बीबी की चाहत 02

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दीपा ने मेरी बात सुनकर बड़े ही असमंजस में कहा, "मैंने कहाँ तरुण को बुलाने से मना किया है? यह सारी बातें तो तुमने कहीं। मैंने तो ऐसा कुछ नहीं कहा। तुम बोलो ना क्या तुम तरुण को बुलाना चाहते हो या नहीं? मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता तरुण हो या ना हो।"

मैं कहा, "क्या तरुण होगा तो भी तुम मुझे प्यार करने दोगी की नहीं?"

दीपा ने शर्माते हुए कहा, "अगर मैं मना करुँगी तो क्या तुम मुझे प्यार किये बिना रुकोगे?"

मैंने कहा, "और अगर तुम्हें तरुण छेड़ेगा तो?"

दीपा ने कहा, 'यह क्या पहली बार है की तरुण मुझे छेड़ेगा? पता नहीं मैं तो गिनती भी भूल गयी हूँ जब तरुणे ने मुझे छेड़ा था। अब तो मुझे तरुण से छिड़ने की शायद आदत सी ही हो गयी है। अगर वह मुझे नहीं छेड़ेगा तो मैं कहीं सोचने ना लागूं की उस बंदर को हो क्या गया है?"

"तो फिर मैं तरुण को बुलाता हूँ। ओके?"

दीपा ने कहा, "तुम्हारा दोस्त है, भाई है। मुझे क्यों पूछ रहे हो? बुलाना है तो बुलाओ उसे। वह तो जो करना है वह करेगा ही। मेरे कहने से थोड़े ही रुकजाएगा वह?"

मैंने फिर पूछा, "तो उसके होते हुए भी तुम मुझे प्यार करने दोगी ना?"

दीपा ने मेरी और गुस्से से देखा और बोली, "ठीक है, तुमने एक बार बता दिया और मैंने सुन भी लिया ना? ठीक है बाबा मैं जानती हूँ, तुम मुझे प्यार किये बिना नहीं रह सकते, ख़ास कर होली के अवसर पर। मैं जानती नहीं हूँ क्या? ओके, बाबा प्यार करना तुम मुझे, मैं तुम्हें नहीं टोकूँगी बस? एक ही बात बार बार क्यों कह रहे हो?"

मैंने कहा, "ठीक है, सॉरी। पर एक बात और सुन लो। अगर तरुण आया तो तुम तो जानती ही हो, की वह बन्दर है। वह बाज नहीं आएगा। वह तो तुम्हें छेड़े बगैर रह नहीं सकता। तो देख लो। चिल्ला कर मूड मत खराब करना। और हाँ हम ने थोड़ा शराब का भी प्रोग्राम रखा है। तो प्लीज बुरा मत मानना और हंगामा मत करना। मैं चाहता हूँ की हम सब मिल कर खूब मौज करें और होली मनाएं। ठीक है ना? तुम गुस्सा तो नहीं करोगी ना?"

जब दीपा ने भांप लिया की मैं सुबह वाली बात को लेकर तरुण से ऐसी कोई लड़ाई झगड़ा नहीं करूँगा तो उसकी जान में जान आयी। तब वह होली के मूड में आ गयी। दीपा ने आँख नचाते हुए कहा, " एक ही बात कितनी बार कहोगे? मैंने कह दिया ना, की नहीं करुँगी तुम लोगों का मूड खराब। बस? मैं इतना गुस्सा करती हूँ पर क्या तुम्हारे ऊपर और तुम्हारे दोस्त के ऊपर कोई फर्क पड़ा है आज तक? मैंने गुस्सा किया भी तो तुम मेरी सुनोगे थोड़े ही? खैर चलो मैं तुम्हें वचन देती हूँ की मैं गुस्सा नहीं करुँगी बस?"

"और हर होली की तरह बादमें देर रात को फिर तुम मौज करवाओगी ना?" मैंने दीपा को आँख मारते हुए पूछा।

दीपा ने हंसकर आँख मटक कर कहा, "जरूर करवाउंगी। निश्चिंत रहो। अगर नहीं करवाई तो तुम मुझे छोड़ोगे क्या?" मुझे ऐसा लगा की मेरी रूढ़िवादी पत्नी को भी तब होली का थोड़ा रंग चढ़ चूका था। पर उसे क्या पता था की मैं किस मौज की बात कर रहा था और उस रात के लिए हमारे शातिर दिमाग में क्या प्लान पक रहा था?

