महारानी देवरानी 080

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संकट में प्रेमी
2.4k words
3.5
12
00

Part 80 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 80

संकट में प्रेमी

देवराज: मुझे समझ नहीं आया!

बलदेव: मामा जी मैंने अपराध क्या है अपनी माँ से प्रेम कर के!

देवराज असमंजस से देखता है!

देवराज: तुम्हारा अर्थ क्या है? माँ से प्रेम करना कोसे अपराध हो गया?

बलदेव: मामा जी! मैं आपकी बहन देवरानी का हाथ आपसे मांगता हूँ। हम दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं और मैं जीवन भर आपकी बहन की रक्षा करूंगा।

देवराज: क्या बक रहे हो बलदेव?

देवरानी: ये सही कह रहा है भैया! हम दोनों एक दूसरे के बिना जी नहीं सकते।

बलदेव: मांमा मैं आपकी बहन देवरानी से-से विवाह करना चाहता हूँ ।उनको अपनी माँ से अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ। मैं इनसे दूरी अब और नहीं सह सकता।

देवराज ये सुन कर आग बबूला हो जाता है और इससे पहले वह कुछ या सुने एक "थप्पड़" बलदेव के गाल पर रख देता है।

देवराज: हरामजादे!

बलदेव अपने गाल पर हाथ रख कहता है ।

बलदेव: इस थप्पड़ की कीमत आपको चुकानी पड़ सकती है मामा!

ये सब सुनते ही हुरिया वहाँ आ जाती हैं!

देवराज: निकल जा यहाँ से अधर्मियो!

देवरानी: आपके जीजा राजपाक ने मेरे शरीर का सौदा किया है भैया । आपके जीजा राजपाल ने मुझे जीवन भर सताया है ओर अब वह हमें मारना चाहता है।

ये कह कर देवरानी रोने लगती है।

देवराज: मुझे तुम से घृणा हो रही है देवरानी! तुम्हारी जैसी बहन मर जाती तो अच्छा होता । तुम जो अपना मुंह अपने बेटे से काला करवा रही है और तुम बेटे के साथ अपना ससुराल छोड़ यहाँ भाग आई हो ।

देवरानी: भैया!

देवराज: अगर तुम मेरी बहन ना होती, जिसे मैंने बचपन से अपनी बेटी की तरह पाला है तो भगवान कसम आज तुम दोनों की लाशें बिछा देता ।

बलदेव: चलो माँ हमारी यहाँ कोई नहीं सुनने वाला।

देवरानी: तो भैया क्या आप ये गवारा हैं कि वह राजपाल आपकी बहन को बेच दे? पर बहन ने अगर अपने बेटे से प्रेम कर लीया तो ये आपके लिए अधर्म हो गया...भैया अगर ये अधर्म है तो हाँ मैं अधर्मी हूँ और आप सब अपने ऐसे धर्म पर चलते रहें। ।

बलदेव देवरानी को सहारा देते हुए बाहर ले कर आने लगता है । तो देखता है उनके रास्ते में हुरिया खड़ी थी।

हुरिया: क्या हुआ?

देवरानी और बलदेव कुछ न बोल कर चुप चाप महल से बाहर निकल कर अपने घोड़े पर सवार हो कर चले जाते हैं।

देवराज: सुल्तान ने तो नहीं सुना ये सब?

हुरिया: वह सो रहे हैं और शमशेरा शिकार पर गया है तुम्हें और उन्हें इस तरह नहीं करना चाहिए था।

देवराज शर्म के मारे अपना सर पकड़ के बैठ जाता है।

देवराज: और क्या करता मल्लिका ए जहाँ! ऐसे अधर्मियों को शाबाशी देता? इन्हें मेरा नाक काट दी ।

हुरिया: अरे तुम टूटो मत देवराज जी!

देवराज को वहीँ छोड़ कर हुरिया बाहर आ जाती है।

हुरिया: (मन में) क्या करु देवरानी तो बात भी कर रही पर वह मुसीबत में है कैसे उनकी मदद करु?

