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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 79
क्या करें, कहाँ जाएँ?
बलदेव और देवरानी अपने आप को सैनिकों से घिरे हुए पाते हैं तो देवरानी डर के बलदेव से चिपक जाती है।
राजपाल: पकड़ लो इन अधर्मियो को।
दो सैनिक बलदेव की ओर तेजी से घोड़े को दौड़ाते हैं।
देवरानी इशारे से बलदेव को भागने के लिए कहती है, बलदेव नदी के तट पर रेत के अंदर अपना एक पैर घुसाता है और एक झटके से सैनिकों के ऊपर दे मारता है जिस से पूरे आकाश में धूल-धूल हो जाती है और सैनिकों की आख में धूल जाने से वह कुछ देख नहीं पाते।
मौक़े का फ़ायदा उठा कर बलदेव जल्दी से देवरानी को उसके समान सहित गोद में उठा के घोड़े पर बिठाता है और फिर खुद छलांग मार के घोड़े पर चढ़ कर घोड़े तो तेज भगाता है।
जब तक धुल छट पाती और सैनिक को कुछ सूझता बलदेव और देवरानी घोड़े से निकल जाते हैं।
राजपाल: वह भाग रहे हैं पश्चिम की दिशा चलो।
सेनापति और सैनिक बलदेव और देवरानी के पीछे अपना घोड़ा भगाने लगते हैं। कुछ दूरी पर बलदेव देवरानी को अपने गोद में लिए घोड़े को तेजी से भगा रहा था।
राजपाल: रुक जाओ नहीं तो तुम दोनों के लिए अच्छा नहीं होगा।
देवरानी: रुकना नहीं बेटा ले चलो मुझे ये सब से दूर, खास कर ये राजपाल से दूर ले चलो!
बलदेव घोड़े को भागते-भागते जंगल की ओर मोड लेता है और उसके पीछे-पीछे राजपाल भी अपने घोड़े को जंगल की ओर मोड लेता है।
बलदेव घने जंगल में घोड़े को झाड़ियों के अंदर कभी दाये मोड़ता तो कभी बाय मोड़ता है और राजपाल भी उनका पीछा करना छोड़ नहीं रहा था...बलदेव के आगे एक छोटा-सा पहाड़ आता है वह घोड़े के लगाम को खींचता है, घोड़ा समझता हुए हिनहिनाता हुआ पहाड़ के ऊपर तेजी से चढ़ने लगता है और फिर-फिर तेजी से दूसरी तरफ उतरता है पर राजपाल और सेनापति का घोड़ा बहुत धीमी गति से चढ़ता है और जब वह पहाड़ पर पहुँचता है तब तक बलदेव घने जंगल में घोड़े को घुसा देता है और उनकी नजरो से ओझल हो जाता है ।
राजपाल: ये हमारे हाथ से फिर निकल गए।
सेनापति: चिंता ना कीजिए महाराज, मैं इन्हें सीमा से बाहर जाने नहीं दूंगा।
राजपाल: ठीक है तुम सैनिकों को ये खबर पहुँचा दो।
सेनापति: ठीक है महाराज ।
राजपाल: चलो अब वापस महल चलें!
राजपाल और सेनापति वापस महल की ओर चल देते हैं।
महल पहुच कर राजपाल देखता है कि अब तक उसकी माँ जीविका होश में आ गई है और उसकी आंखो में आसु थे और लगभाग घर का हर व्यक्ति आज उदास था।
जीविका: आ गया बेटा हम सब तेरी ही राह देख रहे थे।
राजपाल अपने सर का पगड़ी को फेकते हुए बैठ जाता हैं।
राजपाल: तुम सब के घर में रहते हुए ऐसा कैसे हो गया । मुझे इस बात की खबर क्यू नहीं मिली... कैसे मेरे नाक के नीचे ये दोनों ऐसा करते रहे और आज बलदेव अपनी माँ को भगा ले गया पर मुझे भनक तक नहीं हुई क्यू? आआआख़िर क्यू? मुझे उत्तर चाहिए इसका।
शुरष्टि: महाराज जैसे ही मुझे शक हुआ इनपर और मैंने उनके कक्ष की तलाशी ली और मुझे ये प्रेम पत्र मिले ।
राजपाल: माँ क्या आपको भी इन दोनों के लक्षण से नहीं लगा की, ये दोनों क्या गुल खिला रहे हैं?
