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Click hereएक जवान लड़की की चुदाई के अनुभव जो वह शादी के हॉल में अपने एक अंकल से लेती है।
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दोस्तों, में हेमा नन्दिनी (हेमा) एक बार फिर आपके मनोरंजन के लिए अपना एक नया अनुभव के साथ आपके समक्ष हूँ। जैसे की आपने मेरी पिछली घटनावों का सुखद अनुभव किये, उम्मीद करती हूँ की यह अनुभव भी आपका मन मोह लेगा।
आईये चलते है उस अनुभव की ओर।
दिसम्बर का महीना था और वातावरण में ठण्ड बढ़ गयी है। कोई ग्यारह बजे में वरांडे में बैठकर धूप सेख राही थी की मेरि मोबाइल बजी। देखा तो माँ का फ़ोन था। "हेलो! माँ कैसी हो..?" मैंने ख़ुशी से दमकते पूछी।
"हेमा बेटी कैसी हो? सब ठीक तो चलरहा है ना? तुम्हारे पति कैसे है?" माँ सवाल पे सवाल पूछे जा रही थी। "सब ठीक है माँ, तुम बोलो कैसे हो? और प्रेमा और रीमा सब अच्छे है न? वैसे पापा आये हैं क्या?" मैं पूछी! मेरे पापा सरकारी सिविल कांट्रेक्टर हैं तो ज्यादा तर वह साइट पर ही रहते है।
"हाँ बेटा यहाँ सब ठीक है वैसे पुम्हारे पापा भी कल ही आये। उसी सम्बन्ध में मैंने तुम्हे फ़ोन किया है" उधर से माँ की आवाज आयी।
" बोलिये माँ क्या बात है?
"कुछ नहीं बेटी, हमारा एक नजदीकी रिश्तेदार के यहाँ कल शादी है, वहीँ तुम्हारे यहाँ से कोई 60 km दूरी पर। पहले मैं सोची थी की मैं ही आजाति हूँ लेकिन पापा कल ही आए है तो..." माँ रुक गयी।
"माँ बोलो माँ.." माँ की हिच कीचाहट समझ कर में पूछी।
"कुछ नहीं बेटी शादी में हमारी यहाँ से किसी का जाना जरूरी है, मैं सोची थी की हमारे यहाँ से तुम चली जाती तो..." माँ फिर रुक गयी।
"ठीक है माँ मैं चली जाती हूँ। इसमें प्रॉब्लम क्या है? वैसे शादी कहाँ है और कब?"
"कल ही शादी है बेटी लेकिन आज ही चली जति तो..." "चली जावूँगी माँ.. एड्रेस बोलो" मैंने उन्हें आश्वासन दिया।
"थैंक्स बेटी पता नोट करो..." और माँ ने पता नोट कराया। मैंने मोबाइल में गूगल में देखि तो वह गावं यहासे 64 km की दूरि पर है और मैंने बस रूट और टाइम मालूम कर वहां जाने को तैयारी की। बस 3.30 बजे थी। शादी दुसरे दिन थी और मुझे वहां रात रुकना था, मैंने एयर बैग में कुछ कपडे रखे और खाना खाकर तैयार होकर निकली। **************************
उस गावं में मैं जब उत्तरी तो शाम पांच बज रहे थे। सड़क से गांव एक 1 km दूरी पर है। वहां से गांव जाने के लिए शेयर ऑटो थे। मैं एक में बैठ गयी और उसे पता बोली। उसने मुझे गाँव के बहार ही बने एक फंक्शन हॉल के पास उतरा। मैं बैग लेकर अंदर गयी और पूछ ताछ की। जब में वहां पहुंची तो वहां के लोग मुझे आराधना से देख रहे थे। खासकर मर्द लोग। मुझे मेरी सुंदरता पर गर्व हुआ।
हॉल दो मंजीला था नीची के फ्लोर पर शादी का हॉल था तो ऊपरी मंजिल पर दोनों ओर कमरे थे। एक औरत ने आकर मुझे हॉल के साइड के सीढ़ियों से पहली मंजील की एक कमरे में छोड़ी। वहां कुछ औरतें बैठी फूलों का माला बांध रहे थे। मेरे बारे में पूछे और बहुत खुश दिखे। एक जवान लड़की भी थी वहां उसने मेरे गले लगी और कहि 'थैंक्स दीदी तुम तो आये हो... काकी कह रही थी की वह आ नहीं पायेगी।" वह लड़की बोली। वह हल्दी में डुबोए कपडों मे थी, शायद दुलहन होगी।
