महारानी देवरानी 081

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प्रेमियों का दुश्मन राजा
3.5k words
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15
00

Part 81 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 81

प्रेमियों का दुश्मन राजा

**घटराष्ट्र**

कुछ सैनिक बलदेव को रस्सी से बाँधे हुए घोड़े पर लादे ला रहे थे और साथ ही देवरानी एक अन्य घोड़े पर बैठी थी।

सोमनाथ ये देख मस्कुरा देता है।

सोमनाथ: शाबाश सैनिको!

सैनिक घोड़े पर बंधे बलदेव को नीचे उतारता है।

सोमनाथ: कोई जाकर महाराज को ये समाचार दे दो!

फिर सोमनाथ मुस्कुराते हुए बलदेव को देखता है।

सोमनाथ: (मन में) ये तो मेरे से भी कमीना निकला अपनी माँ को फंसा कर ले भागा था पर हमारे चुंगल से बलदेव कहाँ तक बच पाओगे?

सैनिक: सेनापति जी बलदेव की रस्सी खोल दे क्या?

सोमनाथ: पागल हो गए हो क्या तुम जानते नहीं, वह बलदेव सिंह है, अगर उसके हाथ खुल गए तो तुम सब बच नहीं पाओगे!

देवरानी अपने घोड़े से उतर कर अपने घूंघट को खींच कर अपना मुंह पूरा ढक लेती है।

सोमनाथ: (मन में मैं) साली मुंह ढक कर बड़ी देवी बनने का नाटक कर रही है।

सोमनाथ: तुमने सिर्फ बलदेव को हे क्यू बाँधा है सैनिको!

सैनिक: महाराज वह हमें छूने नहीं दें रही थी, तो ऐसे में हम इन्हे बाँधते कैसे?

देवरानी: सेनापति...मत भूलो के मैं भी अब रानी हूँ और तुम बलदेव को युवराज न कह कर गलती कर रहे हो!

देवरानी अपने पल्लू को हल्का-सा उठा कर हाथ से पल्लू पकड़ती है।

महल के अंदर सैनिक दौड़ कर जाता है।

राजपाल: अरे तुम इतने सारे सैनिक महल में भागे क्यू आ रहे हो?

सैनिक: 'वो महाराज वह युवराज बलदेव!'

राजपाल अपनी आंखे बड़ी करते हैं।

राजपाल: क्या तुम सच कह रहे हो, क्या वह दोनों पकड़े गए?

सैनिक: जी महाराज!

राजपाल अपने गले में एक मोती की हार को उतार कर उस सैनिक को देता है।

राजपाल: ये रहा तेरा इनाम।

राजपाल जल्दीबाजी में महल के बाहर आता है। जहाँ सेनापति और सेना के बीचो बीच बंधा हुआ बलदेव घुटनो के बल बैठा हुआ था।

बलदेव अपना सर झुकाए बैठा था, उसके पूरे शरीर पर मोटी रस्सी के निशान पड़ गए थे।

बलदेव: पानी!

देवरानी: कोई पानी लाओ! मेरे जिगर के लिये पानी लाओ मेरे लाल के लिये पानी लाओ!

सैनिक: ले आता हू अभी।

तभी राजपाल आ जाता है।

राजपाल: रुक जाओ!

सब आवाज़ की तरफ नज़र घूमते है और राजपाल अपनी आँखों को बड़ी कर गुस्से में कहता है ।

राजपाल: पानी तो इस कुत्ते को मैं पिलाऊंगा।

देवरानी: तुम सब की मानवता कहा मर गई? क्या यही धर्म सीखा है तुम लोगों ने?

ये सुन कर के बलदेव या देवरानी पकड़े गए हैं, धीरे-धीरे लोग इकठा हो जाते हैं ।

देवरानी से देखा नहीं जाता है, वह पानी लाने के लिए भागती है।

राजपाल: क्या बलदेव को सीधा कर के बाँध दो और ये या अधर्मी देवरानी को खुला क्यू छोड़ा है?

इस कुतिया को मैं देखता हूँ!

सेनापति: महाराज इन्हे सैनिको ने हमारे डर के मारे नहीं बाँधा!

राजपाल: क्यू री देवरानी अपने पल्लू से मुंह ढक के अब क्या साबित करना चाहती हो?

