Bhabhi ka haseen dhokha Ch. 06

Story Info
The Final Part - Revelations.
10.5k words
4.59
6.3k
2
0

Part 6 of the 6 part series

Updated 06/08/2023
Created 09/11/2017
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भाभी की यह बात सुनकर मेरी बांछें खिल उठे. मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.

"आप सच कह रही हो भाभी? आप सच में मेरे साथ बच्चा करना चाहती हो?"

"राजू... कल रात को जो तूने मुझसे कहा, वह कठोर से कठोर औरत के दिल को भी पिघला सकता है".

मैं भाभी के मुलायम पेट को सहलाने लगा और उनकी नाभि के साथ खेलने लगा.

"भाभी, मुझे यकीन नहीं हो रहा है. मैं इंतजार नहीं कर सकता आपके पेट को मेरे बच्चे से फूलता हुआ देखने को".

यह सुनकर भाभी मुस्कुरा दी. फिर मैं भाभी के ऊपर चढ़ गया और प्यार से उनके होंठ चूमने लगा. होठों को चूमते हुए मैं अपने हाथ भाभी की चूचियों के ऊपर ले आया और हल्के-हल्के उनको दबाने लगा और चूचको को खींचने दबाने लगा. यह खूब देर चला. फिर मैं भाभी के एक चूचक को मुंह में लेकर चूसने लगा. भाभी मेरे सर पर अपना हाथ फेरने लगी और प्यार से अपनी चूची मुझसे चुसवाने लगी. खूब देर उनकी चूची चूसने के बाद मैं बोला,

"भाभी, मैं इंतजार नहीं कर सकता उस दिन का जब आपकी यह चूचियां दूध देने लगेंगी और हमारे बच्चे को आप अपना दूध पिलाओगी"

भाभी इस बात पर मुस्कुराई.

"भाभी, क्या मुझे भी अपना दूध पिलाओगी?"

"राजू, मां का दूध उसके बच्चे के लिए होता है. इसलिए मेरे दूध पर सबसे पहला हक हमारे बच्चे का होगा. उसके बाद तुझे जितना मेरा दूध पीना हो, पी लेना".

यह सुनके मैं खुश हो गया और भाभी के होंठ चूम लिए. मेरा लंड पहले से ही खड़ा था. मैंने अपना लंड भाभी की चूत पर टिकाया लेकिन तभी भाभी बोली, "राजू, रुक जा."

"क्या हुआ भाभी?"

"राजू, हम बच्चा पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए बेहतर यह होगा कि तू अपने अंडों को थोड़ा आराम दे. इन्हें ढेर सारा बीज बनाने दे और फिर चोदना मुझे ताकि मैं जल्दी मां बन जाऊं."

"लेकिन भाभी, मेरे टट्टे तो हमेशा ही बहुत माल बनाते हैं."

"राजू मेरी बात मान. कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है. तुझे मेरे साथ बच्चा करना है?"

"हां भाभी, बिल्कुल करना है."

"तो ठीक है. कल शाम तक तू मेरे साथ चुदाई नहीं करेगा और ना ही अपना लंड हिलाएगा".

"कल शाम तक? भाभी, मैं तो पागल हो जाऊंगा."

"राजू, सब्र कर. तेरे लंड के बिना मेरी यह चूत भी बहुत खुजलाएगी."

"भाभी, यह आपकी शर्त है तो मेरी भी एक शर्त है."

"क्या राजू?"

"कल शाम की चुदाई हम घर के अंदर नहीं करेंगे"

"तो कहां करेंगे, राजू?"

"घर की छत पर. जहां पर सिर्फ आप और मैं होंगे और एक गद्दा. और भाभी आप एक लाल साड़ी पहन कर आओगी."

"ठीक है राजू. अगर तू यही चाहता है तो यही सही. चल अब उठ जा. मैं जरा फ्रेश हो लूं"

भाभी उठकर बाथरूम चली गयी और अपने दांत घिसने लगी. मैं भी बाथरूम में गया और मूतने लगा. मूतने के बाद में भाभी के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उनकी पीठ चूमने लगा. मेरा एक हाथ उनके पेट पर था अब दूसरा उनकी एक चूची पकड़ा हुआ था. मैं उनका पेट सहलाने लगा और फिर नाभि में उंगली डालकर नाभि से खेलने लगा. मेरी नजरें भाभी से मिली. भाभी मुझे देख कर मुस्कुराई. मैं यही करता रहा जब तक वह ब्रश करती रही. ब्रश करने के बाद वह पलटी और मैं उनके होंठ चूमने लगा.

