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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 78
बेवस प्रेमी अब क्या करे
आधी रात को महल में सब अपने-अपने सपने सजा रहे थे वही बलदेव और देवरानी एक दूसरे के बाहो के इस दुख भरी घडी में एक दूसरे का सहारा बने लिपटे हुए थे।
बलदेव (: मन में-मैं यानी के बलदेव सिंह घटराष्ट्र के होने वाला महाराज वचन लेता हूँ के इस राज्य की महारानी का ताज महारानी शुरिष्टि से ले कर इसके सही हकदार मेरे होने वाली पत्नी महारानी देवरानी के सर पर सजया जाएगा ।)
कुछ देर बाद बलदेव और देवरानी लेट जाते हैं । फिर देवरानी की आख लग जाती है। बलदेव उसके मासूम चेहरे को देख देवरानी का आखे बंद किये हुए आर्म करते हुए चेहरे के साथ उसका सर अपने हाथ पर रखे, गहरी सांसे ले कर आखे बंद करता है। बलदेव की आंखो में आग की लहर के साथ-साथ बदले की भावना और अपने पिता और राजा रतन सिंह के खिलाफ खिलाफत भड़क गई थी।
फिर बलदेव और देवरानी दोनों इकट्ठे सो जते है। सुबह सवेरे देवरानी की आख खुलती है और वह अपने आपको बलदेव के बाहो में पाकर खुश हो जाती है । उसे चूमती है और उठ कर रोज की तरह नहा धो कर तैयार हो कर पूजा करने लगती है।
देवरानी: (मन में-भगवान अब मैं क्या करु? मैं हम दोनों के प्रेम की सुचना जिस दिन भी महाराज तक पहुँचेगी वह दिन हम दोनों का आखिरी दिन होगा। हे प्रभु हमारी रक्षा करना!)
तभी देवरानी के मन में कुछ बात आती है।
देवरानी: (मन में-हाँ अगर हम घटराष्ट्र को छोड़ कर दूर चले जाएँ तो राजपाल हमारा चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएगा...पर ऐसा करने पर मेरे महारानी बनने का सपना जो मैंने बचपन से सजाया था उसका क्या होगा?...और बलदेव भी कभी अपनी पीठ दिखा कर और इन पापियो से बिना बदला लिया दूर जाएगा नहीं...पर अगर अपनी जान बचानी है अभी तो कुछ तो...!)
सुबह सवेरे कमला भी अपने गाँव से महल को आ जाती है और सबसे पहले देवरानी के कक्ष के पास आकर पुकारती है ।
"महारानी!"
देवरानी दरवाजा खोलती है।
"सुष! धीरे बोलो बलदेव की नींद ना टूट जाये।"
"महारानी क्या सोचा है आपने?"
"कमला मैंने निर्णय ले लिया है हम घटराष्ट्र छोड़ देंगे।"
"ये क्या महारानी? पर आप लोग कहा जाओगे?"
"संसार इतना बड़ा है हम कहीं भी गुजारा कर लेंगे, मैं नहीं चाहती बलदेव इन कुत्तो के चुंगल में फंसे और उसे कुछ हो जाए।"
"महारानी अगर आप ये सोच रही हो तो जल्दी से जल्दी निकल जाना ही बेहतर होगा, क्यू के आज तो किसी भी हाल में वह रतन तुमसे जबरदस्ती करने की कोशिश जरूर करेगा और वह शुरिष्टि भी वह पत्र महाराज को दे सकती है, तुम दोनों तरफ से मुसीबत में फसने वाली हो।"
"बहन ऐसा करती हूँ, मैं अभी निकल जाती हूँ। तुम सबको कह देना मैं सो रही हूँ और बलदेव जैसे ही उठेगा, तुम उसे भी नदी तट पर घोड़े के साथ भेज देना।"
"हान महारानी और वैसे भी बलदेव के साथ अगर तुम निकलोगी तो सब शक करेंगे ।"
"ठीक है मैं कुछ सामान और अपने भगवान की मूर्ति भी अपने साथ ले लेती हूँ। मेरी मदद करो!"
