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Click hereकर्नल साहब ने रसोई में पहुँचते ही देखा की सुनीता रसोई के प्लेटफार्म के सामने खड़ी सिसकियाँ ले कर रो रही थी। सुनीता की पीठ कर्नल साहब की और थी।
कर्नल साहब ने पीछे से धीरे से सुनीता के कंधे पर हाथ रखा। सुनीता मूड़ी तो उसने कर्नल साहब को देखा। उन्हें देख कर सुनीता उनसे लिपट गयी और अचानक ही जैसे उसके दुखों का गुब्बारा फट गया। वह फफक फफक कर रोने लगी। सुनीता के आँखों से आंसूं फव्वारे के सामान बहने लगे। कर्नल साहब ने सुनीता को कसके अपनी बाँहों में लिया और अपनी जेब से रुमाल निकाला और सुनीता की आँखों से निकले और गालों पर बहते हुए आंसू पोंछने लगे।
उन्होंने धीरे से पीछे से सुनीता की पीठ को सहलाते हुए कहा, "सुनीता, तुमने कभी किसी आर्मी अफसर की लड़ाई में मौत होते हुए देखि है?"
सुनीता ने अपना मुंह ऊपर उठाकर कर्नल साहब की और देखा। रोते रोते ही उसने अपनी मुंडी हिलाते हुए इशारा किया की उसने नहीं देखा। तब कर्नल साहब ने कहा, "मैंने एक नहीं, एक साथ मेरे दो भाइयों को दुश्मन की गोली यों से भरी जवानी में शहीद होते हुए देखा है। मैंने मेरी दो भाभियों को बेवा होते देखा है। मैं उनके दो दो बच्चों को अनाथ होते हुए देखा है। और जानती हो उनके बच्चों ने क्या कहा था?"
कर्नल साहब की बात सुनकर सुनीता का रोना बंद हो गया और वह अपना सर ऊपर उठाकर कर्नल साहब की आँखों में आँखें डालकर देखने लगी पर कुछ ना बोली। कर्नल साहब ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "मैं जब बच्चों को ढाढस देने के लिए गया, तो दोनों बच्चे मुझसे लिपट कर कहने लगे की वह भी लड़ाई में जाना चाहते है और दुश्मनों को मार कर उनके पिता का बदला जब लेंगे तब ही रोयेंगे। जो देश के लिए कुर्बानी देना चाहते हैं वह वह रो कर अपना जोश और जस्बात आंसूं के रूप में जाया नहीं करते।"
कर्नल साहब की बात सुनकर सुनीता का रोना और तेज हो गया। वह कर्नल साहब से और कस के लिपट गयी बोली, "मेरे पिता जी भी लड़ाई में ही अपनी जान देना चाहते थे। उनको बड़ा अफ़सोस था की वह लड़ाई में शहीद नहीं हो पाए।"
कर्नल साहब ने तब सुनीता का सर चूमते हुए कहा, "सुनीता डार्लिंग, जो शूरवीर होते हैं, उनकी मौत पर रो कर नहीं, उनके असूलों को अमल में लाकर, इनके आदर्शों की राह पर चलकर, जो काम वह पूरा ना कर पाए इन कामों को पूरा कर उनके जीवन और उनके देहांत का गौरव बढ़ाते हैं। यही उनके चरणों में हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उनके क्या उसूल थे? उन्होंने किस काम में अपना जीवन समर्पण किया था यह तो बताओ मुझे, डिअर?
उनकी बात सुनकर सुनीता कुछ देर तक कर्नल साहब से लिपटी ही रही। उसका रोना धीरे धीरे कम हो गया। वह अपने को सम्हालते हुए कर्नल साहब से धीरे से अलग हुई और उनकी और देख कर उनका हाथ अपने हाथ में ले कर बोली, "कर्नल साहब, आप ने मुझे चंद शब्दों में ही जीवन का फलसफा समझा दिया। मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ?"
कर्नल साहब ने सुनीता की हथेली दबाते हुए कहा, "तुम मुझे जस्सू, कह कर बुलाओगी तो मेरा अहसान चुकता हो जाएगा। "
सुनीता ने कहा, "कर्नल साहब मेरे लिए आप एक गुरु सामान हैं। मैं आपको जस्सू कह कर कैसे बुला सकती हूँ?"
