महारानी देवरानी 077

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मुसीबतो का पहाड़
2.9k words
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Part 77 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 77

मुसीबतो का पहाड़

सुबह सवेरे अपने साथ ऐसी हरकत किये जाने से देवरानी उदास हो जाती है और भाग कर अपने कक्ष का दरवाजा बंद कर बिस्तर पर लेट कर रोने लगती है।

देवरानी: (मन में) इस टुच्चे रतन सिंह की हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की, मैं बलदेव को कहूंगी... नहीं अगर उसे पता चल गया तो वह महाभारत खड़ा कर देगा।

कुछ सोच कर देवरानी उठती है और अपनी पुस्तकों में अपने बेटे द्वार लिखे गए प्रेम पत्र ढूँढती है पर उसे कुछ नहीं मिलता है।

देवरानी के माथे पर पसीना आ जाता है।

"हे भगवान ये पत्र कहाँ चले गए यहीं तो रखे थे उफ़!"

देवरानी अपने कक्ष में राखी मेज़ पर रखे हर सामान को फेकने लगती है वह पूरे कक्ष का कोना-कोना देखती है पर उसे प्रेम पत्र नहीं मिलते है।

देवरानी (मन में: कही रतन सिंह ने तो ये पत्र देख नहीं लिया हो इसलिए वह मुझे भोगने की कोशिश कर रहा है...हाय! अब मैं क्या करु। अब किसी को भी मिला हो पर वह तो अब मेरे और बलदेव की फांसी का कारण बन सकता है। ये मेरी ही गलती का परिणाम है, मैं इन्हे इतनी लापरवाही से कैसे रख सकती हूँ?

पसीना पसीना हुयी देवरानी थक कर के अपने नम आखे लिए बिस्तर पर लेट जाती है और उसकी आँख लग जाती है । उसे पता नहीं चलता और तेजी से समय निकल रहा था । अब तक सब सो कर उठ गए थे । बद्री और श्याम जाने की तय्यारी कर के निकलने वाले थे पर उनको याद आया कि वह देवरानी मौसी से नहीं मिले है ।

राजपाल: अरे क्या हुआ रुक क्यू गए बच्चो?

बद्री: महाराज वह मौसी से नहीं मिले!

कमला: वह तो सो रही है अभी तक।

बलदेव: ऐसा करो चलो अंदर ही जा कर उनसे मिल लो।

बद्री और श्याम देवरानी के कक्ष में आते हैं।

बद्री और श्याम खड़े हैं बलदेव देवरानी, जिसकी अख लग गई थी उसके बगल में पलंग पर बैठ कहता है ।

बलदेव: देवरानी! अजी उठ भी जाओ कब तक सोती रहोगी?

देवरानी झट से उठती है और सामने बलदेव को देखती हैऔर दरवाजे पर बद्री और श्याम को खड़े देख शर्मा जाती है।

बद्री: क्या हुआ भाभी माँ आप ठीक नहीं लग रही हो ।

देवरानी: नहीं देवर जी व्यायाम करने के बाद थोड़ा आराम करने लगी तो बस यू ही अख लग गई थी।

बद्री: हम लोग जा रहे हैं आशीर्वाद दीजिए!

बद्री और श्याम दोनों के चरण स्पर्श करते हैं ।

देवरानी दोनों के सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देती है।

बलदेव: अब तो भाभी कहे जाने से चिढ़ नहीं रही हो, देवरानी! ऐसा क्या सीखा दिया अपनी भाभी को बद्री!

बद्री: वह हम आपको नहीं बताएंगे बलदेव भैया, ये वह हमारे देवर भाभी की बात है।

बलदेव: तो बात यहाँ तक पहुँच चुकी है।

फिर बद्री और श्याम मुस्कुराते हुए विदा ले कर बाहर निकलते हैं और अपने घोड़ों पर बैठते हैं।

बलदेव: अपना ख्याल रखना मित्रो!

