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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 76
मक्कार राजा रतन सिंह देवरानी पर मोहित हुआ
घटराष्ट्र
महल में जहाँ राजपाल अपने मित्र राजा रतन सिंह के आने से खुश थे वही महारानी श्रुति बलदेव और देवरानी के प्रेम पत्र हाथ लग जाने से देवरानी को जान से मारने की अपनी चाल कामयाब नजर होती आ रही थी।
शुरष्टि मौके की तलाश में थी, के कब वह राजा राजपाल से बात कर के, देवरानी और बलदेव के प्रेम पत्र उसे दिखा दे, पर राजपाल अपने मित्र के साथ समय बिता रहा था और शुरष्टि मन मसोस के रह जाती है।
आज बलदेव, बड़ी और श्याम तर्था देवरानी को पारस से निकले दो दिन हो गए थे और महल में राजा रतन और राजा राजपाल मदिरा के चुस्की लेते हुए कहता है ।
रतन: मित्र राजपाल लगता है हमारे शत्रु हमसे डर के भाग गए, अब तक उन्होंने कोई आक्रमण ही नहीं किया?
राजपाल: महाराज अभी कुछ नहीं कहा जा सकता! मेरी राय में खतरा अभी टला नहीं है।
रतन नशे के हाल में कहता है.. ।
रतन: राजपाल जी आने दो, उनके खून से होली खेलेंगे हम!
राजपाल: हाँ जरूर वैसे हमारे घटराष्ट्र की मदिरा आपको कैसी लगी?
रतन: अब हमारे कुबेरी जैसा नशा तो नहीं इसमें पर घटराष्ट्र की मदिरा भी कम नहीं है ।
राजपाल: हम्म या परिवार में सब कैसे हैं?
रतन: राजपाल परिवार की पूछ रहे हो या मेरी अंग्रेज़ पत्नी अलीज़ा के बारे में पूछ रहे हो?
राजपाल शर्मा जाता है।
राजपाल: सब का महाराज!
रतन: हम्म्म! जब से तुमने उसे मजा दिया है। वह तुम्हे याद करती रहती है । मेरी पत्नी अलीज़ा कह रही थी के तुम अच्छे पेलू हो।
राजपाल: अरे कहा? वह तो अब पहले जैसा काम नहीं करता, परंतु तुम्हारी पत्नी की गोरी चमड़ी ने ऐसा असर क्या किया...!
फिर दोनों हसने लगते है।
शुरष्टि अपने कक्ष में सोच रही थी ।
"ये महाराज के पास तो मेरे लिए समय ही नहीं है अब उनको राजा रतन सिंह के सामने कैसे ये सब बताउ?"
देखते ही देखते शाम होने लगती है।
महल के आगे सैनिक खड़े पहरेदारी कर रहे थे।
सैनिक: वो देखो रानी देवरानी या युवराज आ रहे हैं।
दुसरा सैनिक: हा! रानी देवरानी की जय हो युवराज की जय हो!
सैनिक: हे कमला हे राधा!
कमला और राधा महल से बाहर आती है और दरवाज़े पर खड़े दोनों सैनिकों से पूछती हैं ।
"क्यू चिल्ला रहे हो?"
सैनिक: वो देखो युवराज बलदेव वापस आ गये पारस से।
कमला को जहाँ खुशी होती है वही राधा चुपचाप अंदर अपनी महारानी श्रुष्टि के पास जा कर उसे सुचना देती है ।
राधा: महारानी शुरष्टि वह लोग पारस से वापस आ गए!
शुरष्टि: ठीक है आने दो । (मन में-अब उन्हें इस दुनिया से दूर भेजना बाकी रह गया है।)
और हँसने लगती है जिसे देख राधा भी मुस्कुराती है।
सूर्यस्त हो चूका था बलदेव देवरानी घोड़े से उतारते हैं देवरानी उतारते साथ ही वह अपने ससुराल के सम्मान में अपना पल्लू अपने मुंह पर ढक लेती है।
सामने मुख्य द्वार देवरानी की सास महारानी जीविका, के साथ महारानी शुरष्टि और साथ ही कमला और राधा भी खड़ी थी ।
शुरष्टि: आओ देवरानी! घटराष्ट्र में वापिसी पर, आप सबका स्वागत है।
देवरानी आकर सबसे पहले महारानी जीविका अपनी सास के चरण स्पर्श करती है ोे आशीर्वाद लेती है और फिर सृष्टि के पैर पड़ती है सृष्टि देवरानी को पकड़ गले लगा लेती है।
"देवरानी तुम मेरी सौतन नहीं तुम तो मेरी छोटी बहन हो ।"
कमला: आप लोगों को सुरक्षित देख बहुत खुशी हो रही है।
बलदेव आगे आता है।
दादी की चरण स्पर्श कर प्रणाम करता है।
"दादी आप ठीक तो हैं ना? "
"हाँ पुत्र! जीते रहो! "
बलदेव फिर अपनी बड़ी माँ के पैर छूता है।
"बड़ी माँ, प्रणाम!"
