पत्नी की सहेली/पड़ोसन के साथ लगाव

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पड़ोसन के साथ लगाव और उस के साथ बितायी बरसात की रात.
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फैन्टेशियों का संसार बड़ा विस्तृत है, इस की कोई भी सीमा नहीं बांधी जा सकती है, यही कारण हैं कि हम सब अपने जीवन में किसी ना किसी फैन्टेशी को लेकर चलते है या उसे मन ही मन पुरा करना चाहते है। अब हमारी इच्छा पुरी हो पाती है या नहीं यह एक अलग विषय है। लेकिन मन के लोक में बसी इस फैन्टेशियों की कथा बहुत रोचक है। लगभग हर किसी के पास कोई ना कोई फैन्टेशी है जिसे वह जीना या पाना चाहता है लेकिन क्या वह ऐसा कर पाता है यह शोध का विषय है। आज में ऐसी ही एक फैन्टेशी की कहानी आप के सामने पेश कर रहा हूँ जो लम्बें समय तक मुझे परेशान करती रही लेकिन जब पुरी हुई या मिली तो मेरा अनुभव कुछ अलग ही था। किसी चीज की चाहत होना अलग है और उसे पा कर होने वाली अनुभूति दोनों अलग है। चलिये अपनी कथा शुरु करते है।

कहानी की शुरुआत होती है किशोरावस्था से जब दिल रोज किसी ना किसी कन्या पर आ जाया करता था, क्या करें लड़कों के स्कुल में पढ़ने के कारण लड़कियों से मेलजोल के मौकें कम ही मिलते थे इस लिये दूर से ही दर्शन करके संतोष कर लिया करते थे।

कालेज में आ कर लड़कियों का साथ मिला, उनसें दोस्ती भी हुई लेकिन उस में भी मर्यादा का उल्लघन कभी नहीं हुआ। किसी को देख कर आहें भरने तक ही बात सीमित रही। बात बढ़ती इस से पहले ही घर वालों नें शादी पक्की कर दी। शादी के बाद पता चला कि बीवी बला की गैर रोमांटिक टाइप की थी। उन से रोमान्स करना मुश्किल काम था। शादी के बाद जो पति-पत्नी के बीच होता है वह सब हुआ लेकिन उस में भी वो मजा नहीं आया क्योंकि पत्नी जी पुरे मन से भाग ही नहीं लेती थी। लेकिन शारीरिक संबंध बने और उन में गरमाहट भी थी वह शायद इस लिये थी क्योंकि पत्नी भी सेक्स चाहती थी लेकिन उस को लेकर उस के मन में हमेशा शंका सी बनी रहती थी। यह कह सकते है कि मेरा मन अतृप्त ही रहा। प्रेम को तरसता रहा। मन को समझा दिया की इस चीज की प्राप्ति इस जीवन में संभव नहीं है। सो नीरस जीवन को जीने लगे।

पत्नी की सहेली के प्रति मेरा आकर्षण

जीवन ऐसे ही चल रहा था उस में कोई आकर्षण नही था। तभी अचानक हमारे पड़ोस में एक परिवार रहने आया। परिवार में पति-पत्नी और एक बच्चा था। इस परिवार से जान-पहचान हो गयी थी। मेरी पत्नी की इस परिवार की महिला से अच्छी दोस्ती हो गयी थी यह मुझ को पता नहीं था क्योंकि मैं सारे दिन ऑफिस में रहता था सो पड़ोस में किसी से दुआ सलाम मुश्किल से ही होती थी। छुट्टी के दिन अगर कोई सामने पड़ जाता था तो उस से दुआ-सलाम हो जाती थी। इस परिवार के साथ दोस्ती गहरा गयी थी इस का मुख्य कारण था मेरी पत्नी की इस परिवार की महिला से दोस्ती। मेरा इस जान-पहचान में कोई योगदान नहीं था। मैं तो बस पड़ोसी धर्म निभा रहा था। पड़ोसन से जब भी आमना-सामना होता था तो हम दोनों एक-दूसरें को नजरें झुका कर नमस्कार कर लिया करते थे। इस से ज्यादा परिचय मेरा इस परिवार से नहीं था। पति से भी आते-जाते अगर मुलाकात होती थी तो नमस्कार हो जाता था।

