उत्तेजना साहस और रोमांच के वो दिन!

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जसवंत सिंह ने ज्योति की चूँचियों को इतना कस के चूसा की ज्योति को ऐसा लगा की कहीं वह फट कर अपने प्रियतम के मुंह में ही ना आ जायें। ज्योति के स्तन जसवंत सिंह के चूसने के कारण लाल हो गए थे और जसवंत सिंह के दांतों के निशान उस स्तनों की गोरी गोलाई पर साफ़ दिख रहे थे। जसवंत सिंह की ऐसी प्रेमक्रीड़ा से ज्योति को गजब का मीठा दर्द हो रहा था। जब जसवंत सिंह ज्योति के स्तनों को चूस रहे थे तब ज्योति की उंगलियां जसवंत सिंह के बालों को संवार रही थी।

जसवंत सिंह का हाथ ज्योति की पीठ पर घूमता रहा और उस पर स्थित टीलों और खाईयोँ पर उनकी उंगलयां फिरती रहीं। जसवंत सिंह ने अपनी उस रात की माशूका के कूल्हों को दबा कर और उसकी दरार में उंगलियां डाल कर उसे उन्मादित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। थोड़ी देर तक स्तनों को चूसने और चूमने के बाद जसवंत सिंह ने ज्योति को बड़े प्यार से पलंग पर लिटाया और उसकी खूबसूरत जॉंघों को चौड़ा करके खुद टाँगों के बिच आ गए और ज्योति की खूब सूरत चूत पर अपने होँठ रख दिए।

रतिक्रीड़ा में ज्योति का यह पहला सबक था। जसवंत सिंह तो इस प्रकिया के प्रमुख प्राध्यापक थे। उन्होंने बड़े प्यार से ज्योति की चूत को चूमना और चाटना शुरू किया। जसवंत सिंह की यह चाल ने तो ज्योति का हाल बदल दिया। जैसे जसवंत सिंह की जीभ ज्योति की चूत के संवेदनशील कोनों और दरारों को छूने लगी की ज्योति का बदन पलंग पर मचलने लगा और उसके मुंह से कभी दबी सी तो कभी उच्च आवाज में कराहटें और आहें निकलने लगीं।

धीरे धीरे जसवंत सिंह ने ज्योति की चूत में अपनी दो उंगलियां डालीं और उसे उँगलियों से चोदना शुरू किया। ज्योति के लिए यह उसके उन्माद की सिमा को पार करने के लिए पर्याप्त था। ज्योति मारे उन्माद के पलंग पर मचल रही थी और अपने कूल्हे उठा कर अपनी उत्तेजना ज़ाहिर कर रही थी। उसका उन्माद उसके चरम पर पहुँच चुका था। अब वह ज्यादा बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं थी। ज्योति जसवंत सिंह का हाथ पकड़ा और उसे जोरों से दबाया। ज्योति के रोंगटे रोमांच से खड़े हो गए थे। ज्योति ने अपनी गाँड़ ऊपर उठायी और एक बड़ी सुनामी की लहर जैसे उसके पुरे बदन में दौड़ पड़ी। वह गहरी साँस ले कर कराह ने लगी, "कप्तान साहब काफी हो गया। अब तुम प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड मेरी भूखी चूत में डालो और उसकी भूख शांत करो।"

जसवंत सिंह ने ज्योति से कहा, "तुम्हारे लिए मैं कप्तान साहब नहीं, मैं जसवंत सिंह भी नहीं। मैं तुम्हारे लिए जस्सू हूँ। आज से तुम मुझे जस्सू कह कर ही बुलाना।"

ज्योति ने तब अपनी रिक्वेस्ट फिरसे दुहराते हुए कहा, "जस्सूजी काफी हो गया। अब तुम प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड मेरी भूखी चूत में डालो और उसकी भूख शांत करो।"

जस्सूजी ने देखा की ज्योति अब मानसिक रूप से उनसे चुदवाने के लिए बिलकुल तैयार थी तो वह ज्योति की दोनों टाँगों के बिच आगये और उन्होंने अपना लण्ड ज्योति के छोटे से छिद्र के केंद्र बिंदु पर रखा। ज्योति के लिए उस समय जैसे क़यामत की रात थी। वह पहली बार किसी का लण्ड अपनी चूत में डलवा रही थी। और पहली ही बार उसे महसूस हुआ जैसे "प्रथम ग्राहे मक्षिका" मतलब पहले हे निवालें में किसी के मुंह में जैसे मछली आजाये तो उसे कैसा लगेगा? वैसे ही अपनी पहली चुदाई में ही उसे इतने मोटे लण्ड को चूत में डलवाना पड़ रहा था।