श्याम: तुम भी और उनका भी।

बलदेव बात समझ कर मुस्कुरा देता है। दोनों घोड़ों को दौड़ा कर थोड़ी देर में वह आंखो से ओझल हो जाते है।

दोपहर के भोजन के बाद राजा रतन और राजा राजपाल मदीरा पीने बैठते है।

रतन: राजपाल आज मुझे घटराष्ट्र की कोई चीज पसंद आ गई है ।

राजपाल: कहो क्या पसंद है अभी वह आपके कदमों में होगा राजा रतन सिंह?

रतन: भाई देखो मुझे एक महिला पसंद आ गई है जिसे मुझे भोगना है । जब तुमने मेरी पत्नी एलिज़ा के साथ अपनी रात रंगीन की थी तब तुमने मुझे बचन दिया था तुम्हे तुम्हारे वचन याद हैं ना?

राजपाल: रतन जी! जो मजा मुझे तुम्हारी पत्नी एलिज़ा ने दिया था उसे हम ऐसे कैसे भूल सकते हैं।

रतन: तो समझो अब तुम्हारा अपना वचन पूरा करने का समय आ गया है।

राजपाल: आर्य आप कहो पूरे घटराष्ट्र की कन्याएँ तुम्हारे साथ होंगी।

रतन: मुझे शुद्ध राष्ट्र की नहीं चाहिए पर इस महल की...!

राजपाल अब थोड़ा भयभीत हो जाता है।

राजपाल: मैं महल का मतलब समझा नहीं, मित्र!

रतन: देखो मतलब सीधा है। राजा राजपाल मुझे तुम्हारी छोटी पत्नी का उभरा हुआ शरीर पसंद आया है।

राजपाल का मुंह खुला रह जाता है।

राजपाल: मतलब देवरानी?

रतन: तुम सही समझे! मुझे रानी देवरानी को भोगना है। मेरे ख्याल से इसमें तुम्हें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

राजपाल: पर राजा रतन जी!

रतन सिंह अब गुस्से से लाल हो जाता है।

रतन: पर वॉर कुछ नहीं! दिखा दी ना अपनी औकात! याद रखो तुम सिंह हो। अपना वचन मत भूलो । जब मेरी पत्नी को रात भर चुदाई की तब तो तुम्हे शरम नहीं आई? अब अपनी पत्नी देने में जिभा हलक में अटक गई है!

राजा राजपाल इस बात को सही से समझाते हुए बोलता है ।

राजपाल: महाराज मैं कोशिश कर सकता हूँ पर देवरानी नहीं मानी तो...?

रतन: मुझे कुछ नहीं पता तुम्हें अपना वचन पूरा करना होगा । तुम कैसे करोगे तुम समझो।

राजपाल: ठीक है मैं कोशिश करूंगा।

रतन: देखो अगर मुझे देवरानी नहीं मिली तो कल के कल घटराष्ट्र पर हमला कर इसे अपना राज्य बना लूंगा और तुम्हारा कच्चा चिट्ठा तुम्हारे राज्य के सामने रख दूंगा, जिससे तुम्हारी प्रतिष्ठा और तुम्हारा राज्य दोनों तुम्हारे हाथ से दोनों जाएगा तो देवरानी को उठा के ले जाने में मुझे समय नहीं लगेगा।

राजपाल: नहीं ऐसा कुछ मत करना महाराज!

रतन: तुम मेरी शक्ति से परिचित हो, इसलिए मुझे कुछ भी ऐसा करने पर मजबूर न करो, जिसका पछतावा मुझे भी हो और तुम्हें भी हो!

राजपाल: नहीं, देवरानी आपको मिल जाएगी पर मेरा राज्य मेरा ही रहे।

रतन: चतुर हो अपनी पत्नी दे कर सत्ता में बने रह सकते हो तुम।

उसके बाद राजपाल और रतन सिंह फिर मदीरा पीते रहे।

इधर देवरानी अपने कक्ष में बैठ सोच रही थी ।

देवरानी: (मन में) अब ये पत्र जिसने भी चुराया है वह हमारी जान के दुश्मन ही होंगे!

देवरानी: कमला ओ कमला!

