लॉकडाउन

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मेरी बात सुन कर उस ने सुबकना बंद कर दिया। मैं चाय लेने किचन में चला गया। चाय ला कर उसे दी और उस के पास बैठ गया। वह चाय पीने लगी। मैं उस से घटना क्रम पुछना तो चाहता था लेकिन इस से वह फिर डर जाती और यही मैं नहीं चाहता था सो चुपचाप उस की पीठ सहलाता रहा। जब चाय खत्म हो गयी तो वह बोली कि चलों आज तो तुम नें भी देख ली नहीं तो तुम ना जाने क्या क्या सोचते होगे? मैनें कहा कि मुझे तुम्हारी बात पर पुरा भरोसा था लेकिन कई चीजे तर्क से ऊपर होती है तो मन कई कारण सोचता है, इसी लिये मैं असमंजस में था लेकिन आज वह दूविधा खत्म हो गयी। इस के सिवा मैं कुछ नहीं कह सकता। यह कह कर मैनें उस का हाथ पकड़ा और उसे बेडरुम में ले गया।

वहां उसे बेड पर बिठा कर एक बार फिर से दरवाजा देखने चला गया। दरवाजा मजबुती से बंद था। लौट कर वाणी की बगल में लेट गया वह साड़ी पहने हुई थी। कुछ सोच कर मैं उठा और कपड़ों की अलमारी की तरफ चल दिया। उसे खोल कर मैनें अपना बाक्सर निकाला और एक टी शर्ट ले कर वापस आ गया। वाणी से कहा कि वह साड़ी उतार कर मेरा बाक्सर पहनले कुछ टाइट तो लगेगा लेकिन सोने के लिये सही रहेगा। ऊपर से टीशर्ट पहन ले, सोने में आराम रहेगा। वह मेरे को देख कर बोली कि तुम्हें साड़ी की चिन्ता है। मैनें कहा कि तुम्हारी चिन्ता है। इस लिये कह रहा हूँ, आराम से सो पाओंगी। इस के सिवा कुछ और नहीं है और जो है वह तुम्हारें कुल्हों पर चढ़ेगा नही।

मेरी बात सुन कर वह हंस दी और बोली कि मेरी जान निकल रही है और तुम ऐसी बात कर रहे हो। मैनें कहा कि उसे बार बार सोच कर डरने से अच्छा है कि कुछ और सोच कर उस तरफ से ध्यान हटाओं। उस ने मेरी बात मान ली और मेरे सामने ही साड़ी उतार कर ब्याउज भी उतार दिया और ब्रा और पेंटी में आ गयी फिर बाक्सर पहना, कुछ कसा सा था लेकिन आ गया, उसके बाद टी शर्ट डाल ली। इन कपड़ों में भी वह जंच रही थी।

मुझे घुरता देख बोली कि अब क्या इरादा है? मैनें कहा कि कुछ नही, बड़ी सेक्सी लग रही हो सो देख कर आंखें सेंक रहा हूँ। वह उठी और मैरे पास आ कर मुझ से लिपट कर बोली कि आज तो तुम नें बचा लिया। मैनें उसे कस कर अपने से चिपका लिया और बोला कि इस बात की शंका तो थी लेकिन तुम्हारी इज्जत के कारण ऐसा करने का विचार आया था लेकिन अब जो होगा देखा जायेगा। वहां तो तुम जा नहीं सकती। यह कह कर मैनें उस के होठों पर अपने होठं रख दिये। उस के होठं इतने गरम थे कि लगा कि मेरे होठों नें तवें को छु लिया है। हम दोनों एक दूसरें को चुमते रहें। कुछ देर बाद मैनें उसे गोद में उठाया और बेड पर लिटा दिया। फिर उस की बगल में आ कर लेट गया।

उस से कहने के लिये मेरे पास कुछ नहीं था। डर मुझे भी बहुत लग रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैनें क्या देखा था, वह जिंदा था या मरा था असल में क्या था? वाणी मेरे सीनें से लग कर लेट गयी, मैं उस की पीठ सहलाता रहा। फिर जाने कब हम दोनों सो गये।