एक बार किसी पड़ोसी के लड़के की शादी में हम पति-पत्नी भी भाग लेने गये तो वहां पर अपनी इस पड़ोसन से मेरी मुलाकात हुई। पड़ोसन मेरे से प्रभावित थी, पार्टी में ज्यादातर वह मेरे ही बारें में बात करती रही। मैं सकुंचा कर उन की बात सुनता रहा। मेरे पास इस पर रियेक्ट करने के लिये कुछ नहीं था। उन से ज्यादा जान-पहचान ना होने के कारण मैं ज्यादा खुल कर उन से बात नहीं कर पा रहा था। मेरी इस परेशानी को शायद वह समझ गयी और हँस कर बोली कि आप के बारें में मैं सब कुछ जानती हूँ आप की पत्नी से मेरी रोज बात होती है वह मेरी मित्र है। यह सुन कर मुझे चैन मिला तो मैंने कहा कि मुझे तो आप से औपचारिक परिचय करने का सौभाग्य नहीं मिला है लेकिन अच्छा है आप मेरे बारे में जानती है कुछ खास तो नहीं हूँ।

वह बोली कि अपनी खासियत सब लोग नहीं जान पाते। मैं चुप रहा तो वह बोली कि ऐसे तो बात आगे नहीं चल सकती। मैं ही बोले जा रही हूँ आप तो कुछ बोल नहीं रहे है। मैं यह सुन कर हँस गया और बोला कि चलिये आप की बात करते है आप मुझे अपने बारे में बताये तो मैं ज्यादा बात कर पाऊँगा। वह बोली कि मैं तो गृहणी हूँ पति की दूकान है तथा बेटा पढ़ता है। बस यही मेरा परिचय है।

मैं बोला कि मेरा परिचय तो आप को पता है, फिर भी मैं एक इंजिनियर हूँ एक विदेशी कंपनी में काम करता हूँ। पत्नी को तो आप जानती ही है, वह भी गृहणी है, बेटी तो आपके बेटे के साथ ही पढ़ती है। आप के पति से आते-जाते मुलाकात हो जाती है। आप की दूकान कहाँ है यह भी मुझे पता है। वह यह बात सुन कर बोली कि सब खबर रखते है। मैनें कहा कि आँख और कान खोल कर रखता हूँ इसी लिये कुछ-कुछ पता चलता रहता है। ऐसे ही हम दोनों के मध्य बातचीत आरम्भ हो गयी। पत्नी के आने तक हम दोनों बात करते रहें। फिर हम दोनों खाने के लिये चल दिये। खाना खाने के समय मुहल्ले के कई लोगों से मुलाकात हुई। सब से बातचीत में कब समय बीत गया पता ही नहीं चला। समारोह से निकल कर हम दोनों घर वापस आ गये। घर आ कर मैंने पत्नी से पुछा कि तुम्हारी पड़ोसन से कैसे दोस्ती हूई? तो वह बोली कि ऐसे ही शुरु हुई हो गयी फिर कब गहरा गयी पता ही नहीं चला।

कुछ समय बाद मौसम बदलने के कारण मेरी पत्नी बीमार पड़ गयी। घर में कोई और महिला ना होने के कारण बड़ी परेशानी हो रही थी। मुझे भी खाना बनाना नहीं आता था। एक-दो दिन तो किसी तरह काम चलाया लेकिन पता नहीं कैसे पत्नी की इस मित्र को उस के बीमार होने का पता चल गया और वह घर पर आ गयी और बोली कि मेरे होते आप को परेशान होने की जरुरत नहीं है। मैं आप को ऑफिस जाने से पहले खाना बना कर दे दूँगी। मैंने मना किया लेकिन वह नहीं मानी और सुबह खाना बना कर दे गयी। पत्नी की बीमारी की वजह से मैंने भी अपने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी।

