पत्नी की सहेली/पड़ोसन के साथ लगाव

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यह क्या बात हुई

जैसे तुम्हें नहीं पता कि कितनी औरतें तुम्हारी पत्नी से जलती है कि तुम्हारें जैसा सुन्दर आदमी उस का पति है।

अब चने के झाड़ पर मत चढ़ाओ, मेरे में ऐसी क्या खासियत है जो कोई मुझ पर मरे?

तुम्हें सच में नहीं पता?

हाँ भई नहीं पता

तो सुनों तुम जैसे सांवले, और मोहक व्यक्तित्व के स्वामी पुरुष की औरतें दिवानी होती है। तुम जब भी कहीं जाते हो तो पीछे से तुम ही चर्चा का विषय होते हो।

मुझे तो कभी पता चला नहीं, पत्नी की नजर में तो अपनी वैसे ही कोई इज्जत नहीं है।

यह उस की गल्ती है, मुझ से पुछों कितनी मौहल्ले वालियाँ तुम पर आहें भरती है

मेरे को तो आज तक कोई नहीं मिली

मैं क्या हूँ

तुम क्या हो यह तो बता नहीं सकता लेकिन मैं भी तो तुम पर मरता हूँ इस लिये कुछ कह नहीं सकता

तुम जब ऑफिस जाते हो तो ना जाने कितनी औरतें छुप-छुप कर तुम्हें देखती है, उन में से एक मैं भी हूँ

बड़ी खतरनाक बात पता चली है कि मेरी इतनी प्रशंसिकायें है।

अब पता चल गया लेकिन ज्यादा खुश मत होयो, कोई और हाथ साफ नहीं कर सकता है।

तुम्हारे सिवा

हाँ कोई शक

नहीं भाई कोई शक नहीं है, तुम्हारें होते मैं किसी और को देख ही नहीं सकता।

अब रास्ते पर आये हो

मैं तो पहले से ही रास्ते पर था लेकिन तुम्हें पता नहीं था

उस दिन तुम ने प्यासा छोड़ दिया, आग लगाई और चले गये

ज्यादा देर लगती तो तुम्हारी सहेली शक करती और फिर कभी तुम्हारे पास नहीं आने देती। वह खुद तो मुझे चाहती नहीं है लेकिन कोई और चाहे यह वह बर्दास्त नहीं कर सकती। इस लिये उस दिन मन ना चाहते हुए भी चला आना पड़ा था।

मैं सारी रात तड़पती रही और सोचती रही कि मुझ में ऐसी क्या कमी थी कि तुम ठुकरा कर चले गये।

तुम्हें उस समय भी समझाया था कि हमारें संबंध में हमारे मन की नहीं चल सकती है। हम दो परिवारों को बर्बाद कर सकते है। इस लिये फुंक-फुंक कर कदम रखने होगे।

मैं सब समझती हूँ लेकिन उस दिन तुम्हारें स्पर्श से तन-बदन में आग सी लग गयी थी और तुम ने मेरे होंठ चुम कर उसे और भड़का दिया फिर चले गये। कुछ देर तो रुक सकते थे, मैं तुम्हारें लब तो मन भर कर चुम पाती।

मन तो मेरा भी कर रहा था लेकिन दिमाग जो कह रहा था वही किया

अब कब ऐसा मौका मिलेगा?

देखते है, हमारा प्यार तो ऐसे ही चलेगा। मन को ज्यादातर मसोसना ही पड़ेगा। सोच लो अगर आगे नहीं चल सकती तो यही से लौट जाओ

मुझे डरा रहे हो

नहीं समझा रहा हूँ।

मेरा दिल अब मेरा नहीं रहा। यह तो ज्यादातर घर से बाहर रहते है। आते है तो भी काम में लगे रहते है मैं तो प्यार के लिये तरस गयी हूँ। तुम से कुछ नहीं चाहिये बस मुझे चाहो। और मुझे अपनी चाहत बताते रहो, मैं इतने में ही संतुष्ट रह लुँगी।

अब क्या हुआ

अपनी सच्चाई बता दी है आगे जैसी तुम्हारी मर्जी वैसा मेरे साथ करो

जैसा क्या। जैसा तुम चाहोगी वैसा ही होगा लेकिन संयम रखना होगा।

हुँ एक बात जान कर खुश हुँ कि तुम भी मुझे चाहते हो

हाँ यह तो है कि तुम भी मुझे चाहती हो यह जान कर मैं भी बहुत खुश हूँ या यह कहो कि सातवें आसमान पर हूँ

कविता भी करते हो

तुम्हें देख कर कोई भी करने लगेगा

इतने रोमांटिक कब से हुये?

