लॉकडाउन

PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

हनुमान जी तो ऐसी शक्तियों से रक्षा करने वालें मानें जाते है शायद उन के नाम का उच्चारण ही हमारी बाधा को दूर कर दे। उस ने कुछ नहीं कहा। नाश्ते के बाद मैं तो काम में उलझ गया और वह टीवी देखने में लग गयी। 3 बजे के बाद जब काम खत्म करके कमरें से बाहर आया तो देखा कि वह ड्राइगरुम में नहीं थी, किचन में गया तो वहां पर खाना बना रही थी, मुझे देख कर बोली कि मैनें सोचा कि तुम देर में खाते हो तो मैं देर में ही बनाती हूँ ताकि तुम खाना गरम खा सकों।

उस की यह बात सुन कर मुझे अपने अंदर बहुत शर्म महसुस हुई की मैं इस के साथ जबरदस्ती करता हूँ और एक यह है कि मेरे लिये अभी तक भुखी रह कर खाना बना रही है। मुझे लगा कि मुझे अपने व्यवहार के लिये वाणी से माफी मांगनी चाहिये। वह खाना ले कर ड्राइगरुम में आ गयी और हम दोनों खाना खाने लगे। दोनों चुप थे, क्या बात करें यह पता ही नहीं था। मैनें ही मौन तोड़ा और पुछा कि कितनी बार हनुमान चालीसा चलाया तो वह बोली कि चार बार तो चला चुकी हूँ। इस के बाद फिर मौन पसर गया। खाने के बाद हम दोनों सामान उठा कर किचन में रख आये।

फिर से ड्राइगरुम में आ कर बैठ गये। वाणी सोफे पर बैठी थी, मैं उठ कर उस के पास गया और उस के पेरों के पास जमीन पर बैठ कर बोला कि वाणी मैं अपने रात के व्यवहार के लिये बहुत शर्मिदा हूँ और तुम से माफी चाहता हूँ, मैनें कल जो भी किया, कैसे भी किया, बहुत गलत था, उस से तुम्हें जो मानसिक और शारीरिक कष्ट पहुंचा है उस के लिये मैं क्षमा चाहता हूँ, मैं कोई बहाना नहीं करना चाहता, जो गलत था वह गलत है, तुम मेरी शरण में थी और मैनें उस का गलत फायदा उठा कर जबरदस्ती की उस की जो सजा तुम सही समझों मुझे दे सकती हो।

अगर परिस्थिति ऐसी ना होती तो मैं तुम्हें अपना चेहरा भी नहीं दिखाता। मेरी यह बात सुन कर वाणी कुछ क्षण अवाक् सी बैठी रही, फिर बोली कि मुझे पता है तुम ऐसे नहीं हो, जो कुछ हुआ वो गलत था लेकिन उस के लिये अब मुझे शर्मिदा मत करों। तुम नें अपनी गलती मान ली है बात खत्म, लेकिन तुम ही मेरा सहारा हो तो अपने आप को इस बात के लिये कोसना बंद कर दो। मैरें साथ तो कई दिनों से गलत हो रहा है, कल की घटना तो उस का परिणाम ही हो सकती है। सब कुछ भुल जायो और हम दोनों को उस चीज से बचाने का कोई तरीका सोचों।

मैनें कहा कि दिमाग ने काम करना बंद कर दिया है यही समझ आ रहा है कि हनुमान जी ही हमें इस विपदा से बाहर निकालेगें। कहते है कि अगर हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ किया जाये तो हर बाधा दूर हो जाती है। हम विधि-विधान तो नहीं जानते लेकिन उन का नाम तो ले सकते है। वह कुछ नहीं बोली। इसी बीच मुझे याद आया कि एक बार किसी पंड़ित जी से मिला था जो बाहरी बाधा दूर करते थे। शायद उन का नंबर हो, यह सोच कर फोन खंगालने लगा।