दूसरे दिन मुझे तैयार ना देख कर वह बोली कि क्या ऑफिस जाने का इरादा नहीं है? मैंने उन्हें बताया कि मैंने ऑफिस से छुट्टी ले ली है ताकि मैं घर की देखभाल कर सकुँ तो वह बोली कि यह आप ने बढ़िया किया है अब मेरी दोस्त पुरा आराम कर पायेगी। ऐसा ज्यादातर मर्द नहीं करते है। मैंने कहा कि यह जरुरी नहीं है कि जो और लोग करे वह मैं भी करुँ? मेरी यह बात सुन कर वह बोली कि यही बात आप को दूसरों से अलग करती है, यह कहते में उनके चेहरे पर एक अलग तरह की चमक थी।

मुझे उस समय तो कुछ समझ नहीं आया, इस लिये मैं कुछ नहीं बोला। वह बोली कि मैं आप के यहाँ आ कर खाना बना दूँगी। मैंने कहा कि यहीं सही रहेगा, शायद मैं आप से कुछ बनाना सीख लूँ। यह सुन कर वह मुस्कराई और बोली कि देखते है कौन किस से क्या सीखता है? उन की इस बात का रहस्य मेरी समझ में नहीं आया। वह खाना दे कर चली गयी।

मैं घर की सफाई करने में लग गया। उस के बाद उन के द्वारा लाया गया खाना प्लेट में लगा कर पत्नी के पास ले गया। वह बोली कि यह हमारी बहुत सहायता कर रही है पता नहीं मैं कैसे इस कर्जे को उतार पाऊँगी? मैंने उसे सांत्वना दी की ऐसा मौका न ही आये तो अच्छा है। उस ने मेरी बात पर सर हिला कर सहमति जतायी। शाम तो वह आयी और बोली कि बताये आप क्या खाना चाहते है? मैंने कहा कि जो आप खिलाना चाहे, और जल्दी बन जाये। वह यह सुन कर बोली कि खाना जल्दी कहाँ बनता है।

मैंने कहा कि किचन आप के हवाले है जैसा आप का मन करे करे। यह कह कर मैं किचन से निकल गया। वह कुछ देर बाद खाना बना कर चली गयी। उन के जाने के बाद मैंने किचन में जा कर खाना लगा कर पत्नी को खिलाया और उस के बाद खुद खाया। खाने के बाद हम पति-पत्नी दोनों इस बात पर बात करने लगे कि पत्नी की मित्र को खाना बनाने से कैसे मना किया जाये?

मैंने पत्नी से कहा कि अगर वह दाल बनाने में मेरी सहायता कर दे तो मैं रोज दाल चावल तो बना ही सकता हूँ, मेरी इस बात पर पत्नी भी राजी थी। दूसरी सुबह मैंने टोस्ट बना कर पत्नी को खिला दिेये। इस के बाद खुद नाश्ता करने बैठ गया तभी पत्नी की मित्र जिस का नाम नेहा था आती दिखायी दी। मुझे नाश्ता करते देख कर बोली कि चलिये टोस्ट तो बनाना सीख ही गये है। मैंने कहा कि आपकी सोहबत का असर है अगर आप सहायता करे तो खाना भी बनाना सीख लुँगा। मेरी इस बात पर वह हँस कर बोली कि मैंने कब मना करा है जब मैं खाना बना रही हो तो आप साथ में खड़ें रह सकते है मुझे पता है कि आप चीजों को जल्दी सीख जाते है।

उन की इस बात पर मैं मुस्करा दिया तो वह बोली कि लगता है आप को मेरा यहाँ आना पसंद नहीं आ रहा है? उन की इस बात पर मैंने कहा कि आप मेरी बात को अन्यथा ना ले, आप को दो-दो घरों का खाना बनाना पड़ रहा है यह मुझे खराब लग रहा है। यही मेरी असली चिन्ता है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि मैं कहाँ रोज ऐसा करुँगी जब मेरी दोस्त सही हो जायेगी तो मैं ऐसा करना बंद कर दूँगी।

