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Click here"ऊऊऊऊ! .आआआआहह! उूुऊउगगगगगघह!" की आवाज़ें दोनों के हलक से निकल रही थीं। लेकिन ये पता नहीं चल रहा था। कि कौन-सी आवाज़ किस की है और फिर वह दोनों थक कर बिस्तर पर बेसूध और बे जान लेट गईं।
"बहुत मज़ा आया शाज़िया" नीलोफर ने शाज़िया के जिस्म के गिर्द अपनी बाहों का घेरा डालते हुए उस से पूछा।
" उफफफफफफ्फ़। उईई...आअहह! आागगगगगगग! नीलोफर! तुम ठीक कह रही हो, एक औरत ही औरत की प्यास को जान और समझ सकती है और जो मज़ा एक औरत दूसरी औरत को दे सकती है वह शायद एक मर्द भी नहीं दे सकता। शाज़िया ने जवाब दिया।
"यार जितनी आग तुम्हारी चूत में दबी हुई है वह कोई औरत कम नहीं कर सकती, इस आग को ठंडा करने के लिए तुम्हे एक मोटे बड़े और सख़्त जवान लंड की ज़रूरत है। अगर तुम कहो तो में इस लंड का तुम्हारे लिए बंदोबस्त करूँ। यार अगर यह लंड एक दफ़ा तुम अपनी फुद्दि में ले लो गी। तो यक़ीन मानो तुम मरते दम तक इस लंड का पीछा नहीं छोड़ो गी" नीलोफर ने टीवी स्क्रीन पर अभी तक अपनी और ज़ाहिद की चलती हुई मूवी की तरफ़ इशारा किया।
इस सीन में नीलोफर अपने दूसरे आशिक का लंड अपने मुँह में ले कर उस का चुसाइ लगा रही थी।
जिस आदमी के ये लंड था उस का चेहरा तो शाज़िया को नज़र नहीं आ रहा था। मगर उस आदमी का लंड नीलोफर के पहले आशिक़ के मुक़ाबले में बहुत ज़्यादा बड़ा और मोटा और सख़्त नज़र आ रहा था और इस शानदार लंड को देख कर शाज़िया फिर बहकने लगी।
शाज़िया: यार सच पूछो तो में भी अपनी ज़िन्दगी का मज़ा लेना चाहती हूँ मगर डर लगता है।
नीलोफर: यार आज से मेरी बात मानो और यह डर वर निकाल कर जवानी का मज़ा लो और तुम फिकर मत करो, देखना में जल्द ही इस लंड को तुम्हारी फुद्दि में डलवा दूं गी मेरी बानू।
"चलो हटो मुझे शरम आती है" शाज़िया नीलोफर की बात से शरमा गई और उस ने अपने आप को नीलोफर से अलग करते हुआ कहा।
शाम होने को थी। इस लिए शाज़िया ने उठ कर अपने कपड़े पहने और फिर नीलोफर को उसी तरह नंगा छोड़ कर अपने घर वापिस जाने के लिए निकल पड़ी।
नीलोफर के बनाए हुए गरम पकौड़े और चाइ तो टेबल पर पड़ी-पड़ी ठंडी हो गईं थीं। मगर नीलोफर ने शाज़िया की प्यासी फुददी में आज एक नई आग लगा कर उसे इतना गरम कर दिया था। कि अब शाज़िया के लिए उसे ठंडा करने के लिए किसी गरम रोड की ज़रूरत महसूस होने लगी थी।
शाज़िया ने अपने घर वापिस आते ही अपने कमरे में जा कर अपने कपड़े चेंज किए और फिर अपनी अम्मी के साथ घर के काम में उन का हाथ बंटाने लगी।
ज़ाहिद एक हफ्ते से अपनी एक डिपार्ट्मेनल ट्रैनिंग के सिलसिले में झेलम से बाहर था। वह भी उसी शाम ही वापिस अपने घर आया।
ज्यों ही ज़ाहिद अपने घर पहुँचा तो उस की अम्मी ने उस के लिए दरवाज़ा खोला और वह एक हफ्ते की जुदाई के बाद अपने बेटे से मिल कर बहुत खुश हुईं।
"बेटा तुम अंदर टीवी लाउन्ज में बैठो में तुम्हारे लिए पानी ले कर आती हूँ" कहते हुए रज़िया बीबी पानी लेने किचन में चली गईl
ज़ाहिद टीवी लाउन्ज में एंटर हुआ तो शाज़िया को सोफे पर बैठ कर टीवी देखते पाया।
शाज़िया भी अपने भाई ज़ाहिद को इतने दिनो बाद मिल कर बहुत खुश हुईl
