Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereससुर और बहु हेमा की एक और मदभरी, रोमांचक अनुभव!
दोस्तों, मैं हूँ आपकी चाहती हेमा, हेमा नन्दिनी मेरे ससुरजी के साथ दूसरे मदभरी एपिसोड के साथ आपके समक्ष... उम्मीद करती हूँ की आपको यह मेरा अनुभव आनंदित करेगा। हर बार के तरह इस बार भी आपकी जो भी राय हो उसे कमेंट बॉक्स में लखकर मेरी हौसला बढ़ाये..
आपकी हेमा....
तो उस दिन बाबूजी ने मुझे जमकर चुदाई करने लगे... बाबूजी की चुदाई से मुझे बहुत आनंद आ रही है। मैं अपनी बुर के मांस पेशियों (muscles) को टाइट करि जिस से अब उनका मुस्सल मेरे अंदर अब टाइट जाने लगी। "ओफ्फ.. हेमा..मै... डिअर.. क्या कसी है तेरी बुर.. कहाँ से सीखी यह सब... बहुत कम महिलाएं जानते है यह ट्रिक... शबाश.. वैसे ही कस के रखना... ओह अब मेरी भी निकलने वाली है... आअह्ह्ह'.." और बाबूजी का शरीर अकड़ने लगा। मैं समझ गयी की अब वह झड़ने वाले है।
"हाँ.. मेरे ससुरजी.. मेरे प्यारे ससुरजी... चोदो अपनी लाड़ली बहु को जी भर के.. लेकिन अब मैं असुरक्षित हूँ.. मेरे में नहीं झड़ना.. बाहर निकाल लीजिये..." कहते में उन्हें मेरे ऊपर से धकेल ने की कोशिश की। ससुरजी मुझे और जोर से जकड़ते बोले "गभराओ नहीं बहु... मेरे नसे बंद हो कर 15 वर्ष हो गये है... अब में किसी की भी चोदू, उसे गर्भ नहीं ठहरता... तुम सेफ रहोगी...फिर भी तुम कहो तो" कहते वह अपना लिंग बाहर निकलने लगे।
झट मैं उन्हें अपने दोनों हाथ उनके बलिष्ट नितम्बों पर रख, मेरे अंदर दबायी और बाबूजी अपना गर्म लावा मेरे वांछित बुर में उंडेलने लगे। उनके साथ मैं एक बार फिर अपनी क्लाइमेक्स (climax) पर पहुंछी। मेरे अमृत भांड में अपने अमृत भर कर बाबूजी मेरे ऊपर निढाल पड़े रहे और में उनके नीचे।
दोस्तों यहाँ तक की कहानी अपने मेरे पहले एपिसोड में पड़े है। अब आगे क्या हुआ यहाँ पढ़िए.. चलो चलते है उस अनुभव की ओर।
***************************
जब मेरी आंखे खुली तो, बाबूजी मेरे टिट्स पर सर रखकर सोये पड़े है। उनके वदन पर मासूमीयत थी। मैं एक बार उन्हें प्यार से चूमि और उन्हें मेरे ऊपर से धकेली। दीवार की घड़ियाल में मैं टाइम देखि तो शाम के चार बजे थे। मैं उठी वाश करि और चाय बनाने लगी। इतने में बाबूजी भी उठगये, तैयार होकर किचन में आये।
"बाबूजी आप कहाँ जा रहे है? मोहन (मेरे पति) अभी अता ही होगा..." मैं बोली।
"मैं अभी एक घंटे में आता हूँ" वह कहे और चाय पीकर चले गए।
उस दोपहर को हुई घटना के बारे में और बाबूजी की लंड की मोटापन और लम्बाई की महसूस करते ही मेरे होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान आयी। मैं संतृप्त थी कि, मैने बाबूजी को संतुष्ट किया। इतने में मोहन, मेरे पति का फ़ोन आया कहे की वह सात बजे तक आजायेंगे।
"जल्दी आईये गा.. बाबूजी आये है... " मैं कही।