मैंने कहा कि आप की परेशानी को देख कर ही मैं खाना बनाना सीखने की कोशिश कर रहा हूँ नहीं तो मेरा और किचन का 36 का आंकड़ा है आप अपनी दोस्त से पुछ सकती है। मेरी बात पर वह मुस्करा दी। जब हम दोनों किचन में गये तो मैंने उन्हें दिखाया कि मैंने चावल भीगो दिये थे और दाल धो कर रख ली थी। मैंने उन से कहा कि वह दाल बनाये मैं उन्हें देख कर सीखने की कोशिश करुँगा। मेरी बात सुन कर वह दाल बनाने लगी और मैं उन को ध्यान से देखता रहा। मुझे ध्यान से देख कर उन्होंने एक बार ऐसी नजर से देखा कि मैं असहज हो गया, लेकिन मैंने कुछ कहा या करा नहीं।

दाल में तड़का लगा कर वह बोली कि चावल तो आप बना लेगे ना? मैंने कहा कि हाँ कोशिश करके देखता हूँ तो वह बोली कि अब आप चावल बनाओ मैं आप को देखती हूँ जहाँ आप गलत करेगें मैं आप को सुधार दूँगी। मैं चावल बनाने लगा वह मुझे ध्यान से देखती रही और बोली कि चावल तो आप सही बना रहे है। मैं चुप रहा तो वह बोली कि मेरे सामने आप चुप क्यों हो जाते है? मैंने गरदन उठा कर उन की तरफ देखा तो वहाँ नजरों में सवाल देख कर मैंने अपनी आँखें दूसरी तरफ फेर ली। वह कुछ नहीं बोली और किचन से निकल गयी। पत्नी से उस के हाल को पुछ कर वह चली गयी। आज की उन की नजरों से मुझे परेशानी सी हो रही थी लेकिन मैं कुछ कर नही सकता था।

उसका भी मेरे प्रति लगाव

दो-तीन दिन बाद उन का खाना बनाने आना बंद हो गया। पत्नी की तबीयत भी सही हो रही थी सो वह भी सहायता करने लगी थी। एक दिन मैं शाम को घर का सामान लेने बाजार गया था, वहाँ से जब सामान ले कर वापस आ रहा था तो रास्ते में नेहा जी से मिलना हो गया। उन्होनें नमस्कार करके पत्नी का हाल पुछा और फिर बोली कि आप ने मुझे घर आने से रोक दिया। यह सुन कर मैंने कहा कि मैं आप को रोकने वाला कौन होता हूँ? आप की दोस्त का घर है आप कभी भी आ सकती है, इस पर वह बोली कि आप को मेरा खाना बनाना बहुत बुरा लग रहा था। मैंने कहा कि आप ने गलत समझा मैं तो आप की परेशानी को कम करने की कोशिश कर रहा था। आप उन दिनों इतना ज्यादा काम कर रही थी, यह मुझे बुरा लग रहा था इस लिये आप की सहायता करने की कोशिश की थी। अगर आप को बुरा लगा तो मैं आप से क्षमा चाहता हूँ वह बोली कि मुझे लगा कि आप मुझे अपने पास नहीं आने देना चाहते?

ऐसा मैंने क्या किया?

जैसे आप को पता नहीं है

नहीं तो

इस लिये खाना बनाना भी सीख लिया

इस लिये नहीं सीखा था। लगा था कि आप की सहायता कर पाऊँगा

इसी बहाने आप से मिलने का मौका मिल रहा था

ऐसा क्या?

इतने बुद्धु तो नहीं लगते

हो सकता हो हूँ

जितना मुझे पता है बुद्धु नहीं है

कुछ कहना या बताना तो था

कुछ समझ आता है या नहीं

नहीं समझ आया इस लिये माफ कर दो, आगे ऐसा नहीं होगा

देखते है

हाँ

हम दोनों अपने-अपने घरों के लिये मुड़ गये। आज की मुलाकात मेरी आशंका को मजबुत कर गयी कि नेहा को मुझ से लगाव हो गया है। मुझे भी उस से लगाव था लेकिन मैं उसे व्यक्त करने में असमर्थ था। मेरे में उस जैसी हिम्मत नहीं थी।