ज्योति को अफ़सोस हुआ की क्यों नहीं उसने पहले किसी लड़के से चुदवाई करवाई? अगर उसने पहले किसी लड़के से चुदवाया होता तो उसे चुदवाने की कुछ आदत होती और यह डर ना लगता। पर अब डर के मारे उसकी जान निकली जा रही थी। पर अब वह करे तो क्या करे? उसे तो चुदना ही था। उसने खुद जस्सूजी को चोदने के लिए आमंत्रित किया था। अब वह छटक नहीं सकती थी।

ज्योति ने अपनी आँखें मुंदी और जस्सूजी का लण्ड पकड़ कर अपनी चूत की गीली सतह पर रगड़ने लगी ताकि उसे लण्ड को उसकी चूत के अंदर घुसने में कम कष्ट हो। वैसे भी जस्सूजी का लण्ड अपने ही छिद्र से पूर्व रस से चिकनाहट से सराबोर लिपटा हुआ था। जैसे ही ज्योति की चूत के छिद्र पर उसे निशाना बना कर रख दिया गया की तुरंत उसमें से पूर्व रस की बूंदें बन कर टपकनी शुरू हुई। ज्योति ने अपनी आँखें मूँद लीं और जस्सू के लण्ड के घुसने से जो शुरुआती दर्द होगा उसका इंतजार करने लगी।

जसवंत सिंह ने अपना लण्ड हलके से ज्योति की चूत में थोड़ा घुसेड़ा। ज्योति को कुछ महसूस नहीं हुआ। जसवंत सिंह ने यह देखा कर उसे थोड़ा और धक्का दिया और खासा अंदर डाला। तब ज्योति के मुंह से आह निकली। उसके चेहरे से लग रहा था की उसे काफी दर्द महसूस हुआ होगा। जसवंत सिंह को डर लगा की कहीं शायद उसका कौमार्य पटल फट ना गया हो, क्यूंकि ज्योति की चूत से धीरे धीरे खून निकलने लगा। जसवंत सिंह ने अपना लण्ड निकाल कर साफ़ किया। उनके लिए यह कोई बार पहली बार नहीं था। पर ज्योति खून देखकर थोड़ी सहम गयी। हालांकि उसे भी यह पता था की कँवारी लडकियां जब पहली बार चुदती हैं तो अक्सर यह होता है।

ज्योति ने सोचा की अब घबरा ने से काम चलेगा नहीं। जब चुदवाना ही है तो फिर घबराना क्यों? उसने जसवंत सिंह से कहा, "जस्सू जी आप ने आज मुझे एक लड़की से औरत बना दिया। अब मैं ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहती। आप मेरी चिंता मत कीजिये। मैं आपके सामने टाँगे फैला कर लेटी हूँ। अब प्लीज देर मत कीजिये। मुझे जी भर कर चोदिये। मैं इस रात का महीनों से इंतजार कर रही थी।"

जसवंत सिंह अपनी टाँगें फैलाये नग्न लेती हुई अपनी खूबसूरत माशूका को देखते ही रहे। उन्होंने ज्योति की चूत के ऊपर फैले हुए खूनको टिश्यू पेपर अंदर डाल कर उससे खून साफ़ किया। उन्होंने फिर ज्योति की चूत पर अपना लण्ड थोड़ा सा रगड़ कर फिर चिकना किया और धीरे धीरे ज्योति की खुली हुई चूत में डाला। अपने दोनों हाथों से उन्होंने माशूका के दोनों छोटे टीलों जैसे उरोजों को पकड़ा और प्यार से दबाना और मसलना शुरू किया। अपनी माशूका की नग्न छबि देखकर जस्सूजी के लण्ड की नर्सों में वीर्य तेज दबाव से नर्सों को फुला रहा था। पता नहीं उन रगों में कितना वीर्य जमा था। जस्सूजी ने एक धक्का और जोर से दिया और उस बार ज्योति की चूत में आधे से भी ज्यादा लण्ड घुस गया।

