महारानी देवरानी 061

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इधर सेनापति की खोटी नियत उधर पारस में ख़ुशामदीद बहना
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Part 61 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 61

इधर सेनापति की खोटी नियत उधर पारस में ख़ुशामदीद बहना

शुरष्टि सोच ही रही थी कि सेनापति से बचने के लिए वह आगे क्या करे!

उतने में राधा वहाँ आ जाती है।

राधा: क्या हुआ महारानी ये सेनापति इतना सवेरे यहाँ क्यों आया था?

शुरष्टि: वो राज्य के लोगों के बीच में बढ़ रहे डर के बारे में बताने आया था ।

राधा: कैसा डर महारानी?

शुरष्टि अपनी बात को छुपाते हुए चतुराई से राधा को दूसरी बात बताने लगती है।

शुरष्टि: अरे! वही दिल्ली के बादशाह शाहजेब का डर के कहीं वह राज्य पर आक्रमण न कर दे।

राधा: महारानी तो इसलिए आप भी बहुत डरी हुई लग रही हैं, वैसे डरने की बात भी है बादशाह शाहजेब बहुत निर्दय और ठरकी राजा हैं।

शुरुष्टि: तुम्हें कैसे मालूम?

राधा: महारानी पूरे जग को मालूम है कि उसने 9 पत्निया रखी है और उसने अपने हरम में तो ना जाने कितनी महिलाओं को रखा है।

शुरष्टि: क्या बात कर रही हो राधा?

राधा: जी महारानी वह जिस राज्य पर भी आक्रमण करता है वहाँ की रानियों को अपनी रानी बना लेता है और उनके जिस्म को रौंद देता है।

शुरुआत: उफ़! कितना नीच राजा है शाहजेब।

राधा: हाँ महारानी मैंने सुना है कि एक राज्य में उसने खूब लूटपाट मचाई थी और वहा की रानी के साथ जबरदस्ती सम्बन्ध बनाये जिस से रानी की जान चली गई, कद काठी में वह हमारे युवराज बलदेव से कम नहीं है । उनसे भी ऊंचे है।

शुरष्टि: (मन में: ये तो पूरी कहानी बताने लगी । मैं मेरी समस्या इसे तो नहीं बता सकती। पता नहीं कहाँ गा दे।)

शुरष्टि: अच्छा राधा तो तुम जा कर कुछ भोजन बना लो मुझे भूख लगी है। इस विषय पर हम फिर कभी बात करेंगे।

शुरष्टि सोच में पड़ी थी कि आगे कैसे खेलें क्या करे?

शुरष्टि: (मन में-उस बुधु आलोक को मैंने कह दिया था कि राज्य छोड़ कर चला जाए, पर मुर्ख ने अपने साथ-साथ मेरी भी जान जोकिम में डाल दी है ।

शुरष्टि अपने वस्त्र पहन कर बाहर आती है और कमला और राधा से कह कर खाना बनवाती है। फिर सब आकर बारी-बारी से सुबह का नाश्ता करते है।

शुरष्टि (मन में-बाहर जा कर देखती हूँ लगता है सोमनाथ से बात किये बिना कोई बात नहीं बनेगी।)

शुरष्टि बाहर आती है तो देखती है सेना गृह के पास बहुत सारे लोग, खास कर युवा इकट्ठे हो गए हैं और सेनापति सोमनाथ सबको तलवारबाजी सिखा रहा है।

सोमनाथ: ए युवक! तलवार को टेढ़ा पकड़ो!

"सुनो तुम सब कुछ दिन में तैयार हो जाओगे युद्ध के लिए!"

शुरष्टि दूर खड़ी सेनापति को युद्ध कला सिखाते हुए देख रही थी ।

तभी सेनापति सोमनाथ की नजर शुरष्टिपर जाती है सोमनाथ का हाथ एक बार अपने गाल पर चला जाता हैं और वह शुरष्टि की थप्पड याद करते हुए मुस्कुराता है।

सेनापति शुरष्टि के पास आकर बोलता है ।

सेनापति: आइये महारानी श्रुष्टि!