जीविका: बेटा तुम इतनी चिंता मत करो, वह अधर्मी थे, । वह तुम्हारे लायक ही नहीं थी । देवरानी जैसी भ्रष्ट महिला और बलदेव जैसा अधर्मी पुत्र मैंने नहीं देखा ।
राजपाल: चिंता कैसे ना करू मां! आज पूरे महल में ये बात सबको पता चल गई है।
उतने में राजा रतन सिंह अपनी कक्ष से निकलता है ।
रतन: राजपाल तुम सही में नामर्द ही निकले! तुम्हारे सामने से तुम्हारी रानी को, तुम्हारी पत्नी को कोई भगा के ले गया और तुम कुछ नहीं कर पाये।
राजपाल: हमने कोशिश की उन्हें पकड़ने की लेकिन...!
रतन: लेकिन पकड़ तो नहीं पाए ना और उनके प्रेम पूजा तुम्हें इतने दिनों से नहीं दिखी, अब हाथ मल के कुछ नहीं होगा । एक स्त्री को संभाल नहीं सके तुम!
राजपाल रतन सिंह के गुस्से को समझ कर चुप था।
रतन: मैं ऐसे अधर्मी परिवार के साथ एक क्षण नहीं रुक सकता और रही बात मेरी ख्वाहिश की वह मैं जानता हूँ की मुझे कैसे पूरी करनी है।
राजपाल: अरे रुको तो अभी कहा जाओगे?
रतन: अपने राज्य राजपाल। बस तुम सब अपना ख्याल रखो और उन्हें ढूँढ सको तो ढूँढ लो और अपनी रानी को अपने बेटे के चुंगल से छूडा लो ।
रतन सिंह ये कह कर बाहर आता है और अपने घोड़े पर सवार हो कुबेरी की ओर चल देता है।
राजपाल अपने आखे बंद कर कहता है ।
राजपाल: ये माँ बेते की वजह से मुझे कितनी बेइज्जती सहनी पड़ रही है।
राजपाल: कमला राधा वैध जी क्या आप लोगों को भी इन दोनों में जो कुछ चल रहा था वह महसूस नहीं हुआ?
सब ने नकार दिया और कहा उनको इस बात की कोई खबर नहीं थी।
राजपाल: कमला तुम सच-सच बताओ, मुझे क्यू लगता है तुम्हें सब पता था?
कमला: नहीं महाराज मुझे अगर ऐसे अधर्म होने की जरा-सी भी भनक लगती, तो सबसे पहले मैं ही उन्हें घर में बेइज्जत कर देती ।
राजपाल: जाओ तुम सब अपने-अपने कक्ष में । मुझे अकेला छोड़ दो!
सब जाने लगते हैं और फिर राजपाल अपने कक्ष में जा कर लेट जाता है।
थोड़ी देर में शुरष्टि आ जाती है ।
श्रुष्टि: महाराज!
राजपाल: हाँ! महारानी!
शुरष्टि: आप इनके बारे में सोच कर अपनी सेहत खराब ना करे। इन दोनों ने जो किया उन्हें उसका फल अवश्य मिलेगा।
राजपाल के पास बैठ कर सृष्टि राजपाल का सर दबाने लगती है।
इधर बलदेव और देवरानी जंगल को चीरते हुए तेजी से घटराष्ट्र की सीमा तक पहुँच जाते हैं । बलदेव अपने तलवार निकाल कर घोड़ा तेजी से भगाने लगता है।
सीमा पर सैनिक कैसे ही बलदेव का घोडा देखता तो वह इनका पीछा करने लगता है।
तभी बलदेव अपना तलवार ज़ोर से गोल-गोल घुमा कर कहता है ।
"सैनिको हमें जाने दो, नहीं तो तुम सब जानते हो ये तलवार, एक ही साथ तुम सब का खून पी सकती है।"
बलदेव की आंखो में जलते अंगारे देख सैनिक पीछे हट जाते हैं और बलदेव घोड़े को आगे बढ़ाते हुए घटराष्ट्र की सीमा को पार कर लेता हैं।
बलदेव अब घोड़े को धीरे करते हुए रोक कर कहता है ।
बलदेव: अब कहा जाये हम माँ?