किस्मत की बात थी उन का नंबर मिल गया। उन का नंबर मिलाया तो उन्होनें ही फोन उठाया अपना परिचय दिया तो वह पहचान गये। उन को समस्या बतायी तो वह बोले कि कोई साया आपके मकान के आसपास रहता होगा, रात को तेल लगा कर जाने के कारण आकर्षित हो कर आ गया है, पता नहीं कितना शक्तिशाली है,लेकिन कुछ उपाय बता रहा हूँ इन को कर के देखों, फिर वह बोले कि एक साफ गिलास में पानी लो, मैनें वाणी से कह कर पानी मगायां तो उन्होनें कहा कि फोन की आवाज फुल करके फोन के स्पीकर को पानी के गिलास के ऊपर करीब रखो, मैनें ऐसा ही किया, फिर वह कोई मंत्र का पाठ करने लगे। जब पाठ खत्म हो गया तो बोले की इस पानी को किसी बड़े बरतन में पानी ले कर उस में मिला दो और एक मंत्र लिख लो इस का जाप करते हुये अभी जा कर सारे घर में छिड़क दो अपने घर में भी छिड़क देना, तथा बाद में अपने ऊपर भी छिड़क देना, भगवान् भली करेगें। यह कह कर उन्होनें फोन काट दिया।

मैनें वाणी को सारी बात बतायी और उस से बरतन में पानी लाने को कहा, वह बरतन में पानी ले कर आ गयी। मैनें गिलास का पानी उस में मिला दिया और हम दोनों वाणी के घर की तरफ चल दिये। उस के घर के दरवाजा खोल कर अंदर गये और सारे घर में जल छिड़कना शुरु कर दिया, जल छिड़कते ही बड़ी बदबु आनी शुरु हो गयी, लेकिन हम नें जल छिड़कना जारी रखा। वहां जल छिड़क कर हम दोनों ताला लगा कर उस के दरवाजे पर भी जल छिड़क कर अपने घर आ गये, यहां भी मैनें सारे घर में जल छिड़का, यहां ऐसा कुछ खास हमें नहीं लगा।

इसके बाद में मैनें वाणी पर अच्छी तरह से जल छिड़का और सबसे बाद में अपने पर वह जल छिड़का तो मुझे लगा कि मैं हल्का सा हो गया हूँ। मैनें हाथ जोड़ कर प्रार्थना कि की भगवान हम पर कृपा करों। यह काम करते करते शाम घिर आयी थी। मन तो कह रहा था कि वाणी के घर जा कर देखे लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी। पंड़ित जी को फोन करके बताया कि जैसा कहा था वैसा ही किया है तो वह बोले कि गिलास पानी ले लो, फिर से उन्होनें उसे मंत्र से अभिमंत्रित कर दिया और कहा कि रात में अगर कुछ लगे तो उस पर इसे छिड़क देना सारा मत खर्च करना सुबह तक के लिये बचा कर रखना, केवल कुछ बुंद ही डालनी है। मैनें उन्हें धन्यवाद दिया तो वह बोले कि मेरा तो काम ही ऐसे पीडि़तों की सहायता करना ही है।

हम दोनों की भुख मर सी गयी थी लेकिन वाणी ने दाल-चावल बना लिये थे सो हम दोनों नें उन्हें खा लिया। आज हमें नींद नहीं आनी थी, जो उपाय हमने किया था उस की प्रतिक्रिया भी देखनी थी। हमें नहीं पता था कि क्या होगा? हम तो बस प्रार्थना कर सकते थे। रात गहराती रही, हम इंतजार में थे कि कब कुछ हो जाये लेकिन एक बार बड़ी गंदी बदबु का आभास तो हुआ लेकिन जल्दी ही वह उड़ गयी। नींद भरी आंखों से हम ने सारी रात काटी, लेकिन रात को कुछ नहीं हुआ। सुबह उठ कर जल हाथ में ले कर हम दोनों वाणी के घर में घुसे तो वहां बड़ी बदबु आ रही थी लेकिन हमारे जल छिड़कते ही वह बदबु खत्म हो गयी, लगा कि घर में ताजी हवा चल रही है। माहौल खुशनुमा सा हो गया। वाणी बोली कि तुम यही बैठों में नहा कर पूजा कर लेती हूँ। मैं वही बैठ गया वह नहाने चली गयी, नहा कर आयी तो पूजा करने लगी और फिर सारे घर में घुप बत्ती करके बोली कि चलो तुम्हारें यहां चलते है, कहीं वहां ना चली गयी हो। मेरे मन में भी यही आशंका थी। अपने घर में आ कर मैनें जल छिड़कना शुरु किया तो हल्की सी बदबु का अहसास सा हुआ लेकिन फिर वह भी गायब हो गयी। जल छिड़क कर कुछ जल मैनें अपने और वाणी पर भी छिड़क दिया। इस के बाद मैं नहाने चला गया और नहाने के बाद पूजा करने के लिये बैठ गया। पूजा करने के बाद घुप-बत्ती करने के बाद माहौल हल्का हो गया। वाणी बोली कि क्या खाना है नाश्तें में आज में तुम से बड़ी खुश हुं।

