महारानी देवरानी 074

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कोठे पर रेशमा और शमशेरा​
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Part 74 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 74

कोठे पर रेशमा और शमशेरा​

शमशेरा के साथ कोठे पर बैठे बलदेव और उसके दोनों मित्र आख टिकाए रेशमा की जवानी को खा जाने वाली नजर से ताड़ रहे थे। वहाँ बैठे सब लोग रेशमा की तारीफों की पुल बाँधते हुए अपने हाथों से उसपे फूलो की बारिश कर रहे थे ।

रेशमा अब अपनी अदा से सब से रूबरू होती है।

शमशेरा: वाह! क्या चीज़ हो तुम?

बद्री: बहुत सुन्दर है।

रेशमा अपनी मुस्कुराहट बिखेरे सब को घायल करते हुए तबले की धुन पर अपनी कमर मटकाती है । सब उसको देख गरम हो रहे थे।

रेशमा अब अपने दूध को बारी-बारी से हिला रही थी जिसे देख सब उत्तेजित हो रेशमा की तारीफ कर रहे थे ।

"वाह क्या बात है!"

"बहुत खूब, वाह! प्यारी रेशमा और हिलाओ इन्हे!"

रेशमा कुछ देर में वहा आये अपने मेहमानों के पास जा कर अपने कला का प्रदर्शन करने लगती है।

कुछ आधा घंटा यू वह अपने जवानी का जलवा बिखरे जाने के बाद रेशमा सबको सलाम कर के अंदर चली जाती है।

सबलोग चिल्लाते हैं।

"रेशमा रुक जाओ!"

रेशमा के जाते हे वहाँ बहुत-सी और लड़कियाँ आ जाती है और वह भी नाचने लगती है।

बद्री: क्या भाई ये तो इतनी जल्दी चली गई?

शमशेरा: भाई ये कुछ वक्त के लिए वह आती है। बहुत नखरे है साली के ।

बद्री: हम्म्म!

शमशेरा: भाई तुम लोग इनमें से किसी को भी चुन लो और अपनी आज की रात रंगीन करो।

श्याम: शमशेरा नहीं यहाँ पर हिंद के बहुत से राजा है। उनमे से किसी ने हमे कहीं पहचान लिया तो...!

शमशेरा: तो क्या? तुम भी उनसे पूछ सकते हो कि वह यहाँ क्या कर रहे हैं? आगे तुम सब की मर्जी ।में चला रेशमा के पास उसकी लेने।

श्याम के साथ बद्री बलदेव भी एक साथ चौंक कर कहते हैं ।

"क्या?"

शमशेरा: हाँ भाईयो मैं जाता हूँ।

शमशेरा उठ के अंदर जाता है, जहाँ पर रेशमा अपने पैरो पर बंधे घुंघरू खोल रही थी और पास में उसका एक राजा था जो उससे बात कर रहा था।

रेशमा उस राजा से कह रही थी।

रेशमा: राजा जी आप कैसे अंदर आ गए? यहाँ आने की सबको इजाज़त नहीं है ।

राजा: रेशमा मुझे तुम्हारे साथ रात गुजारनी है चाहे तो तुम मुंह मांगी रकम ले लो।

रेशमा अपने घुंघरू खोल कर निकालती हुई मुस्कुराती है।

रेशमा: पहले तुम बताओ, क्या दोगे तुम रेशमा को?

राजा: मैं सोने के 100 सिक्के दूंगा।

शमशेरा: खबरदार!

राजा: तुम कौन?

रेशमा: तुम इन्हें नहीं जानते ये सुल्तान मीर वाहिद के शहजादे शमशेरा हैं...आइये शहजादे!

राजा: मुआफ करना शहजादे हमें आपको पहचान नहीं पाए!

शमशेरा: कोई बात नहीं!