"राजू तू भी ब्रश कर ले."

मैंने भाभी का ब्रश लिया और उन्हें ही थमा दिया.

"यह लीजिए भाभी"

"राजू, यह तो मेरा ब्रश है"

"हां भाभी, अब आप अपने ब्रश से मेरे दांत ब्रश कीजिए"

मैं कमरे से स्टूल ले आया उसपर बैठ गया. भाभी आकर मेरे दांत ब्रश करने लगी. मेरे हाथ भाभी के पेट पर थे और मैं उनकी नाभि से खेलने लगा. मुझे थोड़ी शरारत सूझी. मैंने अपनी उंगली अपने मुंह में डालकर गीली की और उससे भाभी की चूत मलने लगा.

"आह राजू!"

मैं भाभी की चूत मलता रहा. भाभी की चूत बुरी तरह से रिस रही थी. मेरा हाथ उनकी चूत के पानी से पूरा भीग चुका था. मेरी नजर भाभी की भगनासा पर पड़ी. मैं अपना दूसरा हाथ नीचे लाकर उनकी भगनासा रगड़ने लगा. भाभी के मुंह से कामुक आवाज निकलने लगी.

इसी बीच मेरा ब्रश भी हो गया था. मैंने भाभी को स्टूल पर बैठाया और खुद जमीन पर बैठ गया. और फिर अपनी जीभ से मैंने उनकी चूत पर धावा बोल दिया. दूसरे हाथ से में उनकी भगनासा को छेड़ता रहा.

"हां.... हां..... हां... राजू. बस वही पर. हां वही पर".

भाभी की चूत का रस टपक टपक कर मेरी जीभ पर गिर रहा था. चूत का रस मुझे और चाटने को प्रेरित कर रहा था. मैं अपने हाथ भाभी की गांड पर ले गया और भाभी को आगे की तरफ खिसकाया. मैंने एक गहरी सांस ली, फिर पूरी ताकत से भाभी की चूत चाटने लगा. मैंने तो अपने आपा ही खो दिया.

"आह...आह... आह... आह...... चाटो इसे.... चाटो इसे.... चाटो.... खूब चाटो".

भाभी ने मेरे हाथ पकड़ कर अपनी चुचियों पर रख दिए.

"मसलो.... मसलो मेरी चूचियां... और चाटो अपनी भाभी की चुदक्कड़ फुद्दी को... चाट इसे... चाट इसे राजू".

मैं भाभी की चूची भी मसलने लगा. भाभी ने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकड़ लिया.

"राजू... मैं छूटने वाली हूं बहुत जल्द... आह...आह... आह... आह".

तभी मैंने भाभी के दोनों हाथ पकड़ कर अलग किए और अपना सर उनकी चूत से हटा दिया. मैंने उनके हाथों को छोड़ा नहीं.

"यह क्या कर रहा है राजू? चाटना क्यों बंद किया तूने?"

"भाभी... अब आप समझो मेरे लंड का दर्द. आपकी चूत के बिना यह कल शाम तक कैसे रह पाएगा? आप तो मजे से अपनी चूत मेरे से झड़वा रही थी, लेकिन मेरे इस लंड को तो कल शाम तक भूखा रहना है."

भाभी जोर-जोर से हाफ रही थी.

"भाभी आप चाहो तो मैं अभी आपको छुटा सकता हूं. अपने इस खड़े लंड से आपको चोद कर. लेकिन फिर मैं अपना माल जल्दी छोड़ दूंगा शायद कल की चुदाई में मैं आपको मां ना बना सकूं? तो फैसला कीजिए आपको क्या चाहिए? अपनी चूत की संतुष्टि या मेरा बच्चा?"

खूब देर तक हांफने के बाद भाभी शांत हुई और फिर बोली "राजू, मेरी मां बनने की चाह अपनी चूत की संतुष्टि से कहीं ऊपर है. संभाल कर रख अपना लंड और बचा कर रखा अपने टट्टों में बन रहा माल. मैं तेरे से कल शाम से पहले नहीं चुदूंगी. चल अब जा और मुझे नहाने दे."

