बचपन की दोस्त से दूबारा मुलाकात

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बचपन की दोस्त से दूबारा मुलाकात और उसके बाद की कहानी
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1. पहली मुलाकात

किसी समारोह में शामिल होने के लिये दूसरे शहर गया था। समारोह शाम को था सो दोपहर में पहुँच कर मेजबान के घर पर आराम कर रहा था, तभी किसी नें मुझे नाम से पुकारा, मुझे अजीब लगा क्योंकि यहां कोई इस तरह से पुकारने वाला नहीं था, जो भी पुकारता था रिश्ते का नाम लेकर पुकारता था। घुम कर देखा तो एक महिला मेरा नाम लेकर मुझे बुला रही थी। उन को पहचाननें की चेष्टा की लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। वह करीब आ कर बोली कि मुझे पहचानते हो? मैंने ना में गरदन हिलायी तो वह बोली कि मैं तुम्हारें साथ बचपन में खेली हूँ, उन की यह बात सुन कर मुझे याद आया कि यह तो सरोज है जो बचपन में मेरे साथ ही खेलती थी। हम दोनों के बीच बहुत दोस्ती थी, स्कूल से आने के बाद खाना खा कर इस के तथा कई अन्य दोस्तों के साथ शाम तक खुब धमा चौकड़ी करते थे। मैं पढ़ाई के लिये दूसरे शहर चला गया तो बचपन के दोस्तों से सम्पर्क खत्म हो गया। आज इतनें दिनों के बाद उसे देख कर मैं पहचान नहीं पाया। पहचानता भी कैसे?, मैं शायद उसे बीस सालों के बाद देख रहा था। मेरे मन में तो उस की बचपन वाली तस्वीर ही थी।

मैंने उसे हाथ जोड़ कर नमस्ते करी और कहा कि तुम्हें बचपन के बाद देखा ही नहीं है इसी वजह से पहचान नहीं पाया, तुम मुझे कैसे पहचान पायी मैं भी तो बहुत बदल गया हूँ। पहले बहुत दूबला-पतला था अब मोटा हो गया हूँ। मेरी बात सुन कर वह हँसी और बोली कि जिन लोगों के साथ बचपन बिता होता है वह चाहे कितनें भी बड़ें हो जाये, पहचान में आ ही जाते है। तुम्हारें आने के बारे में पता चला था सो अंदाजा लगाया और देखों अंदाजा सही निकला। अकेले आये हो? मैंने कहा, हाँ अकेला ही आया हूँ। तुम? उस ने जबाव दिया कि मैं भी अकेली ही आयी हूँ। ये टूर पर गये हुये है इस कारण से नहीं आ पाये। हम दोनों बातें करने के लिये कुर्सियों पर बैठ गये। बहुत सी बातें करनी थी। समझ नहीं आ रहा था कि कहाँ से शुरुआत करें? कुछ देर चुप रह कर मैंने ही पुछा कि मुझे तो तुम्हारें बारें में कुछ पता नहीं है। बचपन के बाद तुम्हें कभी देखा ही नहीं ना तुम्हारें बारें में कुछ पता चला।

यह सुन कर वह बोली कि मैं भी अपनी पढ़ाई में लगी रही। बी.एड़ करने के बाद सरकारी नौकरी लग गयी, इस के बाद शादी हो गयी। अपने जीवन में व्यस्त हो गयी। तुम्हारें बारें में सुना था कि तुम पढ़ाई के लिये कही बाहर चले गये, उस के बाद तुम्हारें बारें में कुछ पता ही नहीं चला।आज यहाँ जब आयी तो बातों-बातों में तुम्हारा जिक्र हुआ तो मैंने ज्यादा पुछा तो पता चला कि तुम विदेश चले गये थे। फिर वापस आ गये हो और तुम्हारी शादी हो गयी है। यह भी पता चला कि आज आने वाले हो, तो लगा कि अपने उस दोस्त से दूबारा मिलना हो पायेगा जो कभी मेरे लिये सब से लड़ाई किया करता था। मेरी देखभाल किया करता था। यह पता नहीं था कि तुम इतने बदल गये होगें। मैं उस की बात सुन कर हँस दिया और बोला कि तब हम बच्चें थे और अब बच्चों के माता पिता है।

