by lovellyzoom
बहुत सुंदर रचना है। मैं सोच रहा था पहले अध्याय में, के दूसरे में माया जी से कुछ शारीरिक आत्मीयता बढेगी, (खास कर तब जब माया जी नायक के कपाल से वीर्य रस हटा के सूंघ लिया, तब लेखक की टिप्पणी से लगता था कि माया जी और कथा नायक काम रस में साक्षात डूबेंगे)। पर अब प्रतीत होता है की वो रास्ता बाइपास कर देंगे।
बहुत ही अच्छा लिख रहे हो । मुझे लगता है माया के बिना यह कहानी अधूरी ही रहेगी तो उसका जिक्र तो जरूर होगा। लेकिन जिस तरह से बिना किसी कामुक और गंदे सब्दो के प्रयोग के बिना आपने नायक और नायकी के बीच इतना कुछ करवा दिया वह बहुत ही सराहनीय है। अगले भाग का इंतेजार है।