देवरानी: सुनो सब कान खोल सुन लो । तुम सब कायर हो। मैं चाहती तो तुम्हारे सैनिकों का खात्मा कर देती लेकिन मुझे अपने बलदेव पर पूरा भरोसा है। दम है तो उससे मुकाबला करो...और मैं अपने पल्लू से मुंह ढक कर ये साबित कर रही हूँ कि मैंने मजबूरन कोई कदम उठाया है पर अभी भी तुझ से ज्यादा शर्म है मेरे अंदर।

राजपाल: बदतमीज़ अधर्मी!

देवरानी: प्रजाजनों क्या जो अपनी पत्नी को दूसरे के बिस्तर पर भेजन चाहता है, वह क्या धार्मिक होता है?

वहा पर चारो ओर खड़े लोग ये सुन कर चौंक जाते हैं और सबका मन उदास हो जाता है।

देवरानी: घटराष्ट्र की प्रजा आप लोग एक बार सोचना जरूर, जो स्त्री अपने मान मर्यादा का इतना ख्याल रखती है, क्या वह ऐसा कदम उठा सकती है। तो शायद तुम सबको उत्तर मिल जाए।

देवरानी की बात सुन पूरी प्रजा में हाहाकार मच जाता है । सब आपस में बात करने लगते हैं।

'ये तो ठीक कह रही है, इसका मुंह हमने कभी नहीं देखा, इसके साथ जरूर कुछ गलत हुआ है।'

देवरानी: प्रजा जनो! सिर्फ एक बात समझ लो! ये राजाओ से एक पत्नी भी संभलती नहीं है तो ये एक से ज्यादा विवाह क्यों करते है?

हंगामा और शोर सुन अंदर से जीविका और शुरुषटी भी महल से बाहर आ जाती है।

राजपाल देखता है कि लोग देवरानी की बात से सहमत दिख रहे हैं।

राजपाल: गौर से सुन लो सब! मैंने बलदेव को पहले ही फांसी की सजा सुना दी है और कल सूर्य उदय से पहले इसको फांसी दी जाएगी।

देवरानी: फांसी मुझे भी दो, सिर्फ बलदेव को ही क्यू?

राजपाल: हसते हुये कहता है।

" तुझे तो जीवन भर तड़पा-तड़पा के मारुंगा और कान खोल कर सुन लो सब, हम देवरानी को आजीवन करवास की सजा सुनाते हैं ।

देवरानी: नामर्द हो तुम राजपाल!

राजपाल गुस्से से लाल हो जाता है और देवरानी को पकड़ कर खींचते हुए महल में ले जाने लगता है।

राजपाल: चल कुतिया तेरी गर्मी निकलता हूँ।

महल के द्वार पर खडी राजमाता जीविका सब कुछ देख रही थी । राजपाल अंदर देवरानी को लाकर गुस्से में कहता है।

राजपाल: बहुत गर्मी थी ना तेरे में । सब निकलता हूँ आज।

देवरानी: राजपाल! तुम से बस यही उम्मीद थी ।

राजपाल गुस्से से लाल हो जाता है और अपना हाथ देवरानी के गले में डाल कर उसका गला दबा कर पकड़ लेता है।

देवरानी: आह छोड दो मुझे!

जीविका अंदर आती है।

जीविका: राजपाल बस करो!

राजपाल: क्या हुआ मां?

जीविका: तुम एक राजपूत हो । स्त्री को यू पीडा देते हो, कैसे राजा हो तुम?

जीविका की बात सुन कर राजपाल अपना हाथ देवरानी की गर्दन से हटाता है।

राजपाल: माँ इसने जो गलती की है उसके लिए ये सजा कुछ भी नहीं है ।

जीविका: मैं समझती हूँ, पर तुमने इन्हें सजा सुना दी है, इस अधर्मी को मार कर अपना हाथ गंदा न करो। तुम शायद नहीं जानते इसने तुम पर जो आरोप लगाए हैं उनसे प्रजा में क्या संदेश जाएगा?

