बीबी की चाहत 02

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तब मैंने कहा, " डार्लिंग, मुझे एक बात बताओ, मानलो जिस दिन तुम तरुण के सामने तौलिये में खड़ी थी तरुण ने तुम्हे यदि चोद दिया होता, तो क्या तुम मुझे छोड़ देती? या क्या मैं तुम्हें छोड़ देता? मैंने जब तुम बड़ी छानबीन कर रही थी और मुझे पूछ रही थी ना, की चिड़िया जाल में फँसी की नहीं? अगर उस दिन मैंने टीना को वाकई में चोदा होता तो क्या तुम मुझे छोड़ कर चली जाती? मैं तुम्हें यह कहना चाहता हूँ की सेक्स और प्रेम में बहुत अन्तर है। आज हम पति पत्नी मात्र इस लिए नहीं हैं क्योंकि हम एक दूसरे से सेक्स करते हैं। बल्कि हम पति पत्नी इस लिए भी हैं क्योंकि हम न सिर्फ एक दूसरे से प्यार एवं सेक्स करते हैं पर एक दूसरे की जिम्मेदारियां, खूबियाँ और कमियां हम मिलकर शेयर करते हैं और उसका फायदा या नुक्सान हम क़बूल करते हैं। यदि हम अपने इस बंधन से वाकिफ हैं तो ऐसी कोई बात नहीं जो हमें जुदा कर सके। मैं तो एक सेक्स काअनुभव करने मात्र के लिए ही कह रहा हूँ।"

दीपा कुछ न बोली और चुपचाप मुझे टेढ़ी नज़रों से देखने लगी। पर उसने मेरी बातों का कोई जवाब नहीं दिया।

उस रात को दीपा बहुत खिली हुई लग रही थी। मैंने मेरी पत्नीको इतनी बार झड़ते हुए कभी नहीं देखा। शायद वह हमारी बातों को याद करके अपने ही तरंगों में खोयी हुई थी। एक बार तो मैंने पूछा भी की बात क्या है की मेरी बीबी मुझे सेक्स का वह आनंद दे रही है जो मुझे शादी के कई सालों के बाद मिल रहा है। तब दीपा ने मुझे एक बहुत बड़ी बात कही।

दीपा ने कहा, "दीपक, मुझे तुम्हारी बीबी होने का गर्व है। तुमने हम दोनों के बिच जो अंडरस्टैंडिंग की बात कही और तुमने यहां तक कह दिया की अगर उस दिन तरुण और मैं आवेश में आकर सेक्स कर बैठते और तरुण मुझ पर थोड़ी ताकत लगा कर मुझे चोद देता और मैं उसका साथ दे देती तो भी तुम मुझसे वही बर्ताव करते जो पहले से करते आ रहे थे, यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। शायद इस मामले में तुम मुझसे कहीं आगे हो। मैंने तुम्हें कहा तो है की तुम किसी भी औरत से सेक्स कर सकते हो पर हो सकता है की अगर तुम किसी औरत से वाकई में शारीरिक सम्भोग करो और अगर मुझे पता चले तो शायद मैं तुम्हें माफ़ ना कर पाऊं।"

तब मैंने मेरी बीबी का नाक पकड़ कर उसे थोड़ा सा झकझोर कर कहा, "मैं उतना भी उदार नहीं हूँ। अगर तुम मुझे बिना बताये किसीसे चुदवाती हो और तो मुझे भी दुःख होगा। पर अगर यह सब हमारी आपसी मर्जी से होता है, तो मैं तुम्हें उतना ही या शायद उससे भी कहीं ज्यादा प्यार और सम्मान दूंगा जितना पहले से देता आरहा हूँ।"

दीपा ने कहा, "दीपक गलती करके भी मुझसे किसी गैर मर्द से चुदवाने की उम्मीद मत रखना। पर वाकई में एक पति का ऐसा कहना यह एक पत्नी के लिए बहुत बड़ी बात है।"

हालांकि ऐसा कह कर मेरी बीबी ने मेरे लिए उसको तरुण से चुदवाने की उम्मीद का दरवाजा बंद करने की भरसक कोशिश की, पर मैं जानता था की भारतीय नारी कभी भी ऐसे मामलों में "हाँ" तो कभी कहती ही नहीं है। अगर उसे "हाँ" कहना हो तो वह कहेगी, "ठीक है, मैं सोचूंगी" और अगर वह "ना" कहे तो शायद कुछ उम्मीद है। अगर दीपा को तरुण से चुदवाने में कोई गंभीर आपत्ति होती तो तरुण से चुदवाने की मेरी बात सुनते ही वह ऐसा बवाल मचा देती और मेरा ऐसा बैंड बजा देती की आगे से मैं ऐसी बात करने की हिम्मत ही ना करूँ।