शुरुष्टि: तुम ज्यादा व्यस्त तो नहीं हो सेनापति ।

सेनापति: जीवन में पहली बार आप खुद चल के हमारे पास आए हैं ऐसे में भला मेरा व्यस्त रहना किस काम का ।

सेनापति मुस्कुराता है जो शुरष्टि को कांटे की तरह चुभता है।

शुरुआत: मुझे तुमसे बात करनी है। सेनापति सोमनाथ!

सेनापति: हम बात ही तो कर रहे हैं महारानी, कहिए क्या कहना है?

शुरष्टि आँखे तरेर कर देखती है।

"सेनापति ज्यादा बनो मत! हम एकांत में बायत करना चाहते हैं"

"चलिए महारानी अगर आपको बुरा ना लगे तो मेरे कक्ष में चलिए! आपको हमारे मेहमान आलोक से भी मिलवाता हूँ ।"

शुरष्टि चुपचाप सोमनाथ के पीछे चलने लगती है।

सोमनाथ सेनागृह के एक कक्ष का दरवाजा खोलता है। सामने रोशनदान से हल्की धूप आ रही थी और धूल उड़ती है।

शुरष्टि: आहा-आहा खांसते हुए"कितनी धूल है यहाँ।"

सेनापति: महारानी! ये महल नहीं है, सेनागृह है। यहाँ लड़ाकू सेना रहती है जिसकी मौत कब आएगी। उसे पता नहीं, फिर उसे धूल में ही मिट जाना है।

शुरष्टि अंदर आती है देखती है सामने कुर्सी पर आलोक बंधा हुआ है और उसका मुंह भी बंधा है।

शुरुष्टि: क्या हाल कर दिया है तुमने इसका!

सेनापति: ओह तो महारानी को दर्द हो रहा है अपने विश्वस्नीय आलोक की दशा देख कर ।

नींद से जागता हुआ आलोक देखता है महारानी शुरष्टि उसके सामने खड़ी है।

वो इशारे से कहता है मुझे खोल दो।

शुरष्टिजा कर उसका मुँह खोल देती है और मुँह में फसे कपड़े को हटा देती है।

सेनापति ये खड़ा-खड़ा देख रहा था और मुस्कुरा रहा था।

आलोक: महारानी मुझे बचा लो! कृपा कर के मुझे बचा लो! ये मेरी जान ले लेगा और आलोक रोने लगता है।

शुरष्टि: तुमने तो इसके साथ जानवर से भी बदतर सुलूक किया है। सेनापति! तुम मनुष्य नहीं हो सोमनाथ।

सेनापति: महारानी अब जो अपनी सौतन की जान लेने पर लगी है, वह मुझे बताएगी कि मनुष्यता क्या है।

शुरष्टि: चुप करो सेनापति मेरे हाल खराब है, पर मैं हु तो महारानी! में चाहु तो तुम्हारे खाल निकलवा...!

सेनापति: आहा चुप हो जाओ महारानी जी!

सेनापति सामने से एक पन्ना निकलता है जिसपर आलोक ने अपना जुर्म कबूल किया है और हस्ताक्षर किये है।

सेनापति वह पन्ना उठा कर।

"ये देखिये महारानी आलोक ने हस्ताक्षर है। उसने माना है की उसने आपके साथ मिल कर रानी देवरानी को मारने की साजिश की सजा की है और आपको सांप दिया है जिसके विष से उनके एक घड़ी में प्राण चले जाएंगे ।"

शुरष्टि गुस्से में थी पर चुपचाप खड़ी सुन रही थी।

सेनापति: और महारानी आपने बलदेव को मारने के लिए भी अपने आदमियों को बलदेव और देवरानी के पीछे भेजा है।

शुरष्टि आलोक की ओर देखती है आलोक अपना सर नीचे कर लेती है और बलदेव तो राज्य का युवराज और महाराज का एकमात्र उत्तराधिकारी है ।

सेनापति: तो कुल मिला कर आपने रानी देवरानी और युवराज को मारने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है ।

शुरष्टि: तुम्हें क्या चाहिए, जो चाहिए मांग लो। हम तुम्हारा कक्ष सोने चांदी से भरवा देंगे, सोमनाथ!

