विधवा भाभी के साथ विवाह

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मेरी बात पर वह हँस पड़ी। उस की हँसी दूर से माँ ने देख ली और मुझे उन के चेहरे पर संतोष दिखाई दिया। हम बच्चें अपनी माँ से कुछ छिपा नहीं सकते है। माँ आखिर माँ ही होती है, वह अपने बच्चों की रग-रग पहचानती है।

देर रात हम सब शादी से घर लौटे। हम दोनों जब कपड़ें बदलने के लिये अपने कमरे में आये तो दरवाजा बंद करने के बाद मुझ से रुका नहीं गया और मैंने माधवी को आलिंगन में ले कर उस के माथे को चुम लिया। वह मेरी इस हरकत से सुन्न सी हो गयी और उस ने कोई रियेक्शन नही दिया।

मैंने उसे चुम कर छोड़ दिया। वह अलग हो कर कपड़ें बदलने के लिये अलमारी से कपड़ें निकालने लगी। मैंने अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया तो माधवी की आवाज मेरे कानों में पड़ी कि अब मुँह क्यों घुमा रहे हो?

मेरे पास उस के सवाल का कोई जबाव नहीं था। मुझे चुप देख कर वह बोली कि अब मुझे क्यों नहीं देख रहे हो?

मैंने अपना चेहरा उस की तरफ कर लिया। वह कपड़ें बदलने बाथरुम में चली गयी। मैं बेड पर चुपचाप बैठा रहा। वह जब कपड़ें बदल कर वापस आयी तो मुझे देख कर मुस्कराई और बोली कि आप आज कल क्या कर रहे हो? सब के सामने तो मुझे देखते रहते हो, और अकेले में चेहरा दूसरी तरफ कर लेते हो। यह क्या है। तुम्हारा शादी में मुझे देखते रहना क्या लोगों को दिखाने के लिये था?

मैं उठा और उस के सामने खड़ा हो गया। उसे देखता रहा और जब रुका नहीं गया तो उसे अपनी बाँहों में भर लिया। माधवी भी शायद यही चाहती थी। चुपचाप मेरी बाँहों में समा गयी। हम दोनों काफी देर तक ऐसे ही खड़े रहे।

शादी के इतने दिनों बाद हम दोनों का यह पहला आलिंगन था। दोनों के बीच का संकोच आज खत्म हो गया था। दोनों पहली बार एक-दूसरे को इतना करीब से महसुस कर रहे थे। ना जाने कब तक ऐसे ही खड़े रहते, अगर माधवी मुझे टोकती नही कि कपड़ें तो बदल लो।

उसकी यह बात सुन कर मैं चौक गया और उसे आलिंगन से मुक्त कर दिया। वह दूर नहीं हटी और मेरे साथ ही खड़ी रही। मैंने उसे बेड पर बिठाया और कपड़ें बदलने चला गया। सुट उतार कर नाइटसूट पहन कर आया तो मुझे देख कर माधवी बोली कि कुछ पीना तो नहीं है?

अब क्या पिलाना है?

दूध

इतनी रात को अब कुछ नहीं पीना, सोते है

आज कुछ हुआ है?

नहीं तो कुछ नहीं हुआ है

आप बदले से लग रहे हो

सही बदल रहा हूँ या गलत

मेरे लिये तो सही ही है

फिर चिन्ता क्यों कर रही हो

आज तक आप को ऐसे देखा नही है

कभी तो बदलना ही है, तो अभी क्यों नहीं

सब कुछ सही है?

ऐसा क्यों पुछ रही हो?

शादी में ऐसा क्या हुआ है कि आप एकदम बदल गये हो

आज मैंने तुम्हें दूसरे रुप में देखा है जो आज तक मैं देख नहीं पा रहा था, यह हुआ है

तभी आज मुझ पर मेहरबान हो

आज ना जाने तुम्हें देख कर मन के किसी कोने में दबी इच्छायें मन पर छा गयी है, मैं अतीत से बाहर आ गया हूँ

मुझे तो आप रोज देखते हो, आज क्या अलग था?