बहुत समय गुजर गया है। हम नें तो एक दूसरे को बड़ा होते देखा ही नहीं है तो एक-दूसरें को कैसे पहचान पायेगें, लेकिन देखों तुम नें और मैंने जल्दी ही एक-दूसरें को पहचान लिया। यह बड़ी बात है। मैंने तो तुम्हें सिर्फ इतना कहने से ही पहचान लिया कि तुम बचपन में मेरे साथ खेली हो, तुम्हारें सिवा कोई और दूसरी हो ही नहीं सकती थी, क्योकि तुम्हारें बाद मैं किसी के साथ खेला ही नहीं। मेरा बचपन तभी खत्म सा हो गया था। जिम्मेदारियों की वजह से मैं तो समय से पहले ही बड़ा हो गया था। मेरी बात सुन कर वह मेरी तरफ देखती रही और बोली कि तुम तो दार्शनिक हो गये हो। मैंने कहा कि नहीं, जो बीती है वहीं बता रहा हूँ। वह कुछ नहीं बोली।

कुछ देर बाद मैंने पुछा कि वह अब कहाँ पर है तो वह बोली कि इसी शहर में हूँ। सरकारी नौकरी है इस लिये तबादला होता रहता है लेकिन अब तो यही पर हूँ। उसके परिवार के बारें में पुछा तो वह बोली कि यह ज्यादातर टूर पर रहते है, अपना व्यवसाय है, बच्चें अभी तक हुये नहीं है। इस लिये परिवार के नाम पर हम दोनों ही है। मैं इस बात पर सॉरी कहना चाहता था लेकिन चुप रहा। वह बोली कि तुम्हारा क्या हाल है? मैंने कहा कि इंजीनियरिग करके कुछ साल नौकरी करी फिर अपना व्यवसाय शुरु किया है किसी के साथ, चल रहा है, इसी वजह से विदेशों में आना जाना लगा रहता है।

अभी तो एक बच्चा है। आगे का कुछ कह नहीं सकता। वह यह सुन कर हँसी और बोली कि बड़ा तो हो गया है लेकिन आदतें वहीं बचपन वाली है। कब तक रुकोगें? मैने कहा कि सुबह निकल जाऊँगा या बहुत हुआ तो परसों चला जाऊँगा, यहाँ कई सालों के बाद आया हूँ तो सोचता हूँ रिस्तेदारों से मुलाकात करता चलुँ। उस ने यह सुन कर कहा कि कल मेरे यहाँ सुबह आ जाओं, नाश्ते पर बातें करेगें। मैंने कुछ कहने को मुँह खोला तो वह बोली कि कोई बहाना नहीं चलेगा। तुम्हें कल आना ही है। मैने कहा कि जरुर आऊँगा लेकिन पता तो बता दो कहाँ पर रहती हो तो वह बोली कि अभी जा थोड़ी ना रही हूँ बता दूगीं। मैं उस की बात सुन कर चुप हो गया। तब तक काफी मेहमान आ गये थे सो हम दोनों में उन से मिलने में व्यस्त हो गये।

शाम को जब बारात में शामिल होने के लिये सब चले तो उन में, मैं भी शामिल था। गाड़ी तो लाया था लेकिन आज मैं सब के साथ बस में बैठ कर ही जा रहा था। शादी समारोह के स्थल पर पहुँच कर बारात के साथ चलतें हुये इधर उधर देख रहा था तभी सरोज आती हुई दिखायी दी। मुझे देख कर बोली कि कहाँ थे? मैं तुम्हें ही खोज रही थी। मैंने उसे बताया कि बारात के साथ बस में था। वह यह सुन कर चौंकी और बोली कि गाड़ी क्यों नहीं लाये? मैने उसे बताया कि गाड़ी में अकेला हो जाता इस लिये सब के साथ ही बस में चला आया।

वह बोली कि तुम्हारी कोई आदत नहीं बदली है, अपनी चिन्ता छोड़ कर सब की चिन्ता करना यह तुम में बचपन से है। मैंने कहा मेरी छोड़ों और शादी का मजा लो। वह बोली कि क्या मजा ले अकेले क्या करें, कोई तो साथ होना चाहिये। मैंने कहा कि आज तो मैं साथ में हूँ, मेरी बात सुन कर वह बोली कि हाँ कह तो सही रहे हो। आज तो साथ हो ही। उस की बात में छिपें दर्द को मैंने महसुस कर लिया लेकिन कुछ पुछा नहीं। उस के इतनी निकटता नहीं थी कि कोई निजी सवाल कर सकुँ।