रात भर हमारी नींद नहीं खुली। सुबह जब मेरी आंख खुली तो वाणी निश्चिन्त हो कर सो रही थी। मैं उसे सोता देखता रहा, फिर उठ कर चाय बनाने के लिये किचन की तरफ चल दिया। घर का दरवाजा देखा वह बंद था। चाय बना कर दो कप ले कर बेडरुम में आया तो वह उठ कर बैठ गयी थी। अपने आपको देख रही थी। मुझे देख कर बोली कि कल रात को तुमनें यह कपड़ें दे कर अच्छा किया, पता ही नहीं चला कि कुछ पहन भी रखा है या नहीं। मैनें उसे बताया कि रात को पहननें के लिये मैं कॉटन की पुरानी टीशर्ट अलग रखता हूँ इन में आराम रहता है शरीर को काटती नहीं है। बाक्सर भी कॉटन का है वह भी आरामदायक है।

मैं रात को ब्रीफ उतार कर बाक्सर पहन कर सोता हूं अंगों को रात को आराम मिलता है और हवा भी लगती है। यह कह कर उसे उस का कप दे दिया। वह चाय पीने लगी। चाय पीने के बाद वह बोली कि अब में साड़ी पहन लेती हूँ। मैनें हां में सर हिलाया। वह खड़ी हो कर दोनों कपड़ें उतार कर साड़ी पहनने लगी। साड़ी पहन कर बोली की क्या कहते हो? घर जाऊं देखने? मैनें उसे हाथ से मना किया। वह रुक गयी। चाय पीने के बाद हम दोनों एक साथ उस के घर गये। दरवाजा खोला, कुछ नहीं दिखा।

अंदर सारा घर देखा कुछ नहीं दिखा। एक बात मेरी समझ में आयी कि जो कुछ वहां है वह दिन की रोशनी में सामने नहीं आता। सारे घर में घुम कर दरवाजा को ताला लगा कर हम दोनों वापस मेरे घर आ गये। वाणी नें अपने कपड़ें साथ ले लिये थे। वह नहानें चली गयी और मैं टीवी देखने लगा। टीवी देख कर पता चला कि लॉकडाउन सात दिन के लिये और बढ़ा दिया गया है। यह सुन कर निराशा हुई लेकिन कुछ कर नहीं सकता था। वाणी जब नहा कर बाहर आयी तो मैनें उसे यह खबर सुनायी तो वह बोली कि लगता है लॉकडाउन लम्बा चलेगा। रोग तो रुक ही नहीं रहा है। उस के बाद मैं नहानें चला गया। नहा कर मैं पूजा करने लगा।

वाणी मुझे पूजा करता देखती रही। पूजा खत्म होने के बाद मुझ से पुछने लगी कि यह सब तुम नें कहाँ से सीखा है? मैनें उसे बताया कि बचपन से मेरे यहां यह होता है सो अब मैं अपने घर में करता हूँ किसी से सिखने की जरुरत क्या है? वह बोली कि इन के यहाँ तो कुछ होता नहीं है। मैनें भी अपने यहां कुछ नहीं देखा। मैं यह सुन कर चुप रहा, किसी के संस्कारों के बारें में कोई टिप्पणी करना उचित नहीं लगा। वाणी बोली कि तुम मुझे सीखा लेना मैं अब करना शुरु करुंगी। मैनें सर हिलाया। वह मुझे देख कर बोली कि चुप क्यों हो? मैनें कहा कि दिमाग में कुछ और घुम रहा है, वह बोली कि वह तो मुझे पता है लेकिन मेरी बात का जबाव तो दो। मैनें कहा कि पूजा करना कठिन नहीं है सब सिखा दूगां। मेरी बात सुन कर उस के चेहरे पर संतोष झलका। मैनें कहा कि मैं दूध लेने जा रहा हूँ तो वह बोली कि मैं अकेली नहीं रहुँगी तुम्हारें साथ चलुगी।

मैनें कुछ नहीं कहा। हम दोनों दूध और कुछ सामान ले कर घर वापस आ गये। आ कर वाणी नें नाश्ता बनाया और हम दोनों नें नाश्ता कर लिया। नाश्तें के बाद वाणी बोली कि तुम्हें तो काम करना है, मैं क्या करुं? मैनें कहा कि टीवी देखों फिर दोपहर का खाना बनाना, तब तक मैं फ्री हो जाऊंगा। यह कह कर मैं कमरें में चला गया। काफी काम पेन्डीग पड़ें थे सो उन्हें आज पुरा करना था।