"भाभी, मैं आपको अकेले नहीं छोड़ सकता. कहीं आप मेरे पीछे अपनी चूत रगड़ने लगी तो?"

"ओहो राजू... बड़ा जालिम है रे तू. अच्छा ठीक है चल. मैं तेरे सामने ही नहा लेती हूं."

मैं उनके शरीर को निहार रहा था.

"भाभी, आपको ऐसे नंगा देखकर सच में लगता है कि स्वर्ग से कोई अप्सरा धरती पर अवतरित हो गई हो. सच में भाभी, आपके संग बच्चा करके मैं धन्य महसूस कर रहा हूं."

भाभी मुस्कुराई.

"आजा राजू. तू भी मेरे संग नहा ले."

"भाभी आज शावर के बजाय बाथटब में नहाए क्या?"

"मैं भी यही सोच रही थी राजू."

मैं कपड़े निकाल कर नंगा हो गया और बाथटब का पानी भरने के बाद उसमें बैठ गया और भाभी भी आके उसमें बैठ गई. उनकी पीठ मेरी तरफ थी.

मैं पानी से उनके शरीर को धोने लगा. वह भी साबुन लगाके अपने शरीर को धोने लगी. मैंने हाथ आगे बढ़ा के भाभी के पेट पर रख दिए और उनकी पीठ चूमने लगा.

"कितनी खूबसूरत हो तुम, सुमन भाभी. मैंने आपको आपकी शादी के समय देखा था, तभी से मेरा दिल आप पर आ गया था. मैंने कभी नहीं सोचा था कि 1 दिन आपको चोदूंगा और आपके साथ बच्चे पैदा करूंगा."

"राजू, बच्चे?"

"हां भाभी. मैं आपके संग सिर्फ एक नहीं बहुत सारे बच्चे पैदा करना चाहता हूं."

मैं भाभी की गर्दन चूमने लगा.

"मेरे बच्चे आपके पेट में 9 महीने पलेंगे".

मैं उनके पेट पर हाथ फेरते हुए बोला.

"फिर आपकी चूत से पैदा होंगे".

मैं अपना हाथ उनकी चूत पर ले गया.

"और फिर आपके स्तनों से दूध पिएंगे".

मैं अपना दूसरा हाथ उनकी चूची पर लेख जाकर चूचियां मसलने लगा और दूसरे हाथ की उंगलियों से उनकी चूत चोदने लगा. बीच में भाभी की गर्दन चूम और चूस रहा था.

भाभी की सांसे तेज होने लगी. मैं उनकी चूत में उंगली करता रहा. फिर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया. इसी बीच मैं उनके चूचको को खींच-दबा रहा था. काफी देर तक यही चलता रहा.

मुझे महसूस हुआ कि भाभी का शरीर अकड़ रहा है. मुझे मालूम था कि इसका मतलब है कि वह छुटने वाली है. मैंने तुरंत उनकी चूत से अपनी उंगलियां निकाली और अपनी हथेली से उनकी चूत को ढक लिया.

"राजू! मैं छूटने वाली थी. इतना अत्याचार करेगा अपनी भाभी पर".

"भाभी, मेरा लंड भी तो इस अत्याचार को झेल रहा है".

भाभी को कुछ वक्त लगा शांत होने में. फिर हम दोनों बाथटब से बाहर निकले और एक दूसरे के शरीर को पोछने लगे.

"राजू, चल अब मुझे नाश्ता बनाने दे".

फिर भाभी अपनी गांड मटकाते हुए रसोई की तरफ चली गई.

मैं भाभी के बिस्तर पर आकर लेट गया और कुछ मिनट आराम किया. तब तक भाभी चाय और नाश्ता लेकर आई.

"भाभी, आपने रसोई में छूटने की कोशिश तो नहीं की ना?"

"नहीं राजू".

"खाओ मेरी कसम, भाभी".

"राजू, मैं हमारे होने वाले बच्चे की कसम खाती हूं"

फिर मैं और भाभी एक दूसरे को नाश्ता खिलाने लगे. भाभी की खूबसूरती को देखता रहा. मुझे यकीन नहीं हुआ कि मुझे इस औरत के संग बच्चा करने का मौका मिल रहा है.