मेरी ज़िन्दगी में बहार सी आ गयीथी। अब मैं पहले से कई गुना खुश था। दूसरी और तरुण भी अपने सपनों में था। उस दिन जब रसोई में और बाद में बाथरूम में वह दीपा के इतने करीब आ पाया था, यह सोचने से ही उत्तेजित हो रहा था। वह इस बात से बड़ा प्रोत्साहित हुआ की बाथरूम में दीपा को इतना छेड़ने के बावजूद और दीपा ने उसे इतने गुस्से में "गेट आउट" और "मैं तुम्हारी शकल भी देखना नहीं चाहती" कहने के बाद भी माफ़ कर दिया था। कहीं ना कहीं तरुण के मन में यह बात घर कर गयी की शायद दीपा भी तरुण के साथ लुकाछुप्पी का खेल खेल रही थी, और इसी लिए शायद सम्बन्ध तोड़ने के बजाय वह पहले की ही तरह फिर से तरुण से बात करने के लिए तैयार थी। शायद दीपा भी चाहती थी की तरुण उसे छेड़े और यह कहानी आगे बढे।

तरुण से अब रहा नहीं जा रहा था। पहले उसने जब दीपा को देखा था तो वह उसे एक मात्र सपनों में आनेवाली नायिका के सामान लग रही थी। वह नायिका जो मात्र सपनों में आती है और जिसके छूने कि कल्पना मात्र करने से पुरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ जाती है। वह वास्तव में भी कभी इतने करीब आएगी यह सोचने से ही उसके बदन में एक आग सी फ़ैली जा रही थी। अब वह दीपा को चोदने के सपने को साकार करने के लिए पूरी तरह कटिबद्ध था।

एकदिन शाम को हम दोनों दोस्त एक क्लब में जा बैठे। तरुण उसी दिन अपने टूर से वापस आया था। मैं वास्तव में बहुत खुश था। पिछली रात को दीपा ने मुझे गले लगा कर इतना प्यार कियाथा की मैं उसके नशे में तब तक झूम रहा था। तरुण ने मुझे इतने खुश होने का कारण पूछा।

मैंने उसे कहा "यार इसका कारण तुम खुद ही हो।"

तरुण एकदम अचम्भे में पड़ गया। उस ने पूछा, "वह कैसे?"

मैंने कहा, "तुम जब दीपा को छेड़ते हो ना, तब तो वह तुम पर और कभी कभी मुझ पर भी गुस्से हो जाती है, पर पता नहीं उसके बाद रात को वह इतनी गरम हो जाती है और मुझे इतनी खुश कर देती है की बस क्या कहूं?"

तरुण ने तब कहा, "यह तो बड़ी ही ख़ुशी की खबर है। मुझे लगता है, जल्द ही हमारा मकसद कामयाब हो जाएगा। खैर, मुझे यह बताओ की मेरे घरमें तुम्हारी विजिट कैसी रही? टीना ने मुझे कहा की उसने एक बार तुम्हे रात को घर बुलाया था।"

मैंने फिर वही सारी कहानी पूरी सच्ची तरुण को सुनाई। जब तरुण ने सुना की टीना मुझसे लिपट गयी थी तो वह जोर से हंस पड़ा और बोला, "देखा, मेरी बीबी ने भी यह बात मुझसे छुपाई थी। पर तुमने मुझसे नहीं छुपाई। अरे यार, तुम तो बड़े सच्चे और कच्चे निकले। तुम्हारी जगह अगर मैं होता न तो मैं तो टीना की बजा ही देता।"

मैंने उसके मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, "यार, मैं कोई साधू नहीं। पर तू मेरा पक्का दोस्त है। देख मैंने भी बड़ी मुस्श्किल से संयम रखा था। मन तो मेरा भी उछल रहा था। पर मैं तुम्हें आहत करना नहीं चाहता था।"

तरुण ने तब मुझे एक बात कही। उसने कहा, "यार, तू क्या समझता है? मैं क्या अपनी बीबी को तेरे बारे में बताता नहीं हूँ? मैं टीना को दिन रात तेरे बारे में बताता हूँ। मैंने तो मेरी बीबी से यहां तक कह दिया है, की यदि दीपक तुमसे थोड़ी बहुत छेड़खानी भी करे तो बुरा मत मानना। वैसे सच बताओ यार, तुम्हे मेरी बीबी कैसी लगी?"