रोमांस पर घुल चढ़ गयी थी, तुम ने उसे झाड़ दिया है

छुपे रुस्तम हो

जैसा कहो

कही रुक कर चाय पीते है मैं तो बैठे-बैठे थक गयी हूँ

थक तो मैं भी गया हूँ, किसी ढाबे पर रोकता हूँ

कुछ दूर एक अच्छा सा ढाबा देख कर कार रोक दी। वहां पर रेस्ट रुम पुछ कर नेहा को साथ लेकर चला गया। वहां से निबट कर चाय का ऑडर कर दिया। भुख भी लग रही थी इस लिये खाना भी मंगा लिया और उसे खा कर दोनों फिर से सफर पर चल दिये। दोपहर ढल रही थी और शाम आने को थी। कार के रेडियों पर रोमाटिंक गाने लगा लिये थे। यह सफर यादगार होने वाला था। कुछ देर दोनों चुपचाप बैठे रहे फिर नेहा ने ही चुप्पी तोड़ी और बोली कि तुम तो किसी की तरफ नजर उठा कर नहीं देखते फिर मेरे पर कैसे नजर पड़ गयी।

मैंने उसे बताया कि जब से उस की दोस्ती मेरी पत्नी से हुई है तभी से मैं उसे देख रहा हूँ पहले तो मेरी उस में दिलचस्पी नहीं थी फिर पत्नी के ठन्ड़े व्यवहार के कारण मेरी दिलचस्पी उस में हो गयी। मैं भी उसे छुप-छुप कर देखता रहता था लेकिन सामने आने पर कुछ कहता नहीं था या यह कहो कि कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती थी। तुम्हारें सामने पड़ने पर सिर्फ दुआ सलाम ही हुआ करती थी। मैं इसी में खुश था लेकिन जब पार्टी वगैरहा में तुम से बातचीत शुरु हुई तो लगा कि तुम भी मुझ में दिलचस्पी लेती हो। यह जान कर मन को संतोष हुआ लेकिन इसे जहिर करने का कोई मौका नहीं मिला।

वह बोली कि हम दोनों ही अपने साथियों की उपेक्षा के शिकार है इसी कारण से दूसरें की तरफ आकर्षित हुये हैं। मैंने हाँ में सर हिलाया। मैंने नेहा से पुछा कि अपने मायके में मेरा परिचय कैसे करायेगी? उसने जबाव दिया कि मैंने वहां फोन करके बता दिया है कि मैं अपने सहेली के पति के साथ आ रही हूँ। इस लिये वहां पर कोई परेशानी नहीं होगी। मैंने पुछा कि वह मेरे साथ वापस लौटेगी या बाद में आयेगी तो वह बोली कि नहीं कल ही तुम्हारें साथ लौट आऊँगी। वहां पर नहीं रह सकती और बाद में मुझे छोड़ने वाला कोई नहीं है।

रास्ता कट रहा था, हम दोनों दुनिया जहान की बातें कर रहे थे। समय कैसे कट गया पता ही नहीं चला। शाम हो गयी और फिर रात घीर आयी। हम उस के मायके पहुँचने ही वाले थे। वह बोली कि रास्ते में कही रोक लेना मैंने कपड़ें सही करने है। मैं उस की बात समझा नहीं लेकिन शाहर के बाहर एक अच्छे होटल पर कार रोक दी और रेस्ट रुम में चल दिये। नेहा कपड़ें सही करने चली गयी और मेरे भी उस के साथ के कारण बहुत प्रेशर बना हुआ था सो उसे रिलिज करने लगा। इस के बाद मुझे कुछ आराम पड़ा। नेहा भी रेस्ट रुम से बाहर आ गयी। इस के बाद हम दोनों कार में बैठ कर चल दिये।