दोनों का एकान्त में मिलना

एक दिन मैं शाम को ऑफिस से आ कर बैठा ही था कि पत्नी बोली कि तुम्हें एक काम करना पड़ेगा, नेहा के घर की बिजली चली गयी है, उस के पति घर पर नहीं है कोई बिजली वाला भी नहीं मिला है। काफी देर से अंधेरें में बैठी है, तुम जरा उस के घर जा कर देख लो कि बिजली में क्या खराबी आ गयी है। पत्नी के बात सुन कर गुस्सा तो आया कि अभी ऑफिस से थका हारा लौटा हूँ लेकिन उसे मना भी नहीं कर सकता था सो पेचकस, प्लास और टार्च ले कर नेहा के घर के लिये चल दिया। वहाँ पहुँच कर दरवाजा खटखटाया तो काफी देर बाद दरवाजा खुला।

नेहा हाथ में मोमबत्ती ले कर दरवाजे पर खड़ी थी। मैंने पुछा कि कब से बिजली नहीं है तो वह बोली कि कई घंटे हो गये है। पहले तो मुझे लगा कि बिजली चली गयी है, लेकिन जब काफी देर तक बिजली नहीं आयी तो पड़ोस से पता किया तो पता चला कि सब की बिजली आ रही है हमारी ही नहीं है। बिजली वाले को फोन भी किया लेकिन वह भी नहीं मिला। हार कर आप को याद किया लेकिन आप भी घर पर नहीं थे। मैंने उन्हें बताया कि मैं अभी ऑफिस से आया तो पता चला।

नेहा ने कहा कि आप के कपड़ें देख कर ही पता चल रहा है कि आप से अभी कपड़ें भी नहीं बदले है। यह सुन कर मैंने उन से पुछा कि आप को कैसे पता कि कपड़ें नहीं बदले है तो वह बोली कि सुबह मैंने देखा था कि आप इन्हीं कपड़ों में ऑफिस जा रहे थे।

मेरी जासुसी करती है?

नहीं कर सकती

कर सकती है अगर समय हो तो

समय ही समय है

और क्या क्या करती है

आप को बताना जरुरी है

नहीं लेकिन मुझे पता चल जाता कि मेरे बारे में क्या-क्या जानती है?

लड़ाई करने आये है?

नहीं बिजली सही करने आया हूँ

लड़ क्यों रहे है

बात करने की कोशिश कर रहा था बुरा लगा तो नहीं करता

ऐसा क्यों सोचा

बस ऐसे ही।

चाय बनाऊँ?

अंधेरे में कैसे बनायेगी?

मोमबत्ती है

पहले बिजली तो देख ले

यह कह कर मैंने उन के मेन स्विच को देखा तो पता चला कि वह ऑफ था। जैसे ही उसे ऑन किया वह फिर से स्विच ऑफ हो गया। मतलब था कि घर में कहीं गड़बड़ थी। मैंने सारे सर्किट ऑफ करके मेन स्विच ऑन किया तो वह नहीं गिरा। इस के बाद एक एक करके हर सर्किट को ऑन किया तो वह फिर डाउन हो गया। कुछ देर बाद में मैं खराब सर्किट को अलग करने में कामयाब हो गया और उसे डाउन करके अन्य सब को ऑन कर दिया। बिजली आ गयी थी। केवल एक सर्किट ही बंद था। अब उस को पहचानना था।

मैंने नेहा से कहा कि चलिये देखते है घर में किस कमरे की लाइट नही आ रही है। वह मुझे लेकर घर में चल दी। एक कमरे की लाइट बंद थी उस में जा कर उसे ऑन किया तो लाइट ऑन नहीं हुई इस का मतलब था कि इसी कमरे का सर्किट ऑफ था तथा वह ही खराब या शॉर्ट सर्किट था। मैंने नेहा को बताया कि इस कमरे में कोई खराबी है सुबह बिजली वाले को बुला कर दिखा लिजियेगा। रात में तो पता नहीं चल पायेगा। वह बोली कि सुबह सही करवा लुँगी। आप बैठिये चाय बना कर लाती हूँ।