कमला भाग कर आती है।

देवरानी उसे पूरी बात बताती है।

कमला: महारानी मैंने तो, इन दिनों यहाँ किसी को आते हुए नहीं देखा और भला मैं क्या करूंगी उन प्रेम पत्रो को अपने पास रख कर।

देवरानी: कमला क्या करु मुझे समझ नहीं आ रहा । बलदेव को बुलाओ।

कमला तुरंत जा कर बलदेव को साथ ले कर आती है।

बलदेव: माँ क्या हुआ इतनी घबराहट क्यों है?

देवरानी: (मन में-मेरे राजा कैसे बताऊ की राजा रतन ने मेरी इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश की है, अभी प्रेम पत्र की गुत्थी तो सुलझे ये साड़ी मुसीबते एक साथ ही आनी थी।)

बलदेव: कहो माँ क्या सोच रही हो?

देवरानी: वह तुम्हारे लिखे हुए सब प्रेम पत्र गायब है।

बलदेव: क्या?

बलदेव अचंभित हो कर कहता है।

देवरानी: मुझे बहुत डर लग रहा है बलदेव! अब क्या होगा?

कमला: महारानी मेरा शक तो महारानी शुरष्टि पर है।

देवरानी रोते हुए आकर बलदेव के गले लग जाती है।

बलदेव: संयम रखो मां। हम डरेंगे नहीं तो कुछ नहीं होगा।

कमला: हिम्मत से काम लो तुम दोनों! ये अग्नि परीक्षा हो सकती है, इसे पार कर लो जीवन संवर जाएगा।

देवरानी: रोते हुए पर वह पत्र अगर शुरष्टि के हाथ कैसे लग गए वह हमें फाँसी के पंखे तक जरूर पहुँचाएगी और हम कुछ नहीं कर पाएंगे।

बलदेव: कमला तुम माँ को संभालो मैं कुछ उपाय सोचता हूँ।

बलदेव बाहर आकर उद्यान में इधर से उधर घूमने लगता है।

बलदेव (मन में: अब क्या करु? अब ऐसे मैं तो हम दोनों मारे जायेंगे। हमारे पास अब अपने आप को सही साबित करने का कोई रास्ता नहीं है।

तभी राजपाल बलदेव को देख उधर आता है ।

राजपाल: अरे पुत्र क्या हुआ इतने चिंतित क्यू हो?

बलदेव मुस्कुरा कर कहता है।

बलदेव: नहीं पिता जी कुछ नहीं! बस बद्री और श्याम चले गए तो उनकी याद आ रही है।

राजपाल: ओह तुम्हारी माँ कहा है?

बलदेव अपनी आखे बड़ी कर के कहता है ।

बलदेव: वो कक्ष में ही थी।

राजपाल: (मन में) अगर ये बात बलदेव को पता चली के में उसकी माँ को किसी और के साथ सोने के लिए मनाने जा रहा हूँ तो वह मेरे बारे में क्या सोचेगा?

ऐसे ही शाम हो जाती है, घाटराष्ट्र के महल में हर ओर दीयो की रोशनी जगमगा रही थी।

राजपाल देवरानी के कक्ष की ओर जा कर पुकारता है ।

"देवरानी क्या आप अन्दर हो?"

देवरानी: आइये महाराज!

राजपाल अन्दर आता है।

राजपाल: क्या हुआ देवरानी जब से आई आप अंदर ही हो।

देवरानी: (मन में) कही पत्र महाराज तक पहुच तो नहीं गया, जो आज इतने समय के बाद महाराज यहाँ आये हैं ।

ये सोच कर देवरानी कांपने लगती है।

राजपाल कुछ देर इधर उधर की बातें करने के बाद कहता है ।

राजपाल: देवरानी! आपसे एक महत्तवपूर्ण बात करनी थी ।

देवरानी: कहिये महाराज!

देवरानी कांप रही थी कि कहीं महाराज पत्र को लेकर उनसे कोई सवाल ना पूछ ले ।

राजपाल भी सोच रहे थे कि रतन सिंह के साथ रात बीतने वाली बात पर देवरानी पता नहीं क्या प्रतिकिर्या देगी।

राजपाल: बात ये है राजा रतन सिंह बहुत नीच व्यक्ति है।

देवरानी: हाँ, क्या हुआ महाराज?