मैंने उन लोगों से कुछ देर बात की और फ्रेश होने चली गयी। उस शाम 7.30 बजे कुछ रस्म थी। मैंने तैयार होकर उस शाम, एक हलकी फूलों वाली लहंगा और ब्लाउज पहनी और मेरी बालों को दो चोटियों मे बंधी, एक अधेड़ औरत में मेरे हाथ में एक बडासा चमेली का माला दी। उसे बालों में लगाकर में शादी के हॉल में आ गयी। एक ओर हल्का सा संगीत चल रहा था और मण्डप में कुछ रस्मे चल रही थी। एक ब्राह्मण मंत्रोच्चारण कर रहा था और एक जोड़ा वहां बैठि थी। शायद दुल्हन के माता पिता थे।
कुछ देर वहां रुकी और फिर हॉल में घूमने लगी। ऐसे ही घूम रही थी की मेरी नजर एक व्यक्ति पर पढ़ी जिसे वहां होने की मुझे कल्पना ही नहीं थी। वह हमरे दूर के रिश्तेदरों में से है और वह एक ज़माने की यानि दस बारह साल पहले की मशहूर TV एक्टर प्रेम कुमार हैं। वह इतने सुन्दर और आकर्षक लगते थे की लड़कियॉं उन पर मरती थी।
वैसे मेरी उम्र बारह या तेरह की होगी लेकिन मैं भी उन पर मरती थी। जिस दिन भी उनका शो आता था तो उस रात मैं उनके ख्यालों में अपने उभरते घुटलियों पर हाथ फेरती या अपनी जांघों के बीच हाथ डाल कर वह सहलाती सो जाति थि। वह तब हमारे घर भी आया करते थे। माँ उनकी बहुत ही आव बगत करती थी। ऊन दिनों मैं उन्हें घर आते देख कर ख़ुशी से दमकति थि और गर्वे महसूस करती थी की इतने मशहूर एक्टर हमारे यहाँ आए है। उन्हें मैं अंकल कहति थि।
बाद में हमारे किसी रिश्ते दरों से मालूम हुआ की माँ और अंकल एक दुसरे को चाहते थे और शादी भी करने को सोचे है। लेकिन नानाजी ने, मम्मी के पापा ने उस रिश्ते को न मंजूर कर दिया। क्योंकि TV एक्टर को अपनी बेटी देना उनहे पसंद नही था। TV में एक्ट करना उनकी नजरों में एक अच्छा व्यवसाय नहीं था। उन्होंने मम्मी की शादी मेरे पिता से करदी जो की एक सरकारी कांट्रेक्टर है।
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"हाय अंकल! कैसे है? पहचाना..?" मैं हँसते हुए उनके सामने ठहरी थी। प्रेम अंकल के साथ दो और लोग ठहरे थे। अंकल ने मुझे एक बार ऊपर से नीचे तक देखे और आश्चर्य बोले "तुम.. तुम.. हेमा... हेमा ही हो न...?" वह अचरज से मुझे देखते बोले।
"दि सेम.." मैं हंस रही थी।
"मैं गॉड..हेमा.. तुम इतनी बड़ी हो गयी..सुना है तुम्हारी शादी होगयी है..?" पूछे।
मैं शर्म से सर झुकाली। ओह गॉड इतनी सुन्दर हो तुम... तुम तो शादी शुदा दिख ही नहीं रही हो.. एक दम खिलती कलि की तरह हो" उसने मेरे कंधे पर हाथ रख धीरे से दबाये। फिर उन्होंने अपने साथ ठहरे लोगों से बोले... "फ्रेंड्स यह है हेमा...यानि की सोना, गोल्ड... मेरी एक सहेली की बेटी है... वैसे दोस्तों मैं प्रभा यानि की इनके माँ से शादी करने वाला था1 लेकिन इनके नानाजी ने नहीं मानी..." एक आह भर कर बोले 'काश मेरी शादी प्रभा से हो जाती तो यह हेमा मेरी होती..." और उनके हाथ मेरे कंधे से निचे फिसली और मेरे खाँख से मेरे उभारों की टच करने की कोशिश करे।। मेरे शरीर में कुछ अजीब सा सुर सुरहट हुयी।
मैं उन्हें देख कर मुस्कुरा रही थी। और देखते ही देखते उनका हाथ मेरे खाँखों के (arm pit) नीचे से मेरे उभारों को सहलाने लगे। "ओफ्फ यह कैसे आदमी है..? एक ओर मुझे बेटी कह रहा था और दूसरी ओर मेरे उभरों को सहला रहा है' मैं सोची.
