Chitra aur Meri Badmaashiyan

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My cousin Chitra and I play with each other's sex.
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ये १९६६ की बात है। में कक्षा ११ में था, और १८ की उम्र पार करके ही ग्यारहवीं मैं पहुंचा था और हर समय काफी हॉर्नी रहता था। पापा के ऑफिस चले जाने के बाद छुप कर मम्मी को नंगा नहाते हुए देखने के लिए कभी कभी कोई बहाना बना कर स्कूल न जाता और उन्हें देख कर रूमाल में लौड़े (जिसे में अपना प्यारा मुन्ना कहता हूँ ) को लपेट कर कई बार मुठ मार लिया करता था। ख़ास मज़ा तो मम्मी को अपनी झाटों से भरी बुर और मोटी चूचियां धोते हुए देखने में आता था। वोह भी क्या दिन थे - चूत से झांटें कोई औरत साफ़ नहीं करती थी, और ठीक ही तो है, बिना झांटों के चूत तो दूर से एक बेकार सी दरार जैसी ही दिखती है, जैसे किसी बच्ची की। मम्मी की जैसी नंगी झांटों से ढकी चूत का ख्याल आते ही मेरे लौड़े का सुपाड़ा फूल कर लाल हो जाता और उसकी टोपी गीली होने लगती। एक बात और - घर मैं केवल २ घंटे के लिए सुबह ६ से ८ तक ही पानी आता है और ७ से ८ तक कम प्रेशर पर , तो सब का नहाना सुबह ही हो जाता था। पापा जल्दी ऑफिस जाते थे और मम्मी केवल साड़ी लपेट कर बिना ब्लाउज और पेटीकोट पहने किचन मैं खाना वगैरह के सिलसिले में लगी रहती थी। या कभी अगर नहाई न होती तो केवल नाइटी में (बिना ब्लाउज और पैंटी के) होती थी। अक्सर नाइटी पीछे से चूतड़ों के बीच दरार में फंसी होती थी और सामने से मम्मों की क्लीवेज और नोकीले निप्पल दिखते थे।

बाजार घुमते हुए भी नज़र हमेशा आंटियों और लड़कियों की चूची और चूतड़ों पर ही रहती थी, और लौड़े को काफी मुश्किल से काबू में रख पाता था। कुछ औरतों की हिप्स बेहद चौड़ी और चलते समय चूतड़ ऊपर-नीचे होते देख तो बड़ा मज़ा आता था। मैंने कुछ पैंटों में तो जेब में छेद कर लिया था, जिससे की ज़रुरत पड़ने पर जेब में हाथ डाल कर लौड़ा काबू में कर सकूं। कभी कबार जब किसी औरत या लड़की को चलते चलते अनायास अपनी चूत पल भर के लिए खुजाते अगर देख लेता तो फ़ौरन उसी समय सड़का मारने को जी करता था। बेहद इच्छा थी की कोई काली झांट वाली लड़की नंगी होकर मुझे अपनी चूत अच्छी तरह देखने, छूने, और सूंघ लेने दे , और मैं भी उसे अपना लौड़ा और लटकन अच्छी तरह और खूब देर तक सहला लेने दूँ, पर ये सब तो तब तक सिर्फ सोच ही में था ! उस ज़माने मैं औरतों की बाजार वाली पैंटी और मर्दों के अंडरवियर तो थे ही नहीं, घरों के बाहर बाकी कपड़ों के साथ औरतों की लाल या सफ़ेद घर की बानी हुई चड्ढी और मर्दों के ढ़ीले जांघिये सूखा करते थे। चड्ढी पर अक्सर चूत के जूस के हल्का पीला सा निशान भी नज़र आ जाता था और थोड़े ज्यादा पीले निशान मैं तो थोड़ी खुशबू भी मैंने सूंघी थी। ज़ाहिर है, सूंघ कर चेहरे पर मुस्कान और लौड़े मैं सुरसुराहट भी हुई थी - ख्यालों मैं चूत जो दिख गयी थी !

मम्मी सिर्फ ब्लाउज और ढीले पेटीकोट मैं ही सोती थी , और जब पापा टूर पर जाते तो मैं देर तक पढाई के बहाने जगा रहता था क्योंकि मम्मी गहरी नींद मैं टांगें मोड़ कर सोती थी, और अक्सर टांगें चौड़ी होने से उनकी झांटें साफ़ दिखती थीं। ऐसे मैं मैं कच्छे का नाडा खोल कर आराम से दो या कभी तीन बार झांटें देखते हुए मुठ मार के सोता तो खूब गहरी नींद आती थी। एक-आध बार तो मैंने उनको नींद मैं अपनी चूत खुजाते हुआ भी देखा था ! मेरे तो तब रोंगटे खड़े हो जाते थे, लौड़े के साथ-साथ !

