महारानी देवरानी 073

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आज मत जाओ
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Part 73 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 73

आज मत जाओ

बलदेव और देवरानी अपने बिस्तर पर लेटे हुए थे और अभी-अभी कबड्डी से दोनों थक गए थे।

बलदेव: आपका खून निकल आया, आपको दुख नहीं हो रहा वाह!

देवरानी बलदेव की ओर सरक के कहती है ।

"बेटा तेरे लिए तो ऐसा दुख कुछ भी नहीं है।"

"माँ मैं शायद जोश के आकर खुद को रोक...!"

"चुप करो! ऐसा कभी मत कहना, तुम मुझे इतना चाहते हो कि तुम अपने आप को रोक नहीं पाते!"

"हम्म माँ!"

"मां के बच्चे अपनी उंगली साफ करो गंदा खून लगा है!"

"पागल हो क्या ये गंदा खून नहीं ये तो पवित्र रक्त है।"

पहले एक कपड़े के टुकड़े से अपनी चूत पर ले जा कर खून पूछती है, जो एक उसकी चूत के मुहाने पर लगा हुआ था। फिर देवरानी उठ कर अपना साड़ी पहनती है।

तभी बलदेव अपना हाथ धो कर आता है।

दोनों को कक्ष के बाहर किसी को चलने की आहट सुनाई देती है।

देवरानी: (मन में-अब ये क्या परेशानी है अब यहाँ कौन हमारी जस्सूसी कर रहा है? देखना होगा।)

बलदेव: माँ कहा जा रही हो?

देवरानी: आती हु, देखु तो कौन है?

बलदेव: मां, आप वस्त्र तो पूरे पहन लो!

देवरानी: बस दरवाज़ा खोल कर देखती हूँ, बाहर नहीं जाऊँगी।

देवरानी वैसे ही अपनी साड़ी को बाँधे हुए, बिना ब्लाउज़ के ही दरवाज़ा खोलती है तो उसे सामने वाले कक्ष से निकल कर सुल्तान जाता हुआ दीखता है।

देवरानी: (मन में-लगता है दीदी का काम हो गया, सुल्तान जा रहे हैं। क्या पूरी रात भी नहीं रुकते सुल्तान? देखु तो!)

देवरानी अपने बगल की कक्षा से कुछ आवाज सुनती है गौर करने पर उसे कराह सुनाई देती है ।

"आआह उह!"

देवरानी: हे भगवान ये तो दीदी की आवाज है । देखु तो!

देवरानी अपने बगल के कक्ष, जो की हुरिया का था वहा पर जाती है।

बलदेव: माँ!

देवरानी देखती है कि दरवाजा बंद नहीं है, बस सटाया हुआ था, शायद सुल्तान ने जाते हुए बंद किया था और द्वार को हुरिया ने उठ के बंद नहीं किया था।

देवरानी दरवाजे के बीच में छोटे से छेद की जगह से अपनी आँख लगा कर अंदर देखती है।

देवरानी के पैरो के तले से जमीन खिसक जाती है।

"हे भगवान दीदी हस्तमैथून कर रही है।"

हुरिया अपने दोनों टांगो को फेलाए अपने खूबसूरत चूत के अंदर उंगली अंदर बाहर कर रही थी और बीच-बीच में अपनी चूत के दाने से खेल रही थी।

देवरानी: (मन में-बहुत ज्ञान देती है दीदी पाप पुण्य का, नरक स्वर्ग का और क्या पति के रहते हुए ये खुद से ऐसा करना पाप नहीं है?)

देवरानी मुस्कुराती है।

देवरानी: (मन में-इन्हे लगता है कि मैं नरक में जाऊंगी, आखिर जब सुल्तान इन्हें तड़पता छोड़ गया तो भूल गई ना धर्म, जात, सब कुछ! मल्लिका जी प्यासे को कुवा चाहिए होता है, मुझे तो बलदेव मिल गया, मल्लिका जी इस संसार में जब अपनी इच्छा पूर्ति की बात आती है तो मनुष्य जात पात और धर्म नियम और किसी का फायदा नुक्सान नहीं देखता, बस अपना मजा, अपनी इच्छा देखता है...करते रहो उंगली और जाओ स्वर्ग नर्क में।

देवरानी चुपके से वापस अपनी कक्ष में आती है।

बलदेव: माँ आप ऐसे कैसे बाहर चली गयी?

देवरानी: क्यू मेरे पति को बुरा लगा?

बलदेव: हम्म!

देवरानी: बेटा बाहर कोई नहीं है। चलो सो जाओ.।यात्रा से थक गए हो कल हमें फिर घाटराष्ट्र जाना है।

फिर एक दूसरे को बाहो में भर के बलदेव और देवरानी फिर सो जाते हैं ।

सुबह होती है बलदेव अपने रोज का व्यायाम करता है। देवरानी योग करती है, फिर पूजा कर सब को प्रसाद बांटती है बाहर बद्री और श्याम शमशेरा की तलवारबाजी देख रहे हैं।

सुबह-सुबह देवराज और सुल्तान चाय की चुस्की लेते हुए राजा रतन सिंह के कुबेरी के खजाने को कैसे पाया जाए उसपर अपना जाल बन रहे थे।

देवरानी बारी-बारी से सबको प्रसाद बांटती है।

देवरानी: भैया आज हम लोगों को वापस घाटराष्ट्र चलना होगा ।

सुल्तान: क्यू बहना इतनी जल्दी? हमारी महमानवाज़ी में कोई कमी रह गई क्या?

