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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 75
अलविदा सुलतान, मल्लिका, शमशेरा, मामा और पारस
"घटराष्ट्र"
रात के अँधेरे में कोई देवरानी के कक्ष में घुसता है या उसके कक्ष की पड़ताल शुरू करता है वह शख्स उस कक्ष के हर एक कोने में जाँच करता है, ये शख्स और कोई नहीं बल्कि महारानी श्रुष्टि ही थी जो रात के अँधेरे में देवरानी के कक्ष में आयी थी। उसका कुछ किताबों पर ध्यान जाता है, श्रुष्टि उन को खोल कर देखती है, तो वह कामसूत्र की पुस्तक निकलती है।
शुरुआत: (मन में-ओह तो देवरानी इतना आगे निकल गई, ये पढ़ के अपने बेटे से रंगरलिया मनाती है ।)
ये पढ़ के पुस्तक को रखती है तभी उस पुस्तक में से एक कागज़ नीचे गिरता है जिसे शुरुष्टि उठा कर पढ़ती है या शुरष्टि के पैर कांपने लगते है।
शुरष्टि: (मन में-"हे भगवान प्रेम पत्र, वह भी माँ बेटे का, अब मजा आएगा बस देवरानी और बलदेव वापस आ जाए. अब दोनों मेरे वार से बच नहीं पाओगे! हाहाहाहा! अब क्या करोगी देवरानी जब मैं ये पत्र महाराज को दे दूंगी! हाहाहाहा!")
शुरष्टि ये पढ़ के धीरे-धीरे बलदेव के वह हर प्रेम पत्र जो देवरानी के पास था उसको अपने पास रख लेती है और फिर चुपचाप बलदेव की कक्ष में जा कर भी तलाशी कर के देवरानी के लिखे हुए पत्र ढूँढ कर अपनी कक्ष में आकार छुपा कर रख देती है।
"देवरानी और बलदेव ये सब तुम दोनों की मृत्यु का कारण बनेंगे । देवरानी को मैं कभी इस राज्य की महारानी नहीं बनने दूंगी।"
शुरष्टि ऐसे ही अपने ख्वाबो को सजाये अपने कक्ष के बिस्तर पर लेट कर सो जाती है।
घटराष्ट्र की सुबह बहुत ही शोर गुल से शुरू होती है जहाँ घटराष्ट्र के लोग हल्ला मचा रहे थे।
महाराजा राजपाल अपनी कक्ष से निकलते हैं।
राजपाल: ये क्या शोर है?
राजपाल चलते हुए महल से बाहर निकलते हैं।
चुकी महल के अंदर सिर्फ काम करने वाली नौकरानीयो के अतिरिक्त किसी भी बिना काम के सैनिको का जाना वर्जित था इसलिए महाराज स्वयं ही बाहर निकी आये थे ।
राजपाल: सेनापति सोमनाथ ये क्या शोरगुल मचा हुआ है?
सोमनाथ: महाराज आपके मित्र कुबेरी के महाराज आ रहे हैं।
राजपाल: क्या राजा रतन सिंह आ रहे हैं?
सोमनाथ: जी महाराज!
राजपाल: जाओ अंदर महल में और कह दो के वह महल में वह रुकेगे, अतिथि गृह में नहीं! वह हमारे परिवार का अंग है उनके लिए विशेष पकवान बनाये जाए!
सोमनाथ: जो आज्ञा महाराज!
सोमनाथ महल के अंदर आकर दसियों को ढूँढ रहा था, उसे सामने से महारानी शुरष्टि आती हुई दिखती है।
सोमनाथ महारानी श्रुष्टि के मोटे लटकते वक्ष और उसकी गहरे नाभि को घूर रहा था। महारानी श्रुष्टि सोमनाथ के पास आकर उसे टोकती है ।
शुरुष्टि: सोमनाथ तुम होश में तो हो?
सोमनाथ: क्यू महारानी मैंने क्या पाप कर दिया?
शुरुष्टि: तुम अंदर कैसे आये?
सोमनाथ से रहा नहीं जाता है और वह शुरष्टि को अपने बाहो में भर पास के कक्ष में घुस जाता है।
"छोडो मुझे कमीने दुष्ट सेनापति!"