खैर, अब अपनी उस असली वारदात पर आता हूँ जिसकी वजह से मेरे सारे सपने पूरे हुए और जिसक वजह से मैं यह सब बता रहा हूँ। एक दिन पापा ने घर आके बताया कि मेरी कजिन चित्रा को हमारे पास आ के रहना होगा क्योंकि उन्हें बारहवीं कक्षा का बोर्ड एग्जाम उसी शहर से देना था। चित्रा तीन बहनों मैं दूसरी है और काफी सांवली चपटे से चेहरे वाली स्कर्ट-ब्लाउज मैं रहने वाली लड़की है जो १८ साल कि हो चुकी है और बस किसी तरह से पास होने भर के नंबर लाने की फिराक मैं है। मैं यह सुन कर मन ही मन काफी खुश हुआ की चलो एक लड़की जिसका मन पढ़ाई मैं कम लगता है, और मुझसे कुछ महीने ही बड़ी है, हमारे साथ रहेगी कुछ समय तक। और एक्चुअली इस लिए की अगर पढ़ाई मैं कम मन लगता है तो शायद कुछ खुराफात तो अगर करती नहीं तो सोचती तो होगी ही! पट गयी तो दोनों मज़े करेंगे !

चित्रा के आने के बाद हम लोगों के रूटीन मैं कोई ख़ास बदलाव नहीं आया था सिवाय इसके की मुझे नहा कर थोड़ा और जल्दी निकल आना पड़ता था , क्यूंकि पहले मैं स्कूल जाता था। चित्रा की तो प्रेप लीव चल रही थी , पर उसे नल में पानी जाने से पहले ही बाथरूम जाना होता था। मैंने पूछा क्यों तो बोली की भरे हुए बाल्टी के पानी में वोह मज़ा नहीं है जो की नल से गिरती धार से नहाने में । बात आयी-गयी हो गई। फिर मैनें एक-दो दिन बाद नोटिस किया की चित्रा की सभी स्कर्ट में दो पॉकेट ज़रूर हैं , और हर समय उसका एक या दूसरा हाथ जेब में ही होता है। ख़ैर, यह भी आई-गयी सी बात होने से पहले मैंने एक और काफी इंटरेस्टिंग चीज़ नोटिस की। रात को हम चारों एक लाइन से कवर्ड और एनक्लोसड वरांडे में सोते थे - पहले पापा फिर मम्मी, चित्रा, और में। कई रात देखा की चाहे कितनी भी गर्मी हो, चित्रा को एक चादर तो ओढ़नी ही होती थी, और अक्सर (लगभग रोज़) उसका एक हाथ अधखुली सी टांगों के बीच होता था। सोचा , यह भी शायद मेरी तरह अपनी चूत में मुठ मारती होगी, लेकिन मेरी परेशानी यह थी की लड़की आखिर करती क्या है अपनी चूत में मज़े लेने के लिए, जैसे मैं लौड़े का सुपाड़ा जल्दी-जल्दी खोलता-बंद करता हूँ? धीरे धीरे चूत पर से चित्रा की चादर भी ऊपर नीचे होती दिखती थी और वह यह मेरी तरफ थोड़ा मुड़ के यह काम करती थी जिससे दूसरी तरफ लेटी मेरी मम्मी को न दिखाई दे।

मन ही मन मैं भी खुश था की बस एक मौके की ज़रुरत है और चित्रा पट तो जायगी ही क्योंकि उसे भी तो बस एक मौके की ही तो तलाश होगी मेरी तरह। और फिर ख्यालों में मुझे हम दोनों नंगे होकर लौड़े और चूची और चूत और चूतड़ों से खेलते हुए महसूस होते। बस यही न समझ में आता कि चूत को आखिर किस तरह या कहाँ छूना पड़ता होगा मस्त होने के लिए? फिर नींद आ जाती और अगले दिन स्कूल मैं दिन भर यही बात दिमाग मैं घूम रही होती थी और कई बार स्कूल के बाथरूम मैं जाकर लौड़ा हिलाना पड़ता था। क्लास मैं भी फटी जेब मैं से लौड़े के सुपाड़े को कभी सहलाता, कभी खोलता/बंद करता और अगर चिपचिपा रस चूने लगता तो जेब से हाथ बहार कर लेता। अक्सर स्कूल में अब मेरा लौड़ा हर समय खड़ा सा ही रहता था और दोपहर खाने के टाइम भी मुझे अपनी डेस्क पर बैठे-बैठे ही खाना खा लेना पड़ता था।

कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा, और फिर स्कूल के दिनों में चित्रा और में या तो एक-आध बात कर लेते या मेँ दूर से उसका हाथ अपनी स्कर्ट की जेब में देख कर अपने लौड़े में सुरसुराहट महसूस कर लेता। हर रात चित्रा हाथ से अपनी चूत से खेलती हुई तो दिखती ही थी। रोज़ यह भी सोचता कि उससे ये बातें करूंभी तो कैसे? लेकिन एक बात तो तय थी - जब भी मेरा हाथ मेरी पैंट की जेब में होता तो उसकी नज़र मेरी पैंट की ज़िप पर और मेरी नज़र उसकी स्कर्ट के अंदर टटोली जा रही चूत पर जाती ही थी। इसके बाद हम आपस में चाहे कुछ भी बातें न भी करें,

मगर हम दोनों के चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कान तो रहती ही थी। मेँ बस यही सोचता की आखिर आगे कुछ बात कैसे और कब की जाए। मन ही मन यह सोच कर खुश हो लेता था की उसके चेहरे की हलकी मुस्कान का मतलब भी शायद ये है कि उसके दिमाग में भी कुछ मेरे साथ मज़े लेने के हो सकते हैं यह ज़रूर होगा, और वो भी सोचती होगी कि बड़ी होने के नाते पहल करे भी तो कैसे? और कब, क्योंकि घर में हम दोनों का अकेले होना भी तो ज़रूरी था।

इत्तेफ़ाक़ से तभी शनिवार को ही मम्मी-पापा को सुबह ६ बजे ही एक सत्संग में जाना था और चित्रा और में भी जल्दी उठ गए थे। पापा-मम्मी के जाने के बाद मैंने चित्रा कहा कि पहले वह नहा ले क्योंकि नल में ७ बजे तक अच्छा पानी आएगा, और उसे पानी आते-आते ही नहाने में अच्छा लगता है। मैं कमरे में डाइनिंग टेबल पर रखे अखबार को पढ़ रहा था कि ५-७ मिनिट बाद ख्याल आया कि बाथरूम में से पानी गिरने की या और भी कोई भी आवाज़ ही नहीं आ रही ! फ़ौरन यह ख्याल आते ही पहले तो लौड़े में कुछ थिरकन हुई , और फिर मैं उठ कर बाथरूम के प्राइवेट बालकनी में खुलने वाले दरवाज़े पर दबे पाँव जाकर उसमें एक दरार से, सांस रोक कर अंदर झाँकने लगा। अंदर जो हो रहा था वह देख कर मेरी धड़कन तेज़, चेहरा लाल और लौड़ा टन्न हो गया। नल में से पानी की एक पतली धार गिर रही थी, चित्रा दोनों हाथ से नल की टोंटी के पीछे के पाइप को पकडे हुए जांघें फैला कर उकड़ूँ ऐसे बैठी थी कि पानी की धार सीधी उसकी चूत पर गिर रही थी। उसने अपना सर अपने एक कंधे पर टिका रखा था और रह रह कर उसका बदन कंपकंपाता और गहरी सांस आ जाती थी उसको। धड़कन तेज़ होने के बावजूद, मुझे तो पता था कि घर में दूसरा कोई नहीं है तो मैं आराम से देख सकता हूँ, और जब तक पूरा मज़ा नहीं ले लेती तब तक चित्रा बाहर आने वाली नहीं है , तो मैंने भी फ़ौरन अपना कच्छा नीचे किया और चित्रा को देखते-देखते दोनों हाथ से लौड़े और बॉल्स को खूब खुल कर सहलाया। एक बार सोचा कि धीरे से दस्तक दूँ या पुकारूँ पर नहीं किया यह सोच कर कि वह हड़बड़ा जाएगी और फिर कहीं मेरी शिकायत ही न कर दे। थोड़ी दूर से ही सही, और उसके अपने हाथों से नहीं, पर पहली बार किसी एकदम नंगी लड़की को चूत में मज़े लेते हुए देख ही लिया मैंने आखिरकार। एक और चीज़ देख कर और भी मस्त हो गया था- चित्रा के काफी घनी झांटें थीं। वैसे ही झांकते हुए मुझे दो बार रूमाल में मुठ मारनी पड़ी जब तक चित्रा ने एक ज़ोरदार थिरकन और लम्बी सांस के बाद अपनी जांघें बंद कीं , नल बंद किआ ,उठ कर चूत को तौलिया से पोंछा और बाकी नहाना किये बिना ही सफ़ेद पैंटी और ब्रा (उसके मम्मे भी सांवले मगर काफी बड़े बड़े थे) पहन कर बहार आने के लिया तैयार होने लगी। में भी दो बार तो झाड़ चुका था , कच्छा ऊपर करके फिर डाइनिंग टेबल पर अखबार पढ़ने लगा,जैसे कुछ हुआ ही न हो।