लॉकडाउन के बढ़ जाने के कारण अब तो ऑफलाइन काम ही करना पड़ेगा यह दिख रखा था सो उस के लिये भी सब को तैयार करना था। इसी सब में कब चार बज गये पता ही नहीं चला। जब कमरें से बाहर निकला तो देखा कि वाणी टीवी देखते देखते सो गयी है। लेकिन मेरे कदमों की आहट पा कर वह जग गयी और बोली कि आज दिन काटना मुश्किल हो रहा है। मैनें कहा कि कुछ पढ़ लेती तो वह बोली कि यह काम मुझ से नहीं होता। फिर वह खाना लेनें चली गयी।

खाना खा कर हम दोनों बैठे तो मैनें उस से पुछा कि कल रात को हुआ क्या था तो वह बोली कि 10 बजे के बाद मैं सारे घर को देख कर बंद कर रही थी तो मुझे कुछ अजीब सा लगा तो मैं उसे देखने के लिये कमरें में गयी लेकिन वहां पर कुछ नहीं था, फिर ऐसा लगा कि बाहर लॉबी में कोई है। लॉबी में आयी तो कोई नहीं था, तभी मैनें तुम्हारा नंबर मिलाने के लिये मोबाइल हाथ में लिया और नंबर को दबाने की कोशिश करते हुये दरवाजे की तरफ चली कि यह चीज अचानक मेरे सामने आ गयी और उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया कि मैं नंबर ना डाइल कर सकु, लेकिन तब तक मैं नंबर प्रेस कर चुकी थी, इस के बाद मुझे कुछ पता नहीं, मैं बेहोश हो गयी थी, तुम नें जब पानी मुह पर मारा तब मुझे होश आया।

मैं उस की सारी बात ध्यान से सुनता रहा, मैं यह समझने की कोशिश कर रहा था कि वह चीज क्या चाहती है, अभी तक तो वह कुछ कहती नहीं थी, लेकिन कल तो उस नें वाणी को रोकने की कोशिश की। दिन में कहां छुपी रहती है? यह भी पता नहीं था। तभी मुझे कुछ याद आया तो मैनें वाणी से पुछा कि वह यह सब शुरु होने से पहले छत पर तो नहीं गयी थी, वह अचरज से बोली कि तुम्हें कैसे पता? मैनें उसे बताया कि शायद वह तेल लगा कर रात को छत पर गयी होगी और कोई बुरी छाया उस से आकर्षित हो कर उस के साथ आ गयी है।

उसे कैसे भगाना है यह तो नहीं मालुम लेकिन अब कुछ-कुछ समझ में आ रहा है। वह बोली कि शाम हो गयी थी गर्मी सी लगी तो मैं छत पर टहलने चली गयी थी। उस से पहले मैनें बालों में तेल भी लगाया था। मैनें उसे बताया कि बचपन में मैनें अपनी नानी को मौसी वगैरहा को रात में तेल लगा कर बाहर जाने से रोकते सुना था सो वही बात ध्यान में आयी थी। वह बोली कि कोई हल भी है, मैनें कहा कि कोई हल मुझे तो पता नहीं है किसी से बात भी नहीं कर सकते। कोई आयेगा भी नहीं।

तभी मुझे याद आया कि नानी रात को बाहर जाते में कोई लोहे का चाकु या चीज साथ ले जाने को कहती थी। लेकिन इस बात का हमारी परिस्थिति में कोई उपयोग मुझे नहीं समझ आ रहा था। कुछ देर सोचने के बाद मैनें कहा कि हम शाम को तुम्हारें घर में पूजा करते है, दीपक जलाते है धुप लगाते है तथा सारे घर में गंगा जल छिड़कते है तो वह बोली कि मेरे पास तो गंगा जल भी नहीं है। मैनें कहा कि चिन्ता की कोई बात नहीं है मेरे पास है। हनुमान चालीसा का पाठ भी करेगें, वह इस सब के लिये राजी थी।