नेहा ने कहा कि तुम्हारें साथ बैठ कर मैं इतनी गिली हो गयी थी कि लगा कि कपड़ें ना गिले हो गये हो इस लिये रुकी थी। उस की बात सुन कर मैंने हँस कर कहा कि मेरी हालत भी उस के जैसी ही थी। उत्तेजना के कारण प्रेशर बना हुआ था और कार चलाना मुश्किल हो रहा था। मुझे भी लगा कि कभी कपड़ें खराब ना हो गये हो, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं था। वह बोली कि हमें ऐसी सजा क्यों मिली है? सजा नहीं है सयंम है जो हमें रखना पड़ेगा। नहीं तो दोनों का मजाक बन जायेगा। वह मेरी बात समझ गयी।

उस के मायके पहुचने तक हम दोनों चुप रहे और अपने आप को संयत करने का प्रयास करते रहे। घर पहुँच कर उस ने परिवार वालों से मेरा परिचय करवाया और वह खुद दादी से मिलने चली गयी। मैं परिवार के साथ बैठ गया। उसके भाई ने पुछा कि रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं हुई आप को तो मैंने कहा कि नहीं कोई परेशानी नहीं हुई। चाय आ गयी तो उसे पीने लगा। परिवार से बात करने पर पता लगा कि नेहा सब की बहुत लाड़ली है और सब उसे अपने बीच पा कर बहुत खुश थे। सब को पता था कि मेरी वजह से ही वह यहाँ आ पायी थी। रात को खाना खाने के बाद मैंने भी उस की दादी के दर्शन किये। वह बहुत वृद्ध थी। इसी वजह से अपनी लाड़ली पोती को देखना चाहती थी। मैंने उन की यह इच्छा पुरी कर दी थी। इस कारण से उन्होनें मेरे सर पर हाथ रख कर मुझे आशीर्वाद दिया।

सोने से पहले सुबह वापस जाने के बारे में प्रोग्राम बना कि अगर सुबह जल्दी निकल जाये तो अपने घर जल्दी पहुँच जायेगे। मैंने नेहा से पुछा कि वह बताये कि उसे कब निकलना है तो वह बोली कि जल्दी ही निकल लेते है। घर भी जल्दी पहुँच जायेगे। यह तय करने के बाद मैं सोने चला गया। सुबह जल्दी उठना था। मुझे किसी दूसरी जगह नींद नहीं आती थी लेकिन मेरा सोना जरुरी था तभी मैं सुबह गाड़ी चला सकता था। थका होने के कारण नींद आ गयी और सुबह नेहा के उठाने पर ही नींद खुली। उठ कर नित्यक्रम किये और चलने के लिये तैयार हो गये। फिर सब से विदा ले कर घर के लिये वापस निकल लिये।

रास्ते में हम दोनों की खास बातचीत नहीं कर रहे थे। मुझे भुख लगने लगी थी। रास्तें में एक अच्छा सा ढाबा देख कर कार रोकी और चाय का ऑडर कर दिया, नेहा की मां ने रास्ते के लिये पुरियां बना कर दी थी उन के साथ चाय पी कर पेट भर लिया। फिर से यात्रा शुरु कर दी। नेहा से मुझ से पुछा कि कुछ पुछू तो बुरा तो नहीं मानोगे? मैंने कहा नहीं तुम कुछ भी पुछ सकती हो। वह बोली कि मेरे से पहले या शादी से पहले तुम्हारी को दोस्त नहीं थी। मैंने कहा कि मैडम ना शादी से पहले और ना शादी के बाद अभी तक मेरी कोई गर्ल फैन्ड नहीं थी। लेकिन अब है। इस बात पर वह हँसी और बोली कि बात को घुमाओ मत जो पुछ रहीं हूँ उस का सीधा जबाव दो। मैंने उसे बताया कि मेरे पास इन सब के लिये समय ही नहीं था। शादी के बाद जिम्मेदारियां बढ़ जाने के कारण और किसी तरफ ध्यान ही नहीं गया।

फिर मुझे कैसे चाहना शुरु कर दिया?

बता नहीं सकता कब ऐसा हुआ, लेकिन हुआ था यह पता है

कोई तो कारण रहा होगा

हाँ कारण है मेरी पत्नी का अनरोमान्टिक होना, शायद उसी वजह से तुम्हारी तरफ आकर्षित हुआ हूँ, तुम कब से मुझे चाहती हो?