मैनें भी मजाक में कहा कि आलु के पराठें पेश किये जाये तो वह बोली कि उस के लिये कुछ समय इंतजार करों। तुम्हारी इच्छा पुरी होगी। यह कह कर वह किचन में चली गयी। मुझे भी लगा कि माहौल वाकई हल्का हो गया है। कुछ देर बाद वह आलु के पराठें ले कर आ गयी । हम दोनों पराठें खाने लगे। वह बोली कि पंड़ित जी की याद कैसे आयी? मैनें कहा कि जब सकंट आता है तो उस का हल भी मिलता है। इन से किसी ने मिलवाया था, मैनें नंबर भी लिया था, लेकिन याद नहीं आ रहा था।

आज अचानक याद आया और उन्होनें सहायता भी की, ऐसा होना भी ईश्वर की मर्जी ही कही जा सकती है। आशा करे कि यह बाधा अब दूर हो गयी हो। वह बोली कि ऐसा ही हो। हम दोनों नाश्तें के बाद फिर से वाणी के घर का चक्कर लगा कर आये, वहां अब की बार मुझे कोई नेगेटिव एनर्जी महसुस नहीं हुई। हम कुछ देर वहां पर रहे और फिर वापस आ गये। शंका फिर भी मन थी लेकिन मन में कुछ तो ढाढस बधा ही था। दोपहर के खाने के बाद कुछ देर आराम करने के बाद फिर वाणी के घर का चक्कर लगा कर आये। कुछ बदलाव नहीं मिला। कुछ चैन पड़ा। शाम की चाय पर हम दोनों नें तय किया की अगले दो दिन तक हम दोनों अलग-अलग सोयेगें, वाणी कमरें में और मैं ड्राइगरुम में।

रात को ऐसा ही हुआ हम दोनों काफी देर तक गप्प मारते रहे फिर सोने चले गये। रात बिना किसी परेशानी के गुजर गयी। सुबह वाणी के घर में भी कुछ नहीं मिला या लगा। वाणी ने पूजा की और अन्य कार्य किये। अभी वह वहां अकेले रुकने के लिये तैयार नहीं थी मैं भी ऐसा नहीं चाहता था। दूसरा दिन भी आराम से गुजर गया, रात भी आयी और चली गयी। सुबह वाणी बोली कि आज क्या करें? मैनें कहा कि जैसा कर रहे है वैसा ही करेगें। कई दिन गुजर गये, कुछ खराब नहीं हुआ। हम दोनों भी एक दूसरें से दूर ही रहे।

लॉकडाउन और बढ़ गया था। हफ्ते बाद एक रात वाणी नें रात अपने घर में अकेले गुजारी। रात में कुछ नहीं हुआ, वह रात में कई बार जगी और पुरे घर में घुम कर देखा, उसे कुछ नहीं दिखा। सुबह उस ने मुझे बताया कि वह अभी भी अकेले नहीं रह सकती है, इस बार अगर कुछ हुआ तो मैं मरी ही मिलुंगी। मैं उस के जीवन के साथ कोई खतरा उठाना नहीं चाहता था सो यह तय हुआ कि वह मेरे साथ ही रहेगी। जब उस के पति आयेगें तब सोचेगें उन्हें क्या बताना है। मैं भी देखुंगा कि अपनी पत्नी को क्या बताऊं। मेरी बात से उस के चेहरे पर संतोष नजर आया।

