लॉकडाउन

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लॉकडाउन में अकेली पड़ोसन के साथ हुये अनुभव
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लॉकडाउन

16 नम्बर 2021

कहानी की शुरुआत 27 मार्च 2020 को अचानक लॉकडाउन लगने से हुई। मेरी पत्नी अपने मायके गई हुई थी। लॉकडाउन लग जाने के कारण वह वही फंस गयी। मैं घर में अकेला था। मुझे खाना बनाना नहीं आता था, रसोई मेरे लिये अनजानी जगह थी जहां मैं कभी नहीं जाता था। पत्नी की जबर्दस्ती के कारण सिर्फ चाय बनाना सीख पाया था सो मेरी हालत बहुत ज्यादा खराब होने वाली थी। सामान्य अवस्था में तो मैं पत्नी के बाहर जाने पर बाहर से खाना मँगा कर खा लेता था लेकिन इस लॉकडाउन में तो सब कुछ बंद हो गया था सो मैं क्या करुं यह मेरी समझ में नहीं आ रहा था।

पहले लगा कि कुछ ही दिनों की ही तो बात है काट लेते है, लेकिन फिर समझ में आया कि दो-चार दिनों की बात नहीं है कम से कम 15 दिन तो ऐसे ही रहना पड़ेगा। पहले दिन तो किचन में पड़ी ब्रेड़ से काम चल गया। वह भी दो दिन में खत्म हो गयी। अब पत्नी से फोन पर पुछ कर दाल चावल बनाने की कोशिश की। पहली कोशिश का स्वाद बहुत बेकार था लेकिन दूसरी बार फोन पर विडियों कॉल करके पत्नी नें सही तरह से सही मात्रा में पानी, मसाले वगैरहा डलवा कर खाने की समस्या का फौरी तौर पर निदान कर दिया था।

चौथे दिन सुबह जब फ्लैट की घंटी बजी तो समझ में नहीं आया कि इस समय कौन आ सकता है, जा कर दरवाजा खोला तो देखा कि पड़ोस के फ्लैट में रहने वाली मिसेज गुप्ता खड़ी थी मैने उन्हें अन्दर आने के लिये रास्ता दिया और दरवाजा बंद करके उन के साथ ड्राईगरुम में आ गया, उन्हें बैठने को कह कर मैं भी उन के सामने बैठ गया। उन से पुछा कि सब सही तो है, तो वह बोली कि यह टूर पर गये थे वही पर फंस गये है। मैं घर में अकेली हूँ तथा दूध खत्म हो गया है। समझ नहीं आ रहा कि क्या करुँ? फिर याद आया कि आप से पुछती हूँ। मैनें कहा कि दूध तो मेरे यहां भी खत्म हो गया है, मैनें उन्हें बताया कि आज समाचार में सुना था कि सब्जी और दूध की दूकानें खोलने की परमीशन दे दी है। लेकिन इस डर के माहौल में घर से निकलने में बड़ा डर लग रहा है। ऐसी हालत में कौन बाहर जाना चाहेगा? उन्होनें सहमति में सर हिलाया। मैनें उनसे कहा कि मैं उन को इस के बारें में बताता हूँ। मेरी बात सुन कर वह वापस चली गयी। मुझे बुरा तो लगा कि मैं उन की कोई सहायता नहीं कर सका, लेकिन और कोई चारा भी नहीं था।

लेकिन मुझे पता था कि अगर चाय पीनी है तो दूध तो लाना ही पड़ेगा। यही सोच कर मैं मास्क लगा कर डरते-डरते बाजार के लिये निकल पड़ा। रास्तें में कोई नहीं मिला। दूध की दूकान पर देखा कि दो-तीन लोग दूर-दूर खड़ें थे। अपना नंबर आने पर मैनें चार लिटर दूध लिया और ब्रेड के बारें में पुछा तो जबाव मिला की है, दो बड़ी ब्रेड ले कर वापस चल दिया। घर आ कर सारें कपड़ें बदलें और नहानें चला गया। नहा कर आया तो दूध ले कर मिसेज गुप्ता के फ्लैट पर जा कर उन की घंटी बजाई। दरवाजा खुलने पर उन्हें दूध थमा कर कहा कि अभी इस से काम चलायें, अगर किसी और चीज की आवश्यकता हो तो मुझे बता दिजियेगा। वह बोली कि दूध के पैसे तो लेते जाईयें। मैं यह सुन कर रुक गया तो वह पैसे लेने चली गयी। वापस आ कर उन्होंनें पांच सौ का नोट मुझे थमा कर कहा कि आप जब भी अपने लिये दूध लेने जाये तो मेरे लिये भी लेते आईयेगा। मैं पैसें ले कर वापस आ गया। घर आ कर मैनें अपने लिये चाय बनायी और ब्रेड सेक कर नाश्ता किया।