राजपाल अपनी आँखों में झूठे आसु ला कर मासूमियत से कहता है ।

राजपाल: वो कहता है कि हमारे राज्य पर आक्रमण कर देगा और हम सबको बंदी बना लेगा अगर हमने उसकी बात नहीं मानी ।

देवरानी: कौन-सी बात है महाराज?

राजपाल: मुझे तो ये सोच कर भी बहुत लज्जा आ रही है। पर मैं तुमसे अनुरोध करना चाहूंगा की देवरानी तुम ही हो जो हम सब की जान को बचा सकती हो।

देवरानी: पर कैसे महाराज?

राजपाल अपना सर झुका कर नाटक करता है ।

राजपाल: देवरानी तुम्हें रतन सिंह पसंद करता है उसे तुम्हारे सतह एक रात गुजारनी है ।

ये सुनते हैं देवरानी की आंखों से आसु की गंगा बहने लगती है।

देवरानी: महाराज जब उसने आपसे ऐसी मांग की तो आपने उसे कुछ नहीं कहा?

राजपाल: वो...!

देवरानी: धिक्कार है आपके जैसे राजा पर, जिस से कोई उसकी पत्नी की एक रात मांगता है और वह ये चुप चाप सुन कर अपनी पत्नी को ऐसे नीच कर्म के लिए मनाने आजाता है... छी महाराज! मुझे घिन्न आती है आप पर! कोई और राजा होता तो अपनी पत्नी के लिए ऐसा सुन कर उसी समय उसका सर काट देता।

राजपाल: वह हमसे बहुत शक्तिशाली है।

देवरानी: आपको अपनी सत्ता, अपनी राजशाही प्यारी है ना? उसके बदले में अपनी पत्नी को क्या किसी और को सौप दोगे महाराज?

देवरानी अब फ़ुट-फ़ुट कर रोने लगती है।

देवरानी: आज तक तो आपने मुझे पत्नी का हक भी नहीं दिया और आज आपने ऐसी मांग कर के बता दिया कि आपने सात फेरे भी नाम के लिए लिये थे...मैंने आज तक उफ तक नहीं कि आज तक नहीं की । मैं आपकी पत्नी बन कर शर्मिंदा हूँ । ऐसे नामर्द राजा पर मुझे... ।

राजपाल: चुप करो! अब तुम बहुत ज़्यादा, ही बोल रही हो।

देवरानी: वाह उल्टा चोर कोतवाल को डांटे! अपने काले चरित्र को छुपाने के लिए अपनी पत्नी का सहारा ले रहे हो उसके शरीर का सौदा कर के अपने सत्ता बचा रहे हो ।

राजपाल: सुनो तुम! ऐसे नहीं मानने वाली, तो सुनो, हाँ मुझे मेरा राज्य चाहिए! मुझे नहीं चाहिए कि मेरे देश पर कोई और राज करे और अपनी राजशाही, अपनी संपत्ति, अपने महल के लिए, मैं तुम क्या तुम्हारी जैसी 10 देवरानीयो को रतन के नीचे लिटवा सकता हूँ ।

देवरानी: चुप हो जाओ राजपाल नहीं तो एक राजपूतनी की हाए! तुझे कहीं का नहीं छोड़ेगी और भले से नाम के ही हो, अगर तुम मेरे पति नहीं होते, तो मैं अभी तुम्हारे सर में धढ़ से अलग कर देती।

राजपाल: वीरता का प्रमाण किसी ओर को देना और दो दिन के अंदर अपने आप को तैयार करना, नहीं तो मुझे जबरदस्ती करनी पड़ेगी ।

ये कह कर गरजते हुए राजपाल बाहर चला जाता है।

देवरानी गुस्से में आकर अपने घर का सामान उठा कर फेकने लगती है। वह पूरे कक्ष के सामान को बिखेर देती है।

" कुत्ते राजपाल क्यू तुम मेरे जीवन में आये और सामने रखे फल के बर्तन को उठा कर आईने पर दे मरती है, जिससे आयना टूट जाता है और पूरे कक्ष में बिखर जाता है।

इतना शोर सुन कर कमला आती है।

कमला: महारानी क्या हुआ आपने क्या हाल बना दिया है अपने ही कक्ष का?