कर्नल साहब ने कहा, "चलो ठीक है। तो तुम मुझे जस्सू जी कह कर तो बुला सकती हो ना?"
सुनीता कर्नल साहब की बात सुनकर हंस पड़ी और बोली, "जस्सूजी, आपका बहुत शुक्रिया, मुझे सही रास्ता दिखाने के लिए। मेरे पिताजी ने अपना जीवन देश की सेवा में लगा दिया था। उनका एक मात्र उद्देश्य यह था की हमारा देश की सीमाएं हमेशा सुरक्षित रहे। उस पर दुश्मनों की गन्दी निगाहें ना पड़े। उनका दुसरा ध्येय यह था की देश की सेवा में शहीद हुए जवानों के बच्चे, कुटुंब और बेवा का जीवन उन जवानों के मरने से आर्थिक रूप से आहत ना हो।"
कर्नल ने कहा, "आओ, हम भी मिलकर यह संकल्प करें की हम हमारी सारी ताकत उन के दिखाए हुए रास्ते पर चलने में ही लगा दें। हम निर्भीकता से दुश्मनों का मुकाबला करें और शहीदों के कौटुम्बिक सुरक्षा में अपना योगदान दें। यही उनके देहांत पर उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी और उनका सच्चा श्राद्ध होगा।"
सुनीता की आँखों में आँसू आ गये। सुनीता कर्नल से लिपट गयी और बोली, "जस्सूजी, जितना योगदान मुझसे बन पडेगा मैं दूंगी और उसमें आपको मेरा पथ प्रदर्शक और मार्ग दर्शक बनना होगा।"
कर्नल ने मुस्कराते हुए कहा, "यह मेरा सौभाग्य होगा। पर डार्लिंग, मुझमें एक कमजोरी है और मैं तुम्हें इससे अँधेरे में नहीं रखना चाहता हूँ। जब मैं तुम्हारी सुन्दरता, जांबाज़ी और सेक्सीपन से रूबरू होता हूँ तो अपने रंगीलेपन पर नियत्रण नहीं रख पाता हूँ। मैं आपका पूरा सम्मान करता हूँ पर मुझसे कभी कहीं कोई गलती हो जाए तो आप बुरा मत मानना प्लीज?"
सुनीता ने भी शरारती मुस्कान देते हुए कहा, "आप के रँगीलेपन को मैंने महसूस भी किया और वह दिख भी रहा है।"
क्या सुनीता का इशारा कर्नल की टाँगों के बिच के फुले हुए हिस्से की और था? पता नहीं। शायद सुनीता ने जब कर्नल साहब को जफ्फी दी तो जरूर उसने कर्नल साहब का रँगीलापन महसूस किया होगा।
जब सुनीता कर्नल साहब के साथ चाय लेकर मुस्काती हुई ड्राइंग रूम में वापस आयी तो उसे मुस्काती देख कर सुनील को यकीन ही नहीं हुआ की यह वही उसकी पत्नी सुनीता थी जो चंद मिनट पहले अपना रोना रोक ही नहीं पा रही थी। सुनील ने कर्नल साहब की और मुड़ कर कहा, "कर्नल साहब, आपने सुनीता पर क्या जादू कर दिया? मुझे यकीन ही नहीं होता की आपने कैसे सुनीता को मुस्काना सीखा दिया। मैं आपका बहुत बहुत शुक्र गुजार हूँ। सुनीता को मुस्कराना सीखा कर आज आपने मेरी जिंदगी में नया रंग भर दिया है। आपने तो मेरी बिगड़ी हुई जिंदगी बना दी मेरी परेशानी दूर करदी।"
कर्नल साहब ने हंस कर कहा, "सुनील भाई, मैंने सुनीता को हँसता कर दिया है इसका मतलब यह नहीं की आप उस पर अचानक ही चालु हो जाओ। रात को उसे ज्यादा परेशान मत करना। उसे थोड़ा आराम करने देना।"
कर्नल साहब की बात सुनकर सुनील हँस पड़ा। सुनील की पत्नी सुनीता शर्म से अपना मुंह चुनरी में छुपाती हुई रसोई की और भागते हुए बोली, "जस्सूजी अब बस भी कीजिये। मेरी ज्यादा खिचाई मत करिये।"
इसके काफी दिनों तक कर्नल साहब कहीं बाहर दौरे पर चले गए। उनकी और सुनील की मुलाकात नहीं हो पायी। इस बिच सुनीता ने बी.एड. का फॉर्म भरा। सुनीता की सारे विषयों में बड़ी अच्छी तैयारी थी पर उसे गणित में बहुत दिक्कत हो रही थी। सुनीता गणित में पहले से ही कमजोर थी। सुनीता ने अपने पति सुनील से कहा, "सुनील, मैं गणित में कुछ कोचिंग लेना चाहती हूँ। मेरे लिए नजदीक में कहीं गणित का एक अच्छा शिक्षक ढूंढ दो ना प्लीज?"
