बचपन की दोस्त से दूबारा मुलाकात

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उसे सारा ऑफिस दिखाया, वह उसे देख कर हैरान सी थी। उस ने पुछा कि तुम लोग करते क्या हो? मैंने उसे बताया कि हम बैक ऑफिस चलाते है। यहाँ से बाहर की कंपनियों का काम करते है। उसे ज्यादा कुछ समझ नहीं आया लेकिन उस ने कुछ पुछा नहीं। दोपहर हो रही थी मैं उसे लेकर खाने के लिये चल दिया, रास्तें में पुछा कि क्या खाना है तो उस ने कहा कि साउथ इंडियन खाना है। हम एक प्रसिद्द साउथ इंडियन दूकान पर पहुँच गये, उस का खाना बहुत बढ़िया था।

वहाँ खाना खा कर जब हम दोनों ऐसे ही बाजार में घुम रहें थे तो मैंने पुछा कि सरोज बुरा मत मानना लेकिन तुम्हारें पति का व्यवहार कुछ समझ नहीं आ रहा है। काम हम भी करते है, परिवार के लिये ही इतनी मेहनत करते है, अगर परिवार ही खुश नहीं है तो ऐसे पैसे का क्या फायदा? मेरी बात सुन कर वह कुछ देर चुप रही, मुझे लगा कि शायद उसे बुरा ना लग गया हो। कुछ देर बाद बोली कि मेरी जिन्दगी बेकार है उन्हें मेरे में कोई दिलचस्पी है। यहाँ तो मैं तुम्हारी पत्नी के जोर देने पर आयी हूँ नहीं तो मुझे पता है कि जब प्यार ही नहीं करेंगें तो कुछ कहाँ से होगा? तुम्हारी पत्नी को सब नहीं बता सकती थी। तुम्हें बता रही हूँ वह मेरे साथ संबंध ही नहीं बनाते या संबंध बनाने लायक नहीं है।

मैं कुछ कह नहीं सकती। समाज के डर से निभा रही हूँ समझ नहीं आता क्या करुँ, कभी लगता है कि मर जाऊँ। जीने का कोई उदेश्य नहीं दिखायी देता। उस की बात सुन कर मुझे डर सा लगा और मैंने उसे आश्वस्त करने के लिये उस का हाथ पकड़ कर दबाया। उसने भी अपने हाथ से मेरा हाथ कस कर दबा लिया। हम काफी देर तक ऐसे ही घुमते रहे। वह बोली कि कल देखते है, रिपोर्ट में क्या आता है। लेकिन यह बात तुम अपनी पत्नी को नहीं बताना, मैंने तो तुम्हें अपना समझ कर बतायी है, तुम मेरे बचपन के दोस्त हो, उसी दोस्ती का वास्ता। मैंने उस के हाथ को दूसरे हाथ से कस कर दबा कर कहा कि मुझ पर विश्वास करें। वह चुप रही।

मैंने उस से कहा कि ऑफिस में कुछ काम करके थोड़ी देर में घर चलते है। तुम तब तक अखबार पढ़ों या कहो तो टीवी पर कुछ देख लेना। वह हँस कर बोली कि तुम्हें देख कर मेरा टाइम कट जायेगा। मैं यही देखती रहुँगी कि मेरे साथ बचपन में घर-घर खेलने वाला अब कितना बदल गया है। मैंने उसे देख कर कहा कि वह भी तो कितनी बदल गयी है। वह बोली बताओं कहाँ से बदल गयी हूँ। मैंने कहा कि जब तुम बदल रही थी तब तुम्हें देख ही नहीं पाया नहीं तो बता देता। मेरी बात सुन कर वह बोली कि बातें बनाना अभी तक नहीं छोड़ा है।

फिर उस नें पुछा कि तुम्हें कभी मेरी याद नहीं आयी। मैंने उसे बताया कि वहाँ से वापस आने के बाद मेरा बचपन खत्म हो गया, मैं एकदम बड़ा हो गया। मां के साथ परिवार की देखभाल करने वाला बन गया। कब जवान हुआ पता ही नहीं चला। पढ़नें के बाद नौकरी करने लगा। उस के बाद यह काम शुरु कर दिया। अपने लिये सोचने का समय ही नहीं मिला। तुम्हें देख कर आज लगा कि मेरा भी कोई था, मैं भी किसी को अच्छा लगता था। सब भुल गया था। आज सब याद आ गया है, लेकिन अब उसे याद करने का कोई फायदा नहीं है, गुजरा हुआ वक्त वापस नहीं आ सकता।

