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VOLUME II-विवाह और शुद्धिकरन
CHAPTER-5
मधुमास (हनीमून)
PART 51
रानीयो के साथ कामक्रीड़ा-सासु माँ
कुछ देर बाद जब अनुपमा भाभी पूर्णरूप से झड़ कर शांत हुई तो वैसे ही आँख बंद करके पड़ी रही। मैं उसके ऊपर से उतर कर बगल में लेट गया और उसके चेहरे को देखने लगा। उसके चेहरे पर पूर्ण शांति के भाव थे। उसने एक नजर मेरी तरफ देखा, फिर आँखें बंद कर ली।
कुछ देर तक मैं उसके बदन से सट कर लेटा रहा और उसकी गर्मी को महसूस करता रहा। बाद नीतू की चूत अभी भी किसी कुंवारी चूत की तरह ही थी। मेरा लंड उसकी चूत में फंस-फंस कर गया था जैसी उसकी चुदाई साले ने ठीक से ना की हो । ऐसी जवान और कसी हुई औरत की चूत मार के मैं खुद बहुत ही भाग्यशाली मान रहा था।
थोड़ी देर बाद अनुपमा भाभी के मुंह से सिसकारियाँ निकलने लगी थी-आह्ह... हह... उफ्फ्फ... जीजी जी, बहुत दिनों बाद तुमने मुझे फिर से औरत होने का अहसास कराया। मैं तो तुमसे मिलन करके धन्य हो गई। बहुत मज़ा आया। सच जीजी अच्छी किस्मत वाली हैं । जो उन्हें आप पति के रूप में मिले हो । । फिर उसने अपनी बाँहें मेरे गले में डाल दी, फिर अचानक से मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये और हमारे ओंठ चुम्बन के लिए जुड़ गये।
मुझे पता ही नहीं चला की सासु माँ चित्रा देवी कब मेरे बगल में लेट गई थी और मुझे इसका बोध तब हुआ, जब उसने मेरी ओर करवट ली और उसका एक स्तन मुझे छूने लगा। मैंने उसे और उसके स्तन को देखा ।
सासु माँ का गोरा शरीर अद्भुत था। सासु माँ के वसायुक्त बड़े-बड़े चूतड़ थे, जो गोल और दिल के आकार के थे। उनके दोनों नितम्बो के बीच का विभाजन लम्बा और गहरा था। उसकी चूत का आंशिक हिंसा भी सासु माँ की गांड की दरार के नीचे से नज़र आ रहा था। उसके स्तनों के बड़े और सुडोल होने में कोई संदेह नहीं था और मुझे उसके नग्न स्तन दिख रहे थे। मुझे अपने कठोर हो चुके लण्ड को काबू में रखने के लिए कठिनाई हो रही थी l
मुझे उनके स्तन को देख कर मुझे हमेशा उसको पकड़ने की इच्छा होने लगी और इसका असर मेरे लिंग पर होने लगा जो अचेतन अवस्था से अर्ध-चेतना की अवस्था में पहुँच चुका था। तभी सासु माँ ने मुझे अपने बाहुपाश में ले लिया तथा अपनी टांग उठा कर मेरी जाँघों पर रखते हुए अपने घुटने को मेरे लिंग के उपर रख कर उसे दबा दिया।
उस दबाव के विरोध में मेरे लिंग ने अपना सिर ऊँचा किया और सासु माँ चित्रा के घुटने को ऊपर उठा दिया।
मेरे लिंग की यह हरकत देख कर सासु माँ चित्रा ने बिना कोई समय गवाएँ अपना हाथ डाल कर मेरे लिंग को अन्डकोशों सहित मसलने लगी, फिर अगले ही क्षण अपने हाथों से लिंग नापते हुए वह बोली-आपका लिंग तो बहुत बड़ा है। वैसे मेरे लंड 8 इंच लम्बा और लगभग 3 इंच मोटा है लेकिन आज उस ख़ास खुराक और कामुक माहौल के प्रभाव से पहले से लम्बा आवर मोटा लग रहा था।