शायद उस ने मेरी दुविधा समझ ली और बोली कि यह अकेलापन तो जिन्दगी भर का हो गया है। कोई उपाय नहीं है। बैड़-बाजों के शोर में उसकी आवाज खो गयी। हम दोनों कुछ देर बाद विवाह स्थल पर पहुँच गये। मैं तो सबसे पीछे की पक्ति में एक सीट पर बैठ गया और मंच पर हो रहे कार्यक्रम को देखने लगा। तभी सरोज मुझें ढुढ़ती हुई आयी और बोली कि मैं तुम्हें मंच पर ढुढ़ रही थी और तुम यहाँ पर हो। मैने कहा कि वहाँ क्या काम है तो वह बोली कि फोटो खीचाँ कर आते है, तुम ही तो मेरे साथ हो। अकेले मन नहीं कर रहा है। मैं उठ कर उस के साथ मंच पर चला गया। वहाँ जा कर वर-वधु को शुभकामना दे कर हम दोनों नें साथ खड़े हो कर फोटो खिचाई और मंच से नीचे आ गये। खाना अभी शुरु नहीं हुआ था सो समय काटने के लिये पीछे की सीटों पर जा कर बैठ गये।

मैंने उस से पुछा कि क्या उस के पति अधिकतर टूर पर रहते है तो वह बोली कि महीने में 15-20 दिन तो बाहर ही रहते है। इसी लिये मेरे से अकेलापन कटता नहीं है। दिन तो स्कूल में कट जाता है लेकिन उस के बाद परेशानी होती है। उस नें मेरे से पुछा कि तुम्हारा क्या हाल है तुम भी लगता है बहुत व्यस्त रहते होगें। मैंने कहा कि हाँ यह तो है 15-16 घंटे तो काम में ही बीत ही जाते है। कहीं आने जाने का समय भी नहीं मिल पाता है। जीवन बड़ा व्यस्त हो गया है, कोई चारा भी नहीं है। अपने काम में कोई छुट्टी नहीं होती है। कई बार बाहर भी जाना पड़ता है। तुम्हारी पत्नी क्या करती है। मैंने बताया कि वह नौकरी नहीं करती घर ही संभालती है, उसी के कारण मैं इतना व्यस्त रह पाता हूँ। घर पुरा का पुरा वह ही चलाती है। मुझें कुछ पता नहीं होता है। उस का बहुत सहयोग है। शनिवार और रविवार ही दो दिन है जब हम साथ होते है। इन दो दिनों में ही पुरे सप्ताह की कसर निकलती है चाहे प्यार हो या लड़ाई।

मेरी इस बात पर वह मुस्कराई और बोली कि दो दिन तो साथ होते हो। यहाँ तो पता ही नहीं चलता कि जब टूर पर नहीं होते तो सारे दिन कहाँ रहते है। कुछ बताते भी नहीं है। मैंने उसे देख कर कहा कि सरोज पैसा कमाना बहुत मुश्किल काम है, अपने काम में तो बिना अपने मरे कोई काम ही नहीं होता है। मैं तुम्हारें पति की परेशानी समझ सकता हूँ। वह मेरी तरफ देखती रही। उस की आँखें पनीली हो रही थी। मुझे लगा कि वह रो ना दे। इस लिये मैंने बात का विषय बदल कर कहा कि चलों चाट खाते है यहाँ की चाट खाये तो जमाना बीत गया है। वह बोली कि तुम्हें अभी तक ध्यान है मैंने कहा कि बचपन का स्वाद अभी भी मेरी जबान पर है। यह सुन कर वह बोली कि कल तुम्हें चाट खिलाती हूँ। हम दोनों उठ कर खाने के स्थान पर चले गये। यहाँ पर आ कर कुछ जानकार मिल गये और मैं उन से बातचीत में व्यस्त हो गया सरोज भी किसी से बात करने लगी।