राजा: पर मैं यहाँ पहले आया हूँ और आज के लिए रेशमा मेरी हुई।

शमशेरा: लगता है तुम ऐसे नहीं मानोगे...तुम सौ 100 सिक्के दोगे, पर में 500 सिक्के देता हूँ आज । अब रेशमा को फैसला करने दो।

रेशमा: रेशमा तो यहाँ उसके साथ ही जाएगी जो उसे सही कीमत दे।

राजा चुप हो जाता है।

शमशेरा: बोलो! अब मैं इसे 1000 सिक्के देता हूँ।

राजा: गुस्ताख़ी मुआफ़ हुज़ूर में भूल गया था कि मैं तो एक छोटा-सा ही राजा हूँ।

राजा ये कह कर वहाँ से चला जाता है।

शमशेरा: वाह रेशमा! वैसे आज कयामत ढा रही हो जानेमन!

रेशमा: अब आप जैसे बिगडे हुए शहजादे रेशमा की बोली इतना लगा दे, तो वह तो कयामत ही ढायेगी।

शमशेरा आगे बढ़ कर रेशमा को अपनी बाहों में भरने की कोशिश करता है।

"आज ओफ़्फ़्फ़ ओह्ह्ह! ए शहजादे इतनी भी क्या बेकरारी?"

शमशेरा वही पास में गद्दे पर बैठ जाता है और रेशमा ज़ाम बना कर शमशेरा को अपने हाथ से पिलाने लगती है।

ज़ाम का नशा शमशेरा का सर चढ़ बोल रहा था, वही बाहर बैठा बद्री और श्याम से रहा नहीं जाता है, फिर वह भी मदीरा मंगवा लेते हैं और पीने लगते हैं। बलदेव भी अब तक गरम हो गया था।

बलदेव: (मन में-मुझे माँ की बहुत याद आ रही है। इन सुंदरियों का नाच बहुत देख लिया अब तो माँ के सोने का समय भी हो गया होगा ।

बद्री: अरे बलदेव क्या सोच रहे हो आज हमारा आखिरी दिन है पारस में, मदीरा पियो!

बलदेव: नहीं नहीं...यार!

बद्री: क्यू भाभी ने मना कीया है? और ज़ोर से हंसता है । फिर श्याम भी बलदेव को देख हँसता है।

बलदेव: माँ को अगर पता...!

बद्री: भाई जब हम वापिस पहुँचेगे तब तक तो वह सो गई होगी, पी लो उन्हें पता नहीं चलेगा ।

श्याम बद्री बलदेव की ओर मदिरा बढ़ा देते है और बलदेव भी अपने आप को रोक नहीं पाता है और मदिरा पी लेता है।

अंदर रेशमा अपने कमर को बलखाते हुए नाचते हुए अपने वस्त्र शमशेरा के सामने खोल रही थी, फिर कुछ ही देर में वह धीरे-धीरे नग्न हो गयी और अब वह बिना किसी कपड़े के शमशेरा के सामने नाच रही थी ।

शमशेरा ज़ाम का घुट लेते हुए उसे देख रहा था। फिर रेशम आकर शमशेरा के गोद में बैठ जाती है, अब शमशेरा से रुका नहीं जाता, वह उसके भारी मम्मों को पकड़ मसलता है और अपना लंड रेशमा की गांड पर रगड़ते हुए अपने कपड़े भी निकलने लगते हैं।

कुछ देर में दोनों एक दूसरे को चूमने लगते हैं, शमशेरा रेशमा को लिटा कर उसपर चढ़ जाता है।

"आह रेशमा तुम्हारा बदन कितना गरम, चिकना और मुलायम है, तुम सच में बहुत खूबसूरत हो"

शमशेरा रेशमा के ओंठो को चूम रहा था और अपने बदन से रेशमा के नाज़ुक बदन को मसल रहा था । अब रेशमा अपना हाथ आगे बढ़ा कर शमशेरा का लौड़ा पकड़ लेती है। उसे लौड़ा बहुत गर्म लगता है ।

"इसे बहुत बुखार आता है मुझे देख के आ जाओ अब इसका बुखार निकालु।"

रेशमा लौड़ा पकड़ कर अपनी चूत के मुँह पर रखती है, फिर शमशेरा ज़ोर का धक्का मारता है तो उसका लौड़ा एक बार में ही पूरा जड़ तक चला जाता है।

"आआआआआह शहजादे! आप का बहुत बड़ा है आराम से!"