मैं सोफे पर बैठ गया। कुछ देर बाद नेहा चाय और नाश्ता ले कर आ गयी और मुझ से बोली कि चाय के साथ कुछ खा लिजिये, भुख लग रही होगी। मैं चाय पीने लगा तो वह बोली कि आप का कैसे धन्यवाद करुँ, अगर आप नहीं होते तो मैं आज सारी रात अंधेरे में बैठी रहती। मैंने बिस्कुट उठाते हुए कहा कि इतना तो मैं आपके लिये कर ही सकता हूँ। मेरी आवाज की तल्खी को पहचान कर वह बोली कि मुझ से नाराज है? मैंने कहा नहीं तो आप को ऐसा क्यों लगा तो वह बोली कि आप की आवाज में तंज सा लगा मुझे। मैंने कहा कि तंज नहीं था अपनी भावना व्यक्त की थी कि जितनी मेरी जानकारी है उतनी तो आप की सहायता मैं कर ही सकता हूँ। मेरी बात पर वह बोली कि मुझे तो लगा कि आप नाराज है। मैंने कहा कि आप ने ऐसा कुछ किया है जिस से मैं आप से नाराज होऊँ? तो वह मेरी तरफ देख कर बोली कि यह तो आप ही बेहतर जानते होगे।

मुझे तो ऐसा कुछ पता नहीं है, आप की सहायता कर पाया इस बात से खुश हूँ। हम दोनों के बीच खामोशी पसर गई और दोनों अपनी चाय पीते रहे। चाय खत्म होने के बाद मैंने नेहा से कहा कि वह रात को सोते समय सारी लाइटें बंद कर दे और अगर कुछ जलने की बदबु आये तो फोन करके बता दे। वह मेरी तरफ देख कर बोली कि क्या बात है? मैंने उन्हें बताया कि शायद कोई तार आपस में जुड़ गया है उस कमरे में इसी वजह से सर्किट खराब हो गया है। खराबी पता नहीं चल रही है इसी लिये आप को सावधान कर रहा हूँ। वह बोली कि मैं तो डर गयी।

उन की बात सुन कर मैंने कहा कि चलिये उस कमरे को भी ध्यान से देख लेते है शायद खराबी पता चल जाये। वह उठी और मेरे को लेकर उस कमरे में आ गयी। कमरे में अंधेरा होने के कारण मैंने टार्च जला कर चारों ओर देखना शुरु किया की कहीं कोई तार वगैहरा तो नहीं जल गया है। ऐसा कुछ दिखा नहीं। फिर मैंने सारे स्विचों को देखना शुरु किया। मैं अंधेरे में कमरे के स्विच देख रहा था तभी किसी चीज से टकराया और गिरने को हुआ तो नेहा नें अपनी बांहों में सभाल लिया। हम दोनों के शरीर एक दूसरें से जोर से टकराये फिर मैंने अपने को संभाल कर अलग कर लिया।

नेहा का क्या हाल था मुझे पता नहीं था टार्च मेरे हाथ से गिर कर फर्श पर पड़ी थी। तभी मेरी पीठ पर मुझे कठोर उभारों का स्पर्श हुआ फिर दो बांहों नें मुझे कस लिया। मैं ठिठक कर खड़ा रह गया। अंधेरे में हम दोनों की सांसों की आवाज ही आ रही थी। टार्च गिर कर किसी के नीचे लुढ़क गयी थी। उस की रोशनी गायब थी। कुछ देर मैं खड़ा रहा फिर नेहा की बांहों को खोल कर पलट गया। मैंने नेहा को बांहों में भर लिया था। उस की गरम सांसे मेरे चेहरे पर लग रही थी। उस के बदन की गरमी मुझे महसुस हो रही थी। नेहा के बदन की मादक सुगन्ध मेरी नाक में भर रही थी। हम दोनों चुप थे।

अपनी सीमा का उल्लघन करने की शर्म थी शायद। मैंने अपनी पकड़ ढीली की लेकिन नेहा दूर नहीं हुई। मेरे कानों में उस की आवाज आयी कि मुझ से बदबु आती है? उस की इस बात पर मुझे हँसी आ गयी और बोला कि हर बार एक ही ताना अच्छा नहीं लगता कुछ नया सोचो। उस ने मेरी छाती पर मुक्का मारा और कहा कि मारुँगी। मैंने कहा कि यह भी कर लो तुम्हें कुछ भी करने की छुट है। मेरी बात सुन कर वह करीब आयी और मेरे गाल पर चुम्बन दे कर अलग हो गयी।