चित्रा नाहा कर आने पर मुझसे जल्दी नाहा कर आने को कहा और बोली कि फिर एकसाथ नाश्ता करेंगे। मैंने कहा कि पहले नाश्ता ही कर लेते हैं क्योंकि में तो बाल्टी में भरे पानी से भी नाहा लूँगा। तो नाश्ता लाने के लिए जाते जाते बोली कि नल कि धार और ताज़े पानी में नहाने का तो मुकाबला ही नहीं लेकिन तुम्हारी जैसी मर्ज़ी। यह सुन कर केवल कच्छे में ही मेरा मुन्ना (मेरा लौड़ा) फिर हरकत करने को तैयार होने लगा और मुझे काफी जोर लगा उसे काबू में करने में। नाश्ता करते करते मैंने चित्रा को बताया कि पापा कुछ दिनों से बाथरूम का बहार वाला दरवाज़ा ठीक करवाना चाहते हैं क्योंकि उसमें दरारें पड़ गयी हैं और कोई बद्तमीज़ नौकर या कामवाली अंदर नहाने वाल को झाँक कर नंगा नहाते हुए देख सकते हैं। "हाय राम !" वोह बोली , "तब तो मुझे भी थोड़ा केयरफुल रहना होगा"। "क्यों आप कुछ गलत थोड़े ही करती हैं, सिर्फ नहाती ही तो हैं!" "चल हट बदमाश! कपडे तो उतार के ही नहाती हूँ ना ! तूने कुछ देखा तो नहीं?" हम दोनों बस हंस पड़े और नाश्ता करने लगे। मैंने बात को थोड़ा और मज़ेदार रखने के लिए पूछ ही लिया - "लेकिन आपको बाल्टी के पानी से नहाना क्यों नहीं अच्छा लगता?" तो चित्रा मेरी तरफ देख कर और मुस्कुरा के बोली "बताया तो - बदन पर मग से पानी डालो या फिर नल की धार से गिरे, दोनों में ज़मीन आसमान का फर्क होता है - तुम लड़के लोग क्या जानो !" मैंने पूछना तो चाहा कि बदन पर पानी गिरने मैं भी लड़के और लड़की का फर्क बीच मैं कैसे आ गया, पर आज के लिए कुछ ज़्यादा ही हो जाएगा, यह सोच कर चुप रह गया। खुश इसलिए था कि हम लोग एक-दूसरे के साथ कुछ और खुल कर बात करने को तैयार होते दिख रहे थे।

नाश्ता ख़तम होने के बाद भी पानी अभी आ रहा था, और मेरे मुन्ना मास्टर लौड़े ने भी कच्छे मैं अपने आप पर काबू कर लिया था जब में नहाने गया, और मुझे उम्मीद थी कि चित्रा के मन में इच्छा है अगर कुछ भी मेरे साथ करने की तो एक बार झाँकेगी तो ज़रूर । नहाने जाते जाते मैं बोला "मैं चला नहाने और आप भी ताक-झाँक मत करियेगा" तो जवाब मिला "तुम फ़िक्र मत तारो और आराम से नहा लो। मुझे ताक-झाँक करने मैं कोई भी दिलचस्पी नहीं है , मैं तो अगर अगर कुछ देखना होता है तो खुलेआम देख लेती हूँ। सब को यही करना भी चाहिए।" मैं बोला की अगर दिखाने की इच्छा हो तो भी बिना हिचक बस खुल्लम-खुल्ला दिखा ही देना चाहिए और हम दोनों हंस पड़े और मैं नहाने चल दिया।

