Chitra aur Meri Badmaashiyan

PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

मेरी गहरी सांस लेकर टेंशन कम होते देख मेरी आँखों से आँखें मिला कर बिना कुछ कहे एक बेहद प्यारी सी कामुकता से टपकती मुस्कान दी और वापस अपने नंगे छोटे भाई के साथ बदमाशी भरे और ज़बरदस्त लौड़ा-छेड़ो रवैये को चालू कर दिया, जैसे न जाने कबसे किसी ऐसे ही मौके के सपने देखती हुई अपनी चूत अकेले रगड़ कर हताश हो और अब तो मुझसे मिलकर हम दोनों के सबसे रंगीन सपनों को बूँद-बूँद करके सारे माज़ों को निचोड़-निचोड़ कर पूरा करेगी। अपने इरादे मुझे बिना बोले ही अच्छी तरह समझा कर चित्रा ने मुझमें और मुझसे भी ज़्यादा मेरे लौड़े को ज़बरदस्त उम्मीदों से भर दिया था और मैं तो उसकी चूचियां और चूत को पी जाने का बेहद इंतज़ार कर ही रहा था कि चित्रा ने अपने दोनों हाथ फिर से मेरे बॉल्स और लौड़े पर पहले की तरह रख दिए। उसके हाथ लगते ही गिमाग में घंटियां बजने लगीं, किसका असर लौड़े के लगातार ३-४ झकों में बदल गया, और उसने लौड़े को ज़रा ज़ोर से पकड़ कर शांत किया। धीरे से अपनी पकड़ ढीली करते हुए उसने लौड़े के सुपाड़े को उतना खोला कि सुपाड़े का मूँह दिखाई देने लगा। अपने होठों पर एक बार जीभ फेर कर जीभ आगे कर के मेरे सुपाड़े के मूँह पर लगा दियाऔर जीभ से ही उसपर खेलने लगी। मुझे मज़ा इतना आ रहा था कि झटके मारने के बजाये लौड़ा लगातार कंपकंपी सी लेने लगा था, और मुझे तो लग रहा था की ये काम तो में क़यामत तक करवाता रह सकता हूँ। मैं चित्रा से उस हालत में बोला कि तुम उठो अब मुझे बैठना है, और तुम मेरे सामने खड़ी हो जाओ। मुझे यह कहता सुन कर चित्रा जैसे नशे में हो लहराती हुई सी मेरे सामने खड़ी हुई और मुझे बिठा कर मेरे दोनों हाथ पकड़ कर अपने चूतड़ों पर रख दिए, और खुद मेरे बालों से खेलने लगी।

मैं बैठा था और चित्रा इतना पास खड़ी थी कि उसके मम्मे मेरे चेहरे के दोनों तरफ थे। कुछ देर मेरे बालों से हाथ हैट कर अपनी दोनों चूची पकड़ कर खुद ही उनसे मेरे गालों पर हलके चपत लगाए और निप्पल्स को गालों पर रगड़ा, पलकों पर घिसा, और फिर एक चूची मेरे होठ पर रख दी बड़ी शरारती मुस्कान के साथ और बोली "लो चूसो अब जितना चूसना है"। मैं एक चूची चूसते चूसते दूसरी चूची मसल रहा था तो चित्रा के खुले मूँह से अपनी माथे पर गरम साँसों का मज़ा ले रहा था। कुछ देर बाद जब चित्रा ने एक चूची निकाल कर दूसरी मेरे मुँह में दे दी तो चूची चूसते-चूसते उसके चूतड़ों पर हाथ फेरा और कभी उसकी कमर मलता, कभी चूतड़ और कभी दूसरी चूची। कुछ देर बाद चित्रा ने एक टांग उठा कर पास वाली कुर्सी पर रख ली तो मुझे उसकी चूत की डस्की सी मस्त महक आयी।

