महारानी देवरानी 071

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हाथ में अंगूठी
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Part 71 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 71

हाथ में अंगूठी

देवरानी बलदेव के पीछे भाग रही थी और बलदेव एक कक्ष में जा कर रुक छुपने की कोशिश करता है पर देवरानी भी उसके पीछे आ जाती है।

देवरानी: कमीने क्या सीखाता है तू उनको?

बलदेव: अब माँ अगर वह आपको भाभी नहीं कहेंगे तो क्या दादी कहेंगे!

देवरानी बलदेव पर झपट्टती हुए धीरे से उसके कंधों पर हाथ मारने लगती है।

बलदेव हसने लगता है।

बलदेव हसता जा रहा था और देवरानी उसे मार रही थी, आखिरकर देवरानी थक कर अपना हाथ पकड़ कर कहती है ।

"उफ़ तुम्हारा बदन है या पत्थर मेरा तो हाथ ही दुखने लगा।"

"हाहा मारो और मारो मुझे माँ! "

देवरानी ऐसे बलदेव के हंसने से खुद भी हंस देती है।

बलदेव देवरानी को अपनी बाहों में समेट लेता है।

"रानी तुझे वह मेरी मित्र, भाभी ही कहेगा चाहे तुझे आपत्ति हो या ना हो!"

देवरानी मुस्कुराती हुई शरम से बलदेव की बाहों में झूल जाती है।

देवरानी: "बेशरम!"

बलदेव: देवरानी मेरी रानी रिश्ता किया है तो निभाओ डरो मत!

बलदेव देवरानी को होठों की ओर जाता है ओर उसे चूमना शुरू कर देता है।

" गलप्प्प्प गैलप्प्प्प गप्प्प्प स्लुरप्प्प्प्प्प!

उम्म्म उम्म्म उम्म्म उम्म्म!

गैलप्पप्प गैलप्पप्प गैलप्प!

गैलप्पप्प गैलप्पप्प स्लरप्प उम्म्म अम्म्हा"

देवरानी के कानो में लोगों की बातें की आवाज आती है और वह बलदेव को धक्का दे कर अलग करती है।

बलदेव देवरानी को आगे बढ़ा कर उसके चुतड मसल देता है।

"चलो राजा हम देवगढ़ घूम ले और फिर हमे मंदिर और पास के बाज़ार भी घूमना है, कई वर्ष हो गए मुझे वह गए हुए ।"

"ठीक है जैसा मेरी रानी कहे।"

दोनों बाहर आते हैं तो देखते हैं बद्री और श्याम, देवराज से मिल कर कुछ बातचीत कर रहे थे।

देवराज: आओ बहना कैसा लग रहा है अपने घर आ कर?

देवरानी: भैया बहुत ख़ुशी हो रही है इतनी की जिसको शब्दों में नहीं कह सकती, वैसे कुछ बदला-सा लग रहा है ना।

देवराज: आओ बैठो...दोनो...वैसे हमारा जो महल पहले था वह तो शत्रु के आक्रमण से उसे बुरी क्षति पहुची थी और इसे हमें तोड़ कर दुबारा बनाना पड़ा।

बलदेव या देवरानी अपना-अपना आसन ग्रहण करते हैं।

बद्री: महल तो है बहुत सुंदर मामा जी!

देवराज: हमारे देवगढ़ की सुंदरता भी पहले जैसी नहीं रही ।

देवरानी: भैया आप उदास ना हो । ये घर सुना हो गया है आपको विवाह कर लेना चाहिए था।

देवराज: बहना कैसे कर लेता मैं विवाह, जब मेरा राज्य या मेरे राज्य के लोगों कि जान खतरे में हो और ये खतरा भी है कि मेरा परिवार खत्म हो जाएगा । तो समझो तुम ऐसे में कैसे करता!

देवरानी की आखों में आसू आते है।

देवरानी: "भैया आपका परिवार नहीं हुआ ख़तम । हम सब हैं ना!"

बद्री: मुझे तो सुल्तान बहुत लालची लगता है वैसे भी मैंने सुना था बहुत अय्याश किस्म का इंसान है...!

देवराज: वह जैसा भी हो पर मंगोलों से हमारे डूबते राज्य को उन्होंने ही बचाया है, बेटा बद्री, इसलिए मैं उनका नमक खा कर उनके विरुद्ध नहीं जा सकता।

बद्री: पर उनकी नज़र तो मैने सुना है कुबेरी राज्य पर है।

बलदेव: हाँ मामा जी राजा रतन सिंह के खजाने के पीछे हैं सब।

देवराज: बच्चो राजा रतन सिंह ने जो कारनामा किया है उसका उसे भोगना होगा । उसने छल कपट से मेरी बहन देवरानी का विवाह करवा दिया।

देवरानी: भैया जाने दीजिए जो हो गया वह हो गया।

बलदेव: नहीं मामा राजा रतन ने क्या नाना के ऊपर दबाव बना कर विवाह करवाया था? ये विवाह क्या उनको सहमती के बिना हुआ था?