राजपाल झट से एक रस्सी निकाल कर देवरानी को बाँध देता है और जीविका के साथ बाहर आ जाता है।

बाहर देखता है कि कमला पानी लिए बलदेव के पास खड़ी थी या उसे पानी पिला रही थी।

राजपाल जैसे वह कमला को रोकने के लिए जाता है तो जीविका उसके हाथ से इशारा करती है। वह रुक जाता है।

सेनापति अब बलदेव के दोनों हाथों को बाँध उसे खड़ा कर देता है।

राजपाल: क्यू प्रेमी बलदेव बहुत प्रेम पत्र लिखते थे। क्या हुआ प्रेम का भूत निकल गया या नहीं?

बलदेव पसीना-पसीना था और अपना सर उठा के घूर कर राजपाल को देखता है ।

राजपाल: सेनापति कोड़ा लाऔ!

राजपाल: अभी उतार देते हैं इसका प्रेम का भूत!

राजपाल के हाथ में कोड़ा आते ही बलदेव की नंगे पीठ पर राजपाल कोड़े की बारिश कर देता है।

"चटक" चटाक! "

की आवाज़ फ़िज़ा में गूंज रही थी।

बलदेव: आह!

अपनी आखे बंद कर अपने पिता राजपाल के हर कोड़े की मार बर्दाश्त कर रहा था।

राजपाल: माफ़ी मांग लो! मैं तुम्हे मारना छोड़ दूंगा।

कमला से देखा नहीं जाता है।

कमला: माफ़ी फी मांग लो, युवराज बलदेव!

बलदेव शेर की तरह हुंकार मारता है। उसके जिस्म पर हर जगह लाल निशान पड़ चुके थे ।

बलदेव: कमला माफ़ी क्यू मांगू! मैने कोई गलती नहीं की है, प्रेम किया है।

राजपाल: ये ले!

चटाक! "

कमला: माफ़ी मांग लो कुमार! शायद महाराज आपकी जान बख्श दे!

और कमला रोने लगती है।

राजपाल: हा माफ़ी मांगो!

बलदेव: कमला मैंने अय्याशी नहीं, देवरानी से प्रेम किया है!

राजपाल: तेरा इतना दुःसाहस! ये ले!

"चटाक"

बलदेव: मैं आपसे उस बात का क्षमा नहीं मांग सकता जिसमें मैंने कुछ गलत नहीं किया है ।

कुछ देर कोड़े मारने के बाद राजपाल थक जाता है।

राजपाल: सेनापति इसे ले जाओ और कारागार में डाल दो! हमने इसके अपराध के लिए इसे मृत्युदंड दिया है। कल की फांसी की तयारी की जाए!

ये सुन कर पूरा घटराष्ट्र हिल जाता है, क्यू के घटराष्ट्र का एकलौता राजकुमार, जो आगे जा कर घटराष्ट्र को संभालता, वह आज फांसी के लिए बंधा हुआ खड़ा था।

श्रुष्टि खड़ी हुई ये सब देख कर खूब मजे ले रही थी।

शुरुष्टि: ये दृश्य देख के मज़ा तो बहुत आया ये सोचते हुए शुरुष्टि हल्का-सा मुस्कुराती है।

बलदेव को सैनिक सेनागृह के पास कारागार में ले जा कर बंद करते हैं और फांसी की तैयारी करते हैं।

राजपाल आकर अपने कक्ष में बैठ कर सोचने लगता है कि कैसे उसके जीवन में ये सब हुआ।

तभी सृष्टि वहाँ आ जाती है और उसके निर्णय को सही बता कर राजपाल को स समझाती है।

**पारस**

हुरिया परेशान थी और अपने बेटे को नहीं बता कर वह इस मसले पर देवराज से बात करने का फैसला करती है।

हुरिया अपनी दासी से कह कर देवराज को बुलावाती है।

देवराज: जी मल्लिका ई जहाँ आपने याद किया!

हुरिया: आइये देवराज जी!

देवराज: कहिये!

हुरिया: आपसे एक गुजारिश थी।

देवराज: ऐसी क्या बात है मल्लिका, जिसके लिए आधे जहाँ की मालकिन को हमसे गुजारिश करनी पड़े!

