पत्नी की सहेली/पड़ोसन के साथ लगाव

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मिलन

होंठों के बाद हाथों को नंबर आया और उन्होंने सारे शरीर का अन्वेषण करना शुरु कर दिया। जब मेरे हाथ नेहा के स्तनों पर पहुँचे तो मुझे पता चला कि वह मेक्सी पहने थी और उसके भीतर उसने कुछ नहीं पहन रखा था। मैं मेक्सी के उपर से स्तनों को सहलाने लगा। सहलाने के कारण वह कठोर हो गये। नेहा के हाथ भी मेरे नाइट सुट के अंदर घुम रहे थे। उस ने मेरे निप्पलों को नाखुनों से नोचना शुरु कर दिया। इस के बाद मैंने उस की मेक्सी उतार कर फैक दी। मेरा नाइटसुट भी उतर गया और हम दोनों अपनी पेंटी और ब्रीफ में एक दूसरें में समाने की कोशिस करने लगे। सोफे पर जगह कम थी इस लिये नेहा मेरा हाथ पकड़ कर दूसरें कमरे में ले गयी। वहाँ पड़े बेड़ पर हम लेट गये।

मैंने अपना सिर नेहा की जाँघों के बीच में कर लिया और पेंटी के उपर से उस की सुगंध लेने लगा। नेहा ने भी मेरी ब्रीफ उतार कर मेरे लिंग को मुँह में ले लिया। अब खेल शुरु हो गया था। वह मेरे लिंग को चुस रही थी और मैं उस की पेंटी को किनारे कर के उस की योनि के अंदर अपनी जीभ डाल रहा था। हमारे यह कार्य हमारे शरीर में उत्तेजना भर रहे थे। कुछ देर तक हम दोनों ने एक दूसरें का खुब स्वाद लिया फिर मैंने नेहा के उपर आ कर उस की जाँघों के मध्य बैठ कर अपना लिंग जो अब 6 इंच का हो गया था उस की योनि में डालने का प्रयास किया पहला प्रयास तो विफल हो गया लेकिन नेहा ने नीचे से लिंग को हाथ से पकड़ कर योनि के मुँह पर लगाया और मैंने जोर लगाया तो वह योनि में प्रवेश कर गया।

योनि के अंदर नमी की कोई कमी नहीं थी। नेहा पूर्ण रुप से उत्तेजित थी आज जो कुछ हो रहा था वह उस के मन के अनुसार ही था। मैं भी संभोग का मजा ले रहा था। बाहर आंधी और बारिश की जोरदार आवाज आ रही थी और अंदर फच-फच की आवाज गुंज रही थी। दोनों एक-दूसरें में समा जाने के लिये आतुर थे और समा रहे थे लेकिन आतुरता कम नहीं हो रही थी। कुछ देर तक मैं नेहा के उपर लेट कर धक्कें लगाता रहा फिर उस की बगल में लेट गया। अब नेहा ने कमान संभाल ली और वह मेरे ऊपर आ गयी। उस के कुल्हें धीरे-धीरे हिल कर लिंग को अंदर बाहर करने लगे। मैं उस के लटकते मादक स्तनों के निप्पलों का रस पीने में मग्न हो गया।

हम दोनों का यह पहला मिलन था लेकिन दोस्ती होने की वजह से किसी तरह की शर्म नहीं थी और दोनों संभोग का भरपुर आनंद उठा रहे थे। कुछ समय बाद नेहा थक कर नीचे आ गयी और मैं उस के ऊपर आ गया। इस बार उस के पांव मेरे कंधे पर थे और मैं उस की कसी योनि में लिंग पेल रहा था। कुछ देर बाद नेहा ने कहा कि टांग दर्द कर रही है तो मैंने उस के पांव नीचे कर दिये। मेरे धक्कें चल ही रहे थे कि अचानक मेरी आंखें मुंद गयी और मैं डिस्चार्ज हो गया लिंग बाहर निकालने की कोशिश की तो नेहा ने हाथो से मेरे कुल्हें जकड़ कर मुझे रोक दिया। मैं उस के उपर ही लेटा रहा। कुछ देर बाद जब लिंग सिकुड़ कर योनि से बाहर आ गया तो उस के ऊपर से उठ कर बगल में लेट गया।

हम दोनों की साँसें धोकनी की तरह चल रही थी। बाहर बारिश की वजह से मौसम ठंड़ा था लेकिन हम दोनों पसीने से लथपथ थे। कुछ देर दोनों चुपचाप पड़े रहे। फिर नेहा ने मुझ से पुछा कि निकाल क्यों रहे थे?

