उत्तेजना साहस और रोमांच के वो दिन!

PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here
iloveall
iloveall
412 Followers

अब उसे अपने पति को दोबारा तैयार करना था। पति का हाल में स्खलन हुआ था और अब उसके लिए तैयार होना शायद मुश्किल ही था। पर सुनीता को चुदाई की जबरदस्त ललक लगी थी। वह अपने पति का लंबा और मोटा लण्ड से अपनी चूत की प्यास को शांत करने की फ़िराक में थी।

काफी समय के बाद अपनी पत्नी की ऐसी ललक सुनील को काफी रोमांचित कर उठी। सुनील को याद नहीं था की पिछली बार कब उनकी पत्नी इतनी उत्तेजित हुई थी। उन्होंने जहां तक याद था उसे कभी भी इस तरह चुदाई के लिए बेबाक नहीं पाया था। क्या कर्नल साहब की बात सुनकर वह ऐसी उत्तेजित हो गयी थी? या फिर अपने पति पर ज्यादा ही प्यार आ गया, अचानक?

खैर जो भी हो। सुनील को भी अपनी पत्नी को इतना गरम देख कर उत्तेजना हुई। उपरसे सुनीता उनका लण्ड जो इतने प्यार से सेहला रही थी उसका असर तो होना ही था। सुनील का लण्ड कड़क होने लगा। जैसे सुनील का लण्ड कड़क होने लगा वैसे वैसे सुनीता ने भी सुनील के लण्ड को हिलाने की फुर्ती बढ़ा दी। देखते ही देखते सुनील का लण्ड एक बार फिर एकदम सख्त और ठोस हो गया। अब उसमें टिकने की क्षमता भी तो ज्यादा होने वाली थी, क्यूंकि एक बार झड़ने के बार वीर्य स्खलन होने में भी थोड़ा समय तो लगता ही है।

जैसे ही सुनीता ने देखा की उसके पति एक बार फिर तैयार हो गए हैं, तो वह धीरे से खिसक कर पलंग पर लेट गयी और अपने पति को उपर चढ़ ने के लिए इशारा किया। सुनील अपना लंबा फैला हुआ लौड़ा लेकर खड़ा हुआ। उसने अपनी खूबसूरत पत्नी को ऐसे नंगा लेटे हुए देखा तो वह देखता ही रह गया। शादी के इतने सालों के बाद भी सुनीता के पुरे बदन पर कही भी चरबी का नामो निशान नहीं था। उसकी कमर वैसी ही थी जैसी उनकी शादी के समय थी। उसके पेट का निचे का हिस्सा थोड़ा सा उभरा हुआ जरूर था। पर वह तो हर स्त्री को होता ही है। सुनीता की चूत साफ़ की हुई दोनों जाँघों के बिच ऐसी छुपी हुई थी जैसे अपने पति का लण्ड देख कर शर्मा रही हो।

सुनील ने झुक कर अपनी बीबी की गीली चूत पर अपना लण्ड कुछ पल रगड़ा। इससे वह स्निग्ध हो गया। अब उस लण्ड को चूत के प्रवेशद्वार में घुसनेमें कोई दिक्कत नहीं होगी। सुनील ने सुनीता के दोनों स्तनों को अपने हाथों में पकड़ा और उन्हें दबा कर प्यार से मसलने लगा। अपनी पत्नी की फूली निप्पलों को उँगलियों में ऐसे दबाने लगा जैसे उनमें दूध भरा हो और उनमें से दूध की पिचकारी की धार फुट निकलने वाली हो। दूसरे हाथ से वह अपनी बीबी के कूल्हों को अपनी उँगलियों से दबा रहा था।

एक हल्का सा धक्का लगा कर सुनील ने अपना लण्ड अपनी बीबी की चूत में धकेल दिया। अपने पति का जाना पहचाना लण्ड पाकर भी सुनीता उस रात मचल उठी। अपनी चूत में ऐसी गजब की फड़कन सुनीता ने पहले कभी नहीं महसूस की थी। आज अपने पति के लण्ड में ऐसा क्या था? सुनीता यह समझ नहीं पा रही थी। अचानक उसे ख्याल आया की सारी बात तो कर्नल साहब की शरारत और चोदने की बात से ही शुरू हुई थी। कहीं ऐसा तो नहीं की सुनीता के अपने मन में ही खोट हो? सुनीता खुद भी ना सोचते हुए भी खुद कर्नल साहब से चुदवाने के सपने देख रही हो?