खाना खाने के साथ-साथ लोगों से बातचीत चलती रही फिर हम दोनों ही एक तरफ जा कर बैठ गये वह बोली कि अब क्या करना है? मैंने कहा कि रात में रुक कर फैरें देखते है सुबह विदा के समय निकल लेगे। वह बोली कि यही सही रहेगा। इस समय तो कहीं जाना सही नहीं है। हम दोनों जहाँ मंडप लगा था वहाँ जा कर बैठ गये। कुछ देर बाद लड़की आ गयी और फिर फैरों का कार्यक्रम होने लगा। फैरों के बाद और रस्में हुई और सुबह पांच बजे के करीब विदाई हो गयी। हम दोनों भी बस में बैठ कर मेजबान के घर वापस आ गये। सोने का समय नहीं था। सरोज ने कहा कि यहाँ बहुत लोग है तुम अपना सामान ले लो मेरे यहाँ चल कर नहा कर तैयार हो जाना, फिर नाश्ता करके जहाँ जाना हो चले जाना। मुझे भी यही सही लगा। मैं नें अपना बैग उठाया और सरोज के साथ अपनी कार की तरफ चल दिया। कार खोल कर सामान रखा और सरोज से बैठने को कहा। वह कार में बैठ गयी। मैंने बैठ कर उस से पुछा कि रास्ता बताती चले। वह बोली कि तुम यहाँ के रास्तें तक भुल गये हो?

मैंने कहा कि शहर बहुत बदल गया है, वह रास्ता बताती रही, और हम उस के घर पहुँच गये। घर बहुत बड़ा था, कार अंदर खड़ी करके घर में घुसे तो पता चला कि उसे पैसे की कोई कमी नहीं थी। शान शौकत की हर चीज उस के पास मौजूद थी। सरोज नें कहा कि पहले चाय पीते है, बड़ी नींद आ रही है। मैंने सर हिलाया। वह चाय बनाने चली गयी, मैं कमरे में खड़ा हो कर उस की तथा उस के पति की फोटो देखने लगा। तभी वह चाय ले कर आयी और बोली कि क्या देख रहे हो? मैने कहा कि युहीं फोटो देख रहा था, वह बोली कि हाँ फोटो ही देखने लायक है। मुझे उस की आवाज में छिपा व्यग्य समझ में नहीं आया।

चाय पी कर मैने कहा कि अब में नहा लेता हूँ तो वह बोली कि मैं तुम्हें बाथरुम दिखाती हूँ। उस के साथ चल कर में बाथरुम में गया और फिर अपने सामान से कपड़ें निकाल कर नहाने चला गया। बाथरुम बहुत बड़ा और आधुनिक था जैसा बड़े फाइवस्टार होटलों में होता है वैसा ही हर साधन उस बाथरुम में था। नहा कर अच्छा लग रहा था। जब कपड़ें पहन कर बाहर आया तो सरोज बोली की नाश्ता बनाऊँ या पहले मैं भी नहा लूँ। मैने कहा पहले तुम नहा लो फिर नाश्ता बनाना अभी तो बहुत सुबह है इतनी जल्दी किसी के यहाँ जाना सही नहीं रहेगा। वह हँस पड़ी और बोली कि हाँ यह बात तो है। मैं कमरें में अखबार पढ़ने बैठ गया और सरोज नहाने चली गयी।

कुछ देर बाद वह नहा कर आ गयी। मुझ से बोली कि नाश्तें में क्या खायोगें? मैने कहा कि जो तुम्हें पसन्द हो वही बना लो। मेरी कुछ खास पसन्द नहीं है, जो मिल जाता है खा लेता हूँ। वह बोली कि तुम्हारी पत्नी खुश रहती होगी। मैंने कहा कि उस के खुश रहने की बात तो मैं नहीं जानता लेकिन मैं खुश रहता हूँ।

नाश्ता कर के मैं कार ले कर निकल गया, लेकिन इस से पहले मैंने उस का नंबर ले लिया था। आज का सारा दिन रिस्तेदारों सें मिलने में चला गया। शाम को मेजबान के घर लौटा तो वह बोले कि हम तो तुम्हें ढुढ़ रहे थे कहाँ पर थे? मैंने उन्हें बताया कि सब से मिलने चला गया था, यह सुन कर वह बोले की यह सही किया, तुम से मिले तो लोगों को जमाना हो गया है। तभी देखा कि सरोज भी वहीं पर थी। मुझे देख कर वह मेरे पास आयी और बोली कि कोई रिस्तेदार रह तो नहीं गया? मैंने कहा कि गिनती तो नहीं करी है, हो सकता है किसी को भुल गया हूँगा तो उस से बाद में मिल लुंगा।