अपनी बेहन से सलाम दुआ के बाद ज़ाहिद भी शाज़िया के पास ही सोफे पर बैठ गया।
ज़ाहिद को शाज़िया के साथ सोफे पर बैठे एक मिनट ही गुज़रा कि उन की अम्मी ने किचन से शाज़िया को पुकारा।
अम्मी की आवाज़ सुन कर शाज़िया अपनी अम्मी की बात सुन उन के पीछे-पीछे ही किचन की तरफ़ चल पड़ी।
शाज़िया ने आज सफेद कमीज़ और हल्की ब्लू कलर की पटियाला स्टाइल की शलवार पहनी हुई थी।
उस की कमीज़ तंग और छोटी होने की वज़ह से शाज़िया की गान्ड को पूरी तरह कवर नहीं करती थी। जब कि शाज़िया की पटियाला शलवार का घेर होने का बावजूद शाज़िया की नर्म और भारी गान्ड के खूबसूरत कूल्हो को छुपाने से असमर्थ थी l
ज़ाहिद की नज़रें पीछे से अपनी बेहन के बड़े-बड़े कूल्हों पर जम गईं और वह बैठा अपनी बहन के जिस्म का जायज़ा लेने लगा।
शाज़िया के खूबसूरत कूल्हे, उस पर पतली-सी कमर और दोनों तरफ़ लटके नाज़ुक-नाज़ुक गोरे गोरे हाथ जिस पर नाज़ुक-नाज़ुक से ब्रॅसलेट। जिन की झंकार शाज़िया के कूल्हों की हर ताल से ताल मिलाती थी।
ज़ाहिद ने महसूस किया कि चलते-चलते उस की बेहन ने जैसे अपने कूल्हे और भी थोड़ा हिलाना शुरू कर दिए हों।
एक अदा से चलने की वज़ह से शाज़िया के कूल्हे मज़ीद थिरक उठते थे। शाज़िया यह नहीं जानती थी कि आज यूँ अपने भारी कूल्हे थिरकाने से उस के सगे भाई के दिल का सुकून बर्बाद होने लगा था।
अपनी बेहन की मस्त गान्ड का यह नज़ारा देख कर ज़ाहिद की आँखें फटी रह गईl
बेहन की मस्त गान्ड पर अपनी नज़रें गाढ़े ज़ाहिद के दिमाग़ में दिलेर मेहंदी का यह गाना ख़ुद ब ख़ुद गूंजने लगा।
" शाडे दिल ते चन्गि चलिया
ते रह गे असेन लंड फाड़ केl
जादू "बेहन" ने
मूर वांगू पेलान पायाँ l"
ज़ाहिद अपनी ज़िंदगी में कई औरतों की गान्ड को चोद चुका था। लेकिन उस ने आज तक इतनी सेक्सी और जबर्जस्त गान्ड किसी भी औरत की नहीं देखी थी।
ज़ाहिद बेहन की मटकती हुई गान्ड को देख कर दिल ही दिल में सोचने लगा कि अगर उसे अपनी बेहन की गान्ड चोदने को मिल जाय।तो वह तो ज़िंदगी भर उस की गान्ड ही मारता रहे।
मगर ज़ाहिद यह जानता था। कि इस की यह ख़्वाहिश पूरी होना अगर ना मुमकिन नहीं तो बहुत ही मुश्किल ज़रूर है और अपनी इस ख्वाइश को पूरा होने में कितना अरसा लगे गा यह वह नहीं जानता था।
इस लिए ज़ाहिद ने शाजिया के किचन में जाने के बाद पास पड़े हुए सोफे के कशन को अपनी गोद में रखा और अपनी पॅंट की पॉकेट में हाथ डाल कर अपने खड़े लंड को मसल कर कहने लगा "बैठ जा बेहन चोद क्यों मरवाएगा मुझे"
थोड़ी देर बाद ज़ाहिद की अम्मी उस के लिए पानी का ग्लास ले आई और बेटे हो पानी दे कर उस के पास ही सोफे पर बैठ गईं।
कुछ देर के बाद शाज़िया किचन से खाने के बर्तन और सालन वग़ैरह लाई तो तीनो माँ बेटा बेटी ने काफ़ी अरसे बाद इकट्ठे एक साथ बैठ कर खाना खाया।
खाने से फारिग होते ही शाज़िया किचन में जा कर बर्तन धोने में मसरूफ़ हुई. तो रज़िया बीबी ने अपने से शाज़िया की दुबारा शादी की बात करने का सोचा।
रज़िया बीबी: ज़ाहिद बेटा मेरा दिल है कि शाज़िया की दुबारा शादी कर दूं।
"चाहता तो में भी यह ही हूँ, मगर आप ने शाज़िया से उस की रज़ा मंदी पूछी है" ज़ाहिद ने अम्मी को कहा।
