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घर में घुस कर मुझे कुछ अजीब सा लगा। हम दोनों सारा घर देखने लगे। सारी खिड़कियां बंद थी, कहीं कोई खुली जगह नहीं थी जहां से कोई अंदर आ सके। दरवाजे भी बंद थे। बालकानी से भी किसी का आना मुमकीन नहीं लग रहा था। मैनें उन से पुछा कि वह पूजा वगैरहा करती है तो वह बोली कि नहीं करती। पुजा स्थान तो बना रखा था। लेकिन नियमित दिया-बाती नहीं करती थी। मैनें उन्हें सलाह दी कि वह नहा कर साफ कपड़ें पहन कर दीपक जलायें और उस के बाद सारे घर में दीपक को घुमा कर उस की घुनी सी पुरे घर में करें और इस दौरान घंटी भी बजाती रहे। वह बोली की यह तो मुझे आता है, मैनें कहा कि ऐसा रोज किया करें। सारे घर में हर कोनें में दीये का प्रकाश जाना चाहिये, ऐसा करने से नेगेटिव एनर्जी दूर रहती है।

वह मेरी बात समझ गयी और बोली कि आज से ही ऐसा करती हूँ। इस के बाद मैनें उन से कहा कि रात को वह मेरे यहां आ सकती है। यह सुन कर वह मुस्कराई और बोली कि ऐसा कह कर आप ने मेरा संकोच दूर कर दिया। मैनें कहा कि पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है। फिर इस समय तो कोई कहीं आ जा भी नहीं सकता। बड़ा विकट समय है। यह कह कर मैं अपने घर लौट आया। घर आ कर मुझे लगा कि वहां कुछ तो गलत है, वाणी की बात गलत नहीं है। मुझे भी वहां नेगेटिव एनर्जी महसुस हुई थी। मैं इस विषय में ज्यादा तो नहीं जानता था, लेकिन भगवान पर पुरा विश्वास करता हूँ। वहीं सब संकटों से पार उतारता है। ऐसा मेरा विश्वास है। अपने मन में ऐसा सोच कर मैं भी नित्यक्रम में लग गया।

नाश्ता बना कर, खाने को मैं बैठा ही था कि घंटी बजी, दरवाजा खोलने पर वाणी जी थी, बोली कि नाश्ता तो नहीं किया? मैनें कहा कि शुरु करने ही वाला था तो वह बोली कि मैं समय पर आ गयी हूँ, मैनें कहां कि चलिये मिल कर नाश्ता करते है तो वह बोली कि मैं भी यही कहने वाली थी। वह भी आलु के पराठें बना कर लायी थी। मैनें उन्होकें बनाये आलु के पराठे और उन्होनें मेरे बनाये पराठे खाने शुरु कर दिये। पराठा खाते हुये वह बोली कि आज पराठों का स्वाद कल से बेहतर है आप बड़ी जल्दी उन्नति कर रहे है।

मैनें कहा कि चलिये अगर आप कह रही है तो सही ही होगा वह बोली कि मेरे बनाये पराठे कैसे लगे? मैनें कहा कि इन की प्रशंसा के लिये शब्द कम पड़ रहे है तो वह हंस कर बोली कि आप ऐसे ही है या मुझ से फ्लर्ट कर रहे है? मैनें हंस कर कहा कि अब प्रशंसा करना भी फ्लर्ट हो गया है तो मैं कुछ नहीं कह सकता लेकिन पराठें स्वादिष्ट बने है। खा कर मन प्रसन्न हो गया। वह जोर से हंसी और बोली कि ऐसी हिंदी कहां से सिखी है? मैनें उन्हें बताया कि सीखी नहीं पढ़ी है। वह आश्चर्य से बोली कि आप तो इंजीनियर है। मैनें कहा कि यह कहां लिखा है कि इंजीनियर भाषा में एम ए नहीं कर सकते? वह बोली कि एम ए कब कर ली?