तुम्हारें बारें में सुन कर बहुत बुरा लग रहा है लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता। मेरी बात सुन कर वह बोली कि तुम बिल्कुल नहीं बदले, अंदर से अभी भी वैसे ही हो, जैसे तब थे। ऐसे ही बातें करतें हुऐ हम ऑफिस वापस आ गये। मैं काम में लग गया और वह टीवी देखती रही। शाम को जब हम घर के लिये निकले तो वह बोली कि तुम्हारा यह रोज का रुटिन है, मैंने कहा हाँ यही रोज का रुटिन है। कभी-कभी तो खाना खाने को भी नहीं मिलता है, सात बजे खाना खा पाता हूँ। कठिन जीवन है लेकिन कोई और चारा भी तो नहीं है। मेरी बात सुन कर सरोज बोली कि मैं तो सोचती थी कि मेरी ही जिन्दगी ही खराब है लेकिन यहाँ तो हर कोई परेशान है तुम इतना सब होने के बाद भी संतुष्ट नहीं हो। मैंने कहा कि संतुष्टी के बारें में तो नहीं पता लेकिन जो है उसे बनाये रखना ही बहुत कठिन है। सारा समय उसी में चला जाता है।

दूसरे दिन डाक्टर के यहाँ गये तो उस ने बताया कि रिपोर्ट तो सब सही है, कोई खराबी नहीं है, कुछ दवायें लिख देता हूँ इन के खाने से शरीर को कुछ आराम मिलेगा, कभी-कभी शरीर थका होने के कारण कुछ करता नहीं है। जब शरीर को आराम मिलता है तो वह अपना काम फिर से करना शुरु कर देता है। हो सके तो इनके पति का भी चैकअप करवा लो। सारी स्थिति पता चल जायेगी। रिपोर्ट ले कर हम वापस घर आ गये। घर आ कर बैठे ही थे कि पत्नी के किसी रिस्तेदार का फोन आ गया तो पत्नी बोली कि उसे उन से मिलने जाना है। मैंने कहा कि मैं चलुँ तो वह बोली कि नहीं मैं ड्राइवर को ले जा रही हूँ तुम घर पर ही रहों। यह कह कर वह कपड़ें बदलने चली गयी फिर बाहर चली गयी।

4. मिलन

सरोज बोली कि मैं कपड़ें बदल कर आती हूँ। मैं कुछ काम देखने लग गया। आज ऑफिस नहीं जाना था सो सोचा कुछ आराम कर लेता हूँ यही सोच कर बेडरुम में जाने की सोच रहा था कि सरोज कपड़ें बदल कर आ गयी, मुझे देख कर बोली कि मुझे देख कर बताओ मेरे में कोई कमी है? मैंने उसे देखा और कहा कि सुन्दर हो, इस में तो कोई शक नही है। वह बोली कि मेरे पति को यह क्यों नहीं दिखाई देता। उस नें मुझ से कहा इस के लिये मैं भला क्या करुँ? मैं चुप रहा, मैं कुछ कहने लायक नहीं था। मैंने उसे हाथ पकड़ कर अपने पास बिठाया और कहा कि हर समस्या का निदान है। अगर शादी नहीं चल रही है तो तुम दोनों अलग क्यों नहीं हो जाते। वह बोली कि एक बार कहा था तो वह बोले कि यह नहीं हो सकता, अगर ऐसा हुआ तो कोई एक ही बचेगा। यह सुन कर मैं डर गयी।

मैंने कहा कि कोई और संबंध तो नहीं है। वह बोली कि नपुंसक हैं शरीरिक संबंध बनाने में असमर्थ है। इलाज करवाना नहीं चाहते, कैसे समझाऊँ, मैं ही जलती रहती हूँ लोगों के तानें सुनती रहती हूँ। बताओं क्या करुँ? मेरे पास कोई जबाव नहीं था। मुझे चुप देख कर वह बोली कि तुम से कुछ माँगु तो तुम दोगे? मैंने उसे देखा तो वह बोली कि मैं अपनी हद पार कर रही हूँ लेकिन तुम्हारें सामने जाने क्यों मेरी शर्म खत्म हो गयी है। इस लिये इतना बोल पा रही हूँ।