शमशेरा धक्के पर धक्का मारने लगता है।

"उहह आआहह! मेरी रेशमा तुम्हारी माखन चूत!"

"आआआह राजा ओह शहज़ादे! आराम से!"

ये ले रेशमा मेरा लौड़ा! "

"ये लौड़ा नहीं है लौडो का बाप है, मुझे इतना दर्द कोई नहीं देता शहजादे, जितना आप देते हो।"

ये सुन कर वह और जोश में आकर तेजी से चोदने लगता है।

कुछ देर यू हे चुदाई के बाद शमशेरा अब रेशमा की टाँगे उठा कर चोदने लगता है, इस वक्त रेशमा अपने आखे बंद किये हुए सिस्कीया ले रही थी।

अब शमशेरा का पानी निकलने के करीब था ।

"आआह शहजादे मेहरबानी कर आप मणि अंदर न निकाले, मैं माँ बन जाऊँगी!"

"आह आह!"

शमशेरा ज़ोर का धक्का देता है और जैसे वह शमशेरा की नज़र रेशमा पर जाती है उसे अपनी अम्मी जान मल्लिका हुरिया नज़र आती है।

"अम्मी जान!"

ये कह कर आगे बढ़ कर रेशमा दोनों दूध पकड़ कर दबाता है और अपनी आँख बंद करता है तो उसे अपनी अम्मी की कुछ ऐसी ही तसवीर उसके दिमाग में आती है।

शमशेरा-"आह अम्मी!"

करता हुआ रेशमा की चूत में ही झड़ने लगता है ।

कुछ देर झडने के बाद रेशमा चिल्लाती है ।

"हाय मैं मर गई, उतरो भी, मेरे ऊपर से, कितना पानी छूट गया, मेरी चूत पूरा भर गयी ।"

बाहर बद्री और श्याम ज़ाम का घुट भरते हुए मुजरा करती हुई एक लड़की को अपने पास बुला लेते हैं।

वो दोनों उसके अंग को छु कर सहला कर मजे ले रहे थे और वह भी बारी-बारी उन दोनों के गोद में बैठ कर बारी-बारी मजे ले रही थी ।

बलदेव: यार ये शमशेरा कहाँ रह गया, रात हो गयी है ।

बद्री: चुप चाप मजे लो आजाऔ हमारे साथ । देखो ये नर्तकी कितनी सुंदर है।

बलदेव: नहीं मुझे नहीं चाहिए ये, ये गलत है।

बलदेव ज़ाम का गिलास लिए वहाँ से दूर चला जाता है।

बद्री: (मन में-साला खुद तो माँ से मजे लेता हैं अगर हम कुछ करे तो गलत है।)

फिर बद्री वह नाचने वाली का दूध दबा देता है जिसे बलदेव देख लेता है। वह भी नशे में था, उसका लौड़ा खड़ा हो जाता है पर वह जान बुझकर इनसे दूर हट जाता है कि कही वह कुछ गलत ना कर बैठे ।

अंदर शमशेरा कुछ देर बाद फिर से रेशमा की चूत मारता है, फिर बहार आता है तो देखता है बद्री और श्याम भी मजे कर रहे हैं।

शमशेरा: अरे ये बलदेव किधर है भाईयो?

बद्री: वह मेरे पास नहीं है ।

शमशेरा: चलो चलें!

बद्री: अब हम चलते हैं ।

तो वह नाचने वाली कहती है।

"हुजूर हमारी बख्शीस!"