मुझे लगा कि सावधानी सही रहेगी।

इतना क्यों सोचते हो?

क्यों इस में गलत क्या है,

मुझ से तो पुछ लेते

तुम ने बता तो दिया

तुम तो सारा मजा ही खत्म कर रहे थे

तुम्हारें हित की सोच रहा था

हाँ सही कह रहे हो, लेकिन इस से कुछ नहीं होना था

ओके

बात क्यों नहीं कर रहे हो

कर तो रहा हूँ

डर रहे हो

नहीं

जो मौका मिला है उसका फायदा उठाओँ

उठा तो रहा हूँ और बताओ क्या करुँ?

सब कुछ मैं ही बताऊँ

जो मैं भुल जाऊँ उसे तो बताओ

यह सही है।

अभी मन नहीं भरा है

जैसी तुम्हारी मर्जी लेकिन समय लगेगा

समय ही समय है

कुछ देर बाद नेहा के हाथ मेरे लिंग को सहलाने लगे और कुछ देर बाद वह अपनी पुरानी अवस्था में आ गया। हम फिर से दूबारा संभोग के लिये तैयार थे। इस बार कुछ नया करने का मन किया तो नेहा को पलट कर उस के पीछे से प्रवेश किया और उस के मुँह को अपनी तरफ करके चुमा। कुछ देर इसी आसन में रहने के बाद नेहा पलट गयी और मेरे ऊपर आ गयी और बोली कि मुझे यही पसन्द है और उस के हाथ लिंग को योनि में समाने में लग गये। लिंग योनि में जाने के बाद उस की कुल्हों की गति बढ़ गयी। मुझे अपनी जाँघों पर उन के प्रहार का दबाव महसुस हो रहा था लेकिन मैं उसे रोकने के मुड में नहीं था। वह अपनी करती रही और फिर थक कर लेट गयी।

अब मेरी बारी थी मैं ने उसे गोद में उठाया और उस के पांव अपनी कमर के दोनों तरफ करके गोद में बिठा लिया। नेहा ने कुल्हों को उठा कर तने लिंग को योनि के भीतर ले लिया। फिर मैं नीचे से कुल्हें उछालने लगा और ऊपर से वह मेरी गति का साथ देने लगी। उस के स्तन मेरे होंठों के सामने थे सो वह उन का स्वाद लेने लगे। हम दोनों जब तक स्खलित नहीं हुये इसी आसन में बैठे रहे। फिर एक दूसरे को आलिंगन बद्ध करके लेट गये। बाहर से तुफान की जोरदार आवाज आ रही थी। अंदर का तुफान आ कर गुजर गया था।

मैंने नेहा से पुछा कि संतुष्ट हो तो उस ने चुकटी काट ली और उस के दांत मेरे कंधे में गढ़ गये। मैं दर्द से बिलबिला उठा। मैंने उस के कुल्हों को नोचा तो वह बोली कि यह भी कोई पुछने की बात है, तुम्हें जबाव मिल गया। मैंने उस के होंठों पर अपने होंठ कस दिये। दो-दो बार के संभोग से हम दोनों थके तो थे लेकिन मिले मौके का भरपुर फायदा उठाना चाहते थे। फिर ना जाने यह मौका कब मिले या ना मिले।

क्या टाइम हुआ है

कह नहीं सकता लेकिन लगता है 1 तो बज गया होगा।

जाओगे?