ना चाहते हुए भी ज्योति के मुंह से लम्बी ओह्ह्ह निकल ही गयी। उसके कपोल पर प्रस्वेद की बूँदें बन गयी थीं। जाहिर था उसे काफी दर्द महसूस हो रहा था। पर ज्योति ने अपने होँठ भींच कर और आँखें मूँद कर उसे सहन किया और जस्सू जी को अपने कूल्हे ऊपर उठाकर उनको लण्ड और अंदर डालने के लिए बाध्य किया।

धीरे धीरे प्रिय और प्रियतमा के बिच एक तरह से चोदने और चुदवाने की जुगल बंदी शुरू हुई। हालांकि ज्योति को काफी दर्द हो रहा था पर वह एक आर्मी अफसर की बेटी थी। दर्द को जाहिर कैसे करती? जस्सूजी के धक्के को ज्योति उतनी ही फुर्ती से ऊपर की और अपना बदन उठाकर जवाब देती। उसके मन में बस एक ही इच्छा थी की वह कैसे अपने प्रियतम को ज्यादा से ज्यादा सुख दे जिससे की उनका प्रियतम उनको ज्यादा से ज्यादा आनंद दे सके। जस्सू जी मोटा और लम्बा लण्ड जैसे ही ज्योति की सनकादि चूत के योनि मार्ग में घुसता की दो आवाजें आतीं। एक ज्योति की ओहह ह... और दुसरी जस्सूजी के बड़े और मोटे अंडकोष की ज्योति की दो जाँघों के बिच में छपाट छपाट टकरा ने की आवाज। यह आवाजें इतनी सेक्सी और रोमांचक थीं की दोनों का दिमाग सिर्फ चोदने पर ही केंद्रित था।

देर रात तक जसवंत सिंह और ज्योति ने मिलकर ऐसी जमकर चुदाई की जो की शायद जसवंत सिंह ने भी कभी किसी लड़की से नहीं की थी। ज्योति के लिए तो वह पहला मौक़ा था। स्कूल और कॉलेज में कई बार कई लड़कों से उसकी चुम्माचाटी हुई थी पर कोई भी लड़का उसे जँचा नहीं। .जसवंत सिंह की बात कुछ और ही थी। अच्छी तरह चुदाई होने के बाद आधी रात को ज्योति ने जसवंत सिंह से कहा, "मैं आपसे एक बार नहीं हर रोज चुदवाना चाहती हूँ। मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ।"

जसवंत सिंह उस लड़की ज्योति को देखते ही रहे। कुछ सोच कर उन्होंने ज्योति से कहा, "देखो ज्योति। मैं एक खुला आजाद पंछी हूँ। मुझे बंधन पसंद नहीं। मैं यह कबुल करता हूँ की आपके पहले मैंने कई औरतों को चोदा है। मैं शादी के बंधन में फँस कर यह आजादी खोना नहीं चाहता। इसके अलावा तुम तो शायद जानती ही हो की मैं इन्फेंट्री डिवीज़न में हूँ। मेरा काम ही लड़ना है। मेरी जान का कोई भरोसा नहीं। अगले महीने ही मुझे कश्मीर जाना है। मुझे पता नहीं मैं कब लौटूंगा या लौटूंगा भी की नहीं। मुझसे शादी करके आप को वह जिंदगी नहीं मिलेगी जो आम लड़की चाहती है। पता नहीं, शादी के चंद महीनों में ही आप बेवा हो जाओ। इस लिए यह बेहतर है की आपका जब मन करे मुझे इशारा कर देना। हम लोग जम कर चुदाई करेंगे। पर मेरे साथ शादी के बारे में मत सोचो।"