कुछ देर आराम करने के बाद दोपहर के खाने के लिये चिन्ता करने लगा। सब्जी नहीं मिली थी। सब्जी मुझें बनानी आती भी नहीं थी। पत्नी को परेशान मैं करना नहीं चाहता था। तभी घंटी की आवाज नें मेरी तंद्रा तोड़ी, जा कर दरवाजा खोला तो देखा कि मिसेज गुप्ता थी उन के हाथ में सब्जी से भरी कटोरी थी वह बोली कि मुझे पता है आप को खाना बनाना नहीं आता सो सब्जी ले कर आयी हूं। ब्रेड के साथ खा लिजियेगा। मैनें उन्हें सब्जी के लिये धन्यवाद कहा और अंदर आने को कहा तो वह बोली कि नहीं, फिर किसी समय आऊंगी, अभी काफी काम पड़ें हैं। मैनें कुछ नहीं कहा और सब्जी ले ली। सब्जी अच्छी बनी थी सो ब्रेड सब्जी से खा ली। अब शाम के लिये इंतजाम करना था, तो सोचा कि आज फिर से दाल चावल बना कर देखते है।

यह सोच कर पत्नी को फोन किया कि क्या वह कोई सहायता कर सकती है तो उस ने कहा कि दाल निकाल कर उसे साफ कर लो फिर पानी में भिगों दो। उस के कहें अनुसार दाल निकाल कर साफ की और उस के बाद उसे पानी में भिगोंनें डाल दिया। कुछ देर बाद फिर पत्नी को फोन किया और उस के कहे अनुसार कुकर में दाल डाल कर पानी के साथ मसालें डाल कर ढक्कन लगा कर गैस पर दाल बनाने रख दी। अब चावल का नंबर था सो उसे भी निकाल कर साफ किया और पत्नी के कहे अनुसार नाप कर पानी में भिगों कर रख दिया। फिर दूसरे कुकर में चावल भी बनने के लिये रख दिये। कुछ देर बाद दाल और चावल बन कर तैयार हो गये। इस काम में शाम बीत गयी थी।

कुछ देर आराम कर के दाल चावल प्लेट में ले कर खाने बैठा ही था कि फिर से घंटी बजी। दरवाजा खोला तो देखा कि मिसेज गुप्ता खड़ी थी बोली कि शाम को खाने के लिये कुछ है? मैनें उन्हें बताया कि मैनें तो दाल चावल बना लिये है तो वह आश्चर्य से बोली कि आप को कब बनाना आ गया तो मैनें हंस कर कहा कि आज ही सीखा है। फिर मैनें उन्हें बताया कि पत्नी से फोन पर पुछ-पुछ कर बनाये हैं, अभी चखे नहीं है इस लिये स्वाद के बारें में कुछ नहीं कह सकता लेकिन वह चाहे तो चख सकती है। यह कह कर मैनें उन्हें चावल चम्मच में डाल कर पकड़ा दिये। उन्होनें उन्हें मुह में डाला और कुछ देर बाद बोली कि सही बनें है। काम तो चल ही जायेगा। मैनें कहा कि रोज बनानें पड़ेगें तो कुछ दिन बाद अच्छें बनानें आ ही जायेगें। वह यह सुन कर हंसी और बोली कि अब मुझे आप के खाने की चिन्ता नहीं करनी पड़ेगी, नहीं तो लग रहा था कि आप का क्या होगा?