मैनें उन्हें बताया कि इंजीनियरिग करने के बाद नौकरी नहीं मिली तो उस दौरान अपने मनपसन्द विषय में पोस्टग्रेजुएशन कर मारी। नौकरी तो पढ़ाई के पहले साल में मिल गयी लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी और फाइनल पास कर लिया। वह बोली कि आज पहली बार किसी इंजीनियर और भाषा के विद्वान से मिलने का मौका मिला है। मैनें सर झुकाया। वह हंसती रही। मैनें उन्हें देख कर कहा कि आप हंसती हुई अच्छी लगती है ऐसे ही हंसती रहा किजिये।

यह सुन कर वह बोली कि अकेले होने का फायदा उठा कर फ्लर्ट कर रहे है। मैनें कहा कि जो मन को अच्छा लगा वह कह दिया, आप का मन जो सही समझें वही समझ ले। वह यह सुन कर चुप रही। हम दोनों शायद अपनी सीमायें जानते थे लेकिन परिस्थित वश ऐसा कर रहे थे। नाश्ता करने के बाद वह बोली कि दोपहर के खाने के बारें में क्या विचार है तो मैनें उन्हें बताया कि मेरी तो शिफ्ट दोपहर से शुरु हो कर रात तक चलेगी सो कुछ कह नहीं सकता अगर समय मिलेगा तो कुछ सोचुंगा तो वह बोली कि मैं कुछ बना लूं

आप उस से खाना खा लेगें? मैनें कहा कि आप क्यों परेशान होती है मैं कुछ बना लूगा तो वह बोली कि यह परेशानी की बात है आप मेरे लिये इतना कर सकते है तो मैं आप के लिये खाना भी नहीं बना सकती? मैनें हथियार डालते हुये कहा कि बना लिजियेगा। आप के साथ ही खा लुगां, लेकिन देर हो सकती है। वह बोली कि आज कल जल्दी किसे है? मैनें कहा यह तो आप सही कह रही है। वह उठ कर अपने घर चली गयी और मैं ऑफिस की तैयारी में लग गया।

दोपहर तीन बजे घंटी बजी तो वह खाना ले कर खड़ी थी बोली कि मैं इंतजार कर लुगी आप अपना काम कर ले। वह आ कर ड्राइग रुम में टीवी देखने लगी और मैं कमरें में ऑफिस अटैन्ड करने लगा। चार बजे फुरसत मिली तो उन के पास गया वह टीवी देखते-देखते हो गयी थी। सोते समय बहुत सुन्दर लग रही थी लाल रंग की साड़ी में वैसे ही जंच रही थी फिर बिखरे बाल और ढलके पल्लू में बला की सेक्सी दिख रही थी। मैने आवाज दी तो वह जग गयी, अचकचा कर बोली कि आंख लग गयी थी। रात को नींद नहीं आयी थी। आलु प्याज की सब्जी के साथ पराठे बना कर लायी थी।

औरत के हाथ लगते ही हर चीज में अलग ही स्वाद आ जाता है। मैनें पुछा कि खाने के स्वाद की बढ़ाई करुं तो कुछ गलत तो नहीं समझा जायेगा, तो वह मुस्करा कर बोली कि आप ने वह सीमा पार कर ली है जो मन कहे बोलिये। मैनें कहा कि आलु प्याज में स्वाद आ गया है और ठन्डें पराठें तो कहर ही ढा रहे है। खाना खा कर मजा आ गया। वह कुछ नहीं बोली केवल मुस्कराती रही। वह जब जाने लगी तो मैनें कहा कि आप यहां पर कुछ देर आराम कर लिजिये। शाम की चाय पी कर चली जाईयेगा। मेरी बात उन को अच्छी लगी और वह वहीं दिवान पर लेट गयी। मैं अपने कमरे में चला गया। कुछ देर में ही उन के खर्राटों की आवाज मेरे कानों में पड़ने लगी। वह रात भर की जागी हुई थी, इस लिये गहरी नींद में सो रही थी। मैनें सोचा कि अगर रात को वह यही पर रुकी तो वह सिर्फ अपनी नींद ही पुरी करेगी और कुछ नहीं।