सोच रहा हूँ चला जाऊँ

देख लो

कुछ करने की हिम्मत नहीं है।

हाँ यह तो है

तुम्हारे पास मोमबत्ती और टार्च तो है अगर जरुरत हो तो फोन कर लेना।

कुछ देर बाद चले जाना।

अच्छा

मैं उठा और अपने कपड़ें ढुढ़ने लगा तो नेहा बोली कि बाहर पड़े है, मैं ले कर आती हूँ वह उठी और अंदाजे से ही कमरे के बाहर चली गयी। कुछ देर बाद वह टार्च और कपड़ों के साथ आ गयी। कपड़ें मुझे पकड़ा कर बोली कि तुम तो पुरे बदमाश हो मेरी कमर का दम निकाल दिया है। मैं कपड़ें पहनने लगा। उस ने अपनी मेक्सी डाल ली थी। कपड़ें बदल कर मैं कुछ देर लेटा रहा। जब मुझे लगा कि चलना चाहिये तो मैंने नेहा से कहा कि मैं जा रहा हूँ तुम सावधानी से दरवाजा बंद कर लेना। अगर चाहों तो सारा घर एक बार देख ले। वह बोली कि यह कर लेते है। हम दोनों टार्च की सहायता से पुरा घर देख आये और संतुष्ट होने के बाद मैं बाहर देख कर चुपचाप निकल गया। पीछे से नेहा ने दरवाजा बंद कर लिया था।

अपने घर आ कर चुपचाप ताला खोल कर अंदर आया और अपना घर भी बंद कर लिया। बारिश की वजह से मैं गीला हो गया था। गीले कपड़ें बदल कर मैं सो गया। दो दो बार संभोग के कारण थकान हो रही थी। इस लिये गहरी नींद आ गयी थी। ना जाने कब तक सोता रहता अगर टेलीफोन की घंटी नींद ना तोड़ती। दूसरी तरफ नेहा थी बोली की लाइट तो अभी तक नहीं आयी है। मोमबत्तियां भी खत्म हो गयी है। केवल टार्च है। मैंने कहा चिन्ता ना करो मैं इमरजेंसी लाइट ढुढ़ कर लाता हूँ। उस से तुम्हारा काम चल जायेगा। फिर कोई और इंतजाम करते है। फोन रखने के बाद में इमरजेंसी लाइट ढुढने लगा। एक अलमारी में रखी मिल गयी। चला कर देखा तो काम कर रही थी। मुझे यह नहीं पता था कि वह कितनी देर काम करेगी लेकिन कुछ ना होने से तो बेहतर रहेगी।

मैं बिस्तर से उठा और कपड़ें बदल कर लाइट नेहा को देने गया। बाहर से ही लाइट उसे देकर कहा कि अभी इस से काम चलाओ फिर देखते है। शायद अगर दुकान खुल जायेगी तो और मोमबत्तियां ला दूँगा। वह बोली कि चलों में तब तक इस से काम चलाती हूँ। बारिश अभी भी हो रही थी। मैं अपने घर वापस लौट आया। चाय बना कर पी और उस के बाद फिर लेट गया। काफी देर तक सोता रहा। नेहा के फोन ने ही उठाया वह बोली कि सोना बंद करो और नाश्ता कर लो। मैंने कहा कि थकान हो रही है इस लिये सोने का मन कर रहा है। वह बोली कि मेरी भी यही हालत है, लेकिन सो नहीं सकती। नाश्ता करके मेरे लिये लाइट का इंतजाम करना। मैंने कहा जो हूकुम सरकार तो वह बोली कि मारुँगी। मैंने कहा कि तुम्हारी तो मार भी स्वीकार है। नेहा ने फोन काट दिया।

मैंने नाश्ता किया और उसके बाद बाहर खड़ा हो कर बरसात का मजा लेने लगा। नेहा का बेटा बाहर खड़ा हो कर बरसात का मजा ले रहा था। मुझे देख कर वह मेरे पास भाग कर आ गया। मैं उसे देने के लिये चॉकलेट लेने के लिये अंदर गया तो वह बोला कि अंकल मम्मी कह रही है कि लाइट कब आयेगी? मैंने उसे चॉकलेट दी और कहा कि तुम घर में बैठों मैं लाइट का इंतजाम करता हूँ। वह चॉकलेट ले कर वापस चला गया। मैं सोचने लगा कि अब कहाँ से मोमबत्ती का से लाऊँ? फिर ध्यान आया कि पत्नी से ही पुछा जा सकता है इस लिये पत्नी को फोन किया और उस से पुछा हमारे पास मोमबत्ती रखी है? उस ने बताया कि लकड़ी की अलमारी में नीचे देखो वहाँ पर मोमबत्ती के कई पैकिट रखे है।