जैसे की आप में से कई लोगों को पता होगा, जयपुर एक सांस्कृतिक शहर है और उसमे कई अच्छे सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते हैं। होली के समय रामनिवास बाग़ में एक कार्यक्रम होता था जिसका नाम था "महां मुर्ख सम्मेलन" यह कार्यक्रम रात दस बजे शुरू होता था एवं पूरी रात चलता था और उसमे बड़े बड़े हास्य कवी पुरे हिंदुस्तान से आते थे। वह अपनी व्यंग भरी हास्य रस की कविताएं सुनाते थे और लोगों का खूब मनोरंजन करते थे। कार्यक्रम खुले मैदान में होता था और चारों तरफ बड़े बड़े लाउड स्पीकर होते थे। पूरा मैदान लोगों से भर जाता था।

मैं और मेरी पत्नी हर साल इस कार्यक्रम में जाते थे और करीब करीब पूरी रात हास्य कविताओं का आनंद उठाते थे। मेरी पत्नी दीपा बड़े चाव से यह कार्यक्रम सुनती और बहुत खुश होती थी। इस कार्यक्रम सुनने के बाद मुझे खास वीआईपी ट्रीटमेंट मिलती और उस रात हम खूब चुदाई करते।

दीपा की अनुमति मिलने पर मैंने तरुण को फ़ोन करके पूछा, "क्या तुम रात को दस बजे हमारे साथ महा मूर्ख सम्मलेन में चलोगे? पूरी रात का कार्यक्रम है।"

तरुण ने कहा, "यार नेकी और पूछ पूछ? मैं तो तुम्हारे इनविटेशन का इंतजार ही कर रहा था। मैं घर में अकेला हूँ। मैं अपनी एम्बेसडर कार लेकर जरूर आऊंगा। हम उसी मैं चलेंगे। पर क्या दीपा भाभी को पता है की तुम मुझे बुलाने वाले हो? क्या उन्हें पता है की आज मैं अकेला हूँ?" मैं समझ गया की दुपहर की शरारत का दीपा पर कैसा असर हुआ है वह जानने के लिए तरुण लालायित था।

मैंने कहा, "हाँ भाई। मैंने दीपा को बताया, और उसकी सम्मति से ही मैं तुमको आमंत्रित कर रहा हूँ।" मैं कल्पना कर रहा था की फ़ोन लाइन की दूसरे छौर पर यह सुनकर तरुण कितनी राहत का अनुभव कर रहा होगा।

मैंने तरुण को एक गहरी साँस लेते हुए सुना। फिर तरुण ने धीमी आवाज में बोला, "यार एक बात बुरा न मानो तो कहूँ। क्या आज रात हम दीपा भाभी के साथ कुछ हरकत कर सकते हैं? आज रात को थोड़ी सेक्स की बातें करके भाभी को गरम करने की कोशिश करते हैं।"

तब मैंने तरुण को कहा, "तुम कमाल हो यार। दुपहर को तुमने जब मेरी बीबी को इतना छेड़ा था तो क्या मुझसे पूछा था? और क्या मैंने तुम्हें कभी रोका है? आज होली है। आज तो तुम्हारे पास छेड़नेका, गरम करनेका पूरा लाइसेंस है। तुम दीपा को छेड़ो, गरम करो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। बल्कि मैं भी आज तुम्हारे साथ उसको जरूर छेडूंगा, गरम करूँगा और जीतनी हो सके उतनी तुम्हारी सहायता भी करूँगा। मैं भी देखना चाहता हूँ की तुम तुम्हारी बर्फीली भाभी को कितना गरम कर सकते हो?"

तरुण ने कहा, "भाई अगर आप कहो तो आज मैं भाभी को सिर्फ गरम ही नहीं करूंगा, आग ही लगा दूंगा। आप देखते जाओ। अब जब आपने मुझे चुनौतो दे ही दी है तो फिर देखो मेरा कमाल। आज ही भाभी को बिलकुल सेट करने की कोशिश करते हैं। वैसे भाई, मेरी भाभी बहुत अच्छी हैं। मैं वाकई में उनका मुरीद हूँ।"