शमशेरा: वो मैं भेजवा दूंगा अपने आदमी के हाथ से महल से।

वो खामोश हो कर चली जाती है तीनो बलदेव के पास आते है जो गहरी सोच में था।

शमशेरा: क्या हुआ बलदेव तुम परेशान क्यू हो?

बलदेव: वो माँ ने कहा था जल्दी आ जाने के लिए, ऊपर से मैंने मदीरा भी चढ़ा ली है । अब कैसे उनका सामना करूंगा?

शमशेरा: कोई नहीं चलो अब! वैसे आज मैं जल्दी जा रहा हूँ नहीं तो सुबह ही वापिस जाता हूँ।

तीन बाहर निकल कर तहखाने के रास्ते से सीधे ऊपर आते हैं। आसमान में चांद पूरा था और ठंडी हवाएँ बढ़ गई थी, रास्ता सुनसान था और परिंदों की चहक से लग रहा था कि पहली सुबह हो गई थी और आधी रात से भी अधिक समय बीत गया है।

तीनो घोड़े पर बैठ तेजी से महल की ओर जा रहे थे। कुछ देर में तीनो महल तक पहुँच जाते हैं।

शमशेरा: भाईयो जा कर चुप के सो जाओ, किसी से कोई बात करने की जरूरत नहीं है ।

महल में आते हुए हर सैनिक इनको देख रहा था, जो रात की निगरानी कर रहे थे।

शमशेरा अंदर आकर अपनी कक्षा में घुस जाता है।

बद्री और श्याम भी अपने कक्ष में घुस जाते है।

बलदेव अपने कक्ष की ओर जाता है । वह दरवाजे को इस उम्मीद से खोलता है कि खुला होगा पर वह बंद था।

बलदेव: अब तो पक्का माँ को उठाना पड़ेगा।

बलदेव लड़खड़ा रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे?

बलदेव: माँ ओ माँ दरवाजा खोलो!

देवरानी बाहर समय तक बलदेव का राह देख रही थी और उसकी कुछ समय पहले ही झपकी लगी थी, इसलिए जैसे ही उसके कान में बलदेव की आवाज जाती है, वह उठ जाती है।

"खोलो दरवाजा! माँ!"

देवरानी: (मन में-मैं पूरी रात तड़पी हूँ, इसका इंतजार कीया है और ये गुलछर्रे उड़ा के आ रहा है ।आह देखती हूँ इसको!

देवरानी जान बुझ कर दरवाजा नहीं खोलती है और अपनी आखे बंद कर फिर लेट जाती है।

बलदेव अब ज़ोर से दरवाज़ा पीट रहा था । नशे की हालत में इतना शोर गुल सुन कर हुरिया की भी आँख खुल जाती है।

हुरिया: उफ़ ये बलदेव क्यू चिल्ला रहा है आधी रात को?

हुरिया कुछ देर में हालात समझने के बाद बाहर निकलती है।

हुरिया: अरे बेटा बलदेव तुम आ गये क्या?

बलदेव नशे में लड़खड़ते हुए बोलता है ।

बलदेव: जजिज्ज ववो माँ दरवाज़ा नहीं खोल रही।

हुरिया: तुमने कितनी पी राखी है बलदेव, तुम इस हाल में कैसे माँ के पास जाओगे, तुम बद्री और श्याम के कक्ष में रह सकते हो।

कुछ देर से देवरानी को बलदेव की आवाज ना आती देख वह उठ कर आती है और धीरे से दरवाजा खोलती है।

जैसे ही दरवाजा खुलता है बलदेव सामने ही खड़ा था और लड़खड़ाते हुए हुरिया से बात कर रहा था।

जिसे देख देवरानी का पारा चढ़ जाता है।

बलदेव दरवाजा खुलने पर आये रोशनी से उस तरफ देखता है । फिर अपनी माँ को खड़ा पा कर कहता है ।

"मां आप उठ गईं?"