तुम जानना चाहती हो तो सुनों, तुम्हें सुनना भी चाहिये, आज मैंने तुम्हें एक सम्पुर्ण नारी के रुप में देखा है जो नारी सुलभ सौन्दर्य से परिपुर्ण है, उस की सेक्स अपील को मैंने आज देखा है या कहो महसुस किया है, आज अपने को धन्य माना है कि तुम मेरी पत्नी हो, अपने भाग्यवान होने पर गर्व महसुस किया है।

क्या हो गया है आप को, कविता कर रहे हो या दार्शनिक हो गये हो, मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा है।

तुम कुछ मत समझों

सब कुछ मेरे लिये हो रहा है फिर भी कह रहे हो कि मैं कुछ ना समझुँ

मैंने माधवी को उठाया और उसे बाँहों में भर कर उस के होंठों पर चुम्बन ले लिया, हम पति पत्नी का पहला चुम्बन। माधवी के होंठ भी मेरे होंठों से चिपक से गये। हम दोनों एक-दूसरे को बेतहासा बुरी तरह से चुमने लग गये। काफी देर तो दोनों एक-दूसरे को चुमते रहे। मन ही नहीं भर रहा था। जब दोनों की साँसें फुल गयी तब जा कर चुमना बंद हुआ। आलिंगन अभी भी छुटा नहीं था। माधवी की बाँहें मेरी पीठ पर कसी हुई थी। उस ने मेरे कान में फुसफुसाया, सोने चले?

मैंने उसे गोद में उठाया और बेड पर लिटा दिया। मैं भी उस के साथ लेट गया। हम पति पत्नी पहली बार एक-दूसरे के इतने समीप लेटे थे। अब रुकने का कोई कारण नहीं था ना कोई बाधा थी, इस लिये मैंने माधवी को अपने आगोश में ले लिया और वह भी मुझ में सिमट गयी।

हम दोनों एक दूसरे के शरीर की सुगंध का आनंद उठा रहे थे। एक दूसरे के शरीर की गर्मी को अनुभव कर रहे थे। फिर काम के आवेग के वश हो कर हम दोनों ने एक-दूसरे को चुमना शुरु कर दिया दोनों ने एक-दूसरे के चेहरे गरदन पर चुम्बनों की बरसात सी कर दी।

अब दोनों आगे बढ़ने के लिये तैयार थे। मैंने माधवी के नाइटसूट की शर्ट के बटन खोल दिये, अंदर उसने ब्रा नहीं पहनी थी। शर्ट खुलते ही उस के सफेद कठोर उन्नत उरोज मेरे सामने थे। मैंने झुक कर एक के निप्पल पर अपने होंठ लगा दिये। माधवी ने आहहहहहहहहह की लेकिन मैं उस के उरोज को मुँह में लेकर चुसता रहा फिर दूसरे उरोज को मुँह में भर लिया। दूसरे उरोज को मैं हाथ से सहला रहा था। मेरे इस काम से माधवी के शरीर में उत्तेजना भरती जा रही थी।

माधवी के हाथ मेरी छाती पर घुम रहे थे। उस ने मेरी शर्ट भी बटन खोल कर उतार दी थी, दोनों कमर से ऊपर नंगे थे। दोनों फिर से आलिंगन में कस गये। माधवी के कठोर उरोज मेरी छाती में गड़ रहे थे। मेरा हाथ उस के कमर को सहला कर नीचे जाँघों के बीच पहुँच गया वहाँ पर पेंटी की बाधा थी।

मैं हाथ से पेंटी के ऊपर से उस की फुली योनि को सहलाने लग गया। फिर मेरा हाथ उस की पेंटी में घुस गया। उँगलियाँ योनि के फलकों के ऊपर से नीचे होने लगी। कुछ देर बाद मेरी उँगली उस की योनि में घुस गयी।

माधवी की योनि की नमी को मेरी उँगली महसुस कर रही थी। मेरी उँगली के योनि के अंदर बाहर होने के कारण उत्तेजना वश माधवी ने मेरे होंठों को अपने दांतों से काट लिया।

मैंने उस का पायजामा उतार दिया और उसकी पेंटी भी उतार कर बेड पर रख दी। अपने कपड़ें भी उतार दिये। हम दोनों एक-दूसरे से चिपक गये। फिर वही हुआ जो ऐसे में होता है। मैं माधवी में समा गया।