बलदेव घोड़ा तेजी से भगाते हुए पारस से निकल रहा था।

बलदेव: माँ तुम चुप हो जाओ रोने से कुछ नहीं होगा और ये भूल जाओ कि हमारी कोई मदद करेगा या हमें शरण देगा।

देवरानी: तुमने ठीक कहा बलदेव अब हमें खुद ही लड़ना होगा।

बलदेव: ये हुई ना बात । वैसे भी मैं हूँ ना तुम्हारे साथ!

देवरानी: मुझे कुछ और नहीं चाहिए. बस आप हमेशा मुझसे ऐसे ही प्रेम करते रहना ।

बलदेव: देवरानी अब हमें घटराष्ट्र में ही जगह बनानी होगी और वैसे भी तुम्हारा भी तो सपना था महारानी बनने का।

देवरानी: हाँ! लेकिन क्या ये मुमकिन है?

बलदेव: सब मुमकिन है मेरी जान!

देवरानी मुस्कुरा देती है और दोनों तेजी से पारस से निकल रहे थे।

तभी सामने से एक रस्सी बलदेव की ओर आती है जो एक फंदा था, उसे देखते ही बलदेव अपना सर हटा कर बचता है और देवरानी पीछे मुड़ कर देखती है तो कुछ घुड़सावर उनका पीछे कर रहे थे।

वही जंगल में शमशेरा शिकार कर रहा था और वह देखता है कि कुछ घुड़सावर किसी का पीछा कर रहे है। शमशेरा ने अभी जंगल में अपने घोड़े को दूर बाँधा हुआ था।

शमशेरा: देखु तो कौन है ये लोग?

शमशेरा अपने घोड़े की ओर जाता है।

इधर बलदेव के ऊपर फिर से दोनों तरफ से घुड़सावर रस्सी फेंकते हैं और बलदेव को कुछ देर में रस्सी से लपेट लिया जाता है। फिर वह घुड़सवार बलदेव को रस्सी से खींच कर घोड़े से गिरा देते हैं।

बलदेव; देवरानी तुम सुरक्षित स्थान पर चली जाओ मेरी चिंता न करो।

देवरानी घोड़े को भगाने लगती है और कुछ दूर भगाते हुए वह पीछे मुड़कर देखती है । अब घुड़सावर नहीं थे तभी वह देखती है उसके सामने अपने हाथों में तलवार के लिए कुछ नकाबपोश खड़े थे।

"ए उतरो घोड़े से और चुप चाप हमारे साथ चलो । चलाकी करने की कोशिश की तो बलदेव का बुरा हाल कर देंगे हम। वह अब हमारे चुंगल में हैं।"

"एक मर्द को तुम सब ने मिल के धोखे से पकड़ा है । ध्यान रखना बलदेव शेर है। कहीं कुछ उल्टा ना पड़ जाये।"

देवरानी ये कह कर घोड़े से उतरती है ।

एक सैनिक देवरानी का हाथ पकड़ता है ।

देवरानी: मेरा हाथ मत छूना एक राजपूतनी को छूने की कीमत जानता हो ना?

वो नकाब पॉश जो देवरानी को बाँधने आया था पीछे हट जाता है।

देवरानी: चलो मैं तुम के साथ जाने को तैयार हूँ, बलदेव मेरी जान । है वह तुम्हारे साथ है उसके लिए मैं भी खुशी-खुशी मर सकती हूँ।

तभी कुछ और सैनिक और नकाबपोश वहा पर बलदेव को चारो ओर से मोटी तीरस्सी से जकड़े ले आते हैं। एक सैनिक उसको अपने साथ घोड़े पर बैठा लेता है।

सैनिक: ठीक है हम तुम्हें नहीं छूयेगे। चलो आ जाऔ घोड़े पे।

देवरानी: मैं तुझ जैसा तुच्छ के साथ सात कर घोड़े पर नहीं बैठूंगी । तुमने अपनी सूरत देखी है आयने में!