हुरिया: देखिए देवराज जी मुझे नहीं पता कि आप उस रे दिन के बाद देवरानी को देखना चाहते हैं या नहीं और मुझे लगता है कोई भी भाई अपनी बहन की ऐसी हरकत पर ऐसा ही करेगा।

ये बात सुन कर देवराज शर्म से अपना सर नीचे झुका लेता है।

देवराज: जी वह शायद दिमाग से पागल है।

हुरिया: जो भी है वह तो है आपकी बहन ही । शमशेरा कह रहा था कि उसने जंगल में कुछ लोगों को किसी का पीछा करते हुए देखा था और मुझे पूरा यकीन है कि उस दिन बलदेव और देवरानी पर ही हमला हुआ है और वह खतरे में है।

देवराज: वह मेरे लिए मर गई है।

हुरिया: देवराज जी भले से वह आप के लिए मर गई है पर उसके गुनाहों की सजा उसकी जान तो नहीं है ।

देवराज चुप चाप खामोशी से सुनता रहता है।

हुरिया: उसकी जान चली जाएगी तो क्या हम सबको अच्छा लगेगा...मैं चाहती हूँ कि आप सुल्तान के साथ जाएँ और उसकी जान की हिफाजत करे।

देवराज: मल्लिका जहाँ ये आप कह रही है । जिन्हे पूरे जहाँ में मजहबी और हर गुनाह हर पाप से महफूज स्त्री मना जाता है । आप तो उपदेश देती हो सबको । तो क्या जो देवरानी ने किया वह सही था?

हुरिया: मैं उनका हरगिज़ साथ नहीं दे रही हूँ, जो उन्होंने किया है वह गलत है पर उसकी जान लेने वाले हम कौन होते हैं। बेशक़ वह दोनों जहन्नम की आग में जलेंगे पर इसका फैसला हम नहीं खुदा करेंगे।

देवराज: ठीक है तो आप क्या चाहती हैं?

तभी सामने से सुल्तान मीर वाहिद अंदर आते हैं।

सुल्तान: आपने बुलाया मल्लिका ए जहाँ और हम चले आएँ।

हुरिया मस्कुराते हुए!

"आइए मेरे सरताज़, मेरे सुल्तान!"

सुलतान: क्या बात चल रही है?

हुरिया: सुल्तान बलदेव और देवरानी खतरे में है और मुझे लगता है कि आपको कुबेरी का खजाना दिलवाने में बलदेव ही मदद कर सकता है।

सुल्तान: हम्म सही कह रही हो, कही वह दिल्ली के बादशाह शाहजेब ना हम से पहले उस खजाने पर हाथ ना मार ले!

हुरिया: जहाँ तक मैंने सुना है । शाहजेब घाटराष्ट्र की सीमा तक पहुँच गया है।

सुल्तान मस्कुराते हुए कहता है।

"आपको बहुत खबर होने लगी है दुनिया की, अब आपने जासूसी भी शुरू कर दी है क्या मोहतरमा?"

हुरिया: जी नहीं सुल्तान! (मुस्कुरा के) जिसका बेटा शमशेरा जैसा उम्दा जासूस हो, उसे ये बात जानने के लिए जासूसी नहीं करनी पड़ती।

सुल्तान: आप तो बूत बने खड़े हैं, देवराज जी आपका क्या कहना है?

देवराज: वो...!

हुरिया: सुल्तान वह तैयार है।

सुल्तान: तो फिर हम आज ही निकलेंगे कल सुबह तक हम घटराष्ट्र होंगे!

देवराज: अवश्य सुल्तान शमशेरा आजाये फ़िर आप कूच करे!

सुल्तान: अरे मेरा बेटा कभी जंग के लिए ना नहीं कहेगा> हम चले भी गए तो वह ये सुनते ही की उसके अब्बू जंग पर गए हैं वह भी आएगा ही ।

हुरिया: वह भी आपकी ही पैदाइश है। जिंदगी भर आपने जंग लड़ी है और वह भी यहीं करेगा।

देवराज: ठीक है सुल्तान ठीक है मल्लिका! इजाज़त चाहता हूँ।

देवराज सुलतान और मलिका को सलाम कर घटराष्ट्र निकलने की तैय्यारी करने जाता है ।

कुछ देर में शमशेरा भी आ जाता है और वह इस बात से खुश हो जाता है कि वह जंग पर जा रहा है।

कुछ देर में सेना को इकट्ठा करने के बाद सुल्तान शमशेरा और देवराज इकट्ठे होते हैं।

सुलतान: हमारी फ़ौज की तादाद क्या है?