मैंने उसकी ओर करवट ली, मेरा लंड सासु माँ के बदन को छू रहा था। उसके 38 साइज़ के बड़े-बड़े बूब्स, न तो पूरी तरह से दृढ थे और ना ही बहुत ज्यादा लटके या ढलके हुए थे और उन पर बड़े-बड़े भूरे रंग के गोल छेद वाले कड़े हो चुके निप्पल रसभरे अंगूरों की तरह मुझे ललचा रहे थे। मैंने उसके एक उठे हुए मुलायम, लेकिन सख्त स्तन को अपने एक हाथ में पकड़ कर मसलने लगा।
सासु माँ मेरे लिंग को अपने हाथ में ले कर अहिस्ता-अहिस्ता हिलाने एवं मसलने लगी। उसके कोमल नंगे बदन की चाहो को सुन और महसूस कर रहा था । मैं उसकी बदन की कामुक पुकार को सुन सकता था।
मैं उसकी मालिश करता रहा। हर बार जब मैंने उसके बाजू, कंधे और स्तन की मालिश की, तो वह झूम थी। मेरा हाथ उसकी बगलो में गया और फिर सीधे उसके स्तन पर पहुँच गया। वह हिलने लगी जिससे मेरे उसके निप्पल पर पहुँच गए और मुझे उसके निपल्स को महसूस करने में मदद मिली। मैंने बहुत धीरे-धीरे उसके निपल्स को टटोलना शुरू कर दिया। मैंने उसकी और अपनी यौन वासना से उत्तेजित हो कर अपने दूसरे हाथ को सासु माँ की झांटो के छोटे-छोटे बालों में फेरता हुआ अपने बड़ी ऊँगली से उसकी योनि के भगान्कुर को ढूँढने लगा।
जैसे ही मेरी ऊँगली सासू माँ की योनि के भगान्कुर से टकराई, वैसे ही वह एक सिसकारी लेते हुए उछली और मुझे कस कर जकड़ते हुए मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। मैंने अपना अंगूठा सीधा रखा और उसकी चूत के होंठों की दरार का लक्ष्य रखा। जैसे ही मेरे अंगूठे ने योनि के होंठों की छुआ तो सासु माँ की एक जोरदार कराह निकली... आह्ह्ह्ह, और मैंने अपना अंगूठा उसकी चूत में घुसा दिया और वह जोर से हांफ़टे उनकी योनि ने मेरा अंगूठा अपने रस से भिगो दिया और अब मुझे पूरा भरोसा हो गया था अब वह चुदाई के लिए बिलकुल तैयार थी।
मैंने अपना अंगूठा उसकी चूत की मालिश के दौरान कुछ सेकंड तक उसकी चूत में डाले रखा, अब मालिश बंद हो गयी और केवल मेरा अंगूठे उसकी चूत अंदर बाहर होने लगा। वह बहुत ही धीरे-धीरे कराह रही थी। मैं भी सासू माँ को अपने से चिपटाते हुए उसके होंटों को चूसने लगा और साथ में उसके स्तन और भगान्कुर को मसलता रहा।
सासू माँ चित्रा देवी मुझसे भी अधिक उत्तेजित थी इसलिए उसने अपने होंठ मेरे होंठों से अलग किये और मेरे मुख से अपने दूसरे स्तन को लगाते हुए मुझे उसे चूसने का संकेत किया।
मैं तुरंत उस स्तन के चूचुक को मुख में लेकर कस के चूसने लगा और साथ में उसके दूसरे स्तन और भगान्कुर को मसलना ज़ारी रखा।
कुछ देर के बाद सासू माँ चित्रा देवी बहुत जोर-जोर से सिसकारियाँ लेती रही और फिर उसके अकड़े हुए शरीर ने कुछ झटके लेकर एक लम्बी सिसकारी ली।
तभी मुझे उसके भगान्कुर को सहलाने वाली ऊँगली पर कुछ गीलापन महसूस हुआ तो मैं समझ गया कि उसकी योनि ने पानी छोड़ दिया था। वह गर्म हो लोहे की तरह लाल हो गयी थी, उसकी चूत से उसका रस टपक रहा था
इस बीच मेरे खड़ा लंड कठोरता के कारण सासु माँ को सलामी दे रहा था। बल्बनुमा सिर के साथ मेरा विशाल लंड जो की विशेष खुराक के कारण 8 इंच से भी लंबा और मोटा हो गया लंड उसके आँखों के सामने आ गया। एक पल के लिए सासु माँ कांप गई।