सात बजे के बाद वह उठ गयी और मुझ से बोली कि चाय पीयेगे? मैनें हां में गरदन हिलायी तो वह किचन में चाय बनाने चली गयी। चाय बना कर लायी और मेरी चाय की प्याली मेरे पास रख कर बोली कि मैं अब जा रही हूँ रात का खाना बनाती हूँ । मैनें कहा कि आप सुबह से बना रही है अब मैं बनाता हूँ तो वह बोली कि काम का क्या होगा तो मैनें कहा कि काम तो होता रहेगा। यह कह कर मैं चाय का कप लेकर उन के साथ कमरे से बाहर आ गया। वह बोली कि तो क्या खिला रहे है आप आज रात को? मैनें कहा कि मेरा मीनू तो सीमित है, अरहर की दाल और चावल बना सकता हूँ तो वह बोली की चलेगे। आप बना लिजिये, मैं आ जाऊँगी, जब वह जाने लगी तो मैनें कुछ याद करके कहा कि वाणी जी अपना फोन नंबर तो दे कर जाईये। वह हंस कर बोली कि इतना कुछ हो रहा है लेकिन फोन नंबर का आदान-प्रदान नहीं हुआ। मैनें अपना फोन उन के हाथ में दे दिया। वह अपना नंबर डाइल करने लगी। जब बेल बज गयी तो काट दिया। इस के बाद वह दरवाजा बंद करके निकल गयी।

मैं काम खत्म करके खाना बनाने लग गया, पत्नी से फोन पर जानकारी जुटा ली। वह भी शायद वहां पर व्यस्त थी। एक घंटें में खाना बन गया। साढें आठ बजे वाणी जी को फोन किया तो वह आ गयी। दोनों खाना खाने लगे। खाना खाते में वह बोली कि अरहर की दाल तो बढ़िया बनायी है, तो मैनें उन्हें बताया कि यह तरीका मेरी नानी का है बचपन में मैं देखा करता था अभी तक ध्यान में था। खाने के बाद मैनें उन से पुछा कि रात को अगर परेशानी ना हो तो यही पर सो जाये। मैं यहां बाहर सो जाऊँगा आप कमरें में अंदर से बंद करके सो जाना। वह यह सुन कर बोली कि आप से डर थोड़ी ना लगता है तो मैनें हंस कर कहा कि मैं अपने डर की बात कर रहा था। वह बोली कि वहां नींद नहीं आती है, यहीं सोना सही रहेगा।

आप जैसा कहते है वैसा ही करतें है। मैं थोड़ी देर में घर बंद कर के आती हूँ। वह यह कह कर चली गयी। मैं भी ऑफिस का काम खत्म करने लगा। दस बजे के आसपास घंटी बजी तो वह ही थी। अंदर आ कर बोली कि हर चीज अच्छी तरह से देख भाल कर के घर बंद करके आयी हूँ, सुबह ही पता चलेगा कि क्या हूआ? मैनें कहा कि आप चिन्ता ना करें आराम से सोने की कोशिश करें, कोई बात हो तो मैं तो बाहर सो ही रहा हूँ। वह बोली कि आप से कुछ देर बातें करनी है। मैनें कहा बैठियें, हम दोनों आराम से दीवान पर बैठ गये। वह बोली कि आप को मेरा व्यवहार कैसा लग रहा है? मैनें कहा यह कैसा प्रश्न है, वह बोली कि ऐसा तो नहीं लग रहा कि मैं कोई नाटक कर रही हूं।

मैनें कहा कि पहले तो कुछ समझ नहीं आ रहा था। लेकिन आप की हालत देख कर मन कुछ और माननें को तैयार नहीं हो रहा था। उस रात को जो कुछ हुआ उस के लिये मैं अब तक शर्मिंदा हूँ। वह बोली कि मुझे भी कुछ पता नहीं है क्या हुआ था लेकिन मेरी सांस सी घुट रही थी,आप समझ सकते है किसी अकेले आदमी के पास रात में जाना कितना मुश्किल काम है, लेकिन जब जान पर बनी हो तब कुछ और नहीं सुझता, जो सही लगा मैनें किया। आप ने तो मुझे अलग ही सुला दिया था लेकिन वहां भी अकेले में डर गयी थी।