बाथरूम मैं कपड़े उतारते समय एक आँख बालकोनी की साइड वाले दरवाज़े की दरार पर थी यह जानने के लिए की कब उसमे से आ रही रौशनी भी कम हो तो पता चल जाए की चित्रा ने वहां से देखने की कोशिश की है। पापा-मम्मी के आने मैं तो अभी कम से कम दो घंटे थे तो आराम से कपड़े उतार के नंगा बाल्टी के सामने पटले पर बैठ कर मग से अपने ऊपर पानी ऐसे डालना चालू किया की बहार कमरे मैं डाइनिंग टेबल तक पानी गिरने की आवाज़ जा सके। मैं बदन को भिगो कर साबुन लेने उठा ही था कि चित्रा ने बाहर से पूछा की चाचा-चाची कब तक आएंगे। मैंने बताया की उन्हें अभी और दो घंटे लगने वाले हैं, तो चित्रा बोली "ठीक है, मैं अपने कमरे मैं जा रही हूँ " और फिर कुर्सी खिसकने की आवाज़ आई। सोचा की उसकी ताक-झाँक न करने वाली बात शायद ठीक ही होगी, मगर तभी लगा की दरवाज़े की दरार पे रोशनी बंद हुई है। दिमाग में "चित्रा आ गयी" का मैसेज पहुँच गया और जो कुछ भी मैंने चित्रा के बारे में सोचा था सब सही लगने लगा। मेरा प्यारा लौड़ा (जिसको मैं प्यार से मुन्ना और चित्रा की चूत को मुनिया कहूंगा आगे से) चित्रा को सलाम करने को खड़ा था, लेकिन उसको दिख नहीं रहा होगा क्योंकि दरवाज़ा तो मेरे बायीं तरफ था। मैंने तुरंत साबुन लौड़े और टांगों पर लगाया और वहीँ खड़ा होकर खड़े लौड़े और बॉल्स को अच्छी तरह मला, जिससे बहार से झांकती हुई चित्रा मेरे लौड़े और बॉल्स को अच्छे से देख सके। मग में पानी लेकर लौड़े को धोया, और फिर इत्मीनान से धीरे धीरे सुपाड़े को खोला और बंद किया। साफ़ नज़र आ रहा था की चित्रा खूब अच्छी तरह आँख दरार पर लगा कर ध्यान से देख रही थी मेरी सब हरकतों को। सब कुछ सही था मगर मैंने ठान लिया की पहल भी उसको ही करने दूंगा मामला आगे बढ़ाने में, क्योंकि यह भी तो पता करना था की एक चालू लड़की क्या करती होगी अपने से छोटे कजिन भाई से मस्ती करने को पटाने के लिए।

मैंने जान बूझ कर उस दिन थोड़ा ढीला कच्छा पहना जिससे दो बातें हो सकें - एक तो यह की जब ज़रुरत हो तब आसानी से जेब में हाथ डाल कर मुन्ने को पकड़ या सहला सकूं, और दूसरा ये कि अगर चित्रा आज ही कुछ कर डालने के मूड में आ गयी हो तो वोह आसानी से लौड़े को मेरे पैंट के ऊपर से ही टटोल सके। बाहर आया तो ज़ाहिर है, चित्रा वहां नहीं थी क्योंकि अपने कमरे में जाने वाली बात तो वो कर ही चुकी थी!समझ में आ गया की यही है उसके चालू होने का सबूत!

ड्राइंग रूम में दीवान पर चित्रा की पढ़ाई के लिए छोटी टांग वाली एक स्टडी डेस्क रक्खी रहती थी और वहीँ वोह या तो अल्थी पालथी मार के या फिर कभी एक टांग नीचे लटका के पढ़ने के लिए बैठती थी। दीवान और चित्रा के ठीक सामने रखी कुर्सी पर बैठ कर मैं पढ़ाई करता था। उस दिन भी वोह वहीँ बैठी थी एक टांग नीचे करके, और लग रहा था कि बड़े ध्यान से कुछ लिख रही है। पढ़ाई का तो मेरा मन था नहीं, तो मैं अपने ख्यालों में डूब गया। सोच रहा था कि लड़कियों के बहुत मज़े होते हैं। पहली बात- लौड़ा न होने की वजह से चाहे कितनी भी मस्ती में क्यूं न हों, सामने वाले को कुछ पता नहीं चलता, दूसरे दो चूची भी तो हैं जिन पर जब चाहे हाथ फेर कर भी मस्ती ले सकती हैं , और निप्पल चुसवाने मैं तो उन्हें बहुत मज़ा आता ही होगा। मेरी तो इन ख्यालों से ही लौड़े पर असर होने लगा था और यह चाहते हुए भी कि चित्रा पैंट हल्का सा उठता हुए भांप तो ले, कुर्सी पर धीरे से अपने आप को एडजस्ट कर रहा था। १८ भी क्या उम्र होती है! बाथरूम में मुठ मारने के बाद भी प्यारे मुन्ने को चैन न था, और मुझे मालूम था कि चित्रा चाहे कितनी भी पढ़ने का नाटक कर रही हो, पर उसकी चूत तो मुझे बाथरूम में नंगा देख कर गीली ज़रूर हो गयी होगी। पर मैंने तो सोच ही लिया था कि पहल वो ही करे तो ठीक है , इसलिए भी कि अगर वो पहले कुछ करेगी तो हरगिज़ मेरी शिकायत तो कर ही नहीं सकती।