चूत की मस्त महक से मेरे बदमाशी भरे दिमाग ने मेरे लौड़े से एक बार फिर दो-तीन ज़बरदस्त झटके लगवाए, एक बूँद चिपचिपा रास निकालवाया, और एक हाथ चित्रा की चूत की घनी और मखमली झांटों पर रखवा दिय। चित्रा चूची चुसवाते हुए कुर्सी पर राखी हुई टांग की जांघ खोल-बंद करने लगी तो उसकी चूत पर रखा मेरा हाथ हलके से दबता और फिर झाटों से झांकती मुनिया के पिंक होठ छू लेता। चूत के होठ भी गीले से होने लगे थे तो उसकी मुनिया ने चित्रा के दिमाग को धीरे-धीरे हिप्स आगे पीछे करवाने का मैसेज दिया होगा क्योंकि ऐसा होने लगा था। थोड़ी देर में हिप्स के आगे पीछे होने का सिलसिला ताल-मेल में होते-होते हलके झटकों में बदला और चित्रा के बदन में एक सिहरन सी आयी और उसकी चूत या मुनिया से मेरे हाथमें से थोड़ा और रस निकला जिससे मेरा उसकी चूत पर हरकत करता हाथ कुछ चिकना सा हो गया। चित्रा सिहरन लेने के बाद फिर चूतड़ों को चूत पर रखे हाथ पै आगे peeche एक ताल में करने लगी लेकिन इस बार ये ताल थोड़ी तेज़ हो गयी थी और वोह कभी अपनी आँखें बंद करती या कभी सर ऊपर -नीचे करती। इस बार जब थोड़ी देर बाद उसे सिहरन आई तो काफी देर तक रुक-रुक के आती रही और हर सिहरन के साथ चूत से भी मेरे हाथ और उसकी झांटों को गीला करता रस निकला।

चित्रा के साथ ये सब होते देख में बेहद खुश फील कर रहा था क्योंकि साफ़ पता चल रहा था कि कितनी ज़ोर का ओर्गास्म चित्रा को मेरी मदद से आया है ऐसा नल के पानी की धार से कभी नहीं आया था। इधर मेरा लौड़ा टन्न खड़ा था और उधर निढाल सी चित्रा को एनर्जी चाहिए थी। मैंने बैठे-बैठे उसे अपनी बाहों मैं भर कर अपनी सामने ही फर्श पर बिछे कालीन पर बिठा लिया। फिर उसकी बगल मैं बाहें डाल अपने पास खींचा और अपनी लौड़े को थोड़ा साइड मैं करके उसका सर अपनी जांघ पर रख लिया। मेरी कुर्सी के पैरों के बीच में से उसने अपनी टांगें निकाल कर सीधी कर लीं और एक हाथ मेरी कमर के पीछे कर लिया और दुसरे से लौड़ा पकड़े हुए आँखें बंद कर लीं। १०-१५ मिनट मैंने भी उसे आराम करने दिया और कोई हरकत नहीं की। १५ मिनट बाद मेरा मुन्ना भी कुछदेर आराम करने के मूड से थोड़ा ढीला हुआ और फिर जब चित्रा कि मुट्ठी मैं सोने वाला था तो अचानक उसने आँखें खोली , ज़ोर से मुस्कुराई , मेरी गर्दन मेंदोनों बाहें डाल कर मुझे एक बहुत लंबा और गीला किस दिया। फिर खड़े होकर बोली "बाप रे ! क्या ओर्गास्म था वो ! और एक आध बार अगर तुमने यही किया तो तुम्हें अपने सामान मैं बाँध के घर ले जाउंगी!" और हम दोनों ज़ोर से हंस पड़े। ज़ाहिर है, दोनों बहुत खुश थे और भूखे भी थे पहले खाना खाने के लिए और फिर बहुत सी मस्ती के लिये।

उठ खड़े होकर सबसे पहले तो घर के दरवाज़े अच्छी तरह बंद किये जिससे कोई भी बिना बैल बजाये अंदर न आ जाय और फिर सभी खिड़की के परदे सरकाए, क्योंकि हम दोनों का ही कपडे पहनने का मूड नहीं था। उसके बाद फ्रिज मैं देखा तो खाने के नाम पर केवल अंडे और काफी सारी ब्रेड थी। चित्रा ने २-२ अंडे के दो ऑमलेट बना दिए और उसने ४ और मैंने ६ स्लाइस खा कर गरम दूध मैं कॉफ़ी मिला कर पी लिया। अच्छी एनर्जी भी आ गयी और कॉफ़ी से चुस्ती भी। फिर बातें करने की सोची तो चित्रा ने मुझसे पूछा की मैंने क्या कभी किसी औरत या एडल्ट लड़की लड़के को आज से पहले नंगा देखा था? मैं बोला "सिर्फ थोड़ी ताक-झाँक करके ही देखा है और वो भी एक को, लेकिन कई बार।" चित्रा भी कोई सीधी-सादी बेवक़ूफ़ तो थी नहीं, बोली "तो समझ गयी अपनी मम्मी की बात कर रहे हो, आगे नहीं पूछूँगी। मैंने तो कई लड़कियां देखी हैं! बताऊँ कौन-कौन?" "ऑफ़ कोर्स मुझे पता करना है वो वो कौन थीं और तुमने कब और कैसे देखा?" मैं बोला। चित्रा ने कहा की वोह बताएगी लेकिन पहले जानना चाहती है की मैंने किसी को ख्यालों में नंगा देखा है या नंगा देखने बहुत ज़ोर कि मर्ज़ी हुई है? मैंने कहा "ये भी कोई पूछने की बात है क्या? मैं तो अगर कोई भी सुन्दर या बड़े चूचे या मोटी गांड वाली लड़की या औरत देखता हूँ तो फ़ौरन उसे ख्यालों में नंगा कर लेता हूँ ! और कोई अगर जयादा अच्छी लग गयी तो मौक़ा मिलते ही लौड़ा भी हिला लेता हूँ! सभी लड़के यही करते हैं !" चित्रा ने भी मेरी बात पर हामी भर दी। और बोली कि लौड़े तो सब तरह के देखे ही होंगे क्योंकि लड़के तो मूतते समय एक दुसरे के सामने ही चालू हो जाते हैं। और बोली कि उसे पता है की लड़के तो एक-दुसरे से मुठ भी मरवा लेते हैं, बड़े बेशरम होते हैं!