"जीते रहो मेरे लाल!"
बद्री या श्याम भी सबके चरण छू प्रणाम करते हैं ।
बलदेव: बड़ी माँ पिता जी कहाँ है?
शुरष्टि: कुबेरी के राजा रतन जी आए हैं। वह उनके साथ बैठे हैं, उनको तुम लोगों के वापिस आने की खबर मिल गई है आते होंगे।
तभी नशे में धुत राजपाल आता है।
राजपाल: सब बाहर ही खड़े रहोगे क्या? अंदर आओ!
सब अंदर आते हैं बलदेव अपने पिता के पैर छू कर आशीर्वाद लेता है।
राजपाल: कैसा रहा तुम सब का सफर?
देवरानी: जी अच्छा था महाराज!
ये सुन कमला मंद-मंद मुस्कुराती है।
राजपाल: मेरे साले देवराज ने मुझे याद किया कि नहीं?
देवरानी: जी पूछ रहे थे तो मैंने बता दिया कि वह नहीं आ सके. उन्होंने आपके लिए भेट भेजी है ।
राजपाल: चलो! अब तुम सब आराम करो इन सब के खाने और विश्राम का प्रबंध करो, रात होने वाली है।
बलदेव बद्री और श्याम को ले कर चला जाता है। कमला देवरानी को ले कर उसके कक्ष में जाती है ।
कमला: महारानी बहुत खिल रही हो! लगता है खूब रंग रलिया मनाई हो ।
देवरानी: पागल ऐसा कुछ नहीं है।
कमला: अब ना बताओ अपने मुँह से, पर मुँह गोल हो गया है और बदन भी, जैसे खूब महनत हुई हो!
देवरानी: चुप करो और जा कर अपना काम करो, मेरा खाना यहीं ले आओ । मैं थक रही हूँ और मुझे नींद आ रही है।
देवरानी अपने बिस्तर पर जैसे ही लेटती है उसे कुछ एहसास होता है।
देवरानी: (मन में-मुझे ऐसा लग रहा है कि यहाँ कोई आया था और मेरी अनुपस्थिति में मेरा सब सामान भी सब सही जगह पर नहीं है।)
देवरानी थकी हुई थी इसलिए फिलहाल सब नजरअंदाज कर आखे बंद कर लेटी रहती है।
इधर बलदेव तथा श्याम और बद्री बैठे बातें कर रहे थे।
बद्री: ये कुबेरी के राजा रतन सिंह नहीं दिख रहे?
बलदेव: नशे में होगा वो!
श्याम: भाई ये राजा रतन सिंह को घर में, मेरा मतलब है महल में क्यू रखा? बाहर अतिथि गृह में उन्हें ठहरने की व्यवस्था क्यू नहीं की गयी?
बलदेव: अब वह मेरे पिता के लिए खास मित्र है इसीलिए बरना हम किसी गैर मर्द को महल के अंदर नहीं आने देंते, भले ही वह कोई भी क्यों न हो और सैनिक भी बिना वजह के महल में नहीं आ सकते ।
तीन बात करते रहते हैं फिर कमला खाना ले कर आ जाती है।
कमला: ये लीजिए युवराज आप सबका खाना।
बलदेव: वो माँ ने खा लीया?
कमला मुस्कुरा के कहती है ।
"मां की बड़ी चिंता हो रही है, मैं उन्हें खिला दूंगी।"
ये सुन कर बद्री और श्याम चुटकी लेते हुए हंसने लगते हैं।
बलदेव चिढ कर उन पर तकिया फेक कर मारता है।
बद्री और श्याम भागते हैं आओर बलदेव तकिए से उन्हें मारता है।
कमला: बच्चो तुम सब खा लेना, मैं चली, मुझे महारानी देवरानी को खाना देना है ।
कमला देवरानी को खिला कर अपने घर लौट जाती है।
बद्री और श्याम भी खाना खाते हैं।
बद्री: कल सुबह हम भी वापिस अपने देश चलेंगे श्याम!
श्याम: ठीक है।
बलदेव: कुछ दिन रुक जाते मित्रो!