शाम के छह बजे तक बाबूजी वापस आगये। आते ही वह अपने बेटे का बारे में पूछे। "वह सात बजे तक आयेंगे बाबूजी.. आपको रुकने के लये कहे है" में बोली।
बाबूजी ने मुझे एक जूट बैग थमाते बोले "हेमा यह तुम्हारे लीये... एक छोटासा गिफ्ट मेरे तरफ से। जो तुमने मुझे एक नया जीवन दिया है..उसके लिए"
"क्या है बाबूजी इसमें...?" मैं पूछी जूट बैग लेकर अंदर झांकी। अंदर एक और बैग था जिस पर "कलानिकेतन" का प्रिंट है। कलानिकेतन इस शहर का एक मशहूर डिज़ाइनर साड़ी एंड ज्वेल्लरी सेण्टर है।
जिसमे एक कार्डबोर्ड बॉक्स के साथ एक ज्वेल्लरी बॉक्स भी थी। अंदर एक बहुत ही सुन्दर गगरा चोली और एक सोने की नेकलेस, जो नीलम से और अमेरिकन diamond से जड़ी है थी साथ ही कान के बाले भी थी।
"बाबूजी यह सब क्यों...?" में हिचकिचते बोली।
"ओह! हेमा जो तुमने किया है उसके सामने यह कुछ भी नहीं, तुमने तो मुझ एक नया जीवन ही दिया है..." कहकर उनहोने मुझे अपने अलिंगन मे लिए। उनके हाथ मेरे पतले कमर के गिर्द लिपट गए है। अपने से चिपका कर मेरे गलों को चूमे। उनके हाथ मेरे कमर से किसक कर नीचे मेरे नितम्बों को दबाये और फिर उन BUNS पर अपने हाथ फेरने लगे। मैं एक कबूतर की तरह उनके आगोश में चिपकी रही।
"Oh! बाबूजी आप कितने अच्छे हैं" कह कर मैंने भी उनके गालों को चूमि और उनके बाँहों से निकली "और रात का खाना बनाने में जुट गयी। हमरा किचन और डाइनिंग combine है। बाबूजी वहीँ बैठ कर अपने बेटे की, उनकी नौकरी की और बहुत से बाते करने लगे और मुझे काम करते देखने लगे। आधे घंटे में खाना हो जायेगा बाबूजी, तब हम बैठ कर बातें करेंगे और मैं अपने काम में बिजी हो गयी।
जब तक मैं खाना बना रहि थी, बाबूजी बातें करते रहें है। उनकी पहली पत्नी के बारे में, या उन्हें कैसे मजे देती थी और उसका फोर प्ले कैसी थी वगैरा वगैरा। फिर उनकी बाते उनकी बड़ी बेटी संगीता के बारे में होने लगी। संगीता उनकी कैसे देख भाल करती थी, कैसे उन्हें चाहती थी, "मैं संगीता को बहुत चाहता हूँ, वह बलकुल अपनी माँ पे गयी है, वही कद काट, वही सुंदरता, और बाते करने का अंदाज.." और मेरे ससुरजी अपनी बेटी संगीता को बहुत मानते है। संगीता को अपनी पहली पत्नी से तुलना करने लगे। हमेशा उनका गुण गान करने से नहीं थक रहे है।
खाना बनाना ख़तम कर के में हाथ धोये और बाबूजी के पास गयी। उन्होंने मुझे वही अपने गोद में खींचे और मेरे गलों की चूमने और चुभलाने लगे। उनके हाथ मेरे स्तन को ब्लाउज के ऊपर से ही खिलवाड़ कर रहे हैं।
"क्यों बाबूजी दिल नहीं भरा...?" मैं हँसते हुए पूछी।
"इतनी जल्दी...? दस साल का भूखा हूँ..?" कहे और मेरे गलों को काटने की कोशिश कर रहे हैं। "बाबूजी.... जोरसे मत काटियेगा... गांठ पड जायेंगे...आपके बेटा कभी भी आ जायेंगे" मैं अपने बाहें उनके गले में डालते बोली। फिर भी उन्होंने मेरे गलों को हल्का सा काटे और पूछे "हेमा यह बताओ मोहन बेड पर कैसा है..?"