मैं यह सुनकर हक्काबक्का सा रह गया। तब फिर मेरी झिझक थोड़ी कम हुई। मैंने तरुण से पास जाते हुए कहां, "तरुण, सच कहूं। जब टीना भाभी मेरे इतनी करीब बैठी ना तो मेरे तो छक्के छूट गए। मैं तो पसीना पसीना हो गया। बाई गॉड यार, भाभी तो कमाल है।"

तरुण ने मुझे एक धक्का मारते हुए कहा, "यह क्यों नहीं कहते की वह माल है। यार वह है ही ऐसी। कॉलेज मैं हम सब उस पे मरते थे। सब लड़के उसे देख कर सिटी बजाते थे। पर आखिर में बाजी तो मैंने ही मार ली। बेटा तू आगे बढ़ मैं तेरे साथ हूँ।"

मैंने भी अपनी झिझक को बाहर निकाल फेंका और बोला, "एक बात कहूं? मैं और दीपा भी तुम्हारे बारेमें बहुत बातें करते हैं। मैं उसे तेरे करीब लाने की कोशिश करता हूँ। वह भी तुझे अच्छा मानती तो है, पर उससे आगे कुछ भी बात नहीं करना चाहती।"

तरुण ने तब मेरा कन्धा थपथपाते हुए कहा, "दोस्त, अब हम एक दूसरे के सामने जूठा ढ़ोंग ना करें। सच बात तो यह है की हम दोनों एक दूसरे की बीवी से सेक्स करना चाहते हैं। शायद बीबियों को भी हम पसंद है। पर वह अपनी कामना जाहिर नहीं कर सकती और चुप रह जाती है। हमारी बीबियाँ एक असमंजस मैं है। तूने जो अब तक किया वही बहुत है। अब इसके आगे मुझे कुछ करने दे। बस मुझे तेरी इजाजत और सपोर्ट चाहिए।"

मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा, "मैं तेरे साथ हूँ। अब तो आगे बढ़ना ही है। "

पर इस बातचित के बाद काफी समय तक हम एक दूसरे से मिल नहीं पाए, हालांकि हमारी फ़ोन पर बात होती रहती थी। तरुण और मैं अपने ऑफिस के काम में व्यस्त हो गए और एक दूसरे के घर आना जाना हुआ नहीं। कई बार दीपा तरुण के बारेमें पूछ लेती थी, तब मैं मेरी तरुण से हुयी टेलीफोन पर बातचीत का ब्यौरा दे देता था। शायद दीपा के मन में यह पश्चाताप उसे खाये जा रहा था की उस सुबह दीपा ने तरुण को बहुत ही ज्यादा फटकार दिया था। तरुण हमेशा दीपा के बारे में पूछता रहता था। तरुण को भी दुःख हो रहा था की उसने दीपा का दिल दुखा दिया था।

एक दिन जब तरुण का फ़ोन आया और वह मुझे पूछने लगा की कैसा चल रहा है?

मैंने कहा, "यार सब कुछ ठीक है। पर यह बता तुझे तेरी गर्ल फ्रेंड (मतलब मेरी बीबी दीपा) को छेड़ने का मन नहीं हो रहा क्या?"

तरुण ने कहा, "भाई, मैं जान बुझ कर कुछ दिनों की गैप दे रहा हूँ ताकि भाभी भी सोचती रहे की मैं क्यों नहीं आ रहा। आप यह कहना की उस दिन बाथरूम में मैंने जो हरकत की उससे मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ और भाभी के सामने आने से डर रहा हूँ।"

उसी रात को मैंने दीपा से कहा, "आज मैंने तरुण को फ़ोन किया था।"

दीपा एकदम सतर्क हो गयी और उसने बड़ी ही सहजता दिखाते हुए पूछा, "अच्छा? क्या बात हुई?"