"बोलो हेमा तुम्हारी मम्मी कैसे है.. बहुत दिन हो गये है उन्हें देख क्र.." अपना हाथ चलना चालू रखते पूछे। मैं उन्हें कुछ बोल नहीं पा रही थी, शादी का मंडप था.. कुछ लोग इधर उधर घूम फिर रहे थे। मैं हिम्मत कर उन्हें हाथ निकलने भी नहीं कह सकती थी।
वही कुछ कुर्सियां पड़े थे तो मैंने कहा "बैठिये न अंकल खड़े क्यों है..?" मैंने कुर्सियां दिखाई। वह तीनों बैठ गए लेकिन उनके सामने मेरे बैठ ना उचित न समझ कर मैं नहीं बैठी। प्रेम अंकल मेरे से कुछ पूछ रहे तो मैं उन्हें जवाब दे रही थी। अब उनका हाथ मेरे नितम्बों पर फेरने लगे। उनके इस व्यवहार से मैं भी गर्म होने लगी। मैं खामोश ठहर कर उनका हाथों का स्वाद अपने कूल्हों पर ले रहि थि।
कुछ देर बाद उनके फ्रेंड्स 'अच्छा प्रेम कल फिर मिलेंगे' कह कर चेले गए। उनके जाने के बाद प्रेम अंकल ने मुझे बैठने को कहे तो मैं बैठ गयी। उन्होंने अपना हाथ अब मेरी जांघों पर फेरते मेरे पति के बारे में पूछ रहेथे।
"अंकल अपने घर आना क्यों बंद कर दिए?" मैं पूछी।
"तुम्हारे नानाजी के वजह से, मेरा वहां आना उन्हें पसंद नहीं था, वह तुम्हारी मम्मी को डांट रहे थे, तो मैं आना बंद करदिया।"
"आप मम्मी को बहुत चाहते है?"
उन्होंने जवाब देने से पहले मुझे देखे और बोले, चलो बहार लान में बैठते है, फिर मेरी हाथ पकड़ कर बहार ले आये। बहार बडा सा गार्डन था एक ओर एक नीम के पेड़ के नीचे कुछ कुर्सियां थी। अंकल और मैं उधर चले और कुर्सियों पर बैठे। खूब अँधेरा हो गया है और लौटों की रौशनी भी सीमित थी। पेड़ के नीचे पेड़ की छांव की वजह से नीम अँधेरा था। अंकल ने वहां एक कुर्सी पर बैठ ते बोले "क्या पूछ रही थी?"
"यही की आप मम्मी को बहुत प्यार करते थे?"
"हाँ बहुत प्यार करता था नहीं, करता हूँ" कहते उन्होंने मुझे अपने गोद खींचे। मैं इनके गोद में गिरी और सँभालते बोली "अंकल यह क्या कर रहे है? कोई देखलेगा?" में बोली। यही मेरे से गलती हो गयी। मेरी ऐस कहने से उन्होंने समझा की कोई न दिखने पर मुहे कोई आपत्ति नहीं है। "किसी को न दिखे इसीलिए तो यहाँ लाया हूँ" कह कर मेरी गालों को चूमने लगे। में अपने आप खो रहीथी। मेरा शरीर में आग तपने लगी। इसका दो कारण है, एक प्रेम अंकल मेरी टीनेज में मेरे क्रश थे और दूसरा मैं बहुत गर्म लड़की हूँ। इसी लिए मैं उनके चुंबनीं का स्वाद लेते उनके गोद में पड़ि रही। अब अंकल के हाथ मेरी उभारों पर सीधे पड़े और लगे उन्हें दबाने, मसलने।