सुनील ने इधर उधर सब जगह पता किया पर कोई शिक्षक ना मिला। सुनील और सुनीता से काफी परेशान थे क्यूंकि परीक्षा का वक्त नजदीक आ रहा था। उस दरम्यान सुनीता की मुलाक़ात कर्नल साहब की पत्नी ज्योति से सब्जी मार्किट में हुई। दोनों मार्किट से वापस आते हुए बात करने लगीं तब सुनिता ने ज्योति को बताया की उसे गणित के शिक्षक की तलाश थी। तब ज्योति ने सुनीता की और आश्चर्य से देखते हुए पूछा",सुनीता, क्या सच में तुम्हें नहीं मालुम की कर्नल साहब गणित के विषय में निष्णात माने जाते हैं? उन्हें गणित विषय में कई उपाधियाँ मिली हैं। पर यह मैं नहीं कह सकती की वह तुंम्हें सिखाने के लिए तैयार होंगें या नहीं। वह इतने व्यस्त हैं की गणित में किसीको ट्यूशन नहीं देते।"
जब सुनीता ने यह सूना तो वह ख़ुशी से झूम उठी। वह ज्योति के गले लग गयी और बोली, "ज्योतिजी, आप मेहरबानी कर कर्नल साहब को मनाओ की वह मुझे गणित सिखाने के लिए राजी हो जाएं।"
ज्योति सुनीता के गाल पर चूँटी भरते हुए बोली, "यार कर्नल साहब तो तुम पर वैसे ही फ़िदा हैं। मुझे नहीं लगता की वह मना करेंगे। पर फिर भी मैं उनसे बात करुँगी।"
उस हफ्ते सुनीता ने ज्योति और कर्नल साहब को डिनर पर आने के लिए दावत दी। तब कर्नल साहब ने सुनील के सामने एक शर्त रखी। पिछली बार सुनील की पत्नी सुनीता ने कुछ भी सख्त पेय पिने से मना कर दिया था। कर्नल साहब ने कहा की आर्मी के हिसाब से यह एक तरह का अपमान तो नहीं पर अवमान गिना जाता है। कर्नल साहब का आग्रह था की अगर वह सुनील के घर आएंगे तो सुनीताजी एक घूंट तो जरूर पियेंगी।
अपनी पत्नी सुनीता को सुनील ने कर्नल साहब के यह आग्रह के बारे में बताया तो सुनीता ने मान लिया की वह कर्नल साहब का मन रखने के लिए एकाध बियर पी लेगी। सुनील ने कर्नल साहब का आग्रह स्वीकार कर लिया। उसे किसी आर्मी वाले से ही पता लग गया था की ऐसा आग्रह होने पर महिलाएं ना भी पीती हों तो दिखाने के लिए ही सही पर एक छोटा सा पेग ले लेती हैं और थोड़ा बहुत पीती हैं या फिर पिने के बजाय उसको हाथों में लिए हुए घूमती रहती हैं। मौक़ा मिलने पर वह उसे अपने पति को दे देती है या फिर उसे कहीं ना कहीं (पेड़ पैधो में) निकास कर देती हैं।
ऐसा भी नहीं की आर्मी में हर कोई महिला शराब नहीं पीती। कुछ महिलाएं अपने पति या मित्रों के साथ शराब पीती भी हैं और उनमें से कुछ कुछ तो टुन्न भी हो जाती हैं। पर ऐसा कोई कोई बार ही होता है।
कर्नल साहब ने आते ही पहले सुनील को और बादमें सुनीता को अपनी बाँहों में भर लिया। सुनीता भी कर्नल साहब से गले मिलकर बड़ी प्रसन्न लग रही थी। कर्नल साहब की पत्नी ज्योति और सुनील ने भी यह देखा।
सुनील और सुनीता ने भी कर्नल साहब और ज्योति की आवभगत करनेमें कोई कसर नहीं छोड़ी। कर्नल साहब की तरह ही उन्होंने भी टेबल पर अलग अलग किस्म के सख्त पेय रखे थे और साथ में भांतिभांति के खाद्य नमकीन इत्यादि भी रख दिए गए थे।