वो फिर बोली नहीं दामाद जी आपका बहुत बड़ा है तो मैंने कहा "सासु माँ जब ये आपके मुँह में आसानी से चला गया तो चूत में भी चला जाएगा और फिर आप तो माँ भी हैं और आप जानती हैं चूत लंड के हिसाब से खुद को एडजस्ट कर लेती है, । मैं प्यार से करूंगा, मैं धीमी गति से जाऊँगा, आप बिलकुल चिंता न करे।"
उस समय मैंने बिना कोई क्षण गंवाए अपनी उस ऊँगली को उसकी योनि में डाल दिया और तेज़ी से अंदर बाहर करने लगा। सासू माँ चित्रा देवी अपनी योनि पर मेरे हमले से उसकी उत्तेजना बहुत ही बढ़ गई थी जो उसकी ऊँची सिसकारियाँ बता रही थी।
इतना कह कर वह मेरी बगल में लेटने की बजाय वहीं बठे बैठे मेरे लिंग को चूमने लगी और फिर उसे अपने मुख में लेकर चूसने लगी। अपने को मुझसे अलग करते हुए उसने पलटी हो कर मेरे मुख पर अपनी योनि रख दी।
दो-तीन मिनट के अन्तरकाल में ही जब मेरा लिंग लोहे की रॉड की तरह तन गया तब मैं सासु माँ चित्रा की टाँगें चौड़ी करके उसकी योनि पर अपना मुख रख कर उसे चूसने एवं चाटने लगा।
मैं भी अपने दोनों हाथों से सासू माँ चित्रा देवी के दोनों स्तनों को मसलते हुए बहुत ही तेज़ी से अपनी जीभ से उसकी योनि की दीवारों और भगान्कुर को सहलाने लगा। बीच-बीच में मैं अपनी जीभ को उसकी योनि के अन्दर बाहर भी कर देता जिससे वह उचक पड़ती और उसके मुहं से ऊँची सिसकारी निकल जाती।
दस मिनट की इस पूर्व क्रिया में सासू माँ चित्रा देवी का शरीर एक बार फिर अकड़ गया और लम्बी सिसकारी लेते हुए उसने फिर अपनी योनि से पानी छोड़ा।
उस समय मेरी उत्तेजना मेरे नियंत्रण से बाहर होने लगी इसलिए मैंने सासू माँ चित्रा देवी से अलग होकर उसे पीठ बल नीचे लिटा दिया और उसके टाँगें चौड़ी करके उनके बीच में बैठ गया।
मेरे तने हुए लिंग के ऊपर का लिंग-मुंड फूल गया था और उसका रंग एवं आकार एक तीन इंच व्यास की स्ट्रॉबेरी के समान था और फिर अपने लंड को उसकी चुत के द्वार और चूत के दाने पर तब तक के लिए रगड़ा जब तक मुझे उसका प्रवेश द्वार नहीं मिला l
मैंने तुरंत अपने लिंग को सासू माँ चित्रा देवी के भगान्कुर के ऊपर रगड़ा तो वह उत्तेजनावश चिल्ला उठी और अपने एक हाथ से मेरे लिंग को अपनी योनि के मुख पर लगा कर उचक कर उसे अन्दर डालने का प्रयास करने लगी। जब लंड योनि के द्वार पर अटक गया तो मैंने धीरे-धीरे अंदर धकेलना शुरू कर दिया।
सबसे पहले, मैं अपने लंड को केवल एक इंच ही अंदर घुसा पाया था। बहुत गीली होने के बावजूद, उसकी योनि बहुत तंग थी। उसकी चूत में एक लंबे समय से लंड ने प्रवेश नहीं किया था और मेरा लंड बहुत बड़ा और मोटा है। मैंने अपनी गति को धीमा कर दिया और उसकी चूत पर थोड़ा दबाब बढ़ाते हुए उसे चोट पहुँचाए बिना उसकी चूत में सरकाने लगा।
तब उसके प्रयास को सफल बनाने के लिए मैंने भी एक जोर का धक्का लगा दिया जिससे लिंग का सुपारा उसकी योनि में प्रवेश कर गया।
बिना कोई देर किये मैंने जोर से एक और धक्का लगा दिए जिससे मेरे लंड का सूपड़ा सासू माँ चित्रा देवी की योनि के अंदर समां गया।
मेरे लिंग के प्रवेश के कारण सासू माँ चित्रा देवी की योनि चौड़ी हो गयी और उसकी योनि में हुई आंतरिक हलचल के कारण वह बहुत ही जोर से उछली तथा बहुत ही ऊँचे स्वर में चीख मारी।
आहह... ह्ह्ह्ह् आहह हाँ!