मैंने कहा कि जो माँगना चाहती हो वह गलत है। उस का बहुत बुरा असर पड़ेगा, पता नहीं क्या हो। वह बोली कि बिना मेरे मांगें तुम्हें कैसे पता? मैं बोला कि बताओं गलत कह रहा हूँ इतनी बातों के बाद कुछ तो मुझे भी समझ आता है। बोलों क्या माँग रही थी? वह चुप रही, फिर बोली कि जब तुम नें पहले ही मना कर दिया है तो अब क्या माँगु? मैंने उस का हाथ पकड़ कर अपने पास खिचाँ और कहा कि अब बोलो भी, क्या बात है। वह बोली कि मुझे मां बना दो। मैं अपना जीवन उस के सहारे बिता लुंगी। यह भी कुछ नहीं कहेगें, क्योंकि इन्हें पता है कि यह काम वह नहीं कर सकते। यह कह कर वह रोने लगी। मुझे लगा कि मैं किस बात में फँस गया हूँ। नैतिकता, अनैतिकता का द्वन्द मेरे मन में चल रहा था। फिर सोचा कि अगर ऐसे इस के जीवन में खुशी आती है तो आने दो।

सरोज सोफे पर बैठ कर रो रही थी। मैंने उसे उठाया और बेडरुम में ले जा कर बेड पर बिठा कर कहा कि एक बार फिर से सोच ले, बाद में पछतानें से कुछ हासिल नहीं होगा। एक बार के संबंध में जरुरी नहीं है कि गर्भ ठहर ही जाये। मेरी बात सुन कर उस ने रोना बंद कर दिया। मैंने उसे पानी पीने को दिया और बोला कि मेरे लिये भी यह सब बहुत कठिन है। फिर कुछ याद आने पर उस की रिपोर्ट उठा कर लाया और उसे ध्यान से पढ़ा, फिर उस से पुछा कि महीना कब होना है तो वह बोली कि अभी तो 20 दिन है।

महावारी खत्म हुये 8 दिन ही बीतें है। मैंनें उसे बताया कि समय तो सही है लेकिन उस के गर्भवती होने के बाद उसे मुझ से सारे संबंध तोड़नें पड़ेगें ताकि किसी तो यह भान भी ना हो कि वह मेरे बच्चे की मां है। यह उस के लिये भी सही रहेगा। वह यह सुन कर बोली कि ऐसा वह नहीं कर पायेगी। मेरी पत्नी को क्या जबाव देगी? वह सही कह रही थी इस से तो शंक और बढ़ सकता है। क्या करें क्या ना करें कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मुझे चुप देख कर वह मेरे समीप आ कर बोली कि क्या सोच रहे हों? मैने कहा कि आने समय में क्या-क्या हो सकता है यह सोच रहा हूँ।

वह बोली कि हो तो बिजनैस मैन ही ना, कुछ भी करोगें नफा-नुक्सान देख कर ही ना। मैंने उसे कंधों से पकड़ कर कहा कि अपना नफा-नुकसान नहीं सोच रहा तुम्हारा नफा-नुकसान सोच रहा हूँ। वह बोली कि मैंने सब कुछ सोच रखा है तभी इस डगर पर इतनी आगे बढ़ी हूँ। मैं उसे देखता रहा उस की आँखों में एक अलग ही तरह की चमक थी। मैंने उस से पुछा कि आज मेरे साथ की यह क्यों करना चाहती है या पहले कोई मिला नहीं। वह बोली कि तुम्हें देख कर ही यह ख्याल मन में आया कि तुम्हारें जैसा मेरा बच्चा होना चाहिये, तुम्हें कोई नहीं जानता।

जब तुम्हारी पत्नी से दोस्ती बढ़ गयी तो लगा कि इस पर आगें चला जा सकता हैं नहीं तो जीवन खत्म करने का प्लान भी बना रखा था। मैं उसे देखता रहा, वह बोली कि मैं बहुत सतायी हुई हूँ यह सब मेरा अंतिम दांव है नहीं तो जीवन खत्म करने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं है। उस की बात सुन कर मुझे अचरज हुआ कि एक औरत किस हद तक जा सकती है।