"ओह महारानी! जब मेरा लौड़ा तुम्हारी चूत में घुस सकता है तो क्या मैं महल में भी नहीं आ सकता।"
सोमनाथ शुरष्टि के दोनों हाथों को अपने हाथों में थाम दीवार पर सृष्टि को चिपका देता है और सृष्टि के गले पर चुमता है।
"उम्म्म्हा!"
"छोडो मुझे सेनापति!"
सोमनाथ अब शुरष्टि के होठों को अपने होठों में ले लेता है और उन्हें चूसने लगता है। सृष्टि अपने होठों को जोर से दबाये हुई थी और मुंह खोलने का नाम नहीं ले रही थी।
सेनापति अब सृष्टि के कमर के चारो और बाहो में कस के अपना खड़ा लंड महारानी श्रुति की चूत पर रगड़ते हुए चूम रहा था।
"छोडो सेनापति कोई देख लेगा तो, तुम्हें पता नहीं आज के दिन ही जान देनी पड़ेगी तुमको!"
"महारानी मैं तुम्हारे शरीर के लिए पागल हो गया हूँ । अगर इसके लिए इस पल ही मैं मर जाउ तो मुझे कोई अफ़सोस नहीं होगा।"
सोमनाथ अब अपने एक हाथ से शुरष्टि के दूध को दबाने लगता है और दूसरे हाथ से उसके गांड को दबाता है...।
"महारानी तुम इस घाघरा चोली में बहुत सुंदर लगती हो।"
"आआह उह नहीं बस्स करो! अब जाने भी दो।"
सोमनाथ एक बार फिर शुरष्टि के होठों पर टूट पड़ता है । एक गहरा चुम्बन ले कर उसे छोड़ता है।
"ठीक है महारानी जैसी आपकी आज्ञा! जाने दिया ।"
"कमीने तुम मुझे इस तरह से प्रयोग करोगे! मैंने ऐसा सोचा नहीं था।"
सोमनाथ मुस्कुराता हुआ वहा से निकल कर महल के दासियो को महाराज की आज्ञा समझा कर चला जाता है।
कुछ देर बाद सभा लगाई जाती है और राजा रतन भी समय पर पहुँच जाते हैं, उनके स्वागत के बाद राजा रतन सिंह को महाराज राजपाल अपने घर यानी राजमहल में रुकने को कहते हैं।
पारस
पारस में सुबह हमेशा की तरह चहल पहल से होती है। चहल पहल से पूरा पारस का बाज़ार भरा हुआ था । जहाँ पूरी दुनिया के व्यापारी अपने व्यापार के लिए आते थे और पूरी दुनिया के राजा अपने मजे के लिए आये हुए थे ।
पारस के सुल्तान मीर वाहिद महल में आराम कर रहे थे, तभी वहा पर एक सिपाही आकर शिकायत करता है।
"गुस्ताख़ी मुआफ़ सुल्तान पर कल रात शमशेरा फ़िर से कोठे पर गये थे और...!"
"अब हमने उसे कई मर्तबा कहा कि तुम्हारी शादी कर देते हैं पर वह है कि मानता नहीं । अब हम क्या करें! हम भी किसी जमाने में शमशेरा जैसे ही थे।"
ये बात सुन कर सिपाही खामोश हो जाता है।
इधर बद्री और श्याम उठ कर जाने की तयारी कर रहे थे । बलदेव की आख खुलती है, उठने के बाद देवरानी भी तैयार होने लगती है।
कुछ देर में सब नाश्ता खाने के लिए एक साथ बैठेते है। देवरानी बलदेव की ओर देख भी नहीं रही थी जिसे सब महसूस कर रहे थे।
देवराज: तो बच्चो! कब निकलोगे घटराष्ट्र के लिए?
देवरानी: कभी पधारे हमारे राज्य सुल्तान! हमें भी अतिथि का मान सम्मान करने के लिए जाना जाता है।
सुल्तान: हाँ! बहन हिंद देखने की ख्वाहिश तो मुझे भी है पर जा नहीं पाता!