"ओह... पूछो मत, बहुत अच्छे है, मुझे बहुत चाहते है। आप ही की तरह उन्हें भी फोरप्ले बहुत पसंद है। उनके चोट मुझे अच्छे लागते है। एक एक चोट ऐसा देते है की मेरो कमर हिल जाति है। बस एक हि कमी है, वह अपने हार्डनेस (कड़कपन) ज्यादा देर टिका नहीं पाते आप जैसा " में बाबूजी के दांतो से मेरे गलों को बचाते बोली।
"वह सीख जायेगा... अभी बच्चा है.. अनुभव से सीखेगा...अभी तो वह सिर्फ 25 का ही है, और तुम इतनी सेक्सी हो..तुम्हारी यह नितम्बें, और ऐसे रस भरी संतरे" मेरी बूब्स पर हाथ फेरते बोले "देख कर अच्छे अच्छों का गिर जाता है.. बिचारा वह क्या..."
"क्या आपका भी गिर जाता था...?" मैं उनकी बातों से खिल खिलाकर हँसते पूछी।
"क्यों..? मैं आदमी नहीं हूँ क्या...?" एक क्षण रुके फिर बोले "तुम्हारी जैसा लंड को जकड़ना तो बहुत कम औरतें जानते है। तुम ऐसे जकड़ते हो की मुझे तुम्हारी सासु माँ की याद आयी। तुम भी बिलकुल उन्ही के तरह जकड़ती हो। सच बहुत मज़ा आया तुम्हारी इस फूली चूत का.." और मेरी साड़ी के ऊपर से ही मेरी बुर को जकड़े।
"क्या सच् बाबूजी..?" मैं उनके कंधे पर हाथ रख दबाती पूछी।
"हाँ.. मेरी प्यारी बहु... बस मैं तो फ़िदा हो गया" और जोरसे मेरे चूची मींजे।
"ससससस....हहम्म्म्म... बाबूजी' मैं दर्द से करहि।"
उनकी बातें, उनकी हरकतों से मैं फिर गर्माने लगी और मेरी फिर से गीली होने लगी। वहां पर चुदास के कीड़े रेंगने लगे। "तारीफ़ का धन्यवाद् बाबूजी।..आप बहुत अच्छे है" और मैंने उन्हें एक फ्रेंच किस दिया और उनके होठों को चूसने लगी।
"थैंक यू डिअर.... मैं एक बात पूछू" मेरे ससुरजी का एक हाथ मेरे गांड के मस्तियों को मसल रहें है और दूसरा हाथ मेरी दुददुवों के साथ खिलवाड़ कर रहे है।
"पूछो बाबूजी... अब आप जो चाहे पूछ सकते हैं और ले सकते है" और मैंने उन्हें मस्ती से देखते आँख मारी।
"तुम बहुत सेक्सी और गर्म लड़की हो।.. इसी लिए पूछ रहा हूँ... अगर पसंद नहीं तो भूल जाना..." वह बोले।
"आप पूछिए तो सही... पसंद, ना पसंद की बात बाद में होगा..."
"मैं तुम्हारा और मोहन का खेल देखना चाहता हूँ... यह मेरी बहुत ख्वाईश हैं की मैं किसी को करवाते देखूं.. लेकिन..." वह रुक गए।
बाबूजी के ख्वाईश सुनकर मैं अचम्भे में रह गयी। लेकिन जल्दी ही अपने आपको सँभल गयी और गुद गुदा मन से बोली "...तो आप पीपिंग टॉम बनेंगे... ठीक है.. आज रात रुक जाओ बाबूजी अच्छा ब्लू फिल्म की लाइव शो देख सकते है" में बोली। मेरे सरे शरीर में एक अनोखी लहर दौड़ रही है की, मेरे ससुरजो मुझे अपने बेटे से चुदाते देखेंगे। इस ख्याल से ही मेरे बुर की खुजली दस गुणा बढ़ गयी है।
"धन्यवाद् हेमा लेकिन आज नहीं फिर कभी...ओके...ओके..."