मैंने उस से कहा कि अगर एक बार में कुछ नहीं हुआ तो क्या करेंगी, वह बोली कि दूसरी बार कर देखना पड़ेगा। तब तुम भी कुछ नहीं कहोगें। यह मुझे पता है। मैंने उस से पुछा कि इस का मतलब है वह अब तक कुँआरी है, तो वह बोली कि कह नहीं सकती। शुरु में तो खुब कोशिश करते थे शायद अंदर गया हो लेकिन मुझे लगा नहीं। मेरी हिचक देख कर वह बोली कि मैं समझ सकती हूँ कि तुम क्या सोच रहे हो लेकिन मैं तुम से भीख माँग रही हूँ मेरी झोली में भीख डाल दो। भगवान तुम्हारा भला करेगें। उस की बात सुन कर मुझे हँसी आयी और मैंने कहा कि तुम चुप रहो। वह चुप हो गयी। पत्नी को गये हुये कुछ ही समय हआ था। मुझे पता था कि उसे आने में समय लगेगा, लेकिन फिर भी कन्फर्म करने के लिये मैंने आये फोन नंबर पर डायल करके पुछा तो पता चला कि वह वहाँ पहुँच गयी है। उस ने कहा कि वह देर में आयेगी। यह सुन कर मुझे चैन आया।

मैंने उसे अपने पास बिठा कर उस से कहा कि वह शरीरिक संबंधों की आदी नहीं है। आज के संभोग के बाद उस की चाल देख कर पत्नी को सब पता चल जायेगा तो वह बोली कि मैं कह दुँगी कि बाथरुम में फिसल गयी थी इस लिये ऐसा हो रहा है। अब कोई बहाना नहीं बचा था। मैं कोई सन्यासी नहीं था, लेकिन इतने खुले तौर पर कभी कुछ करा नहीं था। मैं अपने कपड़ें उतारनें लगा तो वह बोली कि मैं क्या करुँ मैंने कहा कि बैठी रहों आगें का काम मैं करता हूँ तुम बस घबराना नहीं। वह यह सुन कर मुस्कराई। ब्रीफ और बनियान में आने के बाद मैंने उसे उठा कर अपने से चिपका लिया। वह तो इसी क्षण का इंतजार कर रही थी। वह मुझ से ऐसे लिपट गयी जैसे कोई लता पेड़ से लिपटती है।

मैंने उस के माथे को चुम कर उस की आँखों पर चुम्बन किया। मेरा प्रयास यह था कि वह अपने पहले समागम से पहले पुरी तरह से तैयार हो तथा उसे पुरी तरह से भोग सके। इस के बाद हम दोनों एक-दूसरे के होंठों को चुम रहे थे। वैसे चाहें वह कुँवारी थी लेकिन उस का शरीर यौवन से भरा हुआ था। उरोज पुष्ट ओर उभरें हुयें थे। लम्बें चुम्बन के मध्य में हम दोनों की जीभों नें एक-दूसरें कें मुह में भृमण किया। मेरे होंठ उसके बाद उस की सुराही जैसी गरदन पर अपनी छाप छोड़नें लगे। इस से सरोज की शर्म खत्म हो गयी और वह खेल में पुरी तरह से भाग लेनें लगी। उस नें भी मेरी छाती पर अपने होंठों से गहरी छाप लगा दी। मैंने उस के उरोजों को ब्लाउज के ऊपर से दबाया, फिर उस के ब्लाउज को उतार दिया, नीचे वह काले रंग की ब्रा पहने हुई थी, सफेद रंग पर काली ब्रा फब रही थी। ब्रा भी खुल कर नीचे आ गयी।