देवरानी: हम भैया से बात करेंगे।
बलदेव: पर मामा जी क्या हमारा रिश्ता स्वीकार करेंगे?
देवरानी: हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है। सेनापति और राजपाल हमें कहीं ना कहीं से ढूँढ निकालेंगे और राजा रतन भी हमे ढूँढने का प्रयास अवश्य करेगा ।
बलदेव: पर माँ?
देवरानी: जान प्रेम किया है तो अब परीक्षा भी देनी पड़ेगी । बलदेव अब समय आ गया है, तुम मेरा हाथ मांगो मेरे भैया से।
बलदेव: अगर नहीं माने तो!
देवरानी: तो भी मैं तुम्हारी ही रहूंगी।
दोनों पारस की ओर घोड़े को मोड़ते हैं।
थोड़ी दूर जाने के बाद देवरानी को दूर एक बाज़ार नज़र आता है और अब लगभाग रात हो गई थी।
देवरानी: मुझे भूख लग गई सुबह से कुछ नहीं खाया है, तुमने। तुम भी चलो कुछ खा ले!
दोनों बाज़ार में जा कर लड्डू वाले के पास जा कर घोड़े से उतरते हैं, देवरानी सावधानी से अपनी चादर को अपने मुंह पर ओढ़ लेती है, जिससे कोई उसे पहचान ना ले ।
बलदेव: भैया लड्डू कैसे दिये?
लड्डूवाला: भैया 30 सिक्के के एक सेर है।
बलदेव सिक्के निकाल के देता है।
लड्डूवाला: अरे ये तो घटराष्ट्र के सिक्के हैं।
बलदेव: हा!
लड्डुवाला: आप दोनों घटराष्ट्र से हो क्या?
बलदेव: नहीं हम कुबेरी से हैं हम राजा रतन सिंह के राज्य से सैनिक हैं।
लड्डूवाला: और फिर ये आपकी पत्नी हैं ।
बलदेव: जी हाँ मेरी पत्नी हैं।
लड्डूवाला: लगता है इनकी तबीयत ठीक नहीं और इन्हे कुछ ज्यादा, ठंड लग रही है।
बलदेव: आप पहले हमें लड्डू दो।
लड्डूवाला: काहे छुपा रहे हो...घटराष्ट्र से याद आया, आज एक सैनिक आया था वहाँ आज एक अद्भुत घटना घटी है।
बलदेव: क्या घटना घटी है? "
देवरानी भी अब ध्यान से लड्डू वाले हलवाई की बात सुनने लगी।
लड्डूवाला हंसता हुआ कहता है।
"भैया कलियुग आ गया है, घाटराष्ट्र की रानी और उनके पुत्र का प्रेम प्रसंग चल रहा है और आज राजा राजपाल का पुत्र अपनी माँ या फिर ये कहिए राजपाल की छोटी रानी को भगा ले गया।"
ये सुनते हैं देवरानी डर से कांप जाती है और अचरज से लड्डूवाले को देखने लगती है।
बलदेव: भैया हमें क्या पता इस बारे में, मैं खुद छुट्टी पर हूँ... क्या आपने उस युवराज को देखा है जो अपनी माँ को ले के भाग गया है ।
लड्डूवाला: देखा तो नहीं है और हमे देखना भी नहीं है ऐसे अधर्मी व्यक्ति को...आप ये सब छोडीए! आप लड्डू खाएँ!