उस ने पुछा कि मोमबत्तियों की कैसे याद आ गयी तो मैंने उसे बताया यहाँ बिजली गई हुई है और नेहा मोमबत्ती माँग रही थी। मुझे मिल नहीं रही थी इस लिये तुम से पुछ लिया। वह बोली की वहाँ से निकाल कर दे दो। तुम्हें तो उन की जरुरत नहीं है। मैंने कहा कि अपनी भी लाइट जा सकती है कल शाम से लाइट गयी हुई है, इंवर्टर भी बंद हो सकता है। वह बोली कि अपने लिये भी बचा के लिये रख लेना। फोन के बाद मैंने लकड़ी की अलमारी के निचले खाने में मोमबत्ती के पैकेट ढुढ़ लिये। एक पैकेट अपने लिये रख लिया और एक पैकेट नेहा को देने के लिये रख लिया।

इस के बाद नेहा को फोन किया कि मोमबत्तियां मिल गयी है तुम चिन्ता मत करना। वह बोली कि कैसे मिली? मैंने उसे बताया कि पत्नी को फोन करके पता किया है। मेरा इंवर्टर भी कभी भी बंद हो सकता है। इस लिये मुझे भी मोमबत्तियों की जरुरत थी। मैंने नेहा से बोला कि राहुल को भेज देना मैं उसे डिब्बा दे दूँगा तो वह बोली कि तुम भी तो आ सकते हो, मैंने कहा हाँ मैं ही आ जाऊँगा देने। मैंने डिब्बा लिया और अपने कपड़ें देखे की सही है या नहीं फिर नेहा के घर को लिये चल दिया। बाहर बारिश पुरे जोर-शोर से बरस रही थी। बारह घंटें से ज्यादा होने आ रहे थे लेकिन बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी।

नेहा बाहर ही खड़ी थी वह बोली कि बिजली ना होने के कारण कोई काम भी नहीं कर सकते है, मैंने कहा कि हाँ यह तो है और पता भी नहीं चल रहा हैं कि बिजली कब आयेगी। नेहा ने मुझ से कहा कि आप बिजली के दफ्तर फोन करके देखिये शायद पता चल जाये कि बिजली कब आयेगी? मैंने कहा कि हाँ यह तो मुझे ध्यान ही नहीं आया, अभी फोन करके पता करता हूँ। मैंने मोमबत्तियों का पैकेट उसे दिया और कहा कि इस से आज का काम चल जायेगा। उस ने पैकेट मेरे हाथ से ले लिया। मैं वापस घर चलने लगा तो वह बोली कि आप फोन यहाँ से कर लिजिये। मैं उस की बात मान कर घर में अंदर आ गया और बिजली विभाग का फोन नंबर ढुढने लगा। नेहा बोली कि मैं आप को बिजली का बिल देती हूँ शायद उस पर टेलीफोन नंबर लिखा होगा।

उस ने पुराना बिल ला कर दिया और मैंने उस से नंबर ले कर विभाग को फोन किया तो फोन मिल गया। उन्होंने बताया कि तार टूट कर गिर गया है। जब बरसात कम हो जायेगी उस के बाद ही उस की मरम्मत करी जा सकेगी इस लिये बिजली आने का कोई समय नहीं बता सकते है। मैंने नेहा को यह बात बतायी तो वह बोली कि यह तो बहुत भारी समस्या हो गयी है। क्या होगा? मैंने कहा कि इंतजार के सिवा हम कुछ नहीं कर सकते, आप खाना बनाओ, मैं भी जा कर दोपहर का खाना बनाता हूँ तो वह बोली कि आप यही खाना खा लेना। मैंने उस की तरफ देखा और इशारों में पुछा तो वह बोली कि मैं भिजवां दुगी। मैंने सर हिला दिया। इस के बाद मैं नेहा के घर से वापस आ गया।

आज का दिन बेकार जाने वाला था, मुझे कपड़ें धोने थे लेकिन बिजली ना होने के कारण यह काम हो नहीं सकता था। मैं एक किताब ले कर उसे पढ़ने बैठ गया। तभी फोन की घंटी बजी, दूसरी तरफ पत्नी थी वह बोली कि बिजली का क्या हाल है तो मैंने उसे बताया कि बारिश बंद नहीं हो रही है इसी कारण बिजली वाले टुटे तार को जोड़ नहीं पा रहे है। आज मेरे सब काम रुक गये है तो वह बोली कि क्या काम रुक गया है। मैंने कहा कि कपड़ें धोने थे, इस पर वह बोली कि तुम्हारें दस दिन के कपड़ें मैं प्रेस करके टाँग कर आयी हूँ कोई चिन्ता मत करो।