देवराज: हाँ मेरे भांजे पर छोडो, उस बात को, जो बीत गई सो बीत गई. मेरी बहन वहा खुश है, इस से बढ़कर मुझे या क्या चाहिए!

देवरानी अंदर से ये सुन कर टूट कर रो कर भैया से कहना चाहती थी कि उसे कितना कष्ट हुआ पर वह मुस्कुरा कर अपना दर्द छुपाती है।

सब शाम तक वहीँ रुकते हैं, फिर शाम में वापिस निकल जाते हैं।

रास्ते में मंदिर के पास घोड़ा रुकवाते हुए देवरानी बोलती है ।

"भैया आगे थोड़ा ठहरे!"

सब रुकते हैं।

"क्या हुआ बहना? "

"भैया मुझे ये मंदिर गए मुझे बहुत बरस हुए, आज जाने की इच्छा है।"

देवराज मस्कुराता है ।

"तुम एकदम माँ पर गई हो बहना!"

देवरानी अपने घोड़े से उतरती है और फिर सब बारी-बारी से सीढ़ियों पर चढ़ने लगते है।

देवरानी बलदेव के पास आकर चलने लगती है।

देवरानी: ये भव्य मंदिर बहुत पुराना है बेटा, जब मैं छोटी थी तो माँ के साथ यहाँ रोज़ आती थी।

बलदेव: माँ मुझे राजा रतन की बात बताओ ।

देवरानी: चुप करो और अभी उसका ना सोचो । बात ये है की यहाँ पारस में पहले हमारे पुरवज़ो का राज था, पर आज सुल्तान ने कब्ज़ा किया हुआ है और वह भी तो सिर्फ राजा रतन के लालच के कारण से ऐसा हुआ है ।

बलदेव: हम्म्म!

सब मंदिर में पहुच कर हाथ जोड़ कर पूजा शुरू कर देते हैं।

देवरानी: बलदेव! माता से मांग लो जो भी मांगना है।

बलदेव अपना हाथ जोड़े खड़ा हो जाता है।

बलदेव मन में"माता मेरे जीवन में देवरानी दे दे, जीवन भर तेरा अहसान मंद रहूंगा ।"

फिर बलदेव घंटी बजा कर वापस सीढ़ियों से नीचे आता है।

देवरानी आख बंद किये हुए प्राथना कर रही थी ।

"माता रानी मेरा बलदेव को और भी शक्तिशाली बनाऔ! उसे धैर्य, शक्ति दे! मेरे राजा को हर शत्रु के युद्ध से बचाना, माता आपकी छाया में मेरा बलदेव हमेशा, ही हँसता खिलखिलाता रहे।"

और फिर देवरानी भी घंटी बजाती है।

सब वापस आकर अपने घोड़ों से निकल जाते हैं।

कुछ देर घोड़ों को भागाते हुए वे सब देवगढ़ के बाज़ार के पास से निकल रहे थे।

इस बार देवरानी अपना घोड़ा देवराज के सामने खड़ा कर देती है।

देवराज अचानक से अपने घोड़े को रोकता है।

देवराज: अब क्या हुआ बहना?

देवरानी: भैया, आपकी आज्ञा हो तो बाज़ार भी घूम ले!

देवराज मुस्कुराते हुए ठीक है बहना!

सब घोड़ा बाज़ार की ओर घुमा लेते हैं।

श्याम: वाह क्या सुंदर दृश्य है इस संध्या में बाज़ार का आकर्षण का क्या कहना है!

बद्री: मित्र तुम चुप नहीं रह सकते।

श्याम: तुम्हें कैसे चुप करना है अभी बताता हूँ।

श्याम अपना घोड़ा बद्री की ओर भागाता है।

फिर बद्री तेजी से बाज़ार की ओर घोडा भगाता हुया ले जा रहा था।

श्याम: क्यू डर गए क्या युवराज बद्री शेर की हुंकार से?

बद्री: शेर हाहा चूहा हो तुम! चूहा!

दोनो को ऐसे लड़ते हुए देख, सब हंसने लगे।

बाज़ार पहुछ कर सब रंग बिरंगी चीज़ो में खो जाते हैं, वहाँ श्याम खरीदारी करने लगते हैं।

देवरानी: भैया आप भी कुछ... ले लो!

देवराज: नहीं बहना तुम लोग लो जो भी आप को पसंद आये ।

तभी बाज़ार में आते जाते हुए लोग देवराज को मिल कर नमन करने लगते हैंऔर उनमे एक व्यक्ति प्रणाम कर कहता है ।

"महाराज, आप!"

"अरे! मेरे मित्र कैसे हो?"

देवराज: अच्छा तुम सब आगे घूम आओ, तब तक मैं अपने एक पुराने मित्र से बात कर लेता हूँ ।

देवरानी: ठीक है भैया।

श्याम और बद्री खरीददारी करते हुए आगे निकल जाते हैं, उनके पीछे बलदेव और देवरानी भी चल रहे थे।

तभी बलदेव की नज़र कहीं जाती है और वह उस दुकान पर खड़ा हो जाता है।

बलदेव: ये क्या भाव है?