ज्योति हंस कर बोली, "जनाब, मैं भी आर्मी के बड़े ही जाँबाज़ अफसर की बेटी हूँ। मेरे पिताजी ने कई लड़ाइयाँ लड़ी हैं और मरते मरते बचे हैं। रही बात आपकी आजादी की तो मैं आपको यह वचन देती हूँ की मैं आपको शादी के बाद भी कभी भी किसी भी महिला से मिलने और उनसे कोई भी तरह का शारीरिक या मानसिक रिश्ता बनाने से रोकूंगी नहीं। यह मेरा पक्का वादा है। मैं वादा करती हूँ की मुझसे शादी करने के बाद भी आप आजाद पंछी की तरह ही रहोगे। बल्कि अगर कोई सुन्दर लड़की आपको जँच गयी, तो मैं उसे आपके बिस्तर तक पहुंचाने की जी जान लगा कर कोशिश करुँगी। पर हाँ. मेरी भी एक शर्त है की आप मुझे जिंदगी भर छोड़ोगे नहीं और सिर्फ मेरे ही पति बन कर रहोगे। आप किसी भी औरत को मेरे घर में बीबी बनाकर लाओगे नहीं।"

जसवंत सिंह हंस पड़े और बोले, "तुम गजब की खूबसूरत हो। और भी कई सुन्दर, जवान और होनहार लड़के और आर्मी अफसर हैं जो तुमसे शादी करने के लिए जी जान लगा देंगे। फिर मैं ही क्यों?"

तब ज्योति ने जसवंत सिंह के गले लगकर कहा, "डार्लिंग, क्यूंकि मैं तुम्हारी होने वाली बीबी हूँ और तुम लाख बहाने करो मैं तुम्हें छोड़ने वाली नहीं हूँ। मुझे तुम्हारे यह मोटे और तगड़े लण्ड से रोज रात चुदवाना है, तब तक की जब तक मेरा मन भर ना जाए। और मैं जानती हूँ, मेरा मन कभी नहीं भरेगा। मैं तुम्हारे बच्चों की माँ बनना चाहती हूँ। अब तुम्हारी और कोई बहाने बाजी नहीं चलेगी। बोलो तुम मुझसे शादी करोगे या नहीं?"

जसवंत सिंह ने अपनी होने वाली पत्नी ज्योति को उसी समय आपने बाहुपाश में लिया और होँठों को चूमते हुए कहा, "डार्लिंग मैंने कई औरतों को देखा है, जाना है और चोदा भी है। पर मैंने आज तक तुम्हारे जैसी बेबाक, दृढ निश्चयी और दिलफेंक लड़की को नहीं देखा। मैं तुम्हारा पति बनकर अपने आप को धन्य महसूस करूंगा। मैं भी तुम्हें वचन देता हूँ की मैं भी तुम्हें एक आजाद पंछी की तरह ही रखूंगा और तम्हें भी किसी पराये मर्द से शारीरिक या मानसिक सम्बन्ध बनाने से रोकूंगा नहीं। पर हाँ मेरी भी यह शर्त है की तुम हमेशा मेरी ही पत्नी बनकर रहोगी और पति का दर्जा और किसी मर्द को नहीं दोगी। "

उस बात के कुछ ही महीनों के बाद जसवंत सिंह और ज्योति उन दोनों के माँ बाप की रज़ामंदी के साथ शादी के बंधन में बंध गए। यह थी कर्नल साहब और उनकी पत्नी ज्योति की प्रेम कहानी।

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जिस दिन कर्नल साहब की औपचारिक रूपसे सुनील और उसकी पत्नी सुनीता से पहली बार सुनील और सुनीता के घर में मुलाक़ात हुई और कर्नल साहब का पहले गरम और बादमें सुनीता को देख कर नरम होना हुआ, उस रात को सुनील ने अपनी पत्नी सुनीता को हलके फुल्के लहजे में कहा, "लगता है, कर्नल साहब पर तुम्हारा जादू चल गया है। आज तो तुम्हें वह बड़े घूर घूर कर देख रहे थे। तुम भी तो कर्नल साहब को देख कर चालु हो गयी थी! कहीं तुम भी तो?..."

सुनीता हँस कर नकली गुस्से में सुनील की छाती पर हल्का सा घूँसा मार कर बोली, "धत्त! क्या पागलों जैसी बात कर रहे हो। ऐसी कोई बात नहीं है। कर्नल साहब हमारे पडोसी हैं। अगर मैं इतनी लम्बी और मोटी उनके सामने बैठूंगी या खड़ी रहूंगी, तो उनको मेरे अलावा कुछ दिखाई भी तो नहीं देगा। तब तो वह मुझे ही देखेंगे ना? तुम ना हर बार कुछ ना कुछ उलटा पुल्टा सोचते रहते हो। तुम्हें हमेशा कोई ना कोई नयी शरारत सूझती रहती है। वह बड़े चुस्त और तंदुरस्त हैं। रोज सुबह वह कैसी दौड़ लगाते हैं? और तुम? देखो तुम्हारी यह तोंद कैसी निकली हुई है? ज़रा कर्नल साहब से कुछ सीखो।"

सुनील ने महसूस किया की उसकी बीबी सुनीता भी कर्नल साहब के तेज तर्रार व्यक्तित्व और कसरत के कारण सुगठित बदन से काफी प्रभावित लग रही थी।

कुछ देर बाद सुनीता ने पूछ ही लिया, "कर्नल साहब क्या करते हैं?"