मैंने कहा फिर तो मेरे को कोई चिन्ता नहीं है। मैं बैठ कर किताब पढ़ता हूँ तो वह बोली कि नेहा की मदद कर देना वह शायद अकेली होगी। मैंने उसे बताया कि मैंने उसे मोमबत्तियां दे दी है और अगर किसी और चीज की जरुरत पडे़गी तो उस की मदद कर दूँगा। वह मेरी बात सुन कर खुश हो कर बोली कि यह तो तुम अच्छा कर रहे हो। उस के बाद में मजे से किताब पढ़ता रहा।

नेहा ने फोन किया कि राहुल खाना ले कर आ रहा है तुम ले लेना। मैंने बाहर जा कर राहुल से खाना ले लिया और उसे कहा कि वह अंदर जा कर खेल ले यहाँ बिजली आ रही है तो वह अंदर आ गया और खेलने लगा। मैं खाना खाने बैठ गया। खाना खा कर मैंने राहुल से पुछा कि चॉकलेट खानी है तो वह बोला कि मम्मी बोल रही थी कि ज्यादा खाने से दांत खराब हो जाते है। आप मुझे दे दो मैं कल खाऊँगा। उस की यह बात सुन कर मैं हँस पड़ा और एक चॉकलेट उसके हाथ में रख दी। वह खाली टिफिन ले कर घर चला गया। खाने के बाद नींद आ रही थी सो लेट गया और ना जाने कब आँख लग गयी।

टेलीफोन की आवाज से आंख खुली, नेहा थी वह बोली कि क्या कर रहे हो तो मैंने बताया कि सो रहा था तो वह बोली कि तुम बढ़िया हो मजे से सो रहे हो यहां मैं कमर के दर्द से मरी जा रही हूँ। मैंने कहा कि बताओं मैं क्या कर सकता हूँ तो वह बोली कि तुम ने ही तो दर्द दिया है। मैंने कहा कि दर्द दूर करने के लिये क्या करुँ यह बताओ तो वह बोली कि मुझे नहीं पता। मैंने कहा कि तुम भी कुछ देर आराम कर लो, शायद दर्द कम हो जायेगा। वह बोली कि रात भर नींद नहीं आयी है। मैं चुप रहा तो वह बोली कि अब चुप क्यों हो?

क्या कहुँ

कुछ भी

एक बार में इतना करेगे तो फल तो भुगतना पड़ेगा

मैं ही क्यो भुगतुँ

मैं भी तो भुगत रहा हूं लेकिन कह नहीं रहा बस यही फर्क है

बता नहीं सकते

जब पता है कि ऐसा होना था तो क्या बताता, महीने भर बाद किया है तो यह तो होना ही था

ऐसा क्यों,

तुम्हें बताया तो था

मैं भुल गयी

छोड़ो, कोई दर्द की गोली पड़ी हो तो खालों नहीं है तो मैं दे दुँगा।

देखती हूँ नहीं तो तुम्हें बताती हूँ।

रात का खाना मत बनाना

क्यों

हर बात का जबाव नहीं है मेरे पास

जैसी तुम्हारी मर्जी

नाराज क्यों हो रही हो

जैसे तुम्हें पता नहीं है

इस बार नहीं पता है

तुम्हे मैं खाना भी नहीं खिला सकती

नेहा कुछ बातें समझनी पड़ती है

मुझे नहीं समझनी

बच्चों जैसी बातें मत करो, पहले ही समझाया था कि हमें मन को मारना सीखना पड़ेगा।

मान ली लेकिन क्या बनाओगे?