फिर मैंने चाय पी.

"भाभी, चाय में चीनी थोड़ी कम है".

"रुक राजू, मैं थोड़ी चीनी ले आती हूं".

"ठहरो भाभी, मुझे मालूम है चीनी कहां से लेनी है".

मैं भाभी के पास आ गया और उनके होंठ चूमने लगा. कुछ सेकंड तक उनके होंठ चूमने के बाद मैंने चाय की एक चुसकी ली.

"भाभी, अभी चाय हो गई है मीठी".

भाभी मुस्कुराई. हम एक दूसरे को चूमते हुए चाय पीने लगी. कुछ ही मिनट में हमारी चाय खत्म हो गई.

"राजू, अब क्या करना है? चुदाई तो हम कर नहीं सकते. क्या करना चाहता है?"

"भाभी एक खेल खेलोगी मेरे साथ?"

"कैसा खेल राजू?"

"बहुत आसान है भाभी. हमें बस एक दूसरे को चूमते रहना है. लेकिन जिसने भी सबसे पहले हमारा चुंबन तोड़ा वह हार जाएगा."

"बस इतना ही?"

"बस एक शर्त है. जीतने वाला हारने वाले से कोई भी एक काम करा सकता है और हारने वाला मना भी नहीं कर सकता."

"बस. यह खेल तो मैं बहुत आसानी से जीत जाऊंगी, राजू. हारने के लिए तैयार हो जा."

हम एक दूसरे से चिपक गए और एक दूसरे के होठ चूसने लगे. हमारे चुंबन बहुत गहरे थे. हम पूरी शिद्दत से एक दूसरे को चूम रहे थे. मेरा एक हाथ भाभी के पेट पर था. मेरी उंगलियां भाभी की नाभि से खेल रही थी. मेरा दूसरा हाथ भाभी के चेहरे पर प्यार से रखा हुआ था. बहुत ही कामुक माहौल था. हम आधे घंटे तक एक दूसरे को यूं ही चूमते रहे.

और मैंने भाभी के मुंह में अपनी जीभ डाल दी. हमारी जीभ में घमासान युद्ध शुरू हो गया और साथ ही थूक का आदान-प्रदान भी होने लगा. मेरा लंड तो खड़ा हो ही चुका था.

इसी बीच मैं अपनी उंगलियां भाभी की नाभि से हटाकर उनकी चूत में डालकर उनकी चूत चोदने लगा.

भाभी के अंदर से 'मममममम मममममम' की आवाजें आने लगी.

हम कुछ देर तक एक दूसरे को ऐसे ही चूमते रहे. थोड़ी देर बाद मैंने भाभी को बिस्तर पर लेटा दिया. मैंने इस बात का ध्यान रखा कि मेरे होठ भाभी के होठों से अलग ना हो. मैंने अपना खड़ा लैंड भाभी की चूत में डाला और उससे उनकी चूत चोदने लगा.

भाभी घबरा कर उठी.

"क्या कर रहा है तू, राजू. तुझे चोदने के लिए मना किया है ना."

"भाभी, आप शर्त हार गई."

भाभी मुझे देख कर मुस्कुराई.

"राजू, तू तो यह छल कपट से जीता है."

"लेकिन भाभी, जीता तो मैं ही ना. अब मैं आपसे कोई भी एक काम करवा सकता हूं और आप उसके लिए न भी नहीं कर सकती हो."

"अच्छा बाबा, क्या चाहता है तू? सब कुछ तो करवा लिया तूने मुझसे. मुझे कभी भी चूमता है. मेरे संग कितनी चुदाई करता है. मेरे शरीर पर अपने हाथ फेरता है. मुझे पूरे दिन नंगा रखता है. मेरी चूत चाटता है. और तो और अब तू मेरे साथ बच्चा भी कर रहा है. अब और क्या चाहिए तुझे?"

"भाभी, बस एक चीज भूल गई."

"वह क्या राजू?"

मैंने भाभी के मुंह में अपनी उंगली डाली और गीला किया. फिर उंगली को उनके मुंह से निकाल कर उनकी गांड का छेद मलने लगा.

"आपका यह छेद, भाभी".

"राजू, यह तू क्या कह रहा है. तू मेरी गांड मारना चाहता है?"