"Ooooooo...K... और कुछ....?" में पूछी।
"बस एक बार इन दुद्दुओं को पीने दो... और यहाँ की रस को चखने दो..." और उन्होंने मेरी चूचियों को एक हाथ से दबाये और उनके दूसरा हाथ मेरे जांघों के बीच घुसकर मेरे बुर की उभार को जकड़े।
"जो दिल में आये लेलो.. आप मेरे प्यारे ससुरजी हैं " कहते मैंने अपना हाथ उनके कड़क पन पर रखी और पैंट के ऊपर से उसे दबायी। फिर मैं उनकी पैंट खोलने लगी। कुछ ही पलों में बाबूजी कमर के नीचे नग्न होगये। उनके ऊपरी शरीर पर उनकी शर्ट है। और उनका मर्दानगी शर्ट के नीचे से आंख मुचौली खेल रही है। बाबूजी ने मेरी साड़ी खींच डाले, अब मैं सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज में हूँ।
"हेमा डार्लिंग मेरी प्यारी बहु.. सच पूछो तो तुमने मुझ पर जादू किया। तुम्हारी इन मदभरी संतरे, और इस रसीली बुर ने मुझे पागल कर दिए। कहते उन्हीने अपना हाथ मेरे पेटीकोट अंदर दाल दिए। मैंने पेटीकोट को ऊपर अपने चूतडों के ऊपर उठायी और अपने जंघे पूरा खोलदी।
"अरे हेमा।.. तुमने यह बाल कब साफ किया है? मेरी सफाचट चूत के अंदर एक ऊँगली घुसते पूछे। जब आप आज शाम को बहार गए ते थो मैंने अपने बाल साफ करि थी।
ससुरजी मेरी रिसती बुर चाटने लगे।... कुछ देर चाटने बाद वह पूछे.. "हेमा मैं डियर कैसी है...?"
"पूछो मत मेरे प्यारे ससुरजी.... आपके खुरदरे जाभ से मेरे सारे बदन में आग सी लगी है...आआह्ह.. देखो वह कैसे उभर रहे है दबाओ... और जोर से दड़बाईये बाबूजी.. आज कल उनमे बहुत ठीस उठ रही है.. उस ठीस को बुझाओ बाबूजी...प्लीज्.. चलाइये आपका जीभ उनपर... Aaaasssssshhhh... चूसो अपनी बहु की चूची को... मीजो..और जोरसे..हाँ...वैसे ही...सच कितना अनोखा मजा दे रहे हो बाबूजी आप... ओफ्फोऊ क्या मस्ती है.. बाबूजी अपने तो मुझ पर जादू कर दिए" कहते मैं उनके सर को मेरे बूब्स पर दबा रही हूँ। वह भी जोश इ आकर मेरे गेंदों के साथ खेलते, दबाते, चुभलाते मजा ले रहे है और मुझे मज़ा दे रहे है।
देखते ही देखते मेरी चूत गीली हो गयी और अब बाबूजी ने दो उँगलियाँ अंदर तक डाल कर फिंगर फ़क करने लगे। तब तक में इतना उत्तेजित होगयी थी की अब मेरे से संभाला नहीं जा रहा है, "बाबूजी अब सहा नहीं जाता... अपनी बहुको जी भर कर चोदो।.. अब बर्दास्त नहीं होता यह खुजली... पूरा अंदर पेलो... अपनी बहु की गांड मारो.. आपका तो मोहन से भी टाइट है..." मैं मस्ती मे कही और में वहीँ डाइनिंग टेबल पर चित लेटी; लहंगा कमर तक उठा और दोनों टाँगे पूरा खोल दी और बोली "आवो अपनी बहु के खिले के दरवाजे खुल गयी है... अपना सोल्जर अंदर ड़ालकर हमला करो..." कह कर मैं बाबूजी के लंड पकड़ कर मेरी चुदासी बुर पर रगड़ने लगी।