आप के साथ सो कर ही कुछ चैन सा मिला, फिर क्या हुआ कह नहीं सकती, लेकिन आप ने उस दिन कुछ नहीं छोड़ा सब कुछ कर लिया। मैनें कहा कि मैं अब तक समझ नहीं पाया कि उस दिन मेरा संयम कैसे टूट गया? फिर जो कुछ मैनें उस दिन किया वह तो मैं पत्नी के साथ भी नहीं कर सका हूं। आप के साथ, मुझे सोच कर भी अपने पर गुस्सा आता है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि शायद हम दोनों बहुत दिनों से बिना सेक्स के थे और मेरा व्यवहार भी मुझे ही समझ नहीं आ रहा है। जो कुछ हुआ हम दोनों के कारण हुआ था किसी एक को दोष नहीं दे सकते। कुछ गलत था यह सही है लेकिन उस परिस्थिति में मेरी जान भी जा सकती थी ऐसा आज मुझे लगता है।

मैं चुपचाप सुन रहा था। वह बोली कि ना आप बेवफा है और ना मैं बेवफा हुँ। आप ने उस के बाद भी मुझे कुछ नहीं कहा है आज भी बंद कमरें में सोने के लिये कह रहे है। मैं आप पर विश्वास करके ही आप के पास आती हूँ। जो कुछ हमारें बीच में हो गया है या हो रहा हैं वह किसी को पता नहीं चलेगा यह मैं अपनी तरफ से कह सकती हूँ। मैनें कहा कि मेरे पर भी आप भरोसा कर सकती है। यह खास संकटकाल है इस में घटी घटना हम दोनों तक ही सीमित रहेगी। मेरी बात सुन कर वह मुस्कराई और बोली कि आप की पत्नी भाग्यशाली है जो आप जैसे पति उन को मिले है। मैं हंस कर बोला कि यह तो वह ही बेहतर बता सकती है।

अब तक मेरी झिझक दूर हो गयी थी, मैनें उन से पुछा कि उस रात मैनें आप से गुदा मैथुन कर डाला आप को बुरा तो नहीं लगा, मेरी बात सुन कर वाणी जी बोली कि नहीं, दर्द तो बहुत हुया था, लगा कि गुदा में आग लग गयी है लेकिन उस समय सारे शरीर में लावा सा बह रहा था।

दर्द भी अच्छा लग रहा था, मैनें शायद इतना लम्बा संभोग नहीं किया था। हम दोनों ही उस समय होश में नहीं थे जो आप कर रहे थे मैं बस उस में साथ दे रही थी मैने भी आप को शायद काटा था नोचा था? मैनें उन्हें बताया कि मेरी पीठ पर अभी भी उन के नाखुनों के लगाये जख्म भरे नहीं है। उन के नाखुन मेरे कुल्हों के मांस में गड़ गये थे। वह सब कुछ जो हम कर रहे थे पाशविक था। उस के बारें में जितना भी सोचता हूँ मुझे आश्चर्य होता है कि मैं इतना सब कैसे कर पाया।

होश में तो मैं किसी को जबरदस्ती पकड़ने की भी नहीं सोच सकता। वह बोली कि मुझे उस रात लगा कि आप को हर काम करने की बहुत जल्दी रहती है इस लिये आप सेक्स में इतनी जल्दबाजी कर रहे है। उस का आनंद नहीं ले रहे। मैनें कहा कि पता नहीं क्या पता मैं भी उस समय किसी और के वश में था। उस समय लग रहा था कि यह जो आग शरीर में लगी है वह जल्दी से बुझ जाये, लेकिन आग बुझने की बजाए भड़क रही थी। उस समय जाने कहाँ से ताकत आ गयी कि योनि की बजाए गुदा में लिंग डाल दिया, डाला ही नहीं पुरा घुसेड़ दिया, जहां तक मुझे पता है ऐसा करना पहली बार में बहुत कठिन है।

शायद लिंग पुरी तरह से चिकना हुआ पड़ा था, जरा ज्यादा जोर लगाया उसे जहां जगह मिली घुस गया। वाणी जी बोली कि मुझे तो लगा कि मैं मर जाऊंगी, मेरी शायद चीख भी निकली थी लेकिन आप पर कोई असर ही नहीं पड़ा आप अंदर बाहर करते रहे। बाद में मुझे मजा आने लगा था। तभी आप नें लिंग गुदा से निकाल कर मुझे सीधा करके फिर से योनि में डाल दिया। योनि तो सुन्न सी हो गयी थी। आप जब स्खलित हुये तो गर्म सा लगा। मैनें उन्हें बताया कि उस के बाद वह भी स्खलित हुई थी और मेरा सारा लिंग गर्म लावें से नहा गया था। जब मेरा लिंग बाहर निकला तभी मुझे आराम पड़ा था।