सुनील ने कहा, "आर्मी में कर्नल हैं। बड़े ही सुसम्मानित अफसर हैं। उनको कई बड़े सम्मानों से नवाजा गया है। कहते हैं की लड़ाई में वह अपनी जान पर खेल जाते हैं। कई बार उन्होंने युद्ध में अकेले ही बड़ी से बड़ी चुनौतियों का मुकाबला किया है। कई मैडल उन्होंने इतनी कम उम्र में ही पा लिए हैं। जल्द ही हमें अब उनके घर जाना ही होगा। बाकी सब अगली बार उनसे मिलते ही या तो तुम उनसे सीधे ही पूछ लेना या फिर मैं उनको पूछ कर तुम्हें बता दूंगा।"

सुनीता अपने पति की बात सुनकर थोड़ी सकपका गयी और बोली, "ऐसी कोई बात नहीं। मैं तो वैसे ही पूछ रही थी।"

वैसे ही आते जाते जब भी कभी सुनील से मुलाकात होती तो कर्नल साहब उसे बड़े ही अंतरंग भाव से अपने घर आने का न्योता देना ना चूकते। एक रात को सुनील ने सुनीता से कहा, "आज कर्नल साहब मिले थे। पहले उन्होंने कई बार मुझे तुम्हारे साथ उनके घर आने के लिए आग्रह किया था। पर आज तो वह अड़ ही गए। उन्होंने कहा की अगर हम उनके घर नहीं गए तो वह नाराज हो जाएंगे।"

सुनीता ने कहा, "हाँ, आज ज्योति जी भी मुझे मार्किट में मिली थीं। वह मुझे बड़ा आग्रह कर रही थी की हम उनके घर जाएँ। मुझे लगता है की अब हमें उनके घर जल्द ही जाना चाहिए।"

सुनील और सुनीता ने कर्नल साहब को फ़ोन कर अगले शुक्रवार की शाम उनके वहाँ पहुँच ने का प्रोग्राम बनाया। उनके पहुँचते ही कर्नल साहब ने व्हिस्की, रम, जिन, बियर इत्यादि पेय पेश किये, जबकि उनकी पत्नी ज्योति ने साथ साथ कुछ हलके फुल्के नमकीन आदि पहले से ही सजा के रखे हुए थे। कर्नल साहब और अपने पति सुनील के आग्रह के बावजूद, सुनीता ने कोई भी कड़क पेय लेने से साफ़ मना कर दिया। हालांकि वह कभी कभी बियर पी लेती थी। सुनील ने देखा की कर्नल साहब को यह अच्छा नहीं लगा पर वह चुप रहे। कर्नल साहब की पत्नी ज्योति ने सब का मन रखने के लिए एक ग्लास में बियर डाला। कर्नल साहब और सुनील ने व्हिस्की के गिलास भरे।

जब प्राथमिक औपचारिक बातें हो गयीं तब सुनीता के बार बार पूछने पर कर्नल साहब ने बताया की वह आतंकी सुरक्षाबल में कमांडो ग्रुप में कर्नल थे। उन्होंने कई बार युद्ध मैं शौर्य प्रदर्शन किया था जिसके कारण उन्हें कई मेडल्स मिले थे। सुनील की पत्नी सुनीता के पिताजी भी आर्मी में थे और आर्मी वालों को सुनीता बड़े सम्मान से देखती थी। सुनीता की यह शिकायत हमेशा रही की वह आर्मी में भर्ती होना चाहती थी पर उन दिनों आर्मी में महिलाओं की भर्ती नहीं होती थी। उसे देश सेवा की बड़ी लगन थी और वह एन.सी.सी. में कडेट रह चुकी थी। जाहिर है उसे आर्मी के बारे में बहोत ज्यादा उत्सुकता और जिज्ञाषा रहती थी।