मैंने कहा, "वह तो तुम हो ही और वह मुझसे और अच्छी तरह से कौन जानता है? पर तुम्हारी भाभी आज तुम्हारी दोपहर की हरकत से नाराज थी। खैर, मैंने उसे समझाया की होली में सब लोग एक दूसरे की बीबियोँ से थोड़ी सेक्सुअल छेड़छाड़ करते ही हैं। ऐसा करके वह अपने मन की छुपी हुई इच्छाओं का प्रदर्शन करके कुछ संतुष्टि लेते हैं।, ऐसा मौक़ा उन्हें कोई और दिन नहीं मिलता। पर अगर तुम्हारी छेड़छाड़ की वजह से उसका हैंडल छटक गया तो फिर उसको मैं कण्ट्रोल नहीं कर पाउँगा। वह फिर तुम सम्हालना। माहौल बनाने का काम तुम्हारा है।"

तरुण ने कहा, "वह तुम मेरे पर छोड़ दो। बस तुम मुझे सपोर्ट करते रहना बाकी मैं देख लूंगा।"

मैंने फ़ोन रखा और दीपा से कहा, "मैंने तरुण को आने के लिए कहा तो उसने मना कर दिया। वह टीना के मायके जाने से काफी मायूस है। तरुण अकेला है और कुछ दुखी भी है। पर मैंने जब बहुत फ़ोर्स किया तो आखिर में उसने आने के लिए हाँ कह दिया। मैंने उसे अपनी कार ले कर आने के लिए कहा है। हम तीनों साथ में चलेंगे। वह अपनी गाडी में रात दस बजे आएगा और हम उसकी गाडी में ही चलेंगे। हम फिर सुबह ही वापस आएंगे। और हाँ, मैं तरुण का मूड ठीक करने के लिए उस को कुछ सेक्सी बातें करने के लिए उकसाऊँगा। तुम उसे मत रोकना और उससे टीना के बारेमें मत पूछ बैठना। उसका मूड जब ठीक होगा तो आखिर में हम उस बारेमें बात करेंगे। ओके?"

दीपा मुंह बना कर बोली, "कमाल है, तुम मर्दों का मूड बस सेक्स की बातें करने से ही ठीक होता है क्या? ....क्या करें? यह तो साँप और छछूंदर वाली बात हो गयी। ना निगलते बनता है ना उगलते बनता है। मर्दों को झेलना भी मुश्किल है और उनके बिना जीना भी मुश्किल है। फिर गहरी साँस ले कर दीपा बोली, "चलो, यह भी झेल लेंगे।" दीपा ने अपने कंधे हिला कर सहमति दे दी।

मैंने दीपा से कहा, "डार्लिंग आज आप मेरे लिए कुछ ऐसे भड़कीले सेक्सी कपडे पहनो की होली का मझा आ जाए। सारे लोग देखते रह जाए की मेरी बीबी लाखों में एक है।"

मेरी बीबी ने पूछा, "क्यों, क्या बात है? सब लोगोंके सामने तुम मेरे बदन की नुमाईश करवाना चाहते हो क्या? या फिर अब तक तुमने तरुण के सामने मेरा अंग प्रदर्शन जितना करवाया है उससे खुश नहीं हो की और करवाना चाहते हो? क्या तुम तरुण ने मुझे जितना छेड़ा है उससे संतुष्ट नहीं हो की उस को मुझे और छेड़ने के लिए प्रोत्साहन देना चाहते हो?"

मैंने तपाक से जवाब देते हुए कहा, "तुम्हारी बात सच है। मैं सब लोगों के बिच में मेरी बीबी की नुमाइश करना चाहता हूँ। मैं सब को दिखाना चाहता हूँ की मेरी बीबी उन सब की बीबीयों से ना सिर्फ ज्यादा सुन्दर है, बल्कि उनकी बीबियों से कई गुना सेक्सी भी है। उतना ही नहीं, आज होली की शाम को मैं चाहता हूँ की मेरी बीबी ऐसी सेक्सी बन कर सजे की उस को देख कर बूढ़ों का भी लण्ड खड़ा हो जाये।

अब बात रही तरुण के छेड़ने की, तो तुम्हें उसके बारेमें तो चिंता ही नहीं करनी चाहिए। वह तुम्हारे मम्मों को पहले भी दो तीन बार तो सेहला ही चूका है। उसको तुम्हें जितना छेड़ना था उसने छेड़ लिया है। वह तुमको और क्या छेड़ेगा? उसने जो देखना था वह देख लिया है, जो कुछ करना था वह तो कर लिया है। उससे ज्यादा और वह क्या देख सकता है और क्या कर सकता है भला? वह क्या देख लेगा जो उसने पहले नहीं देखा? और हाँ। मैं तरुण को भी दिखाना चाहता हूँ की मेरी बीबी दीपा भी उसकी बीबी टीना से कम सुन्दर अथवा कम सेक्सी नहीं है। आज तो आरपार की लड़ाई है। वह क्या समझता है, मेरी बीबी उसकी बीबी से कम सेक्सी है?"