ये सुन कर अन्य सैनिक भी हंसने लगते हैं।

देवरानी: मुझे एक घोड़ा दो।

देवरानी को एक घोड़ा दिया जाता है और वह सब चल देते हैं।

इधर शमशेरा अपने घोड़े के पास पहुँचता है और जब तक वह इनके पास आता है ये लोग वहाँ से निकल जाते हैं।

शमशेरा: ये लोग तो बहुत जल्दी गायब हो गए । कौन थे ये लोग?

शमशेरा अपना घोड़ा पारस की ओर घुमा कर अपने महल की तरफ जाता है।

शमशेरा: सलाम अम्मी!

हुरिया: सलाम बेटा, बहुत देर तक आने में, जंगल में इतने अँधेरे में शिकार मत किया करो। मुझे तुम्हारे लिए डर लगा रहता है।

शमशेरा: अम्मी जान ऐसी कोई चीज ही नहीं बनी जो शमशेरा को नुक्सान पहुँचा दे।

हुरिया: हाँ बड़ी बाते ना करो। जाओ मुंह हाथ धो लो मेरे लिए तुम्हारे लिए कबाब बनवाए हैं।

शमशेरा: आज तो मजा आएगा!

शमशेरा: मां आज जंगल के रास्ते कुछ लोगों को देखा जो किसी का पीछा कर रहे थे और वह पहनावे से पारसी नहीं लग रहे थे ।

हुरिया: (मन में) कही वह बलदेव या देवरानी तो नहीं और उनके दुश्मन उनका पीछा करते हुए यहाँ तक तो नहीं आ गए, पर शमशेरा को कैसे बताउन, कि वह दोनों आपस में प्यार करते हैं। नहीं। नहीं मैं ।देवराज से बात करती हूँ।

शमशेरा माँ को निहार रहा था।

शमशेरा: कितनी ख़ूबसूरत हो ।

हुरिया होश में आते हुए चौंक कर कहती है ।

हुरिया: क्या शमशेरा?

शमशेरा: वो माँ! मैं ये नये कालीन की बात कर रहा था।

हुरिया: अच्छा बेटा और मुस्कुरा कर बावर्ची खाने की तरफ जाने लगती है।

शमशेरा उसे खा जाने वाली नज़र से देख रहा था और उसकी मटकती हुई गांड हिजाब के ऊपर से कमाल ढा रही थी ।

घटराष्ट्र

सेनापति: महाराज अब तक हमारे सैनिक उनका पीछा करते हुए पारस की सीमा तक पहुँच गए होंगे ।

राजपाल: इन अधर्मियो की मदद देवराज कभी नहीं करेगा। वह दोनों ये सोच कर पारस गए है कि जा कर पारस में बस जाएंगे । पर ऐसा होगा नहीं! हाहाहा!

सेनापति: हाँ हो सकता है।

राजपाल: मुझे हंसी आती है और क्रोध भी आ रहा है। भला किसी व्यक्ति के पास उसका भांजा जाए और ये कहे कि मुझे अपनी माँ चाहिए, मैं उसे भगा के ले आया हूँ। तो क्या वह व्यक्ति अपने भांजे और बहन का साथ देंगा?

सेनापति: (मन में मैं) येमहाराज पागल तो नहीं हो गए है, गुस्सा हो रहा है और हस रहा है । समझ नहीं आ रहा है। जब से इसकी पत्नी भागी है साला पागल हो गया है।

राजपाल: बोलो सेनापति?

राजपाल मदीरा पीते हुए पूछता है।

सेनापति: नहीं महाराज कोई भी व्यक्ति अपनी बहन और भांजे की जोड़ी को सहमती नहीं दे सकता।

राजपाल: हम उन दोनों की चमड़ी उधेड़ देंगे। बस वह एक बार हमारे हाथ लग जायें।

सेनापति: हमारे सैनिक उन्हें जरूर पकड़ लेंगे। वह दिन रात काम कर रहे हैं। आप सो जाएँ अब रात हो गई है। मैं भी जाता हूँ।

सेनापति राजपाल को उसके कक्ष में छोड़ कर बाहर जाने लगता है। तभी रानी श्रुष्टि अपने कक्ष का द्वार खोल कर बाहर आती है।

सोमनाथ: अरे इतनी रात में कहा जा रही महारानी?