देवराज: हम पचास हजार (50, 000) सैनिको के साथ आक्रमण करेंगे।

सुल्तान: हम्म कोई कमी हो तो बताएँ, हम अरब से बुला लेंगे।

देवराज: नहीं सुल्तान हमारे कुछ सैनिक देवगढ़ में भी जुड़ेंगे, यहाँ से हम देवगढ़ होते हुए जाएंगे।

शमशेरा: हमें किसी भी हाल में कुबेरी को लूटना है। चाहे इसके लिए हमें लाखो की फौज ले जानी पड़े।

देवराज: हाँ युवराज हम फ़ौज को दो टुकड़ों में बाटेंगे । फ़ौज का एक टुकड़ा घाटराष्ट्र पर हमला करेगा और फ़ौज की दूसरी टुकड़ी कुबेरी पर, एक साथ हमले के कारण से ये दोनों एक दूसरे को समर्थन करने लायक नहीं रहेंगे और कोई गठबंधन नहीं बन पाएगा और वह कोई षड्यंत्र कर हम से युद्ध नहीं जीत पाएंगे ।

शमशेरा: वाह!

देवराज: जीत हमें तब मिलती है जब शत्रु षड्यंत्र करना छोड़ दे और उसका युद्ध लड़ने का हौसला पस्त हो जाए।

सुल्तान: तुम सही हो, बहुत एक काबिल सिपहसालार (यौद्धा) हो । राजा देवराज जी!

शमशेरा: पर अब्बू हम घटराष्ट्र पर हमला क्यू करें? और फिर दिल्ली के बादशाह शाहजेब घटराष्ट्र हमला करने वाला है वह सीमा तक पहुँच गया है।

देवराज और सुल्तान हसते है।

सुल्तान: बेटा तुमने जासुसी तो सीख ली है पर जंग लडना देवराज से सीखनी होगी ।

देवराज: युवराज शमशेरा हम घटराष्ट्र वासियों पर हमला नहीं करेंगे, उनके सैनिको और वहा पहले से मौजुद शाहजेब की सेना पर हमला करेंगे।

शमशेरा: ओह मैंने ये तो सोचा ही नहीं तो इसलिए हम दो टुकड़ियों में दो तरफ से हमला करेंगे।

सुल्तान: हाँ बेटा कुबेरी का खजाना मेरा ख्वाब है और मैं नहीं चाहता कोई तीसरा हमारी जंग का फ़ायदा उठा कर ये ख़ज़ाना लूट कर चले जाए।

तीनो दोपहर का खाना खा कर सैनिकों को जमा कर अपने घोड़े पर सवार हो जाते हैं।

हुरिया: आप सब को खुदा सलामत रखे!

देवराज: हम जल्दी लौटेंगे!

शमशेरा: सलाम अम्मी जान अपना ख्याल रखे!

सुल्तान: जान बाकी रहेंगी तो फिर मिलेंगे मल्लिका!

हुरिया: खुदा करे मेरी उमर आपको लग जाए!

हुरिया: देवराज जी मेरी इल्तिजा है अपनी बहन से नर्मियत से पेश आये, उसने शादी के बाद बस दुख देखे है, शायद वह आपसे कभी नहीं कह पायी ।

सब घोड़ो को देवगढ़ की तरफ घुमाते हैं।

देवराज: चलो सैनिको!

एक सैनिक ज़ोर से पारस के झंडे को लहराते हुए नारा लगता है और सब धीरे-धीरे अपने घोड़े के साथ आगे बढ़ते हैं।

**घटराष्ट्र**

शाम हो गई थी या कल सुबह बलदेव को फांसी देने जाने की तयारी हो रही थी, वही घाटराष्ट्र की सीमा पर सोमनाथ ने अच्छी खासी सेना पहरेदारी की रखी हुई थी जो रात भर सीमा पर रहती थी ।

घटराष्ट्र सीमा पर दो सैनिक टहल रहे थे।

सैनिक 1: भाई ये हमारी रातो की नींद हमने ख़राब की है पर ये बादशाह शाहजेब का कोई अता पता नहीं है ।

सैनिक2: मुझे नहीं लगता कि इतना बड़ा राजा हमारे राज्य पर हमला करेगा, खजाना तो कुबेरी में है। यहाँ क्या है?