शाम को सात बजें हम दोनों हाथ मुंह धो कर उस के घर गये, वहां पर मंदिर में दीपक जलाया, धुप लगाई तथा गंगा जल एक कटोरी में भर कर रख लिया। हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद हनुमान जी की आरती करी। इस समय तक सब कुछ सही था लेकिन जब हम सारे घर में घुपदीप करने लगे, तथा मैं गंगा जल छिड़कने लगा तो बड़ी बदबु सी आने लगी, हमें डर तो लगा लेकिन हम हनुमान जी का नाम लेकर सारे घर में घुपदीप और गंगा जल छिड़कते रहें।

यह सब करने के कुछ देर बाद बदबु आनी बंद हो गयी। हम दोनों कुछ देर वहां पर रहे जब दीया बाती खत्म हो गयी तो उस के घर का दरवाजा बंद करके अपने घर वापस आ गये। हमें कुछ पता नहीं था कि हम क्या कर रहे है लेकिन कुछ ना करने से कुछ करना सही था। सो जैसा उल्टा-सीधा आता था वह कर रहे थे। काफी देर तक हमारे कान वाणी के घर की तरफ लगे रहे कि वहां से कोई आवाज तो नहीं आती लेकिन कुछ हुआ नहीं, या कह सकते है कि हमनें कुछ सुना नहीं।

अब हम दोनों थक से गये थे सो मैनें वाणी से कहा कि मैं दाल-चावल बना रहा हूं तो वह बोली कि मैं भी तुम्हारें साथ काम करती हूँ काम जल्दी हो जायेगा। हम दोनों दाल-चावल बनानें में लग गये। रात को खाना खा कर बैठे तो वाणी बोली कि तुमनें बदबु महसुस की थी? मैं हां में सर हिलाया तो वह बोली कि ऐसी ही बदबु उस ने कई बार महसुस की है। उस ने कहा कि लेकिन गंगा जल छिड़कने के बाद बदबु खत्म हो गयी थी। मैनें उसे बताया कि हम ने जो किया हो सकता है उस से वह चीज चली जाये और यह भी हो सकता है कि वह चीज गुस्सा हो कर और नुकसान करना शुरु कर दे।

हमें इंतजार करना पड़ेगा। वह बोली कि इस के सिवा हम कर भी क्या सकते है? वह सही कह रही थी हमारे पास और कोई चारा भी नहीं था। रात को सोने से पहले दोनों की अपने पति-पत्नी से बात हुई। इस के बाद हम कपड़ें बदल कर बेड पर आ गये।

मुझे जाने क्या लगा कि मैं बाहर गया और हाथों में गंगा जल ले कर आया और अपने और वाणी के ऊपर छिड़क दिया, यह देख कर वह बोली कि अब यह क्या है? मैनें कहा कि पता नहीं मेरे मन को लगा कि ऐसा करना चाहिये तो कर दिया। वह बोली कि लगता है तुम नॉरमल नहीं हो। मैनें कहा कि हां हो सकता है कल की घटना के बाद में बदल गया हूं लेकिन जो सही लगेगा वह तो करना ही पड़ेगा, बुरी शक्तियों से लड़ने का यही एकमात्र साधन है।

मेरे चुप होने के बाद मैनें देखा कि वाणी कांप सी रही थी, कुछ देर बाद उस की कंपकंपी बंद हुई, वह बोली की मुझे क्या हुआ था? मैनें उसे बताया कि हम इतनी देर तक वहां थे तो हो सकता है कि वह चीज हम पर सवार हो गयी हो, इसी लिये गंगा जल अपने ऊपर छिड़का था। वह बोली कि मुझे लगा कि मेरे शरीर में से कुछ निकल सा गया है।

मैं उस की बात सुन कर डर गया कि कहीं वह चीज मेरे यहां ना आ गयी हो, इसी लिये सारे घर को देखने के लिये चला गया। वाणी भी मेरे साथ-साथ थी। कहीं कुछ नहीं मिला या दिखा। इस से हम दोनों को संतोष सा मिला। नींद तो हमारी भाग गयी थी सो ऐसे ही लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। वाणी बोली कि आप बिना मतलब मेरी परेशानी में पड़ गये है।

