ससुरजी के साथ मेरे रंगरेलियां 01

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"वह बहु.. ऐसी शर्माओ तो तुम कितनि सुन्दर दिख रही हो..." कहते बाबूजी ने मेरे गुलाबी गाल को चिकोटी काटे और उनके नाक को मेरे नाक् से रगडते फिर से मुझे चोदने लगे। 50 की उम्र में बाबूजी में इतना रोमांस होगा मैं कल्पना भी नहीं करी। चार पांच दकके में ही मेरि बूर फिर से रिसने लगी और अब उनका लंड आसानी से अंदर बहार होने लगी। बाबूजी के वृष्ण (testis) मेरे चूतड़ों पर 'थप..थप.थप' के ठोकरे मारा रही है। सारा कमरा रोमांस से भरा है और सीत्कारों के आवाजें कमरे में गूंज रहे है।

बाबूजी के मुहं से "oh...aha..aaah.ssssfff...uff grrrr" आवाजें आ आ रही है... सारा कमरा इन आवाजेंसे गूँज रहै है। अब वह बहु जोरस इ मुझे पेलने लगे। उनकी हर चोट नेरी पेडू पर जमके लग रही है। मैं भी जोश मे आकर, मस्ती के साथ मेरी गांड उछाल उछाल कर पेलवा रहि हूँ। कुछ ही मिनटमे में दुबारा खलास होने वाली हूँ। "आअह्ह्ह्हह्ह्ह्हह...अअअ मममममआआ...बाबूजी... मैं खलास होने वाली हूँ.. और अंदर एक मारिये..हहहआ..." कही और ढीला पड गयी.. में एक बार फिर से खलास हो चुकी हूँ।

"हेमा ठहरो मैं अभी दूर हूँ.. कुछ देर और रोको... " वह कह रहे है.. लेकिन तब तक मैं फिनिश होकर निढाल हो गयी। मेरे अंदर बाबूजी अभी भी स्ट्रांग है और अपने काम चालू रखे।

जैसे ही मेरे ससुरजी समझ गए की मैं जड़ गयी हूँ वह अपना अंग निकाले और मेरे पेट पर आगये। वह अब मेरे पेट पर बैठे है। वह ऑगे बड़े और अब बाबूजी बिलकुल मेरे मम्मे के नीचे बैठे है। अब उनका अंग मेरे मस्ती के साथ थिरकती मम्मे के बीच मे है।

अपना झंडा मेरे टिट्स के बीच रख आगेपीछे होने लगे। उन्हें क्या चाहिए एहमे समझ गयी और दोनों हाथों से मी टिट्स को एक दूसरे की ओर दबायी, जिस से उनका झंडा मेरे मसितयों के बीच सैंडविच बन गयी। मेरा क्लेव्ज पूरा हमरे पहले चुदाई के रास से जिगट हो गयो। जैसे ही उन्होंने मेरे घुंडियों को मसले "आआआअ ह्ह्ह्ह.....हस्ससस्स.... बाबूजी... ममम" हर्षातिरेक में एक मीठी सीत्कार करि। बाबूजी अब मेरे चूचियों को चोदने लगे।

अब तक में एक बर फिर मी बुर को कपडे से पोंछी और कही "ओह... ससुरजी आप बहुत स्ट्रांग है.. मैं आप के चुदाई से मजा आगया... आपके बेटे भी मुझे इतनी देर तक अपने आपको रोक नहीं पाते। वह चिनाल मेरी भोसड़ी... और और भड़क रही है.. प्लीज उसकी चुदास कम करो.....आह...चोदो मुहे.. जोरसे चोदो अम्मा.. ओफ़्फ़्फ़...' कहते में उनको मेरे पेट के नीचे को खींची।

मेरे प्यारे ससुरजी मी हालत को समझ चुके और मेरे जंघोंके बीच आए। मेरे दोनों टांगों को अपने कंधेपर लिए और अपना लैंड से एक जोर का दक्का दिए। "आआह्ह्ह्ह.. वैसे ही बाबूजी.. और जोरसे..ऑफ क्या चुदाई है आपकी..." और मालूम नहीं मैं क्या क्या बकते अपने नितंब ऊपर उठा रही हूँ।

"ठीक है मेरी गुड़िया... ले अपनों ससुर का लंड अपनी रिसती चूत में" और एक और दक्का दिए और बोले.. अब ठीक है..?"

में कुछ बोली नहीं सिर्फ मेरी गांड उछाली।

बाबूजी की चुदाई से मुझे बहुत आनंद आ रही है। मैं अपनी बुर के मांस पेशियों (muscles) को टाइट करि जिस से अब उनका मुस्सल अब मेरे अंदर अब टाइट जाने लगी। "ओफ्फ.. हेमा..मै... डिअर.. क्या कसी है तेरी बुर.. कहाँ से सीखी यह सब... बहुत कम महिलाएं जनते है यह ट्रिक... शबाश.. वैसे ही कस के रखना... ओह अब मेरी भी निकलने वाली है... आअह्ह्ह'.." और बाबूजी का शरीर अकड़ने लगा। मैं समझ गयी की अब वह झड़ने वाले है।

"हाँ.. मेरे ससुरजी.. मेरे लाड़ले. चोदो अपनी बहु को जी भर कर.. लेकिन अब मैं असुरक्षित झुँ.. मेरे में नहीं झड़ना.. बहार निकल लीजिये..." कहते में उन्हें मेरे ऊपर से धकेल ने की कोशिश की। ससुरजी मुझे और जिर से जकड़ते बोले ' गभराओ नहीं बहु... मेरे नसे बंद होक 15 साल होगये है... अब में किसी की भी चोदू. उसे गर्भ नहीं ठहरता... तुम सफे रहोगी...फिर भी तुम कहो तो" कहते वह अपना लिंग बहार निकलने लगे।

झट मैं उन्हें अपने दोनों हाथ उनके बलिष्ट नितम्बों पर रख, मेरे अंदर से दबायी और बाबूजी अपना गर्म लावा मेरे वांछित बुर में उंडेलने लगे। उनके साथ हि मैं एक बर फिर अपनी क्लाइमेक्स (climax) पर पहुंछी। मेरे अमृत भांड में अपने अमृत भर कर बाबूजी मेरे ऊपर निढाल पड़े रहे और में उनके नीचे।

दोस्तों अब उसके बाद क्या हुआ यह जान ने के लिए आपको इस ससुर बहु की अनुभव का दूसरा भाग के लिए इंतज़ार करना होगा.. जिसे मैं जल्दी ही पोस्ट करुँगी। तब तक के लिए अपनी चहेती हेमा को अलविदा कहिये। इस अनुभव पर आप अपने रॉय जरूर दे।

आपकी प्यारी हेमा

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