बद्री: समझो बलदेव, हमें हमारे परिवार से भी मिलना है । हम फिर कभी आएंगे।
तीनो अपनी पुरानी बात करते हुए सो जाते हैं।
रात बीतती है सुबह सवेरे सबसे पहले देवरानी की आख खुलती है वह उठ कर कहती है ।
"हे भगवान!"
सबसे पहले वह पूजा करती है फिर योग करती है और महल से बाहर बगीचे में घूमती है।
बाग में टहल रही देवरानी इस बात से अंजान थी कि कोई उसे देख रहा है।
सुबह रतन सिंह भी उठ गया था या जैसे ही वह महल से बाग की ओर जा रहा था उसके आखे सुंदर देवरानी को देख कर जम जाती है वह बस देखता रह जाता है।
राजा रतन: सैनिको सुनो!
सैनिक: जी महाराज!
राजा रतन: ये सामने कौन स्त्री टहल रही है?
सैनिक: महाराज उन्हें घूंघट नहीं क्या है इसलिए हम उनकी तरफ नहीं देख सकते। आप भी नहीं देख सकते, क्यू के वह महाराज की पत्नी रानी देवरानी है। उनको पता चल गया तो...!
राजा रतन सिंह मुस्कुराता है।
"चल हट!"
राजा रतन सैनिक को धक्का दे कर दूर करता है।
रतन सिंह: (मन में-इसे तो देख कर हे मेरा लैंड खड़ा हो गया, भाग्य से ये देवरानी निकली, राजपाल की पत्नी, जिसका विवाह मैंने ही करवाया था, तब तो ये पतली दुबली थी और अब ऐसी भरपूर माल हो जाएगी ये मैं कभी सोचा ना था। इसे तो मैं पेल के रहूंगा। अरे! वाह! कितना मजा आएगा...!
रतन सिंह वापस महल में आ जाता है अभी भी सब सो रहे थे।
कुछ देर टहल के रानी देवरानी महल में आती है और जैसे ही अपने कक्ष में घुसने को होती है उसे आवाज सुनाई देती है ।
रतन सिंह: देवरानी जी!
देवरानी मुड़ कर देखती है और राजा रतन को पहचान लेती है।
"अरे आप महाराज रतन जी!"
"आप कैसी हो देवरानी जी?"
"जी! मैं ठीक हूँ।"
"तुम ठीक नहीं अति सुंदर हो।"
और ये कह कर राजा रतन देवरानी के करीब आता है।
"ये क्या बात कर रहे हैं आप?"
"सही कह रहा हूँ देवरानी जी, मुझे पता नहीं था आप इतनी सुंदर हो जाओगी?"
"महाराज आप हमारे पिता की आयु के हैं। ऐसी बात आपको शोभा नहीं देती!"
फिर देवरानी अपनी कक्ष में जाने लगती है पर राजा रतन सिंह देवरानी का हाथ पकड़ लेता है।
आप छोड़िये हमें, हम महाराज को कह देंगे! "
"वो राजपाल जिसने खुद मेरे साथ जीवन भर अय्याशी की है वह क्या करेगा? तुम्हें पता नहीं राजपाल कितना मजे करता है,"
फिर वह देवरानी को खीचता है और उसका एक हाथ को ज़ोर से पकड़ कर कहता है।
तुम भी मजे करना चाहो तो मैं हूँ!
देवरानी ऐसे खुले में राजा रतन की ऐसी बेशर्मी से गुस्सा हो जाती है
"तुम्हारी इतनी हिम्मत?"
"फट्ट" कर के एक तमाचा रतन सिंह के गाल पर रख देती है।
"राजा रतन तुम्हें मैं अपने पिता समान मानती तो और तुम इतने घिनौने निकले! तुम एक राजपूतनी पर हाथ डालने का मतलब नहीं जानते क्या? भला हुआ की हमारे हाथ में तलवार नहीं थी तो हम अभी तुम्हारे सर धर से अलग कर देती! नीच व्यक्ति!"
राजा रतन सिंह अब देवरानी से दूर खड़े हो जाता है और एक हाथ उसके लाल हुए गाल पर था।
देवरानी अपनी कक्ष में घुस कर दरवाजा बंद कर लेती है।
राजा रतन सिंह वही खड़ा सोचने लगता है।
"मेरी जान देवरानी! तुम्हें तो उल्टा कर के चोदूंगा। देखता हूँ तुम्हें कौन बचाता है और ये राजपाल मेरा कुछ नहीं करेगा क्योंकि उसपे मेरा पहले से उधार बाकी है । राजपाल तो अब तुम्हें मुझे सौप कर अपना उधार चूकता करेगा मेरी रानी!"
फिर राजा रतन सिंह मक्कारी के साथ मुस्कुराता है...
जारी रहेगी