आहहहहहहहहहहहहहहहह उहहहहहहहहहहहहहह

मेरे उस में समा जाने के बाद मेरे कुल्हों ने उठ कर प्रहार करने शुरु कर दिये। माधवी ने भी अपने कुल्हों उठा कर मेरा साथ देना शुरु कर दिया। हम दोनों एक रफ्तार से दौड़ने लगे। यह दौड़ लम्बी चलनी थी। कुछ देर बाद हम दोनों ने बेड पर करवट ली और अब की बार माधवी मेरे ऊपर आ गयी, वह अपने कुल्हें उठा कर मेरे लिंग को अपने अंदर समा रही थी। मैं उस के उरोजों को चुम रहा था। हम दोनों ऐसे ही एक-दूसरे में समाते रहें। जब थक गये तो अगल-बगल लेट गये। लेकिन दोनों के शरीर में लगी आग अभी भी भड़क रही थी।

मैं माधवी के ऊपर आ गया और मेरा लिंग उसकी योनि में अंदर बाहर होने लगा। माधवी भी मेरा साथ दे रही थी। हमारा संभोग बहुत लंबा चला। लगभग 20 मिनट तक हम संभोगरत रहे। फिर अचानक मेरी आँखों के सामने तारे झिलमिला गये और मैं स्खलित हो गया। मेरे लिंग का मुँह मेरे ही गर्म वीर्य से जल सा रहा था। माधवी भी उसी समय स्खलित हुई और उस का योनि द्रव्य भी मेरे लिंग को भिगोने लगा।

मैं पस्त हो कर उस के ऊपर लेट गया। कुछ देर बाद उस के ऊपर से उठ कर बगल में लेट गया। दोनों की साँस धौंकनी की तरह चल रही थी। कुछ देर बाद हम दोनों की साँसें सही हुई। माधवी का हाथ मेरी छाती पर पड़ा था। उस ने करवट ले कर मुझे चुमा और मुझ से लिपट गयी उस की गरम साँसें मेरी छाती को गर्माने लगी। मेरी बाँहें उस की पीठ पर कस गयी। हम दोनों एक-दूसरें से कस कर चिपक गये।

मैंने माधवी के माथे पर चुम कर कहा, मुँह तो ऊपर करो

मुझे शर्म आती है

मुझ से कैसी शर्म?

माधवी ने अधखुली आँखों से चेहरा ऊपर उठाया तो मैंने उस के लब चुम लिये।

मैं उड़ रही हूँ मुझे पकड़ कर रखो, कही उड़ ना जाऊँ

तुम यही मेरे पास हो, मैं तुम्हें कही नहीं जाने दुँगा

माधवी ने मेरे गले में हाथ डाल कर कहा कि आप बहुत बदमाश हो

अब क्या बदमाशी करी है तुम्हारें साथ

इतने दिन तक मुझे तड़पाया है

मैं भी तो तड़पा हूँ, मुझे माफ कर दो

अब मुझे मत तड़पाना

हम दोनों ऐसे ही बातचीत करते रहे। कुछ समय बाद हम दोनों के शरीर में काम की आग फिर से भड़क गयी और हम दोनों उसे बुझाने में लग गये। इस बार आग को बुझने में काफी लंबा समय लगा। जब तुफान खत्म हुआ तो दोनों बुरी तरह से थक गये थे। इस लिये जल्द ही गहरी नींद में डुब गये।

सुबह मेरी नींद माधवी के उठाने से खुली। मैं भी उठ कर कपड़ें पहनने लग गया। इस के बाद माधवी कमरे से बाहर चली गयी। कुछ देर बाद वह कमरे में आयी तो बोली कि चाय पीने बाहर आ जाओ।

मैं कमरे से बाहर आ कर बरामदे में माता-पिता जी के पास जा कर बैठ गया। माधवी जब चाय ले कर आयी तो उस की चाल देख कर माँ के चेहरे पर मुस्कराहट छा गयी। मैंने उन के चेहरे की मुस्कराहट देख ली थी। माँ ने सब कुछ माधवी की चाल को देख कर समझ लिया था। माधवी भी पास में बैठ कर चाय पीने लगी।