"हां भाभी".

"राजू, मेरी गांड अभी भी कुंवारी है. मैंने यह किसी से नहीं चुदवाई. इसे तो बक्श दे."

"नहीं भाभी. मेरा आपकी गांड मारने का बहुत मन है. आप जब चलती हो तो आपके बलखाते चूतड़ मेरे लंड में जान डाल देते हैं. इसलिए आपका यह छेद का उद्घाटन मेरा लंड करना चाहता है."

"लेकिन राजू..."

"भाभी, आप शर्त हारी थी और अपनी जीत से मैं आपके संग यही करना चाहता हूं. आपकी यह मस्त गांड चोद चोद के ढीली करना चाहता हूं."

"राजू, अगर तेरी यही इच्छा है तो मैं तेरी इच्छा को पूरा करूंगी, तुझसे अपनी गांड मरवा कर. लेकिन प्यार से मारना. मैंने सुना है कई बार गांड मारते समय औरत हग देती है. ध्यान रहे कि मैं भी ना हग दूं."

"भाभी, इसलिए आप दोपहर का खाना खाने के बाद कल शाम तक कुछ मत खाइए गा. कल रात को आपके गर्भाधान के बाद आपकी गांड मारूंगा."

फिर मैं लेट गया और भाभी मेरे ऊपर आ गई.

मैंने एक उंगली मुंह में डालकर गीली की. फिर उससे भाभी की गांड का छेद मलने लगा.

"राजू, ऐसे ही मलता रह. बहुत अच्छा लग रहा है. बहुत अच्छा लग रहा है".

कुछ देर मलने के बाद मैंने अपनी उंगली भाभी की गांड के अंदर डाल दी.

"राजू, यह क्या कर रहा है?"

"भाभी, आपने अपनी गांड कभी नहीं चुदवाई है. ताकि कल दर्द ना हो, मैं आपकी गांड को खोल रहा हूं".

मैंने अपनी उंगली पूरी उनकी गांड के अंदर डाल दी. भाभी बहुत कसमसाई फिर शांत हो गई. हम दोनों कुछ घंटे ऐसे ही आराम करते रहे.

फिर भाभी उठी और उन्होंने कहा, "राजू, मुझे खाना बनाना है. अपनी उंगली मेरी गांड से निकाल ले."

"नहीं भाभी, आज पूरा दिन मेरी उंगली आपकी गांड के अंदर ही रहेगी."

"क्या?"

"हां भाभी. मुझे आपकी गांड को अपने लंड के लिए खोलना है. इसलिए यह मैं अपनी उंगली आपकी गांड से आज बिल्कुल नहीं निकालूंगा."

"अच्छा बाबा, जो मर्जी है वह कर. अभी मुझे रसोई जाना है तो चल मेरे साथ."

भाभी उठी तो उनके साथ मैं भी उठा. मेरी उंगली उनकी गांड के अंदर ही थी. भाभी जब एक कदम आगे बढ़ी तो मैं भी उनके साथ एक कदम आगे बढ़ता. चलते समय मेरी उंगली उनकी गांड में अलग-अलग जगह रगड़ रही थी. भाभी को खूब आनंद मिल रहा था. वह कामुक आवाजें निकालकर मेरी हरकतों को अपनी स्वीकृति दे रही थी.

रसोई पहुंचकर भाभी ने खाना बनाना शुरू किया और मैंने अपनी उंगली से उनकी गांड चोदना. भाभी को बहुत मजा आ रहा था. मैं अपना दूसरा हाथ आगे बढ़ा कर उनकी चूत और भगनासा से खेलने लगा. भाभी मुस्कुरा कर अपना काम कर रही थी. तभी मैंने भाभी से कहा, "भाभी, थोड़ा मक्खन गर्म कर दोगी क्या?"

"अभी करती हूं राजू."