यह सोच कर सुनीता सिहर उठी। उसका रोम रोम काँप उठा। सुनीता के रोंगटे खड़े हो गए। अपने शरीर में हो रहे रोमांच से सुनीता को एक अद्भुत आनंद की अनुभूति हुई तो दूसरी और वह यह सोचने लगी की उसको यह क्या हो रहा था? काफी अरसे से सेक्स के बारेमें वह पहले तो कभी इतनी उत्तेजित नहीं हुई थी।. सुनीता अपने मनमें अपने ही विचारों से डर गयी। जरूर कहीं ना कहीं उसके मन में चोर था। वह चाहती थी की कर्नल साहब उसके बदन को छुएं, सहलाएं, उसकी संवेदनशील इन्द्रियों को स्पर्श करें और उसे उत्तेजित करें।

अचानक अपने विचारों में ऐसा धरमूल परिवर्तन अनुभव कर सुनीता अपने आप से ही डर गयी। उसे चाहिए था की अपनी यह सोच को काबू में रखे। कहीं यह वासना की आग उनके दाम्पत्य जीवन को झुलस ना दे। खैर, उस समय तो उसे अपने प्यारे पति को वह आनंद देना था जो वह कई महीनों से या शायद बरसों से दे नहीं पायी थी।

बार बार कोशिश करने पर भी सुनीता जस्सूजी को अपने मन से दूर नहीं कर पायी। सुनीता के लिए यह बड़ी उलझन थी। एक तरफ वह अपने पति को उस रात सम्भोग का सुख देना चाहती थी और दूसरी और वह किसी और से ही सम्भोग के बारे में सोच रही थी। खैर मन और शरीर का भी अजीब सम्बन्ध है। मन उत्तेजित होता है तो अंग अंग में भी उत्तेजना फ़ैल जाती है। जब सुनीता बार बार कोशिश करने पर भी अपने जहन से जस्सूजी के बारे में सोचना बंद ना कर पायी तो फिर उसने सोचा, यही उत्तेजना से अपने पति को क्यों ना खुश करे, चाहे वह भाव जस्सूजी के लिए ही क्यों ना हो? यह सोच कर सुनीता ने अपनी गाँड़ को ऊपर उठाकर अपने पति को अपना लण्ड चूत में घुसाने के लिए प्रेरित किया।

सुनील ने एक हलके धक्के के साथ अपना पूरा लण्ड अपनी बीबी सुनीता की टाइट चूत में घुसेड़ दिया। सुनीता के दिमाग में उस रात गजब का उन्माद सवार था। सुनीता के बदन में उस रात खूब चुदाई करवाने की एक गजब की उत्कंठा थी। सुनीता का पूरा बदन वासना से जल रहा था। जैसे जैसे सुनील ने अपना लण्ड अपनी पत्नी की चूत में पेलना शुरू किया वैसे वैसे ही सुनीता की वासना की आग बढ़ती ही गयी। जैसे ही उसका पति अपना लण्ड सुनीता की चूत में घुसेड़ता ऐसे ही अपना पेडू और गाँड़ ऊपर उठाकर अपने पति के लण्ड को और गहराईयों तक पहुंचाने के लिए सुनीता अपने बदन से ऊपर धक्का दे रही थी। दोनों ही पति पत्नी अपनी चुदाई की क्रिया में इतने मशगूल थे की उन्हें आसपास की कोई भी सुध ही नहीं थी।

काफी रात जा चुकी थी। कॉलोनी में चारों तरफ सन्नाटा था। उसमें सुनील और सुनीता, पति पत्नी की चुदाई की "फच्च फच्च" आवाज और उच्च ध्वनि पूर्ण कराहटों से ना सिर्फ सुनील का बैडरूम गूँज रहा था, बल्कि उनके बैडरूमकी खुली खिड़कियों से बाहर निकल कर सामने कर्नल साहब के बैडरूम में भी उसकी गूँज सुनाई दे रही थी।