मैंने जब अपना पॉइंट बड़े ही भार पूर्वक रक्खा तो दीपा आश्चर्य से मेरी और देखने लगी। मैंने कहा, "तरुण उस दिन अपनी बीबी की स्विम सूट वाली आधी नंगी फोटो दिखा कर मुझे यह जता ने की कोशिश कर रहा था की उसकी बीबी टीना कितनी सेक्सी है? मैं तरुण को दिखाना चाहता हूँ यह तो मेरी बीबी दीपा की शालीनता है की वह कभी भड़कीले वेश नहीं पहनती वरना वह टीना से भी कहीं ज्यादा सेक्सी है और वह चाहे तो अच्छे अच्छों के बारह बजादे। डार्लिंग, बाकी सबकी बात छोडो। मैं तो तुम्हें अपने लिए तैयार होने को कह रहा हूँ। जानेमन आज ऐसी तैयार हो की मेरी आँखें तुम्हे ही देखते रहें। तुम्हारे अलावा किसी और औरत को ना देखें। मैं तुम्हें आज एकदम सेक्सी ड्रेस में देखना चाहता हूँ।"

इतना कहना ही मेरी पत्नी के लिए काफी था। मेरी बात सुनकर मेरी बीबी को कुछ संतुष्टि हुई। मेरी बात भी सही थी। मैं भी मेरी पत्नी के मन की बात को भली भाँती भांप ने लगा था। तरुण से हुई इतनी मुठभेड़ों के बाद उसे अब तरुण से ऐसा कोई भय नहीं लग रहा था। तरुण को दीपा भली भाँती जान गयी थी। पता नहीं, शायद वह सोच रही होगी की आखिर ज्यादा से ज्यादा क्या कर लेगा तरुण? ज्यादा से ज्यादा वह चोदने की कोशिश ही करेगा ना? अब वही तो बाकी रह गया था? और क्या करेगा?

पर अगर तरुण ने थोड़ी सी भी जबरदस्ती की तो दीपा ने तय किया था वह उसे नहीं छोड़ेगी। तरुण को यह तो मालुम ही था की दीपा इतनी आसानी से तो फँसने वाली नहीं है। फिर मैं दीपा के साथ ही था तो दीपा अकेली तो थी नहीं, की तरुण कोई जबरदस्ती कर सके।

यह सब सोच कर दीपा ने मेरी बात मान ली। शायद कुछ हद तक दीपा को भी अपनी सेक्सी फिगर तरुण को दिखाने का मन तो था ही। टीना और तरुण के हनीमून की सेक्सी फोटोएं देखने के बाद कहीं ना कहीं दीपा के मन में भी था की वह तरुण को एक बार तो दिखा ही दे की वह भी अगर भड़कीले कपडे पहने तो उस उम्र में भी मर्दों के लण्ड में आग लगा सकती है। दीपा यह भी दिखा देना चाहती थी की वह टीना से कम सुन्दर और कम सेक्सी नहीं थी।

उस रात वह ऐसे सेक्स की रानी की तरह सज कर तैयार हुई जैसे मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा। कई सालों के बाद पहली बार मेरी बीबी को उस ब्लाउज में देखा जो वह शर्म के मारे कभी न पहनती थी। वह डीप कट ब्लाउज था जिसमें मेरी रूढ़िवादी पत्नी के भरे और तने हुए मम्मों (स्तनों) का उभार काफी ज्यादा नजर आता था।

उसने स्लीवलेस ब्लाउज पहना था। उसका ब्लाउज चौड़ाई में छोटा था और जैसे वह उसके उरोज को बस ढके हुए था। दीपा के स्तन ब्लाउज में बड़ी कठिनाई से समाये हुए थे। उसने आपनी साड़ी भी अपनी कमर से काफी निचे तक बाँधी थी। ऐसा लगता था की कहीं वह पूरी निचे उतर न जाय और उसे नंगी न करदे। और साड़ी भी उसने ऐसी पहनी की थी की हाथ में पकड़ो तो फिसल जाए। एकदम हलकी पतली और पारदर्शी।