चाय पीने के बाद मैं ऑफिस जाने के लिये तैयार होने लग गया। नहा कर आया तो बेड पर मेरे कपड़ें रखे हुये थे। माधवी वही पर खड़ी मेरा इंतजार कर ही थी। मुझ से उस ने पुछा कि देख लो कपड़ें सही रखे है? मैंने कहा सही ही रखे होगे। मेरी बात सुन कर वह रहस्मयी मुस्कान के साथ वहाँ से चली गयी।

सारा दिन में काम में व्यस्त रहा। शाम को जब घर पहुँचा तो माँ बोली कि तुम दोनों कोई फिल्म देखने क्यों नहीं चले जाते? मुझे उन की यह सलाह सही लगी। चाय पीने के बाद हम दोनों तैयार हो कर फिल्म देखने निकल गये। माँ शायद यह चाहती थी कि हम दोनों को एकान्त मिले। फिल्म तो क्या देखी हम ने, एक दूसरे के हाथ पकड़ कर बैठे रहे। फिल्म खत्म होने के बाद मैंने माधवी से पुछा की खाना खाना है तो वह बोली कि नेकी और पुछ पुछ।

हॉल के पास ही बढ़िया रेस्टोरेंट था। वहाँ जा कर एक अंधेरे कोने में बैठ गये। माधवी बोली कि आप बिल्कुल बदल गये हो। मैंने कहा कि शादी के बाद दोनों को बदलना पड़ता है, मैं बदला हुँ तो क्या खास बात है।

आप बाहर खाना खाने नहीं जाते थे, आप फिल्म नहीं देखते थे। अब क्या हूआ है?

पहले मेरे साथ कोई जाने वाली नहीं थी, अब है इस लिये खाना खाने, और फिल्म देखने का मन करता है।

मेरी इस बात पर माधवी मुस्कराने लगी।

आप वो नहीं हो जो सामने दिखाई देते हो।

आप से शादी करने के बाद मैं बदल गया हूँ।

मुझे आपके गंभीर स्वभाव से डर लगता था। फिर इतना बड़ा पद आदमी का दिमाग घुम जाता है।

मेरा तो नहीं घुमा है और तुम्हारे लिये तो मैं तुम्हारा पति हूँ, ऑफिसर तो ऑफिस में हूँ, घर में तो बेटा हूँ, पति हूँ।

आप से बातों में नहीं जीत सकती लेकिन मैं बहुत खुश हूँ। लेकिन इतने दिन तक तुम ने मुझे हाथ ही नहीं लगाया और ना ही अपने पास आने दिया तो लगा कि शायद शादी तुम ने जिम्मेदारी निभाने की मजबुरी में कर ली है। लेकिन अब मेरे सारे डर दूर हो गये है।

मैं उहापोह में था इसे तो मैं मानता हूँ लेकिन वह होना स्वाभाविक था लेकिन अब मैंने अपने उहापोह को सुलझा लिया है।

आप मुझे नहीं बता सकते थे, मुझे अपना नहीं मानते है

हाँ मेरी गल्ती है, तुम्हें सब कुछ बताना चाहिये था, लेकिन तुम से बात करने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। इसी उहापोह पर तो काबु पाया है। अब से अपनी हर परेशानी को तुम से बाँटुगा। तुम तो मेरी अर्धागनी हो, तुम्हें तो पता होना चाहिये कि मैं खुश हूँ या परेशान हूँ।

मुझे से अपनी परेशानी बाँटते तो आप को इतनी परेशानी ना झेलनी पड़ती।

मुझे माफ कर दो, आगे से ऐसी गल्ती नहीं होगी

माफी किस बात की मैं भी तो आप की हर खुशी और गम में बराबर की हिस्सेदार हूँ

हाँ, आगे से तुम से सब कुछ बाँटुगा

माँ हमे बाहर जाने के लिये कुछ ज्यादा नहीं कहती है?

वह चाहती है कि हमें एकांत मिले और हम दोनों में सामंजस्य बने

माँ को पता चल गया है कि कल क्या हूआ था

तुम्हारी चाल देख कर वह मुस्करा रही थी

मेरी चाल में अतंर था?