मेरी सोच इस बार फिर सच निकली - चित्रा ने अपनी नीचे लटक रही टांग पल भर के लिए उठा कर दीवान पर रखी , दोनों घुटने आपस में मिला कर फिर अलग किये जिससे उसकी स्कर्ट थोड़ी जांघ पर ऊपर हुई, और यह साफ़ नज़र आया कि उसने एक टाइट सफ़ेद पैंटी पहनी है जो कि उसकी चूत (या प्यारी मुनिया) की दरार में घुसी है, और काली झांटें पैंटी की साइड से निकली हुई भी दिख रही हैं। मैंने यह पूरी हरकत बिना हिले देख ली थी और उसे यह पता था। उसकी पहल करने की यही पहली हरकत थी। मैंने भी अपनी एक टांग आहिस्ता से उठा कर कुर्सी पर रखी जिससे कि ध्यान से देखने वाले को यह महसूस हो सके कि ढ़ीले कच्छे में पैंट के अंदर झटका मारता लौड़ा बहुत खुश हो रहा है। हम दोनों ने एक-दूसरे से कुछ बोले बिना ही बहुत कुछ कह दिया था ,और दोनों ही एक दूसरे की तरफ देखे बिना हल्का-हल्का मुस्कुरा रहे थे, और ज़रूर चित्रा भी अपनी अगली हरकत प्लान मन ही मन कर रही थी।

अचानक चित्रा ने अपनी नोटबुक बंद की और दीवान से उठकर मुझसे बोली "मेरा चाय पीने का मन हो रहा है, तुम भी पियोगे? मैं बना के लाऊंगी।" मैंने भी हामी भर दी। वहीं ड्राइंग रूम में चाय की चुस्की लेते हुए चित्रा मेरे पास वाली कुर्सी पर बैठ गयी और बोली "यार तुम तो स्कूल चले जाते हो रोज़ और घर में चाची और मैं रह जाते हैं। कितनी पढ़ाई करूँ, और सच तो यह है की तो बस पास होना है किसी तरह। फिर दो चार साल मैं शादी कर लूंगी किसी अच्छी कमाई करने वाले से और सेट हो जाऊंगी। बहुत बोर होती हूँ घर पर। यहाँ कोई दोस्त भी तो नहीं है, समझ नहीं आता कि दिन कैसे काटूँ? " तो मैंने पुछा "आप अपने घर क्या करती थीं?" वोह बोली कि वहां अपनी बहनों और सहेलियों से गप लड़ाती है, या उनके साथ घूमने निकल जाती है। मैंने कहा कि यह समस्या तो है, लेकिन इसमें मैं क्या मदद करूं? चित्रा बोली कि वह सोच के बताएगी और पूछा कि मैं स्कूल मैं अपने दोस्तों के साथ किस टॉपिक पर अक्सर बातें करता हूँ? अब मेरी बारी थी सोच मैं पड़ने की , लेकिन बहुत हिम्मत करके बोल ही पड़ा मैं "हम लड़के लोग तो ज़्यादातर कुछ गंदी सी बातें ही करते हैं, या फिर कभी क्रिकेट या टेनिस के मैच चल रहे होते हैं तो उनके बारे में बातें होती हैं।"

साफ़ दिखाई दे रहा था कि चित्रा की आँखों में मेरे जवाब से अचानक एक चमक सी आ गयी थी। उसने अपनी कुर्सी थोड़ी मेरे पास खिसकाते हुए कहा "थोड़ा खुल कर बताओ ना---गंदी बातें मतलब? क्या बताते या पूछते हो?" मैंने टालते हुए कहा "आप कहीं मुझसे पूछ कर मेरे बताने से मम्मी से मेरी शिकायत तो नहीं कर दोगी?" चित्रा काफ़ी मिन्नतें सी करती हुई बोली "यार तुम तो मुझे अभी ठीक से पहचाने ही नहीं हो। गन्दी और उस तरह कि बातों मैं ही तो मन लगा रहता है ना! अब मैं चाची से तो ये सब पूछ नहीं सकती, और बचे एक तुम। और फिर तुम हो भी तो इतने हैंडसम और थोड़े से दुष्ट भी, तुम ही नहीं बताओगे तो मैं कहाँ जाउंगी? तुमसे मिलते ही मुझे तो लगने लगा था कि यहां तुम्हारे साथ मज़े से यह बोर्ड एग्जाम तक का टाइम कट जाएगा, और तुम्हें तो लग रहा है कि मैं तुम्हारी शिकायत कर दूँगी " चित्रा सचमुच रुआंसी सी हो गयी थी। मुझे उस पर तरस आ गया था और सबसे ज़्यादा मज़ा तो यह सुनकर आया था कि उसे गन्दी और उस तरह की बातों में ही तो मज़ा आता है!