शुरष्टि: तुमसे मतलब और मैं अपने घर में हूँ । अपने महल में हूँ। बाहर नहीं जा रही । अभी तुम बाहर म जाओ. अभी!

सोमनाथ: नहीं, इतनी बन ठन कर निकली हो, महाराज के पास तो नहीं...!

और सोमनाथ शुरष्टि को आँख मारता है।

शुरुआत: कमीने तुम्हे अपनी नीच जाति की नीच हरकत दिखा ही दी।

सोमनाथ को गुस्सा आजाता है और वह रानी श्रुष्टि को पकड़ कर उसके ही कमरे में घुस जाता है, फिर फटाक से दरवाजा बंद कर महारानी श्रुष्टि को दीवार से लगा कर उसके बदन से चिपक जाता है।

शुरुष्टि: छोड मुझे कमीने कुत्ते!

सोमनाथ सब अनसुना क्या हुए श्रुष्टि की गर्दन पर चूमते हुए अपना-अपना हाथ घाघरा के ऊपर महारानी की गांड को मसल कर अपना लंड श्रुष्टि की चूत पर रगड़ने लगता हैं।

शुरुष्टि: कमीने छोड़ नहीं तो, तेरा सारा कलम करवा दूंगी।

सोमनाथ झट से अपना धोती नीचे करता है और अपना लौड़ा अपने हाथ में ले कर हिलाता है और सृष्टि का एक हाथ पकड़ कर अपना लौड़ा उसके हाथ में देता है।

शुरुष्टि: नीच!

सोमनाथ: ये नीच का लोहे जैसा लौड़ा है। ऐसे लौड़े से आज तक किसी राजा ने तुम्हें चोदा नहीं होगा।

ये बात सुन कर शुरुष्टि शर्मा जाती है।

सोमनाथ आगे बढ़ कर ब्लाउज़ के ऊपर से उसके दूध पकड़ कर मसलते हुए कहता है ।

"अब देखिये महारानी कैसे ये नीच का लौड़ा आपकी चूत में घुस कर आपको कितना मजा देता है।"

शुरष्टि अपना हाथ लंड से थिरक कर एक झटके के साथ छोड़ देती है। सोमनाथ अपना हाथ नीचे ले जा कर उसके घाघरे को उठाता है फिर शुरष्टि के घाघरे को कमर तक उठा के घाघरे के कोने को अपने मुंह में दांत से पकड़ लेता है और अपने दोनों हाथो से शुरष्टि को उठाता है अपने लौड़े की तरफ खींच कर एक पैर को उठा कर अपने लंड को एक हाथ से पकड़ कर उसकी चूत पर लगाता है और फिर एक करारा धक्का मारता है।

"हाआआआआ मैं मर गयी!"

"ये ले मेरी महारानी लोहार का लंड!"

सोमनाथ अब धक्के पर धक्के लगा रहा था।

"उहह आआह नहीं सोमनाथ आह ओह!"

"ले मेरा लैंड महारानी बहुत गांड मटका-मटका के. अपने गेंदों को हिलाते हुए जा रही थी। अपने महाराजा के पास । ले पहले मेरा लैंड तो ले-ले रानी!"

"कुत्ते आराम से कर! मैं महारानी हूँ कोई वैश्या नहीं ।"

सोमनाथ खड़े-खड़े रानी को पेलने लगता है।

पूरे कक्ष में "फच फच" की आवाज गूंज रही थी। अब तक रानी श्रुष्टि की चूत भी पानी छोड़ने लगी थी और अब सोमनाथ श्रुष्टि के ब्लाउज को ऊपर कर उसकी कमर को अपने हाथो में जोर से दबाता है।

"आहहहा धीरे!"

सोमनाथ अब खड़े-खड़े 48 वर्ष की भारी महिला जो सिर्फ 5.5 की थी। उसे अपने लंड पर टांग कर दरवाजे के पीछे ही पेले जा रहा था।

पहले कुछ देर श्रुष्टि की आखों में आंसू आते हैं और फिर वह अपना भार पूरा सोमनाथ के ऊपर दे कर अपनी आंखे बंद कर झटके सहने लगती है।

"उह आआह!"

