पत्नी की सहेली/पड़ोसन के साथ लगाव

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रात हो रही थी मैं अपने घर के लिये चलने लगा तो नेहा बोली कि आज तुम यहीं सो सकते हो। मैंने कहा कि नहीं मेरा यहाँ सोना सही नहीं है। तुम सुबह मेरे यहाँ आ सकती हो। मेरी बात नेहा को समझ आ गयी। मैं घर आ कर सोने की तैयारी करने लगा तो नेहा का फोन आया वह बोली कि अगर रात में लाइट बंद हो जाये तो क्या करुँ? मैंने कहा कि सो जाना या टार्च जला लेना। रात में तुम्हें अपने यहाँ ही रहना होगा। वह कुछ नहीं बोली।

सुबह चार बजे फिर से फोन बजा, नेहा बोली कि तुम मुझे मारना चाहते हो, मैंने पुछा कैसे तो वह बोली कि मैं डर के मारे मर जाऊँगी।

क्या करुँ

कुछ तो करो

यहाँ आ जाओ

कैसे

राहुल को ले कर आ जाओ

तुम राहुल को लेने आ जाओ

मैं आता हुँ

मैं नेहा के घर गया और राहुल को गोद में लेकर आ गया, नेहा घर बंद करके मेरे पीछे आ गयी। राहुल को कमरे में सुला कर वह मेरे पास आ कर बैठ गयी और बोली कि मैं तुम्हें ज्यादा ही परेशान कर रही हूँ।

नहीं तो

सच कहो

सच कह रहा हूँ

चुप चुप से क्यों हो

सोते से उठा हुँ इस लिये ऐसा हुँ

फिर से सो जाओ

जैसा कहों

सो सकते हो

नहीं

फिर वो करो जो करना चाहिये

क्या?

यह भी मैं बताऊँ

मैंने उसे पकड़ा और अपने साथ दिवान पर लिटा लिया। वह मेरे से चिपक गयी। अब जो होना था वो तो हो कर ही रहना था।रात को तीन-तीन बार जोरदार संभोग हुआ। संभोग इतना जोरदार था कि हम दोनों बुरी तरह थक गये थे। लेकिन इस के बावजूद दोनों में से कोई रुका नहीं। सुबह दोनों का दर्द के मारे बुरा हाल था। मैंने फैसला किया कि मैं आज ऑफिस से छुट्टी ले लेता हूँ, नेहा ने मुझ से दर्द की गोली माँग कर खायी और बोली कि एक दिन तुम मुझे मार ही डालोगे। मैं उस के इस आरोप पर चुप रहा।

बिजली ना होने के कारण वह अपने घर नहीं गयी और यहीं पर नाश्ता बनाने लगी। बारिश ने सब कुछ गड़बड़ कर दिया था। अंधेरा होने के कारण कुछ किया नहीं जा रहा था। हम सिर्फ प्रार्थना कर सकते थे कि बारिश बंद हो जाये और बिजली आ जाये। दूध ना होने के कारण काली चाय पीनी पड़ी। नेहा बोली कि अब क्या करें? मेरे पास इस का कोई जबाव नहीं था। बारिश के कारण अखबार भी नहीं आ रहा था, जिस कारण से स्थानीय समाचार भी नहीं पता चल पा रहे थे। हम ने फैसला किया कि आज कुछ नहीं करते बस बारिश के बंद होने का इंतजार करते है।

बारिश रात को बंद हुई इस कारण से दूसरे दिन सुबह बिजली आयी। उस के बाद नेहा अपने घर चली गयी और मैं अपने ऑफिस चला गया। वहाँ सब के पास सुनाने के लिये मेरे जैसे अनुभव थे। नेहा और मेरे पास कुछ और अनुभव भी थे जो हम किसी दूसरे के साथ बाँट नहीं सकते थे लेकिन बारिश ने हम दोनों की फैन्टसी को पुरा करने में बड़ी भुमिका निभाई थी, इस लिये हम दोनों तो उस के शुक्रगुजार थे। वैसा अनुभव जीवन में दूबारा नहीं मिलना था। हमारे बीच जो लगाव था वह और गाढ़ा हो कर प्यार में बदल गया था। बाद के वर्षों में वह और फला-फुला।

*** समाप्त **

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