कर्नल साहब के आते ही सुनील ने सब के लिए अपनी अपनी पसंदीदा सख्त पेय पेश किये। सुनीता गुजरात की थी सो उसने कुछ ख़ास गुजराती खाद्य पदार्थ कर्नल साहब और ज्योति के लये तैयार किये थे। कर्नल साहब के आग्रह पर सुनीता ने भी ज्योति के साथ अपने गिलास में बियर डाली और सब ने चियर्स कर के छोटी चुस्की ली। कर्नल साहब किछ ख़ास ही मूड में लग रहे थे।
आते ही जब सुनील की पत्नी सुनीता और कर्नल की पत्नी ज्योति अकेले में मिले तो ज्योति ने बताया की जब कर्नल साहब थोड़े अच्छे मूड़ में हों तब सुनील की पत्नी सुनीता कर्नल साहब को मौक़ा देख कर गणित सिखाने के बारे में पूछेगी। एक पेग जब कर्नल साहब लगा चुके थे और कुछ रोमांटिक मूड़ में अपनी बीबी ज्योति के साथ छेड़ छाड़ कर रहे थे तब मौक़ा पाकर सुनीता ने कर्नल साहब को गणित सिखाने के बारे में पूछा। ज्योति ने भी कर्नल साहब को हाँ करने के लिए रिक्वेस्ट की। जब कर्नल ने देखा की सुनीता और ज्योति दोनों तैयार थे तब कर्नल सुनीता को गणित पढ़ाने के लिए तैयार हो गए।
कर्नल बोले, "भाई मैं गणित में मेरी स्कूल और कॉलेज में टॉप रहा हूँ। मैंने शुरू में कॉलेज में गणित पढ़ाई है। (सुनीता की और मुड़कर बोले) मैं तुम्हें ऐसे सिखाऊंगा की तुम भी गणित की मास्टर बन जाओगी। (फिर वह रुक कर बोले) पर हाँ, उसकी फीस देनी पड़ेगी।"
उनकी बात सुनकर सुनीता उछल पड़ी और बोली, "हमें मंजूर है, क्या फीस होगी?"
कर्नल साहब बोले, "वक्त आने पर मांग लूंगा।"
सुनीता थोड़ी निराश सी लगी और बोली, "अरे! मुझे सस्पेंस में मत रखो। बोलो, क्या फीस चाहिए?"
कर्नल साहब ने कहा, "कुछ नहीं, कहना पर मांग लूंगा। चाय पिलानी पड़ेगी, अब तो यही चाहिए।"
सुनीता ने कहा, "जैसा आप ठीक समझें।"
यह तय हुआ की सुनीता को कर्नल साहब हर इतवार को दुपहर बारह बजे से हमारे घर में दो घंटे तक पढ़ाया करेंगे।
कर्नल साहब के जाने के बाद तो सुनीता जैसे हवा में उड़ने लगी। उसे एक ऐसा शिक्षक मिला था जो ना सिर्फ उसे से पढ़ायेगा, बल्कि जो उसका आदर्श था और कोई फीस की भी उन्हें अपेक्षा नहीं थी। उस रात बिस्तर में सुनील ने अपनी पत्नी सुनीता से कहा, "तुम्हें क्या लगता है? कर्नल साहब हमसे तुम्हारी पढ़ाई के बदले में क्या मांगेंगे?"
सुनीता ने सुनील की और अजीब तरीके से देखते हुए कहा, "पर उन्होंने तो फीस के लिए कुछ कहा ही नहीं। वह मुफ्त में ही पढ़ाएंगे। उन्होंने तो सिर्फ चाय ही मांगी है।"
सुनील ने कहा, "जानेमन एक बात समझो। मुफ्त हमेशा महँगा पड़ता है। जिंदगी में कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता। इंसान को हर चीज़ की कीमत चुकानी पड़ती है।"
तब सुनीता ने सुनील की और बड़े ही भोलेपन से देखा और बोली, "तो फिर? तुम्हें क्या लगता है? कर्नल साहब क्या मांगेंगे?"