मैं खड़ा हो कर एक हाथ चित्रा के कंधे पर रख के बोला "आप यहां थोड़े दिन के लिए ही आई हो, मुझसे बड़ी हो, और मैं आपको खुश ही देखना चाहता हूँ। और आप खुद ही कह रही हो कि मेरी शिकायत नहीं करोगी तो मैंने मान लिया। लेकिन गंदी बातों में तो कुछ ऐसे वैसे शब्दों का भी इस्तेमाल होता है, वह सब मैं कैसे बोलूंगा? और आजकल तो लेटेस्ट एक मस्तराम नाम के लेखक की किताबें भी आ गयी हैं जिनमे सब कुछ खुल्लम खुल्ला लिखा रहता है मैंने सुना है।" चित्रा का चेहरा मेरी बातें सुन कर एकदम रिलैक्स हो गया। वोह बोली "तुम पूछ रहे हो ऐसे-वैसे शब्द कैसे बोलूंगा, है ना? रोज़ तो हम सब बार-बार और चाहे कोई भी बात पे चाचा से 'बुरचुद' ये और 'बुरचुद' वो सुनते हैं ना जैसे कि यह बोलने मैं या सुनने में कोई बिग डील नहीं है? या जब गुस्से में होते हैं तो 'माँ-चो' या बैन-चो' भी सुनने में आता है न? बस जैसे चाची और मैं या तुम और तुम्हारे माँ-बाप साफ़ साफ़ आपस की बातों में बुर, चूत, लौड़ा, लंड, झांट,भोंसड़ा, गांड, चोद, और साफ़ लफ़्ज़ों में मादर-चोद बेहेन-चोद नहीं बोलते हैं, लेकिन कभी सोचा है कि इसीलिये तुम और तुम्हारे दोस्त या मैं और मेरी सहेलियां आपस में कुछ भी कहने में झिझकते नहीं हैं। हम और तुम भी बेझिझक एक दूसरे से सब तरह की बातें करेंगे अकेले में। मंज़ूर है?और बोलूं? कोई पर्दा भी नहीं रहेगा मेरी तरफ से हमारे बीच, और मैंने भी मस्तराम के बारे में सुना है, मुझे भी वो किताबें पढ़नी हैं बस अकेले में तुम्हारे साथ, मुझे तो ज़रा भी शर्म या झिझक नहीं हुई तुमसे यह कहने में , आगे तुम्हारी मर्ज़ी। "

यह सब चित्रा के मुँह से सुन कर मेरी कुछ देर के लिए तो बोलती ही बंद हो गयी और मैं भौंचक्का उनको बस देखता रह गया। चित्रा खिलखिला कर ज़ोर से हंसी और फिर उसने खड़े होकर अपनी बाहें खोली और मुझ से चिपक कर खूब मेरे चेहरे को किस किया और बोली "ठीक तो हो ना, और अब तुम्हें क्या कहना है?" मैंने बड़ी सी मुस्कराहट के साथ फिर उन्हें गले लगाया और इस बार मैंने उन्हें सारे चेहरे पर किस करते हुए कहा "चित्रा बहन यू आर द बेस्ट इन द वर्ल्ड", और दोनों पास पास की कुर्सियों पर बैठ गए।