कर्नल साहब की पत्नी ज्योति ने जब सुनील और सुनीता के बैडरूम से कराहट की आवाज सुनी तो अपने पति को कोहनी मार कर उठाया और बोली, "सुन रहे हो? तुम्हारी प्यारी शिष्या अपने पति से चुदाई के कुछ पाठ पढ़ रही है। आप उसे गणित पढ़ाते हो और आपका दोस्त अपनी बीबी को चुदाई के पाठ पढ़ाता है। यह ठीक भी है। ऐसा मत करना की कहीं यह किस्सा उलटा ना हो जाए। मैं जानती हूँ की आप गणित के अलावा कई और विषयों में भी निष्णात हो। पर आप उसे गणित के अलावा कोई और पाठ मत पढ़ाना।"

गहरी नींद में सो रहे कर्नल साहब ने करवट ली और बोले, "सो जाओ, डार्लिंग। तुम सुनील क्या पाठ पढ़ा सकता है उसके बारे में ज्यादा मत सोचो। कहीं तुम्हारा मन वह पाठ पढ़ने के लिए तो नहीं मचल रहा?"

उस रात सुनील और उसकी पत्नी सुनीता में बड़ी घमासान चुदाई हुई। बड़ी कोशिश करने पर भी उस रात शायद सुनीता को वह पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर पाया ऐसा सुनील को महसूस हुआ। हालांकि उसकी पत्नी ने सुनील को उस रात ऐसा प्यार का तोहफा दिया था जिसके लिए महींनों सो सुनील तड़प रहा था।

सुनीता की पढ़ाई जोरो शोरों से चल रही थी। कर्नल साहब भी रात रात भर खुद पढ़ाई करते और दूसरे दिन आकर सुनील की पत्नी सुनीता को पढ़ाते। वक्त कहाँ जा रहा था पता ही नहीं चला। देखते ही देखते परीक्षा का समय आ गया।

परीक्षा तीन दिन के बाद होने वाली थी की अचानक खबर आयी की परीक्षा का पेपर लिक हो गया और परीक्षा कुछ दिनों के लिए पीछे धकेल दी गयी। इतनी महेनत करने के बाद जब ऐसा हुआ तो सुनील की पत्नी सुनीता एकदम निराश हो गयी। वह थक चुकी थी। उसे थोड़ा तनाव मुक्त समय चाहिए था। उधर कर्नल साहब भी बड़े दुखी थे। उन्हें लगा की जैसे सारी मेहनत पर पानी फिर गया।

सुनील की पत्नी सुनीता ने एक दिन तंग आकर सुनील से कहा, "अब यह सस्पेंस जान लेवा हो रहा है। लगता है कुछ देर ही सही, हमें इस झंझट से हटकर हमारा दिमाग कहीं ऐसी प्रक्रिया में लगाना चाहिए जिससे हमारा ध्यान परीक्षा और परिणाम से हट जाए। कई बार तो मेरा मन करता है की मैं शराब पीकर ही थोड़ी देर टुन्न हो जाऊं और वर्तमान भूल जाऊं।"

सुनील की पत्नी सुनीता शराब नहीं पीती थी। जब उसने यह कह दिया तो सुनील समझ गए की वह कितनी थक गयी है और उसे कुछ मनोरंजन या कुछ क्रीड़ा की आवश्यकता है जिससे उसका मन कुछ देर के लिए ही सही पर यह तनाव और दबाव से हट जाए।

सुनील ने सोचा क्यों ना वह अपनी पत्नी सुनीता को कहीं बाहर घुमाने के लिए ले जाए? पर वह असंभव था। सुनील को भी बहुत काम था और सुनीता की परीक्षा का दिन कभी भी आ सकता था। तो फिर वह कैसे सुनीता का मन बहलाये? फिर सुनील ने मन में आया की सुनीता को कोई चुदाई की ब्लू फिल्म दिखानी चाहिए। पर सुनील जानता था की सुनीता को ब्लू फिल्म में कोई दिलचश्पी नहीं थी। वह कहती थी, "अरे इसमें क्या है? यह तो स्त्रियाँ पैसे कमाने के लिए करती हैं। और फिर ऐसा तो हम हर रोज करते ही हैं।"

तो वह क्या करे? तब फिर अचानक उसे कर्नल साहब की याद आयी।

सुनील ने कर्नल साहब को फ़ोन कर सुनीता के मन की उलझन बतायी। कर्नल साहब ने हंसकर कहा, "सुनीता की बात एकदम सही है। मैं खुद भी थक चुका हूँ। मैं खुद भी सोचता हूँ की कहीं कुछ ऐसा करूँ की उस में ही उलझ जाऊं और यह गणित, परीक्षा और तनाव से दूर हो जाऊं। सुनील मेरी बात मानो तो मेरे पास एक ऐसा इलाज है की हम सब थोड़ी देर के लिए यह सब भूल जाएंगे।"

सुनील ने पूछा, "क्या बात है?'