सुनील ने अपने कंधे हिलाते हुए कहा, "क्या पता? देखते हैं। अगर वह कुछ भी नहीं मांगते हैं फिर भी हम को समझ कर कुछ ना कुछ तो देना ही पडेगा ना?"
वह बात यूँ ही खत्म हुई। कर्नल साहब नियमित ठीक बारह बजे आने लगे। सुनीता एक अच्छे विद्यार्थी की तरह तैयार रहती और वह दोनों सुनील के स्टडी रूम में अलग से बैठ कर पढ़ाई करते। सुनीता ने सुनील को बताया की कर्नल साहब गज़ब के शिक्षक थे, और कुछ ही दिनों में सुनीता को गणित में काफी रस पड़ने लगा। वह गणित की कठिन समस्याओं को सुलझाने लगी। सुनीता के चेहरे पर यह एक नयी उपलब्धि प्राप्त करने का संतोष साफ़ नजर आ रहा था।
कई बार सुनील ने महसूस किया की कर्नल साहब और उसकी बीबी की नजदीकियाँ कुछ बढ़ सी गयी थी। रात को उनके शयन कक्ष में जब सुनील सुनीता के साथ अठखेलियां करने लगता तो महसूस करता था की सुनीता कुछ खोयी खोयी सी लगती थी। जब सुनील पूछता तो सुनीता टाल देती। पर एक दिन जब सुनील ने सुनीता को कुछ ज्यादा ही जोर देकर पूछा तो वह थोड़ी मायूस होकर बोली, "सुनील, मुझे समझ नहीं आता की मैं क्या बताऊँ।"
सुनील ने कहा, "अगर तुम बताओगी नहीं तो मैं कैसे समझूंगा?"
तो सुनीता बोली, " कर्नल साहब मुझसे बड़ी ही निजी, अजीब सी लगने वाली हरकतें जाने अनजाने में करते हैं।"
सुनील ने पूछा, "क्या मतलब?"
तो बोली, "कर्नल साहब मुझे बहुत अच्छी तरह पढ़ाते हैं। मेरे लिए वह घरमें देर रात तक खुद भी पढ़ाई करते हैं। पर कई बार वह ऐसा कुछ कर बैठते हैं की मैं उलझन में फँस जाती हूँ। समझ में नहीं आता की क्या करूँ और क्या कहूं। जब मैं पढ़ाई में अच्छा करती हूँ तो वह मुझ से लिपट जाते हैं, मतलब आलिंगन करते हैं और कई बार ख़ुशी के मारे मेरे बदन को सहलाते हैं, कई बार वह बूब्स को हलके से पकड़ कर सेहला देते हैं या दबा देते हैं।
कई बार गलती करती हूँ तो वह मेरे कान मरोड़ते हैं और मेरी साडी या ड्रेस में हाथ डाल कर मेरे पेट पर चूँटी भरते हैं; और अगर मैं खड़ी होती हूँ तो मेरे पिछवाड़े को भी दबाकर चूँटी भरते हैं। मैं उन्हें रोक नहीं पाती। मैं तुम्हें बताने की कोशिश कर रही थी, पर बोल नहीं पायी। कई बार मैं सोचती हूँ को उनको रोकूं और ऐसा ना करने के लिए टोकूं। मेरी समझ में यह नहीं आता की उनकी मंशा क्या है। जब वह पढ़ाते हैं तो उनका ध्यान कभी भी मुझे पढ़ाने के अलावा कहीं नहीं जाता। मैं उनसे सट कर भी बैठती हूँ तो भी उनपर कोई असर नहीं होता। पर अचानक वह मुझसे ऐसी शरारत कर बैठते हैं। मेरी समझ में नहीं आता बताओ मैं क्या करूँ?"