उन्होनें भी कहा कि इस के बाद उन के शरीर को आराम मिला था और वह गहरी नींद में सो गयी थी। मैनें भी कहा कि यही मेरा भी हाल हुआ था। हम दोनों एक दूसरे के साथ इतनी सरलता से यह बातें कर रहे थे इतनी सहजता से तो मैं यह बातें अपनी पत्नी से भी नहीं कर पाता, जबकि वह ऐसी बातें आराम से कर लेती है। वह बोली कि आप के साथ मैं सहज महसुस कर रही हूँ। इस का कारण रात का संभोग तो नहीं हो सकता। वह तो इस सहजता की वजह से हुआ था।

मैनें वाणी जी से कहा कि उस दिन से पहले मैनें किसी के साथ गुदा मैथुन नहीं किया था। वह मुस्कराई और बोली कि एक बार इन्होनें ट्राई किया था लेकिन अंदर नहीं जा पाये थे। आप तो एक बार में ही पुरा अंदर डाल दिया था। उस समय आप में बहुत ताकत आ गयी थी। मैनें सहमति में सर हिलाया। वह मुस्कराई और बोली कि दूबारा कभी ऐसा होगा तो आप जल्दीबाजी मत करना। मैं उन की तरफ देखता रह गया। वह मेरी तरफ देख कर बोली कि किसी भी औरत को ऐसी संतुष्टि की लालसा होती है, मैनें उस का स्वाद चख लिया है तो लालसा जग गयी है। लेकिन आप के बारें में कह नहीं सकती? मैनें उन की आंखों में देख कर कहा कि मैं आप से सहमत हूँ, वैसा संभोग तो मैनें कभी नहीं किया। आगे का कुछ कह नहीं सकता। मेरी बात सुन कर वह मुस्कराई और उठ कर कमरें में चली गयी। कुछ देर बाद दरवाजा बंद होने की आवाज आयी। मैं भी दीवान पर लेट गया। नींद अभी आसानी से कहा आनी थी। कहानी तो अभी शुरु हो रही थी। आगे क्या होगा यह कौन बता सकता था?

रात बिना किसी घटना के बीत गयी। सुबह उठ कर वह चाय पी कर जाने लगी तो मेरी तरफ देख कर बोली कि आप बहुत संयमी है, किसी औरत के साथ बिना उसे छुये अलग से सो पाये यह आप के संयम को दर्शाता है। फिर वह मुस्कराती हूई चली गयी।

मैं पहले दूध लेने गया और वापस आ कर नहा धो कर नाश्ता बनाने लग गया। नाश्ता करने के बाद कुछ देर आराम करनें के लिये बैठ गया। कुछ देर बाद घंटी बजी और दरवाजे पर वाणी जी दिखाई दी। अंदर आने के बाद वह बोली कि आज दोपहर का खाना मैं बना रही हूँ, बताए क्या खाना चाहते है? मैनें उन से कहा कि मैं इस बारें में क्या कहुं? वह बोली कि कल दूध से पनीर बनाया था, सो पनीर की सब्जी बनाती हूँ उस के साथ चावल सही लगते है। मैनें सहमति में सर हिलाया तो वह बोली कि दो-तीन बजे तक खाना बना कर लाती हूँ आप अपना काम खत्म कर लिजियेगा। यह कह कर वह चली गयी।