कर्नल साहब ने कहा, "एक फॉरेन फिल्म फेस्टिवल चल रहा है। उसमें एक अनसेंसर्ड फिल्म "पति पत्नी और पडोसी" काफी चर्चे में है। पिक्चर एकदम इमोशनल है पर उसमें काफी धमाकेदार सेक्स के सीन हैं। मैं चाहता हूँ की तुम दोनों और हम दोनों एक साथ यह पिक्चर देखें। पर पता नहीं सुनीता तैयार होगी क्या?"

सुनील ने कहा, "मैं सुनीता से बात करता हूँ। आप ज्योति से बात करो।"

कर्नल साहब ने कहा, "मुझे ज्योति से बात करने की जरुरत नहीं है, क्यूंकि यह पिक्चर की बात ज्योति ने ही मुझे कही थी। उसकी एक सहेली यह पिक्चर देख कर आयी थी और उसे ही ज्योति ने कहा था। ज्योति को इस पिक्चर के बारेमें सब पता है।"

सुनील ने कहा, "ठीक है मैं सुनीता से बात करता हूँ। पता नहीं पर अगर मैं कहूंगा की आपने कहा है तो शायद वह मान जाए।"

जब सुनील ने अपनी पत्नी सुनीता से इस के बारेमें कुछ ऐसे बताया। सुनील ने कहा, "डार्लिंग तुम कहती थी ना की तुम कुछ देर के लिए ही सही, कुछ एकदम धमाकेदार और उत्तेजना भरा कुछ अनुभव करना चाहती हो?"

सुनीता ने अपने पति की और देख कर अपना सर हाँ में हिलाया तो सुनील ने कहा, "डार्लिंग एक फिल्म फेस्टिवल चल रहा है उसमें गजब की अवॉर्ड प्राप्त फिल्मों को दिखाया जा रहा है। कर्नल साहब ने हमारे चारों के लिए एक बहुत अच्छी फिल्म के चार टिकट बुक कराएं हैं। फिल्म थोड़ी ज्यादा सेक्सी और धमाके दार है। तीन घंटे के लिए हम सब का दिमाग कुछ उत्तेजित हो जायेगा जिससे हम यह सब भूल जाएंगे। तुम क्या कहती हो?"

सुनीता ने कहा, " अच्छा? कर्नल साहब ने हम चारों के लिए टिकट बुक कराये हैं? सेक्सी पिक्चर है? चलो ठीक है सेक्सी पिक्चर है तो कोई बात नहीं। देखिये मुझे जाने में कोई एतराज नहीं है, पर मैं अंग्रेजी भाषा नहीं अच्छी तरह नहीं समझती। मैं कुछ समझूंगी नहीं। मैं भी बोर होउंगी और आपको भी पूछ पूछ कर बोर करुँगी। आप मुझे ना ही ले जाओ तो अच्छा है। दुसरा जस्सूजी के साथ ऐसी पिक्चर देखना क्या सही है? वह और ज्योति जी साथ जाएं तो ठीक है। पर हम चारों का एक साथ जाना...? "

सुनील ने अपनी पत्नी की बात को बिच में ही काटते हुए कहा, "पर कर्नल साहब की खास इच्छा है की तुम जरुर चलो। जहां तक भाषा का सवाल है तो कर्नल साहब और ज्योति तुम्हे सब बताते जाएंगे। मझा आएगा। चलो ना! मना करके सब का दिल मत दुखाओ यार।"

कुछ मिन्नतें करने पर सुनीता तैयार हो गयी। सुनील ने कर्नल साहब को समाचार सूना दिया।

सुनीता पहेली बार कोई विदेशी फिल्मोत्सव में जा रही थी। जब उसने सुनील से पूछा की कौन सा ड्रेस सही रहेगा तो सुनील ने मजे के लहजे में कहा, " डार्लिंग हम विदेशी फिल्म देखने जा रहे हैं, जहां काफी विदेशी लोग भी आएंगे। तो क्यों नहीं तुम वो वाली छोटी स्कर्ट और स्लीवलेस टॉप पहनो, जो मैंने तुम्हें हमारी शादी की साल गिराह पर दिए थे और जो तुमने कभी नहीं पहने? आज मस्ती का ही माहौल बनाना है तो फिर ड्रेस भी मस्ती वाला ही क्यों ना पहना जाए? क्यों ना आज पानी में आग लगा दी जाए?"