सेनापति: महारानी अगर ये बात मैंने घाटराष्ट्र वासियो में फेला दी तो वह लोग आपकी फांसी की सजा देने की मांग करेंगे वह अन्यथा ये भी हो सकता है के यहाँ के लोग आपको खुद सजा दे दे।

ये सुन कर शुरष्टि का दिल पहली बार दहल गया और अपने भविष्य के बारे में सोच कर उसकी आँखों में आँसू भर गये।

सेनापति: (मन में-महारानी शुरष्टि! तुमने सेनापति सोमनाथ को थप्पड मारा था । उसकी कीमत सोना या चांदी नहीं है ।)

शुरष्टि: तुम आलोक को छोड़ दो मैं तुमसे मुँह माँगा इनाम दूँगी।

सेनापति: मैं इसे छोड़ दूंगा पर अगर आपने कोई चाल चली तो मैं ये पत्र महाराज को भारी सभा में पढ़ के सुना दूंगा और उसके बाद आपकी फासी पक्की । हाहाहा!

शुरुष्टि: तुम इसे खोलो!

सेनापति आलोक को खोला जाता है आलोक आज़ाद होते हैं वह शुरष्टि के पैरो में गिर जाता है।

"महारानी! मेरी जान बचाने के लिये, बहुत-बहुत धन्यवाद!"

शुरष्टि: मूर्ख! मैंने तुम्हें कहा था कि घाटराष्ट्र छोड़ कर चले जाओ ।दुबारा घाटराष्ट्र में अपना चेहरा मत दिखाना ।

आलोक अपनी जान बचाये भाग जाता है।

सेनापति: महारानी शुरष्टि को देख मुस्कुराता है ।

शुरष्टि: बोलो क्या चाहिए हम मुँह माँगी कीमत देंगे।

सेनापति सोमनाथ शुरष्टि के चारो ओर घूम कर शुरष्टि को निहारता है।

सेनापति: महारानी आपके जान बचाने की कीमत सोने चांदी से नहीं होगी।

श्रुष्टि: फिर?

सेनापति शुरष्टि के करीब आकर उसका हाथ पकड़ कर बोलता है ।

"मुझे आपका साथ सोना है महारानी श्रुष्टि!"

शुरष्टि सेनापति का हाथ झटका कर।

"खबरदार मुझे छूने की भी कोशिश की तो तुम्हारा सर तुम्हारे धड से अलग कर दूंगी। सेनापति सोमनाथ अपनी हद मत भूलो।"

सेनापति मुस्कुराते हुए ।

"देखिए महारानी अगर आप चाहती हैं कि मैं आपका राज महाराज या घाटराष्ट्र की सभा में सबके सामने नहीं खोलूं तो मेरी बात तो आपको माननी पड़ेगी । अन्यथा...!"

"होश में आओ सेनापति! महाराज ने तुम जैसे दो टके के सैनिक को सेनापति बना दिया नहीं तो तुम भी आज अपने बाप के साथ लोहार बने लोहा पीट रहे होते या कहीं पर लोहा काट रहे होते। नीच आदमी! सोच नीच!"