फिर बोली कि ये तो मैं जानता ही हूँगा कि बहनें एक दुसरे के साथ या अपनी मम्मी के साथ नहा लेती हैं, और हॉस्टल मैं रहनेवाली लड़कियां कभी-कभी इकट्ठे भी नंगी नहा लेती हैं। केवल वो लड़कियां शामिल नहीं होती जिनके या तो चूचे ही नहीं हों या फिर बदन पर बहुत बाल होते हों। "हाँ, लंड मैंने तुम्हारे वाले से पहले केवल चार ही देखे- एक पापा का लंड जब मम्मी उसे चूस रही थी और हम दो बहन झांक कर देख रही थीं थोड़ा सा पर्दा खिसका कर। दूसरा अपनी सबसे बड़ी बहन के आशिक का जब वो मेरी बहन से हमारे बगीचे मैं आम के पेड़ के पीछे मुट्ठ मरवा रहा ठौर उन दोनों को मालूम नहीं था कि मैं पास के पेड़ के पीछे अपनी चूत में उंगली कर रही थी एक इंग्लिश मैगज़ीन देखते हुए। और तीसरा अपने माली का जब वो गुड़ाई कर रहा था और लौड़ा उसकी धोती के साइड से निकल कर लटक रहा था। चौथा रिसेंटली देखने को मिला कॉलेज की लाइब्रेरी में - एक लड़के ने मुझे अकेला देख कर झट अपनी पैंट और चड्डी नीचे कर के मुझ को अपना लौड़ा पकड़वाना चाहा, और मैं तुरंत लाइब्रेरियन की डेस्क की ओर चली गयी।

"अच्छा ये बताओ कि हम दोनों अब मस्तराम की पोंडी कब इकट्ठे पढ़ेंगे?" चित्रा ने मेरे सोये लौड़े को जगाने के लिए उसके टोपे की टोपी को ऊपर-नीचे करते हुए पूछा। मैं बोला कि वह बाद मैं देखेंगे कि इकट्ठी पढ़ाई कब करते हैं, पहले तुम कुर्सी पर बैठ जाओ और एक टांग एक हत्थे पर और दूसरी टाँग दुसरे हत्थे पर रख लो क्योंकि पूरी अच्छी तरह से खुली चूत को सामने से टोर्च की लाइट में मैं अच्छी तरह देखना चाहता हूँ तुम्हारे मूतने वाला छेद, चुदवाने वाला छेद, और चूत का चना यानी क्लीट कैसे दिखते हैं। चित्रा को मेरी बात सुनकर हंसी आ गयी पर वो जैसे मैंने कहा था वैसे टांगें चौड़ी और चूत खुली करके बैठ गयी और मुझसे टोर्च लाने को कहा। मैं फ़ौरन टोर्च लेने ऊपर मम्मी के बैडरूम मैं गया और उनकी ड्रावर खोली टोर्च निकालने के लिए। ड्रावर मैं टोर्च तो मिल ही गयी और एक काला रबर का लौड़ा और निप्पल पंप भी मिला, जो मैंने देख कर वापस रख दिया। रबर के लौड़े की क्यों ज़रुरत पड़ती है माँ को, ये सोचने वाली बात ज़रूर थी। ख़ैर, टोर्च लेकर चित्रा के पास जब तक पहुंचा मेरे लौड़े मैं अच्छी-खासी जान आ गयी थी ये सोच कर कि चित्रा अब मुझे चूत-टूयूशन देगी, और वो भी खुद अपनी खुली घनी और मखमली झांटों से भरी मुनिया पर टोर्च से लाइट डाल कर! नीचे चित्राजी कोई खुराफाती हरकत किये बिना रहने वाली लड़की तो थीं नहीं - खुद बुर और झाटों पर हाथ फेर रही थी और चूत या अपनी मुनिया को गीला किया हुआ था। मैंने उसी हाथ मैं जली हुई टोर्च पकड़ा दी और कहा की अपना लेक्चर शुरू करे।