"पर बलदेव ज़िद्दी है।"
"कमला तुम उसे कुछ मत बताना, उसे बीएस इतना कहना मैंने उसे नदी के किनारे बुलाया है, फिर बलदेव को मैं मना लूंगी।, नहीं तो वह सृष्टि हम दोनों की जान लिए बिना मानेगी नहीं ।"
कमला देवरानी की मदद करती है । देवरानी एक चादर ओढ़ लेती है, जिससे जाते समय उसे कोई पहचान न सके और कुछ जरूरी समान की गठरी बाँध लेती है।
कमला: महारानी! आप पीछे के दरवाजे से निकल जाओ!
देवरानी: धन्यवाद मेरी बहन! मेरा हर कदम पर साथ देने के लिए तुम्हारा धन्यवाद!
देवरानी कमला के गले लग जाती है।
कमला: आप मेरी छोटी बहन हो, महारानी! आप अपना ख्याल रखना, कभी हिम्मत नहीं हारना!
कमला के आखो में आसु थे।
"ज़िंदा रहे तो ज़रूर मिलेंगे!"
कमला को देख देवरानी की भी आखे नाम हो जाती हैं।
"चलो कमला पता नहीं अब फिर कभी मिले ना मिले...!"
"ऐसी बात ना कहो महारानी बलदेव सब ठीक कर देगा! उसके रहते हुए तुम्हें कुछ नहीं हो सकता!"
देवरानी अपने पुस्तकों के बीच से कलम निकाल कर एक कोरे कागज़ पर कुछ लिखने लगती है और फ़िर वह कागज कमला को दे देती है ।
"महारानी ये आपने क्या लिख कर दिया"?
देवरानी: जब बलदेव उस कक्ष से बाहर निकल जाएगा तो ये मेरे तकिए पर रख देना, इसमें साफ़-साफ़ लिखा है कि मैं अपने प्रेमी बलदेव के साथ घर छोड़ रही हूँ... ये पत्र राजपाल के जख्म पर नमक की तरह काम करेगा ।
कमला: पर महारानी इस से तो पूरे महल और पूरे घटराष्ट्र में पता चल जाएगा कि तुमको तुम्हारा बेटा ही भगा के ले गया है ।
देवरानी मुस्कुराती है।
"अब मुझे इस समाज की कोई परवाह नहीं है ।"
ये कह कर देवरानी पीछे के रास्ते से अपनी चादर से अपने आधे मुँह को ढकेते हुए सुबह सवेरे नदी तट पर निकल जाती है।
कमला आ कर अपने काम में लग जाती है परन्तु उसका ध्यान बलदेव पर है कि वह कब उठेगा, करीब एक घंटे बाद बलदेव उठता है।
"माँ कहाँ हो?"
ये सुनते ही दौड़ कर कमला बलदेव के पास जाती है।
"युवराज आप उठ गए!"
"हाँ कमला में नहा धो कर तैयार भी हो गया, ये रतन सिंह कहाँ है। आज उसे कहीं दूर ले जा कर उसके पाप का दंड दूंगा।"
"युवराज आप जो चाहे कर लेना पर अभी माँ ने आपको घोड़ा ले कर अति शीघ्र नदी तट पर बुलाया है।"
बलदेव जानता था कि इस समय कभी भी उसका राज खुल सकता है तो वह अपने हाथ में तलवार लेता है और बाहर जाने लगता है।
बाहर उसे उसकी दादी जीविका मिलती है।
जीविका: अरे! बलदेव बेटा कहा जा रहे हो?
बलदेव: दादी। सीमा पर थोड़ा काम है ।
बलदेव बाहर निकल कर अपने घोड़े की तरफ बढ़ता है तो उसे वैध जी दातुन करते हुए नज़र आते हैं।
वैध: शुभ प्रभात युवराज!