दीपा का ब्लाउज पीछे से एकदम खुला हुआ था। सिर्फ दो पतली डोर उसके ब्लाउज को पकड़ रखे हुए थे। दीपा की पीठ एकदम खुली थी और ब्रा की पट्टी उसमें दिख रही थी। ब्रा भी तो उसने जाली वाली पहनी थी। ब्लाउज खुलने पर उसके स्तन आधे तो वैसे ही दिखने लगेंगे यह मैं जानता था। दीपा की कमर में उसकी नाभि खूब सुन्दर लग रही थी।

रात दस बजे तरुण अपनी पुरानी अम्बेसडर कार में हमें लेने पहुंचा। जैसे उसने हॉर्न बजाया, दीपा सबसे पहले बाहर आयी। दीपा के घर से बाहर आने के बाद हमारे घर के आँगन में जो हुआ वह मुझे दीपा ने कुछ दिनों बाद सविस्तार बताया था। वह मैं आपसे शेयर कर रहा हूँ।

तरुण तो दीपा को देखते ही रह गया। दीपा की साडी का पल्लू उसके उरोजों को नहीं ढक पा रहा था । उसके रसीले होँठ लिपस्टिक से चमक रहे थे। उसके भरे भरे से गाल जैसे शाम के क्षितिज में चमकते गुलाबी रंग की तरह लालिमा बिखेर रहे थे। सबसे सुन्दर दीपा की आँखे थीँ। आँखों में दीपा ने काजल लगाया था वह एक कटार की तरह कोई भी मर्द के दिल को कई टुकड़ों में काट सकती थीँ। आँखे ऐसी नशीली की देखने वाला लड़खड़ा जाए। उसके बाल उसके कन्धों से टकराकर आगे उन्नत स्तनों पर होकर पीछे की तरफ लहरा रहे थे।

सबसे ज्यादा आकर्षक दीपा की गाँड़ का हिस्सा था जो की साडी के पल्लू में छिपा हुआ था, पर उसकी सुडौल गाँड़ के घुमाव को छिपाने में असमर्थ था। साडी में दीपा के कूल्हे इतने आकर्षक लग रहे थे की क्या बात!!!!

दीपा ने जैसे ही तरुण को देखा तो थोड़ी सहम गयी। उसे दोपहर की तरुण की शरारत याद आयी। तरुण के अलावा किसीने भी ऐसी हिमत नहीं दिखाई थी की दीपा की मर्जी के बगैर इसको छू भी सके। पर तरुण ने सहज में ही न सिर्फ कोने में दीवार से सटा कर उसे रंग लगाया, बल्कि उसने दीपा के ब्लाउज के ऊपर से अंदर हाथ डाल कर उसकी ब्रा के हूको को अपनी ताकत से तोड दिए और स्तनों को रंगों से भर दिए। और भी बहुत कुछ किया।

दीपा को देख कर तरुण तुरंत कार का दरवाजा खोल नीचे उतरा और फुर्ती से दीपा के पास आया। उस समय आँगन में सिर्फ वही दोनों थे। तरुण दीपा के सामने झुक और अपने गालों को आगे कर के बोला, "दीपा भाभी, मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ। आज मैंने बहुत घटिया हरकत की है। आप मुझे मेरे गाल पर एक थप्पड़ मारिये। मैं उसीके लायक हूँ। दीपा एकदम सहमा गयी और एक कदम पीछे हटी और बोली, "तरुण ये तुम क्या कर रहे हो?"

तरुण ने झुक कर अपने हाथ अपनी टांगों के अंदर से निकाल कर अपने कान पकडे और दीपा से कहा, "दीपा आप जबतक मुझे माफ़ नहीं करेंगे मैं यहां खुले आंगन में मुर्गा बना ही रहूँगा। मुझे प्लीज माफ़ कर दीजिये।"

दीपा यह सुनकर खुलकर हंस पड़ी और बोली, "अरे भाई, माफ़ कर दिया, पर यह मुरगापन से बाहर निकलो और गाडी में बैठो और ड्राइवर की ड्यूटी निभाओ।"

तरुण ने तब सीधे खड़े होकर दीपा को ऊपर से नीचे तक देखा और कहा, "दीपा भाभी, आप तो आज कातिलाना लग रही हैं। पता नहीं किसके ऊपर यह बिजली गिरेगी।"

दीपा हंस पड़ी और बोली, "तरुण कहीं आज तुम ज्यादा ही रोमांटिक नहीं हो रहे हो क्या? ख़ास कर के जब आज टीना भी नहीं हैं।"

तरुण तुरंत लपक कर बोला, "तो क्या हुआ? आप तो है न?"