मैं अपने कामों में लग गया। दोपहर के खाने के बारें में सोचने की आवश्यकता नहीं है। जरुरी काम करके ऑफिस का काम करने बैठ गया। तीन बजें घंटी बजी और वाणी जी खाना ले कर अंदर आ गयी। मैनें उन्हें कहा कि वह कुछ देर इंतजार करें मैं काम खत्म करके खाना खाने आता हूँ। वह टीवी देखने बैठ गयी। मैं वापिस काम में लग गया। चार बजे के करीब काम से छुटकारा पा कर वाणी जी के पास आया तो वह टीवी देखते देखतें सो गयी थी। मेरे ड्राइगरुम में आने की आहट पा कर वह उठ कर बैठ गयी। बोली कि आंख लग गयी थी। मैं कुछ नहीं बोला लेकिन यह समझ आ गया कि कल रात वह सही तरीके से सो नहीं पायी थी। आज इस का कोई उपाय करना पड़ेगा। लेकिन इस में उन की सहमति भी जरुरी थी। खाने के बाद उन से इस बारें में बात करनी पड़ेगी।

वाणी ने खाना लगा दिया था, हम दोनों चुपचाप खाना खाने लगे। पनीर की सब्जी बढ़िया बनी थी। भरपेट खाना खा कर बातें करने बैठ गये। वह चलने लगी तो मैनें उन्हें रोक कर कहा कि आप से कुछ बात करनी थी। वह चौक कर मेरी तरफ देखने लगी। मैनें कहा कि आराम से बैठिये, बताता हूँ। वह मेरे सामने बैठ गयी। मैं कुछ देर चुप रहा फिर बोला कि हो सकता है मेरी बात आप को बुरी लगें या आप को लगे कि मैं सिर्फ अपने बारें में सोच रहा हूँ या सिर्फ सेक्स की बात कर रहा हूँ, आप कुछ भी सोच सकती है लेकिन मैं आप की अवस्था को देख कर परेशान हूं और चाहता हूँ कि आप कुछ दिनों तक मेरे साथ यहां आ कर सोये।

इस से आप का डर कम होगा तथा आप आराम से सो पायेगी, जो आप की सेहत के लिये जरुरी है, इस काल में सेहत का सही रहना बहुत जरुरी है। यह कह कर मैं चुप हो गया। वह मेरी बात सुन कर कुछ देर सोचती रही, फिर बोली कि आप की बात सही है कि आज के माहौल में सेहत सही रहना पहली जरुरत है नहीं तो बहुत मुश्किल में पड़ सकती हुँ। हम साथ सोयेगें तो सेक्स भी करेगें यह तो होगा ही इस लिये शायद आप झिझक रहे थे। मैं यह सब समझती हूँ लेकिन इस समय तो जान बचाना पहली जरुरत है नैतिकता कि जब चिन्ता तब करेगें जब जीवित बचेगें। मैं अपने घर में और यहां भी अकेले सो नहीं पा रही हूँ कल भी सारी रात में करवटें बदलती रही लेकिन आप के पास इस लिये नहीं आयी कि आप यह ना समझे कि मैं सेक्स के लिये मरी जा रही हूँ।

मैनें अपने हाथ से उन के हाथ को दबाया और कहा कि जरुरी नहीं है कि हर रात सेक्स ही होगा लेकिन अगर आप बिना डर के सो पाती है तो सही रहेगा। इस कारण अगर और कुछ होता है तो उसे होने देते है। वह मेरी बात सुन कर मुस्कराई और बोली कि पता नहीं आप को मेरी इतनी चिन्ता क्यों है? मैनें कहा कि शायद आप मेरे को पसन्द आ गयी है इस कारण से अपने फायदे के लिये चिन्ता कर रहा हूँ, मुझे भी अकेले नींद नहीं आती, कुछ ना कुछ करना पड़ता है। वह यह सुन कर मुस्करा दी और बोली कि कितने साल हो गये आपकी शादी को? मैने कहा तीन साल। वह बोली तभी तो गर्मी बाकी है। मैनें कहा कि हम दोनों तो एक या दो दिन छोड़ कर सेक्स करते ही है। जितना समय बीत रहा है इसका आनंद बढ़ रहा है। वह बोली कि आज देखते है क्या होता है। मैं कुछ पुछने वाला था तो वह बोली कि जो आप पुछना चाहते है उस का इलाज किया हुआ है।मैं पील्स लेती हूँ तो आप उस बारें में ना सोचे। हम दो अनजानें स्त्री-पुरुष कितनी सहजता से जीवन की सबसे कठिन बातचीत कर रहे थे यह मेरे लिये आश्चर्य की बात थी। वह उठ कर बरतन ले कर चली गयी।