भाभी मक्खन गर्म करने लगी. इसी बीच मैंने अपनी दूसरी उंगली भी भाभी की गांड के अंदर डाल दी. दूसरी उंगली डालते समय भाभी को थोड़ी तकलीफ हुई तो मैंने नीचे झुक के दूसरे हाथ से उनका पिछवाड़ा खोला और अपनी उंगली डाली. फिर मैंने प्यार से उनके कूल्हे को दांत से काटा. इसी बीच मक्खन पूरा पिघल चुका था लेकिन थोड़ा गर्म था. थोड़ी देर हमने उसे ठंडा होने के लिए छोड़ दिया और हम ऐसे ही अवस्था में खड़े रहे. मेरी एक हाथ की उंगलियां भाभी की गांड में और दूसरे हाथ की उंगलियां उनकी चूत के अंदर. थोड़ी देर बाद जब खाना पक गया ओ भाभी बोली "राजू, खाना तैयार है. खा ले."

मैंने उनकी गांड से अपनी उंगलियां निकाली, फिर नीचे झुक कर चेक किया तो देखा कि गांड काफी खुल गई है. मैं उठा और भाभी को चूमने लगा.

"भाभी, मुझे कस के पकड़ लो."

"क्यों राजू?"

और तभी मैंने भाभी को कमर से पकड़कर उन्हें उल्टा कर के पकड़ लिया. अब भाभी के पैर ऊपर और सर नीचे था. भाभी की चूत मेरे मुंह के सामने थी और भाभी का चेहरा मेरे लंड के सामने. भाभी को अपना संतुलन बनाने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी.

"भाभी मैंने आपको पकड़ लिया है. अब आप भी मेरी कमर को अपने हाथों से पकड़ लीजिए और अपने पैरों से मेरी गर्दन को."

भाभी ने वैसा ही किया.

"राजू, तूने मुझे उल्टा क्यों किया है? अब क्या करने का इरादा है अपनी भाभी के साथ?"

भाभी की चूत मेरे मुंह के सामने थी. मैंने अपनी जीभ निकाली और उनकी चूत चाटने लगा. भाभी भी जल्द ही कामुक आवाजें निकालने लगी. मेरा लंड उनके मुंह के सामने था. वह मेरा लंड मुंह में लेकर चूसने लगी. बहुत ही कामुक माहौल था.

"ध्यान से भाभी. इतना मत चूसना कि कहीं मैं छूट ही जाऊं."

भाभी ने मेरा लंड चूसना बंद कर दिया.

"राजू, तूने इसके लिए मुझे उल्टा किया है. मेरी चूत चाटने के लिए?"

"नहीं भाभी, मैं तो बस आपका ध्यान भटका रहा था."

"किस चीज से?"

"इससे."

मैंने एक हाथ से भाभी की गांड खोली. दूसरे हाथ से गर्म मक्खन का कटोरा उठाया और पिघला हुआ मक्खन उनकी गांड के अंदर बहाने लगा.

"आह राजू, क्या डाल रहा है मेरी गांड के अंदर?"

"कुछ नहीं भाभी, बस मक्खन है."

"हे भगवान!"

मैंने काफी मक्खन भाभी की गांड में उड़ेला. दो कूल्हे को कस के पकड़ लिया ताकि गांड से मक्खन ना बहे. फिर से भाभी की दोबारा चूत चाटने लगा.

"राजू, नीचे उतार मुझे."

मैंने चूत चाटना बंद कर दिया और भाभी को नीचे उतारा.

"राजू, मेरी गांड में मक्खन भरने से पहले मुझसे पूछ तो लिया होता."

"भाभी, आपकी गांड मारने के लिए आपकी गांड को तैयार कर रहा हूं ताकि आपको दर्द कम हो."

मैंने मक्खन का कटोरा लिया और बचा हुआ मक्खन अपने लंड पर डाल दिया और लंड को मक्खन से मलने लगा.

मैंने भाभी को पीछे से पकड़ लिया और बोला, "भाभी, गांड तो मैं आपकी कल मारूंगा लेकिन आज थोड़ा ट्रेलर दे देता हूं."

मैंने भाभी के दोनों कूल्हे पकड़ के खोलें और अपने लंड को उनकी गांड के छेद पर मलने लगा.

"सुमन... मेरी रांड... तैयार हो जा अपनी गांड मरवाने को."

मैंने एक जोर का झटका मारा लगभग आधा भाभी की गांड में घुस गया. भाभी ने खूब जोर से चीख मारी.

"आह राजू... हे भगवान! बहुत दर्द हो रहा है मुझे.... निकाल ले इसे."