देवरानी ने उसे गले लगा लिया ।

"जिसका बेटा इतना बड़ा शराबी हो, रात भर बाहर रंग रेलिया मनाये वह भला कैसे चेन की नींद सो सकती है?"

"मां आप गलत समझ रही हो।"

"चुप कर बलदेव गलत तो मैं हूँ, तुम तो सही पर ही रहते हो, मुझे सब पता है तुम रेशमा...! ।"

ये कहते हुए उसकी आंखो में आसु छलक जाते हैं।

हुरिया: आराम से बात करो बहन रात का समय है । अब सब सो जाओ सुबह बात करेंगे ।

देवरानी: मुझे इससे बात ही नहीं करनी । इसे बोलो जजन जाना है वहाँ जाए!

बलदेव: माँ मुझे नींद आई है ।सोने दो!

देवरानी: ये कोई कोठा नहीं है जो जब मर्जी आ जाए और जब मर्जी हो चले जाएँ!

देवरानी ये बात धीरे से अपनी आँखों में आसू के लिए कहती है और अंदर जाने लगती है।

बलदेव उसके पीछे जाता है पर तभी अंदर से देवरानी तकिया चादर के लिए आती है और बलदेव की और फेकती है जो सीधा बलदेव के मुंह पर जा कर लगता है।

"मां क्या कर रही हो?"

"मेरे पास सोने की ज़रूरत नहीं जाओ यहाँ से!"

हुरिया: देवरानी इतना भी क्या गुस्सा करना?

देवरानी: दीदी इसे समझा दो नहीं तो मैं कुछ गलत कर बैठूंगी। मुझे पता है आधी रात में नशे में धुत जब मर्द मुजरा देख कर आता है तो वह क्या कर के आया है । इसके शरीर से वही गंध आ रही है ।

ये कह के देवरानी वापस जाने लगती है बलदेव अपना सर झुकाए खड़ा था । उसके सामने तकिया और चादर ज़मीन पर गिरे हुए थे ।

देवरानी दरवाजा बंद करती है फिर खोल कर गुस्से में कहती है ।

"सुनो" ना तो मैं बाज़ारू हूँ या ना तो ये कोठा है जो जब चाहा मुँह उठा कर आये, मेरे दिल कि तुम कीमत नहीं लगा सकते बलदेव! "

ये कह फट से दरवाज़ा लगा लेती है।

ये सब सुन कर बलदेव का तो जैसा नशा ही उड़ जाता है और वह सोचता रह जाता है कि माँ हुरिया के सामने ऐसे कैसे ये सब बात कर रही है!

बलदेव अब हुरिया से भी आखे नहीं मिल पा रहा था!

हुरिया: बेटा उठा लो ये तकिया और चादर! आओ मेरे साथ।

बलदेव हुरियारे के पीछे जाता है।

हुरिया: बेटा ये शमशेरा तो अब नशे में दरवाजा खोलने से रहा, तुम ऐसा करो, आज मेरे ससुर के कमरे में सो जाओ!

बलदेव शर्मिन्दा होते हुए

"वो मौसी, मुझे मुआफ़ कर दो! मेरी वजह से इतना सब आपको देखना सुनना पड़ा"

हुरिया: अरे बेटा...तुम्हें पता है शमशेरा रोज़ ही ऐसा करता है, पर उसने आज तक मुआफ़ी नहीं माँगी । उसने अगर तुम्हें लग रहा है कि तुमने गलत किया है तो यही काफ़ी है।

ये कह कर हुरिया चली जाती है और बलदेव जा कर सीधा बिस्तर पर लेट जाता है, उसे दरवाजा बंद करने का भी ख्याल नहीं रहा था।

बलदेव: (मन में-ये माँ ने ऐसा खुलेआम सब कुछ बक दीया पर मालिका ने मुझसे मेरे और उनके सम्बंध के बारे में कुछ नहीं पूछा...!)

सोचते हुए बलदेव गहरी नींद में चला जाता है।

जारी रहेगी

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