समय ऐसे ही गुजर रहा था, लॉकडाउन खत्म ही नहीं हो रहा था। एक महीना गुजर चुका था। हम दोनों के बीच अच्छा सामजस्य बन गया था। हम दोनों जानते थे कि यह संबंध तभी तक है जब तक किसी का पति या पत्नी वापस नहीं आता या आती। संकट के समय बने संबंध वैसे तो गहरे और लम्बें चलते है लेकिन हमारा संबंध लम्बा नहीं चलने वाला था क्योकि वह दो परिवारों को तोड़ सकता था सो हम दोनों समय का सदुपयोग कर रहे थे सेक्स का मजा ले रहे थे तथा एक दूसरें की संकट के समय रक्षा कर रहे थे। मेरी कोशिश थी कि हम दोनों के बीच कोई गहरा संबंध ना बने लेकिन अपना चाहा कब होता है? हम दोनों के बीच संबंध गहरा होता जा रहा था, उस शक्ति के कारण हम दोनों डरें हुये थे।

लेकिन फिर भी उस का सामना कर रहें थे। लग रहा था कि उस शक्ति नें वाणी का पीछा छोड़ दिया था लेकिन वह अभी भी अपने घर में अकेली रहने को मानसिक तौर पर तैयार नहीं थी, मैं भी नहीं चाहता था कि वह दूबारा फिर उसी अनुभव से गुजरें। दोनों साथ साथ सोते थे। संभोग भी करते थे। दिन में दोनों अपने घरों में रहने की कोशिश करते थे। दोनों के मन में एक दूसरें के प्रति प्रेम उत्पन्न हो चुका था लेकिन दोनों में से कोई भी इसे व्यक्त नहीं करना चाहता था। उसे अपनी मजबुरी पता थी।

तीन महीने बाद लॉकडाउन में छुट मिलनी शुरु हुई तो सबसे पहले वाणी के पति बहुत परेशानी के साथ वापस आ पाये। उनको 15 दिनों तक क्वारनटायिन रहना पड़ा। वाणी का मुझ से मिलना कम हो गया, केवल सुबह दूध लाने के समय ही उस से मिलना हो पाता था। उस समय भी उस के चेहरे पर परिचय के भाव परिलक्षित नहीं होते थे। मैं भी अपरिचितों की तरह ही बरताव करता था। कुछ समय के बाद मेरी पत्नी भी वापस आ गयी, उस के आने के बाद मैं बड़ा खुश था, उस को लेकर मेरी चिन्ता उस के सामने रहने से कम हो गयी थी। वह भी इतने दिनों तक मेरे से दूर रहने के कारण मुझ से ज्यादा करीब हो गयी थी।

मैनें उसे वाणी और उस के घर में हुई घटना के बारें में कुछ नहीं बताया था। वाणी और मैनें तय किया था कि जब तक जरुरत ना हो हम इस बात को किसी को नहीं बतायेगें। हम उसी का पालन कर रहे थे। मेरी और मेरी पत्नी की सेक्स लाइफ पहले ही काफी बढ़िया थी, एक-दूसरे से दूर रहने के बाद अब वह और जोरदार हो गयी थी।

कुछ दिनों बाद मैनें वह घर छोड़ दिया, मेरी तरक्की हो गयी थी और मैं अपने लिये बड़ा घर लेना चाहता था, इस लिये मौका मिलते ही वहां से निकल गया। लॉकडाउन में घटी घटना से मुझे अभी भी डर लगता था, उस समय तो पता नहीं मुझ में कहां से हिम्मत आ गयी थी मुझे पता नहीं चला। घर बदलतें समय मेरी मुलाकात वाणी से नहीं हुई। बाद में पत्नी नें बताया कि वह अपने नये घर का पता उन को दे कर आयी थी कि कभी कोई पत्र वगैरहा आये तो हमें वह संपर्क कर सके। यह जान कर मुझे अच्छा लगा कि वाणी को पता है कि मैं कहां हूँ। मैं यहां आ कर अपने जीवन में व्यस्त था। अतीत की बातें मन की गहराई में दब गयी थी।