दुकानदार: श्रीमान ये देवगढ़ के खास मोती है पर ये सिर्फ स्त्रीओ के लिए है।

फिर ये कह कर दुकानदार हसने लगता है, बलदेव को रुका देख देवरानी उसके पास आती है।

बलदेव: भैया ये अंगुठी मुझे चाहिए

पास में खड़े बद्री और श्याम भी वहाँ आ जाते हैं।

देवरानी: क्या हुआ भैया आप इनपे क्यू हस रह रहे हो?

दुकानवाला: आपकी बड़ी परेशानी हो गई है। मैं तो श्रीमान को बस ये कह रहा था कि ये अंगुठी जो है सब स्त्रीयो के लिए है, पर ये इन्हे खरीदने की जिद्द किये जा रहे है।

बद्री बात को समझ गया ।

बद्री: तुम्हें पता है तुम किस से बात कर रहे हो मुर्ख । जब अंगुठी उन्हें पसंद आई तो इसका मतलब ये नहीं कि वही इसे पहने। वह इसे भेट भी दे सकते हैं ।

दुकानदार डरते हुए कहता है ।

"जी श्री मान ये तो मैंने सोचा ही नहीं।"

बद्री: मुर्ख!

ये सुन कर सब हंसते हैं।

दूकानदार: तो दीजिये अंगूठी का दाम 50 सोने की सिक्के और ये अंगूठी ले लो ।

बलदेव अपनी जेब से सिक्के निकाल कर देते हुए कहता है।

दूकानदार: महाराज ये तो बहुत ज्यादा है। इसका मैंने सिर्फ 50 सिक्के मांगा था और आप 100 दे रहे हो।

बलदेव: जिसके लिए ले रहा हूँ उसके सामने ये कीमत कुछ भी कुछ नहीं है ।

देवरानी अपना सारा घुमा कर शर्मा कर इधर उधर देखने लगती हैऔर अपने भाई को दूर खड़ा हुआ देखती है जहाँ वह अपने मित्र से बात कर रहे थे ।

बद्री: वैसे मुर्ख! जो तुम्हारे सामने स्त्री खड़ी है ये अंगुठी उसके लिए ही है।

दूकानदार ये सुन कर देवरानी को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहता है ।

दूकानदार: मुझे ऐसा लगता है मैंने कहीं इन्हें देखा है।

देवरानी: बद्री तुम भी ना...!

बद्री: क्यू क्या हुआ भाभी माँ आपके लिए तो उसने लिया है मैं तो कहता हूँ इसे अभी पहन लीजिये ।

बलदेव: बद्री...!

दूकानदार: हाँ महाराज ये लीजिए अंगूठी इनके हाथो पर ये और भी सुंदर हो जाएगी ।

बलदेव सोच रहा था कहीं देवरानी इन सब बाते से कहीं यहीं पर तांडव ना कर दे।

देवरानी अपना सर झुकाए खड़ी थी।

दुकंदर: लगता है आप दोनों कहीं के राजा रानी है ।

बद्री: हाँ होने वाले हैं।

बलदेव अंगूठी लिए हुए खड़ा था और पास में खड़े लोग भी तब से इन लोगों की बात सुन हसे जा रहे थे और वह भी कहते हैं।

"भाई आज तो बाजी मार दो, बाज़ार है कोई नहीं देखेगा!"

बलदेव देवरानी की आंखों में दिखता है और अपने हाथ में अंगूठी को लिए आगे बढ़ता है।

देवरानी अपना हाथ जल्दी से आगे बढ़ाती है।

बलदेव: क्या आप हमारी बनोगी जीवन भर के लिए?

देवरानी: जी बनूंगी! फिर वह बलदेव की आँखें देखती हैं जिसमें उसे सिर्फ प्यार नज़र आता है।

बलदेव अंगूठी देवरानी की उंगली में पहन रहा था जिसे देख बद्री ताली मारने लगता है और उसके साथ सब ताली बजाने लगते हैं।

जैसे ही देवरानी अंगुठी पहनती है।

देवरानी: "अब चलो!"

और देवरानी अपने पैर देवराज की ओर घुमा कर चलने लगती है।

बलदेव: यार बद्री! वह नाराज़ हो जायेगी।

बद्री: तो तुम मना लेना।

बद्री मुस्कुराता है।

तीनो देवरानी के पीछे आते है।

देवरानी अपने भाई के पास पहुँच कर कहती है ।

"भैया आपके मित्र चले गये?"

"हाँ देवरानी! तुम लोगों की खरीददारी पूरी हो गई?"

"जी भैया!"

सब वहाँ पर पहुँच जाते हैं श्याम अपना सामान घोड़े पर लाद लेता है।

देवराज तभी देवरानी के हाथ में अंगुठी देख लेता है ।

"वाह देवरानी तुमने अंगुठी ली!"

"जी भैया वह दिल किया तो ले ली।"

बद्री, श्याम के कान से धुंआ निकल रहा था । देवरानी अपने भैया से ये नहीं बताती है के ये बलदेव ने उसे दी है।

सब घोड़े पर सवार हो कर सुल्तान के महल पहुँचते हैं...।

जारी रहेगी

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