"उह ओह आआआह!"

"फच्च फच्च!"

" आहहह अह्ह्ह ओह्ह्ह!"

सोमनाथ: ये लीजिए महारानी मेरा लोहे का लंड!

कुछ देर पेलने के बाद सोमनाथ झड़ने वाला था।

सोमनाथ: अरे! रानी! तुम तो अब विरोध भी नहीं कर रही हो । लंड लेने में मजा आ रहा है महारानी?

शुरष्टि सीधी होती है और सोमनाथ शुरष्टि के होठों को अपने होठों में भर कर चूस कर, दो तीन तगड़े झटके मार के अपना वीर्य महारानी शुरष्टि के चूत में छोड़ देता है।

"आआह महारानी! चूस लो अपने सेनापति के लौड़े का पानी।"

"आआह सेनापति सोमनाथ! तुम ओह!"

दोनों एक साथ झड़ते हैं।

सोमनाथ अपना लौड़ा निकाल कर अपनी धोती पहनता है।

सोमनाथ: महारानी अब आप जा सकती हैं महाराज राजपाल के पास!

सृष्टि अपना ब्लाउज पहनती है और अपने पलंग के पास जा कर एक कपड़ा उठा कर अपना घाघरा उठा कर, चूत पर रख, वीर्य को साफ कर देती है।

"सोमनाथ! तुम मेरे साथ जबरदस्ती कर के सही नहीं कर रहे हो!"

"महारानी अब झूठ ना कहो, अभी तुम कैसे मस्ती में चुद रही थी और अब ये नाटक नहीं करो!"

इस बात का शुरुआत के पास कोई जवाब नहीं था। फिर सोमनाथ अपना मुंह पूँछ कर बाहर निकलता है। तो देखता है की दोनों दरबान, जो महल के मुख्य द्वार पर पहरेदारी करते हैं, बैठ कर आपस में बात कर रहे थे।

सैनिक: अरे यार हमारे राज्य में ये पहली घटना हुई है जिसमे एक माँ बेटा आपस में प्रेम करते हो।

दूसरा सैनिक: हाँ भाई ये तो सोच से परे है अपनी माँ से एक बेटा कैसा प्रेम कर सकता है और माँ भी अपने बेटे को कैसे एक प्रेमी के रूप में स्वीकार कर सकती है। ये बलदेव ने तो बहुत मजे किये होंगे रानी देवरानी के साथ।

सैनिक: इसलिये तो आज कल ज्यादा ही खिल रही थी, रानी देवरानी और मुझे लगता है ये दोनों पारस भी अपनी प्यास बुझाने ही गए थे। पूरे राष्ट्र में राज परिवार की थू-थू हो रही है।

ये सब सुन रहा सोमनाथ उनसे कड़क आवाज में पूछता है ।

"क्या चल रहा ये सब?"

दोनों सैनिक खड़े हो जाते हैं।

सैनिक: जी सेनापति जी!

सेनापति: तुम दोनों को यहाँ पर काम करने के लिए रखा गया है के गप्पे मारने के लिए?

सैनिक: हमें क्षमा कर दीजिये!

सेनापति: ठीक है खड़े हो महल की निगरानी करो।

सोमनाथ अपने सेनागृह, जो महल के आगे है, वहा अपने कक्ष में जा कर सो जाता है, वह सृष्टि को चोद कर थक चुका था और उसे जल्द ही नींद आजाती है।

सुबह होती है और घटराष्ट्र में हंगामा हो रहा था। सेनापति की नींद खुलती है और वह बाहर आकर देखता है।

कुछ सैनिक बलदेव को रस्सी से बाँधे हुए घोड़े पर लादे ला रहे थे और साथ ही देवरानी एक अन्य घोड़े पर बैठी थी।

सोमनाथ ये देख मस्कुरा देता है ।

"शाबाश सैनिको..."

जारी रहेगी

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