तरुण की बात सुन कर दीपा कुछ सहम सी गयी। उसने तरुण की बात अनसुनी करते हुए कहा, "देखो तरुण, तुम है मुझे ज्यादा परेशान मत किया करो यार। मैंने तुम्हें माफ़ तो कर दिया पर वाकई में आज तो तुमने सारी हदें पर ही कर दी थीं। मैं अगर हमारे संबंधों का लिहाज ना करती और तुम्हारे भैया से सब कह देती ना तो आज पता नहीं क्या हो जाता। तुम्हारे भैया तुमसे लड़ ही पड़ते और...... ।"

तरुण ने अपने चेहरे पर एकदम दीपा की बात सुन कर डर गया हो ऐसे भाव ला कर फिर तरुण ने एक बार फिर झुक कर दीपा के पाँव पकडे और दीपा के पाँव को साडी के ऊपर से ही दबाने लगा। दीपा तरुण के इस वर्ताव से भड़क गयी और कुछ कदम पीछे हट कर बोली, "तरुण यह क्या कर रहे हो? मैंने कहा ना की तुम्हें माफ़ कर दिया? फिर यह क्या है?"

तरुण ने कहा, "आपने जो गलतियां मैंने की उसे माफ़ किया। पर भाभी आज होली की रात है। आज होली की मस्ती सबके दिमाग पर छायी हुई है। भाई भी आज मस्ती में हैं। आज आप ऐसी सूफ़ियानी बातें क्यों करते हो? साल में एक दिन तो दिल खोल कर मस्ती करो और करने दो ना भाभी? यह उम्मीद क्यों रखते हो की आज की रात और हरकतें नहीं होंगी? मैं अब आप से जो गलतियां आगे चलके कर सकता हूँ या करूंगा उसकी भी अभी माफ़ी मांग रहा हूँ। प्लीज गुस्सा मत करना। प्लीज आज की रात मस्ती मनाइये और मनाने दीजिये। प्लीज?"

दीपा पीछे हट कर बोली, "ठीक है भाई। माफ़ कर दिया,माफ़ कर दिया, माफ़ कर दिया। अब तो तीन बार बोल चुकी हूँ। बस?"

तरुण अचानक सीरियस हो कर बोला, "भाभी, यह सच है की मैं आपको देखता हूँ तो मेरे सारे गम, मेरे सारे दर्द भाग जाते हैं और मैं रोमांटिक महसूस करने लगता हूँ। भाभी आपको नहीं पता मैं अंदर से कितना दुखी हूँ। इसलिए प्लीज इस होली के त्यौहार में मैं कुछ ज्यादती करूँ तो मुझे माफ़ करना और मुझे फटकारना मत प्लीज? मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूँ। आपको देवी माँ सा समझता हूँ। मैं आपको दुखी नहीं देख सकता। मैं आपको खुश देखना चाहता हूँ।"

यह सुन कर दीपा बरबस खिलखिला कर हँस पड़ी। उसने तरुण का हाथ पकड़ कर उसे खड़ा किया और उसके करीब जाकर बोली, "तरुण यार तुम बड़े चालु हो। एक तरफ तुम मुझे देवी माँ का दर्जा देते हो और दूसरी तरफ मुझसे छेड़खानी करते रहते हो? स्त्रियों का दिल कैसे जितना यह तुम बखूबी तरह जानते हो। देखो आज तक मैंने अच्छे अच्छों को अपने करीब नहीं आने दिया। बहोत मर्दों ने मेरे करीब आने की कोशिश की। पर मैंने उन्हें ऐसे फटकार लगाई की वह मेरी तरफ का रास्ता ही भूल गए।