सुनील की सीधी सादी बीबी सुनीता की बातें सुनकर का हँसना थम नहीं रहा था। सुनील ने कहा, "हे मेरी प्यारी भोली बीबी। अरे कर्नल साहब एक जाँबाज जवाँ मर्द हैं और वह कुछ रोमांटिक टाइप के भी हैं। अगर वह तुम्हारे लिए इतना श्रम कर रहे हैं, रात रात भर जाग कर तुम्हारे लिए वह खुद पढ़ रहे हैं तो फिर वह तुम्हारी सफलता और निष्फलता पर उत्तेजित तो होंगे ही। अगर तुम सफल होती हो तो वह तुम्हें आलिंगन भी करेंगे और तुम्हारे शरीर को प्यार से सेहलायेंगे भी।
और अगर तुम असफल होती हो तो वह निराशा और गुस्से में तुम्हें चूँटी भरेंगे या कोई ना कोई सजा भी देंगे। यह स्वाभाविक है। इस में कुछ भी अजीब नहीं है। अगर तुम्हारी जगह कोई लड़का होता तो शायद वह ऐसा ही कुछ करते। पर चूँकि तुम औरत हो और खूबसूरत हो तो कर्नल साहब थोड़ा ज्यादा ही उत्साहित और रोमांचित होते होंगे। यह स्वाभाविक है। अगर तुम उसको नेगटिवली लेती हो तो यह गलत होगा। वह कर्नल साहब के ऊपर शक करने वाली बात होगी। मेरा तुमसे यह कहना है की तुम अपना ध्यान पूरी तरह से पढ़ाई में लगाओ।"
सुनीता ने अपने पति सुनील की और देखा। उसे अपने पति पर गर्व हुआ। सुनील उसका कितना ख्याल रखता है, यह सोचकर उसे अपने पति पर अनायास ही प्यार उमड़ा। उसने सुनील का हाथ थाम कर कहा, "आप की बात सही है। मुझे गणित से सख्त नफ़रत थी। पर अब कर्नल साहब की महेनत के कारण मुझे गणित अच्छा लगने लगा है, बल्कि मुझे गणित से प्यार होने लगा है। मैं कितनी भाग्य शाली हूँ की मुझे जस्सूजी जैसे गुरु मिले और आप जैसे पति मिले।"
सुनील ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "देखो वह तुम्हारे गुरु हैं। गुरु भगवान् के समान होता है। वह तुम्हारी तरक्की से खुश होते हैं और तुम्हारी कमियों से नाराज होते हैं। यह स्वाभाविक है। इसमें चिंता की कोई बात नहीं है। बल्की यह अच्छा है की वह यह सब करते हैं, क्यूंकि यह दर्शाता है की वह तुम्हारी पढ़ाई में पूरा ध्यान लगाते हैं।
अगर तुमने उनको रोकने या टोकने की कोशिश की तो हो सकता है वह थोड़े से निराश या हताश हों। उस कारण उनका मन तुम्हें पढ़ाने में से हट जाए और उसका प्रभाव तुम्हारी पढ़ाई पर पडेगा। तुम्हें तो चाहिए की तुम उनका उत्साह बढ़ाओ। उनका और भी साथ दो और एक अच्छे विद्यार्थी की तरह उनकी आलोचना और सजा को स्वीकारो और उनकी शाबाशी भरे उल्लास का सम्मान करो। उनमें कोई दोष ना देखो। वह एक गुरु या शिक्षक का अपने विद्यार्थी के प्रति प्यार और सम्मान का प्रतिक है। इसका तुम्हें गर्व होना चाहिए।"
अपने पति की ऐसी सिख सुनकर सुनीता खुश तो हुई पर उसे थोड़ा आश्चर्य भी हुआ। उसने पूछा, "पर सुनील, यह तो गलत है ना? अगर बात छेड़छाड़ से आगे बढ़ गयी तो? कहीं कर्नल साहब ने कुछ ऐसी वैसी हरकत की तो? फिर क्या होगा?"
सुनील ने कहा, "अरे डार्लिंग तुम बहुत ज्यादा सोचती हो। वह कभी ऐसा कुछ नहीं करेंगे जो आपको पसंद नहीं होगा। मैं नहीं मानता की वह कोई जबरदस्ती करने वालों में से हैं। और फिर ऐसी वैसी हरकत वह क्या कर सकते हैं? क्या तुम्हें लगता है वह तुम्हें चोदना चाहेंगे?"
सुनीता ने कहा, "यह आप क्या बकवास करते हो? भला ऐसा आप कैसे कह सकते हो?"