तुम्हारा भेजा खाना अभी बचा हुआ है उसी से काम चला लुँगा

तुम खाना कम क्यों खा रहे हो सही तो हो

सही हुँ तुम खाना ज्यादा भेज रही हो

और कुछ

रात का खाना भी अभी बना लो, पता नहीं कब बारिश बंद होगी और बिजली आयेगी।

देखती हूँ

फोन कट गया।

नेहा की मन की करनी पड़ेगी यह मुझे समझ आ गया था। लेकिन मैं उसे रोकना चाहता था यह उस के लिये ही जरुरी था। बाहर बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। मैं बाहर बैठ कर बारिश को देखता रहा। कुछ देर बाद राहुल मेरे पास आया और बोला कि हमारी लाइट चली गयी है। मुझे समझ आ गया कि इमरजेंसी लाइट बंद हो गयी है। शायद मोमबत्ती भी खत्म हो गयी होगी। मैंने उस से कहा कि वह यही पर खेल ले। वह बोला कि मम्मी आप को बुला रही है। मैं उसे घर पर छोड़ कर नेहा के घर गया। वहाँ अंधेरा छाया हुआ था। नेहा को आवाज दी तो वह आती दिखायी दी। उस ने आ कर बताया कि मोमबत्ती भी खत्म हो गयी है और लाइट भी बुझ गयी है।

मैंने कहा कि अब एक ही चारा है कि वह मेरे यहाँ आ जाये और वही पर खाना बना ले। नेहा बोली कि खाना तो मैंने बनाने रख दिया है। कुछ देर में बन जायेगा। वह बोली कि टार्च काम कर रही है मैं उस की सहायता से खाना तो बना लेती हूँ लेकिन उस के बाद इस अंधेरे में क्या करुँ? मैंने कहा कि तुम खाना लेकर मेरे घर आ जाओं, वहाँ अभी इंवर्टर काम कर रहा है। जब तक बैटरी है तब तक तो रोशनी रहेगी ही। उस के बाद देखेगे क्या करना है?

मैं अपने घर वापस आ गया। कुछ देर बाद नेहा खाना ले कर आ गयी। घर को वह बंद कर आयी थी। हम तीनों ने खाना खाया। उस के बाद नेहा कुछ देर तक राहुल के साथ खेलती रही फिर जब वह सो गया तो उसे सुला कर मेरे पास आ गयी। मैंने उस से पुछा कि राहुल आराम से सो रहा है तो वह बोली की खाना खाने के बाद उसे नींद आ जाती है इस लिये वह सो गया है। अब हम क्या करें?

बिजली का इंतजार और क्या?

और कुछ नहीं कर सकते?

नहीं यह सही मौका नहीं है। हो सकता है इंवर्टर भी बंद हो जाये

फिर क्या करेगें

कुछ समझ नहीं आ रहा है, रात घीर आयी है,

रोशनी का कोई और इंतजाम नहीं है?

टार्च, मोमबत्ती और इमरजेंसी लाइट इस के अलावा तो मुझे कुछ सुझ नहीं रहा है

लालटेन होगी?

होनी तो चाहिये लेकिन कहाँ है यह पता नहीं है

ढुढ़ों शायद मिल जाये

कोशिश करता हूँ

मैं लालटेन ढुढ़ने में लग गया। कुछ देर बार स्टोर रुम में घुल से सनी लालटेन मिल गयी, अब समस्या थी मिट्टी के तेल की, वह भी स्टोर में मिल गया। मैंने लालटेन के शीशे को साफ किया और उस की बत्ती को ऊपर करके लालटेन में मिट्टी का तेल भर दिया। जलाने पर लालटेन जलने लगी। अब हमारे पास एक और साधन था अंधेरे से बचने के लिये। उसे संभाल कर रख दिया। मैं और नेहा कमरे में बात करने लगे। वह बोली कि ऐसी बारिश तो मैंने आज तक नहीं देखी, मेरी भी यही राय थी कि ऐसी बारिश आज तक मैंने भी नहीं देखी थी। कुछ देर बाद इंवर्टर भी बंद हो गया। मैंने लालटेन जला दी। उस की मद्दिम रोशनी में हम दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे। मैंने नेहा से कहा कि वह कमरे में जा कर सो जाये। मैं यहीं दीवान पर सो जाऊँगा तो मुझे घुरने लगी। मैंने उसे समझाया कि जो कह रहा हूँ वही करो। वह मेरी बात मान कर सोने चली गयी।

मैं भी घर का दरवाजा बंद करके दीवान पर लेट गया। बाहर बारिश की आवाज और जोरदार हो गयी थी। बारिश की आवाज से ना जाने कम मुझे नींद आ गयी पता नहीं चला।