अब मेरी हिम्मत बढ़ गयी और मैंने आगे बढ़ कर उस का चेहरा अपने हाथों में लेकर उस के होंठों पर किस कर लिया। ऐसा करने से मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया और मुझे झटका सा लगा और मैंने उस का चेहरा छोड़ दिया।

डरते हो

किस से

मेरे से

नहीं तो

फिर रुक क्यों गये

तुम्हें पता है

क्या

यह सब सही नहीं है

दिल में है लेकिन कह नहीं सकते

हाँ मान लेता हूँ और क्या करुँ

बता नहीं सकते

बता तो दिया

बड़ा अच्छा तरीका है बताने का

मुझे तो यही आता है

अच्छा जी

जैसा आप समझों

इतने सीधे नहीं हो आप

क्या पता है मेरे बारे में

सब कुछ

कैसे

बस पता है

देर हो रही है घर वापस जाना है नहीं तो शक हो सकता है।

नहीं कोई शक नहीं होगा

क्या चाहती हो?

जैसे तुम्हे पता नहीं

आज पता चल गया है, लेकिन आज नहीं हो सकता

चलो एक बात तो पता चली कि आग दोनों तरफ है

हाँ यह तो है लेकिन छुपा कर रखनी पड़ेगी

मेरी तरफ से संतुष्ट रहो किसी को पता नहीं चलेगा

मैं भी कोशिश करुँगा

हम दोनों ने एक-दूसरें को एक और बार चुमा और मैं अपने होंठ साफ करता हुँआ नेहा के घर से अपने घर के लिये चल दिया। घर आ कर पत्नी को बताया कि उस के घर के एक कमरे की वायरिग में खराबी है सुबह बिजली वाले को बुला कर सही करवा लेगी। सारे घर की बिजली चालु कर दी है। मेरी पत्नी की आँखों में मेरे लिये प्रशंसा के भाव थे। आखिर मैंने उस की सहेली की सहायता जो करी थी। उसे नहीं पता था कि वहाँ क्या कांड़ हुआ था। उसे ना ही पता चले तो अच्छा है। ऐसा मैंने मन में सोचा और कपड़ें बदलने चल दिया। रात भर नेहा के चुम्बन की याद आती रही है लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता था। डगर खतरों से भरी थी और उस पर चलना बहुत मुश्किल था। लेकिन अब डगर पर चल ही पड़े थे तो मुश्किलों से क्या डरना।

प्रेमालाप

समय ऐसे ही कट रहा था, नेहा से एकान्त में मिलना नहीं हो पाया था। मैं भी इस से बचना चाहता था। लेकिन जब जो होना होता है तब वह हो कर ही रहता है। एक शनिवार की सुबह पत्नी अचानक मेरे पास आयी और बोली कि सुनो जी बड़ी मुसीबत हो गयी है। नेहा के मायके में किसी की तबीयत बहुत खराब है और उसे फौरन वहाँ पर जाना है लेकिन उस के पति घर पर नहीं है बाहर गये है। वह बहुत परेशान है। मैंने पुछा तो मैं क्या करुँ? तो वह बोली कि तुम्हारी आज और कल की छुट्टी है अगर तुम उसे उसके मायके छोड़ आयो तो तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं होगी? उस की इस बात पर मैंने कहा कि मुझे तो कोई परेशानी नहीं होगी लेकिन शायद यह उस के मायके वालों को पसन्द ना आये और फिर उस के पति क्या रियेक्ट करेगें मुझे और तुम्हें पता नहीं है।

पत्नी ने कहा कि नेहा ने अपने पति से बात कर ली है यह उन का ही आयडिया है कि वह तुम्हारें साथ चली जाये। बताओ अब क्या कहते हो। मैंने कहा कि अगर ऐसी बात है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन कैसे और कहाँ जाना है? पत्नी बोली कि यह तो नेहा ही बता सकती है। मैं उस को बुला लेती हूँ। यह कह कर वह नेहा को फोन करने लग गयी।