मैंने कहा, "मैंने तरुण से पूछा की इतने दिनसे क्यों आ नहीं रहे हो? तो उसने कहा, वह तुमसे डर रहा है। उस दिन बाथरूम में उसकी हरकत के कारण वह शर्मिन्दा है और आने से झिझकता है। उस दिन तुमने उसे झाड़ जो दिया था।"

दीपा ने कहा, "ओह! अच्छा? मैं तो उस बात को भूल ही गयी थी। मैंने तुम्हें कह तो दिया था की मैंने उसे माफ़ कर दिया है। वह आ जाये, मैं उसे कुछ नहीं कहूँगी। मेरे बर्ताव में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। तरुण ने मेरी बात को कुछ ज्यादा ही सीरियसली ले लिया लगता है। तुम उसको कहना की जो हुआ सो हुआ। अब उसके बारे में ज्यादा सोचने की जरुरत नहीं। उस उल्लू को कहना की माफ़ी अगर मांगनी है तो खुद यहां आकर मुझसे माफ़ी मांगे। हो सकता है मैं उसे माफ़ कर दूँ।"

मैंने तरुण से मेरी बीबी के साथ मेरी बात हुई वह बतायी तो वह काफी खुश हुआ और बोला, "भाई आप एक काम कर सकते हो? आप दीपा को यह बताओ की मेरे और टीना के बिच कुछ अनबन सी हो गयी है। और टीना मुझसे झगड़ा कर मायके चली गयी है, और मैं इस कारण काफी मायूस हूँ। यह भी कहना की टीना को मेरे और मेरी एक पुरानी महिला दोस्त के बारे में कुछ ग़लतफ़हमी हो गयी है। बस इतना ही बताना।" मैंने कहा वह मैं बता दूंगा।

उस रात को मैंने दीपा से कहा, "मैंने तरुण को फ़ोन किया था। मैंने तुम्हारा मैसेज दे दिया उसको। पर बेचारा काफी मायूस लग रहा था।"

मेरी बीबी ने मेरी और सवालिया नजर से देखा तो मैंने कहा, "कोई बात को लेकर उसके और टीना बिच कुछ खटपट हो गयी है। शायद तरुण की कोई पुरानी गर्ल फ्रेंड को लेकर टीना को कोई ग़लतफ़हमी हो गयी है। गुस्से में टीना कुछ दिनों के लिए मायके चली गयी है।"

दीपा ने पूछा, "क्या तरुण किसी और औरत के साथ भी चक्कर चला रहा है?" ना कहते हुए भी दीपा ने अनजाने में "किसी और औरत के साथ" शब्द इस्तेमाल कर यह कबुल कर लिया की तरुण दीपा के साथ चक्कर चला रहा था।

मैंने कहा, "नहीं यह बात नहीं है। बात कुछ ज्यादा ही गंभीर है। दर असल तरुण की एक पुरानी फ्रेंड उसे कहीं मार्केट में मिली थी। पहले तरुण का उसके साथ कुछ चक्कर था। पर अब तो उसकी शादी भी होगयी है और बच्चे भी हैं। जब तरुण ने टीना को यह बात कही तो टीना ने समझ लिया की तरुण फिर से उसके चक्कर में पड़ गया है। फिर इस को लेकर तरुण और टीना के बिच कुछ बातचीत हुई और टीना अपने मायके चली गयी। पता नहीं पर तरुण और टीना के बिच कुछ और भी झंझट है। तरुण एक बार मनाने गया पर वह नहीं आयी। शायद होली के बाद आ जाये।"

दीपा ने कुछ सोचने के बाद कहा, "तरुण को कहना, की अगर जरुरत पड़ी तो मैं टीना को मना लुंगी। पर एक बार तरुण को हमारे घर आ कर सारी बातें मुझे विस्तार से कहने के लिए कहो।"

दूसरे दिन मैंने जब तरुण को मेरी बीबी के साथ हुई बातचीत कह सुनाई तरुण मेरी बात सुनकर खुश हुआ। तरुण ने कहा, "भाभी को कहना की मेरा स्वभाव एक बन्दर जैसा है। भाभी को देख कर मैं एकदम अचानक ही चंचल हो जाता हूँ। मैं आया और मुझसे कहीं ऐसी वैसी हरकत हो गयी तो भाभी फिर मुझसे लड़ पड़ेगी और नाराज हो जायेगी। एक बात भाभी को आप बता देना की मैं मेरी भाभी को दुखी नहीं देख सकता।"

जब मैंने दीपा से यह कहा तो दीपा ने कहा, "तरुण से कहना, मुझे बन्दर पसंद है। अगर मुझे उसकी कोई हरकत पसंद नहीं आयी तो मैं उसे एक थप्पड़ भी रसीद कर सकती हूँ। पर इसका मतलब यह नहीं की वह आनाजाना बंद कर दे। और मैं उसकी हरकत से दुखी नहीं होउंगी बस?"