देवरानी: सुलतान हमे भी आपका आतिथ्य और मान सम्मान करने का मौका दीजिये!
सुलतान: बेशक! बहन!
बद्री: हमारी पूरी तैयारी हो गई है । हम निकलेंगे दोपहर तक!
सब खा कर उठ कर चले जाते हैं।
वहा पर देवरानी और हुरिया थी और बलदेव भी बैठा हुरिया के जाने का इंतजार कर रहा था पर वह नहीं जाती तो हार कर बलदेव देवरानी को पुकारता है ।
बलदेव: माँ!
देवरानी बलदेव की पुकार अनुसुना कर देती है।
बलदेव: माँ क्या हुआ? बताओ तो मेरी गलती क्या है?
देवरानी: दीदी इसे कह दीजिए मुझसे बात ना करे।
हुरिया: देवरानी कब तक गुस्सा करोगी?
देवरानी: मुझे ऐसे चरित्रहीन व्यक्ति से कोई बात नहीं करनी!
ये सुन कर बलदेव वहा से उठ कर चला जाता है। ये सोच कर अगर माँ ने गुस्से में कुछ और बोल दीया तो हुरिया के सामने इनके प्रेम का भांडा फूट जाएगा तो उनका हुरिया के सामने मान समान सब खत्म हो जाएगा!
बलदेव बाहर आता है और उदास हो कर बैठ जाता है। पास ही में अपने घोड़ों को चारा दे कर उन्हें तैयार कर रहे, बद्री की नज़र बलदेव पर पड़ती है और उसे यू दुखी देख कर बद्री उसके पास जाता है ।
बद्री: मित्र तुम उदास क्यू हो?
बलदेव: सब तुम लोग ठीक हो!
बद्री: क्या कह रहे हो।
बलदेव: हाँ कल मैं तुम लोग के साथ रहा और नशे में धुत हो कर आया तो माँ मुझपे गुस्सा हो गयी है और बात नहीं कर रही है ।
बद्री: पहली बात इसमें हमारा क्या दोष और दूसरी बात तुम दोनों प्रेमी प्रेमिका के बीच मैं नहीं पडूंगा। बस यही कहूंगा तुम उन्हें मना लो!
बलदेव: पर बात ऐसी है कि वह समझ रही है कि चरित्रहीन हूँ और मैंने उसे धोखा दिया है । मैंने रात रेशमा के साथ गुजारी है।
बद्री: ओह तो ये बात है, अब भाभी तुम्हें किसी और के साथ नहीं देख सकती, पर उनको कैसे पता चला की हम रात को रेशमा के कोठे पर गए थे?
बलदेव: अब ये मुझे नहीं पता की उन हे कैसे पता चला, परन्तु मेरे मित्र कुछ करो, मुझे तो समझ नहीं आ रहा की मैं कैसे समझाऊँ माँ को? क्यू की अगर मैं ये कहूँ भी कि तुम सब ने मजे किये पर मैंने नहीं तो भी मानेगी नहीं वो।
बद्री: मैं कुछ करता हूँ जाओ! तुम वापस चलने की तैयारी करो।
बद्री कुछ सोचता हुआ अपने काम में लग जाता है।
थोड़ी देर बाद देवरानी के कक्ष के पास खड़ा हो कर पुकारता है ।
"मौसी मैं बद्री!"
"हाँ आ जाओ बेटा!"
"बलदेव कहा है?"
"वो बाहर ही होगा। क्यू?"
"वो ऐसे ही...तो वापस घत्रराष्ट्र जाने के लिए आप तैयार हो ना?"
"हाँ बेटा बद्री!"
"मौसी आप बुरा ना माने पर आप उदास लग रही हो!"
"नहीं तो मैं क्यों उदास रहूंगी भला?"
"बात ऐसी है कि बलदेव ने कहा है, आप उसपर गुस्सा हो, कल रात की बात को ले कर।"
देवरानी ये सुन कर गुस्सा हो जाती है।
"बद्री जब तुमने बात निकली है तो कहो क्या जो तुम लोगों ने रात में किया वह ठीक था? क्या रेशमा की वहा जा कर जो किया वह ठीक था?"