तनाव के कारण उस के उरोज और निप्पल तन कर खड़े थे, मैंने उन्हें होठों से पीना शुरु कर दिया इस से सरोज के शरीर में करंट सा दौड़ने लगा। मैं बेड पर बैठ गया और अब सरोज की नाभी का चुम्बन ले रहा था। वह खड़ी खड़ी कांप रही थी। उस ने कस कर मेरे बाल पकड़ लिये। इसके बाद मैंने उस का पेटीकोट उतार कर नीचे डाल दिया और उस की पेंटी के ऊपर से योनि को चुमा फिर पेंटी को भी खिसका कर नीचे कर दिया, अब वह बिल्कुल नंगी खड़ी थी। मैंने हाथों से उसके कुल्हों को पकड़ कर अपने मुँह से सटा रखा था उस की योनि की सुगंध मेरी नाक में घुसी जा रही थी। सरोज को पहली बार इस नजर से देखनें और छुने के कारण मुझे कुछ झिझक हो रही थी लेकिन मेरा प्रयास यही था कि वह पहले संभोग में कम दर्द भोगे।

अब मैंने उसे बिस्तर पर लिटा दिया और उस की बगल में लेट गया। वह मुझ से लिपट गयी और बोली कि मुझे प्यार करों इस प्यार की मैं ना जाने कब से प्यासी हूँ। आज मेरी सारी प्यास बुझा दो। मैंने उस की योनि में उंगली डाली तो पता लगा कि वह बहुत कसी हुई थी। मुश्किल से उंगली अंदर जा पायी इस में भी उस को बहुत दर्द हुआ। मैंने उस से कहा कि अगर ज्यादा दर्द हो तो मुझे रोक देना। वह बोली कि मुझे कुछ भी हो तुम नें रुकना नहीं है आज मुझे औरत बना कर छोड़ना है फिर ना जाने यह मौका मिले ना मिले। मुझे भी लगा कि अब देर करना सही नहीं है सो मैं उस की जाँघों के बीच बैठ गया और उस की योनि पर अपने तने लिंग का सुपारा रख कर उसे धक्का दिया, लिंग कुछ अंदर घुसा फिर बाहर निकल गया। मैंने थुक लिंग के मुँह पर लगा कर उसे योनि पर रख कर फिर से धक्का दिया इस बार वह एक इंच अंदर चला गया।

सरोज दर्द के मारे कराह रही थी लेकिन मैंने दूबारा जोर लगाया तो लिंग पुरा अंदर चला गया सरोज की चीख निकल गयी लेकिन उस ने अपने ऊपर के होंठ को नीचे के दांतों में दबा कर उसे रोक लिया। मुझे लगा कि कोई रुकावट सी है तो मैंने जोर लगाया तो उस ने दर्द से सर इधर-उधर करना शुरु कर दिया, इस बार के जोर से रुकावट हट गयी और लिंग पुरा योनि में समा गया। मुझे भी पता चल गया कि हाइमन फट गया है। कुछ देर धीरे-धीरे लिंग को अंदर बाहर करने के बाद मैंने अपनी गति तेज कर दी, सरोज भी अपने कुल्हें उठा कर मेरा साथ दे रही थी हम दोनों की गति बहुत तेज हो गयी। आहहहह उहहहहह उईईईईईईईईईईई, घपाघप की आवाज आने लग गयी। काफी देर तक ऐसे ही लगे रहे फिर मैंने उसे अपने ऊपर कर लिया अब वह पुरे जोर से मेरे लिंग को अंदर समाने का प्रयास करने लगी। उस के कुल्हों का प्रहार मेरी टाँगों के मध्य हो रहा था।

मैं उस को उरोजों को मसल रहा था तथा निप्पल को दांतों से मसल रहा था। उत्तेजना पर काबु नही हो रहा था। बीस मिनट से ज्यादा हो चुके थे, अब मैंने सरोज को फिर से नीचे लिटा कर उस में प्रवेश किया योनि बहुत कसी होने के कारण लिंग पर बहुत घर्षण हो रहा था, अचानक मेरे पुरे शरीर में सरसरी सी दौड़ गयी और मेरी आँखों के सामने तारें झलक गये, मैं स्खलित हो गया, वीर्य की गरमी से सरोज भी तड़प सी रही थी। मैं कुछ देर उस के ऊपर पड़ा रहा फिर उठ कर बगल में लेट गया। वह बुरी तरह से हांफ रही थी। संभोग 30 मिनट से ज्यादा चला था।