मैनें उन से कहा कि आप तो है ही, आप को परेशान कर लेता। वह बोली कि मैं तो वैसे ही आपकी चिन्ता कर रही थी क्योकि आप की पत्नी नें मुझे बताया था कि इन को तो चाय के सिवा कुछ नहीं आता। इस कारण से लग रहा था कि इस समय तो आप को बड़ी परेशानी होगी। मैनें कहा कि परेशानी का हल ढुढ़नें की आदत पुरानी है, कुछ न कुछ उपाय तो कर ही लेता। फिर आप तो थी ही। आप से ही खाना बनाना सीख लेता। वह बोली कि मैं सीखानें की बजाए बना कर खिलाना ज्यादा अच्छा कर पाती। मैनें मजाक में कहा कि सिखने वाले गुरु के पीछे पड़ कर सीख ही लेते है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि कल जब दूध लेने जाये तो अगर सब्जी मिल रही हो तो लेते आये, जो भी मिल रहा हो उसे ले आइयेगा। उसी से काम चला लेगें।

यह कह कर वह चली गयी। मैं भी वापस आ कर दाल-चावल खाने बैठ गया, बड़ी जोर की भुख लग रही थी। अपने हाथ के दाल-चावल ज्यादा बुरें नहीं लग रहे थे। तीसरी बार के हिसाब से सही ही बने थे। खाने के बाद पत्नी का फोन आया कि दाल-चावल कैसे बने थे तो उसे बताया कि सही थे काम चल जायेगा। तो वह बोली कि कल सब्जी मिले तो ले आना, उसे भी ऐसे ही बनवा दूंगी।

मैनें उस से कहा कि यह सब तो सही है लेकिन रात काटना मुश्किल है तो वह बोली कि मेरे साथ भी यही है। दिन तो कट जाता है लेकिन रात मुश्किल से कटती है। ऐसी ही बातें कर के हम नें फोन बंद कर दिया। हमारी बातों नें मेरे मन में उत्तेजना बढ़ा दी, कुछ किया तो नहीं जा सकता था सो टीवी पर पोर्न फिल्म लगा कर उसे देखने बैठ गया। देखने के दौरान उत्तेजना बहुत बढ़ गयी तो हस्तमैथून कर के उसे शान्त किया। अब नींद आ रही थी सो टीवी बंद कर के सोनें के लिये लेट गया। लेटते ही नींद आ गयी।

अचानक दरवाजे की घंटी की आवाज से नींद खुली, देखा तो रात के 1 बज रहे थे। कपड़ें डाल कर दरवाजा खोला तो देखा कि मिसेज गुप्ता खड़ी थी, उनके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था वह जल्दी से अंदर आ गयी और बोली कि दरवाजा बंद कर ले। मैनें दरवाजा बंद किया और उन्हें बैठने को कहा वह डरी हुई सी लग रही थी सो उन्हें किचन से गिलास में पानी ला कर दिया। पानी पी कर उन की सांस आयी और वह बोली कि मुझे अपने घर में डरवानी सी चीज दिखायी दी है। इस कारण से ना चाहते हुये भी मुझे आप को जगाना पड़ा। इस पर मैनें कहा कि कोई बात नहीं है। आप थोड़ा आराम कर ले फिर आप के घर चल कर देखते है कि क्या बात है तो वह बोली कि मैं अभी वहां नहीं जाऊंगी, दरवाजे पर ताला लगा कर आयी हूँ।

उन की ऐसी हालत देख कर मैं भी बड़ा परेशान था। रात को किसी औरत का दूसरे के घर में होना सामान्य बात नही थी। वह कांप सी रही थी मैनें उन से पुछा कि चाय पीयेगी तो उन्होंनें हां में सर हिलाया। मैं उठ कर चाय बनाने के लिये किचन में चला गया। चाय ले कर आया तो वह वैसी ही अवस्था में बैठी थी। उन के हाथ में चाय का कप दे कर कहा कि आप यहीं पर आराम कर ले सुबह देखेगें। वह बोली कि मुझे बहुत डर लग रहा है। मैनें उन के पास जा कर उन के कंधें थपथपायें और उन की बगल में बैठ गया। वह चुपचाप चाय पीती रही। चाय पीने के बाद मैनें उन्हें कहा कि वह कमरें में लेट जाये और अंदर से बंद कर ले मैं यही बाहर सो जाता हूं तो वह कुछ नहीं बोली और कमरें में चली गयी। दरवाजा बंद करने की आवाज भी आयी तो मैं वही दीवान पर लेट गया।