बलदेव: शुभ प्रभात गुरु जी! मैं अभी आया थोड़ा काम से मुझे जाना है ।
बलदेव अपने घोड़े पर बैठ नदी के तट पर चल देता है इधर अपनी आँखों में आसु के लिए कमला बलदेव को जाते हुए देख रही थी। वह झट से अंदर आकर देवरानी का दिया हुआ पत्र उसके तकिये पर रख देती है।
फिर कमला चुप चाप अपने काम में लग जाती है।
धीरे-धीरे महल के सब लोग जगने लगते हैं और महारानी श्रुष्टि भी जगती है।
शुरष्टि: (मन में-ये महाराज भी कल रात आए ही नहीं, नहीं तो आज दोनों की फांसी की सजा हो गई होती! उफ, मेरा मन नहीं मान रहा। किस तरह जल्दी से ये पत्र महाराज को दू?)
थोड़ी देर में महाराज राजपाल उठते हैं ।
"अरे मुझे तो कल रात सृष्टि ने बुलाया था।"
राजपाल तैयार हो कर महारानी श्रुष्टि के कक्ष की और जाने लगता है।
कमला रसोई में काम कर रही थी और उसे दिखायी पड़ता है कि महाराज राजपाल श्रुष्टि के कक्ष की ओर जा रहे हैं।
राजपाल: महारानी श्रुष्टि!
शुरुष्टि नहा धो कर तैयार हो गयी थी।
"आइए महाराज!"
राजपाल अन्दर आता है।
"आज तो बहुत सुन्दर लग रही हो महारानी!"
"धन्यवाद महाराज!"
"आप कुछ कहने वाली थी ना महारानी?"
"महाराज आप के रहते हुए हम्मारे राज्य में कोई इतना घिनोना अपराध कैसे कर सकता हैं, जिससे हमारी पूरी देश दुनिया में बदनामी हो!"
"महारानी पहेलिया न बुझाओ, साफ़-साफ़ कहो क्या बात है?"
"मैं कहूंगी तो आपको झूठ लगेगा आप खुद ही देख लीजिये।"
सृष्टि अपने तकिये के नीचे से पत्र को उठा कर राजपाल को देती है।
"ये क्या है?"
"ये तुम्हारे लाडले पुत्र बलदेव और तुम्हारी पत्नी की प्रेम कहानी का कच्चा चिट्ठा है महाराज!"
"क्या बक रही हो तुम?"
"मैं ब नहीं रह रही आप खुद देखो!"
राजपाल तेजी से एक पत्र ले कर पढ़ने लगता है।
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प्रिया शेर सिंह उर्फ बलदेव जी.
आशा करती हूँ आप अभी मेरा पत्र देख मुस्कुरा रहे होगे, मैं आपको हमेशा ऐसे ही मुस्कुराता हुआ देखना चाहती हूँ और उसके लिए अगर मैं अपने प्राण भी त्यागने पड़े तो मुझे इसकी कोई परवा नहीं होगी।
बलदेव मैने हर एक बात कमला के द्वारा जान ली है ओर ऍम मुझे ज्ञात है कि तुम्हारे हर निर्णय की वजह सिर्फ मैं हूँ और मेरा दुख है, में ही पागल थी जो तुम्हें एक हवसी समझी थी और मैंने तुम्हे मेरे मान सम्मान की परवाह ना करने वाला समझ लिया क्यू के मुझे पाने के लिए तुम्हे शेर सिंह का भेस अपनाया था, जिसकी वजह से मुझे लगा तुम मेरे जिस्म को पाने के लिए किसी हद तक गिर सकते थे पर मैं गलत थी।
तुमने मुझे पाने के लिए कमला से मदद ली जिससे मुझे लगा तुम मेरी मान मर्यादा को दुनिया के सामने उजागर कर के मुझे बदनाम कर दोगे पर यहाँ भी मैं ही गलत थी।
कमला ने बताया कैसे तुमने मेरे लिए किसी शेर सिंह नामक व्यक्ति के चयन कर लिया था अगर मैं उस दिन घोड़े पर बैठ जाती थी तुम मुझे उसके पास छोड़ देने वाले थे।
अब मुझे पता लग गया है कि तुम मेरी ख़ुशी के लिए इतना बड़ा बलिदान देने जा रहे हो।
मैंने जीवन में किसी से पहले प्रेम नहीं किया । विवाह तो मेरे पिता जी ने जबरदस्त करवा दीया था ।
मेरा पहला प्रेम शेर सिंह ही है या शायद बलदेव तुम हो । मुझे नहीं पता था पर तुम दोनों के लिए मेरे दिल में प्रेम के जज्बात थे और अब जब ये बात ही ख़त्म हो जाती है के में किसका चुनाव करू।
मेरे दिल ने पहली बार किसी के सपने सजाये थे, वह था शेर सिंह ।और किसी ने अपनी प्यारी बातो और मेरा ख्याल रख कर मेरे दिल को लूभाया था तो वह था बलदेव।
बलदेव उर्फ शेर सिंह जी मेरा जीवन अब आपका नाम है । बस ये दिल कभी मत तोड़ना क्यू के एक औरत जब हर मर्यादा नियम या धर्म के विरुद्ध जा कर फैसला लेती है, तो उसके साथ कुछ गलत हो तो वह दोबारा अपने जीवन में वापस नहीं जा सकती।
आपकी देवरानी ।।
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राजपाल: अधर्मी देवरानी!