मैं न, न कर रही थी लेकिन उनके गोद से उठने का प्रयत्न नहीं कर रही थी। जब मेरे से कोई रूकावट या प्रतिरोध न पाकर वह और बोल्ड होगये और मेरे ब्लाउज के हुक खोलने लगे।
"नहीं अंकल नहीं... मझे ढर लग रहा है" में बोली। मुझे सच में ही ढर लग रहा था की कोई हमें देख न ले।
"पगली कुछ नहीं होगा, ढरो मत" कहकर मेरी सारे हुक खोल दिए और ब्रा ऊपर उठाकर अपना मुहं वह रख दिए। "आआह्ह्ह्ह.. अंकल' कह कर मैं उन्हें अपने बूब्स पर दबायी। अंकल बड़े चाव से मेरे बूब्स को पी रहे थे।
"हेमा तुम्हारे कितने अच्छे है.. बिलकुल तुम्हारी माँ की चूची याद् आ रही है" मेरे निप्पल पर अपना जीभ चलाते बोले। नीचे मेरे नितम्बों पर उनका चुभ रहा है। वैसे ही कुछ 15 मिनिट मेरो चूची को पीने के बाद और खूब मसलने के बाद "अंकल कुछ चुभ रहा है" में कही और उनके गोद से उतरी, अपने घुटनों पर बैठकर मैंने अंकल का पैंट ज़िप नीचे खींची, उनके अंडर वियर को हटाई और उनके नंगेपन को बहार खींची। वह तो एक दम लम्बा और मोटा मेरे मुट्ठी में एकदम गर्म लोहे की चढ़ जैसा थी। मैं बहुत चाव से उसे देखते अपने होंठों पर जीभ चलायी। मेरे मुहं में पानी आगया। उसे मुट्ठी में जकड़ते उंक्ल से पूछि "तो क्या आपने शादी नहीं की?"
उन्होंने एक आह भरी और बोले "किया है, मैं तो शादी नहीं करने की सोचा लेकिन क्या मेरी शादी न करने से मुझे प्रभा तो नहीं मिलने वाली उसकी तो शादी हो गई और वह बच्चो की माँ भी बन गयी। इसीलिये अब शादि करली।" उन्होंने बोले और मेरे से खिलवाड़ भी करते रहे। मैं भी अब जोश में आगयी और उनके हाथों का मज़ा लेते हुए पूछी "अंकल तो क्या आप अपनी शादी तक किसी औरत को" में बात अधूरा छोड़ दी। मेरी मुट्ठी में अंकल की दब रही थी।
अंकल ने हो हो कर हसे और पूछे "हेमा एक बात बोलो तुम्हे भूख लगे तो तुम क्या करती हो?"
यह क्या बात है, उसका और इसका क्या सम्बन्ध मैं सोचती बोली।
".. और क्या करती हूँ खाना खाती हूँ" में कही।
"तुम्हे दाल चावल बहुत पसंद है, अगर वह न मिलने पर क्या तुम भूखे ही रहोगी?"
"ऐसा क्यों? दाल चावल न मिले तो रोटी खालेती हूँ या कुछ भी मिले खाती हूँ"
"बस.. सेक्स भी एक तरह की भूख है। उस भूख को भी मिठाना पड़ता है। दाल चावल न तो रोटी या पूरी या कुछ और..है न..."
बात मेरी समझ ह में आगयी और मैं अपने आप में मुस्कुरायी और पूछी.. 'अंकल क्या आपने..." मैं फिर रुक गयी।
अंकल मेरो बात समझ गए और बोले "हाँ, मैंने अपना कुँवरापन तुम्हरे माँ से खोयी और तुम्हारी माँ अपना कुंवारापन मेरे से..."