मुझे जोर से नींद आ रही थी लेकिन दिमाग उन की हालत देख कर परेशान था। कुछ देर के लिये आंख लगी थी कि दरवाजा खुलने की आवाज आयी और वह मेरे पास आ कर खड़ी हो गयी और बोली कि मुझे वहां पर भी डर लग रहा है आप भी वहां पर आ कर सो जाये। मैं सोच रहा था कि आज की रात कुछ ऐसा होगा जो मेरी पुरी जिन्दगी पर असर डालेगा। मैं इस बात से बचना चाहता था लेकिन वह मेरा हाथ पकड़ कर कमरें में ले गयी। तब मैनें ध्यान दिया कि वह मेक्सी पहने हुई थी।

मैं भी जल्दी में बाक्सर ही पहन पाया था। बेड पर आ कर वह लेट गयी और मैं भी दूसरें किनारे की तरफ लेट गया। उन के साथ एक बिस्तर पर लेटने में मुझे संकोच हो रहा था लेकिन इस समय कुछ किया नहीं जा सकता था। कुछ देर बाद वह चीख कर मुझ से लिपट गयी। वह थर थर कांप रही थी। मैनें उन्हें अपने से अलग किया और उन से पुछा कि वह डर क्यों रही है तो वह कुछ नहीं बोली लेकिन उन का कांपना बंद नहीं हुआ। डर के कारण वह पसीने से नहा गयी थी।

मैनें उन्हें अपने पास किया और उन को अपने से लिपटा कर पुछा कि क्या हुआ है? तो वह कुछ नहीं बोली, कुछ देर बाद उन्होनें कहा कि मैने कुछ ऐसा देखा है कि उसे याद करते ही मुझे डर लगने लगता है। मैनें उन्हें कस कर अपने से चिपका लिया, इस से उन का कांपना कुछ कम हुआ। उन का डर तो कम हो गया लेकिन मुझे जो डर था वह हो रहा था उन के शरीर की गर्मी से मेरे शरीर की गर्मी बढ़ रही थी। दो जवान शरीर एक दूसरे से चिपके हो तो जो हो सकता है वही हो रहा था। उन के मेरे साथ चिपकने के बाद मुझे पता चला कि वह मेक्सी के नीचे कुछ भी नहीं पहने हुये थी। शायद मेरी तरह ही सोने से पहले अंतः वस्त्र उतार देती होगी।

सारे उतार चढ़ाव मेरे शरीर पर अनुभव हो रहे थे। भरे पुष्ट उरोज और उन के तने कुचाग्र मेरी छाती में चुभ रहे थे। उन के चुभने के कारण वासना भरी उत्तेजना शरीर में भरती जा रही थी। मतिष्क इसे रोकने का प्रयास कर रहा था लेकिन शरीर के अंग कुछ और ही कर रहे थे। खुन का बहाव मेरी जांघों के बीच बढ़ गया था। सारा शरीर गर्म हो रहा था। कान भी गर्म हो गये थे। तभी उन के हाथ मेरे शरीर पर कस गये और हम दोनों के शरीर के बीच में दूरी खत्म हो गयी। अब तो वासना की आग पुरी तरह से लग गयी। उन के होठं मेरे होठों से चुपक गये और उन का रस पीने लगे। फिर मेरी जीभ उन के मुंह में जा कर अठखेलियां करने लगी। दोनों नें एक दूसरें के चेहरे को चुम-चुम कर गीला कर दिया। दोनों पर एक अलग ही तरह का नशा सा छा गया था, उस के कारण और कुछ सोचना समझना, दिखना बंद हो गया था।

मेरे होठ उन की गरदन से होते हुये वक्षस्थल तक आ गये। हाथ मेक्सी के उपर से ही उरोजों को सहलाने और मसलने लगे। इस के कारण वह मुह से आहहहहहहहहहह उहहहहहहहहहहह उईईईईईईईईईईईई की आवाज निकाल रही थी। हम दोनों इस खेल के पुराने खिलाड़ी थे। सो खेल को पुरी मस्ती से खेलनें लगें। मेरे हाथ उन के पिछवाड़ें के उभारों को सहलाते हुये उन की गहराई में समा गये। इस से वह कराहने लगी। अब हम दोनों को अपने कपड़ें अवरोध से लग रहे थे सो दोनों नें अपने कपड़ें उतार दिये। उन्होनें मेक्सी उतार दी और मैनें टीशर्ट और बाक्सर उतार दिया।