सुनील ने कहा, "देखो डार्लिंग, वह एक मर्द है। हर मर्द की नजर दूसरे की बीबी पर रहती ही है। ख़ास कर जब वह बला की खूबसूरत हो, जैसे की तुम हो। सच कहूं तो हर मर्द दूसरे की खूबसूरत बीबी को चोदने के सपने देखता ही रहता है।"
अपने पति सुनील के मुंह से ऐसे शब्द निकल ते ही सुनीता एकदम सकपका गयी और स्तब्ध हो गयी। वह अपने पति के चेहरे को देखने लगी। कहीं उसके पति कर्नल साहब से जल तो नहीं रहे? कहीं उनको उसके और कर्नल साहब के रिश्ते पर कोई शक तो नहीं हो रहा? अनजाने में ही सुनील की पत्नी के चेहरे पर लज्जा और शर्म की लालिमा छा गयी। उसने झिझकते घबराते हुए पूछा, "डार्लिंग तुम मेरे और कर्नल साहब के रिश्ते के बारे में कहीं गलत तो नहीं सोच रहे?"
सुनील जोरदार ठहाका लगा कर हंसने लगा। उसने कहा, "नहीं डार्लिंग नहीं। ऐसा बिलकुल नहीं है। तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो? क्या मेरे कहने का यह मतलब था? मैं तो जो मर्दों के मन के भाव होते हैं वह तुम्हें बता रहा था, ताकि तुम कुछ गलत ना सोचो। तुम पर मुझे अपने से भी ज्यादा भरोसा है। और उससे भी कहीं ज्यादा मुझे कर्नल साहब पर भरोसा है। और हाँ डार्लिंग, एक बात और बताऊँ? मैं तुम्हें और कर्नल साहब को इतना चाहता हूँ की अगर ऐसा वैसा कुछ हो भी जाए तो यह ज़रा भी मत सोचना की मैं तुम पर कभी कोई तरह की आंच आने दूंगा।"
यह सुनकर सुनीता की आँखें झलझला उठीं। वह अपने पति के इतने विश्वास से गदगद हो गयी। सुनीता का गला रुंध गया। वह कुछ बोल ना पा रही थी। सुनीता ने अपने पति सुनील को गले लगाया और बोली, "आप मुझे कितना प्यार करते हैं। मैं ही आप को समझ नहीं पायी। फिर धीरे से सुनीता ने अपने पति के पाजामें में हाथ डाल कर कहा, "डार्लिंग, आज मेरा बहुत मन कर रहा है।"
सुनीता की बात सुनकर सुनील की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। काफी अरसे के बाद उस रात सुनीता ने अपने पति को सामने चलकर उसे चोदने के लिए आमंत्रित किया। सुनील के लिए यह एक चमत्कारिक घटना थी। सुनील सोचने लगा कहीं ना कहीं कर्नल साहब के बारे में हुई बात का यह असर है। इस का मतलब यह हुआ की सुनीता को कर्नल के बारेमें सेक्स सम्बन्धी बात करने से और उसे प्रोत्साहित करने से सुनीता के मन में भी सेक्सुअल उत्तेजना की चिंगारी काफी समय के बाद फिर भड़क उठी थी। इसके पहले सुनील की कई कोशिशों के बावजूद भी सुनीता का सेक्स करने का मूड नहीं बन पाता था।
सुनील ने जल्द ही अपने पाजामे के बटन खोल दिए और अपना लण्ड अपनी बीबी सुनीता के हाथों में दे दिया। सुनीता ने अपने पति का लण्ड सहलाते हुए उनसे पूछा, "सुनील डार्लिंग, क्या आप शिक्षक की इतनी ज्यादा एहमियत मानते है?"