सासू माँ चित्रा देवी की चीख सुन कर मैं डर गया और रुक कर उसकी ओर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखने लगा तब उसने मुस्कराते हुए अपना सिर ऊँचा कर मेरे होंठों को चूमा ओर बोली-तुम रुक क्यों गए? आज तक जिस जगह पर तुम्हारे ससुर का सिर्फ पांच इंच लम्बा और एक इंच मोटा ढीला ढाला लिंग गया हो, वहाँ पर जब हाथ से भी लम्बा और मोटा मूसल जैसा सख्त लिंग घुसेगा तो चीख तो निकलनी ही थी।
सासू माँ चित्रा देवी की बात से मुझे आश्वासन हो गया कि उसे इस क्रिया में आनन्द मिलने लगा था इसलिए मैंने तुरंत मोर्चा सम्भाला और मैंने सासु माँ के होंठों को चूमा और अपना लंड उसके अन्दर धकेल दिया। उधर तब तक अनुपमा भी सचेत हो गयी थी और धीरे-धीरे सासु माँ के स्तन दबाने लगी।
सौ माँ की चूत की दीवारों ने लंड को ऐसे जकड़ लिया,। मेरे लौड़े और उसकी चूत की दीवारों का घर्षण शुरू हो गया। इस घर्षण से जो सुख प्राप्त हुआ, वह अति आनन्द देने वाला था। धीरे-धीरे योनि लंड को अंदर जाने देने लगी और फिर मैं फुर्ती से अपने लिंग को उसकी योनि के अंदर बाहर करने लगा।
कुछ देर के बाद सासु माँ भी मेरे लगाये धक्कों की लय के अनुसार नीचे से उचकने लगी जिससे मेरा लिंग योनि की पूरी गहराई तक जा कर उसके गर्भाशय से टकराता।
जब मेरा लिंग उसके गर्भाशय की दिवार से टकराता तब उसकी योनि सिकुड़ कर मेरे लिंग को जकड़ती और इससे मेरे लिंग को जो रगड़ लगती उसका आनंद ही निराला था।
आहिस्ता से तेज़, फिर तेज़ से तीव्र, उसके बाद तीव्र से अति तीव्र तथा अंत में अति तीव्र से अत्यंत तीव्र गति से संसर्ग करते रहने को लगभग बीस मिनट ही हुए थे तभी सासु माँ का पूरा शरीर अकड़ गया।
उसके स्तन एवं चुचुक बहुत ही सख्त होकर मेरे सीने में चुभने लगे और उसकी योनि के अन्दर हो रही बहुत तीव्र सिकुड़न मेरे लिंग को बहुत तेज़ रगड़ मारने लगी थी।
इस प्रक्रिया के कारण अकस्मात ही मेरा लिंग-मुंड फूल गया और उसने सासु माँ की योनि की अंदरूनी दीवारों को तीव्रता से रगड़ने लगा।
हमारे गुप्तांगों पर लग रही तीव्र रगड़ के कारण दोनों एक साथ ही उत्तेजना की चरमसीमा पर पहुँच चुके थे, सासु माँ बहुत उत्तेजित थी और उसे बहुत आनन्द भी आ रहा था इसलिए वह ऊँचे स्वर में सिसकारियाँ लेते हुए मेरे हर धक्के पर अपने नितम्बों को आगे पीछे की ओर धकेल रही थी।
हमें इस प्रकार धक्कम-पेल करते हुए अभी दस मिनट ही हुए थे कि तभी सासु माँ ने बहुत ही जोर से चीखते हुए सिसकारी ली, उसकी योनि में बहुत ही ज़बरदस्त सिकुड़न हुई और मेरा लिंग उसकी जकड़ में फंस कर आगे खिंचता गया।