कुछ देर बाद दोनों को थोड़ा आराम मिला तो मैंने उस की तरफ मुँह कर पुछा कि क्या हाल है? वह बोली कि बेहाल है ऐसे तो मेरे साथ कभी नहीं हुआ है। मैंने कहा कि कभी संभोग करा ही नहीं है तो कैसे पता होगा। वह बोली कि आज तो दर्द के मारे लगा कि जान ही निकल जायेगी। लेकिन अब सही हूँ। तुम बताऔ? मैंने कहा कि सही हूँ कुँवारी को भोगनें से जो सुख मिलता है उस का आनंद ले रहा हूँ वह बोली कि बातें बनाना छोड़ो और सही सही बताओं। मैंने कहा कि सही कह रहा हूँ, पत्नी की सुहागरात के बाद आज दूसरी बार मेरा लिंग खुन से नहाया हुआ है। तुम्हें भी बहुत दर्द हुआ होगा। वह बोली कि पुछों मत। उस ने मेरे लिंग को देखा जो उस के खुन और वीर्य से सना हुआ था उस की योनि से भी लाल रंग का वीर्य बाहर टपक रहा था वह बोली की यह तो बाहर आ रहा है। क्या करुँ? मैने कहा कि मेरा लिंग भी बहुत दर्द कर रहा है, तुम्हारी योनि शादी के इतने सालों के बाद भी इतनी कसी हुई है। वह बोली कि तुम्हें सब कुछ पता तो है।

मैंने भी कई दिन से संभोग नहीं किया था इस कारण से वीर्य भरा हुआ था सो उस की योनि वीर्य से भरी हुई थी लेकिन वह बाहर निकल रहा था यह देख कर मैंने उस के पाँव के नीचे तकिया लगा कर उन्हें ऊँचा कर दिया और उस से कहा कि वह ऐसे ही लेटी रहे। वह चुपचाप पड़ी रही। कुछ देर बाद बोली कि तुम्हें कैसा लगा? मैंने कहा कि बता नहीं सकता, किसी कुँवारी को भोगने का मजा अलग ही होता है लेकिन आज तो अलग ही बात है सो कुछ कह नहीं सकता, वह बोली कि मैं तुम्हें कोई सुख नहीं दे सकती, केवल अपनी ही सोच रही हूँ। मैंने कहा कि कुछ मत सोचों। कुछ सोच कर मैंने उसे पाँवों से पकड़ कर उलटा सा कर दिया वह चुपचाप करवाती रही। कुछ देर बाद उसे सीधा किया और कहा कि वह कपड़ें पहन ले। उस नें मेरा कहा मान कर कपड़ें पहन लिये और बोली कि कोई और आज्ञा? मैंने हँस कर कहा कि पुत्रवती भव। वह बोली तथास्तु।

मैं उठ कर अपने आप को साफ करने चला गया। बाथरुम से निकला तो देखा कि वह कपड़ें बदल चुकी थी, बोली कि कपड़ों में अलग तरह की खुशबु आ रही थी सो उन्हें बदल लिया। मैंने बेड को देखा तो वह सही लगा, मैंने पहले ही उस पर एक और चद्दर बिछा दी थी ताकि नीचे की चद्दर खराब ना हो। फिर मुझे कुछ याद आया तो मैंने एक कागज पर सरोज को हस्ताक्षर करने को कहा, उसने मेरी तरफ देखा तो मैंने कहा कि कुछ नहीं है कभी जरुरत पड़ी तो यह साबित करेगा कि आज जो कुछ हुआ है वह दोनों की मर्जी से हुआ है। उस नें पेन पकड़ कर उस पर साइन कर दिये। फिर मेरी तरफ अजीब सी नजरों से देखा। मैंने कहा कि आगे के बारें में कोई कुछ नहीं कह सकता कल तुम क्या करों मुझे पता नहीं है मैं सिर्फ अपने आप को बचा रहा हूँ। वह चुप रही।

मैंने उसे कहा कि वह मुझे बचपन से जानती है लेकिन मैं अब उस के लिये तथा वह मेरे लिये अजनबी है। कल हो सकता है कि वह अपने परिवार को बचाने के लिये मुझ पर कोई आरोप लगाने लगे इस लिये मैं यह काम कर रहा हूँ शर्म तो आ रही है लेकिन मैंने सीखा है कि जिस बात का शक हो उसे पहले चैक करो। वह कुछ नहीं बोली, फिर बोली कि मैं क्या कहूँ। मैं तो खुद वक्त की मारी हूँ तुम्हारी हालत समझ सकती हूँ तुम भी तो अपने परिवार, मान सम्मान को दांव पर लगा कर मेरी सहायता कर रहे हो तो तुम्हारी सहायता करने में मुझे कोई संकोच नहीं है। क्या लगता है इस बार हो जायेगा। मैंने कहा कि समय तो सही है, कईयों का तो सुहागरात को ही गर्भ धारण हो जाता है। कुछ कह नही सकते लेकिन इंतजार कर सकते है। अगर नहीं हुआ तो कुछ और प्रयास करने पड़ेगे। कहो तो अपना चैकअप करवा लूँ।