मैं फिर से ऑफिस के काम में लग गया। रात का खाना भी वही बना कर लायी थी। खाना खा कर हम दोनों फिर से बातें करने लगें। मैनें पुछा कि कब से आप को वह चीज दिखायी देने लगी है तो वह बोली कि लॉकडाउन लगने के दूसरे दिन से ऐसा हुआ है। मैनें कहा कि इस से पहले आप को नींद सही तरह से आती थी तो वह बोली कि मुझे गहरी नींद आती है, एक बार सोने के बाद रात में बीच में उठती नहीं हूँ, उस दिन नींद नहीं आने के कारण उठ कर बाथरुम जाने लगी तो उसे देखा, पहले लगा कि मेरा भ्रम है लेकिन ऐसा नहीं था। रात को ही ऐसा होने लगा।

मैनें पुछा कि कोई ऐसी बात तो नहीं हुई तो आप को अजीब लगी हो? वह बोली कि ऐसा कुछ नहीं है। कोई आया नहीं है। ना ही मैं कही गई थी। मैनें कहा कि कई बार हम जब परेशान होते है तो हमारा दिमाग ऐसी वस्तुओं की रचना कर लेता है। फिर वह चीजें हमें असली लगने लगती है। यह भी एक थ्योरी है। लेकिन आप के घर जा कर मुझे नेगेटिव एनर्जी महसुस हुई थी। इस लिये मैं आप के लिये और चिन्तित हूँ। इसी कारण से मैनें ऐसा खतरनाक कदम उठाया है जो हम दोनों की जिन्दगीयों में आग भी लगा सकता है। वह यह सुन कर बोली, आप सही कह रहे है, इस समय को कोई सहायता भी नहीं कर सकता है।

मैं और कहीं जा भी नहीं सकती, सिर्फ आप ही यहां पर नजदीक है। और आप से मेरी बन भी रही है। आप भी बहुत बड़ा खतरा उठा रहे है। मैनें सर हिलाया। कुछ देर बातें करने के बाद मैनें दरवाजा बंद किया और हम दोनों कमरें में सोने के लिये चले आये। दोनों बिस्तर पर एक एक किनारें पर लेट गये। कुछ देर ऐसे ही पड़े रहे फिर वाणी मेरी तरफ मुड़ी और बोली कि आज सब कुछ आराम से कर सकते है? मैनें कहा कि हां कर सकते है इस में कोई बाधा नहीं है। वह आज साड़ी पहने हुई थी। मैं भी बाक्सर पहन रहा था। गरमी शुरु हो गयी थी।

मैनें वाणी को अपने करीब किया और उन के होठों का चुम्बन ले कर कहा कि रात कैसी बीतेगी कह नहीं सकते? वह बोली कि अनुभव तो कहता है कि जोरदार रहेगी। यह कह कर वह मुझ से लिपट गयी और बोली कि मैं और आप एक पुरुष और औरत है इस के सिवा सब भुल जाईये। उन की बाहों का कसाब मेरी पीठ पर बढ़ गया। मैं उन के माथे पर चुम्बन ले कर उन की आंखों पर चुम कर होठों पर आ गया। फिर हम दोनों एक दूसरें को इस तरह चुमने लगे जैसे कोई प्रेमी युगल काफी दिनों बाद मिला हो। उन की जीभ मेरे मुह के अंदर अठखेलियां करने लगी।

मैं उसे चुसने लगा। काफी समय तक दोनों चुम्बन रत रहे, जब सांस फुल गयी तब अलग हुए। फिर मैं उन की गरदन को चुमने हुए नीचे छाती पर आ गया। 32इंच की पुष्ट छाती कसी हुई और ब्रा में होने के कारण मेरे होठ उस के साथ ज्यादा कुछ नहीं कर सकते थे सो उरोजों के बीच चुम्बन से ही काम चला रहे थे। हां मेरे हाथ ब्लाउज के ऊपर से छातियों को दबा रहे थे।