"नहीं मौसी ग़लत था!"
"तुम लोग कैसे दोस्त हो, शमशेरा उसे नहीं जानता, तुम दोनों तो उसे जानते हो! तुम दोनों तो ऐसी गंदी जगह जाने से रोक सकते थे बलदेव को?"
"हान पर!"
"बद्री तुम दोनों को तो पता है, हम एक दूजे को कितना प्रेम करते हैं और मेरा प्रेमी किसी अन्य स्त्री के साथ रात में था, मुझे तो ये सोच के घिन आ रही है।"
"मौसी आप को हम बचपन से अपनी मां-सा समझते हैं, मैं आप से जो बोलूंगा सत्य ही कहूंगा।"
"अब कहने को बचा ही क्या है बद्री?"
"देवरानी मौसी ने अपनी माँ की कसम खा कर कहता हूँ हम रेशमा के कोठे पर जरूर गए थे, पर बलदेव ने किसी भी स्त्री को छुआ भी नहीं।"
देवरानी चौकते हुए "ये क्या कह रहे हो? कैसे?"
"हाँ मौसी शमशेरा में और श्याम बहक गए थे, हमारे बहुत कहने पर बलदेव पूरी रात पीता तो रहा पर उसने किसी को हाथ तक नहीं लगया, इतने नशे में भी वह बार-बार आपका ही नाम ले रहा था।"
ये कह कर बद्री अपने किये पर शर्मिंदा-सा होते हुए अपना सर झुका कर खड़ा हो जाता है।
देवरानी ये सुन कर खुश हो जाती है।
"बेटा जवानी में कदम फ़िसल ही जाते हैं लोग, तुम्हें सर झुकाने की ज़रूरत नहीं और धन्यवाद बेटा मेरेमन की शंका तो तुमने दूर कर दिया, मुझे अब विश्वास हो गया है कि मेरा बलदेव कभी मुझे धोखा नहीं दे सकता।"
ये कह कर देवरानी मुस्कुराती है।
"धन्यवाद मौसी हमें समझाने के लिए और आज के बाद मैं भी कभी नहीं जाऊंगा। आप हमे क्षमा कर दे।"
"ठीक है बद्री जाओ अब चलने की तैयारी करो।"
बद्री दरवाजे के पास जाता है और मुड़ के कहता है ।
"वैसे भाभी आप आज्ञा दो तो अब बलदेव को अपना सामान लेने के लिए आपके पास भेज दू।"
देवरानी एक बार तो गुस्साती है फिर मुस्कुरा के कहती है ।
"ठीक है देवर जी!"
ये कह कर अपना सर नीचे झुका लेती है।
देखते देखते दुपहर हो जाती है।
देवरानी देखती है बलदेव समान ले जाने के लिए कक्ष में आता है।
देवरानी: बलदेव!
बलदेव जैसे ही अपनी माँ के मुँह से अपना नाम सुना वह माँ की तरफ पलट जाता है ।
देवरानी अपने हाथ में दूध का गिलास लिए हुए खड़ी थी।
देवरानी: ये लीजिए आप कल रात दूध नहीं पी पाएँ।
बलदेव देवरानी से दूध ले कर पी लेता है।
बलदेव: माँ मुझे क्षमा कर दे!
देवरानी झट से बलदेव के गले लग जाती है।
"मेरे राजा मुझे तुम पर शक नहीं करना चाहिए था । मुझे बद्री ने सब बता दिया मेरे राजा।"
बलदेव देवरानी को अपनी बाहों में भर लेता है ।
"मेरी रानी में जान दे देना पसंद करूंगा। पर किसी गैर महिला को नज़र उठा के देखूंगा भी नहीं। मेरा पहली प्रेम हो तुम देवरानी।"
दोनों कुछ देर बैठ कर बात करते हैं फिर अपना सामान बाहर ला कर घोड़े लाद देते हैं।
देवरानी सब से मिलती है।
हुरिया: 9देवरानी के कान में फुसफुसाती है) अरे वाह जाने की खुशी में गुस्सा भूल गई? क्या उनको मुआफ कर दिया?