सैनिक1: हाँ शायद तुम ठीक कहते हो हमारे राजा और युवराज तो माँ बेटा की प्रेम कहानी में अलग ही उलझे हुए हैं।

और दोनों हसने लगते है।

ये दोनों इस बात से अनजान थे की ठीक इनके पीछे रात के नधेरे में घाटराष्ट्र के पहाड़ो पर बादशाह शाहजेब अपनी सेना को ले कर खड़ा था।

शाहजेब: भाईयो हम घाटराष्ट्र की सीमा पर हैं और हम उस पहाड़ के सामने खड़े हैं जिसे पार कर हम घाटराष्ट्र को हरा पाएंगे, कई बादशाह इस पहाड़ को पार नहीं कर सके हैं?

सैनिक: हम करेंगे...हम करेंगे...!

शाहजेब: आप सब का जोश ए जज्बा को सलाम! दोस्तो हम 25000 हैं, हम घाटराष्ट्र को रौंद कर रख देंगे । सुना है राजा रतन यहीं हैं। हम उसे भी कुबेरी लेते हुए चलेंगे...तो चलो कल सुबह हम घाटराष्ट्र फतेह करें!

सभी सैनिक हुंकार भरते हैं।

बादशाह शाहजेब इस बात से अनजान था कि राजा रतन वापस कुबरी चला गया है।

दिल्ली की बादशाह अपनी सेना के साथ पहाड़ पर चढ़ाई करने लगता है और सुबह सवेरे घटराष्ट्र पर हमला करने को तैयार था।

घटराष्ट्र के महल में सन्नाटा छाया हुआ था।

रात का भोजन बना कर कमला जाने लगती है पर उसका दिल नहीं मानता या वह वैध जी के यहाँ रुक जाती है।

जीविका एक थाली ले कर राजपाल के कक्ष में जाती है, जहाँ देवरानी बंधी हुए थी वह उसका हाथ पैर खोल कर उसको खाना देती है।

जीविका: ये ले खा ले!

देवरानी: रहने दीजिए माँ जी! मेरे बलदेव को कल सुबह फांसी है और मैं कैसे खा लू।

जीविका: फासी वह भी तेरे कारण, अगर तू समझदारी दीखाती तो ऐसी नौबत नहीं आती ।

देवरानी: समझदारी दिखाती तो कभी राजपाल जैसे व्यक्ति से विवाह नहीं करती । आप स्त्री हो कर नहीं समझती तो राजपाल क्या समझेगा!

तभी सृष्टि और राजपाल वहाँ आ जाते हैं।

शुरष्टि: इसको समझने से कोई फ़ायदा नहीं माँजी! ये चरित्रहीन हमारी बातों को, राज घराने की इज़्ज़त कभी नहीं समझ पाई।

राजपाल: माँ आप अपने कक्ष में जाओ!

राजपाल: सृष्टि आप भी जाओ आराम करो! सुबह से आप लोगों ने आराम नहीं किया है।

राजपाल जा कर कक्ष का दरवाजा बंद कर देता है।

राजपाल: देखो देवरानी मैं तुम्हें एक आखिरी मौका देता हूँ । अगर तुमने मेरी बात मान ली तो तुम्हारा बलदेव फांसी पर लटकने से बच जाएगा।

देवरानी: क्या चाहते हो तुम?

देवरानी थोड़ा सोच कर कहती है।

राजपाल: तुम्हें रतन को खुश करना पड़ेगा और क्षमा मांगनी पड़ेगी हम सब से, औरआज के बाद तुम बलदेव से जीवन भर बात नहीं करोगी।

देवरानी आव देखती है ना ताव और राजा राजपाल का गिरेबां पकड़ कर राजपाल के मुंह पर थूक देती है।

देवरानी: थू है तेरे जीवन पर राजपाल! कैसे पति हो अपनी पत्नी का सौदा करते हुए तुम्हे जरा भी शर्म नहीं आई । मैं रतन सिंह के पास जाने से मरना ज्यादा पसंद करूंगी।

राजपाल: जब अपने बेटे के साथ मुँह काला किया तब तुम शर्म नहीं आई?

देवरानी: बलदेव मेरा प्यार है, तुमने कब मुझे एक पत्नी का सम्मान या प्यार दिया राजा राजपाल? तुम्हें तो चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।

राजपाल: तुझमें इतनी गर्मी थी तो किसी और से निकालवा लेती। अभी तेरी गर्मी शांत करता हूँ।

राजपाल आगे बढ़कर देवरानी को दबोचने की कोशिश करते हैं।

देवरानी: मुझे छूना मत राजपाल!