"महारानी मुझे नीचे कहो पर हर लोहार नीचे नहीं होते! मेहनत करते है। तुम जैसी ऊंची जाति के लोग, राजा सिर्फ हमारे बलिदानों से बने हैं।"

शुरष्टि कक्ष से बाहर जाने लगती है।

सेनापति: अगर तुम आज शाम में मेरे कक्ष में नहीं आई और अपने आपको मुझे नहीं सौंपा तो महारानी शुरष्टि कल की सुबह आपकी आखिरी सुबह होगी!

और सोमनाथ कुटिलता पूर्वक मुस्कुराता है ।

शुरष्टि गुस्से से पाँव पटकती हुई कक्ष से बाहर जाने लगती है

"सेनापति तुम सपने में भी मुझे भोग नहीं सकते!"

सेनापति: ये मत सोचो कि मैंने आलोक को छोड़ दिया तो तुम महाराज के सामने मुझे झूठा साबित कर दोगी, मैं जब चाहूँ उसे फिर से उसे क़ैद कर सभा के सामने प्रस्तुत कर दूँगा।

शुरुआत सोमनाथ को एकटक देखती रह जाती है।

सोमनाथ: आपको आज शाम तक का समय देता हूँ।

शुरष्टि चली जाती है।

सोमनाथ वही अपने बिस्तर पर लेट जाता है और अपना लंड सहलाता है ।

सोमनाथ: (मन में) रानी इसी धूल वाले बिस्तर पर तुम्हारे जिस्म को नोच-नोच कर खाऊंगा । शुरष्टि तुम्हारे थप्पड़ का उत्तर देगा ये सोमनाथ तुम्हें!

दोपहर का समय हो गया था और पारस की ओर तेजी से जा रहे थे बलदेव देवरानी श्याम और बद्री के साथ अपने अश्वो पर ।

श्याम: बद्री यार मुझे भूख सताए जा रही है। ये पारस कब आएगा?

बद्री: धीरज रखो हम पहुँचने ही वाले हैं।

तभी बलदेव को दूर एक बाज़ार नज़र आता है।

बलदेव: माँ देखो वहाँ बस्ती है और बाज़ार भी है ।

ये सुन कर देवरानी की खुशी का ठिकाना नहीं था।

देवरानी: हाँ बलदेव हम पारस पहुच गए हैं।

श्याम: हाँ! मौसी हम पहुच गए।

बलदेव श्याम और बद्री अपने घोड़े को तेजी से बाज़ार की तरफ बढ़ाते है और वहाँ पर अपने घोड़े रोक देते हैं ।

श्याम: कितना सुंदर बाज़ार है।

सब घोड़े से उतरते हैं। देवरानी उतर कर अपने वस्त्र ठीक करती है। बलदेव देखता है देवरानी अपनी गांड को सहलते हुए अपने वस्त्र ठीक कर रही थी । बाज़ार में बहुत शोर था।

पास में एक बूढ़ा व्यक्ति कुछ बेच रहा था । बलदेव उसके पास जाता है।

ग्राहक: ये अंजीर कितने सिक्के के दिए ।

दुकानदार: 10 सिक्के के।

बलदेव अंजीर ले कर सिक्के देता है और बलदेव दुकानदार से पूछता है ।

"श्रीमान ये कौन-सा बाज़ार है?"

"लगता है मुसाफिर हो । तुम पारस में हो बच्चे!"

तभी वहा पर श्याम बद्री तथा देवरानी भी आजाते हैं और सब ये सुन कर खुश हो जाते हैं।

बद्री: श्रीमान हमें महल जाना है।

दुकंदर: बेटा यहाँ बहुत महल है।

देवरानी: हमे सुल्तान मीर वाहिद के महल जाना है।

ये सुन कर दुकानदार और आसपास खड़े ग्राहक डर के देवरानी को देखने लगते हैं।

बलदेव: या फिर आप के महाराज देवराज के महल ।

ग्राहक: लगता है आप लोग सुल्तान के करीबी हो। वैसे सुल्तान का महल, जहाँ वह रहते हैं यहाँ से जुनूब में है और महाराज देवराज का महल सोमल में है ।