तभी वहा हुरिया आ जाती है।

हुरिया: बहन तुम चली जाओगी तो अच्छा नहीं लगेगा, मेरा तुमसे ऐसा वास्ता हो गया तो ऐसा लगा जैसे हम सदियो से एक दुसरे को जानते हो। काश सुल्तान की दूसरी बीवीया और बच्चे भी तुम से और बच्चो से मिल पाते।

देवरानी: कोई बात नहीं, दीदी वह तो अरब गए हैं अगली बार आऊंगी तो वह सब रहेंगे ना।

हुरिया: जी बिलकुल!

तभी शमशेरा, बद्री और श्याम वहाँ आते हैं।

शमशेरा: सलाम अम्मी सलाम अब्बू!

हुरिया: सलाम!

श्याम बद्री: प्रणाम सुलतान, प्रणाम मल्लिका!

सुलतान मल्लीका: खुश रहो!

शमशेरा: क्या हुआ क्या गुफ़्तगू चल रही है खाला देवरानी के साथ?

तभी बलदेव अपने कक्ष से निकलता है।

बलदेव: प्रणाम-प्रणाम सुलतान, प्रणाम मल्लिका!

सुलतान, मल्लीका: खुश रहो!

हुरिया: वह बेटा तेरी खाला देवरानी का जाने का वक्त आ गया है।

शमशेरा: मां इतनी जल्दी भला कौन वापिस भेजता है?

बलदेव: बात ये है हुरिया मौसी, वह पिता जी ने दो दिन के लिए ही आज्ञा दी थी।

हुरिया: हाँ तुम तो जैसे बड़े आज्ञाकारी हो गए अपने पिता के!

और देवरानी को देख कर मुस्कुराती है।

देवरानी भी बदले में मुस्कुरा देती है।

शमशेरा: देवरानी मौसी एक दिन और रुक जाओ ना!

देवरानी: बेटा शमशेरा परर...!

शमशेरा: आप आज रुक रही हो! आप आज मत जाओ, कल चली जाना!

देवराज: देवरानी एक दिन की तो बात है रुक जाओ ना जीजा जी को कह देना, मुझे रोक लिया था।

सुलतान: हान बहन रुक जाओ!

शमशेरा: यार बलदेव, तुम मेरे छोटे भाई हो, रुक जाओ आज तुम्हें रात का पारस दिखाते हैं।

श्याम: हाँ रुक जाते हैं।

बद्री: तू चुप कर श्याम!

देवरानी: बस भी करो सब...आज रुक जाते हैं कल पक्का निकल जायेंगे, कल हम वापस लौट जायेंगे।

श्याम खिलखिला के हस पड़ता है।

श्याम: देखा बद्री मेरी बात मान ली मौसी ने।

देवरानी पूजा का थाली ले कर चली जाती है।

फिर बाकी सब धीरे-धीरे चले जाते हैं।

शमशेरा: बलदेव आज शाम में चलेंगे!

श्याम: कहाँ जायेंगे?

शमशेरा: तुम गोलू मोलू भी चलना! आज तुम्हारी पारस यात्रा की आखिरी रात है इसे यादगार बनाना है।

बद्री: गोलू मोलू होंगे तुम...वैसे रात में बलदेव नहीं जाएगा।

शमशेरा: क्यू भला?

बद्री मुस्कुरा के -"क्यू के वह अपनी माँ के पल्लू से बंधा है और मौसी उसे कभी जाने नहीं देगी।"

शमशेरा: चुप करो बद्री, माना कि बलदेव मुझसे 7 साल छोटा है पर फिर वह अब 18 का हो गया है।

बद्री: तुम्हें लगता है कि वह जाएगा?

बलदेव ये सुन कर भड़क जाता है।

बलदेव: ओ बद्री! मैं कोई दूध पीता बच्चा नहीं हूँ समझे!

बद्री: तो चलो हम सब चले । आज रात भर ऐश करेंगे।

शमशेरा: हाँ बलदेव चलोगे ना, चलो इन्हें झूठा साबित कर दो?

बलदेव: हाँ मैं जाऊंगा।

ऐसे वह दिन बीत जाता है और शाम में शमशेरा बलदेव श्याम और बद्री जाने की तैयारी करते हैं।

शमशेरा एक सैनिक से बात करते हुए...!

शमशेरा: भाई ये रेशमा आज कोठे पर आ रही है ना।

सैनिक: गुस्ताख़ी मुआफ़ हुज़ूर!

शमशेरा: बताओ भी, डरो मत मुझे पता है तुम भी जाते हो।

सैनिक: हुजूर सुना तो था किसी से आज का।

शमशेरा: चल जा यहाँ से!