मेरी बात सुन कर बोली कि एक तुम हो कि मेरी सहायता करने के लिये चैकअप करवाने को तैयार हो, और एक मेरे पति है चैकअप के नाम से बिदक जाते है। मैंने उस का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा कि जब एक काम शुरु किया है तो उसे उस के अंजाम पर ले जाकर ही रहेगें। जाहे कितनी परेशानियां आये। मेरी बात सुन कर वह बोली कि फिर तुम से मिलना कैसे होगा। मैंने कहा कोई ना कोई रास्ता निकल जायेगा। चिन्ता मत करो। तुम तो मस्त रहो। यह कह कर मैं कमरे से चलने लगा तो वह बोली कि मैं अपने कमरे में जा रही हूँ।

जब वह चलने लगी तो मैंने देखा कि वह लगंड़ा रही थी, मैंने उस से कहा कि लगंड़ा रही हो, वह बोली कि तुम नें इतनी जोर से करा है तो ऐसा तो होना ही था। मुझे पता है कि क्या कहना है वह मैं कर लुंगी। वह चली गयी और मैं लेट गया फिर कुछ घ्यान आते ही उछल कर खड़ा हो गया बिस्तर पर चद्दर तो पहले ही बदल दी थी, कमरें में देखा कि कुछ पड़ा तो नही है बेड को ध्यान से देखा, रुम फ्रेशनर सारे कमरें में छिड़क दिया। जैसे ही लेटा तो नींद आ गयी।

किसी के झकझौरनें से नींद खुली तो देखा कि पत्नी मुझ पर झुकी हूई थी। बोली कि सो रहें हो, और सरोज अकेली बोर हो रही होगी, मैंने कहा कि आँख लग गयी थी। तुम कब आयी तो वह बोली कि अभी आयी हूँ। उस ने कहा की कोई चिन्ता की बात नहीं थी, लेकिन हो आयी तो सही रहा। मैं उठ कर बेड पर बैठ गया। वह बोली कि थके हो तो चाय पी कर सो जाना। मैंने कहा कि अब तो उठ गया हूँ क्या नींद आयेगी। वह बोली कि गलत कर दिया तुम्हें उठा कर। मैंने कहा कि कुछ गलत नही किया। वैसे भी शाम को कौन सोता है। पत्नी सरोज को बुलाने चली गयी, मैंने उठ कर अपने कपड़ें देखे कि कहीं कोई दाग तो नहीं लग गया है लेकिन कुछ था नही। तब तक वह तथा सरोज चाय लेकर आ गयी और हम चाय पीने लग गये। पत्नी ने सरोज से पुछा कि यह तो सो गये थे तुम पीछे बोर तो नहीं हुई? सरोज बोली कि मैं तो बोर होने की अभयस्त हुँ परेशान मत होओ। फिर दोनों अपनी बातें करने लगी।

मैं कमरें से निकल गया। सरोज के साथ जोरदार संभोग से मैं भी थक गया था। अगर रात को पत्नी नें सेक्स की मांग की तो परेशानी हो सकती थी। लेकिन बाद में लगा कि रात को भी सेक्स किया जा सकता है। रात को कुछ नहीं हुआ, पत्नी थकी हुई थी सो वह बिस्तर पर पड़ते ही सो गयी। लेकिन मुझे नींद नहीं आयी कि कल क्या होगा? सरोज को कब तक रोकना सही रहेगा?