एक दिन अकेला किसी मॉल में घुम रहा था, तभी किसी नें पीछे से मेरा नाम पुकारा, उस आवाज को मैं भुल नहीं सकता था। यह वाणी की आवाज थी, वह लपकती हुई आ रही थी। उस के साथ भी कोई नहीं था। मेरे पास आ कर वह बोली कि कैसे है? मैनें नमस्कार करके कहा कि सही हूं आप बताये कैसी है? वह बोली कि मुझे देख कर कैसा लग रहा है? तो मैं बोला कि सही लग रही हो।

यह सुन कर वह बोली कि हम नें भी वह मकान छोड़ दिया है। नयी जगह आ गये है। बड़ा घर लिया है। अपना ही खरीद लिया है। सब सही चल रहा है। मैनें पुछा कि साहब कहाँ है तो वह बोली कि साहब तो टूर पर है। तुम अकेले कैसे हो? मैनें उसे बताया कि मैडम किसी शादी में गयी है। वह बोली कि चलों कॉफी पीते है। हम दोनों कॉफी हाउस में आ कर बैठ गये।

मेज पर आमने सामने बैठे एक दूसरे को देखते रहे। वाणी बोली कि कुछ बोलते क्यों नही? मैं उसे देखता रहा और बोला कि क्या बोलु? क्या सुनना चाहती हो। वह बोली कि जो सुनना चाहती हूँ वह तुम कह नहीं सकते। यह मुझे पता है इस लिये ज्यादा की चाहत नहीं है। लेकिन चुप तो मत रहो। मैं हंस दिया और बोला कि यार उन दिनों मैं ही बोलता था, अब तुम्हारी बारी है तुम बताओं क्या चल रहा है।

वह बोली यह हुई ना कोई बात। वाणी बोली कि आज तुम से एक बात कहना चाहती हूँ बुरा मत मानना, मैनें कहा कि अब क्या बुरा मानना। वह बोली कि तुम नें मुझे दूसरा जीवन दिया है और मैं इतनी अभागी हूँ कि अपने जीवन दाता को धन्यवाद भी नहीं दे सकती। मैं बोला अब यह क्या बात हूई? वह बोली कि तुम नहीं समझोगें, इन दिनों खाली समय में मैनें यह समझा है कि उन दिनों तुम नें अपना सब कुछ दांव पर लगा कि मुझ अजनबी के लिये इतना सब कुछ किया, तुम्हारा मेरा कुछ ना कुछ संबंध तो है।

उस की बात सुन कर मैनें मुस्करा कर कहा कि अब तुम बड़ी-बड़ी बातें करने लगी हो, यह बदलाव आया है। वह बोली बात को घुमाओं मत सीधा जबाव दो।मैनें कहा कि हमने पहले ही तय किया था कि इस सवाल का जबाव कभी नहीं पुछेगें। आज क्या जरुरत पड़ गयी? वह बोली कि तुम से दूबारा मिलना नहीं हुआ, तुम्हारी पत्नी ने पता तो बता दिया लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुई मिलने की, लेकिन भाग्य नें आज फिर मिला दिया है।

तुम्हें नहीं लगता कि कोई हमें एक साथ करना चाहता है। मैनें उसे ध्यान से देखा और फिर कहा कि बड़ी खतरनाक बातें कर रही हो। वह बोली कि बात सही है या नहीं है यह बताओं? मैनें कहा कि तुम्हारी बात सही है, लेकिन और सारी बातें इस से भी ज्यादा सही हैं। वह यह सुन कर चुप रही और कुछ सोच कर बोली कि कुछ मागूं तो मिलेगा। मैनें उसे देख कर कहा कि उसे इतनी छुट तो है ही। वह बोली कि एक दिन मेरे साथ बिताओं। मैनें कहा कि जानबुझ कर खतरा मौल क्यों ले रही हो।

वह बोली कि इस पर बाद में बात करतें है। तब तक कॉफी भी आ गयी थी। हम दोनों चुपचाप कॉफी का सिप लेते रहे। कॉफी खत्म होने के बाद बाहर आ गये। बाहर घुमते में उस ने पुछा कि मैनें कुछ गलत तो नहीं मांगा? मैनें कहा कि कहाँ चलना है तो वह बोली कि तुम्हारें घर चल सकते है? मैनें कहा कि हां यही सही रहेगा। तुम्हारें घर जाना सही नहीं है और किसी होटल में मैं नहीं जाना चाहता। वह बोली कि चलों इसी बहाने तुम्हारा घर भी देख लुगी, फिर पता नहीं कब मिलो।