दोनों बिना कपड़ों के होने के बाद एक-दूसरे के शरीर का अन्वेष्ण करने लगे। फिर एक दूसरे के अंगों का मर्दन शुरु हुआ और कराहट की आवाज कमरें में भर गयी। दोनों एक आदिम ज्वाला में जल रहे थे। मैनें उन के कुचाग्रों को मुह में ले कर जोर से पीना शुरु किया तो वह मेरी पीठ में अपने नाखुन गढ़ानें लगी। पीठ पर नाखुनों के निशानों की बाढ़ सी आ गयी। मेरा हाथ उन की जांघों के मघ्य की गहराई में जा कर उस के अंदर प्रवेश कर गया वहां उसे कोई प्रतिरोघ का सामना नहीं करना पड़ा।

कुछ देर अन्दर बाहर करने के बाद लगा कि अब रुकना बेकार है तो मैं उन की जांघों के मध्य बैठ गया और अपने लिंग को उन की योनि की पखुडियों के मध्य लगा दिया वहां इतनी नमी थी कि लिंग को अंदर जाने में कोई रुकावट नहीं हुई जब वह पुरा समा गया तब आह की आवाज उन के मुह से निकली। मैनें अपने कुल्हें ऊपर उठा कर पुरे जोर से धक्का दिया और फिर धक्का देने की प्रतियोगिता सी शुरु हो गयी ऊपर से मैं और नीचे से वह धक्कें लगा रही थी। इन धक्कों की गति बहुत अधिक थी। दोनों एक दूसरे को अपने में समा लेना चाहते थे। कुछ देर बाद करवट बदल कर वह मेरे ऊपर आ गयी और उन के कुल्हों की मार मेरी कमर पर पड़ने लगी। उन की गति बहुत तेज थी उस में बहुत शक्ति थी।

कुछ देर में मेरी कमर दर्द करने लगी। कमरा फचाफच की आवाजों से भर गया था। गरमी थी और पसीने से दोनों के बदन नहा गये थे। चरम पर पहुंचने में देर थी सो फिर करवट बदली और वह पेट के बल मेरे नीचे थी और में उन के कुल्हों के पीछे से वार कर रहा था उन के कुल्हें मेरे वार से पिचक से रहे थे वह कराह रही थी। लेकिन कोई रुकना नहीं चाहता था। फिर जाने क्या हुआ कि मेरा लिंग योनि ने निकल गया, दूबारा डालने के लिये कुल्हों की दरार के बीच लगाया तो वह योनि की बजाए गुदा की तरफ हो गया।

मैनें जोर लगाया तो वह गुदा में घुस गया। उन के मुह से तेज चीख निकली लेकिन मैं कुछ सुनने की अवस्था में नहीं था। मैनें पुरी ताकत लगा कर लिंग को गुदा में पुरा घुसेड़ दिया। लिंग योनि द्रव से चिकना होने के कारण पुरा अंदर घुस गया। नीचे से वह चीखती रही और मैं ऊपर से धक्कें लगाता रहा।

फिर से उन्हें करवट दिला कर पीठ के बल कर के योनि में लिंग डाला और शुरु हो गया इस बार उन के हाथ पैर भी मेरे शरीर पर कस गये और हम इसी अवस्था में संभोगरत रहे। कुछ देर के बाद मेरी आंखों के आगें सितारें चमचमाने लगे और मैं स्खलित हो गया। वह भी स्खलित हुई और मेरे लिंग नें गर्मागर्म द्रव की धार से स्नान कर लिया। लिंग संकुचित हो कर योनि से निकल गया और मैं भी उन के ऊपर से उठ कर उन की बगल में लेट गया। अपने जीवन में इतना जोरदार ताकत वाला आदिम संभोग मैनें तो नहीं किया था, इस कारण से में तो बुरी तरह से थक गया था और कुछ देर में ही सो गया।