तुम्हें भी मैंने खूब हड़काया, फटकारा और लताड़ा। पर तुम तो बड़े ही ढीट निकले। तुम पर तो कोई भी असर ही नहीं होता। तुम तो बन्दर ही हो । इन्सान को कण्ट्रोल किया जा सकता है, पर बन्दर को कण्ट्रोल करना बहुत मुश्किल है। शायद इसी लिए भगवान ने भी बंदरों को ही सैनिक के रूप में पसंद किया था। पर तुम्हारी एक बात जो मुझे बहुत अच्छी लगी वह यह की तुमने मुझे कभी भी हलकी नजरों से नहीं देखा। मेरे साथ हर तरह की छेड़खानी करते हुए भी तुमने मुझे हमेशा सम्मान भरी नज़रों से देखा। तुमने मुझे हमेशा इज्जत बख्शी। तुमने मेरे पति से छुपाकर कोई हरकत नहीं की। मैं इसी लिए तुम्हारी इज्जत करती हूँ।"

दीपा ने अपनी बात चालु रखते हुए कहा, "तरुण, देखो मैं मर्द नहीं हूँ इसलिए हो सकता है, तुम्हारे दिलोदिमाग के सारे भावों को मैं समझ ना सकूँ। पर तुम्हारे भाई मुझे बार बार मर्दों की कमजोरियां बगैरह के बारे में बताते रहते हैं। वैसे ही देखो मैं भी एक औरत हूँ। मेरी अपनी भी कुछ कमियां और मजबूरियां हैं। तुम्हें भी उन्हें समझना पडेगा। आज तुम और तुम्हारे भाई पर होली का जूनून सवार है। आज छेड़ने के लिए तुम दोनों के बिच में मैं एक अकेली ही औरत हूँ। चलो ठीक है, आज की रात तुम्हारे सारे होने वाले गुनाह माफ़ बस? आज मैं तुम्हें नहीं फटकारूंगी, ना बुरा मानूंगी। अब तो खुश?"

मेरे घर के आंगन में हल्का सा अन्धेरा सा था। राहदारियों की कोई ख़ास आवाजाह नहीं थी। तरुण ने दीपा का हाथ अपने हाथोँ में रखते हुए दीपा के हाथों की हथेली दबाकर कहा, "भाभी, नहीं भाभी, मैं इतने से खुश नहीं हूँ। मुझे कुछ और भी कहना है। मैं आपसे एक गंभीर बात करना चाहता हूँ। आज ज्यादा समय नहीं है। पर फिर भी सुन लो। भाभी, मैं आज आपके सामने एक इकरार करना चाहता हूँ। अभी भैया नहीं है इसलिए मेरी हिम्मत हुई है। मैं उनके सामने बोल नहीं सकता। मैं मानता हूँ की जिसको दिलोजान से चाहते हैं उससे झूठ नहीं बोलते। इसीलिए मैंने तय किया था की मैं आज आपसे सच सच बोलूंगा चाहे आप मुझे इसके लिए बेशक थप्पड़ मारें या नफरत करने लगें।"

तरुण की बात सुनकर दीपा से रहा ना गया। उसने कहा, "तरुण, यूँ घुमा फिरा के मत बोलो। जो कहना है वह साफ़ साफ़ कहो।"

तरुण ने कहा, "बिलकुल भाभी जी। तो सच बात सुनिए। मुझे सब रोमियो के नाम से जानते हैं। बात भी सही है। मैंने अपने जीवन में कई शादीशुदा या कँवारी स्त्रियों को पटाया है और उनके साथ सेक्स किया है। मैंने भी एन्जॉय किया है और उनको भी एन्जॉय कराया है। भाभी गुस्सा होइए, चाहे मुझे डाँट दीजिये; पर यह सही है की आपके साथ भी शुरू शुरू में मेरे मन में सेक्स की ही बात थी। मैं आपके बदन को पाना चाहता था। मैं आपसे सेक्स करना चाहता था। आपके साथ सोना चाहता था।"

तरुण के मुंह से यह शब्द सुनकर दीपा चक्कर खा गयी। उसे यह सुन कर कुछ राहत हुई जब तरुण ने यह कहा की "मैं आपसे सेक्स करना चाहता था।" इसका मतलब तो यह हुआ की अब तरुण सेक्स करना चाहता नहीं है।