शुरुष्टि: महाराज आप! आपके बेटे की करतूत भी पढ़ें।
शुरुष्टि एक और पत्र निकल कर राजपाल को देती है।
राजपाल गुस्से से लाल हुए दूसरा पत्र पढ़ता है जो बलदेव ने अपनी माँ को लिखा था।
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प्रिया माँ
मैं आपका बलदेव हूँ और सदा आपका ही रहूंगा, अपनी माँ का बलदेव, जितना सम्मान कल करता था उतना आज भी करता हूँ और वह सम्मान कल भी उतना ही रहेगा चाहे प्रतिष्ठा कैसी भी हो।
मेरी माँ की मान मर्यादा इज्जत का रखवाला, जितना बचपन से था उतना ही आज भी हूँ और मैं कल भी नहीं बदलूंगा और हमेशा आपकी मान मर्यादा की रक्षा करूंगा।
मां अगर मेरे लिए कोई भी बात से आपके दिल को कोई तकलीफ पहुँची है तो मैं उसके लिए क्षमा मांगता हूँ । आप माफ़ कर दो मुझे!
जीवन में मैं कल तक बहुत अकेला महसूस करता था, जब तक मैं अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाया और जैसेही मेरी नजर आप पर गई तो मैं तब से आपके लिए पागल हो गया था, कहीं ना कहीं मेरा दिल तुमने उसी दिन चुरा लिया पर इस बात को मानने में मुझे समय लगा।
सिर्फ नहीं कि मुझे सिर्फ तुम्हारा दुख देख कर तुम्हारा दिल पसंद आया पर सही कहूँ तो तुम्हारी खूबसूरती भी बहुत बड़ी वजह थी, जिसने मेरे दिल को बेबस कर दिया अपनी ही माँ के प्यार में पड़ने के लिए।
मां मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हारे साथ अपनी सारी जिंदगी बिताना चाहता हूँ और मैं तुम्हारे साथ हूँ, जो तुमने जीवन में देखा है सब पर मरहम की तरह लगना चाहता हूँ, जिस से तुम्हारे दिल का दर्द मिट जाए और तुम जीवन का सही आनंद ले सको।
मैंने बहुत सोचा समाज के बारे में पर आख़िरकार मेरे दिल नहीं माना और मेरा दिल अपनी हसरते पूरा कर के रहेंगा और अब मेरी सबसे बड़ी हसरत है तुम्हें जीवन भर की ख़ुशी देना, उसके लिए मुझे ज़माने से लड़ने या मरने का गम नहीं होगा । अब बस जीने की ख़ुशी है।
बोलो जियोगी मेरे साथ?
तो आज रात भोजन के बाद नदी किनारे आजाना।
तुम्हारा प्रेमी,
बलदेव उर्फ़ शेर सिंह ।
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राजपाल गुस्से से लाल हो जात है और अपना तलवार निकाल कर..!
"सेनापति सोमनाआआथ!"
शुरष्टि: इन्हें ऐसे मत मारना सबके सामने फासी देना महाराज!
"तुम चुप करो! महारानी!"