वह यह सुन कर हँस पड़ी और बोली कि सारा शहर रिस्तेदारों से भरा पड़ा है, कोई ना कोई तो बच ही गया होगा। मैंने कहा कि उस से मिलने के बहाने यहाँ दूबारा आने का मौका तो मिलेगा। वह बोली कि इतने व्यस्त हो फिर भी लोगों से मिलने को उतावले रहते हो? मैंने कहा कि लोगों से मिलना भी जरुरी है। काम की व्यस्तता तो जीवन भर चलेगी, इस कारण से सामाजिकता थोड़ी ना छोड़ी जाती है। वह मेरी बात सुन कर मुस्करायी। मैंने उस से कहा कि वह जब मेरे शहर आये तो मेरे घर अवश्य आये। मुझे उस का इंतजार रहेगा। वह मुस्कराई। मुझे उस की मुस्कुराहट बड़ी रहस्यमयी सी लगी। बात यही खत्म हो गयी। रात बिताने के बाद दूसरे दिन में वापस अपने शहर आ गया।

2. परिचय का बढ़ना

काम में लगें रहने के कारण सरोज के संबंध में भुल गया। पत्नी को यह तो बताया कि शादी में मैं अपनी बचपन की दोस्त से मिला था लेकिन उस के बाद सरोज मेरे दिमाग से उतर गयी। एक रविवार को किसी का फोन आया तो पत्नी ने उठाया और मेरा नाम सुन कर फोन मुझे दे दिया। फोन पर दूसरी तरफ की आवाज सुन कर पता चला कि सरोज है। मैंने पुछा कि कैसी है तो वह बोली कि जैसी पहले थी वैसी ही हूँ। मैने पुछा कि आज कैसे याद किया तो वह बोली कि देखना चाहती थी कि नंबर सही है या नही? मैंने कहा कि यह क्या बात हुई, तो वह हँस कर बोली कि तुम इतने व्यस्त आदमी हो तुम्हें परेशान नहीं करना चाहती थी। मैंने कहा कि अपनों के लिये व्यस्त नहीं हूँ।

वह बोली कि एक टूर पर वह कुछ दिनों के लिये मेरे शहर में आ रही है। अगर कोई परेशानी ना हो तो वह मेरे घर आना चाहती है। मैंने यह सुन कर कहा कि परेशानी कैसी यह तो बढ़िया खबर है वह कभी भी आ सकती है अगर कहे तो मैं उसे लेने के लिये किसी को भेज देता हूँ तो वह बोली कि नहीं मैं खुद आ जाओगी, तुम मुझे पता बता दो। मैंने उसे बता बता दिया। वह बोली कि शाम को ही आ पाऊँगी। मैने कहा कि यह सही रहेगा, मैं भी तब तक घर आ जाऊँगा, उस ने पुछा कि अपने ऑफिस का नंबर दे दो। हो सका तो आने से पहले तुम्हें फोन कर दुगी। मैने कहा कि ऑफिस में फोन करने का फायदा नहीं है वह घर पर फोन कर दे। मुझे पता चल जायेगा। इस के बाद फोन कट गया।

कुछ दिनों के बाद एक दिन ऑफिस के फोन पर घर से पत्नी का फोन आया कि तुम्हारी दोस्त आज शाम को घर आ रही है इस लिये जल्दी आ जाना। मैंने कहा कि शाम को एक मिटिंग है उसे करके ही आ पाऊँगा, तब तक तुम ही मेजबानी करना। वह बोली की दोस्त तुम्हारी और मेजबान मैं यह तो कुछ जम नहीं रहा है। मैंने कहा कि मैडम काम भी जरुरी है। यह कह कर मैंने फोन काट दिया। शाम की मिटिंग कैन्सल हो गयी। इस कारण से मैं ऑफिस से जल्दी निकल गया। घर पहुँचा तो देखा कि सरोज आयी हुई थी। पत्नी उस की आवभगत कर रही थी। मुझे देख कर पत्नी बोली कि अपनी दोस्त से मिलने के लिये तो साहब आज जल्दी आ गये। मैंने कहा कि मिटिंग कैन्सल हो गयी थी इस लिये जल्दी निकल पाया। सरोज से पुछा कि आने में कोई परेशानी तो नहीं हुई तो वह बोली कि नहीं तुम ने पता सही तरह से बताया था। मेरी पत्नी हँस कर बोली कि भूगोल के विद्धार्थी होने का कुछ तो फायदा होना चाहिये।