जब मैंने तरुण से यह कहा तो वह उछल पड़ा। तरुण ने कहा, "भाई, अब समझो हमारा काम हो गया। अब समझो की दीपा भाभी फिसल गयी।"

मैंने पूछा, "कैसे?"

तरुण ने कहा, "भाई देखते जाओ।"

मैंने कहा, "अरे परसों ही तो होली है। देख साले होली में तू कोई ऐसी वैसी हरकत मत करना।"

तरुण ने कहा, "भाई अब तो जब आपने मुझे चुनौती दे दी है तो होली में ही कुछ करते हैं। मैं होली के दिन ही आऊंगा। बोलिये आप तैयार हो?"

मैंने कहा, "क्या मैंने कभी तुम्हारे काम में रुकावट डाली है?"

हर साल हम होली के दिन एक दोस्त के वहां मिलते थे। उसका घर काफी बड़ा था और उसमें कई रूम और बरामदा बगैरह था जहां बैठकर हम मौज मस्ती करते थे। सारे दोस्त वहीं पहुँच कर एकदूसरे को और एक दूसरे की बीबियों को रंगते थे।

माहौल एकदम मस्ती का हुआ करता था। थोड़ी बहुत शराब भी चलती थी। दीपा और मैं करीब सुबह ग्यारह बजे उस दोस्त के घर पहुंचे तो देखा की तरुण भी वहां था। हमारे वहाँ पहुँचते ही कुछ महिलाएं होली खेलने के लिए दीपा को पकड़ कर घर में ले गयीं। तरुण और बाकी हम सबने एक दूसरे को अच्छी तरह से रंगा और फिर तरुण और मैं लॉन में बैठ कर गाने बजाने और कुछ पिने पाने के कार्यक्रम में जुड़ गए।

तब मैंने देखा की तरुण बिच में से ही उठकर घर में चला गया। मैंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। ऐसे ही गाने बजाने में आधा घंटा बीत गया था। तब तरुण वापस आ गया। वह खुश नजर आरहा था। वह निकलने की जल्दी में था। उसने मुझे बाई बाई की और चल पड़ा। थोड़ी ही देर में दीपा और दूसरी औरतें आ गयीं। पहले तो मैं दीपा को पहचान ही नहीं सका। दूसरी औरतों के मुकाबले वह पूरी रंग से भरी हुई थी। खास तौर से छाती और मुंह पर इतना रंग मला हुआ था की वह एक भूतनी जैसी लग रही थी। उसके कपडे भी बेहाल थे।

औरतों के आने के बाद हम सब एक दूसरे की बीबियों के साथ फिरसे होली खेलने में जुट गए। पर दीपा कुछ अतड़ी अतड़ी सी नजर आ रही थी। मेरे मन में विचार भी आया की क्या हुआ की तरुण अचानक ही गायब हो गया। वैसे तो हर साल वह दीपा को रंगने के लिए बड़ा बेताब रहता था।

मैं जब दीपा को रंग लगाने के लिए गया तो उसे देख कर हंस पड़ा। मैंने पूछा, "लगता है मेरी खूबसूरत बीबी को सब लोगों ने इकठ्ठा होकर खूब रंगा है।"

तब दीपा ने झुंझलाहट भरी आवाज में पूछा, "टीना को नहीं देखा मैने। वह आयी नहीं थी क्या?"

मैंने कहा, "मैंने कहा नहीं था, वह मायके चली गयी है?"