सेनापति सोमनाथ महाराज की आवाज सुन कर दौड़ कर महल में आता है।
सेनापति: जी महाराज!
राजपाल: आज दो फांसी के फंदो का प्रबंध करो, आज ही फांसी दी जाएगी।
सेनापति: पर किसको महाराज?
राजपाल: आओ मेरे साथ!
राजपाल सबसे पहले बलदेव के कक्ष में जाता है पर उसे नहीं पा कर गुस्से में लाल पीला हो जाता है ।
शुरष्टि खड़ी हुई मुस्कुरा रही थी।
शुरष्टि: वो दोनों देवरानी के कक्ष में होंगे महाराज!
राजपाल और सोमनाथ देवरानी के कक्ष का दरवाज़ा जैसे ही खोलते हैंतो उसे वहा भी वह दोनों नहीं मिलते हैं।
राजपाल: सेनापति सैनिको को बुलाओ!
सोमनाथ को बुलाने पर बाहर खड़े सैनिक खूब तेजी से भाला लिए हुए महल में घुसने लगे।
देवरानी की कक्ष में सब सैनिक आ गए तो एक सैनिक ने पुछा।
"क्या हुआ सेनापति जी?"
राजपाल: सैनिकों महल में कहीं भी बलदेव और देवरानी हो तो उन्हें बुला कर लाओ ।
तभी सेनापति की नज़र तकिये पर रखे कागज़ पर जाती है ।
सेनापति: महाराज ये क्या है?
अब तक कमला और श्रुष्टि के साथ राधा भी देवरानी के कक्ष के द्वार पर खड़ी हो गई थी।
सेनापति आगे बढ़कर देवरानी के रखे पत्र को उठा कर देखता है।
सेनापति: महाराज इसपे तो रानी देवरानी का नाम है।
तूरंत सेनापति के हाथ से पत्र छीन कर राजपाल पढने लगता है।
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राजपाल उम्मीद करती हैं कि तुम इस समय मेरे और बलदेव की सच्चाई जान गए होगे और अब तुम मुझे जान से मरने की इच्छा से मेरे कक्ष में आए हो, जैसा दर्द तुम अभी महसूस कर रहे हो वैसे दर्द मैं जीवन भर महसूस करती रही हूँ । आखिरकार मुझे अपना प्रेमी बलदेव मुझे मिल गया और अब मैं उसके साथ घटराष्ट्र छोड़ कर जा रही हूँ।
थू है तुम्हारे जैसा पति पर जो अपनी पत्नी किसी अन्य को भेट देना चाह रहा था।
बलदेव की पत्नी.
देवरानी!!
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तभी एक सैनिक पूरा महल घूम कर आता है और कहता है
"महाराज पूरे महल में वह दोनों कहीं नहीं है, वह दोनों आस पास भी नहीं हैं ।"
राजपाल अपने नंगी तलवार को गुस्से से घुमाता है और उस सैनिक के सर को धढ़ से अलग कर देता है।
सेनापति जो राजपाल के पास खड़ा था और पत्र पढ़ कर उसे सब समझ आ गया था।
सेनापति: महाराज ये आपने क्या किया अपने ही सैनिक को आपने बेकार में मार दिया। उसका कोई कसूर नहीं था । आप अपने क्रोध पर काबू रखें।
राजपाल: ये कमिनी, अधर्मी, देवरानी अपने बेटे के साथ भाग गई।
ये सुन कर सृष्टि और राधा की आँखें बड़ी हो जाती हैं।
शुरुआत: (मन में: ये क्या लगता है कमिनी उसकी जान को खतरा है ये भाप गई थी और भाग गई.)
शुरुष्टि: सेनापति सुनो वह लोग सुबह महल में ही थे वे अभी उन्हें घटराष्ट पार कर के नहीं गए होंगे ।
ये सब शोर और महल में सैनिको को देख महारानी जीविका की माँ, राजपाल की माँ बाहर आ जाती है।
जीविका: क्या हुआ राजपाल ये सब क्या हो रहा है?
सृष्टि: और होगा क्या? आपका लाडला पोता आपकी बहू अपनी माँ देवरानी को ले कर भाग गया है ।
जीविका सुनते ही चौंक कर कहती है ।
"क्या श्रुष्टि...हे भगवान!"