बलदेव अपने हाथ में लड्डू ले और देवरानी के साथ एक वृक्ष के नीचे बैठकर लड्डू खाने लगा । वही पर बैठे कुछ लोग आपस में बाते कर रहे थे । सब के मुंह पर सिर्फ बलदेव या देवरानी की बात थी।
बलदेव और देवरानी वहा से जल्दी निकलते हैं और उन्हें वहाँ रात में रुकना भी ठीक नहीं लगता फिर वह पारस की ओर तेजी से घोड़ा भगाने लगता हैं।
रात भर घोड़ा भगाने के बाद देवरानी नींद के मारे थक जाती है । बलदेव के गोद में वह सो जाती है और बलदेव बस घोड़े के लगाम को संभालते हुए पारस की ओर बढ़ रहा था।
... सुबह घटराष्ट्र महल में...
राजपाल अपनी तलवार लगा कर पूरी तयारी ऐसे कर के जैसे युद्ध में जा रहा हो महल से बाहर निकलता है।
राजपाल: सेनापति सोमनाथ!
सेनापति: जी महाराज!
राजपाल: उनका कुछ पता चला?
तभी महल से सृष्टि बाहर आती है।
शुरष्टि: महाराज आप ने कल से कुछ नहीं खाया है । कुछ खा लीजिये ।
राजपाल: मैं तब तक नहीं खाऊंगा जब तक वह दोनों मेरे सामने नहीं आ जाते ।
राजपाल: सेनापति तुम हर पड़ोसी राज्य में ये खबर फेला दो की उन दोनों को पकड़ने में जो हमारी मदद करेगा हम उसे मुंह माँगा इनाम देंगे।
सेनापति: पर महाराज ऐसे तो ये-ये बात आग की तरह पूरी दुनिया में फैल जाएगी।
राजपाल: मुझे कुछ नहीं पता, मुझे बलदेव और देवरानी चाहिए, जिंदा या मुर्दा और अभी घटरास्ट्र के जितने भी गाँव हैं और उनके जितने भी चौधरी हैं इन गाँवों में, उन सबको बुला कर कह दो हमने इन दोनों को फांसी की सजा सुना दी है । इन दोनों को पता चलना चाहिए की दोनों कितना बड़ा पाप किया है।
सेनापति: जो आज्ञा महाराज 1
सेनापति हर गाँव के मुखिया और चौधरीयो को अपात बैठक में बुलाता है, उन्हें सारी बात बताते हुए कहते हैं महाराज ने अपनी छोटी रानी और बेटे को मौत की सजा सुना दी है । सब हैरान और परेशान थे ये सुन कर, सब आपस में इतनी बुरी हरकत पर बलदेव और देवरानी को कोस रहे थे ।
शाम हो जाती है और बलदेव और देवरानी पारस पाहुच ही जाते हैं। महल के बाहर सैनिक उन्हें देख समझ जाते हैं की ये तो वही लोग हैं जो कुछ दिन पहले मेहमान बन के आए थे।
बलदेव और देवरानी पारस के महल पहुच कर सैनिक से पूछते हैं कि देवराज कहा है । फिर सीधा देवराज के पास पहुच जाते हैं जो उस समय अपने कक्ष में थे।
देवराज: अरे मेरी बहन देवरानी तुम! अरे भांजे! तुम दोनों बहुत जल्दी आ गए और ये क्या हाल बना लिया है तुम दोनों ने।
बलदेव और देवरानी देवराज के चरण छू उसे प्रणाम करते है।
देवरानी: भैया आप मेरे पिता समान हैं। आप से एक अनुरोध है।
देवराज: कहो मेरी बच्ची!
बलदेव: बात ये है मामा जी । की हमें देश निकाला का हुक्म दिया गया है।
देवराज: किसने?
देवरानी: राजपाल ने।
देवराज अचंभित हो कर पूछता है ।
देवराज: पर ऐसा क्या अपराध किया तुमने?
बलदेव: अपराध? प्रेम का!
देवराज: मुझे समझ नहीं आया।
कहानी जारी रहेगी