तब दीपा एकदम धीरे से बड़बड़ाई, "हाँ सही बात है। तुम ने बताया था। तभी में सोचूं, की जनाब इतने फड़फड़ा क्यों रहे थे। "

मैंने पूछा, "किसके बारेमे कह रही हो?" मेरी पत्नी ने कोई उत्तर नहीं दिया। कुछ और देर में हम सब घर जाने के लिए तैयार हुए। मैं और दीपा मेरी बाइक पर सवार हो कर चल दिए।

घर पहुँच कर मैंने देखा तो दीपा कुछ हड़बड़ाई सी लग रही थी। मैंने जब पूछा तो मुझे लगा की दीपा अपने शब्दों को कुछ ज्यादा ही सावधानी से नापतोल कर बोली, "मुझे एक बात समझ नहीं आती। यह तुम्हारा दोस्त कैसा इंसान है? देखिये, ऐसी कोई ख़ास बात नहीं है। आप उस को कुछ कहियेगा नहीं। पर आपके दोस्त तरुण ने मरे साथ क्या किया मालुम है? तुम्हारे दोस्त के घर में तरुण मुझे कुछ बहाना बना कर पीछे के कमरे में ले गया। पहले तो उसने झुक कर मेरे पॉंव पकडे और खुले दिलसे माफ़ी मांगी। जब तक मैंने उसका हाथ पकड़ कर उठाया नहीं, तब तक वह मेरे पाँव में लेटा रहा। मैंने उसे कहा, "उठो यार। भूल जाओ वह सब पुरानी बातें। मैंने माफ़ कर दिया। अब क्या है? चलो होली खेलते हैं।

बस मेरा इतना कहना था की उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड कर ऊपर उठा लिया। पहले तो उसने मुझ पर ऐसा रंग रगड़ा ऐसा रंग रगडा की मेरी साड़ी ब्लाउज यहां तक की ब्रा के अंदर भी रंग ही रंग कर दिया। होली के बहाने उसने मुझसे बड़ी बदतमीज़ी की। मैं आप को क्या बताऊँ उसने मेरे साथ क्या क्या किया। उसने मेरी ब्रैस्ट दबाई और उन पर रंग रगड़ता रहा।

मैंने उसे रोकना चाहा पर मेरी एक ना चली। दीपक, मैं चिल्लाती तो सब लोग इकठ्ठा हो जाते और तरुण की बदनामी होती। मैं धीरे से ही पर चिल्लाती रही पर वह कहाँ सुनने वाला था? मैंने उसे कहा तरुण ये क्या कर रहे हो? पर उसने मेरी एक न सुनी। फिर जब उसने मेरे ब्लाउज के निचे, मेरे पेट पर रंग लगाना शुरू किया और फिर वह झुक मेरे पैर पर रंग रगड़ता हुआ मेरे घाघरे को ऊपर कर मेरी जाँघों पर रंग रगड़ने लगा। जब मैंने उसे झटका दिया तो सॉरी सॉरी कहता हुआ खड़ा हुआ और वह मेरी नाभि और मेरे पिछवाड़े को रगड़ कर रंग लगा ने लगा। जब मैंने उसे रोकना चाहा तो रुकने के बजाय उसने मेरे घाघरे के नाड़े के अंदर हाथ डालना चाहा। तब मेरा दिमाग छटक गया और मैंने उसे ऐसा करारा झटका दिया की वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा। फिर वह वहाँ से चला गया। पता नहीं यह बन्दा कभी सुधरेगा की नहीं? आप उसे बताइये की यह उसने अच्छा नहीं किया। वह ऐसी हरकत करता रहेगा तो मुझे कुछ ना कुछ करना पडेगा।"

मैंने जैसे ही यह सूना तो मेरा तो लण्ड अपनी पतलून में फ़ुफ़कार ने लगा। मैंने मन ही मन में सोचा, "अरे वाह, मेरे शेर! तुम ने तो एक के बाद एक गोल गोल दागना शुरू कर दिया।"

दीपा को ढाढस देते हुए मैंने कहा, "देखो डार्लिंग यह होली का त्योहार है। एक दूसरे की बीबियों को छेड़ना उनपर रंग डालना, उनसे खेल खेला करना, मजाक करना और कभी कभी सेक्सी बातें करना होता है। तुमको मेरे और दोस्तों ने भी तो रंग लगाया था। मैंने भी तुम्हारी कई सहेलियों को रंग लगाया है। और ख़ास कर तुम्हारी वह सखी मोहिनी को तो मैंने अच्छी खासी तरह से रंगा था। हाँ, मैंने उसके ब्रा के अंदर हाथ नहीं ड़ाला पर बाकी काफी कुछ रंग दिया था। तुम भी तो वहीँ ही थी। इस पर बुरा नहीं मानना चाहिए। इसी लिए तो कहते हैं की "बुरा ना मानो होली है।