चित्रा बोली "अब ज़रा ध्यान से सुनना। क्लीट सबसे ऊपर, फिर मूतने वाला छेद, और उसके नीचे मेरा चुदवाने वाला छेद है। जब मैं नाम लूँ तो तुम वहां अपनी ऊँगली रख देना। मैं 'हूँ' बोलूं तो उस जगह को टोर्च कि रोशनी मैं अच्छी तरह देख लेना। उस जगह के बारे मैं तुम्हारे देखते समय मैं सब कुछ बता दूँगी, और फिर तुम कहोगे तो मैं अगला नाम लूंगी, तुम उंगली रखना और इस तरह तुम सब सीख जाओगे। ठीक है? और हाँ, एक बात और, यह बताने के लिए की तुम सब समझ गए हो, उसी जगह पर एक किस दे देना।" मैं तो इतनी देर से मेरी प्यारी चित्रा बहन की और भी प्यारी चूत, झांटें, और गांड अपने सामने ब्लिकुल नज़दीक और खुली, जो मैं चाहूँ करवाने को तैयार देखकर आधा पागल सा हो गया था और उसकी सभी बातो पर हाँ करते हुए सोच रहा था की न जाने मैंने क्या-क्या नेक काम किये होंगे अपने पिछले जनम में कि ये सब मुझे नसीब हो रहा है।! तभी चित्रा बोली "गांड का छेद" और मैं चौंक गया क्योंकि वह तो सिलेबस मैं था ही नहीं? फिर भी चित्रा के चुदवाने वाले छेद केनीचे ऊँगली रख कर उंगली को नीच खिसकाता हुआ गांड के छेद पर रुक गया। "वैरी गुड!" चित्रा बोली और फिर बोली "कुछ आदमी एसे भी होते हैं जिन्हें अपना लौड़ा यहां घुसाने मैं मज़ा आता है और कुछ औरतों को भी ये पसंद है। लेकिन ज़्यादातर मर्द और औरत इसे बिलकुल पसंद नहीं करते। तुम और मैं दोनों इसे नापसंद करने वालों मैं हैं, ओके? अब बताओ मूतने वाला छेद?" मैंने झट वहां उंगली रख दी। "गुड, इसके बारे मैं तो क्या बोलूं, सिर्फ कुछ करके ही दिखा सकती हूँ" इतना कहते ही उसने मूत की धार छोड़ दी। मैं झट पीछे हट गया तो बच गया नहीं तो धार सीधी मेरे मूँह मैं जाती! "पोंछो मुझे" चित्रा बोली तो मुझे उसकी चूत को मग के पानी से धो कर अपना रूमाल उसपर रख दिया। थोड़ी मस्ती सूझी तो रूमाल हटा कर उसकी और अब मेरी भी हो गयी मुनिया को एक बार चाट कर चूम भी लिया तो देखा कि चित्रा के गांड के छेद और टांगों में टेंशन आया और अनायास ही चूतड़ ऊपर को उठे। वो मुस्कुरा के बोली "ठहरो बदमाश! लेक्चर अभी पूरा नहीं हुआ है, उसके बाद ही इस सबकी परमिशन दूंगी !"