सुनील की पत्नी ने अपने पति की और देखा और हँस पड़ी, और बोली, "ठीक है, पतिदेव का हुक्म सर आँखों पर। पर मुझे जस्सूजी के सामने वह ड्रेस पहन कर जाने में शर्म आएगी। वह बहुत ही छोटा ड्रेस है। फिर आप कह रहे हो की पिक्चर भी बड़ी सेक्सी है। तो कहीं आग ज्यादा ही ना लग जाए और हम भी कहीं उस आग में झुलस ना जाएं? जस्सूजी मुझे ऐसे देखेंगे तो क्या सोचेंगे? यह सोचा है तुमने?" मज़ाक के लहजे में सुनीता ने भी अपने पति से कह दिया।

सुनील ने आँख मटक कर कहा, "उन पर तो बिजली ही गिर जायेगी। पर बिजली भी तो गिरना जरुरी है। भाई आपके गुरूजी ने आपके लिए दिन रात एक कर दिए हैं। आज तक उन्होंने तुम्हारा विद्यार्थिनी वाला रूप ही देखा है। आज तुम अपना कामिनी और मोहिनी रूप दिखाओ उनको। देखो यह एक गहराई की बात है। यह हम भले ही एक दूसरे को ना बतायें पर हम सब जानते हैं की वह तुम्हारे दीवाने हैं, तुम पर फ़िदा हैं। तुम्हारा इस रूप देख कर उन पर क्या बीतेगी वह तो वह जानें, पर मैं आज इतना कह सकता हूँ की आज वह हॉल में मेरी बीबी के जैसी खूबसूरत बीबी किसीकी नहीं होगी।"

एक पत्नी जब अपने पति के मुंह से ऐसी प्रशस्ति वचन या प्रसंशा सुनती है तो पत्नी के लिए उससे बड़ा कोई भी उपहार नहीं हो सकता। वह समझती है की उसका जीवन धन्य हो गया।

जब सुनीता छोटी स्कर्ट और पतला सा छोटा ब्लाउज पहन के बाहर आयी तो उसे देख कर सुनील की हवा ही निकल गयी। वह स्कर्ट और ब्लाउज में सुनील ने अपनी बीबी को पहले नहीं देखा था। ऐसा लगता था जैसे रम्भा अप्सरा स्वर्ग से निचे उतर कर कोई ऋषि मुनि के तप का भंग कराने के लिए आयी हो।

उस दिन कहीं कहीं कुछ बारिश हो रही थी। गर्मी थी इस लिए हवामें काफी उमस भी थी। पर ऐसा लगता था की उस शाम बारिश जरूर होगी। चूँकि सुनीता को सिनेमा हॉल में तेज A.C. के कारण अक्सर ठण्ड लगती थी, सुनीता ने अपने और अपने पति के लिए दो शॉल ली और निचे उतरी। कर्नल साहब और ज्योति उनका इंतजार ही कर रहे थे। जब कर्नल साहब ने अपनी शिष्या का मोहिनी रूप देखा तो उनकी आँखें फटी की फटी ही रह गयीं।

उन्होंने जो रूप सपने में देखा था (और शायद उसे कई बार अपने हाथों से निर्वस्त्र भी किया होगा) वह उनके सामने था। छोटी सी चोली में सुनीता के मदमस्त स्तन उभर कर ऐसे दिख रहे थे जैसे दो छोटे पहाड़ किसी प्रेमी के हाथों को उन पर सैर करने का आमंत्रण दे रहे हों। चोली के ऊपर से सुनीता के स्तनों का उदार उभार साफ़ दिख रहा था। वह उभार उन स्तनों की निप्पलोँ से थोड़ा सा ऊपर तक जा कर ब्रा के पीछे ओझल हो जाता था। कोई भी रसिक मर्द को इससे स्वाभाविक ही कुंठा या निराशा होगी। ऐसा महसूस होगा जैसे नाव किनारे तक आ कर डूब गयी। वह सोचने लगते, अरे चोली या ब्रा थोड़ी सी और निचे होती तो क्या हो जाता?