दीपा कुछ बोलना चाहती थी पर तरुण ने उसके होँठों पर अपनी उंगली रख दी और कहा, "भाभी, अभी कुछ भी मत बोलिये। मुझे बोलने दीजिये। पहले मेरी बात सुन लीजिये। मेरी और आपकी बात शुरू हुई थी दिल्लगी से। पर भाभीजी अब तो यह बात दिल्लगी नहीं रही। यह तो साली दिल की लगी बन गयी है। भाभी, मैं आपको चाहने लगा हूँ। मुझे गलत मत समझें। मैं आपको भाई से छीनना नहीं चाहता। मैं भाई को भी बहुत चाहता हूँ। पर आपकी सादगी, आपका भोलापन, आपकी मधुरता और आपका दिलसे प्यार मेरे जहन को छू गया है। मैं आपसे दिल्लगी नहीं करना चाहता हूँ। भाभी मैं आपको दिल से प्यार करना चाहता हूँ। मैं आप के साथ सिर्फ सेक्स करना ही नहीं चाहता हूँ, मैं सिर्फ आपके बदनको ही नहीं, आपके दिल को भी पाना चाहता हूँ।"

तरुण की बात सुन कर दीपा भौंचक्की सी रह गयी और तरुण को आश्चर्य भरी नज़रों से देखने लगी।

तरुण ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "भाभीजी, उस दिन सुबह जब मैं मैगी लेकर आया था, तब जब आप तौलिया पहने आधी नंगी बाहर आयी थीं और मैंने जब आपको मेरी बाहों में लिया था तब क्या हुआ था? अगर मैं चाहता तो आपका तौलिया एक ही पल में खिंच डालता और आपको नंगी कर देता। अगर मैं आपको नंगी देख लेता तो फिर मैं क्या मैं अपने आपको रोक पाता? क्या मैं आपको ऐसे ही, कुछ भी किये बगैर छोड़ पाता? भाभी, आप ने ही कहा है ना की साफ़ साफ़ बोलो? तो प्लीज बुरा मत मानिये, पर मैं आपको नंगी देख लेता तो फिर मैं कितनी कोशिश करने पर भी अपने आपको रोक नहीं पाता, और आपसे सेक्स किये बगैर आपको छोड़ता नहीं।

भाभी, मैं जानता हूँ की अगर आप नंगी हो जातीं और मैं अपने कपडे निकाल देता तो फिर मैं कैसे भी करके आपको वश में कर लेता। भाभी, औरतों के नंगे बदन को कहाँ छू कर उनको कैसे उकसाना और सेक्स के लिए कैसे तैयार करना वह मैं अच्छी तरह जानता हूँ। भाभी मैं आपके मन को भी अच्छी तरह जानता हूँ। मुझे कुछ जद्दो जहद जरूर करनी पड़ती पर मैं जानता हूँ की अगर मैं उस समय चाहता तो मैं आपको सेक्स के लिए तैयार कर ही लेता। आप तैयार हो जातीं और मेरी आपसे सेक्स करने की इच्छा पूरी हो ही जाती।

मैं आपका तौलिया खिंच कर आपको नंगी करने वाला ही था। पर उसी समय अचानक मेरे दिमाग में एक धमाका हुआ। मेरे दिमाग ने कहा, 'जिसको प्यार करते हैं उस पर जबरदस्ती नहीं करते'। जब मैंने देखा की आप शायद तब तक पुरे मन से मेरे साथ सेक्स करने के लिए तैयार नहीं थे तो मैं आपको जबरदस्ती सेक्स करने के लिए तैयार कर नहीं करना चाहता था। उस दिमागी धमाके से मैं लड़खड़ा गया। मैं आपके धक्के से नहीं लड़खड़ाया। आप का धक्का तो मेरे लिए हवा के भरे गुब्बारे के जैसा था। मैं मेरे दिमाग में जो धमाका हुआ था इसके कारण लड़खड़ाया था।"

दीपा के लिए तरुण की बात वैसे कोई नयी बात नहीं थी। दीपा अपने दिमाग में अच्छी तरह जानती थी की तरुण उसे शुरुआत से ही चोदना चाहता था। इसी लिए वह दीपा के पीछे हाथ धो के पड़ा हुआ था। उसमें मेरा भी हाथ था वह भी दीपा जानती थी। उस दिन तक किसी की दीपा को छेड़ने तक की हिम्मत नहीं हुई थी। पर तरुण ने दीपा को धड़ल्ले से यहां तक कह दिया की वह दीपा को चोदना चाहता था। दीपा बिना कुछ बोले हैरानगी से तरुण को बड़ी बड़ी खुली आँखों से देखती ही रही। पर तरुण अपनी बात को पूरी करना चाहता था।