मैनें उसे साथ में लिया और अपने घर के लिये चल दिया। हमारी कालोनी अभी नयी बसी थी सो ज्यादा आबादी नहीं थी। इस लिये यहां किसी का आना सुरक्षित था। घर में जा कर कार अंदर खड़ी कर दी फिर वाणी को लेकर घर के अंदर आ गया। घर देखकर वह खुश हो गयी और बोली कि पुराने वाले से तो बहुत बड़ा है, मैनें उसे बताया कि वह बहुत छोटा था सो जैसे ही मौका मिला बड़ा घर ले लिया, उस ने बताया कि उन का नया घर भी पहले वाले से बड़ा है। मैनें उस से पुछा कि क्या पियेगी? वह बोली कि तुम बताओं क्या पिला सकते हो? मैनें शरारत से पुछा कि चुनौती दे रही हो क्या? तो जबाव मिला कि तुम कितने बदमाश हो मुझ से ज्यादा कौन जानता है, मैं कुछ हार्ड की बात कर रही थी, चाय तो तुम्हारें साथ काफी बार पी है, इस लिये कुछ अलग पीना चाहती हूं।

मैनें कहा कि ऐसा कहो ना, बताओं क्या पीना है। स्काच, व्हिस्की या वोदका वह बोली कि मैं तो बियर की सोच रही थी। मैनें कहा कि बियर भी है, चलों उसी से शुरुआत करते है, यह कह कर मैं फ्रीज से बियर की ठंड़ी बोतल निकाल कर लाया और दो गिलासों में डाल कर एक गिलास उस को दे दिया। हम दोनों ने चियर्स करके पीना शुरु कर दिया। दो बोतल जब खत्म हो गयी तो मैं बोला कि अब कुछ और पीते है यह कह कर मैनें दो पैग स्काच के बनाये और नमकीन के साथ दोनों सिप लेने लगे। हम दोनों पर अब नशा चढ़ गया था। मैनें उस से कहा कि नशें के बाद क्या करोगी तो वह बोली कि वही जो किया करतें थे।

उस के इरादें साफ थे। वह उठी और मेरे से चिपक गयी और उस के होठं मेरे होठों से चिपक गये। हम दोनों ऐसे एक दूसरें को चुम रहे थे मानों जमाने के बिछुड़ें प्रेमी मिले हो। प्रेमी तो हम थे लेकिन साफ-साफ मानते नहीं थे। दोनों की जीभ एक दूसरें के मुंह में अठखेलियां करती रही। जब इस से थक गये तो एक-दूसरें के चेहरे को चुमते रहें। चेहरे के बाद गरदन और फिर छाती का नंबर था।

वह साड़ी पहने थी सो उस की साड़ी उतर गयी, अब वह ब्लाउज और पेटीकोट में मेरे सामने थी। नशें के कारण हम दोनों झुम से रहे थे। फिर मैनें उस का ब्लाउज उतार दिया और उस के बाद उसकी ब्रा का नंबर आया। उस के उरोज थोड़ें ज्यादा भर गये थे। उन के निप्पलों का स्वाद मेरे होठों को मालुम था सो वह अपनी प्यारी चीज का चखने में लग गये। इस से वाणी की सिसकियां निकलने लगी।

मेरे हाथ उस के उरोजों को जोर जोर से मसल रहे थे। वह आहहहहहहहहहह उईईईईईईईईई उहहहहहहहहहह कर रही थी लेकिन मेरी उत्तेजना उन को सुन कर बढ़ जा रही थी।

मेरी हथेली में उस के उरोज समा नहीं रहे थे यह देख कर वह बोली कि इन का साइज बढ़ गया है। तुम ने ही किया है। उस दौरान वजन तो नहीं बढ़ा लेकिन इन का साइज बढ़ गया। मेरे पति को तो यह महसुस नहीं हुआ है लेकिन तुम ने आज महसुस कर लिया होगा। मैनें सर हिलाया।