हम सब लोग मिल कर चाय नाश्ता करने लगे। सरोज रात का खाना खाने के बाद जब चलने लगी तो पत्नी बोली कि आप रात को यही रुक जाये तो वह बोली कि होटल पहुँचना जरुरी है, नहीं तो सब लोग चिन्ता करेगें। पत्नी ने कहा कि आप चिन्ता ना करें यह आप को होटल तक छोड़ देगे। मैंने कहा कि रात हो गयी है मैं तुम्हें छोड़ कर आता हूँ। यह कह कर मैं उस के साथ बाहर आ गया। कार निकाल कर उसे लेकर जब होटल के लिये चला तो रास्तें में वह बोली कि तुम भाग्यशाली हो कि तुम्हें इतनी बढ़िया पत्नी मिली है यह जानने के बावजूद की मैं तुम्हारी दोस्त हूँ उस ने मेरा बढ़िया स्वागत किया। मैंने कहा कि तुम बचपन की दोस्त हो, अभी की दोस्त होती तो कुछ अलग होता। वह मुझे देख कर बोली कि अभी कोई दोस्त नहीं है। मैंने ना में सर हिलाया तो वह बोली कि बचपन वाली को ही अभी की बना लो।

मैंने उस की तरफ गरदन घुमायी तो उस की आँखों में याचना थी। मैंने कहा कि तुम तो दोस्त हो ही। वह बोली कि मजाक कर रहे हो। मैंने कहा नहीं अगर दोस्त नहीं मानता तो उस दिन तुम्हारें घर नहीं जाता, और आज अपने घर नहीं बुलाता। और कैसे बताऊँ की तुम मेरी क्या हो। उस ने मुँह दूसरी तरफ मोड़ लिया। होटल तक हम दोनों चुप रहे। उसे होटल में छोड़ कर मैं वापस चलने लगा तो मैंने पुछा कि कब तक हो तो वह बोली कि दो दिन बाद चली जाऊँगी। मैंने कहा कि जाने से पहले आना तो वह बोली कि मैं तो नहीं आ पाऊँगी तुम हो सके तो जरुर आना, पत्नी को साथ ले कर। मैंने कहा कि वायदा नहीं करता, लेकिन पुरी कोशिश करुँगा। यह कह कर मैं वापस घर के लिये चल दिया।

घर आ कर पत्नी को बताया तो वह बोली कि सरोज बड़ी अकेली सी लग रही थी। तुम्हें कुछ पता है? मैंने कहा कि ज्यादा तो नहीं पता, लेकिन कोई बच्चा नहीं है पति व्यापार के सिलसिले में अक्सर बाहर ही रहता है इसी लिये अकेलेपन की शिकार है। वह बोली कि उस के जाने से पहले उस से मिलने जरुर चलेगें। सरोज के जाने से पहली रात को हम दोनों उस से मिलने उस के होटल पहुँचे और उसे साथ लेकर बाहर खाना खाने गये। हम तीनों नें बढ़िया समय साथ बिताया और एक दूसरे के बारें में जाना। फिर उसे होटल छोड़ कर हम दोनों वापस घर आ गये। हमारे लिये किसी को खाने पर ले जाना सामान्य बात थी, महीने में एक दो बार किसी ना किसी को खाने पर ले जाना ही पड़ता था। हम दोनों तो यह बात भुल भी गये लेकिन इस बात कर सरोज पर गहरा असर पड़ा। उस की पत्नी से मित्रता हो गयी और वह दोनों एक-दूसरें से अक्सर फोन पर बातें करने लगी। मैं इस बात से अंजान था।

3 अंतरगता

समय बीतता रहा, एक दिन सुबह पत्नी ने कहा कि आज सरोज आ रही है उसे लेने जाना है, अगर तुम्हारें पास समय है तो तुम उसे ले आयों नहीं तो किसी को भेज दो। मैंने अचरज से पुछा कि तुम्हें कैसे पता तो वह बोली कि मेरी उस से बात होती रहती हैं वह हमारें यहाँ ही आ रही है। मैंने कहा कि मैं तो नहीं जा पाऊँगा तुम ड्राइवर के साथ चली जाना। उस ने पुछा कि तुम कैसे जाओगें? मैंने कहा कि मैं ऑफिस जाने के बाद गाड़ी वापस भेज दूंगा, तुम जा कर उसे ले आना उसे मेरी बात समझ आ गयी। मैं ऑफिस के लिये निकल गया। ऑफिस जा कर गाड़ी लेकर ड्राइवर को वापस भेज दिया।