सुबह शायद पांच बजे फोन में अलार्म बजा तो हम दोनों की नींद खुली, उन्होनें उठ कर मेक्सी डाली और बिस्तर से उठ कर दरवाजा बंद कर के चली गयी, मैं भी जल्दी से बाक्सर पहन कर बाहर लपका तो देखा कि वह अपना दरवाजा खोल कर घर में जा चुकी थी। मैं भी अपना दरवाजा बंद करके वापस बिस्तर पर आ गया। रात की थकान अभी तक थी। यह सोच ही रहा था कि रात को क्या हुआ कि मुझे फिर से नींद आ गयी और मैं सो गया।

एक घंटें बाद फिर से अलार्म की आवाज से नींद खुली तो लगा कि रात को जो हुआ वह सपना तो नहीं था। बिस्तर पर हाथ फिरा कर देखा तो वह सुखा था लेकिन उस पर शरीर के द्रवों के दाग लगे हुये थे इस का मतलब यह था कि सपना नहीं था सब कुछ वास्तविक रुप में घटा था।

उठ कर मैं नित्यक्रम में लग गया और जब नहा कर तैयार हुआ तो पत्नी का फोन आया, उस ने पुछा कि आज क्या खाना है तो मैनें कहा कि आज तुम मुझे आटा गुथना सिखायों, मैं पराठें बना कर खाऊंगा। वह इस के लिये तैयार हो गयी। मैनें परात में आटा लिया और पत्नी के बताए अनुसार पानी मिला कर उसे गुथना शुरु किया पहले तो यह बड़ा मुश्किल लगा लेकिन थोड़ी देर में ही मुझे समझ आ गया कि इसे कैसे गुथना है।

आटा गुथ कर उसे कुछ देर के लिये रख दिया और पराठें बनाने के लिये पत्नी से लेक्चचर सुना, सुन कर लगा कि मैं इन्हें तो बना लूगां, लेकिन जब बनाना शुरु किया तो पता चला कि पराठे बनाना इतना आसान भी नहीं है। लेकिन चार पराठें बना ही लियें, उन की फोटों देख कर पत्नी बोली कि पहली बार के हिसाब से सही लग रहे हैं। खा कर बताना कि कैसा स्वाद है? मैनें चाय बनाने रख दी, तभी घंटी बजी, जा कर दरवाजा खोला तो मिसेज गुप्ता यानी वाणी जी खड़ी थी बोली कि आज जब आप दूध लेने जाये तो सब्जी जरुर ले आना, कुछ भी नहीं है।

मैनें उन्हें देखा तो उन के चेहरें पर कल रात की घटना का कोई निशान नजर नहीं आया था वह पहली जैसी ही लग रही थी। कल रात की घटना, उन को देख कर लगा कि घटी ही नहीं थी। मैं घटना के बारें में सोच रहा था तभी मेरी तन्द्रा उन की आवाज ने तोड़ी कि आप ने नाश्ता कर लिया तो मैं बोला कि नहीं किया है लेकिन करने जा रहा हूँ तो जबाव मिला कि क्या है नाश्तें में? मैनें बताया कि पराठें बनायें है यह सुन कर वह आश्चर्य से बोली कि आप हर दिन मुझे कोई ना कोई शॉक सा देते है, देखे कैसे पराठें बनाये है? यह कह कर पर अंदर आ गयी, फिर किचन में जा कर वहां रखें पराठें देख कर बोली कि पराठें तो बढ़िया लग रहे है।

मैनें कहा कि आप भी मेरे साथ नाश्ता कर सकती है तो वह बोली कि हां पहले में घर बंद कर के आती हूं यह कह कर वह चली गयी। मैं पराठें और चाय लेकर ड्राइग रुम में आ गया। जब वह आयी तो बोली की चलिये खा कर देखते है कैसे बनें है? वह और मैं पराठें खाने बैठ गये। मैनें कहा कि पहली बार बनाये है अगर पसन्द ना आये तो भी खा लिजियेगा। वह हंस कर बोली कि आजकल ना करने का मौका ही नहीं है इस समय जो मिल रहा है वह नियामत है। दो-तीन कौर खा कर बोली कि पराठें तो सही बने है और स्वाद भी बढ़िया है। मैनें उन्हें बताया कि इस में मेरा ज्यादा योगदान नहीं है सारी कलाकारी मेरी पत्नी की है उस ने जैसा बताया वैसा ही मैनें किया है।