मैंने अपने दोनों हाथों से भाभी को जकड़ लिया. एक हाथ से में उनकी नाभि से खेलने लगा. दूसरे हाथ से चूचियां मसलने लगा. साथ में उनकी गर्दन और पीठ चूमने लगा. कुछ देर तक यही चला. जब भाभी थोड़ी शांत हो गई तो मैंने फिर एक झटका मारा तो मेरा लंड थोड़ा और भाभी के अंदर गया. भाभी फिर से चीख मारी. लेकिन मैंने भाभी की कोई परवाह नहीं की और ठोकर मार मार के पूरा लंड उनकी गांड के अंदर घुसा दिया.

भाभी की आंखों में आंसू आ गए और वो सिसक सिसक कर रोने लगी.

मैंने प्यार से उनके आंसू पूछे.

"क्या हुआ भाभी?"

"राजू,... इतनी बेरहमी? मैंने तुझे बताया था कि मुझे दर्द हो रहा है लेकिन तूने मेरी परवाह किए बगैर मेरे अंदर अपना पूरा लंड डाल दिया."

"भाभी, पहली बार गांड मरवाना तकलीफ देता है. क्या अभी आप अच्छा महसूस कर रही हो?"

"नहीं राजू, थोड़ा रुक जा."

मैं वैसे ही खड़ा रहा ताकि भाभी को थोड़ा अच्छा महसूस होने लगे. इस समय मैं भाभी के कंधे चूम रहा था. काफी देर बाद मैंने भाभी की कमर पकड़ी और लंड आगे पीछे करना शुरू किया.

मैंने उनकी गांड मारना शुरू कर दिया. मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था. भाभी को थोड़ी तकलीफ हो रही थी लेकिन साथ ही वह कामुक आवाजें निकाल रही थी.

"सुमन, मेरी रांड... कैसा लग रहा है अपने देवर से अपनी गांड मरवा कर?"

"राजू, तेरा लंड मेरी गांड की अच्छे से ठुकाई कर रहा है. बहुत मजा आ रहा है. बहुत मजा आ रहा है. चोदता रह मुझे. रुकना मत."

भाभी की यह बात सुनकर मैंने चुदाई की रफ्तार बढ़ा दी. भाभी तो मानो पागल ही हो गई.

"चोद मुझे राजू. चोद मुझे. अच्छे से मेरी गांड मार. मुझे नहीं पता था.... आह.... कि...आह... गांड मरवाने में इतना मजा आता है."

मैं अपना एक हाथ आगे ले गया और उसकी उंगलियों से भाभी का दाना रगड़ने लगा.

"हे भगवान राजू, मैं... मैं... मैं छूटने वाली हूं राजू."

भाभी के यह कहने पर मैंने चुदाई बंद कर दी और अपना लंड उनकी गांड से बाहर निकाल लिया. मैंने भाभी के दोनों हाथ भी पकड़ लिया ताकि वह अपना दाना ना रगड़ पाए.

"कमीने, तूने मुझे फिर प्यासा छोड़ दिया. इतना तड़पा रहा है अपनी भाभी को."

"बस कल और इंतजार है भाभी."

भाभी खूब देर तक हाफ रही थी. काफी देर बाद बोली, "राजू चल खाना खा ले."

भाभी ने खाना थाली में परोसा और मुझे देने के लिए जब आगे बढ़े तो बोली, "राजू. मैं चल नहीं पा रही हूं. तूने तो बहुत बुरी तरह से मेरी गांड मारी है."

मैंने भाभी को पकड़ लिया और हम दोनों ने खड़े होकर ही खाना खाया. फिर मैं भाभी को गोद में उठाकर उनके कमरे में ले गया और बिस्तर पर लिटा दिया और मैं भाभी के ऊपर चढ़ गया.

"अब क्या करना है राजू?"

"भाभी आप की चुचियों से अपने लंड की मालिश करनी है बस."

"राजू, तू तो अपनी भाभी को रंडी बनाकर ही छोड़ेगा शायद. ले कर ले अपने लंड की मालिश मेरी चुचियों से."

मैंने अपना लंड भाभी की चूचीयों की बीच में फसाया. मेरे पैर बिस्तर पर थे पर मेरी गांड भाभी के पेट पर थी. भाभी ने अपनी चूचियां पकड़ कर मेरा लंड को भीचा मैंने लंड आगे पीछे करके भाभी की चूचियां चोदनी शुरू कर दी. मुझे बहुत मजा आ रहा था. मेरा लंड भाभी के चेहरे पर ठोकर मार रहा था.