मैनें उस से कहा कि तेरी मेरी का समय चला गया है, अगर हमारे घर के आसपास कुछ ऐसा था तो देरसबेर हमें इस तरह की परेशानी का सामना करना ही पड़ता सो इस बारें में सोचना बंद कर दो। वह बोली कि आगे क्या विचार है मैनें कहा कि रोज सुबह शाम ऐसे ही पूजा करों, शायद कुछ सही हो जाये। वह बोली कि कल सुबह ही पता चलेगा कि क्या हुआ है। मैनें उस की बात में सहमति में सर हिलाया।

वह मेरे करीब आ कर बोली कि तुम मेरे क्या हो जो मेरे लिये इतना खतरा उठा रहे हो? मैनें उस के बालों में उगलियां फिराते हुये कहा कि पता नहीं क्या हूं लेकिन अब तुम मेरी जिम्मेदारी हो सो अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ। इस से भाग नहीं सकता। मेरी बात पर वाणी का सर मेरी छाती से टिक गया और वह सुबकने लगी उस के आंसु मेरी टीशर्ट को भिगो रहे थे। मैनें उस के सर को सहलाया और कहा कि तुम तो बड़ी बहादूर थी आज ऐसा क्या हुआ कि रो रही हो? तो वह बोली कि आज जो तुम ने किया वह कोई अपना भी नहीं करता, तुम नें इतना बड़ा खतरा उठा कर ऐसी चीज से पंगा ले लिया जो बहुत खतरनाक है।

मैनें कहा कि मरता क्या ना करता वाला चक्कर है, कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा अभी तो किसी से मदद भी नहीं मांग सकते। कही जा भी नहीं सकते, तुम्ही बताओं और क्या करता? वह कुछ नहीं बोली और सुबकती रही। हार कर मैनें उसे अपनी छाती से चिपका लिया।

इस से ज्यादा सान्तवना में उसे नहीं दे सकता था। अंदर से तो मैं भी बुरी तरह से डरा हुआ था लेकिन उस के सामने अपना डर जाहिर भी नहीं कर सकता था। इसी लिये चुपचाप पड़ा रहा। कुछ देर तक तो मैं उस की पीठ सहलाता रहा। कुछ देर बाद वाणी भी चुप हो गयी और मेरी टी शर्ट के ऊपर से ही मेरे निप्पलों को चुमने लगी। उस की यह हरकत मुझ में उत्तेजना भर रही थी। मैनें उसे होठों पर चुम कर उस की गरदन पर किस किया फिर उस के वक्ष के मध्य चुम्बन लेकर नीचे जाने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली ब्लाउज और ब्रा के कारण उरोज ढ़के हुये थे, मैनें उस के ब्लाउज को उस के कंधे से नीचे कर दिया और उस के एक उरोज को ब्रा और ब्लाउज से बाहर निकाल लिया।

वाणी के लिये कष्टकर था लेकिन मुझे उस के निप्पल चुसने को मिल गया। मैनें उस उरोज को काफी दबाया और मुह में लेकर चुसा और उसके बाद उसे अंदर डाल कर दूसरे उरोज को ब्रा से बाहर निकाल कर उस के साथ भी ऐसा ही किया। इस के बाद उस की नाभी को चुम कर उस के ऊपर बैठ कर उस की साड़ी को ऊपर कर के उस की पेंटी को ऊगंली से एक तरफ कर के अपने उत्तेजित लिंग को योनि में घुसेड़ दिया।

यह वाणी के लिये जबरदस्ती किया जाने वाला संभोग था लेकिन वह इस का विरोध नहीं कर रही थी।

लिंग उस की योनि में घर्षण करता हुआ गया क्यों कि कोई फोरप्ले नहीं हुआ था। पता नहीं मैनें सिर पर कैसा पागलपन सवार था कि मैं जो कुछ कर रहा था उस के बारे में सोच नहीं रहा था। उस की पेंटी मेरे लिंग से टकरा रही थी। कुछ देर योनि में लिंग अंदर बाहर करने के बाद मैनें लिंग को निकाल लिया, वाणी को पेट के बल लिटा कार उस के चुतड़ों से साड़ी हटा कर उस की योनि पर लिंग को लगाया लेकिन फिर उसे उस की गुदा पर लगा कर झटके से गुदा में डाल दिया। वाणी की चीख निकल गयी, मैं कुछ देर रुका फिर जोर लगा कर लिंग को पुरा उस की गुदा में घुसेड़ दिया।