वाणी जी बोली कि लेकिन फिर भी बनाया तो आपने ही है। मैनें कहा जर्राऩवाजी है आप की। वह बोली कि आप बहुत जल्दी चीजें सीख लेते हैं। मैनें कहा हां यह गुण तो मुझ में है। वह नाश्ता करती रही फिर बोली कि दोपहर का खाना, मैं बना रही हूं। आप परेशानी मत किजियेगा। मैनें कहा कि आप क्यों मेरे लिये परेशान हो रही है? तो जबाव मिला की अकेली होने के कारण कुछ बनाने का मन ही नहीं करता है। आप के बहाने कुछ बनाने, खाने का मन तो करता है। आप इस के लिये मना नहीं करेंगें। मैनें कहा मैं क्यों मना करुंगा

मेरे साथ भी यही समस्या है अकेले होने के नाते किसी बात के लिये मन ही नहीं करता। बातें करते करते नाश्ता खत्म हो गया। वह वापस अपने घर चली गयी। मैं भी कुछ देर बाद दूध वगैरहा लाने के लिये तैयार हो कर निकल गया। सामान खरीद कर घर के लिये वापस चला तो ऐसे ही आयुर्वेद दवाईयों की दूकान पर चला गया। वहां से कुछ दवाईयां खरीद कर ऐसे ही कुछ ताकत के लिये पुछा तो उन्होनें शिलाजीत के केप्सुल का पैकेट पकड़ा दिया। दवाईयां लेकर घर पर आ गया। वाणी जी को उनके घर पर जा कर दूध और जो सब्जियां लाया था, दे आया।

घर पर वापस आ कर लाई दवाईयों को देखने लगा और फिर रोज खाने के लिये उन्हें अलग कर दिया। तभी ऑफिस से फोन आ गया। उस के बाद समय कब बीत गया पता नहीं चला। दरवाजे की घंटी बजी तो दरवाजा खोल दिया। वाणी जी खाना ले कर आयी थी। उन्हें इशारे से बताया कि मैं कॉल पर हूँ वह खाना शुरु कर सकती है लेकिन वह खाना किचन में रख कर आराम से मेरे इंतजार में बैठ गयी। जब काफी देर हो गयी तो टीवी चला कर समाचार देखने लगी। मैं जब कॉल खत्म करके उनके पास गया तो देखा कि चार बज रहे थे।

मैनें उन से पुछा कि खाना खा लिया तो वह बोली कि नहीं आप का इंतजार कर रही थी। मैनें कहा कि मेरी वजह से आप भुखी रह गयी तो वह बोली कि नहीं उल्टी बात है मेरी वजह से वह खाना खा रही है। मैं चुप रहा। वह किचन में जा कर खाना प्लेटों में लगा कर ले आयी। उन्होनें राजमा चावल बनाये थे, यह मेरी मनपसन्द चीज थी। मैं तो उन पर टूट पड़ा, मेरी जल्दी देख कर वह बोली कि आप हमेशा इतनी जल्दी में क्यों रहते है?

मैनें कहा कि राजमा चावल को देख कर मुझे कुछ हो जाता है। वह हंस कर बोली कि काफी है आराम से खाइयें, खत्म नहीं हो जायेगें। मैनें अपनी रफ्तार पर लगाम लगायी। वह खाते में सिर झुका कर मुस्करा कर बोली कि आप की जल्दी तो मैं देख चुकी हूँ। उन की बात पहले तो मेरी समझ में नहीं आयी लेकिन थोड़ी देर में समझ आयी तो पता चला कि वह रात की घटना की बात कर रही थी। हम दोनों खाना खाते रहे। खाने के बाद मैनें कहा कि राजमा चावल बचपन से मेरी मनपसन्द है आज बहुत दिनों बाद इतने स्वादिष्ट राजमा खाने को मिले थे इस लिये जल्दबाजी थी। अच्छी चीज को देख कर रुका नहीं जाता। वह मंद-मंद मुस्कराती रही।