पर तुम तो काफी नाराज लग रही हो। आज तरुण ने कुछ ज्यादा ही कर दिया। यह बिलकुल ठीक नहीं है। मैं आज शाम को उसे महा मुर्ख सम्मलेन में हमारे साथ जाने के लिए आमंत्रित करने का सोच रहा था। अब तो मैं उसको डाँटूंगा तो वह वैसे भी नहीं आएगा। मैं उसको अभी फ़ोन कर डाँटता हूँ। पर एक बात मेरी समझ में नहीं आयी। जब मैं उसे मिला तब पता नहीं तरुण कुछ उखड़ा उखड़ा दुखी सा लग रहा था। मूड में नहीं लग रहा था। क्यूंकि शायद वह कुछ दिनों से घर में अकेला ही है। अनीता उसे छोड़ मायके चली गयी है।"

दीपा मेरी बात सुनकर सोच में पड़ गयी। उसने कहा, "ओह! हाँ तुमने बताया तो था। तो यह बात है! मियाँ अकेले हैं तो सोचा चलो टीना नहीं तो भाभी ही सही। भाभी पर ही हाथ साफ़ कर लेते हैं! पर तुमने यह तो बताया ही नहीं की अगर टीना नहीं है तो वह खाना कहाँ खाता है?"

मैंने कहा, "पता नहीं, मैंने नहीं पूछा।"

दीपा: "कमाल के दोस्त हो तुम! वह अकेला है तो बाहर होटल में ही खाना खाता होगा। तुम्हें हुआ नहीं की चलो उसे हमारे घर खाना खाने के लिए बुलाते हैं? और वह उल्लू का पट्ठा भी कह सकता था की भाभी मैं आपके यहां खाना खाऊंगा?"

दीपा की बात सुन कर मैं हैरान रह गया! अभी तो तरुण को डाँटने की बात थी और अचानक ही उसे खाना खिलाने की बात आ गयी!

मैंने कहा, "उसे छोडो और यह बताओ की मैं क्या करूँ? उसे डाँटू या फिर शाम को साथ में आने के लिए कहूं?" मैंने दीपा से ही उसके मन की बात जाननी चाही।

मेरी भोली भाली पत्नी एकदम सोच में पड़ गयी। वह थोड़ी घबरायी सी भी थी। थोड़ी देर बाद वह धीरे से बोली, "बाप रे, तरुण शाम को भी आएगा? वह भी अकेले? अम्मा, मेरी तो शामत ही आ जायेगी। हाय दैया, मैं अकेली क्या करुँगी?"

फिर दीपा एकदम चुप हो गयी। दीपा की सूरत कुछ गुस्सेसे, कुछ शर्म से और बाकी रंग से एकदम लाल हो रही थी। वह रोनी सी सूरत बना कर फिर दोबारा बोली, "अब मैं आपको क्या बताऊँ की उसको बुलाना चाहिए या नहीं? देखिये, मुझे आप को कहना था सो मैंने कह दिया। अब आगे आप जानो। मुझे आप दोनों की दोस्ती के बिच में मत डालिये। पर जहां तक मैं समझती हूँ, इस बात का बतंगड़ बनाने का कोई फायदा नहीं। मैं नहीं चाहती के इस बात पर आप दोनों घने दोस्तों में कुछ अनबन पैदा हो। बेहतर यही रहेगा की आप तरुण को कुछ भी मत कहिये। उसे डाँटना मत।"

मैं चुपचाप मेरी बीबी की बात सुन रहा था। वह फिर बोलने लगी, "एक तो होली के त्यौहार का जोश, ऊपर से मुझे लगता है की तरुण ने शराब कुछ ज्यादा ही पी ली थी शायद। उसके मुंह से शराब की बू भी आ रही थी। तो बहक गया होगा नशेमें। एक तो बन्दर और ऊपर से नीम चढ़ा। और फिर टीना भी तो नहीं है, उसको कण्ट्रोल करने के लिए। तो यह सब हुआ। मैंने कहीं पढ़ा था की कई वीर्यवान मर्द सेक्सुअली बहुत ज्यादा चंचल होते हैं। ऐसे मर्दों के अंडकोषमें हमेशा उनका वीर्य कूदता रहता है। सेक्सी औरत को देखकर वह सेक्स के मारे उत्तेजित हो जाते हैं और वह बड़े ही तिलमिलाने लगते हैं। मुझे लगता है शायद तरुण का किस्सा भी ऐसा ही है। तुम्ही ने तो कहा था ना की मुझे देखकर पता नहीं उसे क्या हो जाता है की वह मुझे छेड़े बगैर रह नहीं सकता?"