होँठ की तेज लाली और उसके गले का निखार कर्नल साहब ने उस दिन तक कभी ध्यान से देखा ही नहीं था। सुनीता के गाल कुदरती लालिमा से लाल थे। आँखों की तो बात ही क्या? काजल से अंकित आँखों की पलकें जैसे आतुरता से कोई प्रश्न पूछ रही हों और स्त्री सुलभ लज्जा से झुक कर आँखों से आँखें मिलाने से कतराती हों। आँखें ऐसी कामुक लग रही थी जैसे जस्सूजी को अपने करीब बुला रही हों। सुनीता की नोकीली नाक ऐसे लगती थी जैसे उन्हें किसी उमदा चित्रकार ने बड़े प्यार और ध्यान से बनाया हो। शर्म से हँसने के लिए आतुर हों ऐसे आधे खुले हुए होँठ की पंखुड़ियां जैसे तीर छोड़ने के बाद के धनुष्य के सामान दिख रहे थे।

छोटी सी चोली के तले से निचे सुनीता की नंगी कमर के सारे उतार चढ़ाव और घुमाव इतने लुभावने एवं कामुक थे की कर्नल साहब की नजरें वहाँ से हटने का नाम नहीं ले रही थीं। स्कर्ट का छोर घुटनों से काफी ऊपर होने के कारण सुनीता की मुलायम, सपाट, सुआकार और चिकनी जाँघें देखते ही बनती थी। किसी भी मर्द की नजरें जब उनपर पड़ेंगी तो जाहिर है, फिर वही समंदर के किनारे तक पहुंचकर पानी में डूब जाने वाली निराशा दिमाग पर हावी हो जाएगी।

जब सुनीता ने कर्नल साहब को देखा तो अपने चमकते दाँत खोल कर सुन्दर मुस्कान दी और दोनों हाथ जोड़ कर नमस्ते करते हुए बोली, "आपको इंतजार कराने के लिए माफ़ करें जस्सूजी।"

फिर जस्सूजी की पत्नी ज्योति की और मुड़कर उनके हाथ थाम कर बोली, "ज्योति जी आप बड़ी खूबसूरत लग रही हो।"

ज्योति ने पट से पलटवार किया और बोली, "कहर तो आप ढा रही हो सुनीता। आज तो तुम्हें देख कर कई मर्द लोग घायल हो जाएंगे।" फिर अपने पति की सुनीता के बदन पर गड़ी हुई निगाहें देख कर बोली, "तुम्हारे निचे उतरते ही घायलों की गिनती शुरू हो चुकी है।"

शायद बाकी तीनों ने ज्योति के उस कटाक्ष को सूना नहीं या फिर उसपर ध्यान नहीं दिया।

पर सुनील का पूरा ध्यान ज्योति के बदन पर केंद्रित था। कर्नल साहब की पत्नी ज्योति ने टाइट स्लैक्स और ऊपर टाइट टॉप पहन रखी थी। इससे उनके स्तनों का उभार भी अच्छे खासे मर्दों का लण्ड खड़ा करने के काबिल था। सबसे खूबसूरत ज्योति के सुआकार कूल्हे (जो की बिलकुल ही ज्यादा बड़े नहीं थे ) टाइट स्लैक्स में बड़े उन्नत बाहर निकले हुए लग रहे थे। दोनों जाँघों के बिच की दरार सुनील की आँखों को बेचैन करने में सक्षम थीं।

दोनों जनाब एक दूसरे की बीबी को पूरी कामुकता से नजरें चुराकर देख रहे थे। पर भला बीबियों से यह कहाँ छुपता? जब कर्नल साहब की बीबी ज्योति के बार बार गला खुंखारने पर भी कर्नल साहब सुनील की बीबी सुनीता के बदन पर से अपनी नजरें हटा नहीं पाए तो उस ने धीरे से अपने शौहर को अपनी कोहनी मारकर अवगत कराया की वह बाहर काफी लोग आसपास खड़े हैं और बेहतर है वह सज्जनता के दायरे में ही रहें।

सुनीता तो बेचारी ज्योति के पति जस्सूजी की लोलुप नजरें जो उसके बदन का पूरा मुआइना कर रहीं थी, उसे देखकर सकुचा और सहमा कर शर्म के मारे इधर उधर नजरें घुमा कर यह जताने की कोशिश कर रही थी की जैसे उसने कर्नल साहब की नजरों को देखा ही नहीं। उसे समझ नहीं आ रहा था की ऐसे कपडे पहनने के बाद वह अपना बदन कैसे छुपाए?