तुम लड़खड़ा रही थी, माँ ने यह बात नोटिस कर ली थी

मुझे तो पता ही नहीं चला

चलो इस बहाने उन की परेशानी भी दूर हो गयी

सब को सब कुछ पता है, मेरे को ही कुछ पता नहीं है

अब खुश हो जाओ, अब तो सब कुछ पता है

आप से तो नाराज हूँ, आप नें मुझे अपना नहीं समझा

तुम तो मेरी सब कुछ हो, अब गुस्सा थुक दो

तुम मुझे आप कहना बंद करो

क्या कहुँ?

तुम

कोशिश करुँगी, आप भी मुझे आप कहना बंद कर दो

मैंने तो बंद कर दिया है, इतनी देर से आप की जगह तुम ही तो कह रहा हूँ

तुम इतनी प्यारी बातें करते हो मुझे अब तक पता ही नहीं था

ऐसा मत कहो, तुम ही तो हो जिस से मैं बातें किया करता था

मेरे से ऐसी बातें तुम ने कब की थी?

तब रिश्तें की मर्यादा का ध्यान रखता था

तुम ऐसे निकलोगे मुझे पता नहीं था, मेरी तो मानो लॉटरी निकल आई है

मुझे क्या मिला है?

मेरी जैसी प्यारी सी बीवी मिली है

यह तो तुम सही बोल कह रही हो

बातें करके पेट भरने का इरादा है

मैंने वेटर को बुलाया और खाने का ऑडर कर दिया। कुछ देर बाद वेटर खाना लगा गया। हम दोनों खाना खाने लग गये। खाना खाने के बाद हम दोनों घर के लिये वापस चल दिये। रास्ते में मेरे बाये हाथ पर माधवी का हाथ पड़ा रहा या ऐसा कहे कि माधवी के हाथों में मेरा बाया हाथ था। मैं एक हाथ से ही ड्राइव करता हुआ घर पहुँच गया। हम दोनों को देख कर माँ और पिता जी के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी।

जब सोने के लिये बेडरुम में गये तो माधवी बोली कि आज तो दूध पीना पड़ेगा। मैंने हँस कर कहा कि जैसा तुम्हारा आदेश तो मेरी बात सुन कर मेरी पीठ पर माधवी के मुक्कों की बरसात होने लगी। मैंने उसे आगोश में भर लिया। उस की बाँहें भी मेरी पीठ पर कस गयी। फिर हम दोनों चुम्बन में डुब गये। जब साँस फुल गयी तभी चुम्बन खत्म हुया। आज की रात जोरदार होनी थी यह मुझे पता था।

माधवी दूध लेने चली गयी। कुछ देर बाद आयी तो उस के हाथ में दो दूध से भरे गिलास थे और उस के आँखों में शरारत झलक रही थी। मैंने उस के हाथ से गिलास ले कर कुछ देर में ही उसे खाली करके मेज पर रख दिया। माधवी भी धीरे-धीरे गिलास से दूध पी रही थी और मुझे मुस्करा कर देख रही थी। आज वह बिल्कुल बदली हुई लग रही थी। हम दोनों ही बदल गये थे। इस लिये यह रात भी खास होनी थी।

जब उस ने अपना गिलास मेज पर रखा और मेरे पास आयी तो मैंने उसे पकड़ कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिये। उस के दूध से सने होंठों का स्वाद मेरे होंठो ने भी उठा लिया। इस के बाद मेरी होंठ उस की गरदन पर आये और गरदन को चुमने लगे।

मेरे चुमने में इतनी ताकत थी कि माधवी की गरदन पर लवबाइट बन गये लेकिन हम दोनों को अब किसी बात का ध्यान नही था। दोनों प्रेम का आनंद उठाने में लगे हुये थे। माधवी ने साड़ी उतारी नहीं थी और ना ही आज उस का कोई ऐसा इरादा था।

उस के हाथ मेरी पीठ पर कसे हुये थे और वह भी मेरे गरदन पर चुम्बन ले रही थी। दोनों एक दूसरे के शरीर पर निशान छोड़ रहे थे। यह भी प्रेम की पराकाष्ठा ही है। मैंने उस का चेहरा हाथों में ले कर उस के होंठों को चुमना शुरु कर दिया। मेरी जीभ उस के मुँह में घुस गयी और माधवी की जीभ से अठखेलियां करने लगी।