सुनीता के हाथ में अपने लण्ड को सहलाते अनुभव कर सुनील ने मचलते हुए कहा, "हाँ, बिलकुल। मैं मानता हूँ की माँ के बाद शिक्षक की अहमियत सबसे ज्यादा है। माँ बच्चे को इस दुनिया में लाती है। तो शिक्षक उसको अज्ञान के अन्धकार से ज्ञान के प्रकाश मे ले जाता है। शिक्षक अपने शिष्य को ज्ञान की आँखें प्रदान करता है।
जहां तक आपका सवाल है तो जो विषय (मतलब गणित) आप का सर दर्द था और आप जिससे नफरत करते थे, अब आप उस विषय को प्यार करने लगे हो। जो अड़चन आपकी तरक्की में राह का अड़ंगा बना हुआ था, वह विषय अब आपकी तरक्की को आसान बना देगा। यह गुरु की उपलब्धि है।"
सुनीता ने यह सूना तो सुनील पर और भी प्यार उमड़ पड़ा। उसने बड़े चाव से अपने पति के लण्ड की त्वचा को अपनी मुट्ठी में पकड़ते हुए बड़ी ही कोमलता और स्त्री सुलभ कामुकता से प्यार से हिलाना शुरू किया। सुनील की उत्तेजना बढ़ती गयी। वह अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पा रहा था। सुनील का उन्माद और उत्तेजना देख कर सुनीता और भी प्रोत्साहित हुई।
सुनीता ने झुक कर सुनील के लण्ड के चारों और की त्वचा को अपने दूसरे हाथ से सहलाया और झुक कर अपने पति के लण्ड को चूमा। यह महसूस कर सुनील और उन्मादित होने लगा। सुनीता ने अपने पति के लण्ड के अग्रभाग को जब अपने होँठों के बिच लिया तो सुनील उन्माद के चरम पर पहुँच रहा था। उसकी रूढ़िग्रस्त पत्नी उसे वह प्यार दे रही थी जो शायद उसने पहले उसे कभी नहीं दिया।
सुनील भी अपनी कमर को ऊपर उठाकर अपने पुरे लण्ड को अपनी बीबी के होँठों की कोमलता को अनुभव करा ने के लिए व्याकुल हो रहा था। सुनीता ने और झुक कर अपने पति के लण्ड का काफी हिस्सा अपने होँठों के बिच लेकर वह उस लण्ड की कोमल त्वचा को अपने होँठों से ऐसे सहलाने लगी जैसे वह अपने होँठों से ही अपने पति के लण्ड को मुठ मार रही हो। सुनीता ने धीरे धीरे सुनील के लण्ड को मुंह से अंदर बाहर करने की गति तेज कर दी। सुनीता के घने बाल सुनील की कमर और जाँघों पर हर तरफ बिखर रहे थे और एक गज़ब का उन्माद भरा दृश्य पेश कर रहे थे।
सुनील अपना नियत्रण खो चुका था। अब उससे रहा नहीं जा रहा था। सुनील ने अत्योन्माद में अपनी पत्नी के सर पर अपना हाथ रखा। सुनीता के सर के साथ साथ सुनील का हाथ भी ऊपर निचे होने लगा। अचानक ही सुनील के दिमाग में जैसे एक बम सा फटा और एक जोशीले उन्माद से भरा उसके लण्ड के महिम छिद्र से उसके पौरुष का फव्वारा फुट पड़ा।
अपनी पत्नी के चेहरे, होँठ, गाल और गर्दन पर फैले हुए अपने वीर्य को देख सुनील गदगद हो उठा। कई बार अपनी पत्नी को कितनी मिन्नतें करने के बाद भी सुनील अपनी पत्नी को मौखिक चुदाई करने के लिए तैयार नहीं कर पाता था। पर उस रात सुनीता ने स्वतः ही सुनील के लण्ड को चूस कर उसका वीर्य निकाल कर उसे मंत्रमुग्ध कर दिया था।
सुनील समझ ने कोशिश कर रहा था की इसका क्या ख़ास कारण था। सुनील को लगा की कहीं ना कहीं कर्नल साहब का भी कुछ ना कुछ योगदान इसमें था जरूर। दोनों पति पत्नी इतनी मशक्कत करने के बाद आराम के लिए बिस्तर पर कुछ देर तक चुपचाप पड़े रहे। सुनीता ने अपना गाउन अपनी जाँघों के भी ऊपर किया और अपने पति की दोनों टांगों को अपनी टांगों में लेकर बोली, "पति देव, कैसा लगा?"
सुनील की आँखें तो अपनी बीबी की नंगी चूत देख कर वहाँ से हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। सुनीता ने जानबूझ कर अपनी खूबसूरत हलके बालों को सावधानी से छँटाई कर सजी हुई चूत अपने पति के दर्शन के लिए खोल दी थी। सुनीता बड़े ही रूमानी मूड़ में थी। उसकी चूत अपने पति से अच्छी खासी चुदाई करवाने की इच्छा से मचल रही थी। उसकी चूत की फड़कन रुकने का नाम नहीं ले रही थी।