देवरानी: नहीं आप हमें सुल्तान के यहाँ जाने का रास्ता बताएँ।

बलदेव: आप कहें हमे सुल्तान के महल जाने के लिए कौन-सी दिशा में जाना है।

दुकन्दर: यहाँ से सीधा चले जाओ।

बलदेव दिशा समझ कर अपने घोड़े पर बैठता है और अपनी माँ को भी सहारा दे कर बैठाता है।

बद्री और श्याम भी अपने-अपने घोड़ों पर बैठ जाते हैं । फिर उस दिशा में घोड़े दौड़ने लगते हैं।

कुछ देर भगाने के बाद गाँव और घर दिखाई देने लगते हैऔर हर तरफ सेना दिखने लगती है । तभी सामने से दो घुड़सावर आकर उन्हें रोकते हैं ।

"ए तुम लोग कौन हो? और महल की ओर जाने की वजह क्या है?"

बलदेव समझ जाता है कि ये पारस के सुरक्षा कर्मी है।

देवरानी: मैं देवरानी हूँ! सुल्तान की खास मित्र की देवराज की बहन!

सैनिक: माफ़ करना मोहतरमा, आप सबका ख़ुश आमदीद!

सैनिक चिल्ला कर-"ए लोगों रास्ता सुरक्षित करो। हिंद से हमारे मेहमान आये हैं।"

बलदेव देवरानी आगे बढ़ते है और देखते हैं सामने बहुत बड़ा महल दिखता है।

देवरानी: कितना विशाल और सुंदर महल है।

श्याम: ओह क्या चमत्कारी महल है।

बद्री: अधभुत!

बलदेवःअति सुन्दर!

सब अपने घोड़े को धीरे-धीरे ले जा रहे थे या । जैसे-जैसे घोड़े महल के करीब जा रहा थे वह चारो महल की ख़ूबसूरती में डूब जाते हैं।

महल के रास्ते में दोनों तरफ से कतार में खड़े सैनिक थे। बलदेव धीरे-धीरे घोड़ा आगे बढ़ रहा था। उसके पीछे श्याम या उसके पीछे बद्री था ।

सामने दो सैनिक आकर खड़े हो जाते हैं।

"बहोशियार हिन्द के महाराजा राजपाल और महारानी देवरानी महल में तशरीफ़ ला रहे हैं।"

बद्री देखता है सामने से राजसी पोषक पहने एक बूढ़ा पर हट्टा कट्टा व्यक्ति कुछ सैनिकों के साथ आ रहा था।

"खैरमकदम मेरी बहन देवरानी आओ!"

देवरानी देखती है ये तो मेरा भाई नहीं है फिर कौन है?

बलदेव सैनिक के कहे अनुसार घोड़े को एक तरफ ले जाता है, फिर देवरानी को पहले उतारता है फिर खुद उतारता है।

सैनिक: आइए आपका स्वागत करने खुद सुल्तान करने आए हैं।

देवरानी: (मन में:-ओह! तो ये है सुल्तान मीर वाहिद!)

देवरानी अपने हाथ जोड़ कर प्रणाम करती है और फिर बारी-बारी सब प्रणाम करते है।

सुलतान: आइए! आप सबको महल ढूँढने में कोई परेशानी तो पेश नहीं आई!

बलदेव देवरानी के साथ चलता हैं ।

"नहीं सुल्तान!"

सब चल कर महल के द्वार पर आते हैं।

सुलतान: सुनो जा कर सब से कह दो के हमारे मेहमान आ गए हैं ।

सैनिक: जी सुल्तान!