"जी माँ जी बलदेव देवरानी को ले कर भाग गया और देवरानी ने पत्र भी छोड़ दिया है।"
जीविका अपना सर पर हाथ रख कर चक्कर खा कर गिर जाती है और बेहोश हो जाती है।
राजपाल और सृष्टि दौड़ कर आते हैं।
राजपाल: माँ!
श्रुष्टि: माँ जी!
राजपाल अपनी माँ को उठाने के लिए अपने खून से सनी तलवार को फेंकता है और वह सृष्टि और सेनापति की मदद से अपनी माँ को उसके कक्ष में ले जाता है।
सेनापति: सैनिको वैधजी को बुलाओ!
इधर बलदेव नदी तट पर पहुँच जाता है और अपनी माँ को सामान के साथ खड़ी पा कर चौंक जाता है ।
देवरानी: बेटा देर कर दी आने में।
"मां क्या हुआ आपने यहाँ क्यू बुलाया है?"
"बेटा मैंने फैसला कर लिया है अगर हमे उनसे-उनसे बचना है तो हमें अभी घटराष्ट्र छोड़ना होगा।"
"मां मैं कायर नहीं हूँ अगर हम समाज के खिलाफ गए हैं तो वह कौन से कहीं के पुजारी है। सब हमारा साथ देंगे। मैं सब से अकेला लड़ सकता हूँ।"
"मेरे बच्चे आज चलो इनसे हम फिर कभी और बदला ले लेंगे।"
"माँ पर हम जायेंगे कहा?"
इधर महल में..!
राजपाल: सेनापति घटराष्ट्र का चप्पा-चप्पा छान मारो और उन दोनों अधर्मियों को मेरे सामने लाओ । मैं इन्हें मृत्यु दंड की घोषणा कर्ता हूँ।
सेनापति: जो हुकम महाराज!
राजपाल: चलो सैनिको!
सेनापति: आप भी चल रहे हैं महाराज ।
राजपाल: हाँ! सैनिको को हर दिशा पूर्व पश्चिम दक्षिण की दिशा में भेजो और सैनिको हर गाव हर घर छाण मारो।
सेनापति राजपाल को कहे अनुसर सेना को हर दिशा में भेजता है ।
राजपाल: अब हम नदी के उस पार पारस की दिशा की ओर चलते हैं।
कुछ देर में राजपाल अपने सैंकड़ों सैनिको के साथ नदी तट पर पहुँच जाता है ।
महारानी अब भी बलदेव से बहस कर रही थी पर बलदेव मानने को तैयार नहीं था । आखिरकार देवरानी बलदेव के गले लग जाती है।
"बेटा तुम्हें तुम्हारे प्यार की कसम चलो हम दूर चले!"
"मा कसम क्यू. पर जाए कहा?"
सामने से राजपाल आ रहा था, उसे नदी तट पर बलदेव का घोड़ा दिखता है।
राजपाल: सैनिको! वह देखो बलदेव का घोड़ा । वह आसपास ही होंगे।
सेनापति: वो देखो उस वृक्ष के पास।
जैसे जैसे राजपाल करीब आता है। तो वह देखता है दोनों एक दूसरे के गले लगे हुए थे ।
राजपाल इशारे से सैनिकों को उन्हें घेरने के लिए कहता हैं।
बलदेव देवरानी को अपने लगा कर खड़ा था इस बात से परइ तरह से अंजान था कि उसका घेराव हो चुका है।
बलदेव: ठीक है चलते है मेरी रानी।
बलदेव आगे बढ़ कर अपने होठ देवरानी के गले पर रख उसे चूमता है और अपने हाथों को देवरानी की कमर पर रख सहलाता है।
ये दृश्य देख राजा राजपाल का धैर्य टूट जाता है।
राजपाल: आक्रमण!
ये सुनते हैं बलदेव और देवरानी एक दूसरे को छोडते हैं और चारो तरफ देखते है तो अपने आप को सैनिकों से घिरा हुआ पाते हैं और सहम जाते हैं...!
जारी रहेगी