उसी क्षण मेरा लिंग-मुंड फूल गया तभी सासु माँ चित्रा और मैंने एक बहुत ही तेज़ एवं ऊँची सिसकारी एवं हुंकार मार कर अपने-अपने रस का विसर्जन कर दिया। लंड में से वीर्य-रस की पिचकारी छूटने जिससे सासु माँ की योनि भरने लगी।
दोनों की साँसें फूल गई और हम पसीने से लथपथ एक दूसरे से चिपके हुए निढाल होकर बिस्तर पर लेट गए।
कुछ देर के बाद जब मैंने आँखें खोल कर सासु माँ की ओर देखा तो उसके चेहरे पर आनन्द एवं संतुष्टि की मुस्कान थी।
जब मैं अपने लिंग को उसकी योनि में से निकालना चाहा तब उसने अपनी आंखें खोल दी और मुझसे चिपक कर मुझे चूमने लगी तथा लिंग को बाहर निकालने से मना कर दिया।
मेरे पूछने पर कि मैं लिंग को उसकी योनि से बाहर क्यों नहीं निकालूं तो उसने नहीं बल्कि उसकी योनि ने बहुत जोर से सिकुड़ कर मेरे लिंग में से बचा-खुचा वीर्य-रस खींच कर उत्तर दे दिया।
उससे अलग होने का निर्णय वहीँ छोड़ कर मैं लंड उसके अंदर डाले हुए ही उसके ऊपर ही लेट गया और लगभग बीस मिनट के बाद जब सासु माँ की योनि ढीली पड़ी और मेरा लिंग बाहर निकल आया तब मैं उसके ऊपर से उठा और हम बातें करने लगे।
तब बातों ही बातों में सासु माँ चित्रा ने बताया कि शादी की पहली रात से लेकर कुछ दिन पहले तक मेरे ससुर जी ने कुछ ही बार उससे संसर्ग किया था जिसमे वह गर्भवती भी हुई लेकिन इस दौरान वह कभी भी उसे संतुष्ट नहीं कर पाए थे।
उसने आगे यह भी बताया कि ससुर जी सिर्फ पांच मिनट तक ही संसर्ग कर पाते थे और उतनी अविधि में उसकी योनि कभी भी गीली नहीं हुई थी और वह हमेशा असंतुष्ट एवं प्यासी ही रह जाती थी।
मेरे साथ किये संसर्ग के बारे में पूछने पर उसने कहा कि मैंने पच्चीस मिनट की पूर्व क्रिया और इतनी ही भेदन क्रिया से उसकी कई वर्षों की प्यास बुझा दी थी।
फिर उसने मेरे लिंग को पकड़ कर हिलाते हुए कहा-राजा, तुमने तो मेरी योनि का सारा पानी निकाल कर रख दिया है। मुझे नहीं पता कि मैंने कितनी बार योनि-रस का विसर्जन किया था। सब कुछ इतनी जल्दी-जल्दी हो रहा था कि पांच छह तक गिनने के बाद तो मैं आगे की गिनती ही भूल गई।
मैंने पूछा " लेकिन मेरे वीर्य-रस विसर्जन के बाद भी तुम्हारी योनि ने मेरे लिंग को क्यों जकड़े रखा?
सासु माँ चित्रा मेरी आँखों में आँखें डाल कर बोली-इतना आनन्द एवं संतुष्टि देने वाली अनमोल तथा प्यारी वस्तु को मैं इतनी आसानी से कैसे जाने दे सकती थी इसलिए मैंने उसे जकड़ लिया था।
फिर उठ कर उसी हाल में बने हुए पूल में चले गए.
जारी रहेगी