सुबह मैं तो ऑफिस के लिये निकल गया। दोपहर में पत्नी ने फोन किया की क्या अब सरोज को वापस जाने दें। मैंने कहा कि डाक्टर के अनुसार तो उस की अब यहाँ पर कोई जरुरत नहीं है जो चैकअप होने थे वह सब हो गये है दवाई लिख दी है। कुछ दिनों तक खा कर देखें उस के बाद देखेगें कि क्या करना है? सरोज उस दिन अपने शहर वापस चली गयी। रात को जब ऑफिस से लोटा, तब पत्नी ने बताया कि इन चैकअप का कोई लाभ नहीं है, पति तो डाक्टर को दिखानें के नाम से ही चिढता है। मैंने कहा कि हम इस में कुछ नहीं कर सकते। हो सकता है कि दवाई खाने के बाद जब वह संबंध बनाये तो कुछ हो जाये। पत्नी नें सर हिला कर कहा की आशा तो यहीं कर सकते है। बात यहीं खत्म हो गयी। अब मुझे इंतजार था सरोज के फोन या किसी संदेश का कि उस को गर्भ ठहरा कि नहीं। इस में समय लगना था।

5. समस्याएँ

कोई एक महीने के बाद सरोज का फोन मेरे लिये आया तो मैंने ही उठाया, मेरी आवाज सुन कर वह बोली कि उस दिन का कोई फायदा नहीं हुआ है। मेरा मासिक शुरु हो गया है। बताओं अब मैं क्या करुँ? मैंने कहा कि मैं डाक्टर से बात करके बताता हुँ कि आगें क्या करना है। तुम चिन्ता मत करों तो वह फोन पर रो पड़ी और बोली कि मुझे दिलासा मत दो। मैंने उसे समझाया कि उस ने जो कहा वह मैंने किया। उस दिन अगर कुछ नहीं हुआ है तो फिर से कर के देखेंगें, लेकिन पहले पता करते है कि किस दिन करना सही रहेगा। मैं तुम्हें बताता हूँ मेरी बात सुन कर उसे थोड़ी शान्ति मिली और उस ने रोना बंद कर दिया।

दूसरे दिन मैं डाक्टर से जाकर मिला और उसे सरोज की रिपोर्ट दिखा कर पुछा कि अभी तक तो कुछ हुआ नहीं है, तो उस ने कहा कि उन्हें यहाँ पर बुला लो हफ्तें मैं उन का अल्टरासाऊंड़ करके देखता हूँ कि कब उन के अंडें रिलिज होते है उस के बाद संबंध बनाने से गर्भ धारण करने के चान्स बढ़ जाते है। मैंने यह बात पत्नी को जा कर बतायी और कहा कि सरोज को कहों कि वह यहाँ पर आ जाये। कुछ और चैकअप करवा लेते है। यह बात सरोज को पत्नी नें बता दी। वह कुछ रोज बाद आ गयी।

डाक्टर के पास जा कर चैकअप कराया तो पता चला कि अभी तो अंडें रिलिज नहीं हुये है। शायद अगले हफ्तें हो, सरोज से पत्नी नें कहा कि वह यही पर रुक जाये। बार-बार आना-जाना ना करें। सरोज उस की बात मान कर रुक गयी। अगले हफ्तें पता चला कि अंड़े रिलिज हो गये है। अब समस्या यह थी कि सरोज के साथ संबंध कैसे बनाया जाये। उस के लिये मौका नहीं मिल रहा था। एक-दो दिन इसी उहापोह में गुजर गये, मुझे यह डर था कि अंड़े कुछ दिन गर्भाशय में रह कर बाहर निकल जाते थे।

पत्नी मुझ से बोली कि तुम अपनी सहेली को कार से छोड़ आयों और पता करके आयों कि असल बात क्या है? अगर उस के पति से मुलाकात हो तो शायद कुछ पता लगा सको। मैंने कहा कि इसे छोड़ कर आता हूँ। दूसरें दिन में सरोज को छोड़नें सुबह कार से चल दिया। रास्तें में मैंने उस से पुछा कि क्या उस के पति इस समय घर पर होगें तो वह बोली कि नहीं वह तो टूर पर गये होगें। मैंने कहा कि ऐसा ना हो कि मुझे देख कर वह कुछ और सोचें? सरोज बोली कि वह बाहर गये हुये है। तुम चिन्ता मत करो। उस के घर पहुँच कर हम घर में गये तो देखा कि वहाँ कोई नहीं था। यह देख कर मुझे चैन मिला कि अब मैं जो करना चाहता था वह कर सकता था।