कुछ पल रुकने के बाद मैनें लिंग को अंदर बाहर करना शुरु कर दिया। वाणी दर्द के कारण सिसक रही थी लेकिन मेरा ध्यान उस पर नहीं था मैं अपने काम में लगा रहा फिर कुछ देर बाद जब मुझे लगा कि मैं स्खलित होने वाला हूँ तो लिंग को गुदा से निकाल कर योनि में डाल दिया। फिर मेरे धक्के शुरु हो गये। कुछ देर बाद नीचे से वाणी भी मेरा साथ अपने कुल्हें उठा कर देने लगी। ऐसा ज्यादा देर नहीं चला, मैं बड़ें जोर से वाणी के अंदर स्खलित हो गया। अपने वीर्य की गरमी मुझ से ही बर्दाश्त नहीं हो रही थी। वाणी का क्या हाल होगा यह तो वह ही जानती होगी। इस के बाद में वाणी की बगल में लेट गया।

आज का संभोग, संभोग ना हो कर एक तरह से बलात्कार ही कहा जा सकता था, इस में वाणी को कोई सहयोग नहीं था, जो था वह मेरी जबरदस्ती ही थी। वाणी चुपचाप मुझे झेलती रही थी। मैं ऐसा कैसे कर रहा था वह यही समझ नहीं पा रही थी। मैनें उस की साड़ी सही करी और उस के उरोजों को ब्रा के अंदर कर के उस का ब्याउज सही कर दिया। वह मुझे ऐसा करते देखती रही। कुछ नहीं बोली।

हम दोनों चुपचाप पड़ें थे। अज्ञात शक्ति का डर और उस के ऊपर मेरा यह कांड उस के लिये तो आज हद ही हो गयी थी। मैं अब कुछ होश में था और अपने किये पर शर्मिदा था। समझ नहीं आ रहा था कि उस से कैसे माफी मांगु?। वाणी नें मेरी तरफ अपना मुह किया और मुझ से बोली कि आज यह क्या किया है, क्यों किया है? जब सब कुछ प्यार से मिल रहा था तो जबरदस्ती की क्या जरुरत थी।

आप का यह रुप मेरे को डरा रहा है। कुछ कहते क्यों नहीं हो? मैनें कुछ कहने के लिये मुह खोला फिर कुछ सोच कर उसे बंद कर लिया। वह यह देख रही थी, बोली कि कुछ तो हुआ है इतने दिन से आप के साथ हूं, आप ऐसे नहीं है,आज क्या हो गया है, बताते क्यों नहीं हो? उस नें अपनी बाहों से पकड़ कर मुझे झकझोड़ा, उस के झकझौड़ने के बाद मेरी तन्द्रा टुटी।

उसने यह महसुस कर लिया। मैनें उसे देख कर कहा कि क्या किया है मैनें? वह बोली कि तुम ने किया है और तुम्ही को नहीं पता? यह क्या है? मेरी आंखों में अचरज देख कर वह बोली कि कुछ तो बोलों क्या बात है? मैनें कहा क्या बात है क्या बोलू? वह बोली कि आज तुम नें मुझ से बलात्कार किया है, यह क्यों किया है। मैं तो तुम से प्यार कर ही रही थी, फिर ऐसा क्यों किया है तुम ने? मैनें उस से कहा कि मुझे पता नहीं क्या हो गया था जो मैनें ऐसा किया है।

तुम्हें तो पता है कि मैं कैसा हूँ? मैं तो तुम्हें सान्तव्ना देने के लिये तुम्हारी पीठ सहला रहा था, उस के बाद क्या हुआ मुझे नहीं पता। अभी जब तुम नें झकझौरा है उस से पहले का कुछ पता नहीं है। ऐसा क्या किया है मैनें जो तुम इतनी नाराज हो? वाणी हैरान हो कर बोली कि तुम्हें कुछ नहीं पता? मैनें ना में सर हिलाया। वह बोली कि ऐसा कैसे हो सकता है तुम मेरे साथ जो कर रहे थे वह तुम्हें पता नहीं है। यह बात मुझे समझ नहीं आ रही है। मैं चुपचाप रहा। वह भी चुप हो गयी।