जब सुनीता बड़ी उत्सुकता से कर्नल साहब को उनके मेडल्स के बारेमें पूछने लगी तो कर्नल साहब ने खड़े होकर बड़े गर्व के साथ एक के बाद एक उन्हें कौनसा मैडल कब मिला था और कौनसे जंग में वह कैसे लड़े थे और उन्हें कहाँ कहाँ घाव लगे थे, उसकी कहानियां जब सुनाई तो सुनीता की आँखों में से आंसू झलक उठे। कर्नल साहब भी युद्ध के उनके अनुभव के बारेमें सुनीता को विस्तार से बताने लगे। आधुनिक युद्ध कैसे लड़ा जाता है और पुराने जमाने के मुकाबले नयी तकनीक और उपकरण कैसे इस्तेमाल होते हैं वह कर्नल साहब ने सुनील की पत्नी सुनीता को भली भाँती समझाया।

सुनीता के मन में कई प्रश्न थे जो एक के बाद एक वह कर्नल साहब को पूछने लगी। कर्नल साहब भी सारे प्रश्नों का बड़े धैर्य, गंभीरता और ध्यान से जवाब दे रहे थे। उस शाम सुनील ने महसूस किया की उसकी पत्नी सुनीता कर्नल साहब के शौर्य और वीरता की कायल हो गयी थी।

काफी देर तक कर्नल साहब की पत्नी ज्योति और सुनील चुपचाप सुनीता और कर्नल साहब की बातें सुनते रहे। कुछ देर बाद सुनील जब बोर होने लगा तो उसने कर्नल साहब की पत्नी ज्योति से पूछा, "ज्योति जी, आप क्या करती हैं?"

ज्योति ने बताया की वह भी आर्मी अफसर की बेटी हैं और अब वह आर्मी पब्लिक स्कूल में सामाजिक विज्ञान (पोलिटिकल साइंस) पढ़ाती हैं। बात करते करते सुनील को पता चला की कर्नल साहब की बीबी ज्योति ने राजकीय विज्ञान में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की है और वह राजकीय मसलों पर काफी कुछ पढ़ती रहती हैं। ज्योति बोलने में कुछ शर्मिलि थीं। सुनील की बीबी सुनीता की तरह वह ज्यादा नहीं बोलती थी। पर दिमाग की वह बड़ी कुशाग्र थी। उनकी राजकीय समझ बड़ी तेज थी। सुनील की पत्नी सुनीता और कर्नल साहब आर्मी की बातों में व्यस्त हो गए तो सुनील और ज्योति अपनी बातों में जुट गए।

ज्योति के बदन की सुकोमल और चिकनी त्वचा देखने में बड़ी आकर्षक थी। उसका बदन और खासकर चेहरा जैसी शीशे का बना हो ऐसे पारदर्शक सा लगता था। उसका चेहरा एक बालक के सामान था। वह अक्सर ब्यूटी पार्लर जाती थी जिसके कारण उसकी आँखों की भौंहें तेज कटार के सामान नुकीली थीं। उसके शरीर का हर अंग ना तो पतला था और ना ही मोटा। हर कोने से वह पूरी तरह सुआकार थी। उसके स्तन बड़े और फुले हुए थे। उसकी गाँड़ की गोलाई और घुमाव खूबसूरत थी।

सुनील को उसके होँठ बड़े ही रसीले लगे। सुनील को ऐसा लगा जैसे उन में से हरदम रस बहता रहता हो। उससे भी कहीं ज्यादा कटीली थी ज्योति की नशीली आँखें। उन्हें देखते ही ऐसा लगता था जैसे वह आमंत्रण दे रही हों। सुनील और कर्नल साहब की पत्नी ज्योति ने जब राजकीय बातें शुरू की तो सुनील को पता चला की वह राजकीय हालात से भली भाँती वाकिफ थीं।

बात करते हुए ज्योति ने कहा की वह काफी समय से सुनील से मिलने के लिए बड़ी उत्सुक थी। उसने सुनील की पत्नी सुनीता से सुनील के बारे में सुना था। ज्योति ने सुनील के कई लेख पढ़े थे और वह सुनील की लिखनी से काफी प्रभावित थी।

