अलमीरा खोल कर अपने कपड़े हटाने लगती है और कुछ 6 7 जोड़ी ब्रेज़ियर निकाल कर देवरानी को देती है ।
"ये लो देवरानी आज से तुम इन्हे रख लो।"
देवरानी: पर दीदी!
हुरिया: रख लो! ये बहुत कीमती है। हम जब फ्रांस गए थे तो हमने लिए थे । इन्हे मैंने एक बार भी नहीं पेहना है और इसमें जंघिया भी है।
देवरानी: अब पता नहीं ये कैसा होता है, हम तो बस एक वस्त्र का पट्टी बना कर पहन लेते हैं, अपने वक्ष को आकार में रखने के लिए.
हुरिया: ये तुम पहनो के देखो इसमें तुम और सुंदर लगोगी । ये कुछ दिनो पहले ही ब्रिटेन की महारानी ने पहनना शुरू किये है । तो कुछ दर्जी अब सिल कर बड़े भुगतान पर फ्रांस में बेचते है। बहुत कम लोग इनके बारे में जानते हैं।
देवरानी: मैं भी पहली बार देख रही हूँ।
हुरिया: तो चलो मैं तुम्हारे कमरे तक छोड़ दूं!
देवरानी हुरिया का दिया हुआ सामान एक कपड़े से ढक कर उसके साथ जाने लगती है।
हुरिया: बड़ी शर्मीली हो!
देवरानी: हेहे!
तभी सामने से देवराज के साथ बद्री या श्याम आ जाते हैं।
देवराज: बहन देवरानी तुम मल्लिका जहाँ के बगल वाले कक्ष में रहो और बलदेव बद्री तथा श्याम मेरे बगल में अतिथि घर में रुक जायेंगे।
देवरानी: पर भैया तीन लोग एक कमरे में, बलदेव को मेरे साथ सोने दो ना भैया!
हुरियाःपर देवरानी!
देवराज: ये क्या कह रही हो बहना बलदेव अब बच्चा नहीं रहा, जो अब भी तुम्हारे पल्लू में बंधा रहे।
देवरानी: (मन में-वह जवान हो गया है भैया इसलिए तो कह रही हूँ की मेरे साथ सोए और कहीं और जा कर अपना जवानी व्यर्थ नहीं करे।
बद्री: (मन में-सोने दो मामा दोनों चोदा चोदी खेलेंगे।)
बलदेव: मामा! बात ये है ना के माँ आज कल डर जाती है रात में, इसलिए कुछ दिनों से मैं उनके पास सो रहा हूँ।
ये सुन कर श्याम बलदेव को आश्चर्य से देख रहा था।
देवरानी: हाँ माँ या नई जगह है तो रात में पक्का डरूंगी।
देवराज: ठीक है ठीक है तो फिर सो जाओ बलदेव के साथ।
बद्री: (मन में-क्या भयानक युग है भाई खुद कह रहा है, अपनी बहन से, जाओ चुद आओ अपने बेटे से!)
हुरिया: आप सब आराम करो मैं चलती हूँ।
देवरानी: लंबी यात्रा से मैं भी थक गई हूँ ।
देवरानी भी हुरिया के पीछे जाने लगती है । उसके साथ बलदेव भी मुड़ता है
देवराज: बलदेव तुम कहा जा रहे हो?
बलदेव: मैं भी थक गया हूँ माँ के साथ जा कर सो जाता हूँ।
ये सुन देवरानी अंदर से लज्जा जाती है और मुस्कुरा देती है।
देवरानी (मन में: "बहुत जल्दी है मेरे सैया राजा को मेरे साथ सोने की।")
देवराज: तुम रुको बलदेव हम तुम्हें बद्री और श्याम के साथ महल घुमाते हैं।
बलदेव का चेहरा उतर जाता है।
जिसे देख देवरानी मुस्कुरा देती है और मन में कहती है । "बदमाश! "
देवरानी जाते हुए-"बेटा जाओ अपने मामा के साथ तब तक मैं बिस्तर पर रहूंगी ।तुम आओगे फिर सोएंगे! ।"
बलदेव मतलब समझ कर मुस्कुराता है। बलदेव ख़ुशी-ख़ुशी अपने मामा के साथ जाता है और कुछ देर घुमने के बाद अपने कक्ष में जहाँ उसे उसकी माँ के साथ रहना था वहा आता है।
"माँ किधर हो?" "मेरी जान किधर हो?"
"माँ"
कमरे में घुस कर बलदेव आवाज लगा रहा था तब भी वह देखता है सँघड़ से कुछ आवाज आती है और दरवाजा खुला हुआ था । वह अंदर जैसा जाता है अंदर का दृश्य देख उसके आखे वही जम जाती है और उसकी सांसें लगभग बंद हो जाती है।
देवरानी एक झीने-सी कपडे से अपने बड़े वक्ष को छुपाने की कोशिश कर रही थी और जैसे ही बलदेव पर नजर पड़ती है । वह अपनी नजर नीचे कर कहती है ।
"बलदेव! में नहा रही हूँ तुम जाओ ना यहाँ से"
बलदेव एक टक देवरानी के बड़े-बड़े पपीतो जैसे वक्षो को घूर रहा था । उसके वक्ष पर घुंडी भी साफ नजर आ रही थी जो किसी के सिक्के के गोलाई जैसी थी।
बलदेव देख कर अपना होठ दबाता है।
देवरानी: जाओ ना बलदेव मुझे शर्म आ रही है
बलदेव: क्यू अपने होने वाली पति से क्यू शर्मा रही हो!
देवरानी अब और शर्मा जाती है
बलदेव: क्या ख़ूबसूरत वक्ष है मेरी रानी मेरी पत्नी के!
देवरानी: तुम्हें मेरी कसम मेरे सैंया जाओ!
बलदेव हड़बड़ी में बाहर निकलता है या फिर कक्ष का दरवाजा बंद कर देता है...
जारी रहेगी