मेरे मुट्टीमें उनका ठुनकिया मार रही है। मेरे मुहं पूरा लालाजल से भर गया। में आगे झुकी और उनके उस को मुहंमे ले ही रही थी की अंदर से खाने ले किये बुलावा आया और हम उठकर अपने कपडे व्यवस्थित करे और हॉल की ओर चल पड़े।
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हॉल में जाकर हम दोनों ने प्लेट में खाना लेकर खाना खा रहे थे। इतने मे अंकल उनके कोई पहचान ने वालों बुलाया और अंकल उधर चलदिये। उसके बाद अंकल फिर मुझे दिखे ही नहीं। मैं खाना खाकर थोड़ी देर इधर उधर घूमकर ऊपर चाली गयी। तबतक 9.30 बज चुके थे। एक और घंटा में इधर उधर टाइम पास करि और 10.30 समय सोने चलेगयी। जो कमरा में में थी उसमे तभी तक लोग पसर पड़े। साइड में द्दूसरे कमरे मे गई तो वह भी लोगों से भरी पड़ि थी।
रात रुकना यह मालूम होकर भी मैंने एक चादर नहीं लायी थी। मैं अपने आप को खोसते बहार वरांडे में एक कोने में जाकर लेटी। ठण्ड लग रहा था। में अपने घुटने मोड़कर कोहिनियों के ऊपर सर रख कर सो गाई। बहुत देर इधर उधर करने के बाद मेरी आँख लग गयी। किसीने मेरे सिर को उठाकर सिर के नीचे एक तकिया लगादी। फिर मेरे ऊपर एक गर्म चादर ओढ़ी और कोई मेरे साइड में लेट गए।
चादर ओढ़ने के बाद मैं फिर नींद में खोगई। यह सोच के की मेरे बगल में लेटने वाले कोई औरत ही होगा क्योंकि एक अजनबी औरत के बगल में सोने की कोई मर्द हिम्मत नहीं कर सकता। लेकिन मेरी वह धारणा गलत निकली। मेरे बगल में लेटे व्यक्ति की हाथ पहले मेरे कमर के गिर्द लिपटी और फिर ऊपर को रेंगने लगी। कुछ ही क्षणों में उस का हाथ ऊपर की ओर रेंगी और मेरे उभार पर ठिकी और धीरे से दबायी। मेरी घुटने मोड़ने की कारण मेरी मांसल नितंब उस व्यक्ति की अग्र भाग से टकराने लगी. तब मैंने महसूस किया की उनका तन्नाया औज़ार मेरे नितम्बों पर ठोकर मार रही है!
"कौन?' में अपने धड़कते दिल को काबू में रखती पूछी। मेरा दिल घभरा रहा था।
"Sssshhhhhsh उसने मेरि कानो मे फूस फसाया "आवाज नहीं, में हूँ प्रेम" मैंने उनकी आवाज पहचानी। "Ohhhh! अंकल यह क्या...?" मैं अपनी आवाज को ऊँचा भी नहीं कर सकती, कोई उठ न जाये और बद्नामी होगी। "Sssssshhh" अंकल में फिर मेरी कान मे फूस फूसाये और अबकी बार उन्होंने मेरी निप्पल को ब्लाउज के ऊपर से ही पकडे और हल्का सा पिंच कर ट्विस्ट किये। "Aaaaahhhhh" अनजाने में ही मेरी मुहं से एक मीठी कराह निकली।
मेरी जवानी में मेरे क्या क्या फैंटसीज थे उनके बारेमे और उन फैंटसीज में उन्होंने मेरे साथ क्या क्या किए थे सोचने लगी। यह सोचते थी मेरे शरीर में एक आनंद दायक सुर सूरी होने लगी और मैं खामोश रही। मेरी चुप्पी ने उन्हें हिम्मत दिया और उनके हाथ मेरी बूब को नीचे दबायी। मेरे निपल्स कड़क होगये है। मेरे शरीर पर अंकल की हरकते मेरे में वासना जगाई। जब अंकल ने मेरी पीठ पर अपने जीभ से सर्कल्स बना रहे है और अपने दांतों से हलका से काट भी रही थे तो मैं आनंद विभोर होते जा रही थी। यह सब रात के उस अँधेरे में ख़ामोशी से हो रहा था।