उस की जीभ भी मेरी जीभ को चाट रही थी। हमारी यह जीभ लीला हम दोनों के शरीर में काम की अग्नि को और बढ़ा रही थी। मेरे हाथ उस के कुल्हों को अपने शरीर से सटा रहे थे। उसे भी मेरे उभरे लिंग का अनुभव अपनी कमर पर हो रहा था।

फिर मैंने अपने हाथ से माधवी के वक्ष को सहलाना शुरु कर दिया। वह भी मेरी पीठ को सहला रही थी। मेरे होंठो ने उस की वक्ष रेखा के मघ्य चुम्बन लेना शुरु कर दिया। उस के स्तन ब्रा में तनाव के कारण भर से गये थे। मेरे हाथ उन्हें ब्लाउज के ऊपर से ही दबा और सहला रहे थे। माधवी ने उत्तेजना के कारण अपनी आँखे बंद कर ली थी।

मैने उस के ब्लाउज के हुक खोल कर उसे उतार दिया, इसके बाद उस की भुरे रंग की ब्रा को भी उसके शरीर से अलग कर दिया। उस के सफेद कठोर उरोजों के भुरे रंग के तन कर आधा इंच के हुये निप्पल पीये जाने के लिये ललचा रहे थे। मैंने उनमें से एक निप्पलको होंठो में ले कर चुसना शुरु किया और दूसरे को हाथ से मसलना

आहहहहहह उहहहहहहहहहहहहहहह उहहहहहहहहहहहह

मैं एक एक करके दोनों उरोजों का रस पीले लगा। माधवी जो अभी खडी थी उत्तेजना के कारण कांप सी रही थी। मैंने उस की साड़ी भी उतार कर बेड पर रख दी। और उस के पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया। पेटीकोट उस के पैरों में गिर गया।

मैंने उसे गोद में उठाया और बेड पर लिटा दिया, और उस के साथ लेट गया। माधवी की मादक आवाज मेरे कान में पड़ी की तुम्हारें कपड़ें खराब हो जायेगे इन्हें उतार दो तो मुझे ध्यान आया कि मैं अभी भी पेंट और शर्ट में था मैंने बेड के नीचे आ कर कपड़ें उतार दिये और मैं भी ब्रीफ में आ गया।

मैं माधवी पर झुका और उस की पेंटी पर चुम्बन ले लिया। फिर उँगलियों की सहायता से उस की पेंटी भी उस के शरीर से अलग कर दी। अपनी ब्रीफ भी उतार दी। हम दोनों मादरजात नंगे थे। मैंने झुक कर माधवी की योनि को चुमा और उसके बाद उस की केले के तने के समान भरी पिड़लियों को चुमता हुआ उस के पंजों तक पहुँच गया।

दोनों पैरों की सभी उँगलियों को होंठो में ले कर चुसा और फिर उस की पिंडलियों को चुमता हुआ उस की पीठ पर पहुँचा और उस की रीढ़ की हड्डी को चाटता हुआ उस की गरदन तक पहुँच कर गरदन को चुमना शुरु कर दिया। माधवी पलट गयी और उस का चेहरा मेरे सामने आ गया।

मैं उस की जाँघों में मध्य में झुक गया और उस की योनि को चुमने चाटने लगा। मेरे होंठो नें योनि द्वव के कड़वे स्वाद का मजा लिया और मेरी जीभ उस की योनि में घुस गयी। माधवी ने उत्तेजित हो कर अपने हाथों से मेरा सर पकड़ कर अपनी जाँघों के बीच दबा लिया।

मैं उस की योनि का रसपान करता रहा। माधवी ने मेरे लिंग को हाथ से सहलाया जो तनाव के कारण तन कर पुरा छ इंच का हो गया था। उस फुले लिंगको वह कुछ देर तक सहलाती रही। इस के बाद वह मेरे नीचे से निकल गयी और उस ने मुझे अपने ऊपर खींच लिया।

मैंने अपने लिंग को उस की योनि पर रख कर दबाया तो लिंग नमी होने की वजह से योनि में चला गया।