हम दोनों के मध्य मौन परसा पड़ा था। कोई किसी की बात पर विस्वास नहीं कर रहा था। अंजान शक्ति का डर दिमाग से हट कर मेरे द्वारा किया गया दिमाग में था। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, मेरी सफाई वाणी को समझ नहीं आ रहा था। वह सही थी उसी नें सब कुछ भोगा था। हम दोनों बेड के दोनों किनारों पर हो कर लेटे रहे और कब सो गये पता नहीं चला।

सुबह जब आंख खुली तो वाणी वहां पर नहीं थी। मुझे लगा कि रात की बात से नाराज हो कर वह चली गयी है यही सोच कर मैं कमरे से बाहर आया लेकिन तभी वाणी बाथरुम से निकलती दिखायी दी। उसे देख कर मेरी जान में जान आयी। मुझे देख कर वह बोली कि चाय पियोगें? मैनें हां कही तो वह किचन में चली गयी, कुछ देर बाद वह चाय ले कर आ गयी।

हम दोनों ड्राइग रुम में बैठ कर चाय पीने लगे। चाय पीते समय भी हम दोनों चुप थे। वाणी ने ही शुरुआत करी और बोली कि मेरी रात की बात से नाराज हो? मैनें कहा नहीं नाराज नहीं हूं यह सोच कर हैरान हूँ कि मैनें वह सब कैसे किया? मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ तुम्हारें साथ जो मेरे भरोसे अपनी सारी जिन्दगी लगा कर बैठी है और वह भी वह बात जो हम दोनों रोज आराम से कर रहें थे।

एक तरफा प्यार तो मेरे दिमाग में आता ही नहीं है, फिर तुम्हारें अनुसार जबरदस्ती तो बहुत दूर की बात थी। तुम नें विरोध क्यों नहीं किया? मैनें उस से सवाल किया तो वह बोली कि अगर मेरा रक्षक ही ऐसा कर रहा था तो मैं किस से फरियाद करती, तुम्ही बताओं? उस की बात सही थी, वह किस के पास जाती। तभी मुझे कुछ समझ आया, मैनें कहा कि कल मैं भी तो तुम्हारें साथ घर में गया था, वही से कुछ हुआ है। मैनें तुम्हारें ऊपर तो गंगा जल छिड़क दिया था। अपने ऊपर नहीं छिड़का था, जो चीज तुम्हें परेशान कर सकती है वह चीज मुझे तुम्हारी मदद करने से रोक भी तो सकती है।

शायद ऐसा ही कुछ हुआ था। मैं अपने आप में नहीं था। तुम्हारें घर में जो भी कुछ है वह बहुत खतरनाक है। अगर दूबारा मैं कुछ ऐसा करु तो मुझे जबरदस्ती रोक देना। यही कह सकता हूँ। और कोई व्याख्या मेरे पास नहीं है। मेरी बात सुन कर वाणी बोली कि तुम्हारी बात सही है तुम नें अपने ऊपर गंगाजल नहीं छिड़का था उस का तुम पर और अधिक प्रभाव हो सकता था लेकिन शायद किसी वजह से कम प्रभाव हुआ। कल की बात से मुझे अब ज्यादा डर लगने लगा था।

वह शक्ति किसी को भी अपने प्रभाव में ले सकती है। अपना मनमाफिक काम करवा सकती है। यह बहुत खतरनाक बात थी। मैनें तय किया कि मैं वाणी के घर में नहीं जाऊंगा। वाणी मुझे चुप और सोचता देख कर बोली कि क्या सोच रहे हो? मैनें उसे बताया कि उस के घर जाने में अब मुझे डर लग रहा है। वह बोली कि कह तो सही रहे हो। लेकिन बताओं मैं क्या करुं? मैनें कहा कि अभी एक दो दिन तुम यहीं रहों। उस के बाद सोचेगें। अभी तो यह हम दोनों के बीच झगड़ा करवानें में लगी है। कुछ और भी हो सकता है। तुम मेरे से दूर ही रहना, पता नहीं और क्या कर बैठु? वह मेरी बात सुन कर हंसी और बोली कि तुम से दूर कैसै रह सकती हूँ यह तो कोई उपाय नहीं है।