"हेमा मैं तुम्हे बिठाकर चोदना चाहता हूँ।"
"कैसे भी करो.... पहले लंड को अंदर डालो, लिटा के चोदो, बिठाके चोदो लेकिन चोदो या झुका के लेकिन चोदो।" मैं आग में तड़पती बोली।
ससुरजी ने अपना मुस्सल मेरे अंदर झड़ तक घुसा दिए और बोले "तुम्हारे टाँगे मेरे कमर के गिर्द लिपटाओ" में वैसे ही करि और उन्होंने मुझे उठाकर नजदीक पड़ी राकिंग (rocking) कुर्सी पर ले गए, खुद बैठे और मुझे अपने गोद लेकर कुर्सी पर बैठे और राकिंग करने लगे। मैं उनके लंड पर बैठ कर राकिंग करने लगी। न जाने क्यों मैं अब जल्दी झड़ने वाली हूँ।
यह बात मैं उनसे बोली "बाबूजी, जल्दी झाड़ो आपके गर्म लावा से मेरी बुर को भरदो और उसे ठंडा करो" कहते मैंने उनके सर को मेरे बूब्स पर दबायी और मेरी बुर की मांस पेशियॉं को उनके डंडे के गिर्द टाइट कर जकड़ी।
"आआह... हेमा.. मैं सर्ग में हूँ,मेरी प्यारी बहु तुमने फिर से मेरी डंडे को जकड़ी... आअह्ह्ह्हह मेरा ख़तम होने वाला है" उनके आंखे मूंदने लगे। उनकी मुख पर एक खुशी की लहर दिखाई दी।
"आजाओ मेरी चूत उसका इंतज़ार कर रही है" और मैंने अपने चूतड़ों को ऊपर नीचे करने लगी। और बाबूजी का मेरे उसमे गिरने लगा..आह कितना अच्छा है उनका गर्म वीर्य मेरे में ठंडक पहुंचते।
मेरे में खलास होते उन्होंने अपने आंखे मूँद ली जैसे के स्वर्ग में है।
"ससुरजी.. मैं एक बात पूछूं...?" में उनके आँखों को चूमते पूछी।
"हाँ.. हाँ.. हेमा क्यों न.. पूछो... क्या पूछना चाहती हो... अब तो तुम मेरा लाइफ हो.. यू आर यन एंजेल।.. तुम तो जन्नत की परि हो.. तुम्हे कुछ चहिये...?"
"नहीं.. मुझे कुछ नहिं चाहिए... सिर्फ आपका संतोष.. संतृप्ति 11111111111111111111111111111111111111111111111111111111111111और आनंद... वादा करो मेरे पूछने पर आप नाराज़ नहीं होंगे...और सच बोलोगे...."
"तुम्हारी कसम और तुम्हारी इस मस्ती भरी फ़क होल (fuck hole) की कसम.... मैं तुमसे नाराज नहीं होऊंगा। मेरे देवता पर मैं कैसे नाराज हो सकता हूँ..." और मेरे आँखों में झाँकने लगे।
"आप...आप...." मैं रुकी। "पूछो हेमा.. संकोच मत करो... बोलो क्या पूछ रही थी...?"