इतनी गर्मी और उमस होते हुए भी, सुनील की बीबी ज्योति ने अपने पास रखी हुई एक शाल शर्म के मारे अपने कंधे पर डाल दी और अपनी छाती को छुपाने की नाकाम कोशिश करने लगी।

उनके घर के पास ही मेट्रो स्टेशन था। जब चारों चलने लगे तो कर्नल साहब की पत्नी ज्योति ने सुनीता के पास आकर धीरे से उसकी शाल अपने हाथ में ले ली और हँस कर बोली, "इतनी गर्मीमें इसकी कोई जरुरत नहीं। तुम जैसी हो ठीक हो। तुम बला की खूबसूरत लग रही हो। आज तो मेरा भी मन कर रहा है की मैं तुमसे लिपट जाऊं और खूब प्यार करूँ। मैं भी मेरे पति की जगह होती तो तुम्हें मेरी आँखों से नोंच खाती।"

सुनील की पत्नी सुनीता ने शर्माते हुए कहा, "ज्योति जी मेरी टांगें मत खींचिए। यह वेश मेरे पति ने मुझे जबरदस्ती पहनने के लिए बोला है। मैं तो आपके सामने कुछ भी नहीं। आप गझब की खूबसूरत लग रही हो।"

जब चारों साथ में चलने लगे तो कर्नल साहब की पत्नी ज्योति सुनील के साथ हो गयी और उनसे बातें करने लगीं। सुनील की पत्नी सुनीता की चप्पल में कुछ कंकर जैसा उसे चुभने लगा तो वह रुक गयी और अपनी चप्पल निकाल कर उसने कंकर को निकाला। यह देख कर कर्नल साहब भी रुक गए। सुनील और ज्योति बात करते हुए आगे निकल गए। उन्होंने ध्यान नहीं दिया की सुनीता और कर्नल साहब रुक गए थे।

कर्नल साहब ने देखा की सुनील की पत्नी सुनीता अपनी टाँगे उठा कर अपनी चप्पल साफ़ करने में लगी थीं तो उनसे रहा नहीं गया। वह सुनीता को मदद करने के बहाने या फिर साथ देने के लिए रुक गए और जब सब कुछ ठीक हो गया तो कर्नल साहब और सुनीता भी एक साथ धीरे धीरे साथमें चलने लगे। रास्ते में कर्नल साहब सुनीता से इधर उधर की बातें करने लगे।

मेट्रो स्टेशन पर काफी भीड़ थी। सुनीता ने अपने पति और कर्नल साहब की पत्नी ज्योति को खोजने के लिए इधर उधर देखा पर वह कहीं नजर नहीं आये। जब तक कर्नल साहब टिकट ले आये तब तक एक ट्रैन जा चुकी थी। स्टेशन पर फिर भी काफी यात्री थे। शायद सुनील और कर्नल साहब की पत्नी ज्योति पिछली मेट्रो ट्रैन में निकल चुके थे।

कर्नल साहब ने सुनील को फ़ोन किया तो सुनील ने उन्हें अगली ट्रैन मैं आने को कहा। उतनी देर में स्टेशन पर फिर भीड़ हो गयी। दूसरी मेट्रो तीन मिनट में ही आ गयी और सुनीता और कर्नल साहब ट्रैन में चढ़ने लगे। थोड़ी सी अफरातफरी के कारण किसी के धक्के से एक बार सुनीता लड़खड़ाई तो कर्नल साहब ने उसे पकड़ कर अपनी बाँहों में घेर लिया और खड़ा किया।

डिब्बा खचाखच भरा हुआ था। राहत की बात यह थी की दोनों को एक साथ बैठने की जगह मिली थी। काफी भीड़ के कारण वह एक दूसरे से भींच के बैठे हुए थे। कर्नल साहब की जांघें सुनीता की जाँघों से कस कर जकड़ी हुई थीं। कर्नल साहब की कोहनी बार बार सुनीता के स्तनों को दबा रही थी। सुनीता ने भी यह महसूस किया। सुनीता कर्नल साहब को गौर से देखने लगी। कर्नल साहब शर्ट और जीन्स पहने हुए बड़े ही आकर्षक लग रहे थे। उनके शर्ट की आस्तीन मुड़ी हुई उनकी कोहनी के ऊपर तक लपेटी हुई थी। उसके ऊपर उन्होंने आधी आस्तीन वाला जैकेट पहना हुआ था। कर्नल साहब के शशक्त मसल्स बाहु के स्नायु उभरे हुए मरदाना दिख रहे थे।