ज़ाहिद ने यह बात कहने को कह तो दी मगर अंदर से उस का दिल हरगिज़-हरगिज़ यह नहीं चाह रहा था कि उस की बेहन शादी कर के उस की आँखों से ओझल हो जाय।
क्योंकि अगर अभी तक जमशेद की तरह अपनी बेहन से अपने जिन्सी ताल्लुक़ात क़ायम करने की हिम्मद नहीं पेदा कर पाया था। मगर इस के बावजूद अब उस को अपनी भोकी नज़रों से अपनी ही सग़ी बेहन के मोटे बदन को टटोलने में मज़ा आने लगा था।
रज़िया बीबी: बेटा में चाहती हूँ कि पहले तुम से बात कर लूं, तुम अब शादी की हाँ कर दो ता कि में किसी रिश्ते वाली से कह कर तुम्हारा और तुम्हारी बेहन का रिश्ता तलाश कर के दोनों काम इकट्ठे निपटा दूँ।
"अम्मी आप मेरी फिकर मत करिए आप शाज़िया के बारे में पहले सोचें" ज़ाहिद अपनी अम्मी की बात सुन कर जवाब दिया।
अभी दोनों मा बेटे में यह बात चीत जारी थी। कि इतनी देर में शाज़िया किचन से फारिग हो कर टीवी लाउन्ज में दाखिल हुई ।तो उस ने अपनी अम्मी और भाई के दरमियाँ होने वाली बात चीत का आखरी हिस्सा सुन लिया।
आज से पहले अपनी जिस्मानी प्यास के हाथो बे चैन होने के बावजूद शाज़िया अक्सर यह सोचती थी। कि किसी बूढ़े आदमी से शादी कर के उस के ढीले लंड को अपनी फुद्दि में लेने से बेहतर है कि इंसान अपनी उंगली से ही अपने आप को ठंडा कर ले।
और आज नीलोफर के हाथो और ज़ुबान से अपनी प्यासी फुददी की प्यास बुझवा कर शाज़िया के दिल में लंड की बेचैनि मज़ीब बढ़ तो गई थी। लेकिन इस के साथ-साथ नीलोफर ने शाज़िया को आज यह भी समझा दिया था। कि औरत के जिस्म की प्यास बुझाने के लिए मर्द का साथ ज़रूरी तो है मगर लाज़मी नही।
इसी बात को ज़हन में रखते हुए शाज़िया अपनी इस बात पर अब पहले से ज़्यादा क़ायम हो गई थी। के जब टुक उस को अपनी मर्ज़ी का कोई मुनासाब जवान रिश्ता नहीं मिलता। वह दुबारा शादी करने में जलद बाज़ी नहीं कार्य गी।
क्योंकि स्याने कहते हैं ना के "कोजे ऱोणे नालून चुप चांगी"।
(बुरा रोने से खामोशी अच्छी है)
रज़िया बीबी ने जब अपनी बेटी को कमरे में आते देखा तो बोली "शाज़िया बेटा आओ बैठो हम दोनों तुम्हारे बारे में ही बात कर रहे थे"
शाज़िया ज्यों ही कमरे में घुसी तो ज़ाहिद का मोबाइल फ़ोन पर उस के पोलीस स्टेशन से एक साथी पोलीस वाले की कॉल आ गई. जिस को सुनने ज़ाहिद उठ कर अपने कमरे की तरफ़ चला गया।
"मेरे बारे में क्या बात हो रही थी अम्मी" भाई के जाने के बाद शाज़िया ने अपनी अम्मी के सामने पड़े सोफे पर बैठते हुए पूछा।
रज़िया बीबी: बेटी मेरी ख़्वाहिश है कि मेरे मरने से पहले तुम अपना घर दुबारा बसा लो।
शाज़िया: अम्मी खुदा आप का साया हम पर सलामत रखे, आप क्यों ऐसी बात करती हैं।
रज़िया बीबी: बेटा वक़्त का क्या भरोसा, इस लिए में चाहती हूँ कि तुम दोनों बेहन भाई की शादी कर के में अपना फर्ज़ निभा दूं, मगर मुझे अफ़सोस है कि ना तुम्हारा भाई शादी पर तैयार होता है और ना तुम।
अम्मी भाई का तो मुझे पता नहीं मगर में आप को यह बात पहले भी बता चुकी हूँ कि मुझे किसी दूसरी शादी के ख़्वाहिश मंद बाबा से हरगिज़-हरगिज़ शादी नहीं करनी" शाज़िया ने इनडाइरेक्ट अपनी अम्मी को यह बात कह दी कि वह अब शादी करे गी तो किसी जवान मर्द के ही साथ ही करे गी।
कहानी जारी रहेगी