देवरानी रोते हुए जमीन पर बैठ जाती है।

"कमला मेरे जीवन का हाल भी ऐसा ही हो गया है इस कक्ष के बुरे हाल से क्या करूं?"

कमला देवरानी को पकड़ कर संभालती है ।

महारानी कांच के टुकड़े हैं नीचे, आप ऊपर पलंग पर आ जाओ और मुझे बताएँ आखिर हुआ क्या?

"कमला भला कौन अपनी पत्नी का सौदा करता है?"

देवरानी रोते हुए कहती है।

"महारानी कौन? क्या आप? रोये नहीं पूरी बात बताओ!"

"सुबह सुबह मेरी इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश राजा रतन सिंह ने की!"

"क्या कह रही हो महारानी!"

"हाँ कमला और अभी मेरे नाम के पति, मुझे कहने आए थे की तुम्हें रतन सिंह के साथ सोना है, तैयारी कर लो!"

"हे भगवान क्या कलियुग आ गया है उसे शर्म नहीं आएगी?"

"आपने बलदेव को क्यू नहीं बताई ये बात महारानी?"

"कमला तुम तो जानती हो, बलदेव कच्ची उम्र का है। जोश में आकर कुछ उल्टा सीधा कर दिया तो! और वैसे भी हमारे प्रेम पत्र भी गायब है, अगर बलदेव ने रतन सिंह के विरुद्ध कुछ किया तो कहीं शुरिष्टि या जिसके भी पास है वह इन्हे निकाल कर हमारे विरुद्ध इस्तेमाल करे तो क्या होगा?"

ये कह कहते-कहते देवरानी रोने लगती है।

"महारानी चुप करो! मेरी बहन ऐसे पति पर धिक्कार है । खुद वैश्यों के चक्क्र में पड़े रहे राजा रतन सिंह का वह बदला चुकाना चाह रहे हैं। मैं सब समझती हूँ।"

"कमला पूरे जीवन भर, मुझे सब ने दुख दिया है । अब मैं बलदेव के साथ कुछ सुख के पल जीना सीख रही हूँ तो ये सब हो रहा है ।"

"हिम्मत करो देवरानी और बलदेव को बताओ, अब तुम दोनों को मिल कर ये युद्ध लड़ना है।"

कमला कक्ष को साफ सफाई करने लगती है और देवरानी अपने जीवन को शुरू से सोच कर आंसू बहाने लगती है।

इधर सृष्टि अपने हाथ के पत्र छुपा के राजपाल से मिलने के लिए आती है।

सुरिष्टि मन में) आज महाराज को पत्र दे देती हूँ तो कल तक इन दोनों माँ बेटे को फांसी की सजा हो जाएगी और मस्कुराते हुए राजपाल की कक्ष के पास आकर कहती है।

श्रुष्टि: महाराज!

राजपाल और रतन सिंह अंदर बैठे बात कर रहे थे।

राजपाल: हाँ! महारानी श्रुष्टि कहिये, हम अभी महाराजा रतन जी के साथ हैं।

शुरष्टि: (मन में) ये रतन जब से आया है राजपाल को छोड़ता ही नहीं है ।

सुरिष्टि दरवाजे पर पड़े परदे के पीछे खड़ी हो कर कहती है ।

शुरष्टि: महाराज मुझे आप से कुछ आवश्यक बात करनी थी । जब आप दोनों की बात पूरी हो जाए आप मेरे कक्ष में आजाए!

और शुरष्टि वापस चली जाती है।

अन्दर बैठा रतन सिंह राजपाल से पूछता है ।

रतन: क्या हुआ भाई देवरानी मानी के नहीं?