पक्का तो पता नहीं लेकिन एक बार तुम्हें ऑफिस जाते देखा तो लगा कि तुम चाहने की चीज हो

चीज

हाँ चीज

क्या बात है

सो तो है

मैं तो तुम्हें देखने के लिये तरस जाता था लेकिन कुछ कर नहीं सकता था

मुझे भी कई बार लगा था कि तुम मुझे देखना चाहते हो लेकिन हिम्मत नही कर पाते हो, इसी लिये मैंने हिम्मत कर ली

हाँ सही है तुम नहीं करती तो बात आगे नहीं बढ़ती

तुम जैसे डरपोक के भरोसे नहीं रह सकती थी

यार ताने तो मत मारो

और क्या करुँ

तुम्हारें मन का कर रहा हूँ तो ड्राइवर की तरह से घर लाया और अब वापस ले जा रहा हूँ

और तो कुछ नहीं कर रहे हो

अजनबी जगह पर कुछ नहीं कर सकता, मैं कोई खतरा नहीं उठाना चाहता, मुझे पता है तुम क्या चाहती हो, लेकिन अभी तो मैं तुम्हें सही सलामत वापस ले जाना चाहता हूँ

मेरी इतनी चिन्ता क्यों

अपनी प्यारी चीज की चिन्ता करनी पड़ती है

मुझे नहीं पता था कि तुम इतनी दूर तक की सोचते हो

अब तो पता चल गया है

यह जान कर मन में खुशी हो रही है कि चलो कोई तो मेरी इतनी चिन्ता करता है।

सुबह के कारण रोड़ पर भीड़ कम थी इस लिये हम दोपहर के 12 बजे से पहले ही वापस अपने घर पहुँच गये। घर जा कर मैं पत्नी से बोला कि चाय बना कर पिलाओ, बड़ी थकावट हो रही है। नेहा अपने लड़के के पास चली गयी। पत्नी बोली कि इतनी जल्दी कैसे आ गये। मैंने उसे बताया कि नेहा की दादी से मिलने के बाद नेहा ने रुकने से मना कर दिया और हम सुबह जल्दी निकल गये इस कारण से जल्दी आ पाये। तभी नेहा भी आ गयी वह बोली कि मैं भी चलती हूँ तो पत्नी बोली कि थकी हारी आई हो चाय पी लो फिर चली जाना, दोपहर का खाना बना रही हूँ, खाना यहीं आ कर खाना। यह बात सुन कर नेहा सोफे पर बैठ गयी और मैं कपड़ें बदलने चला गया।

कपड़ें बदल कर लौटा तो देखा कि पत्नी चाय बना कर ले आयी थी। हम तीनों जने चाय पीने लगे। नेहा सारी बात पत्नी को बताने लगी। चाय पीने के बाद नेहा चलने लगी तो पत्नी मेरे से बोली कि आप इस के साथ चले जाओ, रात को घर अकेला रहा है जरा देख लेना। उस की बात सुन कर मैं नेहा का बेग लेकर नेहा के साथ उस के घर के लिये चल दिया। रास्ते में नेहा बोली कि इस को सब बात का ध्यान रहता है तभी तो आप को साथ भेज दिया। मैंने सर हिला दिया। नेहा के घर जा कर मैंने उस का घर उस के साथ घुम कर देखा और संतुष्ट होने के बाद चलने लगा तो वह बोली कि कुछ भुल तो नहीं गये हो?

मैं बोला कि भुला नहीं हूँ लेकिन अभी कुछ नहीं हो सकता। कुछ करा तो उस के बाद की हालत में घर जाना मुश्किल हो जायेगा। मेरी बात जब नेहा कि समझ आयी तो वह हँस पड़ी और बोली कि तुम दोनों तो बहुत दूर तक की सोचते हो। मैंने उस के सर पर चपत लगाई और अपने घर के लिये निकल गया। घर आ कर पत्नी से कहा कि मैं थक गया हूँ इस लिये सोने जा रहा हूँ जब खाना बन जाये तो मुझे जगा देना। उस ने हाँ में सर हिला दिया। मैं कमरे में जा कर बेड पर लेटा और लेटते ही सो गया।