आहहहहहहहह उहहहहहहहहह आहहहहहहहहहह

मैंने कुल्हों को हिलाया तो आधा लिंग माधवी की योनि में समा गया। तीसरे वार में पुरा लिंग माधवी की योनि में समा गया। माधवी के मुँह से आहहहह निकली मुझे लगा कि लिंग बच्चेंदानी के मुँह पर जा कर लगा था।

मैं धीरे धीरे अपने लिंग को अंदर बाहर करने लगा। कुछ देर बाद माधवी में अपने कुल्हों को उठा कर मेरा साथ देने लग गयी। हम दोनों एक साथ दौड़ने लग गये। हम दोनों की गति बढ़ती ही जा रही थी। वासना का जोश पुरे उभान पर था। हम दोनों ने करवट बदली और माधवी मेरे ऊपर आ गयी। कुछ देर तक वह अपने कुल्हों को हिला कर लिंग को अंदर बाहर करती रही। फिर मैं उठ कर बैठ गया और माधवी को अपनी गोद मे बिठा लिया।

उस की टाँगे मेरे कुल्हों पर आ गयी। हम दोनों एक दूसरे के आमने-सामने थे मैं उस के होंठों को चुम रहा था। वह कुल्हों को उठा कर लिंग का मजा ले रही थी। इस के बाद मैं उस के उरोजों को चाटने लगा। माधवी बुरी तरह से उत्तेजित थी। उस ने मेरे कंधे में अपने दांत गढ़ा लिये। मैं दर्द से बिलबिला गया। मैं भी उस के कुल्हों के नीचे हाथ लगा कर उन्हें उछाल-उछाल कर अपने लिंग को अंदर बाहर करता रहा। जब इस आसन में थक गये तो मैंने माधवी को पीठ के बल लिटा दिया।

मैंने उस की दोनों टाँगें अपने कंधों पर रखी और अपना लिंग उस की योनि में डाल दिया। योनि कसी होने के कारण उस के मुँह से आहहहहहहहह आहहहहहहहह निकलने लगी। मैं धक्कें लगाता रहा। कुछ देर बाद माधवी ने कहा कि मेरी टाँगें दर्द कर रही है तो मैंने उस की एक टाँग नीचे कर दी और एक टाँग ऊपर कर के धक्कें लगाने शुरु कर दिये।

आहहहहहह उहहहहहहह आहहहहहह एहहहहहहहह

मैंने उस की दूसरी टाँग भी नीचे कर दी। अब में उस के ऊपर लेट कर धक्कें लगा रहा था कोई पाँच मिनट बाद मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया और मैं स्खलित हो कर माधवी के ऊपर लेट गया। माधवी की टाँगें भी मेरी कमर पर कस गयी। शायद वह भी स्खलित हो गयी थी।

कुछ देर बाद होश आने पर मैं उस के ऊपर से उतर कर बगल में लेट गया। हम दोनों ही लंबें संभोग के कारण पसीने से नहा गये थे। मैंने करवट बदलीऔर माधवी को अपने से चुपका लिया। माधवी बोली कि आज क्या हो रहा है। मैंने कहा कुछ नहीं मैं अपनी पत्नी से प्यार कर रहा हूँ वह बोली कि आज मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम ने अगली पिछली सारी कसर निकाल ली है।

सो तो होना ही है मैंने तुम्हें बहुत तड़पाया है तो उस का बदला तो चुकाना पड़ेगा।

कल सुबह मेरी हालत बहुत खराब होने वाली है

घर में सब को पता है

क्या पता है?

कि दोनों बच्चों नें अब अपनी विवाहित जिन्दगी शुरु कर दी है इस लिये इस से कोई नाराज नहीं होने वाला

तुम्हारें पास हर बात का जवाब है

शायद तुम्हारें हर सवाल को जवाब तो है ही

आज क्या हो गया है तुम्हें?