राजपाल देवरानी के जाँघ पर हाथ रखता है।

देवरानी उसे धक्का देती है।

देवरानी: कमीने... कहा ना मुझे छूना मत। मुझ पर सिर्फ मेरे बलदेव का हक है...!

राजपाल गुस्से से उसका हाथ मरोड़ देता है ।

राजपाल: तेरी तो गर्मी ऐसी निकालूंगा की याद रखेगी बस सुबह बलदेव को फांसी हो जाए!

देवरानी: मैं जान दे दूंगी अगर किसी ने मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की।

राजपाल फिर से देवरानी को उसी रस्सी से लपेट कर जोर से बाँधता है।

राजपाल: अब इधर बंधी बैठी रह तेरे प्रेमी की चमड़ी उधेड़ कर आता हू।

राजपाल महल से निकल कर आता है। रात में शांत महल में आज कुछ ज्यादा शांति थी पर पूरा घाटराष्ट्र आज सो नहीं पा रहा था।

राजपाल कारागार में जाता है जहाँ बलदेव बंधा हुआ था।

राजपाल सैनिक को आज्ञा देता है ।

"मेरा कोड़ा लाओ! आज इसे अहसास दिलाऊ की ऐसा अपराध करने का अंजाम क्या होता है?"

सैनिक राजपाल को कोड़ा ला कर देता है और चला जाता है कारागर में सिर्फ बलदेव और राजपाल थे ।कोडो की मार खा कर बलदेव के शरीर को थकन महसुस हुई और उसकी आँख आखिरी लग गयी थी ।

राजपाल एक कोड़ा सोते हुए बलदेव को मारता है।

बलदेव: आआआआह!

राजपाल: कमीने हम सब की नींद हराम कर तू सो रहा है।

राजपाल लगतार कोड़े बरसाने लगता है।

राजपाल: तेरी हिम्मत कैसी हुई ये कदम उठाने की?

बलदेव से अब रहा नहीं जाता है।

बलदेव: जब प्रेम होता है तो कोई घबराता नहीं है ।

राजपाल: कमीने मैने तुझे पैदा कर के बहुत बड़ी गलती कर दी ।

बलदेव: सही किया नहीं तो मैं मेरी प्यारी प्रेमिका देवरानी के जीवन कैसे ठीक कर पाता।

राजपाल: तुम्हारी ये हिम्मत!

राजपाल और तेजी से कोड़े बरसाने लगता है।

बलदेव: आआह हिम्मत की बात क्या बताऊ! देवरानी जैसी स्त्री को तुम छोड़ के, इधर उधर मुँह मारते हो। हाहाहा!

राजपाल और कोड़े बरसता है।

बलदेव: मार लो मुझे पर जो मैंने तुम्हारी पत्नी के साथ मजे किये है उन्हें ।क्या बताउ, वाह क्या माल है। रात भर मेरे गोद में सोती थी। आह! उसका वह गद्देदार जिस्म बिना वस्त्र के! वाह वह तो अप्सरा है।

राजपाल ये सुन और गुस्सा होता है और बलदेव को तेज-तेज कोड़े से मारता रहता हैं।

बलदेव: महाराज थक गए क्या और मारो...पर देवरानी के भारी मांसल शरीर को मसलने में जो मजा है वह किसी और में नहीं है। तुम्हारी पत्नी देवरानी भी सुबह तक मेरे गोद में ही बैठी रहती थी। अब क्या-क्या बताउ!

राजपाल बलदेव की बात सुन कर बुरी तरह शर्मा जाता है क्यूकी बलदेव था तो आख़िर उसका बेटा ही।

वो कोडा फेंक देता है।

राजपाल: कर लिया कम्बख्त तुझे जो करना था, अब सुबह नरक में पहुँचें के लिए तैयार रहो।

बलदेव मुस्कुराता है।

उसके बाद राजपाल वापस महल आ जाता है ।

ऐसे में वह गहमागहमी में रात बीत रही थी और आने वाले सवेरे का सोच कर घटराष्ट्र के हर एक नागरिक का दिल दहला जा रहा था और घाटराष्ट्र आज पहली बार पूरी रात जाग रहा था।

जारी रहेगी

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