चित्रा की लेक्चर वाली बात मैंने सूनी-अनसुनी सी करके पास ही रखे एक स्टूल को ऊसकी कुर्सी के पास खिसकाया और उस पर खड़े होकर अपने चूत चूमने की वजह से टन्न हुए लौड़े को चित्रा के गाल से छू दिया। चूत पर चुम्मी पा कर गरम हुई चित्रा की आँखों में चमक और चेहरे पर मुस्कान आ गयी, और उसने एक हाथ से लौड़े को पकड़ कर मुँह में चूसना शुरू कर दिया, और अपने दुसरे हाथ से चूत सहलाने लगी। लौड़ा चुसवाने में मस्त मैंने अपना हाथ उसके चूत सहला रहे हाथ के ऊपर रख दिया। काफी फिट मामला था हम दोनों के बीच। उस समय कोई फिल्म बनाने वाला होता तो ज़रूर एक धाकड़ फिल्म बन सकती थी! चित्रा ने भी मेरा हाथ अपने हाथ के ऊपर फील किया तो बोली "तुम रगड़ो मेरी चूत को अपने हाथ से, में बताती हूँ कहाँ और कैसे।" उसने मेरी एक उंगली से अपनी क्लीट (चूत का चना) रगड़ना चालू कर दिया, और लौड़े को तो गज़ब का चूस रही थी। मैं धीरे-धीरे अपनेआप हिप्स को आगे-पीछे कर के लौड़ा चुसवा रहा था हम दोनों एक-दुसरे की आँख में आँख मिला कर अपने कार्यक्रम में पूरी तरह खो गए थे। मुझे तो अपने लौड़े में आ रहे चरम सुख के सिवा किसी बात का कोई होश नहीं था। तभी चित्रा ने गले में अटक-अटक के आने वाली लम्बी सांस के साथ दोनो जाँघों में कंपकंपी सीआई और क्लीट को रगड़ती मेरी उंगली और भी गीली और चिकनी हो गयी। चित्रा ने पल भर आँखें खोल कर लौड़े को थोड़ा और मूँह के अंदर खींचा और चूसते-चूसते मेरी बॉल्स से भी खेलने लगी। चूतड़ उठा-उठा कर क्लीट रगड़वा रही कैसे चाहती हो कि किसी तरह चूत और भी खुल जाए। मुझे लग रहा था कि बस अब तो कुछ मिनिट की ही बात है कि लौड़ा उछल-उछल कर इतना खुश हो जाएगा कि सुबह से अब तक पहली बार पूरा का पूरा अपने अंदर भरा हुआ रस चित्रा के मूँह में निकाल कर ही मानेगा। उधर चित्रा कि चूत का भी वैसा ही हाल था। इतनी मस्त हो रही थी चूत कि चित्रा की जाँघों को कंपा रही थी, रस छोड़ रही थी, चूतड़ों को मजबूर कर रही थी कि वे रह-रह कर उछलें। अचानक चित्रा ने चूतड़ों की एक और ज़ोर से उछाल मार कर अपनी जाँघों से मेरे हाथ को भींच कर लगातार कई उछालें मारी , एक सिसकियों भरी और लम्बी सांस ली, और मूँह में लौड़ा लिए हुए ही मममम जैसी सॉफ्ट सी आवाज़ निकाली, और मुझे प्यारी सी मुस्कान देकर वापस जांघें खोल कर क्लीट रगड़वाने लगी और लौड़ा और भी मूँह के अंदर लेकर फिर चूसने लगी।

ज़ाहिर था कि चित्रा हमारे इस मस्ती के राउंड से इतनी खुश थी कि वो इसको अभी जल्दी ख़तम नहीं होने देना चाहती थी। चाहता तो मैं भी यही था पर डर था की अगर लौड़ा स्पिल मारने की स्टेज पर पहुँच गया तो रुक न सकेगा, और हमारी मस्ती कम से कम १ घंटे के लिए बंद करनी पड़ेगी। तो मैंने धीरे से मुन्ने को दिमाग से समझाते हुए चित्रा के मूँह में से निकाल लिया। चित्रा ने सवालिया नज़रों से मुझे देखा और फिर जब उसने भी भांप लिया की मामला क्या है, तो टाँगे नीचे कर के सीधी बैठ गयी और मेरे चेहरे को दोनों हाथों से नीचे कर के मूँह पर एक लंबा सा किस दे दिया। बोली "लो मेरा ये निप्पल चूसो थोड़ी देर तक। बेहद प्यारे हो तुम तो यार, तुम्हारे साथ तो मुझे चैन से बैठा ही नहीं जाता! तुम चूची चूसो और में अपने आप चूत में थोड़े और मजे ले लेती हूँ, और तुम लौड़े को ज़रा आराम करने दो"। मैंने कहा " मैं अगर तुम्हारे मुंह में लौड़े का स्पिल मार दूँ तो तुम क्या करोगी?" तो वो बोली "तुम्हारा स्पिल?" मेरा गाल अंगूठे और उंगली के बीच दबा कर हिलाते हुए बोली "इस बदमाश का स्पिल वेस्ट थोड़ेही करूंगी! पूरा गटक जाऊंगी!" और फिरसे मेरा चेहरा दोनों हाथों से भींच कर होठों पर किस कर लिया और बोली "मुझे तो इस नादान से लंड से अजीब सा लगाव हो गया है। जी भरता ही नहीं, मन करता है कि लौड़ा चूसती रहूँ और चूत रगड़वाती रहूँ! चाचा-चाची आ जाएंगे तो कैसे काम चलेगा?" और हम दोनों फिर अपने लौड़ा-चूत के काम में लग गए।