तुम मुझे और ज्यादा सेक्सी लग रही थी

मैं तो वैसी ही हूँ

मेरी नजर बदल गयी है

या यह बात है कि हम दोनों ज्यादा बातें करने लगे है

यह भी हो सकता है कि हम पति पत्नी ज्यादा एक दूसरे को समझ रहे है और हम में प्यार बढ़ रहा है

कहाँ जा कर रुकेगा

यह अब रुकेगा थोडी ना दिन पर दिन बढ़ता जायेगा

मुझे नही पता था कि मेरा पति अंदर से इतना रोमान्टिक है

मैं क्या हूँ तुम्हें धीरे धीरे पता चलेगा या कहुँ कि तुम उसे धीरे धीरे बाहर लाओगी

अच्छा इस सब के पीछे मैं हूँ

हाँ, इस सब के पीछे तुम यानी मेरी पत्नी ही है

माधवी ने अपने होंठों से मेरा मुँह बंद कर दिया। यह इस बात का संकेत था कि अब हमें सोना चाहिये। वही हम दोनों ने किया।

सुबह उठा तो देखा कि माधवी मेरे पेट पर टाँगें रखे सो रही थी। बालों से घिरा उस का चेहरा बहुत सुंदर लग रहा था। हम दोनों के शरीर नीचे से यौन द्ववों से सने थे और उन के सुख जाने से चिपक से रहे थे। तभी माधवी ने भी आँखें खोल दी मुझे अपने को देखते हुये बोली कि क्या देख रहे हो। मैंने शरारत से कहा कि देख रहा था कि रात को क्या मेहनत की थी। वह बोली कि अच्छी तरह से देख लो और जा कर साफ करो, उठने का समय हो गया है।

मैं उठ कर बाथरुम में चला गया। जब बाहर आया तो देखा कि माधवी भी कपड़ें पहन चुकी थी। वह भी बाथरुम में चली गयी। कुछ देर बाद आयी तो उसने बेड की चद्दर को देखा और मुझ से कहा कि इस को भी बदलना पड़ेगा।

मेरी नजर में शरारत भाँप कर वह बोली कि लगता है हर दिन नयी चद्दर बदलनी पड़ेगी तो मैं बोला कि अब तो हर दिन ऐसा ही हाल होगा इस का। माधवी ने मेरे सर पर चपत लगायी और अलमारी से नयी चद्दर निकालने लगी। मैं बेड से सामान हटाने लगा। फिर हम दोनों ने मिल कर बेड की चद्दर बदल दी। बेड की चद्दर हमारे शरीर के यौन द्ववों से सन कर दागदार हो गयी थी।

इस के बाद हम दोनों बेडरुम से बाहर निकल गये। माधवी किचन की तरफ और मैं आंगन की तरफ निकल गया।

हम दोनों के मध्य प्रेम प्रगाड़ हो रहा था। मैं माधवी से अब अपनी हर बात शेयर करने लगा था। हम दोनों को लगा कि हमें कुछ दिनों के लिये एंकात में अवकाश पर जाना चाहिये। माँ तो इस के लिये काफी समय से कह रही थी। मैं इस के लिये 15 दिन की छुट्टियों के लिये आवेदन कर दिया। छुट्टियाँ स्वीकृत हो गयी। मैंने जब यह बात माधवी को बताई तो वह बहुत खुश हुई। माँ को जब यह बताया तो वह बोली कि मैं तो इस के लिये काफी दिनों से कह रही थी।

हम दोनों छुट्टियों के लिये तैयारी करने लग गये। पहाड़ों पर एंकात में छुट्टी बिताने को लेकर मैं भी बहुत उत्सुक था। माधवी की भी कुछ ऐसी ही हालत थी। हम दोनों अपनी छुट्टियों को लेकर रोज तैयारी करने लगे। फिर वह दिन भी आ गया जब हम दोनों घर से पहाड़ों के लिये निकल गये। यह छुट्टियां हम दोनों मिया बीवी को और पास लाने वाली थी। जो कुछ हम दोनों के बीच दूरी बची थी या कहे की शर्म थी अब वह खत्म होने वाली थी।

हम दोनों अपने हनीमून के लिये पहाड़ों पर एकान्त जगह के लिये निकल गये। मेरे किसी सहयोगी नें इस स्थान के बारें में बतलाया था। नये शादी शुदा लोगों के लिये यह बहुत बढ़िया जगह थी ऐसा उस का कहना था। जब हम अपने गन्तव्य पर पहुँचें तो सहयोगी कि बात सही निकली यह छोटा सा पर्वतीय हिल स्टेशन भीड़-भड़क्कें से बहुत दूर था। अपने रिसार्ट में नदी किनारें काफी समय बिताया जा सकता था।