अंकल अपना सर थोड़ा ऊपर उठाये और मेरे कानों में हल्का सा बोले "स्वीटी हुक्स" और उनका टंग मेरे कानों में घुमा रहा थे और वहां चाट रहे थे कभी कभी कान के लौ (ear lobes) को हलका सा चुभला रहे थे। मेरे लिए यह एक नया अनुभव था क्यों की अभी तक किसी ने मेरे कान में जीभ नहीं फेरि थि हालाँकि मेरे ससुर जी मेरे नाक में अपना जीभ घुमाये है। (ससुरजी की घटने मैं फिर कभी सुनावुंगी). मैं ख़ामोशी से अपना हुक्स खोली और ब्रा को ऊपर उठायी ताकि अंकल हाथ अब आसानी से मेरे उभार दार चूचियों पर घूमे।
प्रेम अंकल मरे चूचियों के साथ खिलवाड़ करते रहे कभी निप्पल्स पिंच कर रहे तो कभी सारा बुब्को जोर से दबाते तो मरोड़ते रहे। पीछे मेरे मदभरी नितम्बों पर उनका मुस्सल सख्त सुव्वे की तरह चुभ रही थी। मैं अपने घुटनों को और आगे कर मेरी गांड को पीछे धकेली ताकि मैं उनके चुभन को अच्छे तरह फील कर सकूं।
"स्वीटी" अंकल मेरे कानों में धीरे से बोले" तुम्हारे निप्पल्स भी तुम्हारी मम्मी के ही तरह बहुत बड़े और जूसी है। मैंने कुछ जवाब नहिं दिया ख़ामोशी से उनके चूची मर्दन को और पीछे पीठ और भुजाओं को चाटने और काटने का आनंद ले रही थी।
कुछ देर ऐसे ही एक दूसरे कि मजा लेने के बाद "अपना लहंगा ऊपर उठावो डार्लिंग मुझे उसे फील करना है" वह धीरे से बोले। अब मैं उनके डॉर्लिंग भी बन गयी। हमारे बातें बहुत ही धीमा हो रहे थे ताकि कोई सुन न ले। मुझे एक अजीब फुन्नी मालूम होरहे थे यह सब, मैरिज (marriage) हॉल में इन सब सो रहे आदमियों के बीच यह सब हो रहा था। मुझे एक ओर ढर भी लग रहा है कि कोई जग न जाये और पकडा न जाये तो दूसरी ओर इन लोगों के बीच ऐसी हरकत से शरीर में थ्रिल होने लगी। मैं अपना लहंगा मेरे कमर के ऊपर खींची और पैंटी को नीचे खींच पैरों से निकाल दी। अंकल ने मेरी बूब्स पर से अपना हाथ निकल मेरे मक्कन से भी मुलायम चूतड़ों पर फेरे। "aaaaahhhhh...un..c..l..e..." मेरे मुहं से ऐसी आवाज निकली।
मेरी रिसती चूत में खुजली होने लगी और अंकल की मिडिल फिंगर मेरे लव चैनल पर आयी और अंदर घुसी। मेरा लव चैनल तो पहले से ही रिस रही थी तो उनके फिंगर को अंदर खींच ली। उन्होंने अपना ऊँगली तीन चार बार मेरी बुर में अंदर बहार किये। अंकल की ऊँगली मेरे रस से चिपडी थी, उन्होंने उस उंगलिको मेरे होंठों के पास ले आये। उनकी ऊँगली में चिपूडि मरे चूत का रस से मेरे नथुनों मे एक मद भरी गंध पैल गयी। मेरे शरीर में फिर से एक सुर सूरी सी लहर दौड़ गयी। मैंने अपना मुहं खोल कर उस उंगलि को अंदर ली और लगि चूसने।
"स्वीटी, तुम्हारी चूत भी बिल्कुल तुँहरि माँ की चूत जैसे ही है, वही तंग फांक और मोटे लिप्स" मेरे मुहं को अपनी ऊँगली से चोदते हुए अंकल बोले। मैं मेरे मुहं में अंकल के ऊँगली का मज़ा ले रही थी तो पीछे मेरी नंगी गांड पर अंकल मोटे लंड की चुभन।
कुछ देर की मस्ती के बाद अंकल बोले "अंदर लेलो...
क्या...?" में पूछी।
"मेरे लंड को..." मेरे निप्पल छेड़ते बोले।
कहाँ लूँ..." में भी नखरे करते पूछी।
"तुम्हरी invite करती स्वर्ग द्धार में..." अंकल मेरी बूब को जोरसे मींजते और मेरे गर्दन के नीचे चूमते बोले। उनके गर्दन के चूमने पर मेरे रेंगटे खड़े हो गये।
में अपना हाथ नीचे ले गयी और उनके गर्म लोहे को पकड़, मरे स्वर्ग द्वार पर रखी और छोड दी। मैंने अपने घुटनो को और अंदर करि ता की अंकल को मेरी रिसती बुर में अपना लोहा पेलने में आसानी हो। अंकल ने अपना अंदर नहीं पेले लंड की सुपडे को ऊपर ही ऊपर रगडने लगे। अब मुझ से सहा नहीं जारहा था।
अंदर की खुजलि और तेज होगयी।