"आप मुझे लेते हुए... संगीता के बारे में सोच रहे है न...?" संगीता उनकी पहली पत्नी की बेटी है। वह मेरे से कोई एक साल बड़ी है और दो साल पहले उसकी शादी हो चुकी है और अब वह एक बच्चेकी माँ है।
मेरे ससुरजी ने कुछ क्षण मेरे आंखों मे देखते रहे और फिर अपना सर झुका लिए।
"आपके राज मुझे मालूम हुआ... इस लिए बुरा मत मानिये बाबूजी... जैसा की मैंने कहा है मुझे आपकी ख़ुशी चाहिए... आप तो इस sex से बहुत सालों से वंचित थे, आप संगीता के बारे में इतना बात करना.. उसे चाहना.. और नाम लेते ही आप की आंखोमे जो चमक बताती है की आप उसकी, मेरी ननद को बहुत चाहते है। यह चमक तो तभी सम्भव है की तब आप उन्हें दिलो जान से चाहते हो तो..."
"हाँ..." उन्होंने मान ली "वह बिलकुल मेरी पत्नी, अपनी माँ पे गयी है। एक दिन में अनजाने में ही उसे नग्न देख लिया जब वह कपडे बड़ल रही थी। 'गलत...' मैं सोचा लेकिन, में hypnotized आदमी की तरह बुत बनकर उसे कपडे बदलते देखता रहा। उसके बाद दिन रत उसकी सूरत, और बदन मेरे आँखों के सामने.. हमेशा मेरी पत्नी की याद दिलाते...
देखते ही देखते में उसे चाहने लगा हु, सच शायद तुम्हे बुरा लग रहा होगा, लेकिन जो सच है उसे मैं तुम्हारे से छुपा नहीं सकता। जब तुम्हारी दूसरी सासुमा मुझे हमारे कमरे में भी सोने नहीं देती तो मजबूरन मैं अपनी पहली पत्नी के बारे में सोच सोच कर मूठ मारता था। पत्नीके बारे में सोचते सोचते अब मैं संगीता के बारे में सोचने लग गया हु। उसे सोचते मूठ मारने में मुझे अपने पत्नी को लिया जैसा भावना होती थी।
अब जब चांस मिले तब मैं संगीता के बारे में सोच कर मूठ मारकर अपने आप को संतृप्त करता हूँ। उस दिन तुम्हरे घर में भी... तुम वहां आ सकती हो यह बात मेरे दिमाग से निकल गयी और तुमने मुझे...."
मैं उनके मथा और आँखों को प्यार से चूमि I "डोंट फील गिल्टी बाबूजी... यह तो हर जगह लाजमी है... अपनों के बारे में सोचना जोई गलती नहीं... उदास न हो... में आपको बुरा नहीं मान रही हूँ...कम ऑन...चीयर उप.. चलो थोडासा हंस दों तो देखे मेरे प्यारे बाबूजी की सूरत कैसी होगी...चलो..हंसो...' और मैं उनहे गुद गुदाने लगी। बाबूजी खिल खिलाकर हांसे।
गुड अब अच्छे लग रहे हो.. चलो मुझे उठने दो.. तुम्हारे बेटे का आने का समय हो गया है" और मैं उनकी आँखों को एक बार और चूमि और उनके गोद से उतरी।
फिर हम दोनों ने फेश हुए और मेरे पति के आने तक TV के सामने बैठे। मैंने मोहन को बाबूजी के लाये घागरा चोलीऔर नेकलेस बताई। और उनके सामने हि पहनकर दोनों को खुश करि। खास कर बाबूजी को.. मुझे उस कपड़ों में और उस नेकलेस पहने देख कर बाबूजी के आंखे चमक उठी। मैं मेरे मन मे कुछ प्लान बनाते दोनों को खाना परोसी और फिर.. बाबूजी चले गए।
दोस्तों ससुरजी के साथ यह मेरा दूसरा एपिसोड कैसा लगा.. अपना कॉमेंट जरूर देना.. जल्दी ही ससुरजी के साथ मेरा तीसरा.. एपिसोड में फिर मिलेंगे।
तब तक के लिए अलविदा।
आपकी चाहती हेमा नंदिनी
-x-