अब मामला साफ़ हो गया था। मैंने चित्रा से कहा की हम लोग बिस्तर पर चलते हैं और इस बार 69 पोजीशन में एक दुसरे को चूस चूस कर खल्लास कर लेते हैं, तो अगले २-३ घंटे बस बातें करने में बिताएंगे। में अपनी कहानी सुनाऊंगा और तुम अपनी। सुनकर चित्रा की तो बाछें खिल गयीं और मुझ से लिपट कर बोली "तुम तो जीनियस भी हो यार, चलो जल्दी से 69 शुरू करते हैं मगर में ही ऊपर रहूंगी जिससे तुम मेरी चूत का एक बार और अच्छे से मुआयना कर सको, और तुमको तो चूत खोल कर दिखाने में मुझे मज़ेदार गुदगुदी होती है।"

हम दोनों एक दुसरे के कंधे पर हाथ डाल कर मेरे कमरे मैं चले आये। मैं बिस्तर पर अपने तकिये पे सर रख कर लेट गया और चित्रा को कहा की पहले वो मेरे सीने के इर्द-गिर्द बिस्तर पर घुटने टेक कर बैठ जाए जिससे की पहले सिर्फ मैं एक बार उसकी चूत की क्लीट और पंखुड़ियों को चूस चूस कर अच्छी तरह कई बार ओर्गास्म दिला दूँ। 69 और एकसाथ चूत चूसना और लंड चुसवाना सेकंड राउंड में करेंगे। चित्रा तो और भी खुश हुई क्यूंकि इस तरह तो उसकी चूत दो बार चुसेगी मगर लौड़ा एक ही बार झड़ेगा! फ़टाफ़ट ऊपर आ कर उसने खुली चूत मेरे मुँह से एक इंच दूरी पर कर ली। में तकिये से ज़रा नीचे खिसका और उसको बोला के वो अपनी दोनों कोहनी तकिये पर रख कर अपने घुटने मेरे सर के दोनों तरफ कर के अपनी चूत ठीक मेरे चेहरे के ऊपर लटका दे तो में अपने हाथ उसके चूतड़ों पर रख कर अपने आप अपने सर को उचका-उचका के मनमानी रफ़्तार से उसकी चूत जहां से भी मेरी मर्ज़ी होगी चूस लूंगा या चाट लूंगा। चित्रा को यह गांड ऊपर उठा कर और डॉगी जैसे अपनी चूत चटवाने की पोजीशन फ़ौरन समझ में आ गई और उसने ऐसा ही किया। मैं चूस रहा था और वो चूत को आगे-पीछे, ऊपर-नीचे, जहाँ चुसवाना होता था उस मुताबिक़ मस्ती से चुसवा रही थी और ऐसी आवाज़ें निकाल रही थी जैसे कहीं दूर पेट के अंदर से आह्ह्ह्हम्म्म्म सी निकल रही है। फिर उसने अपने मम्मे दोनों हाथ में लेकर चूत चुसवाते हुआ लम्बी जीभ निकाल कर अपने दोनों चूचों पर फेर कर उनको गीला किया अंगूठे और उँगलियों से मसल-मसल कर उन्हें लंबा किया। मेरे मुहँ पर रखी हुई मुनिआ की ओर देख कर मेरे मुंह पर रगड़ते-रगड़ते एक हाथ पीछे करके मेरे लौड़े पर हाथ फेरने लगी। अपनी चूत को मेरी जीभ से खूब ज़ोर से चटवाया और "पी जाओ इसे ooohhh बहुत अच्छा लग रहा है, है में तो बस मर ही गईईई" बोल के हिप्स के तेज़ झटके मार के और चूत का जूस मुझे पिला कर अपनी जाँघों से मेरे सर को भींच लिया और दो-तीन बार अपनी बेहद खुश और गीली मुनिआ को मेरे मुंह और नाक पर दबा कर और रगड़ कर मेरे साइड में बिस्तर पर लुढ़क गई। एकदम चित्त पड़ी थी, टांगें मुड़ी हुई, जांघें खुली हुई, और चूत मैं हलके-हलके झटके अभी भी आ रहे थे साथ-साथ गांड का छेद खुल-बंद होता रहा था, और साँसें भी धीरे धीरे नार्मल होने लगी थीं। कुछ देर उसको ऎसे ही पड़े देख कर में निहारता फिर वही सोचते हुए की क्या ज़बरदस्त नसीब से चित्रा जैसी सेक्स में मेरी तरह बेहद दिलचस्पी लेने वाली हमारे घर में आयी है, और मुझे उसके साथ पूरे दिन नंगे रह कर मौज-मस्ती करने का मौक़ा मिला है।