पत्नी जा कर सरोज को स्टेशन में घर ले आयी। शाम को जब में घर आया तो सरोज मुझे देख कर बोली कि तुम तो किसी को लेने भी नहीं आ सकते। मैने कहा कि मैं बहुत बिजी रहता हूँ इस को इस बात की आदत है यह मेरे बिना ही सब काम करती रहती है। क्या करुँ समय तो 24 घंटें ही है। काम को देखना जरुरी है, उस में लापरवाही नहीं कर सकते। मेरी बात सुन कर पत्नी बोली कि मुझे तो अब आदत पड़ गयी है, सरोज के साथ आज पहली बार हुआ है सो उसे अजीब लग रहा है।

मैंने कहा कि बड़ें शहर में यह बहुत बड़ी परेशानी है आने-जाने में काफी समय व्यर्थ हो जाता है। तब जा कर सरोज को कुछ चैन पड़ा। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अचानक सरोज क्यों आयी है। लेकिन कारण पुछने की हिम्मत नहीं पड़ी। रात को खाना खाते समय पत्नी नें कहा कि अपने डाक्टर दोस्त से कल का समय ले दो, सरोज को उसे दिखाने जाना है। तब मुझें कुछ कुछ समझ सा आने लगा लेकिन मैंने अन्जान बन कर पुछा कि क्या बात है? तो पत्नी ने जबाव दिया है कि इसे कुछ चैकअप करवाना है तो मैंने कहा कि इनके दोस्त का क्लीनिक है, वही चैक करवा लेते है। अब मुझे सब समझ आ गया। सरोज अपना चैकअप करवाने आयी थी कि उस में कोई खराबी तो नहीं है क्योकि वह मां नहीं बन पा रही थी।

मैंने कहा कि सुबह फोन कर दूँगा। इस के बाद इस विषय पर कोई बात नहीं हुई। रात को सोते समय पत्नी ने मुझे बताया कि सरोज बच्चा ना होने से बहुत परेशान है पति कुछ करते नहीं है, इस लिये मैंने कहा कि यहाँ आ जा मैं चैकअप करवा देती हूँ, अगर कोई खराबी होगी तो पता चल जायेगी। किसी को पता भी नहीं चलेगा नहीं तो उस छोटे से शहर में कोई बात छुप नहीं सकती है। मैंने कहा कि तुम नें सही किया, यहाँ तो किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। मैंने पत्नी से पुछा कि तुम अकेली चली जाओगी या मैं भी चलुँ तो वह बोली कि तुम चलोगें तो सही रहेगा, वह तुम्हारें दोस्त है। उन से सही बात कर पायोगें मैं ज्यादा कुछ पुछ नहीं पाऊँगी। मैंने कहा कि सुबह मैं भी तुम्हारें साथ चलता हूँ। यह कह कर मैं सो गया।

सुबह नाश्ता करते समय मैंने अपने दोस्त को फोन किया तो वह बोला कि कभी भी आजा, इसी बहाने तेरे से मिलना हो जायेगा। हम तीनों डाक्टर के क्लीनिक पहुँचें तो हमें इंतजार नहीं करना पड़ा, जाते ही हमारा नंबर आ गया। मैंने उस के सामने सारी बात बता दी, वह बोला कि चिन्ता की कोई बात नहीं है कुछ टेस्ट कर लेते है पता चल जायेगा कि इन के साथ कोई समस्या तो नहीं है। नर्स सरोज को लेकर अंदर चली गयी, पत्नी भी उन के साथ ही अंदर चली गयी। मैं अपने दोस्त के साथ अकेला रह गया, वह बोला कि कोई खास ही होगी तभी तुम साथ आये हो। मैंने उसे बताया कि पत्नी की सहेली है और मेरी भी परिचित है। बहुत परेशान है, पति कोई बात सुनता नहीं है किसी को दिखाता नहीं है। वह बोला कि देखते है आज कल यह समस्या बहुतों के साथ आ रही है। भाग-दौड़ की जिन्दगी के कारण अपने लिये समय ही नहीं निकाल पा रहे है। तु बता हफ्तें में कितनी बार प्यार करता है? उस की इस बात पर मैं हँस दिया वह बोला कि तेरी हँसी ही जवाब है, साली और सब चीजें अपने से अधिक जरुरी हो गयी है। चैन खो गया है। मैंने उस से पुछा कि रिपोर्ट कब तक आयेगी तो वह बोला कि कल तक आ जायेगी।