राजपाल: अभी तक तो नहीं, पर मानेगी।

रतन: माननी ही चाहिए नहीं तो...!

राजपाल: अरे मित्र आप मदीरा पिजिए! महाराज आप चिंता ना करें, मैं आपके लिए कुछ भी कर सकता हूँ । मैं आप को देवरानी को भोगने का अवसरअवश्य दूंगा ।

रात का भोजन कर के सब सोने की तैयारी कर रहे थे।

बलदेव चुपके से अपनी माँ के कमरे में आता है।

बलदेव: मां आपने खाना खाया?

देवरानी: नहीं बस इच्छा नहीं थी।

बलदेव: मेरी रानी ऐसे तो कमज़ोर हो जाओगी।

देवरानी दौड़ के आकर बलदेव के गले लग जाती है।

बलदेव: देवरानी क्या हुआ? क्यू इतनी डरी हुई हो?

देवरानी रोने लगती है।

बलदेव: रो मत देवरानी!

देवरानी: बलदेव! आज सुबह सवेरे जब मैं बगीचे से टहल कर आ रही थी तो धूर्त राजा रतन सिंह ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझसे गंदी बात कही।

बलदेव देवरानी को छोड़ अपना तलवार उठा लेता है ।

बलदेव: उसे हरामी की इतनी हिम्मत! अभी उसका सर काट कर तुम्हारे कदमों में दाल देता हूँ ।

देवरानी रोते हुए कहती है ।

"तुम्हें मेरी कसम अभी तुम कुछ भी नहीं करोगे! मेरे लाल!"

"मां तुम कसम वापस लो, मुझे मजबूर ना करो, मैं राजा रतन सिंह का ऐसा हाल करूंगा की उसकी माँ भी उसे पहचान नहीं पाएगी।"

"बेटा समझो! अभी हमारे हालात ऐसे हैं कि हमारे पत्र को हमारे शत्रु हथियर बना कर हम पर पलटवार कर सकते हैं। संयम से काम लो बेटा और इस अपमान का बदला तुम जरूर लेना पर अभी नहीं!"

बलदेव तलवार को दूर फेंकता है और देवरानी को अपनी बाहों में भर लेता है ।

"जो मेरी रानी को आख भी उठा कर देखेगा मैं उसकी आँखे...!"

"पूरी बात तो सुनो मेरे राजा!"

"हाँ कहो मेरी जान।"

"वो राजपाल आया था और हमसे उसने कहा है कि रतन सिंह हमारे घटराष्ट्र पर कब्ज़ा कर लेगा अगर उसकी इच्छा पूरी ना हुई और उसने मुझे रतन के साथ एक रात गुज़ारने...!"

बलदेव अपना हाथ देवरानी के मुँह पर रख उसे रोक देता है ।

"बस एक और शब्द नहीं, देवरानी! हरमियो को सिर्फ स्त्री को भोगना आता है, उसका सम्मान करना नहीं आता।"

"हाँ मैं कैसी भाग्यहीन हूँ जो ऐसे मनुष्य से मुझे ब्याह दिया गया है ।"

"वो तुम्हारा पति नहीं है देवरानी! में हूँ तुम्हारा पति, वह कुत्ते राजपाल को राजशाही की लालसा और स्त्री और वैश्यो से रंगरेलियो का, सब का उत्तर मिलेगा, अब मैं इन्हें सिर्फ मारूंगा नहीं, तड़पा-तड़पा के मारूंगा!"

आधी रात में देवरानी और बलदेव एक दूसरे के बाहो में अपने दुख दर्द बांट रहे थे।

वही शुृष्टि महाराज को देवरानी और बलदेव के प्रेम पत्र दिखाने के प्रयास में लगी हुई थी।

राजा रतन सिंह अपनी प्यास देवरानी से कैसे बुझाएँ ये सोच रहा था।

अपने कक्ष में लेटा हुआ राजपाल अपनी पत्नी देवरानी रतन सिंह के साथ रात गुजारने के लिए को कैसे मनाएँ यही सोच रहा था।

जारी रहेगी

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