जब मुझे दिखा की चित्रा के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आई है, और उसने अपने पैर सीधे कर लिए हैं, मैंने उसके मम्मों के बीच अपना फेस कर के बाहों में पकड़ कर अपने ऊपर लिटा लिया और उसके ear-lobe को चूसा और गर्दन को किस करके बोला "एक बार चाय पीते हैं और मैं मूतूंगा, फिर आगे का कार्यक्रम क्या और कितनी देर में शुरू करें यह तय करेंगे।" चित्रा तो जैसे कुछ सुना ही न हो मेरा चेहरा अपने हाथों में और सर मेरी छाती पर रखे हुए और कुछ देर लेटी रही, और फिर सर उठा कर लौड़े को पकड़ा, सुपाड़े पर से खाल नीचे की और उसके छोटे से पिंक लिप्स पर झुक कर जीभ फेर कर सुपाड़े को थोड़ा चूसा और फिर मुझे भी एक चुस्की लेने जैसी किस देकर फाइनली बोली की चलो तुम आराम से मूत कर आओ और में चाय बनाती हूँ। यह कह कर पलंग के साइड में खड़ी हुई और हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास खड़ा किया और बोली "यू आर द बेस्ट थिंग देट एवर हैपेंड टू मी!" और एक टाइट हग देकर चाय बनाने चली गई। में टॉयलेट में खड़ा मुस्कुराता हुआ मूतते-मूतते सोच रहा था की चित्रा तो मेरे लिए बेस्ट चीज़ से भी कई गुना अच्छी चीज़ है! मूत कर मैंने लौड़े को अच्छी तरह धो लिया क्योंकि थोड़ी देर में चित्रा उसकी जबरदस्त चुसाई करेगी अपनी चूत दोबारा चुसवाते हुए।

चित्रा बैडरूम में ही चाय लेकर आ गयी और हमने वहीं चाय पीते पीते यह तय किया की क्योंकि अभी ३:३० ही हुआ है, तो हम बाहर थोड़ा घूम कर और गोल-गप्पे खा कर आते हैं। जल्दी ही कपडे पहन कर हम दोनों पास वाले बाजार की तरफ चल दिए। में चित्रा को अपनी माँ के फेवरिट खोमचे पर ले गया। जब हम एसे हे घूम रहे थे तो एक कोने में पेड़ के नीचे ठेला वाला किताबें बेचते हुऐ दिखा। मैंने चित्रा को वहीं रुकने को कहा यह कह कर के कि देखूं शायद उसके पास मस्तराम कि किताब भी मिल जाए। ठेले पर सस्ती हिंदी की किताबों के अलावा एग्जाम की कुंजी और कम्पटीशन बुक्स भी थीं। चूंकि कोई दूसरा ग्राहक आस-पास नहीं था तो धीरे से उससे पूछा "कुछ फोटो वाली किताबें हैं क्या"। मुझे ऊपर से नीचे तक देख कर उसने फ़िल्मी किताबें दिखाईं। मैंने कहा "कुछ और एडल्ट टाइप दिखाओ" तो मुस्कुरा कर एक पेपर-बैग में से नंगी औरतों की तस्वीरों वाली एक किताब दिखाई। थोड़ी देर उस किताब को देखने के बाद हिम्मत करके धीरे से पूछा मैंने "फिर तो तुम्हारे पास मस्तराम वाली भी होगी?" वोह बोला "है, मगर थोड़ी पुरानी सी है, क्योंकि लोग एक-दो दिन के लिए सिर्फ पढ़ने के लिए ले जाते हैं और फिर वापस कर देते हैं। घर पर अपने पास नहीं रखते " दाम पूछने पर बोला की खरीदने के लिए १५ रूपए और पढ़ कर वापस के लिए २० रूपए, जिसमे किताब लौटाने पर १५ वापस देगा। थोड़ा बार्गेन करने पर १० में बेचने को तैयार हुआ तो मुझे एक ब्राउन पेपर बैग में रखीहम हुई किताब उसने दी। वहीं किताब को पन्ने पलट कर देख कर जब मेरा लौड़ा बेकाबू हो जाने की तैयारी में होने लगा, तो मैंने किताब खरीद ली। खरीद कर अपने झोले में डाल कर खुशी -खुशी मुड़ कर चित्रा की तरफ चल दिया। चित्रा टाइम-पास के लिए एक ब्लाउज-स्कर्ट वाले ठेले पर खड़ी मेरा इंतज़ार कर रही थी। मुझे जल्दी जल्दी और खुश आते देख कर समझ गयी कि किताब मिल गयी होगी। घर वापस करीब शाम ५ बजे हम पहुंचे।