उस की कमर उतनी ही पतली थी, सपाट थी नाभी को चुम कर मैं नीचे बढ़ा तो उस ने मेरा सिर पकड़ लिया और उसे उठा कर अपने मुह से सटा लिया और चुमने लगी। मैनें हाथ डाल कर पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे नीचे गिरा दिया। अब मेरा हाथ उस की पेंटी के ऊपर घुम रहा था। मैनें हाथ पेंटी में घुसेड़ दिया और फिर योनि के अंदर अपनी ऊंगली डाल दी, और उसे अंदर बाहर करना शुरु कर लिया इस दौरान मुझे उस का जीस्पाट मिल गया और मैं उसे सहलाकर वाणी को उत्तेजित करने लगा थोड़ी देर बाद वाणी की बांहें मेरी गरदन पर कस गयी और उस के पांव आपस में कस गये। इस का मतलब था कि वह स्खलित हो गयी थी।

उस की आंखें बंद थी और उस ने मेरा चेहरा पास कर के उस को गहरे चुम्बनों से ढ़क दिया। उस की जांघों के मध्य मेरा हाथ अपना काम करता रहा। कुछ देर बाद मैनें उसे पेंटी से बाहर कर लिया। पेंटी भीग गयी थी। अब उसे उतारने का मौका था सो उसे नीचे कर के उतार दिया इस कारण से मैं झुक कर उस के पैरों की तरफ हुआ तो वाणी नें मेरे पैरों को अपने ऊपर कर के मेरी जींस को खोल कर नीचे से ब्रीफ के अंदर से लिंग को निकाल कर मुह में ले लिया।

अब मेरे पास को चारा नहीं था मैं भी 69 की मुद्रा में आ कर उस की योनि के रस का रसास्वादन करने लगा। उस की योनि के होठों को अलग करके मेरी जीभ उस के अंदर के रस को चाटने लगी। वाणी अभी तो स्खलित हुई थी सो उस की योनि पानी से भरी थी। उस पर मेरी जीभ की बदमाशियों नें उस को कराहने को मजबुर कर दिया था। उस ने भी मेरे लिंग को पुरा निगल कर उसे चुस कर मुझे कराहने को मजबुर किया।

हम दोनों कुछ देर तक इस का मजा लेते रहे फिर जब मैं उस के मुह में स्खलित हुआ तो उस ने लिंग को पुरी तरह से चाट कर साफ कर दिया लेकिन मुझे अपनी गिरफ्त से मुक्त कर दिया।

मैनें उठ कर उसे उल्टा किया और उस की पीठ को चुमना शुरु किया फिर मेरी जीभ उस की ऊचाईयों की गहराई में उस की गुदा को चाटने लगी। जीभ के बाद मैनें अपना अगुंठा उस की गुदा में डाल दिया, उसे यह अच्छा लगा, अगुठें के बाद ऊगंली डाल कर उसे अंदर बाहर किया वह गुदा मैथुन के लिये तैयार थी, चिकनाई की आवश्यकता आज नही थी, लेकिन मुझे लगा कि वह आज पीछे से करना नहीं चाहती थी। उस ने करवट बदल कर मेरा मजा खत्म कर दिया। उस की बाहें मेरी कमीज ऊतारने में लग गयी मैनें उस की सहायता की और अपने कपड़ें उतार दिये। इस के बाद रुकने का कोई कारण नहीं था सो मैं उस की जांघों के मध्य बैठ गया और अपने फुले लिंग को उस की योनि के मुह पर रख का धक्का दिया, पहली बार में ही लिंग आधे से ज्यादा अंदर चला गया, बाकी उस ने कुल्हें उछाल कर अंदर कर लिया।

हम दोनों जोर जोर से धक्कें लगा रहे थे, कुछ तो शराब का नशा कुछ मिलन का नशा संभोग देर तक चलने वाला था।

कुछ समय बाद वह मेरे ऊपर थी और अपनी कमर हिला कर कुल्हों के अंदर लिंग को समा रही थी। जब वह थक गयी तो मैं फिर से उस के ऊपर आ गया और हम दोनों जोर जोर से धक्कें लगाने लगे। कोई आधा घंटा बीत गया था लेकिन संभोग खत्म नही हो रहा था। मेरा शरीर गर्मी से जल रहा था। फिर ज्वालामुखी फट गया और मैं वाणी के ऊपर गिर गया, उस के पांवों और बाहों नें मुझे कस कर जकड़ लिया।