शमशेरा उसको भगाते हुए मन में कहता है।

शमशेरा: आज तो उसको रगड़ दूँगा । मेरी प्यारी रेशमा।

सैनिक अपनी जान लिये वहाँ से जाता है।

अंदर बलदेव तैयार हो कर बाहर आ रहा था।

देवरानी: कहा चल दिए?

बलदेव: माँ शमशेरा के साथ थोड़ा पारस घूम म कर आ जाता हु। वैसे भी आज हमारे पारस दे दौरे का ये आखिरी दिन है।

देवरानी: ठीक है बेटा, पर थोड़ा संभल कर और रात में जल्दी वापिस आना में तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी।

देवरानी मुस्कुराती हुई कहती है जिसका उत्तर बलदेव मुस्कुरा कर देता है।

बलदेव: पक्का रात से पहले आ जाऊंगा।

बलदेव बाहर निकलता है जहाँ श्याम बद्री शमशेरा के साथ बैठे इंतजार कर रहे थे।

शमशेरा: चलो मित्रो आज तुम लोगों को जन्नत की सैर करवाते हैं।

तीनो घोड़े पर बैठ चल देते हैं।

पास में खड़ा वही सैनिक मुस्कुरा के दूसरे सैनिक से कहता है।

"आज तो मेहमानों के भी मजे हो गए।"

तीनो घोड़े पर बैठ महखाने की ओर निकल जाते हैं।

महल में बैठी देवरानी को कुछ याद आता है और वह बाहर निकलती है।

देखती है वह लोग निकल गए तभी उसे दो सैनिक बात करते हुए नज़र आते हैं।

दुसरा सैनिक: भाई मेहमानो के मजे, मतलब समझ नहीं आया?

सैनिक: भाई बात ऐसी है शहजादे मुझसे रेशमा का पूछ रहे थे और आज वह उनको चौदे बिना नहीं आएंगे उनकी आदत है।

दूसरा सैनिक: भाई तो इसमें मेहमानों का क्या?

सैनिक: भाई जब शहजादे चूत मारेंगे तो ये तीनो थोड़ी मुँह उठा के देखेंगे। ये लोग भी कोठे पर चुदाई ही करेंगे। मैंने सुना है शहजादे शमशेरा के साथ कोठे पर जाने वाला बिना चुदाई किये वापस नहीं आता।

फिर दोनों सैनिक हंसने लगते हैं।

महल के मुख्य द्वार पर परदे के पीछे खड़ी देवरानी के हाथ पैर जम जाते है और वह अपने आप को कोसने लगती है के उसने क्यू बलदेव को जाने दिया।

देवरानी: हे भगवान मेरे बेटे से कोई पाप ना करवाना उसे भेजना मेरी ही गलती है।

मेरा बलदेव किसी या के साथ...नहीं नहीं...!

गुस्से और अपने प्रेमी बलदेव के ऐसे कदम से वह किसी और को ना भोग ले इस भय से भगवान से प्रार्थना करती हुयी देवरानी अंदर चली जाती है।

इधर शमशेरा तीनो को ले कर उसकी जगह पहुँचता है जहाँ पिछली बार वह बलदेव को ले कर आया था।

बलदेव: देखो शमशेरा! में कोई मदीरा नहीं पीऊंगा इस बार और हो सके तो सोने के समय तक मुझे वापस जाना है।

बद्री: क्या भाई सोने के समय तक क्यों?

एक हंसी के साथ बद्री पूछता है ।

श्याम: हाहाहा!

शमशेरा: भाई आज जो चीज़ दिखाऊंगा उसे देख तुम सब भूल जाओगे, मदिरा भी।

तीनो तहखाने के रास्ते से एक कोठे पर पहुँचते हैं । जहाँ पर हर तरफ अलग राज्यो से आए हुए राजा और राजकुमार आसन पर बैठे हुए थे।

शमशेरा अपने साथ अपने साथियों को बैठा लेता है।

शमशेरा एक उंगली से इशारा करता है और आकर लोग सबके पास मदिरा रखते हैं।

बलदेव: इसे ले जाओ मुझे नहीं चाहिए।

बलदेव अपने पास रखा मदिरा उठा के बद्री के पास रख देता है।

शमशेरा, बद्री, बलदेव और श्याम शाम की चकाचौंध देख बहुत प्रभावित होते हैं।

तभी घुंघुरू की आवाज सब के कानों में बजती है।

श्याम: वो देखो वाह क्या माल है!

बद्री: ह्म्म अध्भुत!

रेशमा धीरे से चलते हुए बीच में आती है।

शमशेरा: वो देखो बलदेव मेरी जान रेशमा को!

बलदेव देखता है रेशमा को जो अपने पैरो में घुंघरू बाँधे, चमकीली वस्त्र धारण किये हुए थी जिसमे उसके बदन का हर उभार छलक रहा था।

सब एक साथ कह रहे थे।

रेशमा...रेशमा...!

और फिर सब उसके फूल से बदन पर फुलो की बारिश कर देते हैं ।

जारी रहेगी...

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