इतनी देर में ही सरोज और पत्नी अंदर से वापस आ गयी। हम तीनों ड्राक्टर को नमस्ते कर के क्लीनिक से बाहर आ गये। बाहर आ कर मैंने पत्नी से पुछा कि इसे कही घुमा लाओ, मुझे ऑफिस छोड़ कर कही चली जाओं मैं तुम लोगों से बाद में मिलता हूँ तो उसे यह आयडिया अच्छा लगा वह बोली कि हम दोनों शॉपिंग करने जा रहे है तुम वही पर आ जाना फिर खाना खा कर घर चलेगे। मुझे ऑफिस छोड़ कर दोनों शॉपिंग करने चली गयी। मैं ऑफिस में काम निबटा कर शाम को दोनों से जा मिला। हम तीनों नें खाना खाया और फिर घर के लिये चल दिये। घर आ कर सरोज नें पुछा कि डाक्टर ने क्या कहा है?

मैंने उसे बताया कि कुछ खास नहीं कहा है कल शाम तक रिपोर्ट आ जायेगी, उसके बाद उस से बात करुँगा। तुम अभी दो-तीन दिन यही रुकों, पुरा चैक करा कर ही जाना अगर किसी और को दिखाना होगा तो उसे भी दिखा लेगे। वह कुछ नहीं बोली। सरोज ने पुछा कि वहाँ तो इतनी भीड़ थी फिर भी हमारा नंबर जल्दी कैसे आ गया। पत्नी ने उसे बताया कि डाक्टर इन का दोस्त है यह तो वहाँ चाय पानी पी रहे थे। इंतजार करने का तो मतलब ही नहीं है इस डाक्टर के पास तो दो-तीन दिन से पहले समय नहीं मिलता है। शहर का सबसे बढ़िया डाक्टर है, अगर किसी और को भी दिखाना होगा तो वह स्वयं ही बता देगे।

सुबह ऑफिस जाते समय पत्नी बोली कि इसे आज अपने साथ ले जाओ अपना ऑफिस दिखाओं इसे भी तो पता चले कि इस के बचपन का दोस्त आज कहाँ पर पहुँच गया है। मैंने कहा कि यह वहाँ बौर हो जायेगी तो सरोज बोली कि इस में तो मेरी मास्टरी है तुम चिन्ता मत करो। यह सुन कर मैं चुप हो गया और उसे साथ लेकर ऑफिस के लिये निकल गया। एक घंटें की ड्राइव के बाद हम मेरे ऑफिस पहुँचे। ऑफिस पहुँच कर सरोज बोली कि रोज इतना सफर करते हो? मैंने उसे बताया कि आज तो भीड़ कम थी नहीं तो किसी किसी दिन तो दो घंटें भी लग जाते है। उस के मुँह पर हैरत के भाव थे। ऑफिस देख कर वह खुश थी।

मैं उसे बिठा कर मीटिंग में चला गया। पीछे से वह चाय, काफी वगैरहा पीती रही। जब मैं लौटा तो वह बोली कि ऐसा जीवन है तुम्हारा, उस दिन तो तुमने कुछ पता ही नहीं चलने दिया, बस में बैठ कर गये। रात वहीं काटी, फिर मेरे यहां नहाने चले आये। मुझे पता ही नहीं चला कि तुम इतने सीधे सरल हो। अपने बारें में कुछ पता ही नहीं चलने दिया। मैंने उसे कहा कि मैं वहां एक मेहमान था, सब अपने थे उन के बीच क्या भाव खाना। मैं पहले भी ऐसा था अभी भी ऐसा ही हूँ। मैने उस से पुछा कि कुछ खाना है तो वह बोली नहीं अभी तो नहीं खाना, दोपहर को देखेगें। फिर मैं उसे ले कर अपना ऑफिस दिखाने चल दिया।