पत्नी के उठाने पर ही उठा और मुँह धोकर खाने की मेज पर आ गया। वहाँ पहले से ही नेहा बैठी थी। मुझे देख कर बोली कि आप बड़े थके से लग रहे है। मैंने कहा कि कुछ खास नहीं हैं रात को नींद सही ना आने के कारण ऐसा है। वह कुछ नहीं बोली और हम सब खाना खाने लगे। खाना खाने के बाद नेहा बेटे के साथ चली गयी। मुझे नींद आ रही थी तो मैं सोने जाने लगा तो पत्नी बोली कि तुम रुकों मुझे पता है तुम्हें क्या हुआ है। मैं उस की बात सुन कर रुक गया तो वह मेरी नजर उतारने लगी। नजर उतार कर बोली कि अब तुम सोने चले जाओ। मैं सोने चला गया और जल्दी ही सो गया।

मेरी नींद शाम को ही खुली। पत्नी चाय बना कर लाई थी। चाय पीते में मैंने उस से पुछा कि उसे कैसे लगा कि मुझे नजर लग गयी है तो वह बोली कि तुम्हें नेहा कि नजर लग जाती है। इस बार तो तो तुम दो दिन से उस के साथ थे। तुम्हारी झुकी नजरें ही बता रही थी कि तुम्हें नजर लग गयी है। उस की इस बात पर मैं हँस कर बोला कि अब इस उम्र में कहां नजर लगती है तो वह बोली कि तुम मानो या ना मानो लेकिन मुझे पता है। मैंने इस संबंध में उस से बहस नही की। उसे क्या बताता कि अब ऐसी नजर तो रोज ही लगने के आसार लग रहे थे।

दिन ऐसे ही गुजर गया और रात को पत्नी मुझ पर बहुत मेहरबान थी और बहुत समय बाद ऐसी जोरदार रात बीती। मैं तो सुबह उठ कर अपने काम में लग गया और समय से ऑफिस के लिये निकल गया। शाम को लौटा तो पत्नी से कुछ खास बातचीत नहीं हुई। रात को खाना खाते में पत्नी ने बताया कि तुम्हारें नेहा के मायके से आने के बाद उस की दादी का देहान्त हो गया था। शायद वह नेहा का ही इंतजार कर रही थी। उस के मिलने के बाद ही देह छोड़ी। मैंने उसे बताया कि हमारे सामने तो वह सही थी उन्होंने मुझे भी आशीर्वाद दिया था। पत्नी बोली कि इसी वजह से तो नेहा को बुलाया गया था। तुम्हारें कारण वह अपनी दादी को देख पायी। मैंने कहा चलों नेहा अपनी दादी को अन्तिम समय में देख पायी यह सही हुआ। बात यहीं पर खत्म हो गयी।

कई दिनों तक मेरा नेहा से सामना नहीं हुआ। एक दिन सुबह ऑफिस जाते समय नेहा के पति मिले और जब उन से दुआ-सलाम हुई तो उन्होंने कहा कि उस दिन आप के कारण नेहा अपनी दादी के अन्तिम दर्शन कर सकी, इस के लिये धन्यवाद। मैंने कहा कि इस में धन्यवाद की कोई बात नहीं है। इसी बहाने मैंने भी दादी जी का आशीर्वाद पा लिया। वह बोले कि पहले टेक्सी से जाने का सोचा था लेकिन नेहा अकेले जाने को राजी नहीं थी, फिर मुझे ध्यान आया कि अगर आप की छुट्टी हो तो आप से कहा जा सकता है।

पहले ये सोचा था कि आप टेक्सी में उस के साथ चले जायेगे फिर ध्यान आया कि आप तो कार ले जा सकते है। आपने मेरी प्रार्थना को माना और इतनी दूर कार चला कर गये। मैंने कहा कि अब आप मुझे शर्मिदा कर रहे है तो वह बोले कि कोई भी धन्यवाद आप के कार्य की प्रशंसा नहीं कर सकता। मैंने उन से कहा कि पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है सो मैं भी आप के काम आ पाया, मुझे बात की खुशी है। मैं इस के बाद ऑफिस के लिये चला गया।