जब सुनील ने ज्योति से बात शुरू की तब उसे पता चला की बाहर से एकदम गंभीर, संकोचशील और अमिलनसार दिखने वाली ज्योति वाकई में काफी बोल लेती थी और कभी कभी मजाक भी कर लेती थी। जब उन्होंने पोलिटिकल विज्ञान और इतिहास की बातें शुरू की तो ज्योति अचानक वाचाल सी हो गयी। सुनील को ऐसा भी लगा की शायद अपने पति कर्नल साहब के प्रति उनके मन में कुछ रंजिश सी भी है। सुनील ने मन ही मन तय किया की वह जल्द ही पता करेगा की उन दोनों में रंजिश का क्या कारण हो सकता था।

समय बीतता ही गया पर कर्नल साहब और सुनील की पत्नी सुनीता को जैसे समय का कोई पता ही नहीं था। कर्नल साहब की बातें ख़तम होने का नाम नहीं ले रही थीं और सुनीता एक के बाद एक बड़ी ही उत्सुकता से प्रश्न पूछ कर उनको गजब का प्रोत्साहन दे रही थी। इधर सुनील और ज्योति की बातें जल्द ही ख़त्म हो गयीं। सुनील अपनी घडी को और देखने लगा तब ज्योति ने एक बात कही जिससे शायद ज्योति की रंजिश के बारेमें सुनील को कुछ अंदाज हुआ।

कर्नल साहब की पत्नी ज्योति ने कहा, "इनका (कर्नल साहब का) व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा अनोखा है की कोई भी सुन्दर स्त्री से यह जब बात करने लगते हैं तब उनकी बातें ख़तम ही नहीं होतीं। और जब कोई सुन्दर स्त्री उनसे बात करने लगती है तो वह स्त्री भी उनसे सवाल पूछते थकती नहीं है। इनकी बातें ही इतनी रसीली और नशीली होती हैं की बस।"

सुनील कर्नल साहब की बीबी ज्योति की बात सुनकर समझ नहीं पाया की ज्योति अपने पति की तारीफ़ कर रही थी या शिकायत। जाहिर है की पत्नी कितनी ही समझदार क्यों ना हो, कहीं ना कहीं जब किसी और औरत के साथ अपने पति के जुड़ने की बात आती है तो वह थोड़ा नकारात्मक तो हो ही जाती है।

उनकी बात सुनकर सुनील हँस पड़ा और बोला, "देखिये ना ज्योति जी, हम दोनों भी तो काफी समय से बातचीत में इतने तल्लीन थे की समय का कोई ध्यान ही नहीं रहा। मैं भी आपके पति जैसा ही हूँ। बस एक फर्क है। आप जैसी खूबसूरत और सेक्सी औरत को देखकर मैं भी बोलता ही जा रहा हूँ। पर क्या इसमें मेरा कसूर है? कौन भला आपकी और आकर्षित नहीं होगा? मैं भी तो अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पा रहा हूँ।" फिर थोड़ा रुक कर सुनील ने कहा, "ज्योति जी मेरी बात का कहीं आप बुरा तो नहीं मानेंगे ना?"

ज्योति ने सुनील की और शर्माते हुए तिरछी नज़रों से देखा और मुस्कुरायी और बोली, "वाह रे सुनील साहब! आप ने तो एक ही वाक्य में मुझे बहुत कुछ कह दिया! पहले तो आप ने बातों बातों में ही अपनी तुलना मेरे पति के साथ कर दी। फिर आपने मुझे सेक्सी भी कह डाला।और आखिर में आप ने यह भी कह दिया की आप मेरी और आकर्षित हैं। ज़रा ध्यान रखिये। आप कांटो की राह पर मत चलिए, कहीं पाँव में कांटें न चुभ जाएँ। आप का मुझे पता नहीं पर मेरे पति को आप नहीं जानते। वह इतने रोमांटिक हैं की अच्छी से अच्छी औरतें भी उनकी बातों में आ जाती हैं। देखिये कहीं आपकी पत्नी उनके चक्कर में ना फँसे।"