मैनें कहा कि सावधानी तो बरत सकती हो। वह बोली कि रात की बात छोड़ो, कल की हरकत से तुम्हारें लिंग पर जो खरोंचें लगी है उन पर कुछ लगा लो, नहीं तो बुरी हालत हो सकती है। मैनें कहा कि चलों देखता हूं यह कह कर मैं बाथरुम में चला गया, वहां जा कर ब्रीफ उतार कर देखा तो वाणी सही कह रही थी, बुरी तरह से खरोचें लगी हुई थी। बाहर आ कर कमरें में जा कर ऐन्टीसेप्टीक क्रीम ढुढ़ी और फिर बाथरुम में जा कर उसे लिंग पर लगा लिया।

बाहर आ कर वाणी को धन्यवाद कहा तो वह बोली कि इस में मेरा भी फायदा है अगर जल्दी सही नहीं हुआ तो वह मेरे किसी काम का नहीं रहेगा। मैं उस की बात सुन कर मुस्कराया और बोला कि हर समय शरारत सुझती है। वह बोली कि और क्या करुं शैतानी भी छोड़ दू? यह कह कर वह मेरे से क्रीम ले कर बाथरुम में चली गयी। बाथरुम से आकर वह बोली कि कुछ भी कहो, जबरदस्ती में भी एक अलग ही मज़ा आता है। मैनें उस की तरफ देखा तो वह शरारत में आंख मार कर मुस्करा दी। मैं हैरानी से उसे देखता रहा और सोचने लगा कि औरतों को समझना किसी के बस की बात नहीं है।

मैं नहाने चला गया और नहा कर आने के बाद पूजा करने बैठ गया। वाणी भी पूजा करने हुये बड़े ध्यान से देखती रही। पूजा खत्म होने के बाद वह बोली की आज में घर मे पूजा करने जाऊं? मैनें कहा कि क्या कहुँ, कल की घटना के बाद कुछ समझ नहीं आ रहा है, मेरी बात सुन कर वह बोली कि मैनें तुम्हें पूजा करते देख लिया है, आज में अपने आप पूजा करके देखती हूँ, उस के बाद देखते है क्या होता है? इस के बाद वह अपने घर चली गयी, मेरे कान उस के घर की तरफ ही लगे रहे।

काफी देर बाद वह अपने घर से वापस आयी, आ कर उस ने बताया कि मैनें तुम्हारी तरह ही पूजा करी है। और कुछ करना है? मैनें कहा कि हो सके तो हनुमान चालीसा चला दो। वह बोली कि स्टीरियों पर हनुमान चालीसा चला कर आती हूँ यह कह कर वह चली गयी। कुछ देर बाद आयी तो बोली कि हनुमान चालीसा चलने के बाद कुछ बदलाव सा लग रहा है। मैनें उसे कहा कि अब वह वहां ना जाये। वह बोली कि नाश्ता बना रही हूं। वह नाश्ता बनाने चली गयी और में अखबार पढ़ने लगा।

उस में रोग के बारें में कोई अच्छी खबर नहीं थी। लॉकडाउन पुरी कठोरता से लगा हुआ था। कोई भी इधर से उधर नहीं जा सकता था।

कुछ देर बाद वाणी नाश्ता बना कर ले आयी और हम दोनों नाश्ता करने बैठ गये। मैनें उस से पुछा कि आज घर में कैसा माहौल लगा? तो जबाव मिला कि कुछ खास नहीं लगा, बदबु सी तो नहीं आ रही थी लेकिन कुछ साफ सा लग रहा था, मैनें उस से कहा कि वह कुछ कुछ देर बाद जा कर हनुमान चालीसा का दोबारा चला दिया करें। वह बोली कि जैसा तुम कहो। मैनें उस से कहा कि हमारें पास ज्यादा ऑप्सनस् नहीं है इस लिये जो समझ आ रहा है वही कर रहे है।