सुबह जब उठा तो बारिश हो रही थी। चाय बनाने की सोच ही रहा था कि नेहा कमरे से बाहर आती दिखी। वह मेरे पास आ कर बोली कि बहुत गहरी नींद आयी थी, क्या कर रहे हो? चाय बनाने जा रहा था। तुम बैठों में बना कर लाती हूँ। यह कह कर वह चाय बनाने चली गयी। मैं उस के पीछे लालटेन चलाने के लिये गया। किचन में अंधेरा था वह मुझ से चिपक कर बोली कि किस तो करने दो। मैंने उस का चेहरा अपने हाथों में पकड़ा और उसे किस करने लगा। उस के होंठं मेरे होंठों से मानों चिपक गये। कुछ देर बाद जब दोनों का मन भर गया तब वह अलग हुये। मैंने उसे बताया कि लालटेन जलानी है बिना इसके किचन में काम नहीं कर पायेगी। वह मेरे से अलग हो गयी। मैं माचिस से लालटेन जलाने लगा। उसे जला कर एक जगह रख कर नेहा से बोला कि अब तुम काम कर सकती हो। वह चाय बनाने लगी और मैं बाहर कमरे में आ गया।

बाहर भी बारिश के कारण अंधेरा सा छाया हुआ था। कमरे मे मोमबत्ती जलाने लगा तो मुझे लगा कि बिना मोमबत्ती के काम चल सकता है। मोमबत्तियों को बचा कर रखना जरुरी था। कुछ देर बाद नेहा चाय बना कर ले आयी और कमरे में अंधेरा देख कर बोली कि मोमबत्ती क्यों नहीं जलायी तो मैंने उसे बताया कि अभी ऐसे ही काम चला लेते है। पता नहीं बिजली कब तक आयेगी। मोमबत्ती भी मिलेगी या नहीं। चाय पीते में मुझे ध्यान आया कि मेरे एक परिचित की इन चीजों की दूकान है उसे फोन करके देखता हूँ शायद उस के पास टॉर्च और मोमबत्नी वगैरहा मिल जाये।

चाय के बाद उसे फोन किया तो वह बोला कि सब सामान बिक गया है लेकिन शायद एक लालटेन मिल जायेगी। मैंने उसे कहा कि वह उसे मेरे लिये रख ले, मैं अभी उस के पास आ रहा हूँ। मैंने नेहा को कहा कि मैं अभी लालटेन या टॉर्च ले कर आता हूँ यह कह कर मैं गाड़ी ले कर निकल गया। परिचित की दूकान अभी नहीं खुली थी, उस के घर से एक टार्च, लालटेन और कुछ मोमबत्तियों के पैकेट ले कर मैं वापस आ गया।

नेहा बोली कि यह अब तक ध्यान क्यों नहीं आया था। मैंने उसे बताया कि जरुरत ही महसुस नहीं हुई लेकिन कल इंवर्टर बंद हो जाने के बाद लगा कि कुछ तो होना चाहिये। सुबह ध्यान आया तो उसे फोन किया। उस के पास जो बचा था सो ले आया हूँ। टार्च और लालटेन तुम्हारें लिये लाया हूँ। तुम इन्हें ले जाओ, मुझे ऑफिस भी जाना है वहाँ से फोन करके पता करता हूँ कि क्या आधे दिन की छुट्टी मिल सकती है या नहीं?

मैंने लालटेन में मिट्टी का तेल डाल कर तैयार कर दिया और नेहा को समझा दिया कि इसे कैसे जलाना है। वह दोनों चीजे ले कर घर चली गयी और कुछ देर बाद मैं राहुल को उस के घर छोड़ आया। अब उस के पास रोशनी का कुछ तो इंतजाम था। ऑफिस फोन करने पर पता चला कि मैं आधे दिन बाद आ सकता हूँ। मैं नाश्ता बनाने में लग गया। नाश्ता करके फिर बिजली वालों को फोन किया तो वही रटा-रटाया जबाव मिला कि बारिश बंद होने के बाद ही कुछ हो सकेगा। यह खबर नेहा को भी बता दी।