समय ऐसे ही गुजर रहा था, कभी-कभी मुझे नेहा की झलक मिल जाती थी लेकिन आमना-सामना नहीं हुआ। मन में मिलने की इच्छा तो थी लेकिन कोई बहाना नहीं मिल रहा था। केवल झलक मात्र पा कर ही मैं अपने मन को संतुष्ट कर लेता था। अपनी तरफ से कोई कोशिश करने की मेरी हिम्मत नहीं थी। नेहा मेरे घर आती-जाती थी लेकिन मैं उस समय घर पर नहीं होता था, इस लिये सामना नहीं हो पाता था।

गरमी आ गयी थी इसी कारण से स्कूलों की छुट्टियां हो गयी थी। पत्नी भी बेटी को साथ लेकर अपने मायके जाने का प्रोग्राम बना रही थी लेकिन एक ही परेशानी थी कि वह मुझे पहले इतने दिनों तक अकेले छोड़ कर नहीं गयी थी। मैंने उसे समझाया कि मैं अकेले रह लुँगा और खाना भी बना लिया करुँगा वह मेरी चिन्ता छोड़ कर मायके चली जाये। उस ने मेरी बात मान ली और वह 15 दिनों के लिये मायके जाने के लिये तैयार हो गयी। मैं स्वयं उसे और बेटी को अपनी ससुराल छोड़ कर आया।

पत्नी के जाने के बाद पहले एक-दो दिन तो परेशानी हुई, लेकिन मैंने उसे संभाल लिया। खाना बनाना मुझे आ गया था इस कारण से परेशानी कुछ कम हो गयी थी। सुबह नाश्ते में ब्रेड से काम चल जाता था, ऑफिस में दोपहर का खाना मिल जाता था इस लिये अधिक परेशानी नहीं हुई। घर को संभालने में समय जरुर लगता था लेकिन मेरी पत्नी बहुत सुघड़ थी इस लिये वह भी परेशानी का कारण नहीं बना। पत्नी नेहा को अपने जाने की बात बता कर जरुर गयी होगी यह मैं जानता था लेकिन पहले दो दिन तक नेहा के दर्शन नहीं हुये। वह भी अपने जीवन में व्यस्त थी। लेकिन उस की नजर मुझ पर थी यह मुझे आगे चल कर पता चला।

शुक्रवार की शाम को ऑफिस की तरफ से पार्टी थी। जोरदार खाना-पीना हुआ मैं क्योंकि गाड़ी चलाने वाला था इस लिये पीने से बचा रहा लेकिन इस कारण से उस रात लौटते में बहुत देर हो गयी क्योंकि सब पीनें वालों को उनके घर छोड़ के आना पड़ा। रात को देर से सोने के कारण सुबह जल्दी नहीं उठा था। मेरी नींद दरवाजे की घंटी की आवाज से खुली, आँखे मलते हुए जब दरवाजा खोला तो देखा कि नेहा खड़ी थी। वह अंदर आ कर बोली कि बीवी के जाते ही पार्टियां शुरु हो गयी है। आप कल रात लेट आये है। उस की इस बात पर मैंने उसे आश्चर्य से देखा तो वह बोली कि आपकी पुरी खबर रखती हूँ, रात 11 बजे तक तो आप नहीं आये थे।

मैंने उसे बैठने को कहा और बोला कि कल ऑफिस की पार्टी थी इस लिये देर हो गयी थी। नेहा बोली कि पार्टी में तो खुब दारु पी होगी? मैंने उसे बताया कि मैंने नहीं पी थी क्योंकि मुझे कार चलानी थी और सब पीने वालों को उनके घर छोड़ने के कारण ही मैं रात को 1 बजे घर आ पाया। वह बोली कि मुझे विश्वास नहीं है की आप ने नहीं पी थी। मैंने उस से कहा कि तुम से झुठ क्यों बोलुगां तो वह बोली कि क्या पता? मैंने उसे चिढ़ाने के लिये कहा कि विश्वास ना हो तो वह मुझे सुंघ कर देख ले। पहले तो वह मेरी तरफ अजीब नजरों से देखती रही फिर बोली कि वह भी कर सकती हूँ।

तुम्हें हर तरह का अधिकार है

मुझे पता है

फिर यह अविश्वास क्यों

तुम मर्दो का कुछ पता नहीं चलता

अब इस बात में सारे मर्द कहाँ से आ गये, मेरा मुँह सुंघ लो, अगर शराब मिले तो जो सजा तुम दो वह कबुल होगी

आज इतनी इनायत क्यो

इतने दिनों बाद मिली हो, और लड़ रही हो,

मैं भी तो मिल रही हूँ

फिर लड़ाई क्यों

क्याँ करुँ कोई मुझे कुछ बताता ही नहीं है।

क्या नहीं पता, तुम्हारी दोस्त सब बता कर गयी होगी

हाँ सो तो है

फिर नाराजगी क्यों

तुम नहीं बता सकते थे

क्या नहीं बताया?