मैंने कहाँ, "हाँ वह तो हकीकत है। तरुण ने खुद मुझसे यह बात कई बार कबुली थी। उसने कहा था की उसे तुम्हें देख कर कुछ हो जाता है और वह तुम्हें छेड़ देता है अपने आप को रोक नहीं पाता। पर फिर बाद में वह बहुत पछताता भी है। तुम्ही तो कह रही थी की उसने तुमसे कई बार माफ़ी भी मांगी है।"

दीपा ने मेरी बात को सुनकर अपनी उंगली से चुटकी बजाते हुए बोली, "हाँ बिल्कुल। बस यही बात है।"

दीपा फिर एक गहरी साँस ले कर बोली, " शायद मेरी तक़दीर में तुम्हारे दोस्त को झेलना ही लिखा है। अब क्या करें? तरुण तो सुधरने से रहा। अगर आप उसे बुलाना चाहते हो तो जरूर बुलाओ। बस आप मेरे साथ रहना, ताकि वक्त आने पर हम उसे कण्ट्रोल कर सकें। जो हो गया सो हो गया। अब आगे ध्यान रखेंगे।"

फिर अचानक दीपा को कुछ याद आया तो मेरी बाँह पकड़ कर दीपा ने कहा, "और हाँ, एक बात और। इस बार मुझे भी तरुण में कुछ फर्क नजर आया। हालांकि उसने मुझे रंग बगैरह तो लगाया और जो करना था वह तो किया पर मुझे लगा की वह कुछ कुछ बुझा बुझा सा मायूस लग रहा था। वो कह रहा था की वह बहुत दुखी है पर जब वह मेरे साथ होता है तो वह दर्द भूल जाता है। मुझे लग रहा है वह टीना को लेकर कुछ अपसेट है। बात करने का मौक़ा नहीं था वरना मैं पूछ लेती। शाम को जब वह आये तो हम उसे उसके बारेमें जरूर पूछेंगे। शायद हम से बात करके उसका मन हल्का हो जाए। शायद हम उसकी कुछ मदद कर सकें।"

मेरी सीधी सादी पत्नी की बात सुनकर मैं मन में हंसने लगा। एक तरफ वह तरुण की शिकायत कर रही थी, उस का सामना करने से डर रही थी तो दूसरी और उसकी हरकतों के लिए कारण ढूंढ रही थी, उसे बुलाने के लिए कह रही थी। यही तो प्यार और गुस्से का अद्भुत संयोग था।

मैं मन ही मन हंसकर लेकिन बाहर से गम्भीरता दिखाते हुए बोला, "अगर तुम इतना कहती हो तो चलो मैं तरुण को नहीं डाँटूंगा और उसे बुला लूंगा। पर एक शर्त है। देखो तुम तरुण को तो जानती हो। वह रंगीली तबियत का है। तुमने ही तो अभी कहा की वह बन्दर के जैसा है। वह तुम्हारे जैसी खूबसूरत बंदरिया को देखते ही शायद उसका लण्ड खड़ा हो जाता है और वह अजीब हरकतें करने लगता है। उपरसे आज होली का त्यौहार है। आज तुम अकेली औरत हो। तो वह तुम्हें छेड़े बगैर तो रहेगा नहीं। जहां तक मेरी बात है, तो तुम तो जानती हो, आज होली है और मैं तुम्हें प्यार किये बगैर रह नहीं सकता। चूँकि उसके छेड़ने से तुम गुस्सा हो जाती हो इसलिए शायद बेहतर यही है की मैं उसको ना बुलाऊँ। इसका एक फायदा यह भी होगा की जब मेरा मन करेगा तो मैं तो मेरी बीबी को प्यार करूंगा और तुम मुझे यह कह कर रोकोगी नहीं की तरुण साथ में बैठा है। यार होली में तो मस्ती होनी चाहिए। ओके? अगर तुम्हें कोई प्रॉब्लम है तो मुझे अभी बता दो, तब फिर मैं तरुण को मना कर दूंगा और हम दोनों ही चलेंगे। मैं तुम्हें होली के मौके पर प्यार किये बिना नहीं रह सकता। तरुण आये तो भी ना ए तो भी। बोलो क्या मैं उसे बुलाऊँ?"

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