इस के बाद मैनें हाथ से उनकी कमर सहलाई और नीचे की तरफ हाथ किया तो वह पेटीकोट में फंस गया। मैनें ऊपर से ही योनि को सहलाया। वह भी मेरी छाती पर अपनी गरम सांस छोड़ रही थी। हाथ कपड़ें के ऊपर से निप्पलों को दबा रहें थे। मतलब यह की दोनों के शरीर वासना से भरे हुये थे और एक लम्बें संभोग के लिये तैयारी कर रहे थे। अब देर करने की कोई आवश्यकता नहीं थी सो मैनें उन की साड़ी उतार कर एक तरफ रख दी और ब्लाउज के हुक खोल कर उसे उतार दिया, स्किन कलर की ब्रा में कसे उरोज ललचा रहे थे सो जल्दी से हाथ पीठ के पीछे ले जा कर ब्रा के हुक भी निकाल दिये। इस के बाद ब्रा को भी अलग रख दिया।

अब मेरे सामने 32 साइज के भरे स्तन थे और मैं उन का रस चुसने के लिये लालायित था सो मुह झुका कर उन के निप्पलों को एक एक करके चुसने लगा। वाणी को मुझ से एक ही शिकायत थी कि मैं जल्दबाजी करता हूँ तो मैं आज इस से बचना चाहता था लेकिन कुछ बातों में धैर्य रखना मुश्किल होत है सो ही हो रहा था। मेरे जोर-जोर से निप्पल चुसने के कारण उस के मुह से कराह निकल रही थी, लेकिन मन ही मन वह भी यह सब चाहती थी सो जो हो रहा था उस में भाग ले रही थी।

एक हाथ से दायें उरोज को मसल रहा था और दूसरें को पकड़ कर होठों से काट रहा था। उत्तेजना वश जो सही लग रहा था वह में वाणी के उरोजों के साथ कर रहा था। जोर से मुह में निगल कर चुसने की वजह से दातों के निशान भी बन रहे थे। लेकिन वासना की आग ने अंधा किया हुआ था। काफी देर तक उरोजों के साथ मेरा यह खेल चलता रहा फिर मेरे होठ कमर पर आ गये और कसी, सपाट कमर पर चुम्बन लेने लगे। खिसकते हुये नाभी की गहराई को जीभ से नापा और उस के नीचे की यात्रा आरम्भ कर दी। नीचे पेटीकोट के रुप में बाधा थी उस का नाड़ा खोल कर उसे नीचे किया और घुटनों तक कर दिया।

अब जांघों का सन्धिस्थल दिख रहा था लेकिन वह भी पेंटी से ढ़का हुआ था सो पेंटी के दोनों तरफ उगंली फंसा कर उसे भी घुटनों तक कर दिया। अब हल्कें बालों से ढ़की योनि के दर्शन हुये। पिछली बार इस के रस का स्वाद नहीं लिया था। शायद इसी लिये वाणी ने जल्दबाजी का ताना मारा था। इस बार ऐसा नहीं करना था सो आराम से नाक से उस की तीखी सी सुंगध को सुघा और जीभ को नीचे से लेकर ऊपर तक फिराया। कसैला सा स्वाद जीभ को मिला। उत्तेजना के कारण योनि से नमी बाहर आ रही थी।

केले के तने के समान कदंलीदार जांघों के देख कर मन शरारत करने को ललचा रहा था सो उन को चुमते हुये नीचे घुटनों तक आ गया फिर पेटीकोट और पेंटी को पंजों से नीचे कर के उतार दिया। पिडलियों को चुम कर दोनों पंजों की दसों ऊगलियों को होठों में ले कर चुमा। इस के बाद वाणी को पेट के बल कर के पिड़ालियों के पीछे के हिस्सें पर होठों की छाप लगातें हुये जांघों के ऊपर कुल्हों पर जा पहुंचा वहां मांसल 34 साइज के कुल्हों को हाथों से सहलाया और दातं से काटा और उन की गहराई में चुम्बन लिया। इस के बाद कमर के खम पर चुम कर रीढ़ की हड्डी को जीभ से चाटते हुये गरदन तक पहुंच गया। कंधों पर गहरें चुम्बन के निशान बन गये थे। वाणी कुनमुनायी की लव वाईट मत करो, लेकिन उस की बात सुन कौन रहा था। मैं उन की बगल में लेट गया फिर उन्हें उठा कर अपने ऊपर बिठा लिया।