काफी देर तक हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे फिर उस ने अपना कसाव कम किया और मैं उस के ऊपर से उतर कर उस की बगल में लेट गया। वह मेरी तरफ मुड़ी और बोली कि आज कोई शरारत मत करना। जो कुछ करना है आगे से करों। मैनें उस से पुछा कि कुछ करने की ताकत बची है? तो वह बोली कि देखते है। यह कह कर वह मेरे लिंग से खेलने लगी जो थक कर पस्त पड़ा था।

मैनें उस से कहा कि इसे अभी समय लगेगा तो वह बोली कि मैं इसे अच्छी तरह से जानती हूँ यह अपनी मालकिन की बात मान कर अभी तैयार हो जायेगा। उसकी बात सही निकली कुछ देर बाद ही मेरा लिंग फिर से तैयार था, हम दोनों फिर से उसी पुरातन खेल में लग गये जिसे अभी खेल चुके थे लेकिन मन में संतोष नहीं था। इस बार बहुत समय लगा मेरी कमर दर्द कर गयी लेकिन स्खलन हो ही नहीं रहा था नीचे से वाणी भी कराह रही थी लेकिन कुछ करा नहीं जा सकता था।

कुछ देर रुक कर मैनें उस की टांगें अपने कंधों पर रख कर उस की योनि में लिंग डाला इस से उस की योनि बहुत कस गयी थी, कसाव बढ़ गया था, उसे दर्द तो हो रहा था लेकिन वह कुछ कह नहीं रही थी। कोई पांच मिनट बाद तुफान उतर गया और मैं उस के ऊपर लेट गया, वह मुझे नीचे उतरने नही दे रही थी। कुछ देर बाद उस नें मुझे अपने उपर से नीचे उतरने दिया।

आज तो मेरा लिंग भी दर्द से भर गया था। सुन्न सा हो गया था। उस ने कुछ देर बाद उठ कर मुझे चुमा और बोली कि अब मुझे जाना चाहिये। बताओं कैसा रहा यह मिलन? मैनें कहा कि हमारा तो हर मिलन जोरदार होता है। वह बोली कि पता नहीं अब यह मिलन हो पाये या नहीं लेकिन देखते है। यह कह कर वह बाथरुम गयी और वहां से आ कर कपड़ें पहन कर तैयार हो गयी। जब वह चलने लगी तो बोली कि मुझ से मिलने की कोशिश मत करना ना मैं करुगी, अगर किस्मत चाहेगी तभी हम मिलेगे। मैं कुछ कह पाता इस से पहले वह दरवाजा खोल कर बाहर निकल गयी। मैं यह सोचता रहा कि मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा? मैनें अपने को चुटकी काट कर पक्का किया की यह कोई सपना नहीं था।

वह असल में यहां थी, बिस्तर उस की गवाही दे रहा था, चद्दर पर बड़े बड़े दाग लगे थें। मेरी जांघें वीर्य और उस की योनि द्रव से भीगी हुई थी। मुझे नशा सा हो रहा था सो दरवाजा बंद करके बेड पर आ कर लेट गया। ना जाने कब सो गया।

शाम को जब नींद खुली तो शाम हो चुकी थी। अंधेरा घिर आया था मैं थका सा महसुस कर रहा था। बाथरुम में जा कर शरीर को साफ किया और कपड़ें पहन लिये। चाय बना कर पीने लगा तभी फोन बजा, उठाया तो दूसरी तरफ से वही थी बोली कि सपना नहीं था, लेकिन सचाई मानने की हिम्मत किसी में नहीं है इस लिये आराम करो। मेरा हाल बुरा है, गोली लेकर सोती हूँ। यह कह कर फोन काट दिया।

मैं चाय पीते पीते सोचता रहा कि वाणी मेरे जीवन में ऐसे क्यों आती है? इस का कोई जबाव मुझे नहीं मिला तो मैनें इस बारें में सोचना बंद कर दिया। चाय खत्म करके टीवी खोल कर बैठ गया।