सुल्तान के बाए बलदेव और गाते हाथ देवरानी चल रही थी।

उनके पीछे श्यामऔर बद्री चल रहे थे। इन चारो को ले कर सुल्तान सभा में पहुँच जाते जहाँ पर दोनों तरफ से बड़े कुर्सी सोफ़े पर मंत्री बैठे थे सुल्तान को आता देख पूरी सभा में मौजूद सभी खड़े हो जाते है।

और दोनों तरफ से लोग बलदेव देवरानी के ऊपर फुलो की बारिश कर देते हैं ।

"ख़ुशामदीद ख़ुशामदीद!"

श्याम और बद्री अपना स्वागत देख गदगद हो जाते हैं।

सुल्तान जा कर अपने आसन पर बैठ जाते हैं।

सुलतान: आप यहाँ बैठिए राजा राजपाल जी! और देवरानी बहन आप यहाँ पर बैठें।

बद्री: (मन में:-ये बूढ़ा बलदेव को राजपाल बुला रहा है।)

जगह देख कर बद्री और श्याम भी बैठ जाते हैं ।

बलदेव: सुल्तान वह मैं वह नहीं...।

सुलतान: अरे हमारी आँखे आप दोनों को घोड़े पर बैठे देख ही समझ गई थी के आप ही देवराज के जीजा राजपाल और ये हमारी बहना देवरानी है।

ये सुन कर देवरानी शर्मा जाती है और बलदेव को भी अंदर से अच्छा लगता है। पर लोगों को दिखाने के लिए झूठा नाटक करता है।

बलदेव: नहीं सुलतान!

देवरानी: आप से भूल हुई ये मेरा बेटा है!

सुल्तान को जैसा एक झटका लगता है।

"मुआफ़ करना बहना!"

देवरानी: अरे कोई बात नहीं सुल्तान आप पहली बार ही तो मिले हैं। वैसे मेरे पति कोई कारणवश मेरे साथ नहीं आ सके।

देवरानी: (मन में:-जब मेरा असली पति यहीं है तो लगेंगे ही हम पति पत्नी ।)

और उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है जिसे बलदेव देख लेता है तो वह भी मुस्कुराता है।

बलदेव: (मन में;-माँ बस मेरी पत्नी कहलाकर इतना खुश है, सच में बना लूंगा तो कितनी खुश होगी।)

देवरानी: सुल्तान...भैया देवराज कहा रह गए?

सुल्तान: देवराज शहजादे शमशेरा के साथ शिकार पर गए हैं हमने खबर भेजवा दी है।

सुलतान: दोस्तो ये हिंद से आए हमारे मेहमान है मैं चाहता हूँ कि इनको पारस में किसी भी चीज़ की तकलीफ़ न हो ।

सुल्तान: बहन देवरानी! आप सब अंदर जाएँ! देवराज को आने में समय लग सकता है।

सुलतान: सुनो!

सैनिक: जी जहाँ पनाह!

सुल्तान: सबके रहने और खाने का बंदोबस्त करो। इनसब की मल्लिका जहाँ से मुलाकात करवाओ!

सैनिक चारो को अंदर ले जाते हैं।

बद्री श्याम के कान में।

"ये क्या नौटंकी है? तुम जाओ उन दोनों के साथ, मैं यहीं रुक रहा हूँ।"

"हाँ यार बद्री मुझे भी प्यास लगी है।"

बद्री: सुनो हमें पानी पीना है।

एक सैनिक बद्री और श्याम को पानी पिलाने ले जाता है, बाकी सैनिक बलदेव और देवरानी के साथ चल रहे थे।

मल्लिका जहाँ के कक्ष के पास रुक कर सैनिक बोलता है ।

सैनिक: गुस्ताख़ी मुआफ़ हो! मल्लिका जहाँ! हमारे मेहमान आपसे मिलने आये हैं।

मल्लिका जहाँ: इजाज़त है।

बलदेव और देवरानी सैनिकों के इशारे पर अंदर आते हैं। सैनिक वही रुक जाते हैं । एक बड़ा-सा कक्ष था जिसमें जड़े हीरे सोने जवाहरात चमक रहे थे । कक्ष के बीचो बीच में पलंग था जिसपर मखमली बिस्तर लगा हुआ था । सामने नकाब में खड़ी थी मल्लिका जहाँ।

बलदेव और देवरानी दोनों हाथ जोड़ कर मलिका का इस्तकबाल करते हैं ।

"प्रणाम मल्लिका जहाँ!"