सुनील जोर से हँस पड़ा। उसने पट से जवाब दिया, "मुझे कोई चिंता नहीं है ज्योति जी। पहले तो मैं मेरी पत्नी को बहुत अच्छी तरह जानता हूँ। वह ऐसे ही किसीकी बातों में फँसने वाली नहीं है। दूसरे अगर मान भी लिया जाए की ऐसा कुछ हो सकता है तो आप हैं ना मेरा बीमा। अगर उन्होंने मेरी पत्नी को फाँस दिया तो वह कहाँ बचेंगे?" इतना कह कर सुनील चुप हो गया। ज्योति सुनील की बात जरूर समझ गयी होंगी, पर कुछ न बोली।

कर्नल साहब के घर पर हुई पहली मुलाकात के चंद दिन बाद सुनील की पत्नी सुनीता के पिता, जो एक रिटायर्ड आर्मी अफसर थे, का हार्ट अटैक के कारण अचानक ही स्वर्गवास हो गया। सुनीता का अपने पिता से काफी लगाव था। पिता के देहांत के पहले रोज सुनीता उनसे बात करती रहती थी। देहांत के एक दिन पहले ही सुनीता की पिताजी के साथ काफी लम्बी बातचीत हुई थी। पिताजी के देहांत का समाचार मिलते ही सुनीता बेहोश सी हो गयी थी। सुनील बड़ी मुश्किल से उसे होश में ला पाया था।

सुनीता के लिए यह बहुत बड़ा सदमा था। सुनीता की माताजी का कुछ समय पहले ही देहांत हुआ था। पिताजी ने कभी सुनीता को माँ की कमी महसूस नहीं होने दी। सुनील अपनी पत्नी सुनीता को लेकर अपने ससुराल पहुंचा। वहाँ भी सुनीता के हाल ठीक नहीं थे। वह ना खाती थी ना कुछ पीती थी। पिताजी के क्रिया कर्म होने के बाद जब वह वापस आयी तो उसका मन ठीक नहीं था। सुनील ने सुनीता का मन बहलाने की बड़ी कोशिश की पर फिर भी सुनीता की मायूसी बरकरार थी। वह पिता जी की याद आने पर बार बार रो पड़ती थी।

जब यह हादसा हुआ उस समय कर्नल साहब और उनकी पत्नी ज्योति दोनों ज्योति के मायके गए हुए थे। ज्योति अपने पिताजी के वहाँ थोड़े दिन रुकने वाली थी। जिस दिन कर्नल साहब अपनी पत्नी ज्योति को छोड़ कर वापस आये उसके दूसरे दिन कर्नल साहब की मुलाक़ात सुनील से घर के निचे ही हुई। कर्नल साहब अपनी कार निकाल रहे थे। वह कहीं जा रहे थे। सुनील को देख कर कर्नल साहब ने कार रोकी और सुनील से समाचार पूछा तो सुनील ने अपनी पत्नी सुनीता के पिताजी के देहांत के बारे में कर्नल साहब को बताया। कर्नल साहब सुनकर काफी दुखी हुए। उस समय ज्यादा बात नहीं हो पायी।

उसी दिन शामको कर्नल साहब सुनील और सुनीता के घर पहुंचे। ज्योति कुछ दिनों के लिए अपने मायके गयी थी। सुनील ने दरवाजा खोल कर कर्नल साहब का स्वागत किया। कर्नल साहब आये है यह सुनकर सुनीता बाहर आयी तो कर्नल साहब ने देखा की सुनीता की आँखें रो रो कर सूजी हुई थीं।

कर्नल साहब के लिए सुनीता रसोई घर में चाय बनाने के लिए गयी तो उसको वापस आने में देर लगी। सुनील और कर्नल साहब ने रसोई में ही सुनीता की रोने की आवाज सुनी तो कर्नल साहब ने सुनील की और देखा। सुनील अपने कंधे उठा कर बोला, "पता नहीं उसे क्या हो गया है। वह बार बार पिताजी की याद आते ही रो पड़ती है। मैं हमेशा उसे शांत करने की कोशिश करता हूँ पर कर नहीं पाता हूँ। चाहो तो आप जाकर उसे शांत करने की कोशिश कर सकते हो। हो सकता है वह आपकी बात मान ले।" सुनील ने रसोई की और इशारा करते हुए कर्नल साहब को कहा। कर्नल साहब उठ खड़े हुए और रसोई की और चल पड़े। सुनील खड़ा हो कर घर के बाहर आँगन में लॉन पर टहलने के लिए चल पड़ा।