इतना सब कुछ इतनी जल्दी हम दोनों के साथ हो गया था कि दोनों की साँस में साँस आने में समय लगा। इससे पहले कि हम और कुछ बात करते दरवाज़े की घंटी बजी। मैंने जाकर देखा तो पड़ोस वाली आंटी आयी थीं यह बताने किउनके घर में फ़ोन करके पापा ने उनको बताया है कि वे रात को डिनर टाइम तक ही आएंगे, और हम लोग उनके आने का इंतज़ार तब तक न करें। हम वापस आ कर बैठ गए, लेकिन पहले से कहीं ज्यादा रिलैक्स्ड थे और खूब सारी बातें करने के मूड में थे। इस बार मैं पहले बोला "आपको" मेरा इतना कहना था कि चित्रा बोल पड़ी "ये क्या आप, आप लगा रखी है? बंद करो ये फॉर्मेलिटी और मुझे चित्रा या 'तुम' ही बुलाया करो " "ओके" मैं बोला, "यह बताना चाहता था कि मैंने तुम्हें बाथरूम के दरवाज़े की दरार से झाँक कर नंगा नहाते हुए देखा है। वह हंसी और बोली "अच्छा तो बताओ क्या देखा तुमने?" मैंने कहा "तुम तो बहुत ही अनोखे तरीके से मास्टरबेट कर रही थीं बिलकुल बिना हाथ लगाए अपनी चूत को, नहाने के बहाने बाथरूम में बैठी। कैसे सीखा ये तरीका?" "अरे ये तो बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद वाली बात है तुम लड़कों के लिए। चूत में जो सही जगह मज़ा आता है और कितनी देर तक आता रहता है इसका अंदाज़ तो सिर्फ खुद औरत या फिर उसको बेहद प्यार करने वाला और मज़ा दिलाने में ही मज़ा लेने वाला आदमी ही जान सकता है " चित्रा ने मुझे समझाया। " ओह्ह्ह्ह यह तो मुझे भी तुमसे सीखना पड़ेगा, सिखाऒगी ना?" मैंने कहा। "ओके" चित्रा बोली "लेकिन पहले ज़रा खड़े होकर मेरे सामने तो आओ। और ये जान लो की मैंने भी उसी दरार से तुम्हें भी नंगा और लौड़े पर साबुन लगाते हुए भी देखा है। और जैसे मैंने कहा था, अब सब कुछ खुल्लमखुल्ला देखने वाली हूँ।"

मैं जा खड़ा हुआ उसके सामने तो चित्रा ने पहले मेरी पैंट और ढीली चड्डी उतार दी, और मुझसे मेरी शर्ट और पैंट भी उतरवा दी। फिर लौड़े के सामने एक गिलास पकड़ा एक हाथ से और दुसरे हाथ से लौड़ा पकड़ कर बोली "पहले अच्छी तरह मूत लो ,फिर कुछ करूंगी।" मैंने भी आराम से मूता और कहा कि आगे और कुछ करने से पहले अपने भी सब कपडे उतारो क्योंकि मैं तो नंगा था ही। "ठीक है" बोल कर चित्रा ने चुपचाप मेरी तरफ देखते हुए सारे कपडे उतार दिए और उसी कुर्सी पर आ के पालथी मार के बैठ गयी जिस कुर्सी के सामने मैं नंगा खड़ा था। सांवली होने के बावजूद धांसू बॉडी की बनी थी वह - बड़े बड़े लेकिन तने हुए मम्मे जिनमे मज़े से चूसने लायक चूचियां, और थोड़े बगल के बाल और मखमली और काली झांटों के सिवा थोड़े नाभि के नीचे रोंगटे थे , और कहीं भी बाल ही नहीं थे। मैंने कहा "चित्रा यार तुम मेरे सामने एकदम नंगी ! वाह क्या चीज़ दिख रही हो ! मन कर रहा है की तुम्हें बाहों में जकड कर तुम्हारे सारे बदन पर लम्बे-लम्बे किस दूँ और फिर तुम्हारे चूचे चूसूं और झांटो को सहलाते-सहलाते तुम्हारी चूत को भी खूब मज़े दिलाऊं।" चित्रा के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गयी थी और वो तो बस मेरे लौड़े को एकटक देखे जा रही थी , जो उसके होटों से केवल ६ इंच दूर था। आराम से उसने बिना कुछ कहे एक हाथ से मेरी बॉल्स को थोड़ा टटोला जैसे उनका वज़न नाप रही हो, और दूसरे हाथ से मेरा लौड़ा काफी प्यार से पकड़ा जैसे किसी बहुत महंगी और नाज़ुक चीज़ को हाथ में ले रही हो। लौड़े के टोपे की खाल को धीरे से अपने मुंह के पास थोड़ा खींचते हुए उसी मुस्कान के साथ अपने होठों पर जीभ फेरी और फिर जीभ को ज़रा आगे निकाल के लौड़े की आगे की हुई खाल को जीभ से टटोला। जुबां अंदर लेकर मुंह बंद किया जैसे लौड़े का स्वाद चखा हो मगर उसकी मुस्कान और आँखों की चमक लगातार वैसी की वैसी ही बनी रही। चित्रा ने मेरे लौड़े को जल्दी-जल्दी दो-तीन झटके मरते हुऐ महसूस करते ही अपनी मुट्ठी थोड़ी टाइट कर ली और बॉल्स पर से दूसरा हाथ तुरंत हटा लिया। मेरी भी जान में जान आई और मैंने गहरी सांस लेते हुऐ सोचा की न जाने कैसे चित्रा ने सोचा होगा की अगर देर तक एसे ही मस्त रहना और मज़े लेते रहना है तो सही समय पर लौड़े को थोड़ी राहत देनी ही पड़ेगी।