घर आते ही चित्रा ने किताब जिसका नाम "तीन रोचक घटना" था, निकाली और कहानियों के नाम पढ़े; १) नयी पड़ोसन ने मुझे अपने घर बुलाया २) मम्मी ने अपना सब कुछ दिखाया, और ३) मौसी के साथ मज़े। उसके बाद जल्दी-जल्दी पन्ने पलटे और बोली "यार इसमें कुछ ख़ास नहीं है - इससे ज़्यादा तो हम कुछ ही घंटों में कर भी चुके हैं, और जो बाकी है वो चलो कर लेते हैं! जब तुम हो तो मुझे किताब-विताब नहीं, बस तुम ही चाहिए। मैंने भी सोचा की बात तो सही है, जब चित्रा सामने है तो किताब का क्या काम? किताब तो अकेले में मुठ मारने के लिए ही ठीक है, सोच कर मैंने चित्रा की चूची पर हाथ फेरा। हमने एक-दूसरे को बाजार से आकर नंगा किया ही था की चित्रा ने दोनों हाथ से मेरा लौड़ा और बॉल्स थाम लिए, और मेरे सामने घुटनों के बल बैठ कर अपनी जीभ निकाल कर मेरे लौड़े के टोपे के ऊपर फोरस्किन के मुँह पर फेरा, और फिर पूरे टोपे को मुंह में लेकर हाथ से धीरे-धीरे मुठ मारते हुए, लगी चूसने चस्के ले-ले कर जैसे लॉलीपॉप हो। सातवें आसमान से भी ऊपर सैर कर रहा था मैं, चित्रा के दोनों कानों पर हाथ रख लौड़े को उसके मुंह से अंदर-बाहर करते हुए। क्या कमाल की चीज़ है चित्रा, जैसे लौड़ा चूसने के लिए ही बनी हो! जब मुझे लगा की बस अब तो झड़ ही जाऊंगा और मैंने उसके सर को थोड़ा १०-१५ सेकंड लौड़े से दूर रखे रहा तो खड़े होकर बोली " चलो बिस्तर पर 69 करते हैं - मुझे अपनी चूत भी तो साथ-साथ चुसवानी है ना। तुम ऊपर से लौड़ा लटकाओ मेरे मुंह पर, मेँ नीचे मुनिया का मुंह खोल कर उसका दाना चुस्वाती हूँ हाय! मेरी clit में तो सोच के ही सुरसुराहट होने लगी है!

मेरा पहला तजुर्बा था 69 का। हम दोनों ही का पहला। और मुझे ताज्जुब तो इस बात का हो रहा था की न जाने कैसे बेहद बदमाश चित्रा को समझ आ जाता था की मेँ झड़ने वाला हूँ, तो वो लौड़ा मुंह में से निकाल कर मेरी बॉल्स को टाइट पकड़ लेती, और मेरा लोड अंदर का अंदर ही रह जाता। उसने अपनी पूरी की पूरी चूत और खासकर चूत को चना इतना चुसवाया की वह फूल कर मोटा हो गया, और उसकी चूत से जो पानी लगातार रिस रहा था उससे मेरी नाक से ठोड़ी तक गीली हो गई। आखिरकार उसकी चूत इसकदर मस्त हुई की उसने उछल-उछल कर कई ओर्गास्म लिए और साथ ही लौड़े ने पूरा पानी उसके मुंह मेँ छोड़ दिया। निढाल होकर हम दोनों थोडी देर पड़े रहे बिस्तर पर। फिर काफी देर तक मैं उसकी जांघ पर सर रख कर खुली चूत और झांटों को सहलाता रहा और चित्रा मेरी जांघ पर सर रखे हुए मेरे लौड़े और बॉल्स से खेलती रही। फिर मेरी तरफ देख कर बड़ी शरारत भरी मुस्कान के साथ लौड़े को हिलाते हुए पूछा "इसकी कभी चूत चोदने की इच्छा नहीं होती क्या?" मैंने भी मुस्कुरा कर उसके चूत के दाने को उंगली से टीज़ करते हुए और चोदने वाले छेद मैं एक उंगली धीरे-धीरे अंदर-बाहर करते हुए जवाब दिया "उतनी ही ज़ोर की इच्छा होती है जितनी इसकी अपने अंदर लौड़ा लेने की।"