कुछ देर बाद नेहा आ गयी। उस का चेहरा मुरझाया हुआ था। मैंने पुछा कि कहाँ जाना है तो वह बोली कि 300 किमी जाना है, कार से चलते है। 6-7 घंटे में पहुंच जायेगे। आप कार तो चला लेगे? मैंने मजाक में कहा कि नहीं मुझे कहाँ कार चलानी आती है। मेरी बात सुन कर पत्नी बोली कि नेहा तुम चिन्ता ना करो, यह तुम्हें छोड़ आयेगे। तेरे से युहीं मजाक कर रहे है। मैंने कहा कि मैं 16 साल की उम्र से कार चला रहा हूँ। इस पर नेहा ने जबाव नहीं दिया। पत्नी बोली कि मैं इन का समान पैक कर देती हूँ तुम भी तैयारी कर लो, इस के बाद निकल लेना, रात तक तुम अपने घर पहुँच जायोगी।

नेहा अपने घर चली गयी सामान पैक करने। कुछ देर बाद वह अपने लड़के को लेकर आ गयी। वह हमारे घर आराम से रह जाता था। इस लिये उसे साथ में ले जाने की कोई जरुरत नहीं थी। मैंने दोनों के बैग कार में रखे और कार के पेपर वगैरहा चैक करने के बाद हम दोनों कार में बैठ कर नेहा के मायके के लिये निकल गये। शहर में मैंने कार की टंकी फुल करवा ली। दोपहर होने लगी थी, रास्ता सुनसान सा था इस रास्ते पर मैं पहली बार जा रहा था। मैंने नेहा से पुछा कि क्या हुआ है तो वह बोली कि दादी की तबीयत बहुत खराब है और मैं उन की सबसे लाड़ली पोती हूँ तो परिवार चाहता है कि मैं जल्दी से वहाँ आ जाऊँ। इन के यहाँ ना होने से मैं बहुत परेशान थी, इन्होंने ही सुझाया कि तुम भाई साहब के साथ चली जाओ अगर वह जा सकते है तो। आप से पुछने की हिम्मत नहीं हो रही थी, इसी लिये आप की पत्नी को फोन करते सारी बात बतायी।

सही किया, मुझे किया होता तो मैं मना कर देता

क्यों

कारण तुम्हें पता है

मेरी सहायता नहीं करते

करता जैसी अब कर रहा हूँ लेकिन पत्नी की रजांमंदी के बिना नहीं कर सकता था, अच्छा किया कि तुम ने उस से बात की।

मेरी बात की कोई अहमियत नहीं है

हर समय लड़ने के लिये क्यों तैयार रहती हो?

तुम जैसे बहुत शरीफ हो

अब मैंने क्या किया,

जैसे तुम्हें कुछ पता ही नहीं

नहीं पता बताओ

क्या

मेरी गल्ती

कौन सी गल्ती, एक हो तो बताऊँ

नेहा ऐसे तो सफर नहीं कटेगा,

काटना कौन चाहता है

क्या करुँ

मौका मिला है उस का फायदा उठाओ

कार चलाते में क्या फायदा उठाऊँ?

यह तो तुम्हारी परेशानी है

हम शहर से बाहर आ गये थे रास्ता खाली सा था लेकिन मैं तेज गाड़ी नहीं चला रहा था। दिमाग कुछ सोचने में लगा था। इस लिये धीमा चलना ही सही था। मैंने अपना बायां हाथ नेहा के हाथ पर रख दिया उस ने हाथ ऐसे ही रहने दिया। मैं उस के बदन की गरमी महसुस कर रहा था लेकिन इस के आगे कुछ नहीं कर सकता था। वह भी कुछ नहीं कर सकती थी। ऐसे ही कुछ देर तक चलता रहा फिर मैंने अपना हाथ उस के हाथ पर से हटा लिया। इस पर नेहा ने मेरी तरफ गरदन घुमा कर देखा।

ऐसे क्यों देख रही हो?

क्यों देख नहीं सकती?

देख सकती हो लेकिन अभी क्या देख रही हो

देख रही हूँ कि जिस आदमी के पीछे इतनी औरतें आहें भरती है वह मेरी बगल में बैठा है।