उस के जाने का

तुम मुझ से मिली अभी हो तो कैसे बताता?

फोन कर सकते थे।

दिन में घर पर कहाँ होता हूँ, रात को तुम्हारे पति के सामने फोन करना सही नहीं था।

ये तो कई दिनों से बाहर गये हैं

यह मुझे नहीं पता था।

क्यों नहीं पता था

मैं किसी की जासुसी नहीं करता

ताना दे रहे हो

नहीं केवल समझा रहा हूँ, दो दिन हुये है उस को गये हुए, तब से काम में ही उलझा हुँ

बता तो सकते थे

चलों गल्ती हो गयी माफ कर दो

नहीं सजा मिलेगी

कबुल है

लड़ते क्यों नहीं हो

नहीं इतने दिन बाद मिली हो, लड़ कर समय बर्बाद नहीं करना चाहता

नाश्ता किया

नहीं, तुम्हारी घंटी की आवाज से उठा हुँ

तभी ऐसे घुम रहे हो

मैंने अपने को देखा तो पता चला कि मैं रात को बाक्सर में सो गया था। बाक्सर और बनियान में नेहा के सामने खड़ा था। मैं कपड़ें बदलने के लिये मुड़ा तो वह बोली कि परेशान मत होओ। सारी रात मैं परेशान रही कि देर क्यों हो रही है। अब शाम को बात करती हूँ। मैं यही देखने आयी थी कि सब कुछ सही है या नहीं।

क्या देखा, सही है या नहीं

जो देखना था देख लिया।

ऐसे तो जाने नहीं दे सकता,

क्या करोगें

चाय पियोगी

नहीं अभी नहीं, राहुल को नहलाना है, फिर उसे नाश्ता भी करना है बहुत काम है।

अच्छा जैसी तुम्हारी मर्जी

अब ज्यादा तेज मत बनो, उठ कर नहा लो और नाश्ता कर लो, किसी चीज की जरुरत हो तो फोन कर देना।

यह कह कर नेहा दरवाजा बंद करके चली गयी। उसके जाने के बाद मैंने नीचे ध्यान से देखा तो पता चला कि मेरे महाराज पुरे तनाव पर थे और वह तनाव बाहर तक दिखायी दे रहा था। यह देख कर मुझे अपने पर बड़ा क्रोध आया कि मैं ऐसे ही उस के सामने चला गया, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। उठ कर नाश्ता कर के घर के काम करने लगा। नहाने का मन नहीं था लेकिन पता था कि शाम को अगर नेहा ने देखा कि मैं नहाया नहीं हुँ तो मेरी क्लास लगनी थी। सो मैं नहाने चला गया। नहाने के बाद फिर सो गया।

दोपहर में भी नींद नेहा के फोन से खुली वह बोली कि मुझे पता था कि तुम सो रहे होगे इस लिये राहुल के हाथ टिफिन में खाना भिजवा रही हूँ खा लेना। कुछ देर बाद नेहा का लड़का टिफिन ले कर आ गया। टिफिन उस के साइज का आधा था, लेकिन वह उसे बड़ी सावधानी से ले कर आया था। राहुल मेरे यहाँ रोज आता था इस लिये घर से परिचित था। मैंने उसे खाने के लिये पुछा तो वह बोला कि मैं घर से खा कर आया हूँ। मैंने टिफिन खाली करके उसे टॉफी दे कर वापस भेज दिया। नेहा के हाथ का खाना खा कर मजा आ गया था। खाना खाने के बाद फिर से लेट गया और नींद लग गयी।