मेरे सारे शरीर में आग लग चुकी थी। मेरी नन्ही मुनिया से गर्म हवाएं आने लगी। और उसके होंठ किसी गर्म लोहे की इंतज़ार में कांपने लगे।
"अंकल शुरू करो..." में अपनी गांड को पीछे धकेलती बोली।
"क्या...?" अंकल ने मेरी चूची टीपते पूछे।
"करो...?" मैं फूस फुसाई।
"क्या करूँ..जरा ठीक से समझाओ..." अब उनकी एक ऊँगली मेरे नाभि को छेड़ रही थी। अंकल मेरे से चूहा बिल्ली का खेल खेल रहे थे।
"अब्ब्बबब्बअ... हहहहा मेरी चूत को चोदिये अंकल..." एक बार फिर मैं मेरी गांड को उनके उफनते लंड पर दबायी। अंकल मेरो कन्धा पकड़कर एक दक्का जोर से दिए। उनका आधे से ज्यादा मेरे उसमे समा गयी।
अंकल एक और दक्का और जोरसे दिए और उनका पूरा लम्बाई मेरी टाइट चूत में बोतल की कॉर्क की तरह फस गयी।
"उम्म्म्ममममममहहा" मैं ख़ुशी से कराहि। फिर उन्हीने मुझे दना दन चोदना शुरू किये। उनका फौलादी लंड रेल इंजन पिस्टन की तरह मेरी गीली सॉकेट में अंदर बहार हो रही थी। पूरे आठ दस मिनिट जम कर चोदने के बाद "आआह्ह्ह.. स्वीटी... तुम्हरी क्या टाइट चूत है..ऑफ़ ऐसे हि जकड़ो.. मेरे लंड को...तुम्हरी माँ भी ऐसे हि जकड़ती थी ..अब तुम भी...और जोरसे.. शाबाश ..अब खलास हो रहा हु.. कहा छोडूं..." अंकल मुझे दबाकर जकड़ते पूछे।
अंदर ही छोड़ो अंकल... गिरने दो तुम्हारी अमृत बिंदु मेरी तपती बुर में..आह अब में भी खलास हो रही हूँ..." और झड़ कर निढाल हो गयी। कुछ देर दकके देकर अंकल भी अपना गर्म वीर्य रस मेरी अमृत कलश में उंढेल दिए और चिपक कर पड़े रहे।
सच में एक अच्छा चुदाई थी वह। न चाहते हुए भी मेरे मानस पटल पर शशांक भैय्या और मेरे ससुरजी की चुदाई घूम गयी।
मैं शशांक भैय्या के बारे में सोच रही थी की मेरे मन में एक बात खटकी। शशांक भैय्या जिन्होंने मेरी कुंवारा पन ली थी उसी रात मैंने भैय्या को मम्मी को लेते देखि। 'Oh My' मैं सोची यह कैसी विडम्बना है अब तक जितने भी मेरे मम्मी को लिए है वह सब मुझे लिए है। शशांक भैय्या और मा की खेल तो में अपनी आँखों से देख चुकी हूँ। मेरे नानाजी और अब प्रेम अंकल मुझे लेते कहे की वह मेरी माँ को चोदे हैं और मैं बिलकुल मेरे माँ पर गयी हूँ, खासकर मेरी लंड जकड़ने वाली बात।
मेरी माँ की चोदने वालों मे मरे पापा भी तो है। क्या कभी वह भी मुझे लेंगे...? यह बात सोचते ही मेरे सारे शरीर में में एक अनोखी लहर दौड़ गयी... कैसे होगी पापा की... क्या वह मुझे को चोदेंगे.." यह सब सोचते, सोचते मुझे कब नींद लगी मुझे ही नहीं मालूम।
सवेरे जब उठी तो मेरे बगल में अंकल नहीं थे। क्या रात में मुझे स्वप्ना आया था, मैं सोची, लेकिन मेरे जांघों में चिपुड़ी चिकना पन बता रही है की नहीं जो कुछ भी हुआ सच है।
मैं उठी जल्दी से स्नान कर कपडे पहनकर शादी की महोल मे गुल मिल गई। लंच समय अंकल मिले और मुस्कुराये में शर्म से सर झुकाली। उनहोने मुझ से मेरा मोबैल मांगी तो दिया और उन्होंने अपना। फिर मुझे दिखे ही नहीं। उस शाम मैं अपने घर के लिए निकल पड़ी।
तो दोस्तों कैसी रही मेरी एह नया दास्ताँ। आप अपना कमेंट जरूर लिखना। यह दास्ताँ यही ख़तम होती है लेकिन मेरी दास्ताँ नहीं।
एक और नया दास्ताँ साथ फिर मिलेंगे। तब तक के लिए अलविदा।
आपकी हेमा नंदीनि।
समाप्त
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