खाना खत्म होने के बाद मैनें उन से पुछा कि रात को आप किस चीज से डर गयी थी तो वह बोली कि कह नहीं सकती मैनें क्या देखा था लेकिन अगर मैं कुछ देर और वहां रुकती तो शायद मेरी जान निकल जाती। मैनें बात आगे नहीं बढायी। वह बोली कि सब्जी बढ़िया है तीन-चार दिन का काम चल जायेगा। हफ्ता तो बीत गया है, बाकि समय भी बीत जायेगा। मैनें पुछा कि भाई साहब से बात हुई थी तो वह बोली कि हां हुई थी वह भी परेशान है कहीं निकल भी नहीं सकते। खाने की दिक्कत तो अभी तक नहीं हुई है आगे का कुछ कह नहीं सकते। फिर वह खाने के बरतन ले कर वापस चली गयी। मैं सोचने लगा कि रात की घटना वाणी जी को याद है, लेकिन उस की सच्चाई को लेकर मेरे मन में संशय था। मैं उस संभोग से इतना थक गया था कि अभी तक उबरा नहीं था। मुझे देर रात तक ऑफिस का काम भी करना था। लाई हुई दवाई में से शिलाजीत के केप्सुल निकाल कर खा लिये। सोचा कि देखते है इन का क्या असर होता है। टॉनिक की बहुत जरुरत थी।

रात को पत्नी की सहायता से सब्जी बनाई और खाना खा कर काम करने लगा। देर रात तक काम में डुबा रहा। उस के बाद सोनें चला गया। सोते समय भी मन में कल की घटना घुम रही थी। चाहें दूसरी औरत भोगने को मिली थी लेकिन भोगनें की परिस्थिति बहुत अजीबोंगरीब थी, सेक्स तो जोरदार हुआ था लेकिन मन उस का आनंद नहीं उठा पाया था। पत्नी से बेवफाई करने की भी चिन्ता थी। इन्हीं सब बातों को लेकर मन अशान्त था। बैचेनी खत्म नहीं हो रही थी सो पत्नी को फोन किया तो वह सो रही थी बोली कि क्या डर लग रहा है? तो मैनें कहा कि सच तो यही है कि डर लग रहा है लेकिन उसे सच नहीं बताया। बातें कर के फोन काट दिया। उसे कुछ बताने के हालात नहीं थे। थके होने के कारण कुछ देर में नींद आ गयी। रात को कोई घंटी नहीं बजी और मैं सुबह ही ऊठा। देखा तो छः बज रहे थे।

किचन में चाय बनाने लग गया। चाय बना कर पीने बैठा तो घंटी बजी। जा कर दरवाजा खोला तो वाणी जी खड़ी थी उन की हालत बड़ी खराब सी लग रही थी। वह चुपचाप अंदर आकर बैठ गयी। मैनें चाय के लिये पुछा तो कुछ नहीं बोली मैनें अपना चाय का प्याला उन के हाथ में थमा दिया और अपने लिये चाय बनाने किचन में चला गया। वहां से आया तो वह बोली कि रात को मुझे बहुत डर लगा लेकिन मैनें आप को परेशान करना उचित नहीं समझा। लेकिन मेरी हालत तो आप देख रहे है। मैं उन की बगल में बैठ गया और उन से पुछा कि आप ने क्या देखा? तो वह बोली कि एक लम्बें बालों वाली औरत घर में घुमती है। मुझे उस का पीछे का हिस्सा ही दिखायी देता है। चेहरा कभी नहीं दिखायी देता। मैनें पुछा कि पहले कभी ऐसा हुआ है तो वह बोली कि नहीं हम कई सालों से इस मकान में है कभी कुछ भी नहीं हुआ।

यह सुन कर मुझे लगा कि शायद अकेले होने की वजह से वह डर रही है तो उन्होनें कहा कि मैं तो महीनें में 15-20 दिन अकेले ही रहती हूं। ये तो अक्सर टूर पर जाते रहते है। ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ है। आप के सिवा और किसी को कुछ बता भी नहीं सकती। इन को भी नहीं बता सकती, नहीं तो वहाँ पर यह बहुत परेशान होगे। मैनें कहा यह तो सही बात है। चाय पीने के बाद आप के घर चल कर देखते है क्या बात है? यह कह कर मैं अपनी चाय लेने चला गया। हम दोनों चुपचाप चाय पीतें रहे। चाय खत्म होने के बाद मैं उन के साथ उन के घर चला आया। ताला खोल कर हम दोनों घर में प्रवेश कर गये।