मल्लिका जहाँ भी उनका स्वागत करती है ।

"सलाम आप दोनों को!"

मल्लिकाजहाँ: तुम दोनों की जोड़ी बेहद खूबसूरत है।

देवरानी: मुआफ़ कीजिए! पर क्या आप सुल्तान मीर वाहिद की मल्लिका है?

मल्लिकाजहाँ: जी हा मैं उनकी बीवी हूर-ए-जहाँ हू। प्यार से मुझे हुरिया भी कहते हैं।

देवरानी: आप भी हम दोनों को गलत समझ रही हैं। मल्लिका जी!

मल्लिकाजहाँ: मतलब?

देवरानी: मतलब ये मेरे पति नहीं है।

मल्लिकाजहाँ: यानी तुम कह रही हो कि ये आप शौहर नहीं है तो फिर कौन है?

देवरानी: ये मेरा बेटा है।

मल्लिकाजहाँ: तौबा तौबा! मुआफ़ करना! मेरी बहन । तुम दोनों की जोड़ी देख कोई भी धोखा खा सकता है।

देवरानी: कोई बात नहीं दीदी, तो क्या आप हमेशा अपने चेहरे को ढके रहती हैं?

मल्लिकाजहाँ: नहीं मेरी बहन। में सिर्फ गैर मर्द से, भले से वह रिश्तेदार ही हो उनसे पर्दा करती हूँ।

देवरानी: तो क्या, आपको देखने के लिए बलदेव को बाहर भेजना होगा?

मल्लिकाजहाँ: नहीं, नहीं, ये तुम्हारा बेटा है, तो फिर मेरे भी बेटा जैसा ही है, सिर्फ ये मेरा चेहरा देख ले, तो कोई हर्ज़ नहीं।

मल्लिकाजहाँ उर्फ हूर-ए-जहाँ हुरिया अपना नकाब अपने चेहरे से हटाती है तो देवरानी और बलदेव उसे देखते रह जाते हैं।

देवरानी: वाह! क्या सुंदरता है! आपका नाम हूर-ए-जहाँ बिलकुल सही रखा गया है । आप हूर से कम नहीं हैं ।

हुरिया: देवरानी शुक्रिया मेरी बहन! तुम भी कोई कम सुंदर नहीं ही । लगता ही नहीं के हिंद की हो।

देवरानी: दीदी! मैं पारस में ही पेदा और पली बड़ी हुई हूँ। इसीलिए आपको ऐसा लगा।

बलदेव देख रहा था कि दोनों बहुत जल्दी घुल मिल गई थी।

हुरिया: बेटा तुम क्यू चुप चाप हो?

बलदेव (मन में: बेटा तुम यहाँ से निकलो ही लो। दो औरतें के बीच में फ़सना ठीक नहीं ।)

बलदेव: मल्लिका जहाँ मैं आपको मौसी बुलाऊँ तो चलेगा ना।

हुरिया: हाँ बेटा तुम बहन देवरानी के बेटे हो इसलिए मुझे खाला (मौसी) बुला सकते हो, बड़ा शरीफ बेटा है आपकी बहन देवरानी।

देवरानी बलदेव की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोली -"बहुत नटखट है।"

बलदेव: मैं ये बद्री और श्याम को देखता हूँ, कहाँ रह गए । आप लोग बात करो।

हुरिया: आओ बैठो देवरानी खड़ी क्यों हो।

बलदेव वहा से बाहर आ जाता है और देवरानी वहाँ एक सोफे पर बैठ जाती है।

जारी रहेगी ।

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