"भाभी, अपना मुंह खोलो ना".

भाभी ने अपना मुंह खोला और मेरा लंड अभी भाभी के मुंह के अंदर जाने लगा. मुझे ऐसा करना बहुत अच्छा लग रहा था.

मैंने जब अपनी रफ्तार बढ़ाई तो भाभी बोली "रुक जा राजू... कहीं छूट मत जाना."

मैंने चूचियों की चुदाई बंद कर दी और भाभी के ऊपर ही लेट गया. भाभी की एक निप्पल मेरे मुंह के पास थी तो मैं उनकी निप्पल मुंह में लेकर चूसने लगा.

"भाभी, मैं इंतजार नहीं कर सकता उस दिन का जब आपकी इन चूचियों से दूध बहेगा."

भाभी हंसने लगी.

"राजू, बड़ी थक गई हूं मैं. चल सो जाते हैं."

हम दोनों ने एक दूसरे को जकड़ लिया एक दूसरे की बाहों में मीठी नींद सो गए.

शाम को जब हम उठे तो भाभी रसोई में खाना बनाने चली गई. मैं भाभी के पीछे पीछे गया और उनके पीछे खड़ा हो गया. मैंने भाभी की पीठ पर नाखून गड़ाए और उनकी गांड तक खुरचता चला गया. भाभी के अंदर से एक हल्की सी "आह"की आवाज आई. फिर मैं भाभी की पीठ और गांड पर चुम्मो की बारिश करने लगा. फिर मैंने भाभी की गांड को अपने दांतो से काटा. भाभी चीख उठी.

"आह राजू... बाप रे... इतनी बुरी तरह से मेरी गांड को काटा तूने?"

"भाभी, आपकी गांड है ही इतनी मदमस्त. इतनी खूबसूरत, गोल गोल, उभरी हुई गांड है, मानो न्योता दे रही हो इसको चखने का."

भाभी हल्के हल्के हंसने लगी.

"सच में, भाभी. जब आप नंगी होकर चलती हो, तब आपकी यह मस्त गांड खूब बल खाती है. मेरा तो लंड पागल हो जाता है. भाभी, मुझे तो कभी-कभी यकीन नहीं होता आप इतनी खूबसूरत कैसे हो सकती हो? आपका जिस्म तो लगता है भगवान ने फुर्सत में पूरा वक्त देकर बनाया हो."

अपनी इतनी तारीफ सुनकर भाभी खुश हो गई और पीछे मुड़कर मुझे चूमने लगी.

"क्या मैं सच में इतनी खूबसूरत हूं?"

"हां भाभी... मुझे तो लगता है आप पिछले जन्म में द्रौपदी थी."

भाभी मुस्कुराई.

"और तू पिछले जन्म में दुशासन होगा. तभी अपनी भाभी को जब देखो तब नंगा करता रहता है."

"हां भाभी.... बस फर्क इतना है कि इस जन्म में द्रौपदी अपनी लाज नहीं बचाना चाहती और दुशासन के सामने नंगा होना चाहती है. दुशासन के लंड से चुदना चाहती है और दुशासन का बच्चा अपने पेट में पालना चाहती है."

मेरा लंड खड़ा हो गया और मैंने भाभी को पलट कर उसे भाभी की चूत के अंदर सरका दिया.

"यह क्या कर रहा है राजू? कल तक सब्र कर."

"फिक्र मत कर द्रौपदी. दुशासन अपना माल तेरे अंदर कल ही छोड़ेगा."

मैंने अपना लंड आगे पीछे करके भाभी की चूत चोदने शुरू कर दी. भाभी का शरीर कामुकता से भर गया. उनकी चूत गीली होकर बुरी तरह से पानी छोड़ने लगी. भाभी की चूत का पानी टपक टपक कर मेरे टट्टे गीले कर रहा था.

"भाभी, मुझे आपकी यह ठरक से पागल चूत चोदना बहुत पसंद है. आपकी नाभि से खेलना पसंद है. आपके इस दाने को रगड़ना पसंद है. आपके शरीर को चूमना और चाटना पसंद है."