शाम को उठा तो देखा कि मौसम बदल गया था। आकाश पर घने काले बादल छाए हुये थे और बारिश होने की संभावना लग रही थी। जब मैं बाहर के मौसम का मजा ले रहा था देखा कि नेहा भी बाहर खड़ी मौसम का आनंद ले रही थी। उस की और मेरी नजरें मिली और हम दोनों ने एक दूसरे का अभिवादन किया जो हम दोनों की पुरानी आदत थी। वह बेटे के साथ खड़ी रही और मैं कुछ देर बाद अंदर आ गया। मेरे अंदर आने के कुछ देर बाद ही बारिश की आवाज आने लगी। बाहर जोरदार आंधी के साथ बारिश हो रही थी। मैं फिर से बाहर गया कि कोई कपड़ा तो बाहर नहीं पड़ा है। बाहर कोई कपड़ा नहीं था लेकिन बारिश तेज हवा के साथ हो रही थी। इस लिये जल्दी से अंदर आना पड़ा। तेज आंधी और बारिश के कारण कुछ देर बाद बिजली भी चली गयी। हमारे यहाँ तो इंवर्टर लगा हुआ था इस लिये कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन स्ट्रीट लाइट बंद होने के कारण चारों तरफ अंधेरा हो गया था।

रात हुई तो मैंने दोपहर को नेहा का भेजा खाना बचा हुआ था उसे ही खा लिया और सोने चला गया। मौसम बहुत ज्यादा खराब हो गया था और आंधी-तुफान के साथ बारिश हो रही थी। बिजली भी चली गयी थी। कुछ देर बिस्तर पर लेटा का आँख लग गयी। टेलीफोन की घंटी की आवाज से आँख खुली, फोन उठाया तो दूसरी तरफ नेहा थी वह बोली कि उसे अंधेरें के कारण बहुत डर लग रहा हैं, उस के पास रोशनी करने का कोई साधन नहीं है, क्या मैं उस के पास आ सकता हूँ, मैंने कहा कि मैं अभी आता हूँ वह दरवाजा खोल कर रखे। मैंने दो मोमबत्ती तथा टार्च ली और छतरी ले कर अपने घर को ताला लगा कर नेहा के घर के लिये चल दिया जो बिल्कुल मेरे घर के सामने ही था।

दरवाजे पर नेहा मोमबत्ती ले कर खड़ी थी जो बुझने ही वाली थी। मैंने अंदर आ कर दरवाजा बंद कर दिया और मोमबत्ती नेहा को दे कर कहा कि अभी यही मिल पायी है, तुम्हारी दोस्त ने बाकि कहाँ रखी हैं मुझे पता नहीं है। उस ने एक मोमबत्ती जला ली और बोली कि आज तो बारिश आंधी ने मिल कर डरावना माहौल बना दिया है। राहुल को तो मैंने सुला दिया लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा था, घर में रोशनी करने के लिये कोई साधन नहीं है, टार्च भी नहीं है। इस लिये इतनी रात में तुमको फोन किया। मैंने कहा कि सही किया, रात में तो बिजली आने वाली नहीं है। बाहर बारिश के भी रुकने के आसार नहीं है। तुम्हारें यहाँ इंवर्टर नहीं है तो वह बोली कि नहीं है।

हम दोनों सोफे पर बैठ गये। तभी बाहर जोर से बिजली कड़की तो नेहा मेरे से आकर चुपक गयी। मैंने उसे अपने से चिपका लिया। अब जो होना था वह तो हो कर ही रहना था। बाहर तुफान गर्ज रहा था और अंदर भावनायें उफान मार रही थी। कुछ देर बाद हम दोनों आलिंगन बद्ध थे। हम दोनों के होंठ एक-दूसरें के लबों का स्वाद ले रहे थे। लबों के बाद गरदन की बारी आयी और फिर उस के बाद होंठ छाती पर गये। मैंने नेहा के कान में कहा कि कहीं राहुल ना जग जाये तो वह बोली कि वह अकेला सोता है उसे मैंने सुला दिया है। इस के बाद उस ने मोमबत्ती बुझा दी। कमरे में घनघोर अंधेरा छा गया, हाथ को हाथ नहीं सुझ रहा था। लेकिन यह अंधेरा हम दोनों के लिये सही था। इसी अंधेरे में हम अपने मन की करने वाले थे।