देवरानी: नहीं दीदी उनकी कोई ग़लती नहीं है। मुझे सब कुछ पता चल गया है ।
दोनों मस्कुराती है।
हुरिया: दोबारा आना देवरानी! तुमसे मिल कर ऐसा लगा जैसे हम सदियों से एकदूसरे को जानते हैं।
देवरानी: दीदी आप मेरी तरह ही हो! आपको एक बात कहु, कृपा करके बुरा मत मानना!
हुरिया: बोलो मेरी बहन!
देवरानी: मुझे नहीं लगता दीदी आप खुश हैं। देखिए आज मैं बलदेव की वजह से कितना खुश हूँ और मेरा बलदेव मुझे कितना चाहता है। मुझे लगता है आप भी इतना खुश रह सकती हैं... अगर...!
हुरिया: अगर क्या बहन?
देवरानी: मुझे लगता है शमशेरा भी बलदेव की तरह खुश रह सकता है...!
हुरिया: तौबा...जाते वक्त ऐसी बात...मुझे जहन्नमी नहीं होना है बहन...और मुझे जितना मिला है मैं उसी में मैं खुश हूँ। आप अपनी जिंदगी को जियो । पर हमारे मजहब में...!
देवरानी: बस-बस मल्लिका ए जहाँ हुरिया जी! एक बार आपके साथ पूरी दुनिया घुमने की इच्छा है।
हुरिया: क्यू नहीं देवरानी! बस अगर ये फ़िज़ूल की बाते छोड़ दो तो तुम्हारा दिल सोने का है और तुम्हारी इस ख्वाहिश के लिए हम ज़रूर कुछ करेंगे। आखिर आधी दुनिया पर हमारी हुकुमत है।
देवरानी: अलबिदा दीदी!
हुरिया: सलामत रहो मेरी बच्ची कह उसे गले लगाती है।
देवरानी हुरिया की पैर छू कर बाहर आती है।
देवरानी देवराज की चरण छू गले लगती है।
देवराज: मैं जल्द ही आऊंगा मेरी बहन! और अब तुम से मिलता रहूंगा।
देवराज और सुलतान देवरानी और बलदेब को कुछ उपहार भेंट करते है ।
देवराज और शमशेर बद्री श्याम को भी उपहार देते है ।
बद्री: आइए आप लोग भी हिंद!
सुलतान: आप सब को कहीं भी रस्ते में कोई पेशानी पेश आए तो हमें याद कर ले और कोई मदद चाहिए तो रास्ते में लोगों से कह दे की आप सुलतान मीर वाहिद के मेहमान है आपको पूरी मदद मिलेगी ।
बलदेव: जरूर सुलतान!
सुलतान: अलविदा बच्चो!
बलदेव: नमस्कार सुलतान और मल्लिका!
बलदेव देवराज के चरण छु कर नमस्कार करता है ।
बलदेव मामा प्रणाम! माँ आप जल्दी हमारे यहाँ पधारना!
देवराज: आयुष्याम भव: पुत्र!
देवराज बलदेव को आशीर्वाद दे कर गले लगा लेता है।
बलदेव शमशेर के गले मिल, बिदा लेता है और कहता है मित्र पाना ख्याल रखना ।
सब से मिल कर बद्री श्याम और देवरानी अपने घोड़े पर बैठ जाते है।
शमशेरा: खाला और बलदेव तुम भी अपना ख्याल रखना!
बद्री और श्याम: तुम भी अपना ध्यान रखना । अच्छा लगा तुम लोगों से मिल कर ।
बद्री श्याम और बलदेव: शमशेरा हम मिलते रहेंगे!
शमशेरा: ज़रूर दोस्तो!
शमशेरा: अलविदा!
बलदेव सबसे पहले घोड़े को दौड़ाता है, उसके बाद देवरानी फिर उसके पीछे उसके पीछे श्याम और उसके पीछे बद्री के घोड़े दौड़ने लगते हैं।
महल के सामने सुल्तान के साथ सब खड़े उन्हें दूर तक जाते हुए देख रहे थे...।
जारी रहेगी