सुनीता का मन किया की वह उन बाजुओं के स्नायुओँ को सहलाकर महसूस करे। नियमित व्यायाम करने के कारण सुनीता फिटनेस की हिमायती थी। उसे कड़े बदन वाले कर्नल साहब के मरदाना बाजु आकर्षक लगे। उसने अपना हाथ कर्नल साहब के डोले पर फिराते हुए पूछ ही लिया, "जस्सूजी, आपके डोले तो वाकई बॉलीवुड हीरो की तरह हैं। क्या आप वजन उठाने की कसरत भी करते हैं?"

कर्नल साहब सुनीता की नजर देख कर थोड़े से खिसिया गए पर फिर अपने आपको सम्हालते हुए बोले, "मैं जिम में रोज एक घंटा वेट ट्रेनिंग करता हूँ।"

करीब आधे घंटे के सफर के दौरान कर्नल साहब की बाजुएँ बार बार सुनीता की छाती और स्तनों से टकराती रहीं। सुनीता को नहीं समझ आ रहा था की वह सहज रूप से ही था या फिर जान बूझकर। सुनीता को भी अपने अंदर एक अजीब सी उत्तेजना महसूस हो रही थी। उसे जस्सूजी की यह हरकत अगर जानी समझी हुई भी थी तो भी अच्छा लग रहा था। वह चुपचाप जैसे उसे पता ही नहीं था ऐसे उस हरकतों को महसूस करती हुई बैठी रही।

ना चाहते हुए भी सुनीता की नजर कर्नल साहब की टांगों के बिच बरबस ही जा पहुंची। उसके बदन में कंपकंपी फ़ैल गयी जब उसने देखा की कर्नल साहब के इतने मोटे जीन्स में से भी उनके लण्ड के खड़े हो जाने से उनके पॉंवों के बिच जैसे एक तम्बू सा फुला हुआ दिखाई पड़ रहा था। इससे सुनीता के लिए यह अंदाज करना कठिन नहीं था की कर्नल साहब का लण्ड काफी मोटा, लंबा और कड़क होगा।

कर्नल साहब की जाँघों से जाँघें टकराते हुए कहीं ना कहीं सुनील की पत्नी सुनीता मन ही मन में यह सोचने लगी की जिनकी बाँहें इतनी करारी और और जांघें इतनी सख्त हैं, जिनका बदन इतना लम्बा, पतला और चुस्त है तो उनका लण्ड कैसा मोटा और कितना बड़ा होगा! जब वह अपनी बीबी को चोदते होंगे तब वह उनके लण्ड को अपनी चूत में डलवा कर कैसा महसूस करती होगी! यह सोच कर सुनीता के बदन में एक रोमांचक सिहरन फ़ैल गयी, फिर अपने आप पर तिरस्कार करती हुई सोचने लगी, "मेरे मन में ऐसे घटिया विचार क्यों आते हैं?"

स्टेशन पर भी जब अपने पति सुनील को नहीं देखा तो सुनीता के मन में अजीब से विचार आने लगे। इधर वह कर्नल साहब के बारे में उलटा पुल्टा सोच रही थी तो कहीं ऐसा तो नहीं की सुनील कर्नल साहब की बीबी ज्योति के साथ कुछ हरकत ना कर रहें हों?

कर्नल साहब ने सुनीता का हाथ थामा और स्टेशन से जब बाहर निकले तो पाया की बारिश की बूँदाबाँदी शुरू हो गयी थी और मौसम भी कुछ ठंडा हो गया था।

सुनीता बारिश से अपने आप को बचाने की कोशिश करने लगी। यह देख कर कर्नल साहब ने अपना आधी आस्तीन वाला जैकेट खोल दिया और सुनीता के सर पर रख उसके कन्धों पर डाल दिया। दोनों ही हाथ में हाथ थामे स्टेशन से बाहर निकल कर रास्ते पर आये तब सुनीता ने अपने पति सुनील को ज्योति के साथ स्टेशन के सामने ही एक छोटी सी चाय की दूकान पर चाय पीते हुए बातें करते देखा। वह दोनों कर्नल साहब और सुनीता का इंतजार कर रहे थे।

iloveall
iloveall
412 Followers