उसे यह भी बता दिया कि मैं दोपहर में ऑफिस जाऊँगा। शाम तक ही लौटुगा, उसे मुझे से कोई काम हो तो बता दे। वह बोली कि काम तो कुछ नहीं है। दूध खत्म हो गया है, अगर कही से मिले तो लेते आना। मैंने उसे बताया कि मेरे पास दूध का पाउडर पड़ा है अगर जरुरत है तो वह ले जा सकती है। उस ने हाँ में उत्तर दिया। मुझे पता था कि मिल्क पाउडर नेहा को देने के बाद मेरे पास चाय बनाने के लिये कुछ नहीं रहेगा, लेकिन मेरी चाय से ज्यादा जरुरी बच्चे का दूध पीना था। दोपहर को ऑफिस चला गया। वहां जा कर कैंटिन से लंच किया। शाम को घर वापस आते में दूध लेता आया।

नेहा को जब दूध देने गया तो वह बोली कि मुझे बता कर जाते मैं खाना बना देती। मैंने उसे बताया कि मैंने कैंटिन में खाना खा लिया है। वह मेरी चिन्ता ना करे। बाहर बारिश का जोर कुछ कम हुआ था। नेहा बोली कि आज रात क्या होगा? मैंने कहा कि हो सकता है बारिश रुक जाये और बिजली आ जाये। वह बोली कि ऐसा ही हो तो अच्छा है। मैं अपने घर आ गया।

बारिश रुक गयी। इसके एक घंटे के बाद बिजली आ गयी। मैं जल्दी से यह देखने गया कि इंवर्टर चार्ज हो रहा है या नहीं वह चार्जिग कर रहा था। दूसरी और नेहा के घर की बत्तियां भी जल रही थी। पीछले दो दिन बड़ें मुश्किल बीते थे। आज बिजली वापस आ जाने से राहत मिली थी। बारिश दूबारा से होने लगी थी लेकिन उस में पिछली वाली तेजी नहीं थी। मैं रात को खाना बनाने की सोचने लगा तभी नेहा का फोन आया कि खाना बनाने की गल्ती ना करुँ, उस ने खाना बना लिया है। उस की इस बात पर मैं हँस पड़ा तो वह बोली कि हँस क्यों रहे हो। मैंने कहा कि तुम अंतरज्ञानी हो मैं अभी खाना बनाने की सोच ही रहा था। तुम में मेरी परेशानी दूर कर दी। वह बोली कि तुम अपनी परेशानी दूर करने का मौका कहाँ देते हो।

इस पर मैंने उसे कोई जबाव नहीं दिया। इस बात का मेरे पास कोई जबाव था भी नहीं। कुछ देर बाद मैं नेहा के यहाँ खाना खाने चला गया। बारिश जारी थी। खाना खाते में नेहा बोली कि ऐसी बारिश तो मैंने आज तक नहीं देखी है। मैंने भी उस की बात से सहमति जताई। चलते समय मैंने नेहा से कहा कि इमरजेंसी लाइट चार्ज करने लगा दे। इस बिजली का कुछ पता नहीं है कभी भी जा सकती है। बारिश दूबारा से शुरु हो गयी है. वह बोली कि हाँ यह तो है बिजली कभी भी जा सकती है। वह कुछ और कहती इससे पहले मैं घर के लिये निकल लिया। मुझे जल्दी सोना था, सुबह ऑफिस जाने के लिये।

सुबह सो कर उठा तो देखा कि बरसात पुरे जोर-शोर से बरस रही थी। लाइट भी गायब थी। नेहा को फोन किया तो उसने बताया कि इमरजेन्सी लाइट ही थोड़ी से चार्ज हुई है उसी से काम चला रही है। मैंने कहा कि मेरे यहाँ भी यही हाल है पता नहीं रात में लाइट कब चली गयी थी। मैंने उसे बताया कि हो सकता है कि मैं अपने ऑफिस जाऊँ इस लिये वह मेरी चिन्ता ना करे। नेहा बोली कि चिन्ता ना करने वाली बात तो हो नहीं सकती लेकिन तुम ने बता कर अच्छा किया। मैं खाली चाय पी कर ऑफिस के लिये निकल गया। नाश्ता भी ऑफिस की कैंटिन में ही किया। शाम को घर आते में नेहा को फोन करके पुछा कि कुछ लाना तो नही है तो वह बोली कि अगर सब्जी मिले तो ले आना, दूध भी ले आना। मैं दोनों चीजे ले आया। रात का खाना हम तीनों ने एक साथ खाया और बात करने लगे। बारिश बंद नहीं हो रही थी और जब तक बारिश बंद होगी तब तक बिजली नहीं आयेगी।